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भेड़ाघाट

Monday, January 24, 2011

मर रहा है मध्य प्रदेश का किसान

विनोद उपाध्याय

मध्य प्रदेश में फसल बर्बाद होने और कर्ज से परेशान किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला थम नहीं रहा है। प्रदेश में एक महीने में अब तक दस किसानों ने आत्महत्या की है। एक ओर मध्यप्रदेश प्रदेश सरकार खेती को जहां लाभ का धंधा बनाने का राग अलापती नहीं थक रही है वहीं सरकार द्वारा किसान कल्याण व कृषि संवर्धन के लिए चलाई जा रही योजनाओं में राजनीतिक भेदभाव और भ्रष्टाचार से किसानों को सरकार की प्रोत्साहनकारी और रियायती योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है।

प्रदेश में किसानों की हालत इस कदर बदहाल है कि कई सहकारी संस्थाओं ने किसानों को घटिया खाद-बीज के साथ ही कीटनाशकों की आपूर्ति कर किसानों को बेवजह कर्जदार बना दिया है तो वहीं खराब खाद-बीज और दवाइयों के कारण फसल भी चौपट हो गई, पर इंतहा तो तब हो गई जब प्रदेश के पीडि़त किसानों को सरकार भी न्याय दिलाने में असफल रही। हालांकि केंद्र सरकार ने कुछ ऋणग्रस्त किसानों के कर्ज माफ कर दिए और इसके लिए राज्य सरकार को प्रतिपूर्ति भी की, किन्तु मध्यप्रदेश में सहकारी संस्थाओं में घोटालों के कारण करीब 115 करोड़ रुपए के कृषि ऋण माफ नहीं हो पाए।

प्रदेश किसान का हाल क्या है, यह उसके अंदाज को देखकर ही लगाया जा सकता है, खेती के दिनों में किसानों को अपनी मांगों को मंगवाने के लिए राजधानी की सड़कों पर हाथ में डंडा लेकर उतरना पड़ा। प्रदेश में किसान गुस्से से भरा हुआ है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नाता रखने वाले भारतीय किसान संघ ने किसानों की समस्या को लेकर भोपाल में प्रदर्शन किया तो उसका गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा। किसानों ने भोपाल की रफ्तार ही थाम दी। किसानों का आंदोलन सरकार को यह एहसास करा रहा है कि वह गांव, किसान तथा गरीब को खुशहाल करने का नारा देने में पीछे नहीं रहती और यही किसान अपनी समस्याओं से इतना आजिज आ चुका है।

प्रदेश अब दूसरा विदर्भ बनने की कगार पर है। यह तब हो रहा है, जबकि किसान का बेटा प्रदेश में राज कर रह है। पिछले 10 सालों में 15000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। आत्महत्याओं के साथ एक बार फिर यह बहस उपजी है कि क्या कारण है कि धरती की छाती को चीरकर अन्न उगाने वाले किसान, हम सबके पालनहार को अब फांसी के फंदे या अपने ही खेतों में छिड़कने वाला कीटनाशक ज्यादा भाने लगा है। दरअसल अभी तक किसानों की आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक का जिक्र आता रहा है, लेकिन वास्तविकता इससे बहुत परे है। मध्यप्रदेश में विगत 10 वर्षों में किसानों की आत्महत्याओं में लगातार इजाफा हुआ है। प्रदेश में विगत 10 वर्षों में 14155 से भी ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है।

प्रदेश में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के किसानों से 50,000 रुपया कर्ज माफी का वादा किया था, लेकिन प्रदेश सरकार ने उसे भुला दिया। अब किसानों पर कर्ज का बोझ है। दूसरी ओर भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण (2008-09) की रिपोर्ट कहती है कि देश के कई राज्यों में समर्थन मूल्य लागत से बहुत कम है, मध्यप्रदेश में भी कमोबेश यही हाल है। हालांकि सरकार यह बता रही है कि हमने विगत दो सालों में समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है। लेकिन इस बात का विश्लेषण किसी ने नहीं किया कि वह समर्थन वाजिब है या नहीं। समर्थन मूल्य अपने आप में इतना समर्थ नहीं है कि वह किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिला सके। ऐसे में खेती घाटे का सौदा बनती जाती है, किसान कर्ज लेते हैं और न चुका पाने की स्थिति में फांसी के फंदे को गले लगा रहे हैं। हालांकि सरकार यह बता रही है कि हमने विगत दो सालों में समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है। लेकिन इस बात का विश्लेषण किसी ने नहीं किया कि वह समर्थन मूल्य वाजिब है या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि समर्थन मूल्य लागत से कम आ रहा है? वह लागत से कम आ भी रहा है, लेकिन फिर भी सरकार ने इस वर्ष बोनस 100 रुपए से घटाकर 50 रुपए कर दिए। किसान की बेबसी की जरा इससे तुलना कीजिए कि वर्ष 1970-71 में जब गेहूं का समर्थन मूल्य 80 पैसे प्रति किलोग्राम था तब डीजल का दाम 76 पैसे प्रति लीटर था, लेकिन आज जबकि मशीनी खेती हो रही है और डीजल का दाम 36 रुपए प्रति लीटर है, तब गेहूं का समर्थन मूल्य 11 रुपए प्रति किलोग्राम हुआ है। यानी तब किसान को एक लीटर डीजल के लिए केवल एक किलो गेहूं लगता था अब उसे उसी एक लीटर डीजल के लिए साढ़े तीन किलो गेहूं चुकाना होता है।

किसानी धीरे-धीरे घाटे का सौदा होती जा रही है। बिजली के बिगड़ते हाल, बीज का न मिलना, कर्ज का दबाव, लागत का बढऩा और सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य का न मिलना आदि यक्ष प्रश्न बनकर उभरे है। सरकार एक ओर तो एग्रीबिजनेस मीट कर रही है, लेकिन दूसरी ओर किसानी गर्त में जा रही है। किसान कर्ज के फंदे कराह रहा है। समय रहते खेती और किसान दोनों पर ध्यान देने की महती आवश्यकता है, नहीं तो अपने वाले समय में किसानों की आत्महत्याओं की घटनाएं और बढ़ेंगी और हम विदर्भ की तरह वहां भी मुंह ताकते रहेंगे।
छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र होने के साथ ही प्रदेश में बिजली खेती-किसानों के लिए प्रमुख समस्या बन गई है। प्रदेश में विद्युत संकट बरकरार है। सरकार ने अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के समय ही अतिरिक्त बिजली खरीदी थी, उसके बाद फिर वही स्थिति बन गई है। प्रदेश में किसान को बिजली का कनेक्शन लेना राज्य सरकार ने असंभव बना दिया है। उद्योगों की तरह ही किसानों को खंबे का पैसा, ट्रांसफार्मर और लाइन का पैसा चुकाना पड़ेगा, तब कहीं जाकर उसे बिजली का कनेक्शन मिलेगा। बिजली तो तब भी नहीं मिलेगी, लेकिन बिल लगातार मिलेगा। बिल नहीं भरा तो बिजली काट दी जाएगी, केस बनाकर न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा यानी किसान के बेटे के राज में किसान को जेल भी हो सकती है। घोषित और अघोषित कुर्की भी चिंता का कारण है। ऐसा नहीं कि सरकार के पास राशि की कमी थी, बल्कि सरकार के पास इच्छाशक्ति की कमी थी। गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए भारत सरकार ने दो अलग-अलग योजनाओं में राज्य सरकार को पैसा दिया था। पहली योजना है राजीव गांधी गांव-गांव बिजलीकरण योजना, जबकि दूसरी योजना है सघन बिजली विकास एवं पुनर्निर्माण योजना। राजीव गांधी योजना के लिए राज्य सरकार को वर्ष 2007-08 में 158।21 करोड़, वर्ष 2008-09 में 165।11 करोड़ रुपए मिले। इसी प्रकार सघन बिजली विकास एवं पुनर्निर्माण योजना में भी वर्ष 2007-08 व 2008-09 में क्रमश: 283।11 व 374।13 करोड़ रुपए राज्य सरकार के खाते में आए। कुल मिलाकर दो वर्षों में 980।56 करोड़ रुपए राज्य सरकार को बिजली पहुंचाने के लिए उपलब्ध हुए, लेकिन इसके बाद भी राज्य सरकार ने किसानों को कोई राहत नहीं दी और न ही भारत सरकार की इस राशि का उपयोग कर बिजली पहुंचाई। इतनी राशि का उपयोग कर किसानों को बिजली उपलब्ध कराई जा सकती थी, लेकिन वास्तव में ऐसा हुआ नहीं। प्रदेश के हजारों किसानों के विद्युत प्रकरण न्यायालय में दर्ज किए गए।

राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो की मानें तो प्रदेश में प्रतिदिन 4 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि यह मामला केवल इसी साल सामने आया है, बल्कि वर्ष 2001 से यह विकराल स्थिति बनी है। विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों पड़ोसी राज्यों में कमोबेश एक सी स्थिति है। यह स्थिति इसलिए भी तुलना का विषय हो सकती है, क्योंकि दोनों राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियां लगभग एक सी हैं। खेती करने की पद्धतियां, फसलों के प्रकार भी लगभग एक से ही हैं। मध्यप्रदेश ने वर्ष 2003-04 में भी सूखे की मार झेली थी और तब किसानों की आत्महत्या का ग्राफ बढ़ा था। विगत दो-तीन वर्षों में भी सूखे का प्रकोप बढ़ा है तो हम पाते हैं कि वर्ष 2005 के बाद प्रदेश में किसानों की आत्महत्याओं में बढ़ोतरी हुई है। हम यह सोचकर खुश होते रहे हैं कि हमारे राज्य में महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व कर्नाटक की तरह भयावह स्थिति नहीं है, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि इन राज्यों की स्थितियां हमसे काफी भिन्न हैं और यदि आज भी ध्यान नहीं दिया गया तो प्रदेश की स्थिति और भी खतरनाक हो जाएगी।

वर्ष 2010 के प्रारम्भ से लेकर अब तक करीब एक हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर अपनी जान गंवा चुके हैं। और अन्नदाताओं की आत्महत्यों का यह दौर अनवरत जारी है। मध्य प्रदेश में किसान आए दिन मौत को गले लगा रहे हैं, लेकिन सरकार इस तथ्य को छिपाना चाहती है, फिर भी सच एक न एक दिन सामने आ ही जाता है। मध्यप्रदेश में किसानों की आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण कर्ज है। इसके साथ ही बिजली संकट, सिंचाई के लिए पानी, खाद, बीज, कीटनाशकों की उपलब्धाता में कमी और मौसमी प्रकोप भी जिम्मेदार है, जिससे कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है और किसान आत्महत्या को मजबूर है। खेती पर निर्भर किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य भी न मिलना शामिल है, जिससे वह कर्ज के बोझ में दबता चला जाता है।

किसानों की आत्महत्याओं के तात्कालिक प्रकरणों का विश्लेषण हमें इस नतीजे पर पहुंचाता है कि सभी किसानों पर कर्ज का दबाव था। फसल का उचित दाम नहीं मिलना, घटता उत्पादन, बिजली नहीं मिलना, परंतु बिल का बढ़ते जाना, समय पर खाद, बीज नहीं मिलना और उत्पादन कम होना और सरकारों द्वारा भी नकदी फसलों को प्रोत्साहन दिए जाने पर किसान परेशान हैं। मप्र के किसानों की आर्थिक स्थिति के बारे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं। प्रदेश के हर किसान पर औसतन 14 हजार 218 रुपए का कर्ज है। वहीं प्रदेश में कर्ज में डूबे किसान परिवारों की संख्या भी चौंकाने वाली है। यह संख्या 32,11,000 है। मप्र के कर्जदार किसानों में 23 फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके पास 2 से 4 हेक्टेयर भूमि है। साथ ही 4 हेक्टेयर भूमि वाले कृषकों पर 23,456 रुपए कर्ज चढ़ा हुआ है। कृषि मामलों के जानकारों का कहना है कि प्रदेश के 50 प्रतिशत से अधिक किसानों पर संस्थागत कर्ज चढ़ा हुआ है। किसानों के कर्ज का यह प्रतिशत सरकारी आंकड़ों के अनुसार है, जबकि किसान नाते/रिश्तेदारों, व्यावसायिक साहूकारों, व्यापारियों और नौकरीपेशा से भी कर्ज लेते हैं। जिसके चलते प्रदेश में 80 से 90 प्रतिशत किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं।

Tuesday, January 11, 2011

कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में भाजपा की सेंध

कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक रहे हैं. अब भाजपा इसमें सेंध लगा रही है और उसे कामयाबी भी मिल रही है. सन् 2002 में हुए गोधरा दंगों के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार 15 नवंबर, 2010 को अहमदाबाद की उस चर्चित मुस्लिम बस्ती जुहापुरा में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में शिरकत करने गए, जिसे स्थानीय लोग 'मिनी पाकिस्तान' कह कर पुकारते हैं. पुरातात्विक महत्व के स्मारकों के संरक्षण के लिए गुजरात सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम के तहत मोदी के निर्देश पर जुहापुरा स्थित मुगलकालीन मकबरे 'सरखेज का रोजा' को खास तौर पर चुना गया था. 15 नवंबर की शाम यहां मुगलकालीन संस्कृति के परिवेश में सूफी संगीत और कव्वाली का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ. 'हिंदू हृदय सम्राट' नरेंद्र मोदी ने न केवल इस कार्यक्रम में शिरकत की, बल्कि स्थानीय मुसलमानों के साथ घंटों बैठ कर सूफी संगीत और कव्वाली का लुत्फ भी उठाया.

• छह दिसंबर का दिन भाजपा के लिए खास महत्व रखता है. विश्व हिंदू परिषद सहित दूसरे हिंदूवादी संगठन इस दिन को शौर्य दिवस के तौर पर मनाते हैं. भाजपा नेता इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. इसी दिन डॉ. अंबेडकर की पुण्यतिथि भी पड़ती है लेकिन इस बार भाजपा नेताओं ने रामलला को भुला कर देशभर में दलितों के मसीहा डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि मनाई, वह भी पूरे जोर-शोर से. राम मंदिर के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकालने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने इस दिन संसद भवन स्थित डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा के सामने नमन किया तो भाजपा के प्रमुख दलित नेता सत्य प्रकाश जटिया ने अंबेडकर की परिनिर्वाण भूमि को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि 'राजघाट' के बराबर दर्जा देने की मांग कर डाली. इस बार भाजपा सांसदों ने प्रधानमंत्री को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए चिट्ठी नहीं लिखी. इसकी बजाए पार्टी के दलित सांसदों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर डॉ. अंबेडकर के जन्मस्थान और महापरिनिर्वाण स्थल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की.

• दिल्ली के रामलीला मैदान में 12 दिसंबर, 2010 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठनों ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर यज्ञ और संतसम्मेलन आयोजित किया. इस कार्यक्रम को सफल बनाने और भीड़ इकठ्ठा करने में दिल्ली प्रदेश के भाजपा नेताओं को लगाया गया. भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए दिल्ली के भाजपा नेताओं की कई बैठकें भी लीं लेकिन इस कार्यक्रम में भाजपा का बड़ा क्या, कोई छोटा नेता भी मंच पर नहीं दिखा. जो एक-दो राष्ट्रीय पदाधिकारी आए भी तो, वे मंच के नीचे ही बैठे. पहले ऐसे कार्यक्रमों मे भाजपा नेताओं की भीड़ लग जाती थी.

ये घटनाएं बता रही हैं कि नितिन गडकरी के नेतृत्व वाली भाजपा बदल रही है. गडकरी को भाजपा अध्यक्ष बने एक साल पूरा हो रहा है और यह बदलाव अब उनकी नीतियों और कार्यक्रमों के जरिए साफ दिखने भी लगे हैं. भविष्य के राजनीतिक नफा-नुकसान को भांप कर भाजपा अपनी कट्टर हिंदूवादी पार्टी की छवि को उदार पार्टी के रूप में ढालने में जुट गई है. गडकरी की रणनीति 2014 तक पार्टी के वोट बैंक में 10 फीसदी इजाफे की है, ताकि अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया जा सके. पार्टी के मुद्दों और नीतियों में बदलाव इसी रणनीति का हिस्सा है. गडकरी की नजर मुसलमानों और दलितों पर है, जो कांग्रेस पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक हैं. इसलिए मंदिर-मसजिद की बजाए पार्टी विकास और सुशासन को चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है. गडकरी ने पार्टी के नए दर्शन को परिभाषित करते हुए दो नए नारे गढ़े हैं. पहला- 'विकास के लिए राजनीति' (पॉलिटिक्स फॉर डेवलपमेंट) और दूसरा- 'अंत्योदय' यानी समाज मेंहाशिए पर खड़े व्यक्ति का विकास. इसके लिए उन्होंने पार्टी में अंत्योदय सेल की अलग से स्थापना की है तो विकास की राजनीति के तहत उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं को अपने-अपने इलाके में विकास कार्यों के लिए सरकारी संस्थाओं के जरिए एक-एक प्रकल्प शुरू करने का निर्देश दिया है.

दरअसल, मंदिर-मस्जिद और अन्य पुराने मुद्दों को छोड़ कर विकास की राजनीति करना भाजपा की मजबूरी भी है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने जिस तरह से देश को तरक्की के रास्ते पर ले जाने के लिए अपनी पार्टी की नीति को विकास केंद्रित बना दिया है, उससे भाजपा को भी अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है. राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुब्रोकमल दत्ता कहते हैं, 'लोकतंत्र में विपक्ष की राजनीति सत्ता पक्ष के एजेंडे से तय होती है. सत्ता पक्ष जब विकास की राजनीति कर रहा है तो विपक्ष के लिए उसी तरह का राजनीतिक विकल्प चुनना ही उचित होता है.' तो क्या भाजपा के मंदिर मुद्दे से किनारा कर लेने से संघ और भाजपा में किसी तरह का मतभेद पैदा हो गया है?

गडकरी के करीबी सूत्रों की मानें तो भाजपा में इस बदलाव को संघ प्रमुख मोहन भागवत का समर्थन हासिल है. वैसे भी संघ की पहल पर भाजपा अध्यक्ष बने गडकरी हर काम में संघ की सलाह जरूर लेते हैं. वे वही काम करते हैं जिस पर उन्हें संघ की हरी झंडी मिलती है.

गडकरी ने अध्यक्ष बनते ही मुसलमानों से संवाद बनाने की कवायद शुरू कर दी थी. भाजपा की मुसलिम विरोधी छवि को बदलने के लिए गडकरी अपने सार्वजनिक भाषणों में भाजपा शासित राज्यों खासकर गुजरात का उदाहरण देते हुए यह बताने से नहीं चूकते कि किस तरह से वहां की सरकार की विकास योजनाओं के जरिए मुसलमानों ने तरक्की की है, कैसे उनकी आय बढ़ी और रोजगार के अवसरों में इजाफा हुआ.

मंदिर मुद्दे को दरकिनार कर और भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों और दलितों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत कर पार्टी खास तौर पर अल्पसंख्यकों को यह संदेश देना चाहती है कि भाजपा अब उनके लिए दुश्मन पार्टी नहीं रही. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के मुस्लिम नेता और भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व जिलाध्यक्ष मो. इदरीश खान इस बात की तस्दीक भी करते हैं. इदरीश कहते हैं, 'वैसे तो अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए कल्याण सिंह से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक कारगर योजनाएं बनाते रहे हैं, लेकिन भाजपा के मंदिर मुद्दे से पीछे हटने से मुसलमानों का झुकाव पार्टी की तरफ बढ़ा है.'

मुसलमानों को लुभानों के लिए मध्य प्रदेश और गुजरात की सरकारें मदरसों के आधुनिकीकरण जैसी कोशिश कर रहीहंै. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस काम के लिए दोनों सरकारों की तारीफ की. भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन कहते हैं, 'मुसलमानों के मन में हमारे प्रति जो गलतफहमियां फैलाई गई थीं, हम अपने काम से उन्हें दूर कर रहे हैं. इसी का नतीजा है कि बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार हमें ज्यादातर मुस्लिम बहुल सीटों पर विजय मिली. इतना ही नहीं, हमें यहां अप्रत्याशित रूप से 21 फीसदी से ज्यादा मुसलमानों ने समर्थन दिया, जबकि गुजरात में हाल ही में हुए पंचायत और पालिका चुनावों में करीब 100 मुस्लिम बहुल सीटों पर हमारे प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की.'

दलितों को पार्टी से जोडऩे के लिए भाजपा ने दलित महापुरुषों की जयंतियों और पुण्यतिथियों को जोर-शोर से मनाने और दलित उत्थान व स्वाभिमान से जुड़े मुद्दों को उठाने का कार्यक्रम तय किया है. इसीलिए भाजपा ने इस साल पहली बार वाल्मीकि जयंती और अंबेडकर की पुण्यतिथि पर देशभर में बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित किए. इसे आगे भी जारी रखने की योजना है. दरअसल भाजपा को समझ में आ गया है कि मौजूदा गठबंधन की राजनीति में 'राम' से ज्यादा 'अंबेडकर' की अहमियत है. यही वजह है कि छह दिसंबर को भाजपा ने रामलला को भुला कर अंबेडकर को याद किया. वैसे तो भाजपा शासित राज्यों में दलितों के लिए खास योजनाएं भी बनाई जा रही हैं, लेकिन ज्यादा जोर उन्हें शिक्षित करने पर है.

भाजपा नेताओं का मानना है कि शिक्षा के प्रसार से दलितों में चेतना आएगी और उन्हें वास्तविकता का पता चल पाएगा. लिहाजा, बसपा जैसे दल उन्हें गुमराह नहीं कर पाएंगे. भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष दुष्यंत कुमार गौतम कहते हैं, 'भाजपा शासित राज्यों में दलितों की शिक्षा के लिए अलग से फंड आवंटित किया जा रहा है. हमारी सरकारें दलित बच्चों को बड़े पैमाने पर छात्रवृत्ति देकर विदेश पढऩे जाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं.'

इसी तरह गडकरी स्वदेशी की पुरानी परिभाषा को भी बदलने में लगे हैं. भाजपा की स्वदेशी, विदेशी के बहिष्कार की नीति पर आधारित है लेकिन गडकरी देश की तरक्की के लिए स्वदेशी और विदेशी तकनीक का बेहतर मेल चाहते हैं. गडकरी अब भाजपा का भविष्य 'रामलला' में नहीं, बल्कि 'अंत्योदय और अंबेडकर' में देख रहे हैं. हालांकि इससे पार्टी का एक धड़ा उनसे नाराज भी है लेकिन गडकरी इसकी परवाह किए बगैर भाजपा के भविष्य की दिशा तय करने में जुटे हैं. भाजपा के लिए यह एक 'टर्निंग प्वाइंट' है.

लैंगिक भेदभाव मिटाने बिटिया क्लब

देश में घटता लिंगानुपात एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रहा है. तमाम कोशिशों के बावजूद देश के कई ऐसे हिस्से हैं, जहां कन्या भ्रूण हत्या बड़े पैमाने पर जारी है. पहले जन्म के बाद कन्या की हत्या की जाती थी, पर सोनोग्राफी आने के बाद भ्रूण का पता लगा कर कन्या भ्रूण की हत्या कर दी जा रही है.

मध्यप्रदेश के मुरैना एवं भिण्ड जिले के लिंगानुपात में बहुत ही ज्यादा अंतर है. कुछ इसी तरह पंजाब, चंडीगढ़ एवं पश्चिमी उत्तरप्रदेश का हाल है. यह सारा खेल पितृसत्तात्मक समाज में सम्मान के नाम पर पर और वंश चलाने के नाम पर किया जा रहा है.

कन्या भ्रूण हत्या, महिला हिंसा एवं लैंगिक भेदभाव को रोकने के सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयासों के बीच एक नए प्रयास के रूप में मध्यप्रदेश में 'बिटिया' नाम से एक समिति का गठन किया गया है. बिटिया क्लब उन लोगों की संस्था हैं, जिन्हें अपनी बेटियों पर गर्व है. वे दूसरे के लिए प्रेरणास्रोत हैं कि बेटी और बेटा में कोई अंतर नहीं है, बेटी भी वंश चला सकती है और बेटी भी मां-बाप को बुढ़ापे में संरक्षण दे सकती हैं. 'बिटिया' क्लब के अध्यक्ष देश के जाने-माने कवि राजेश जोशी हैं, जो साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं.

राजेश जोशी कहते हैं, ''बिटिया क्लब का गठन उस मिथ को तोड़ने का प्रयास है, जिसमें यह माना जाता है कि वंश चलाने के लिए या फिर मुखाग्नि देने के लिए बेटा का होना जरूरी है. नि:संदेह समाज में धारणाएं बदली हैं, पर अभी भी बेटे के मोह में बेटियों की बेदखली की जा रही है.

कन्या भ्रूण हत्या से समाज की संरचना में खतरनाक बदलाव आ गया है, जिसका परिणाम हमें कई सामाजिक विसंगतियों एवं लैंगिक अपराध के रूप में देखने को मिलेगा. इसलिए हमें लैंगिक पूर्वग्रहों से समाज को बाहर लाने के अथक प्रयास करने होंगे और बिटिया क्लब लोगों के लिए मिसाल बनेगा कि बेटी किसी से कम नहीं और उस पर उनके माता-पिता को गर्व है. मेरी बेटी पूर्वा एम टेक के बाद अब आईआईटी, पवई में पढ़ा रही है, जो उदाहरण है कि बेटा ही नहीं, बेटी भी वंश चला सकती है एवं नाम रोशन कर सकती है."


बिटिया क्लब में वे लोगा शामिल हो सकते हैं, जिनकी एक ही संतान हो और वह बालिका हो. यदि पहली संतान बालिका है और बाद में उसकी दूसरी संतान हो जाए, तो वह क्लब से बाहर हो जायेंगे. एक तो जनसंख्या नियंत्रण का विचार इसमें शामिल है और दूसरा अपनी बेटी पर गर्व करने का भाव शामिल है. इसके साथ ही वे लोग जो इस विचार से सहमति रखते हैं, पर किसी न किसी कारण से एक से ज्यादा संतान या फिर बालक के माता-पिता है, वे इस क्लब के दोस्त हो सकते हैं.

बिटिया क्लब की परिकल्पना के पीछे प्रशासनिक अधिकारी डॉ. मनोहर अगनानी की संकल्पना है. उन्होंने बालिकाओं को बचाने एवं लैंगिक समानता के लिए कई प्रयास किए हैं. मुरैना कलेक्टर रहते हुए उन्होंने सोनोग्राफी सेंटर्स पर कार्रवाई भी की थी. उन्होंने बिटिया क्लब के विचार को लैंगिक समानता को लेकर कार्य कर रहे लोगों से साझा किया था और इस अवधारणा को जमीं पर उतारने के लिए एक बैठक की गई थी. उसमें भोपाल के कई बुद्घिजीवी शरीक हुए और बिटिया क्लब का गठन हो गया. बिटिया क्लब में भोपाल कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव, राजेश जोशी, डॉ. मनोहर अगनानी सहित कई व्यवसायी, अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं अन्य वर्ग के लोग शामिल हुए हैं, जिनकी इकलौती संतान बिटिया है.

सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री प्रीति तिवारी कहती हैं, ''यह विचार बहुत ही महत्वपूर्ण है. जब मैंने अपने पति राकेश तिवारी के साथ एक संतान के लिए फैसला लिया था और बेटी के बाद बेटे की चाह नहीं की, तो परिवार एवं रिश्तेदारों ने लगातार दबाव बनाने की कोशिश की कि एक बेटा तो होना चाहिए. पर हमने उनके सामने तर्क दिए और आज अपने फैसले पर कायम हैं. मुरैना एवं भिण्ड में महिलाओं के बीच इस तरह के विचार रखना चुनौतीपूर्ण होता है, पर अब हमारे सामने बेटियों पर गर्व करने वालों का एक नेटवर्क होगा, जो समाज के लिए उदाहरण बनेगा."

सामाजिक कार्यकर्ता शिवनारायण गौर कहते हैं, ''इकलौती बेटी के लिए सरकार को कई योजनाएं निकालनी चाहिए, जिससे कि मां-बाप प्रेरित हो सके और पहली संतान बेटी होने के बावजूद दूसरी की चाह न करें. ग्रामीण परिवेश में हमारे परिवार के बीच अभी भी इस बात का जिक्र किया जाता है कि एक बेटा तो होना ही चाहिए."


बिटिया क्लब मध्यप्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठाने काम करेगा, लैंगिक भेदभाव के खिलाफ सामाजिक चेतना का निर्माण करेगा, बेटियों का एक नेटवर्क तैयार करेगा, उन बेटियों को सहयोग करेगा, जिनके सपने को पूरा करने में सामाजिक एवं आर्थिक अक्षमता बाधा बन रही हो, सफल बेटियों को ब्रांड एंबेसडर के रूप में सामने किया जाएगा और इन सबको साथ लाने के लिए सांस्कृतिक आयोजन किया जाएगा.

नि:संदेह बिटिया क्लब की अवधारणा एवं लक्ष्य एक महत्वपूर्ण एजेंडे को साथ लेकर बढ़ रहा है, पर देखना यह है कि इसका उस समाज पर कितना प्रभाव पड़ता है, जो कन्या भ्रूण हत्या एवं लैंगिक भेदभाव में शामिल है.

कांग्रेस का मुस्लिम नेताओं से किनारा!

मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस एवं भाजपा पारंपरिक रूप से प्रमुख दल हैं. अन्य दलों की स्थिति यहां अभी भी कमजोर है. ऐसे में प्रदेश के मुसलमान कांग्रेस का दामन पकड़कर ही राजनीति करना ज्यादा पसंद करते हैं. तमाम लुभावने नारों एवं विकास की बात करने के बावजूद अभी भी भाजपा से मुसलमानों की दूरी बरकरार है. ऐसे में मध्य प्रदेश में राजनीति करने वाले मुस्लिम समुदाय के नेताओं के लिए कांग्रेस के अलावा कोई मजबूत विकल्प नहीं दिखाई पड़ता, पर पिछले कुछ सालों से प्रदेश कांग्रेस के मुस्लिम समुदाय के कई वरिष्ठ नेता हाशिए पर पड़े हुए हैं. प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी की मार इन पर ही ज्यादा पड़ी है.

अभी हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष असलम शेर खान ने प्रदेश के नेताओं से गुटबाजी से ऊपर उठकर एकजुट होने की अपील की. पर इसके साथ ही उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी एवं संगठन के खिलाफ कटु टिप्पणी भी की. हालांकि ऐसा करना उनके लिए काफी महंगा साबित हुआ और प्रदेश अध्यक्ष ने उनकी अध्यक्षता में गठित प्रदेश कांग्रेस मीडिया समिति ही भंग कर दी और मामले को जांच के लिए प्रदेश अनुशासन समिति के पास भेज दिया गया.

प्रदेश कांग्रेस समिति का मानना है कि असलम शेर खान ने सार्वजनिक रूप से पचौरी की आलोचना और अन्य नेताओं के बारे में तीखी टिप्पणी की थी. इस कार्रवाई पर असलम शेर खान कहते हैं, 'कांग्रेस की निष्क्रियता पर बोलना विरोधपूर्ण काम नहीं है. मैं मानता हूं कि प्रदेश में भाजपा का मुकाबला जमीनी स्तर पर ही किया जा सकता है. इसके लिए भोपाल में एक लाख लोगों को बुलाकर रैली करके शक्ति प्रदर्शन किया जाना चहिए.'

मुस्लिम समुदाय के नेताओं की उपेक्षा पर वह कहते हैं, 'प्रदेश कांग्रेस से मुसलमानों को जोड़े रखने के लिए जरूरी है कि उनके समुदाय से आने वाले नेताओं को तरजीह दिया जाए. वे तभी आएंगे, जब उन्हें लगेगा कि उनके समुदाय के नेताओं को पर्याप्त महत्व मिल रहा है. मुसलमान पारंपरिक रूप से कांग्रेस को वोट देते आए हैं, उनका दूर जाना कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है.' वह बिहार का उदाहरण देते हुए उससे सीख लेने की बात करते हैं.

इस प्रकरण से पूर्व, प्रदेश कांग्रेस के एक और दिग्गज नेता पूर्व शिक्षा मंत्री अजीज कुरैशी ने कांग्रेस के संगठन चुनाव में धांधली का आरोप लगाया था. उन्होंने गांधीवादी तरीके से इसका विरोध करते हुए कहा कि पार्टी में असामाजिक तत्वों को बढ़ावा दिया जा रहा है. यही नहीं, उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि कई कांग्रेसी नेता भाजपा के हाथों बिक चुके हैं. पूर्व सांसद गुफ रान-ए-आजम भी कांग्रेस में हाशिए पर पड़े हुए हैं. हालांकि यह अलग बात है कि भाजपा शासित प्रदेश में वह वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष हैं. मुस्लिम समुदाय के एक और ताकतवर नेता पूर्व मंत्री आरिफ अकील भी दिग्विजय सिंह समर्थक होने के कारण हाशिए पर हैं. वह कई बार संगठन में अपनी उपेक्षा की बात उठा चुके हैं, लेकिन उनकी बात अनसुनी की जाती रही है.

मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष साजिद अली भी हाशिए पर हैं. पिछले दिनों मध्य प्रदेश से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में सदस्यों की नियुक्ति को लेकर भी असंतोष देखने को मिला. इसमें भी महज सात अल्पसंख्यकों को जगह दी गई. इसमें मध्य प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष इब्राहिम कुरैशी तक को जगह नहीं मिल पाई. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल में मुस्लिम समुदाय के नेताओं की स्थिति बेहतर थी. वे कई बेहतर पदों पर पदस्थ थे, लेकिन अब स्थिति पहले जैसी नहीं रही है.

राजनीति का सहारा

खूबसूरत रूसी जासूस एना चैपमैन अब प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन की राजनीतिक पार्टी में शामिल होने जा रही हैं। चैपमैन को पुतिन की पार्टी यूनाइटेड रशिया पॉलिटिकल पार्टी की युवा इकाई का प्रमुख बनाया जा रहा है। इन्हें मास्को में मोलोडाया ग्वार्डिया (युवा रक्षक, जो कि पुतिन की पार्टी का यूथ विंग है) कांग्रेस का प्रमुख बनाया जाएगा। पार्टी से जुड़ कर चैपमैन युवा देशभक्तों और उद्योगपतियों को पार्टी से जोड़ने का काम करेंगी। इससे पहले २८ वर्षीय चैपमैन को इसी साल जून में अमेरिका में जासूसी कांड में पकड़े जाने के बाद वहां से निर्वासित कर दिया गया था। चैपमैन अमेरिका में विदेशी मामलों से जुड़े मुद्दों और खास कर रूसी और अमेरिकी ऐम्बेसी से जुड़े मुद्दों की जासूसी कर रही थी। अमेरिका में पुलिस से बचने के लिए वह न्यूयार्क में रियल एस्टेट का कारोबार करती थी।
अमेरिका से निकाले जाने के बाद चैपमैन अपने नौ साथियों के साथ रूस आ गयीं। रूस के प्रधानमंत्री ने इन नौ जासूसों के समर्थन में कहा था कि उन्हें रूस में महत्वपूर्ण काम दिया जाएगा। इस खूबसूरत जासूस पर ये आरोप लगते आये हैं कि अपनी सुन्दर काया का इस्तेमाल करना इन्हें बखूबी आता है। ये बात सच भी लगती है। रशियन जेम्स बांड के नाम से फेमस एना चैपमैन को पिछले दिनों मैक्जिम पत्रिका के कवर पेज पर हाथ में रिवॉल्वर लेकर लिंगरीज का प्रचार करते देखा गया। ताजा खबरों के अनुसार अमेरिकी हॉट मैगजीन प्लेब्वाय के जनवरी के अंक में चैपमैन की नग्न तस्वीरें प्रदर्शित होंगी।

देवभूमि में देहकांड

अमूमन शांत और साफ सुथरे माहौल के लिए जाने जाने वाले प्रदेश उत्तराखण्ड में पिछले कुछ सालों में जो चीज सबसे तेजी से बढ़ी है, वो है आपराधिक द्घटनाएं। अपराधों की श्रेणी में भी एक नई अपसंस्कृति ने जन्म लिया है। यहां के शहरों में लगातार सामने आ रहे अश्लील एमएमएस कांड और उनके जरिए लड़कियों का शोषण इसी का नतीजा है। इसे यहां की संस्कृति पर एक प्रहार के तौर पर
देखा जा सकता है। कुछ दिनों पहले इस पर की गई पूर्व मुख्य न्यायाधीश के ज़ी ़ बालाकृष्णन की टिप्पणी इस सच को पुख्ता करती है भारत में पॉर्न साइटों को बंद कर देना चाहिए। इन पॉर्न साइटों का दुरुपयोग महिलाओं को ब्लैकमेल करने के लिए हो रहा है। सबसे चिंतनीय यह है कि ऋषि मुनियों की आँारती उत्तराखण्ड में यह तेजी से फैल रहा है। पिछले साल यहां पांच सेक्स क्लिपिंग ऑनलाइन हुइर्ं। कई सारे लोगों को इस आरोप में जेल में डाल दिया गया है। बावजूद इसके यह अपराआँा कम होने की बजाय बढ़ ही रहा है। युवा खासकर छात्रों की इस अपराआँा में संलिप्ता ज्यादा होने से आज की शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गए हैं। जब शिक्षा के मंदिरों में ही अश्लीलता का बोलबाला हो जायेगा तो आने वाली पीढ़ी का चरित्र निर्माण कैसा होगा?'

पिछले वर्ष देहरादून के एक एनजीओ के कार्यक्रम में देवभूमि के बारे में यह चिंता जाहिर की थी देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने। पिछले तीन सालों के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो मल्टीमीडिया के इस खेल ने देवभूमि में एक अपसंस्कृति को जन्म दिया है। आज उत्तराखण्ड का कोई ऐसा शहर नहीं बचा जहां इस अपसंस्कृति ने पैर न पसारे हों और इसकी सबसे ज्यादा शिकार स्कूली छात्राएं हो रही हैं।
इससे अपेक्षाकृत शांत माने जाने वाले उत्तराखण्ड में अपराधों की नई प्रवृत्ति उभर रही है। पिछले वर्ष ऐसे कई मामलों में आश्चर्य जनक ढंग से अध्यापकों तथा समाज के जिम्मेदार नागरिकों के नाम भी सामने आए हैं। इस वजह से पुलिस भी ऐसे मामलों की कार्रवाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेती है। इस तरह के एमएमएस को लोगों ने कमाई का जरिया भी बना लिया है। हाल ही में भीमताल में एक स्कूली छात्रा का एमएमएस ५० रुपये से लेकर १०० रुपये तक में बेचा गया।

देवभूमि में इस अपसंस्कृति का प्रवेश वर्ष २००६ में हुआ। श्रीनगर में गढ़वाल विश्वविद्यालय की एक २२वर्षीय छात्रा का तीन लोगों ने अश्लील एमएमएस बनाया। यह छात्रा एक एसटीडी की दुकान चलाने वाले युवक के बहकावे में आ गई। एक दिन दुकानदार ने लड़की को धोखे से दुकान के पीछे बने कमरे में बुलाया और उसका अश्लील एमएमएस बना डाला। इसकी आड़ में वह वर्षों तक छात्रा का शारीरिक शोषण करता रहा। एक दिन इस दुकानदार ने अपने दो दोस्तों को वह एमएमएस उनके मोबाइलों में ब्लूटूथ के जरिए भेज दिया। इसके बाद वह दोनों भी छात्रा के साथ ब्लैकमेलिंग पर उतर आए। छात्रा ने पुलिस से इसकी शिकायत भी की। लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद इन युवकों ने एमएमएस को शहर के कई लड़कों के मोबाइलों में भेज दिया। तब जाकर उच्चाधिकारियों ने मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल आरोपी युवकों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की बल्कि रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी करने वाले पुलिसकर्मी को निलंबित भी किया।
इसके बाद श्रीनगर के पौड़ी में भी १३ मार्च २००७ को इस तरह का मामला उस समय सुर्खियों में आया जब शहर के लोग इस मुद्दे पर धरना प्रदर्शन कर रहे थे। यह एमएमएस श्रीनगर स्थित एक कॉलेज की एक छात्रा का था। इस मामले में पुलिस ने आरोपी युवक फैजल अलीम लकी को गिरफ्तार किया। उस पर छात्रा के साथ दुर्व्यवहार करने और उसकी एमएमएस क्लिप बनाने का केस दर्ज किया गया। फैजल ने पहले कहा कि लड़की उसकी दोस्त है और ये क्लिप उसकी मर्जी से बनाई गई। उसके बाद उसने कहा कि उसके फोन का मेमोरी कार्ड खो गया था। जिस व्यक्ति को यह मेमोरी कार्ड मिला उसी ने यह क्लिपिंग फैलाई होगी। पीड़ित छात्रा ने कहा कि फैजल ने उसे नशे की दवाई देकर बेहोश किया और उसके बाद एमएमएस बनाया।

धार्मिक नगरी हरिद्वार में वर्ष २००७ में एक एमएमएस में गुरुकुल कन्या महाविद्यालय के अध्यापक को आपत्तिजनक हालत में कॉलेज की कुछ कर्मचारियों के साथ दिखाया गया। बाद में यह मामला न केवल पुलिस की फाइल में दर्ज हुआ बल्कि न्यायालय में भी गया। वर्ष २००८ में देहरादून के एक प्रतिष्ठित कॉलेज की छात्रा का एमएमएस खूब प्रचारित हुआ। इस पर जब बवाल मचा तो पुलिस ने तहकीकात की। लेकिन जब तक छात्र-छात्रा दोनों ही कॉलेज से पढ़ाई पूरी करके जा चुके थे। यह एमएमएस प्रेमनगर कांड के नाम से जाना गया। वर्ष २००८ में हरिद्वार में बीएचईएल के सेक्टर-५ स्थित स्टेडियम के पीछे वन क्षेत्र में एक युवती का एमएमएस बनाया गया। यह मामला मीडिया में आया तो पुलिस सचेत हुई। स्पेशल टॉस्क फोर्स ने पड़ताल की तो वन विभाग के एक अधिकारी और गार्ड की संलिप्ता उजागर हुईं। बाद में इस मामले में दो लोगों परमजीत सिंह और छतर सिंह को जेल भेजा गया।

वर्ष २००९ में कई एमएमएस बहुप्रचारित हुए इनमें चमोली की एक कॉलेज की छात्रा का मामला खूब उछला। चलती कार में ही छात्रा का अश्लील एमएमएस बनाया गया जिसमें चार युवक शामिल थे। बाद में जब यह क्लिप सर्कुलेट हुई तो छात्रा ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। जिसमें दो लोगों को पुलिस ने जेल भेजा। मई २००९ में देहरादून में भी ऐसा ही एक प्रकरण सामने आया जिसमें एक स्कूल की छात्रा का बस कंडक्टर ने एमएमएस बनाया। यह छात्रा रोज उस बस से अपने स्कूल आया-जाया करती थी। छात्रा को बस कंडक्टर ने पहले अपने प्रेम जाल में फंसाया और बाद में उसकी अपने मोबाइल से क्लिपिंग बना डाली। कुछ दिनों बाद जब छात्रा दूसरे स्कूल में चली गई तो कंडक्टर ने छात्रा पर संबंध बनाने का दबाव बनाया। यही नहीं बल्कि उसने उसे एमएमएस प्रचारित करने और इंटरनेट पर डालने की धमकी तक दी। तंग आकर छात्रा ने यह बात अपने परिजनों को बता दी। परिजनों ने पुलिस के समक्ष गुहार लगाई लेकिन कंडक्टर पुलिस के हाथ नहीं लगा। देहरादून में ही दिसंबर २००९ में एमएमएस से परेशान होकर एक महिला ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। महिला ने एक आर्मी अफसर को आरोपी ठहराते हुए कहा कि उसने उसकी अश्लील फिल्म बना ली है और उसे ब्लैकमेल करने लगा है। फिलहाल यह आर्मी अफसर अब जेल की हवा खा रहा है।

देश के विख्यात तकनीकी विश्वविद्यालय आईआईटी रुड़की का नाम भी ११ अगस्त २००९ को एमएमएस कांड में जुड़ गया। यहां के कॉलेज की मैनेजमेंट कमेटी ने खुद इस एमएमएस को देखा। लोगों में जब इसका जबरदस्त विरोध हुआ तो कॉलेज प्रशासन ने एक तीन सदस्यीय जांच टीम का गठन किया। एमएमएस में दिखाया गया व्यक्ति कॉलेज का स्टाफ है और क्लर्क की पोस्ट पर तैनात है। बाद में यह मामला पुलिस के पास भी गया। लेकिन पुलिस ने जांच के नाम पर लीपापोती कर दी। १८ अगस्त २००९ को रुड़की में ही १६ साल की एक छात्रा के साथ ग्यारहवीं के एक छात्र ने पहले बलात्कार किया और उसके बाद उसका एमएमएस बना लिया। यह मामला तब प्रकाश में आया जब छात्र ने यह एमएमएस सर्कुलेट कर दिया। अपनी बदनामी होती देख लड़की ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने इस मामले में शाहनवाज और वसीम नाम के दो युवकों को गिरफ्तार किया। पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने के साथ ही जिस होटल में एमएमएस बना,उसके मालिक के खिलाफ भी कार्रवाई की। बताया जाता है कि होटल मालिक ने कमरा बुक करते समय आरोपी युवकों से कोई पहचान पत्र या डिटेल नहीं ली थी।

मई २०१० में हल्द्वानी की एक हाई प्रोफाइल कॉलगर्ल का अश्लील एमएमएस चर्चा में रहा। चौंकाने वाली बात यह थी कि इस एमएमएस में स्थानीय युवा कांग्रेस के दो नेताओं और एक पुलिसकर्मी की संलिप्ता उजागर हुई थी। 'दि संडे पोस्ट' ने एसओजी और कांग्रेसी नेताओं की इस करतूत को 'क्लिपिंग का कारनामा' नामक समाचार से प्रकाशित किया था। इसके बाद एक पुलिसकर्मी को सस्पेंड करने के आदेश भी हुए। लेकिन न ही इस आदेश का आज तक पालन हुआ है और न एमएमएस में दिखाए गए नेताओं पर कोई कार्रवाई हुई। एसएसपी एमएस बग्याल ने नैनीताल की सीओ अरुणा भारती को इस मामले का जांच अधिकारी नियुक्त किया था। सात माह बाद भी जांच सात कदम आगे नहीं बढ़ी है। पिछले दिनों रामनगर में भी इस प्रकार की एक द्घटना सामने आयी, जहां एक नामी पब्लिक स्कूल से ताल्लुक रखने वाले एक युवक ने अपनी प्रेमिका के साथ अंतरंग क्षणों का वीडियो बना डाला। जब यह क्लिपिंग किसी दूसरे व्यक्ति के हाथ लगी तो उसने एमएमएस के रूप में इसका आदान-प्रदान करना शुरू कर दिया। पर उक्त युवक द्वारा पुलिस के सामने अपना गुनाह कबूलने के बाद भी उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।

२०१० के अंतिम माह दिसंबर में नैनीताल जिले के भीमताल में भी एक स्कूली छात्रा का एमएमएस अचानक सुर्खियां बन गया। एक ३०-३५ साल के युवक ने इसे अंजाम दिया था। बताया जाता है कि भीमताल, भवाली के अलावा हल्द्वानी और नैनीताल में स्कूली छात्रा का यह अश्लील एमएमएस ५० रुपये से लेकर १०० रुपये में बेचा गया। बागेश्वर जिले में राजेन्द्र थापा नाम के अध्यापक ने गुरु-शिष्य की गरिमा को ही तहस-नहस कर डाला। अपने स्कूल में आठवीं की एक छात्रा का अश्लील एमएमएस बना कर वह दो साल तक उसका दैहिक शोषण करता रहा। किसी तरह वह एमएमएस अध्यापक के मोबाइल से किसी दूसरे व्यक्ति और देखते ही देखते पूरे बागेश्वर में फैल गया। पीड़ित छात्रा के बताने पर उसके परिजनों ने आरोपी अध्यापक के खिलाफ थाने में मामला दर्ज कराया। फिलहाल अध्यापक जेल की सलाखों के पीछे है।