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भेड़ाघाट

Saturday, August 20, 2016

धंधेबाजों की 1,41,924 करोड़ की कमाई पर पहरा!

10,021 एनजीओ पर लगा बैन
विनोद उपाध्याय
भोपाल। पिछले 15 सालों में 165 देशों से 141924.53 करोड़ रूपए लेकर मौज करने वाले करीब 33,000 गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) में से केंद्र की मोदी सरकार ने 10,021 एनजीओ पर बैन लगा दिया है। इसमें मप्र के भी 250 एनजीओ हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि इन संगठनों द्वारा विदेशों से मिलने वाली सहायता का दुरूपयोग किया जा रहा है। जहां कुछ एनजीओ सरकारी योजनाओं का विरोध करने तो कुछ देश में धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने के काम कर रहे हैं। बताया जाता है कि खुफिया जांच एजेंसी आईबी ने कई स्तरों और कई कोण से जांच के बाद इन एनजीओ की रिपोर्ट सरकार को दी थी। जिसके आधार पर सरकार ने इन एनजीओ के विदेशी अनुदान लेने पर बैन लगा दिया है यानी उनके फॉरेन कंट्रीब्यूशन रजिस्ट्रेशन एक्ट (एफसीआरए) लाइसेंस को रद्द कर दिया है। ज्ञातव्य है कि इससे पहले 2012 में 4,138, 2013 में 4 और 2014 में 49 एनजीओ पर यूपीए सरकार बैन लगा चुकी है। जबकि भारत में विदेशी धन प्राप्त करने के लिए विदेशी योगदान के(विनियमन)अधिनियम (एफसीआरए) के तहत 33,091 गैर-सरकारी संगठन पंजीकृत हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय गैर सरकारी संगठनों को 165 देशों से अनुदान मिलता है। जिसमें सर्वाधिक सामाजिक क्षेत्र के लिए, उसके बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, रूरल डेवलपमेंट, धार्मिक गतिविधियों, अनुसंधान, महिला उत्थान, बाल कल्याण, रोजगार, पर्यावरण, खेती आदि के लिए मिलता है। आईबी की जांच में यह बात सामने आई है कि बैन किए गए एनजीओ की वार्षिक रिपोर्ट में कई तरह की खामियां पाई गई हैं जो देश हित में नहीं है। गैर सरकारी संगठन के पंजीकरण को रद्द करने के लिए कारणों में-रिटर्न दाखिल नहीं करना, धन का गलत उपयोग, निषिद्ध गतिविधियों के लिए धन स्वीकार करना, कानूनी खर्च के वित्त पोषण, भारतीय गैर सरकारी संगठनों और उनके कार्यकर्ताओं की रिट याचिकाएं और विदेशी कार्यकर्ताओं को विदेशी गैर सरकारी संगठनों द्वारा अज्ञात भुगतान करना शामिल हैं। सरकार का कहना है कि इन एनजीओ ने आयकर रिटर्न दाखिल नहीं किया और साथ ही इन्होंने उन कार्यों के लिए चंदा लिया जिसे करने की मनाही है। इसमें जमानत की फंडिंग से लेकर अदालत में दाखिल की जाने वाली याचिका तक का खर्च शामिल है। आईबी के सूत्रों का कहना है कि अभी हजारों एनजीओ की गतिविधियां संदेह के घेरे में है और उनकी पड़ताल हो रही है। मप्र को 15 सालों में मिले 5,34,57,02,196 अगर मध्य प्रदेश के संदर्भ में बात करें तो यहां के करीब 500 एनजीओ ने पिछले 15 साल में करीब 5,34,57,02,196 रूपए की विदेशी सहायता पाई है। जिनमें आधे से अधिक की कार्य प्रणाली संदेह के घेरे में है। संदेहास्पद एनजीओ की जांच चल रही है। अभी तक आईबी की जांच में जिन एनजीओ की गतिविधियां संदेहास्पद मिली है उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है। वर्ष 2012 में ऐसे ही 92 एनजीओ के फॉरेन कंट्रीब्यूशन रजिस्ट्रेशन एक्ट (एफसीआरए) लाइसेंस को रद्द कर दिया था। वहीं वर्ष 2014 में 1 एनजीओ पर बैन लगा था। जबकि इस बार सरकार ने 250 एनजीओ पर बैन लगाया है। आईबी इन एनजीओ की गतिविधियों को संदिग्ध मानती है। बताया जाता है कि जांच में अगर किसी के खिलाफ गंभीर मामले सामने आए तो उन पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। 26 जुलाई को लोकसभा में सरकार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, 2010-2011 में मप्र के 468 एनजीओ को 1456495900.11 रूपए विदेशी सहायता के रूप में मिली थी। इसी प्रकार वर्ष 2011-2012 में 474 एनजीओ को 1547493703.80 रूपए, वर्ष 2012-2013 में 363 एनजीओ को 1660899947.66, वर्ष 2013-2014 में 54 एनजीओ को 249535061.58 रूपए, वर्ष 2014-2015 में 78 एनजीओ को 4687550425.25 रूपए और इस साल यानी वर्ष 2015-2016 में 21 जुलाई तक 10 एनजीओ को 408416709.26 रूपए मिले हैं। इन रूपयों का कहां और किस उद्देय से खर्च किया गया है उसमें कई विसंगतियां सामने आई हैं। जिससे एनजीओ संदेह के घेरे में हैं। मप्र में इन एनजीओ पर बैन समरीतन सेवा सदन, सहयोगिनी ट्रस्ट, साहस वॉलेंट्री सोसायटी, सागर महिला एवं बाल समिति, साधना विनय मंदिर, रिसोर्सेस डेव्लपमेंट इन्सिट्यूट, रिहैबीलिएशन कम वर्क सेंटर फॉर फिजिकली हैंडिकैप्ड, रिच कम्यूनिटी डेव्लपमेंट प्रोजेक्ट, रामा महिला मंडल, राहोद एजुकेशन सोसायटी, रफी अहमद किदवई एजुकेशन सोसायटी, पुष्पांजलि छात्र समिति, पुष्पा कान्वेंट, एजुकेशन सोसायटी, प्रखर प्रज्ञा शिक्षा प्रसार एवं समाज कल्याण समिति सागर, पिपुल्स फॉर एनिमल, न्यू शिवम व्यावसायिक युवती मंडल, नेशनल लॉ इन्सिट्यूट युनिवर्सिटी, नर-नारायण सेवा आश्रम, एमपी ब्रांच ऑफ नेशनल एसोसिएशन फॉर दा बलाइंड, शोसित सेवा संस्थान, श्रीकृष्ण ग्रामोत्थान समिति, श्रीकांत विकलांग सेवा ट्रस्ट, श्री चित्रगुप्त शिक्षा प्रसार समिति, श्री शिव विद्या पीठ, श्रम निकेतन संस्थान, शिवपुरी जिला सेवा संघ, शिव कल्याण एवं शिक्षा समिति, शिक्षा एवं ग्रामीण विकास केंद्र, शांति महिला ग्रह उद्योग कूप सोसायटी, शांति बाल मंदिर, श्री स्वामी के.विवेकानंद कुस्ता मुक्ता आश्रम, सेठ मन्नुलाल दास ट्रस्ट हॉस्पिटल, सतपुड़ा आदिवासी विकास समिति, सार्वजनिक सेवा समाज, सार्वजनिक परिवार कल्याण एवं सेवा समिति, शंकर,संजीवन आश्रम, संगम नगर शिक्षा समिति, समदर्शी सेवा केंद्र, अंजुमन इस्लामिया, अदिम जाति जाग्रति मंच, आर्दश लोक कल्याण (आलोक) संस्थान, आचार्य विद्यासागर गाऊ संवर्धन केंद्र, अभिव्यक्ति, असरारिया अल्पसं यक एजुकेशन चिकित्सा एवं वेलफेयर सोसायटी, आरोही-डेव्लपमेंट एवं रिसर्च सेंटर, अर्ध आदिवासी विकास संघ, मिशन हॉस्पिटल, मिशन हायर सेकण्ड्री स्कूल, मिशन हायर सेकण्ड्री स्कूल, मिशन गल्र्स प्राइमरी स्कूल, मिशन फॉर वेलफेयर एवं ट्रिबल चाइल्ड एंड वुमन, मेथोडिस्ट वुमन वर्क , मेथोडिस्ट वुमन प्रोजेक्ट, मिनू क्रिश्चन एजुकेशन सोसायटी, मेडीकेयर एंड रिसर्च फाउण्डेशन, मसीही प्राथमिक विद्यालय, मसीही माध्यमिक विद्यालय, मसीही कन्या विद्यालय हॉस्टल, मसीही हायर सेकण्ड्री स्कूल, मसीही हायर सेकण्ड्री स्कूल, मंजू महिला समिति, मंदसौर जिला समग्र सेवा संघ, मालवांचल विकास परिषद, मैत्री एजुकेशनल एंड कल्चरल एसोसिएशन, महिला परिषद, महिला एजुकेशन सोसायटी, महिला अध्ययन केंद्र, मध्यप्रदेश ग्रामीण विकास मंडल, मध्यप्रदेश हैरीटेज डेव्लपमेंट ट्रस्ट, माधवी महिला कल्याण समिति, मातृ सेवा संघ, लुथेरन मिशन हॉस्टल, लॉयन चैरीटेबल ट्रस्ट, कोठारी एजुकेशनल फाउण्डेशन, किसान खादी ग्रामद्योग संस्थान, खंडवा डिस्ट्रिक्ट वुमन वर्क, कर्मपा मल्टीपरपस कूप सोसायटी, कानपुर मिशन प्राइमरी स्कूल, कला जाग्रति परिवार, जोहरी क्रिएशन स्टूडेंट हॉस्टल, जन-कल्याण आश्रम समिति, जाग्रति सेवा संस्था, जगत गुरू राम भद्रचर्या विकलांग सेवा संघ, जबलपुर मिशन हॉस्पिटल प्रोजेक्ट-1641, जे.डी. सोशल डेव्लपमेंट आर्गनाइजेशन, इंदौर स्कूल ऑफ सोशल वर्क, इंदिरा गांधी एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, इंडिया चर्च काउंसिल डिसीप्स ऑफ क्रिस्ट, हेवेंली पाइंट ऑफ एजुकेशन सोसायटी, हरित, एच.सी. मिशन हायर सेकण्ड्री स्कूल, ग्वालियर फॉरेस्टर सोसायटी, गुरू तेज बहादुर चैरीटेबल हॉस्पिटल ट्रस्ट, गुरू राजेंद्र सूरी चिकित्सालय एंड नेत्र अनुसंधान केंद्र, गायत्री शक्ति शिक्षा कल्याण समिति, ग्रासिम जन कल्याण ट्रस्ट, ग्रामोदय चेतना मंडल, गर्वमेंट पॉलिटेक्निक, गौवंश रक्षा समिति (अक्षय पशु-पक्षी सेवा सदन), गोंडवाना फाउण्डेशन, गरीबनवाज फाउण्डेशन फॉर एजुकेशन, जी.सी. मनोनित मिशन, गैस पीडि़त राहत समिति, गंगापुर युवा क्लब, गगन बाल मंदिर, फ्रेंड्स रूरल सेंटर, इकोनॉमी लाइफ कमेटी, ई.बी.ए. मिशन को-एजुकेशनल स्कूल, ईएलसी वेलफेयर एसोसिएशन, डॉ. पाठक चाईल्ड एंड मदर वेलफेयर सोसायटी,डिस्ट्रीक्ट वुमन वर्क, दिशा सामाजिक एंड विकास युवा मंडल, ड्यिोसेस ऑफ जबलपुर, धनवंतरी शिक्षा समिति, धनंतरी क्रिश्चन हॉस्पिटल, डेवलपमेंट फंड बोर्ड ऑफ सेकण्ड्री एजुकेशन, दारूल अलूम, कार्पोरेशन बास्केटबॉल ट्रस्ट, कनज्यूमर एंड राईट एसोसिएशन, काफ्रेंस ऑफ एसएस पीटर एंड पॉल (सोसायटी ऑफ सेंट. विनसेट डी पॉल), कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर, क्रिश्चया बंधूरकूलम फैमली हेल्पर प्रोजेक्ट, क्रिश्चन हॉस्पिटल वेस्ट निमार, क्रिश्चन हॉस्पिटल दमोह, क्रिश्चन हॉस्पिटल, क्रिश्चन हिंदी मिडिल स्कूल, क्रिश्चन बॉयज एंड गल्र्स हॉस्टल, क्रिश्चन एसोसिएशन फॉर रेडिया एंड विजिवल सर्विस, क्रिश्चन एसोसिएशन फॉर रेडियो एंड ऑडियो विजिवल, चिनमय सेवा ट्रस्ट, चिल्ड्रन होम, छत्तीसगढ़ विकास परिषद, चांदबाद विद्या भारती समिति, चंबल बाल एवं महिला कल्याण समिति, सेंट्रल एमप्लाई स्पोंसर्स रिलीफ ट्रस्ट, सीएएसए पतपरा मंडला डेवलपमेंट प्रोजेक्ट, बरगेस इंग्लिश हायर सेकेण्ड्री स्कूल, बुंदेलखंड क्रिश्चन सोशल सर्विस, ब्रिलियंट स्टार एजुकेशन सोसायटी, ब्राइट स्टार सोशल सोसायटी, भोपाल टेक्निकल एंड ट्रेनिंग सेंटर, भोपाल स्कूल ऑफ साईंस, भोपाल सेल्सस सोसायटी, बाल प्रगति एवं महिला शिक्षा संस्थान, अविनाश, ऑडियो विजिवल प्रोजेक्ट, सचिदानंद हॉस्पिटल, आसरा सामाजिक कल्याण समिति, एरिया एजुकेशन कमेटी, अद्र्ध आदिवासी विकास संघ, नागरथ चेरिटेबल पुष्पकुंज हॉस्पिटल, पार्टीसिपेट्री रिसर्च एंड इन्वेंसन इन, संवाद, सदर मिशन प्राइमरी स्कूल, साइकोन शिक्षा एंव ग्रामीण विकास समिति, भोपाल एसडीए इंग्लिश स्कूल, श्री अरबिंदो एंड मदर वनिता एमपॉवरमेंट ट्र्स्ट, चेतना मंडल, सोशल इकोनोमिक विलेजर्स एडवांसमेंट, तुलसी मानव कल्याण सेवा संस्थान, क्रिश्चन एनडेवर हॉस्टल, लोक कल्याण समिति, बीसीएम इंटरनेशनल, शांतिपुर लेप्रोसी हॉस्पिटल, सानिध्य, पी. नाथूराम चौबे महिला समिति, आधार सेवा केंद्र, दा गोस्पल सेंट्रल चर्च, राजीव गांधी प्राथमिक शिक्षा मिशन, खरूना चिल्ड्रन हॉस्टल, डब्ल्यूएमई ऑफ डग्लस मेमोरियल चिल्ड्रन होम, मासी उच्चतर विद्यालय, चंबल पर्यावरण सोसायटी, अमरजेंसी रिलीफ कमेटी, भारत सेवक समाज, क्रिश्चन बॉयज हॉस्टल, नव सर्वोदय विकास समिति, खुरई टेक्निकल एजुकेशन सोसायटी, केंसर केयर ट्रस्ट एंड रिसर्च फाउण्डेशन, तोलाबी चैरीटेबल ट्रस्ट, महर्षि महेश योगी वेदिक विश्व विद्यालय, वॉकेशनल ट्रेनिंग इंसिट्यूट स्कूल, सदाशिव शांति शिक्षा समिति, अनुसूचित जाति/ जनजाति कल्याण संघ, मोमिन वेलफेयर एजुकेशन सोसायटी, जनसेवा शिक्षा समिति, शिव शिक्षा समिति चुरहट, मध्यप्रदेश आदिवासी बाल महिला कल्याण समिति, खादी ग्रामोद्योग सेवा आश्रम, हेल्थ एजुकेशन एंड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट, महिला जागरण समिति, सतपुड़ा इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, नव क्रांति शिक्षा समिति, मसीही माध्यमिक विद्यालय, कृषक महिला समाज पानधुक्रा, एसोशिएशन फार कंप्रेसिंव रूरल असिसटेंस, कैथोलिक संस्थान जसपुर अग्रिकोण परीक्षेत्र, लुथरन होस्टल, आदिवास विकास एवं प्रशिक्षण संस्थान,सरस्वती महिला कल्याण, कांग्रेगेशन ऑफ सिस्टर ऑफ द एडोरेशन ऑफ द ब्लेस्ड सिस्टर्स, गजेंद्र शिक्षा प्रसार समिति, सैन्ट जॉर्ज कांवेंट इंग्लिस स्कूल, महाकोशल महिला शिक्षा समिति, महिला कौशल शिक्षा समिति, जयशक्ति ट्रस्ट सागर, किशन सेवा समिति, संजय बाल सेवा, उद्योग मंडल गोहारा, आश्रय सर्विस फार रूरल पूर, द नागपुर, लतहारन मिशन ऑफ सोल्यूशन, शर सयैद एजूकेशनल एण्ड शोसल वेलफेयर सोसायटी, योगा रिसर्च इंन्सट्यूट, नेशनल भोपाल डास्टर रिलाफ आर्गनाइजेशनशन, सृजन वेलफेयर सोसायटी, पर्यावरण सुधार समिति, सेंटर फॉर एंटरप्रीनरशिप डवलपमेंट एम. पी. झरनेश्वर महिला विकास एण्ड शिक्षण समिति, ग्रामीण विकास परिषद, फेडरेशन ऑफ एम.पी. वूमेन एण्ड चाइल्ड वेलफेयर एजेंसीज, महारनी लक्ष्मी बाई भोपाल जन कल्याण समिति, मीडिया सेंटर इंटर नेशनल हाउस, नव आदर्श शिक्षा एण्ड ग्रामीण विकास समिति, एम.पी. सिस्टर सोसायटी, संदेश मिशन हॉस्पिटिल,बंजा बामिया डबलपमेंट प्रोजेक्ट, जनहित सेवा केंद्र, कस्तूरबा वनवासी कन्या आश्रम, एम.पी. पस्तोरस कॉर्नफ्रेंस, श्री शांति शिशु मंदिर समिति, स्कॉट मेमोरियल वूमेन होस्टल, सरस्वती सेंट्रल अकादमी एजूकेशनल सोसायटी, वोल्यूनटरी एण्ड डवलपमेंट सोसायटी, भोपाल डॉयोसेेस भ्लेज डवलपमेंट प्रोग्राम, केनेडियन प्रेसवाइटेरियन, मिशनरी कमेटी, मानव विकास विज्ञान केंद्र, हॉयर एजूकेशन लायब्रेरी प्रोजेक्ट, विश्वास कल्याण समिति, आदर्श शिशु बिहार, प्यारे लाल गुपता समिति ल्यूपिन मानव कल्याण एवं शोध संस्थान, नई किरन महिला परिषद आदि। विदेशी योगदान के आंकड़ों पर गौर करें तो ताजा आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2013-14 की तुलना में वर्ष 2014-15 में भारतीय गैर सरकारी संगठनों के लिए विदेशी धन दोगुनी हुई है, लेकिन 10,000 एनजीओ पंजीकरण के रद्द होने के साथ ही विदेशी योगदान में गिरावट होने की संभावना है। 26 जुलाई, 2016 को लोकसभा में पेश हुए आंकड़ों से पता चलता है कि, भारत को मिलने वाली विदेशी अनुदान में से 65 फीसदी हिस्सेदारी सामुहिक रुप से दिल्ली, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश (एकीकृत), कर्नाटक और केरल की है। विश्लेषण से पता चलता है कि चार वर्षों के दौरान यानी वर्ष 2011-12 से 2014-15 के बीच भारतीय गैर सरकारी संगठनों को विदेशी अनुदान के रूप में मिली 45,300 करोड़ रुपए में से 29,000 करोड़ रुपए राष्ट्रीय राजधानी और इन चार राज्यों (तेलंगना के बाद पांच) को प्राप्त हुआ है। पिछले चार वर्षों के दौरान, दिल्ली में संगठनों को 10,500 करोड़ रुपए मिले हैं जबकि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र को 5,000 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। विकास में रोड़े बने एनजीओ आईबी की रिपोर्ट के अनुसार विदेशों से करोड़ों रुपए का फंड लेकर कुछ एनजीओ भारत की खराब तस्वीर विदेशों में प्रस्तुत कर रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई आईबी रिपोर्ट में विदेशी अनुदान प्राप्त करने वाले स्वयंसेवी संगठनों को देश की आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरनाक करार देते हुए यहां तक कहा गया है कि जीडीपी में दो से तीन फीसदी की कमी के लिए यह एनजीओ जिम्मेदार हैं। केंद्र में मोदी सरकार का गठन होने के बाद से ही जिस तरह यह रिपोर्ट सामने आई उससे यह स्पष्ट है कि उसे पहले ही तैयार कर लिया गया होगा। आश्चर्य नहीं कि उसे जानबूझ कर दबाए रखा गया हो। एनजीओ को विदेशी सहायता लेने के लिए विदेशी सहायता नियामक कानून (एफसीआरए) के तहत गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी होती है। इसके लिए एनजीओ को बताना पड़ता है कि विदेशी मदद का उपयोग सामाजिक कार्यों के लिए किया जाएगा। आईबी की रिपोर्ट से साफ है कि कुछ एनजीओ विदेशी सहायता का उपयोग सामाजिक कामों के लिए न कर देश आईबी की रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को तीन जून 2014 को सौंपी गई। हकीकत यह है कि अपने देश में गैर-सरकारी संगठन बनाना एक कारोबार बन गया है। अधिकांश संगठन ऐसे हैं जो बनाए किसी और काम के लिए जाते हैं लेकिन वह करते कु छ और हैं। शायद उनकी ऐसी ही गतिविधियों को देखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कुछ समय पहले यह कहा था कि 90 फीसदी एनजीओ फर्जी हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना है। खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट एक और गंभीर बात कह रही है। उसके मुताबिक कई गैर-सरकारी संगठन विदेश से पैसा लेकर विकास से जुड़ी परियोजनाओं का विरोध करते हैं। ग्रीन पीस इंटरनेशनल की भारतीय शाखा ग्रीन पीस इंडिया को कोयला और परमाणु ऊर्जा आधारित परियोजनाओं के विरोध के लिए ही जाना जाता है। इसी तरह कुछ और गैर-सरकारी संगठन ऐसे हैं जो हर बड़ी परियोजना का विरोध करते हैं। इन संगठनों की मानें तो न तो बड़े बांध और बिजली घर बनाने की जरूरत है और न ही अन्य बड़ी परियोजनाओं पर काम करने की। पर्यावरण की रक्षा की आड़ में गैर-सरकारी संगठन जिस तरह हर बड़ी परियोजना के विरोध में खड़े हो जाते हैं वह कोई शुभ संकेत नहीं है। यह सही है कि पर्यावरण की रक्षा जरूरी है लेकिन उसके नाम पर औद्योगिकीकरण को ठप कर देने का भी कोई मतलब नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सात ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें लक्षित कर यह एनजीओ आर्थिक विकास दर को नकारात्मक दिशा में ले जाएंगे। करीब 24 पेज की इस रिपोर्ट के मुताबिक जातिगत भेदभाव, मानवाधिकार उल्लंघन और बड़े बांधों के खिलाफ लामबंध यह एनजीओ सारा जोर विकास दर धीमी करने में लगे हैं। इनमें खनन उद्योग, जीन आधारित फसलों, खाद्य, जलवायु परिवर्तन और नाभिकीय मुद्दों को हथियार बनाया गया है। राष्ट्रहित से जुड़ी परियोजनाओं का विरोध करने वाले इन एनजीओ को अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, नीदरलैंड के अलावा नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड और डेनमार्प जैसे देशों या उससे जुड़ी संस्थाओं से अनुदान मिलता है। भारत की कोयला खदानों और पावर प्रोजेक्ट का लगातार विरोध कर रही ग्रीनपीस को पिछले सात वर्षों में 45 करोड़ रुपए का फंड मिला है। इस संस्था का काम अब भारत में कोयले के खिलाफ माहौल खड़ा करना रह गया है। ग्रीन पीस ने एक प्राइवेट रिसर्च इंस्टीट्यूट को पैसा दिया कि वह मध्यप्रदेश के महान को लेकर स्वास्थ्य, प्रदूषण और दूसरे मुद्दों पर ऐसी रिपोर्ट दे, जिससे वहां की कोयला खदानों पर प्रतिबंध लगवाया जा सके। कई एनजीओ को ये धन भारत में न्यूक्लियर पावर प्लांट्स, यूरेनियम खदानों, ताप-विद्युत घरों, जीएम टेक्नोलॉजी, मेगा इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट (पॉस्को और वेदांता), हाइडेल प्रोजेक्ट (नर्मदा सागर, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश के प्रोजेक्ट) के विरोध के लिए दिया गया है। यह भी खुलासा हुआ है कि विदेशी दानदाताओं ने जानबूझकर एनजीओ के जरिए मानवाधिकार, विस्थापित लोगों के लिए सौदेबाजी कराई और लोगों के धार्मिक अधिकारों के नाम पर बवाल खड़े कराए। विदेशी दानदाताओं ने षड्यंत्रपूर्वक इन एनजीओ के जरिए भारत सरकार की नीतियों के खिलाफ फील्ड रिपोर्ट तैयार करवाईं, ताकि पश्चिमी देशों की विदेश नीतियां भारत विरोधी बनाने के लिए जमीन तैयार हो सके। आतंक और नक्सलवाद का बढ़ावा रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि माओवादियों से भी गठजोड़ है कुछ एनजीओ का। ये नियमानुसार जर्मनी, फ्रांस, हॉलैंड, तुर्की और इटली से फंड मंगाते हैं और उसे यहां पर आतंक फैलाने वाले माओवादियों को मुहैया करा देते हैं। कुछ माओवादी संगठन फिलिपींस और इंडोनेशिया से भी जुड़े हैं, जहां न सिर्फ उनकी ट्रेनिंग होती है, बल्कि फंड भी दिया जाता है। ये संगठन फिर अपने इलाके में पडऩे वाली कोयला खदानों और वहां के पावर स्टेशनों पर हमले करवाते हैं या फिर कामकाज प्रभावित करते हैं। एनजीओ के फ्रॉड और गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के 24 केस सीबीआई को और दस केस राज्यों की पुलिस को सौंपे गए हैं। हालांकि, इन सब तमाम बातों के उलट ग्रीनपीस और उस जैसे एनजीओ के अपने तर्क और आरोप हैं। वे इस रिपोर्ट को सिरे से नकारते हुए कह रहे हैं कि ऐसा राजनेताओं और बिजनेसमैन के गठजोड़ के कारण हो रहा है। स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) पर आई खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट के बाद विदेशी फंड पर चलने वाली एनजीओ ने लॉबिंग शुरू कर दी है। उनकी तरफ से एक सुर में कहा जाने लगा है कि मोदी सरकार का मकसद एनजीओ पर लगाम लगाना है। इसके लिए गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए 9 सितंबर 2006 में एनजीओ को लेकर दिए गए नरेंद्र मोदी के भाषणों का उल्लेख किया जा रहा है, जिसमें उन्होंने एनजीओ संचालकों को नोबल पिपुल और फाइव स्टार एक्टिविस्ट कहा था और यह भी जोड़ा था कि देश में आज एक एनजीओ इंडस्ट्री खड़ी हो गई है, जिनकी इमेज बिल्डिंग के लिए बड़ी-बड़ी पीआर एजेंसियों की सहायता ली जा रही है। यूपीए शासन काल में शुरू हुई थी जांच विदेशी पैसे पर चलने वाली एनजीओ इंडस्ट्रीज भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर हो, लेकिन एक दूसरा सच यह भी है कि आईबी ने इनकी जांच पूर्व सत्ताधारी यूपीए सरकार के कहने पर की थी, जो खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् बनाकर देश की सारी योजनाओं को एनजीओ के हवाले करने में शामिल रही हैं। आईबी की रिपोर्ट को छोड़ भी दें तो हम पाते हैं कि पिछले 10 सालों में विदेशी पैसे पर चलने वाली एनजीओ की पूरी कार्यप्रणाली देश की विकास परियोजनाओं में रोड़ा अटकाने वाली रही है। इनकी पूरी गतिविधियों को तथ्यात्मक दृष्टिकोण से देखने पर प्रमाणित हो जाता है कि कुछ बड़े एनजीओ समाज सेवा में कम, विदेशी एजेंट की भूमिका में ज्यादा सक्रिय हैं। विदेशी एजेंट होने का आलम यह रहा कि विदेशी सहायता नियमन कानून (एफसीआरए) का उल्लंघन कर बिना पंजीकरण वाली कबीर एनजीओ को अमरीका की फोर्ड फाउडेशन कंपनी ने लाखों डॉलर का चंदा दे दिया। बाद में इसी कबीर के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने पहली एनजीओ कार्यकर्ताओं वाली सरकार देश की राजधानी दिल्ली में बनाकर यह दर्शा दिया कि अमरीका व यूरोप न केवल देश की विकास परियोजनाओं को रोकने में सफल हो रहे हैं, बल्कि इन एनजीओ इंडस्ट्रीज के बल पर भारत के अंदर सरकार निर्माण तक की क्षमता हासिल कर चुके हैं। आईबी ने ग्रीनपीस की ही तरह ही कई और एनजीओ को देश के विकास का अवरोधक बताया है। उनमें से एक हैं मेधा पाटकर। वल्र्ड बैंक से फंडिंग और सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना कर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरदार सरोवर परियोजना को बाधित किया। जिसकी वजह से यह परियोजना छ: साल तक लटकी रही। 1988 में योजना आयोग ने सरदार सरोवर परियोजना का बजट 6406.04 करोड़ रुपए निर्धारित किया था, लेकिन मेधा पाटकर के विरोध के कारण इस परियोजना की लागत बढते-बढ़ते वर्ष 2008 तक 39,240.45 करोड़ रुपए हो गई। मेधा पाटकर ने इस परियोजना को वनवासियों के लिए नुकसानदायक बताया था, लेकिन आज इस परियोजना के कारण ही दाहोद जिले में नर्मदा नदी से वनवासी फल व सब्जियों की खेती कर रहे हैं। तमिलनाडु के तिरुनेवेली जिले में स्थित कुुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र रूस के सहयोग से लगना है। आर्थिक संकट में फंसा अमरीका इस संयंत्र का ठेका चाहता था, लेकिन बाजी रूस के हाथ लग गई। जिसके बाद अमरीकी चंदे से कुुछ एनजीओ व बुद्घिजीवियों को इसके विरोध में खड़ा किया गया, जिसमें सबसे बड़ा नाम पी़. उदयकुमार का है। पी. उदयकुमार देश के एनजीओ के सबसे बड़े ब्रांड बने अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी से कन्याकुमारी से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। पी. उदयकुमार ने विदेशी सहयोग से सड़क से लेकर अदालत तक इस परियोजना को रोकने की जबरदस्त कोशिश की, लेकिन आखिर में 6 मई 2013 को देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायालय ने इन अमरीकी एजेंटों को निराश कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कुुडनकुलम परमाणु प्लांट को यह कहते हुए मंजूरी दे दी कि प्लांट लोगों के कल्याण और विकास के लिए है। इस परियोजना को रोकने में अमरीकी दिलचस्पी का खुलासा खुद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था। पूर्व प्रधानमंत्री ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि, परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम इन एनजीओ के चलते समस्या में पड़ गया है। इन एनजीओ में से अधिकांश अमरीका के हैं। वे बिजली आपूर्ति बढ़ाने की हमारे देश की जरूरत को नहीं समझते। धर्मांतरण के नाम पर काला धंधा भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है लेकिन इस समय देश की इस निरपेक्षता पर सवाल खड़े होते नजर आ रहे हैं। हाल ही में एक आरटीआई के जरिए ये बात सामने आई थी कि कर्नाटक में धर्मांतरण के लिए ईसाई मिशनरीज सरकार से पैसे दिए जा रहे हैं। इस मामले पर कांग्रेस राज्य सरकार पर भी सवाल उठे हैं। वहीं, अब ये बात सामने आई है कि देश में धर्म परिवर्तन में कई एनजीओ शामिल है। ऐसे भी एनजीओ के बारे में जानकारी मिली है, जो हर छोटी मोटी घटना को सांप्रदायिक रंग देने की साजिश रचते हैं। आईबी की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। वहीं, 18 विदेशी डोनर्स की पहचान हुई है जो धर्मपरिवर्तन के नाम पर एनजीओ को मदद कर रहे हैं। पुलिसकर्मियों से अधिक एनजीओ ! एनजीओ का धंधा कितना चोखा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जाता सकता है कि देश मेें पुलिसकर्मियों की संख्या से अधिक तो एनजीओ हैं। केंद्र सरकार की ऐसे स्वयं सेवी संगठनों यानि एनजीओ पर तीखी नजर है, जो कागजों पर जन सेवा करके सरकारी कोष का दुरुपयोग करती आ रही है। हालांकि सरकार समय-समय पर ऐसी संस्थाओं को जांच के बाद काली सूची में डालने की सतत कार्यवाही करती आर रही है। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए एनजीओ का सहारा भी लिया जाता है। जो अवैध कमाई का जरिया-सा बन गया है। दिलचस्प पहलू यह भी है कि कैग भी एनजीओ के पंजीकरण पर अपनी रिपोर्ट में सवाल खड़ा कर चुकी है। वहीं केंद्रीय जांच एजेंसी ने हाल ही में देश के भीतर एनजीओ की भारी संख्या को लेकर सवाल सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी है। सीबीआई की इस रिपोर्ट में 20 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों का ब्योरा जुटाने की बात कही गई है, जहां 22 लाख 45 हजार 655 एनजीओ काम कर रहे हैं। यह भी संभावना जताई गई है कि एनजीओ की वास्तविक संख्या इससे भी काफी अधिक हो सकती है, क्योंकि इस रिपोर्ट में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों के एनजीओ शामिल नहीं हैं। रिपोर्ट में शािमल एनजीओ में से 2 लाख 23 हजार 478 ने सोसायटी रजिस्ट्रार के पास अपना रिटर्न दाखिल किया है, जो करीब दस प्रतिशत आंका जा सकता है। यानि ऐसी संस्थाएं 10 प्रतिशत से भी कम अनुदान और खर्चे को लेकर बैलेंस शीट का ब्योरा जमा करवाते हैं। एक अनुमान के अनुसार 1.25 अरब की आबादी वाले भारत में औसतन 535 लोगों पर एक एनजीओ है, जबकि गृह मंत्रालय के आंकड़ों की माने तो देशभर में एक पुलिसकर्मी के हिस्से में 940 लोग आ रहे हैं। संसद के पिछले सत्र के दौरान एनजीओ को लेकर उठे सवालों में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थांवर चंद गहलोत ने भी स्वीकार किया था एनजीओ सरकारी फंड में हेरफेर कर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने की गतिविधियों में लिप्त हैं जिन पर नकेल कसने के लिए सरकार ने कवायद शुरू कर दी है। उनके अनुसार सरकारी धन का दुरुपयोग करने वाली एनजीओ के 26 मामले सामने आए थे, जिनमें से जांच के बाद चार एनजीओ को काली सूची मेें डाल दिये गए हैं और सरकार ऐसे एनजीओ को दंडित करने की तैयारी भी कर रही है। किस प्रदेश में कितने एनजीओ पर बैन आंध्र प्रदेश- 1404 अरुणाचल प्रदेश- 68 असम- 132 बिहार- 659 छत्तीसगढ़- 41 गोवा- 55 गुजरात- 515 हरियाणा- 97 हिमाचल प्रदेश- 68 ज मू और कश्मीर- 40 झारखण्ड- 123 कर्णाटक- 1070 केरल- 964 मध्य प्रदेश- 250 महाराष्ट्र- 1292 मणिपुर- 414 मेघालय- 42 मिजोरम- 17 नागालैण्ड- 89 ओडि़शा- 786 पंजाब- 75 राजस्थान- 251 सिक्किम- 10 तमिलनाडु- 1822 तेलंगाना- 664 त्रिपुरा- 14 उत्तर प्रदेश- 1212 उत्तराखण्ड- 50 पश्चिम बंगाल- 1106 अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह- 8 चण्डीगढ़- 41 दादरा और नगर हवेली- 1 दमन और दीव-1 दिल्ली- 666 पुदुच्चेरी- 20 9999999999999

अब मेरे पैरों के निशां कैसे हैं!

इस बार गर्मियों में मैं जब अपने गांव (मझरिया, जिला बक्सर, बिहार)गया था तो गंगा मईया की टूटती सांसे, काई के अंदर से रिसता पानी, मुर्दों को नोचते कुत्ते और इन सब के बीच नाले से भी गंदे पानी में लोटे से नहाकर गंगा स्नान की पुण्यता पाने का उपक्रम करते लोगों को देखकर मन रो उठा। फिर सवाल उठा क्या यही वह गंगा मईया हैं, ढाई दशक पहले जिनकी निर्मल जल राशि में पांव डालने से पहले हम आचमन किया करते थे? जी, बिलकुल नहीं। आज गंगा दुनिया के दस सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल है। आज देश की पतित पावन इस मां स्वरूपा इस नदी की मलिनता देख देवता भी स्वर्ग में आंहे भर रहे होंगे। शायद गंगा मईया की भी यही स्थिति होगी और उनके मन में भी सवाल उठ रहा होगा कि.. ऐ सबा तू तो उधर से गुजरती होगी तू ही बता अब मेरे पैरों के निशां कैसे हैं लेकिन देर से ही सही अब गंगा मईया के सपूतों को उनकी यह दुर्दशा असहनीय हो गई है और उन्हें फिर से पावन करने का अभियान शुरू हो गया है। इसी कड़ी में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए आईआईटी कानपुर ने गंगा नदी के किनारे बसे शहर के पांच गांवों को गोद लिया है। यही नहीं आईआईटी कानपुर ने गंगा नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाए जाने के लिए गंगोत्री से गंगासागर तक बसे शहरों के सभी 13 शिक्षण संस्थानों को पांच पांच गांव गोद लेने की बात कही है। कानपुर के जिन पांच गांवों को आईआईटी ने गोद लिया है उनमें रमेल नगर, ख्योरा कटरी, प्रतापपुर, हरी हिंदपुर और कटरी लोधवा खेड़ा गांव शामिल है। यह सभी गांव कानपुर में गंगा नदी के किनारे बसे है। इन गांवों को आदर्श गांव बनाए जाने की योजना है। इसके तहत इन गांवों के पानी की जांच की जाएगी और वहां लोगों को साफ पानी पीने के लिए मिले इसके लिए प्रयास किए जाएंगे। यहां की नालियों में गंदगी युक्त पानी नहीं बहेगा बल्कि बारिश का पानी बहेगा। ऐसे शौचालय बनाए जाएंगे जिससे गंदगी बाहर न निकले। गांव का गंदा पानी गंगा नदी में न जायें इसके लिए प्रयास किए जाएंगे। निश्चित रूप से आईआईटी कानपुर का यह कदम अन्य संस्थानों, संगठनों और लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा। गंगा सिर्फ एक नदी का नाम ही नहीं, बल्कि यह जीवनदायिनी है। गंगा की लहरों ने न जाने कितनी सभ्यताओं व संस्कृतियों को बनते-बिगड़ते देखा। वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक के उत्थान-पतन की गवाह है गंगा। राजनीति, अर्थनीति, सामाजिक व्यवस्था से लेकर धर्म, आध्यात्म, पर्यटन, पर्यावरण तक सब इससे प्रभावित होते रहे हैं। एक ही गंगा के न जाने कितने रूप हैं। हर कोई उसे अपने-अपने नजरिए से विश्लेषित करता है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। अगर इन सबकी बात न भी करें तो गंगा हर भारतीय के रग-रग में रची-बसी है। इसलिए गंगा के अस्तित्व को बचाने के लिए केवल सरकार, कुछ संस्थानों या संगठनों को ही नहीं अपितु पूरे देश को सार्थक कदम उठाना पड़ेगा। क्योंकि गंगा नदी का न सिर्फ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है बल्कि देश की 40 फीसदी आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। 2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अत: गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है। दरअसल, विकास की अंध दौड़ में गंगा ही नहीं अन्य नदियां भी प्रदूषण की चपेट में हैं। इससे इनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। हरिद्वार से गंगा सागर तक की कहानी गंगा नदी में औद्योगिकी कचरे से जुड़ी है। गंगा नदी में 144 बड़े नाले गिरते हैं और पांच से 10 हजार छोटे नालों से गंदगी नदी में आती है। इसके साथ ही 1600 ग्राम पंचायत और 6000 गांव से निकलने वाली गंदगी भी स्थिति को गंभीर बनाते हैं। हालांकि केंद्र सरकार नेे गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए 'नमामि गंगेÓ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन शुरू कर रखा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए पर 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करनेकी प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दे दी और इसे 100 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना का रूप दिया। लेकिन उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी तक 2,071 किमी लंबी यात्रा करते हुए सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करने वाली गंगा नदी को बचाए रखने के लिए सामुहिक प्रयास की जरूरत है। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियां तो पाई ही जाती हैं मीठे पानी वाले दुर्लभ डालफिन भी पाए जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएं भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित जरूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है। क्योंकि हमने कभी गंगा के दूषित होते रूप को गंभीरता से नहीं लिया। जबकि हमारे जीवन में गंगा का क्या महत्व है हम भलीभांति जानते हैं। फारसी भाषा में कहे गए इस शेर में भारत के लिए गंगा के महत्व को रेखांकित किया गया है... ऐ आबे-रूदे-गंगा तू आबरू-ए-हिंद अस्त। तू जिन्दगी-ए-मास्त तू रूहे-मुल्के हिंद अस्त।। यानी ऐ गंगा का पानी! तू हिन्दुस्तान की इज्जत है। तू हमारी जिन्दगी तो है ही, भारत की आत्मा भी है। लोगों को मोक्ष दिलाने वाली गंगा का पानी प्रदूषण के कारण काला पड़ रहा है। गंगा में प्रदूषण का एक प्रमुख कारण इसके तट पर निवास करने वाले लोगों द्वारा नहाने, कपड़े धोने, सार्वजनिक शौच की तरह उपयोग करने की वजह है। अनगिनत टैनरीज, रसायन संयंत्र, कपड़ा मिलों, डिस्टिलरी, बूचडख़ानों और अस्पतालों का अपशिष्ट गंगा के प्रदूषण के स्तर को और बढ़ा रहा है। औद्योगिक अपशिष्टों का गंगा के प्रदूषण में बढ़ता योगदान प्रमुख चिन्ता का कारण है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगाजल को बेहद प्रदूषित किया है। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा का जल है। यह घोर चिन्तनीय है कि गंगाजल न पीने के योग्य रहा, न स्नान के योग्य और न ही सिंचाई के योग्य रहा है। गंगा की पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गंगा के जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी मात्रा में मिलने लगे हैं। गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने कई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं के तहत करोड़ों रुपए प्रदान किए गए हैं। लेकिन इतने खर्चे के बावजूद भी गंगा के पानी में प्रदूषण की मात्रा कम नहीं हुई। पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार जब तक गंदे नालों का पानी, औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक कचरा, सीवेज, घरेलू कूड़ा-करकट आदि गंगा में गिरते रहेंगे तब तक गंगा का साफ रहना मुश्किल है। ऐसे में आईआईटी कानपुर ने गंगा किनारे के गांवों को गोद लेकर इस नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने की योजना में जो कदम बढ़ाया है वह आगे मील का पत्थर साबित होगा। पतित पाविनी गंगा नदी के अस्तित्व को बचाने एवं प्रदूषण को समाप्त करने हेतु आम आदमी की जागरुकता एवं प्रयास अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। सरकार चाहे जो योजना बना ले जब तक आम जन-मानस की सहभागिता नहीं होगी तब तक इन योजनाओं की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहेगा। इसलिए हम सभी को गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान में सहभागी बनना पड़ेगा। क्योंकि शायर नजीर बनारसी साहब अपने एक शेर में कहते हंै... सोएंगेे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भर के, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू कर करके।