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भेड़ाघाट

Wednesday, April 20, 2011

प्रज्ञा और जोशी को हैवान बनाया असीमानंद ने

धर्म हो या फिर आध्यात्मिकता या फिर राष्ट्रीयता अगर इनको अतिवाद के साए में पोषित किया जाए तो वह खतरनाक हो सकता है और इसका सबसे ताजा और बड़ा प्रमाण हैं साध्वी प्रज्ञा चंद्रपाल सिंह ठाकुर और सुनिल जोशी। एक अध्यात्म तो दूसरा राष्ट्रीयता के सहारे अपने पथ पर गतिमान थे कि इनके बीच आ गए अतिवादी असीमानंद। फिर क्या था धर्म और अध्यात्म की चितेरी साध्वी प्रज्ञा और राष्ट्रीयता के ओज से भरे सुनील जोशी अपना पथ भटक गए। साध्वी प्रज्ञा देखते ही देखते एक दिन देश की कुख्यात आतंकवादी मान ली जाएंगी ऐसा कभी स्वयं उन्होंने भी नहीं सोचा होगा और बेचारे जोशी तो अब रहे नहीं।
हिन्दुत्व पर आतंकवाद का धब्बा लगाने वाले प्रज्ञा और सुनील जोशी मध्य प्रदेश के निवासी थे। वर्ष 2003 में इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम में दोनों की मुलाकात हुई। अपनी आकर्षक छवि के कारण प्रज्ञा उसी दिन से सुनील जोशी के मन मंदिर में बस गई। मूलत: मध्य प्रदेश की निवासिनी 40 वर्षीय प्रज्ञा के अभिभावक कुछ साल पहले गुजरात के सूरत में जाकर बस गए थे इस लिए इनकी मुलाकात कम ही हो पाती थी। जहां एक तरफ जोशी प्रज्ञा से शादी करने का ख्वाब संजोए हुए था वहीं प्रज्ञा को जानने वाले बताते हैं कि उसे बचपन से ही जगत की भौतिकता से एलर्जी सी हो गई थी। हालांकि साध्वी ने वर्ष 2003 में ही साध्वी का चोला धारण करना शुरू कर दिया था लेकिन उन्होंने कोर्ट में प्रस्तुत अपने हलफनामें में कहा है कि वे 30 जनवरी 2007 को संन्यासिन बनी। बताते है कि प्रज्ञा चंद्रपाल सिंह ठाकुर संन्यासिन तो बन गई लेकिन उनमें आध्यात्मिकता का गुण नहीं समा सका। बात-बात में आक्रोशित होना उनके ठाकुरपन को दर्शाता था। उन्हें यह बात अच्छी तरह मालुम थी कि अध्यात्म का सबसे बडा और महत्वपूर्ण सूत्र है संयम। अध्यात्म का मार्ग बहुत लम्बा और साधना का मार्ग है, किन्तु संयम का पालन कर अध्यात्म की साधना व्यवहार के धरातल पर भी की जा सकती है। बस सीमाकरण कर दो। हिंसा को कम करने का, कलह और संघर्ष को मिटाने का एक महत्वपूर्ण सूत्र है संयम,जिसकी कमी साध्वी होने के बाद भी उनमें नजर आती थी।
सुनील जोशी मध्यप्रदेश के देवास में एक बेहद गरीब परिवार से जन्मा था लेकिन उसकी महत्वकांक्षाएं बड़ी थी। 1999 में वह महू जिले में संघ का जिला प्रचारक बन गया, जहां कुछ ही समय में वह कट्टर हिंदुत्ववादी के रूप में पहचाना जाने लगा। संघ में उसे गुरूजी के नाम से जाना जाता था। सुनील बचपन से ही अति उत्साही प्रवृति का था जो जवानी में और भी परवान चढ़ी। उसकी इसी रॉबिनहुड वाली छवि की साध्वी भी कायल थी। प्रज्ञा जबसे सन्यासिन बनी उनका अधिकत्तर समय जबलपुर के आश्रम में बीतता था। इस दौरान सुनील जोशी भी उनके संपर्क में रहता था। मेल- मुलाकातों का सिलसिला ऐसा चला कि सुनील जोशी के एक तरफा प्यार का अहसास साध्वी को भी होने लगा और वह भी उसे प्यार करने लगी।
दोनों का प्यार कुछ इस कदर परवान चढ़ा की प्रज्ञा धर्म और अध्यात्म को तो जोशी हिन्दुत्ववादी राष्ट्रीयता को भूल गया। जोशी एक पल के लिए भी प्रज्ञा से अलग नहीं होना चाहता था लेकिन अध्यात्मिकता का चोला ओढ़े प्रज्ञा के लिए यह संभव नहीं था।
इसी दौरान 2003 में ही प्रज्ञा सिंह ने सुनील जोशी का संपर्क असीमानंद से कराया। पहली मुलाकात में ही जोशी अपनी हिन्दुत्ववादी आक्रामक छवि के कारण असीमानंद की पसंद बन गया। असीमानंद 2002 में हिन्दू मंदिरों पर हुए धमाकों से वे बहुत विचलित थे और प्रज्ञा सिंह और सुनील जोशी के अंदर अपने जैसी सोच देखकर उन्होंने उनके सामने अपनी मंशा जाहिर कर दी।
स्वामी असीमानंद मूलत: पश्चिमी बंगाल के हुगली के हैं। ऊंची तालीम हासिल असीमानंद कभी नब कुमार थे, फिर उन्हें पुरुलिया में काम करते देखा गया। स्वामी वर्ष 1995 में गुजरात के आहवा में अवतरित हुए और हिंदू संगठनों के साथ हिंदू धर्म जागरण और शुद्धिकरण का काम शुरू किया। मगर वो कम से कम दो दशक से मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र्र जैसे राज्यों में ही सक्रिय रहे। स्वामी असीमानंद ने मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कोई 12 जि़लों में अपने हंदू प्रभाव का तानाबाना बुन रखा था। वे अपना कामकाज दक्षिण गुजरात के पांच जि़लों- डांग और खेड़ा, उत्तरी महाराष्ट्र्र के नंदनवार और पश्चिमी मध्य प्रदेश के झाबुआ में फैला रखा था, मगर उनका केंद्र गुजरात के डांग जि़ले में आहवा था। यहीं उन्होंने शबरी माता का मंदिर बनाया और शबरी धाम स्थापित किया।
हिन्दू धार्मिक स्थलों पर हुए धमाकों का बदला लेने के लिए असीमानंद काफी उतावले थे। अपनी इस रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने के लिए असीमानंद को वर्ष 2004 में उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ में मौका मिल गया। वहां एक बैठक हुई जिसमे प्रज्ञा सिंह, सुनील जोशी, रामजी कलसंगरा, देवेन्द्र गुप्ता और अन्य अनेक लोग मौजूद थे। इस बैठक में हिंदू धर्मस्थलों पर मुस्लिम चरमपंथियों के हमलों पर गुस्सा जाहिर किया गया और कहा सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे है, लिहाजा खुद के दम पर कुछ किया जाए। यहीं वह बैठक थी जहां पर सुनील जोशी हिन्दुत्ववादी राष्ट्रीयता के भ्रामक छलावे में आ गया और उसकी आदते बिगडऩे लगी।
सूत्र बताते हैं कि इस बैठक में असीमानंद ने जोशी का इस तरह माईंड वाश किया कि वह अपराध की डगर पर चल पड़ा। देवास के कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से उसकी नजदीकी बढ़ी। वह लोगों को डरा-धमका कर पैसा उगाहने लगा। जोशी की पैसा कमाने की ललक ने प्रज्ञा बहुत आहत थी। उसने इसके लिए कई बार जोशी को रोकने की कोशिश की लेकिन वह माना नहीं। बताते हैं कि वह पैसा कमाने के पीछे इस कदर पागल हो गया था कि वह प्रज्ञा को भी प्रताडि़त करने से नहीं चुकता था।
उधर असीमानंद बराबर इनके संपर्क में रहते थे। धीरे-धीरे मुलाकातों का जब दौर बढ़ा तो देश भर में बम धमाकों की साजिश रची गई। हैदराबाद, अजमेर, मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में बम रखने का फैसला इन्हीं मुलाकातों के दौर में किया गया। असीमानंद के अनुसार जोशी 2006 के मालेगांव बम धमाके की साजिश में भी शामिल था और हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजेमर और समझौता एक्सप्रेस में हुए ब्लॉस्ट में भी उसका पर्दे के पीछे बड़ा रोल था।
बताते हैं कि मालेगांव ब्लास्ट के बाद से जोशी और आक्रामक हो गया था। निनामा हत्याकांड के बाद से ही फरार चल रहे सुनील जोशी उर्फ गुरुजी ने इस अवधि में लगभग 1 करोड़ से अधिक की संपत्ति इक_ा कर ली थी। शराब व्यवसाय, सोना-चाँदी के अलावा वायदा सौदे में भी गुरुजी ने लाखों रुपए निवेश किए थे। निनामा हत्याकांड के बाद से फरार हुए जोशी ने 4 वर्ष में 1 करोड़ से अधिक की संपत्ति बना ली थी। देवास की चूना खदान क्षेत्र में रहने के दौरान जोशी ने विभिन्न स्रोतों से धन एकत्रित करना शुरू कर दिया था। रामचरण खाती के साथ मिलकर उसने ग्राम पालनगर में खली-बीज का व्यवसाय शुरू किया था। वासुदेव परमार के साथ मिलकर उसने परमार के फोटो स्टूडियो के पास एक दुकान भी खरीद ली थी। जितेंद्र निवासी डकाच्या और शिवम धाकड़ के साथ मिलकर जोशी ने शराब के दो ठेके भी ले लिए थे। इतना ही नहीं, उसने आनंदराज कटारिया के साथ मिलकर वायदा सौदों और सोने-चाँदी के व्यवसाय में लाखों रुपए निवेश कर दिए थे।
नवंबर-दिसंबर 2007 में हत्या के कुछ समय पहले ही उसने आनंदराज और वासुदेव के साथ मिलकर फर्स्ट फ्लाइट कोरियर सर्विसेज की फ्रेंचाइजी ले ली थी। जोशी के भतीजे अश्विन और मेहुल उर्फ घनश्याम को गीता भवन क्षेत्र स्थित फर्स्ट फ्लाइट कोरियर पर प्रशिक्षण के लिए भेजा था। इंदौर में भी परफेक्ट कोरियर एजेंसी संचालन के लिए आनंदराज कटारिया की दुकान का इस्तेमाल किया था। दुकान के बदलाव सहित फर्नीचर आदि पर भी जोशी ने ही भारी धनराशि खर्च की थी। 2007 में इसका उद्घाटन भी जोशी और उसके साथियों ने किया था। इसके अलावा आनंदराज के साथ ही जोशी ने व्यावसायिक गतिविधियों के लिए बोलेरो गाड़ी भी खरीद ली थी। जोशी की जिंदगी में अभी तक सब कुछ ठीक था कि 29 दिसंबर 2007 को देवास के चूना खदान क्षेत्र में उनकी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जोशी की हत्या से पहले पुलिस उसे सिर्फ निनामा हत्याकाण्ड का आरोपी मानती रही, लेकिन अब तीन साल बाद जोशी की हत्या हिन्दुस्तान की तमाम जांच एजेंसियों के लिए रहस्य है।
सूत्र बताते हैं कि आरएसएस प्रचारक सुनील जोशी की हत्या की वजह एक महिला बनी थी। उस महिला से संबंधों को लेकर जोशी और उनके साथियों के मध्य मतभेद थे। इधर जोशी और प्रज्ञा में आपसी मतभेद भी हो गए थे, जो पैसों को लेकर और बढ़ गए थे। जोशी के होते हुये प्रज्ञा सिंह अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर पा रही थी लिहाजा प्रज्ञा सिंह ने सुनील जोशी की हत्या की साजि़श रच डाली। पुलिस की चार्जशीट में बताया गया कि जोशी ने साध्वी के साथ व्यक्तिगत तौर पर बुरा बर्ताव किया था, इसलिए भी साध्वी उससे नाराज थी। साथ ही जोशी पार्टी और दूसरे स्रोतों से मिले पैसे का भी दुरुपयोग करता था। चार्जशीट के मुताबिक, जोशी हर्षद मेहुल, राकेश और उस्ताद के साथ भी बुरा बर्ताव करता था। ये लोग बेस्ट बेकरी केस में फरार थे। 1 मार्च 2002 को इस मामले में 14 लोग जिंदा जल गए थे। ये चारों जोशी के साथ देवास में छिपे थे। ये कुछ कारण थे जिसके कारण 2006 में जोशी और साध्वी के बीच विवाद हो गया।
जोशी की भतीजी चंचल के अनुसार महीनों तक साध्वी प्रज्ञा और सुनील जोशी में बातचीत नहीं हुई। प्रज्ञा दीदी का घर आना भी कम हो गया था चंचल ने कहा कि उसके चाचा अश्लील हरकत नहीं कर सकते क्योंकि वे दोनों अच्छे फ्रन्ड थे लव कपल थे। सुनील जोशी की भतीजी चंचल जोशी ने पुलिस की चार्जशीट पर टिप्पणी करते हुए किया है। चंचल के अनुसार सुनील की मां दोनो की शादी करना चाहती थी। साध्वी प्रज्ञा और सुनील जोशी दोनों की शादी के लिए दादी की इच्छा थी लेकिन सुनील चाचा का मन नहीं था सुनीता के अनुसार उनके संबंध बायफ्रेन्ड गर्लफ्रेन्ड की तरह थे चंचल के परिवार में सुनील जोशी की मां को यह शक था कि प्रज्ञा ने ही उसे मारा होगा वे गुस्से में कहती रहती थी कि प्रज्ञा आज कल आती नहीं है चाचू थे तब आती थी। चंचल ने बताया कि सुनील चाचा की मौत से पहले दोनों के बीच किसी पर्सनपल मेटर को लेकर लड़ाई हो गयी थी।
देवास पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश चार्जशीट के मुताबिक सालभर पहले तक जोशी की करीबी रही प्रज्ञा उसकी अमर्यादित हरकतों से नाराज हो हिमालय आश्रम चली गई थी, लेकिन जोशी की मौत के बिना उसके दिल को सुकून नहीं था। इसलिए अगस्त 2007 में वह दिल्ली लौट गई और सुनील जोशी की हत्या की प्लानिंग शुरू कर दी।
प्लान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिल्ली में वह आनंदराज कटारिया से मिली। यहीं पर उसने कटारिया के समक्ष जोशी को रास्ते से हटाने का इरादा जाहिर किया। अक्टूबर 2007 से वह अपने प्लान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इंदौर आ गई। यहां वह किराए के फ्लैट में रहने लगी। इस दौरान वह जोशी के रिश्तों व उसकी गतिविधियों पर नजर रखती रही। फिर उसने जोशी के करीबी रहे मेहुल उर्फ घनश्याम से संपर्क किया। मेहुल का विश्वास जीतकर उसने जोशी के साथ रहने वाले राज उर्फ हर्षद सोलंकी व मोहन उर्फ रमेश को भी जोशी की हत्या का साझेदार बनाया। 14 दिसंबर को इंदौर में प्रज्ञा के फ्लैट में एक गुप्त बैठक हुई। इस बैठक में वासुदेव परमार,आनंदराज कटारिया,मेहुल उर्फ घनश्याम,राज उर्फ हर्षद सोलंकी भी शामिल हुए। उसी दिन जोशी की मौत का प्लान बनाया गया जिसके बाद कटारिया, मेहुल, राज और वासुदेव परमार को काम बांटे गये। 29 दिसंबर 2007 को कत्ल का दिन भी आ गया। साध्वी के पास था मोबाइल नंबर 9425056114। इस फोन नंबर पर आनंदराज सुबह से ही लगातार प्रज्ञा सिंह से दिशा निर्देश लेता रहा। आनंद राज ने 4 बार प्रज्ञा सिंह को योजना के अंजाम देने की खबर दी।
इस मामले में चंचल ने कहा कि चाचा की मौत के बाद पूरा परिवार बिखर गया। दादी चाचा (सुनील) की मौत का सदमा नहीं बर्दाश्त कर सकी और उनकी मौत हो गई। उसने आगे कहा कि जब तक इस बात का खुलासा नहीं हुआ था कि चाचा की हत्या में संघ के लोगों का हाथ है, तब तक वे उनके यहां आया जाया करते थे, लेकिन जब से यह बात सामने आई है, उनका आना-जाना बन्द हो गया। इस बार 29 दिसम्बर को तो कोई तस्वीर पर हार तक चढ़ाने नहीं आया। चंचल ने कहा कि उसे यह जानकर दुख हुआ है कि उसके चाचा की हत्या उन लोगों ने की है, जो उनके साथ दिन रात रहते थे। अब उसे आरएसएस से नफरत है। चंचल ने कहा कि जिस रात चाचा की हत्या हुई, उस रात वे घर से चावल खाकर गए थे। वे मोटर साइकिल से बाहर निकले थे, मगर थोडी देर बाद वापस आ गये, क्योंकि गाड़ी पंचर हो गई थी। उसी वक्त उनके मोबाइल पर एक फोन आया तो उन्होंने जवाब दिया कि वे आ रहे हैं, मगर उसके बाद उनकी लाश आई।
चंचल ने कहा कि जिस दिन चाचा की हत्या हुई, उस दिन घर पर संघ का एक व्यक्ति रुका था। उसने कहा कि चाचा की हत्या के बाद प्रज्ञा दीदी घर आई थी। उस वक्त घर पर वह और उसकी छोटी बहन ही थी। चंचल ने कहा कि चाचा की मौत के बाद पूरा परिवार बिखर गया। दादी चाचा (सुनील) की मौत का सदमा नहीं बर्दाश्त कर सकी और उनकी मौत हो गई। चंचल ने कहा कि जिस रात चाचा की हत्या हुई, उस रात वे घर से चावल खाकर गए थे। वे मोटर साइकिल से बाहर निकले थे, मगर थोडी देर बाद वापस आ गये, क्योंकि गाड़ी पंचर हो गई थी। उसी वक्त उनके मोबाइल पर एक फोन आया तो उन्होंने जवाब दिया कि वे आ रहे हैं, मगर उसके बाद उनकी लाश आई। चंचल ने कहा कि जिस दिन चाचा की हत्या हुई, उस दिन घर पर संघ का एक व्यक्ति रुका था। उसने कहा कि चाचा की हत्या के बाद प्रज्ञा दीदी घर आई थी।
सुनील जोशी की भतीजी चंचल जोशी कहना है कि साध्वी प्रज्ञासिंह मास्टर माइंड हो सकती है ? क्योंकि वह हत्या वाली रात उनके घर आई थी और परिजनों को बिना कुछ बताये वो अटैची लेकर भी गयी थी चंचल का यह भी आरोप है कि मेहूल और राज को भगाने में भी उनका हाथ हो सकता है? अब पुुलिस ने जोशी हत्याकांड में न्यायालय में आरोप-पत्र दाखिल कर दिया है। पुलिस ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर, वासुदेव परमार, आनंदराज कटारिया, राज उर्फ हर्षद सोलंकी पर जोशी हत्या का षड्यंत्र रचने और हत्या करने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही रामचरण पटेल पर साक्ष्य नष्ट करने का आरोप लगाया गया है। पुलिस ने प्रज्ञा सिंह सहित पाँचों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया जबकि मोहन उर्फ मेहुल उर्फ घनश्याम घटना के बाद से ही फरार है।
चार्जशीट में यह भी दावा किया गया है कि जोशी के मर्डर के दिन प्रज्ञा इंदौर में ही थी। उसके मोबाइल के कॉल डिटेल बताते हैं कि वह इन आरोपियों से लगातार संपर्क बनाए हुए थी। पुलिस का कहना है कि जोशी को हर्षद सोलंकी ने दूसरों की मौजूदगी में एक वीरान ईंट भ_े पर गोली मारी थी। इसके बाद सभी लोग आनंद राज द्वारा मुहैया कराई गाड़ी में बैठकर चले गए।
देवास पुलिस ने आरएसएस कार्यकर्ता सुनील जोशी की हत्या के मामले में हाल ही में चार्जशीट फाइल की है, जिसमें साध्वी प्रज्ञा सिंह की साथी रही नीरा नरवर का भी पूरा बयान शामिल है। नरवर काफी समय साध्वी के साथ रहीं और उन्होंने विस्तार से पुलिस को जानकारी दी हैं। साध्वी की करीबी रहीं नरवर ने 29 दिसंबर 2007 को हुई सुनील जोशी की हत्या के बारे में कहा कि साध्वी उन्हें उस दिन अपने साथ देवास ले गईं। उन्होंने कहा कि यह वे दावे से नहीं कह सकतीं कि साध्वी हत्या में शामिल थीं या नहीं, लेकिन वे काफी परेशान थीं। वे लगातार किसी व्यक्ति से पूछ रहीं थीं कुछ मिला क्या। नरवर के अनुसार वे दोनों उसी रात को इंदौर लौट आए। साध्वी सुबह करीब 4 बजे कुछ देर के लिए किसी से मिलने बाहर गईं। उन्होंने राज मेहुल और मोहन के सिम कार्ड लेने के प्रयास भी किए। ये तीनों जोशी हत्याकांड में आरोपी हैं।
समझौता ब्लास्ट, अजमेर ब्लास्ट और नांदेड़ ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा का शामिल होना और स्वामी असीमानंद के खुलासे के बाद बड़ी जांच एजेंसियों का ध्यान अब इस एंगल पर है कि कैसे वे सभी लोग जो साध्वी प्रज्ञा, असीमानंद, कर्नल पुरोहित और सुनील जोशी से जुड़े थे, या तो उनका कत्ल हो गया या वे गायब हो गए। जांच से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि उच्चस्तर पर सारा ध्यान अब इस बिंदू पर केंद्रित है कि साध्वी प्रज्ञा के लिए खतरनाक साबित होने वाला हर संभावित व्यक्ति, कैसे, कब और क्यों गायब हो गया। एजेंसियां यह जांच कर रही है कि सोलंकी द्वारा मामूली बात पर जोशी की हत्या करना, कलोदा की लाश मिलना, गवाह पवार का गायब होना, रामजी कलसांगरा, संदीप डांगे और मनीष कालानी की गुमशुदगी की कड़ी कहीं आपस में जुड़ी हुई तो नहीं है। बताया जा रहा है कि रामजी के बाद संदीप डांगे अहम नाम के रूप में सामने आया है, जो घटनाएं हुर्इं उनमें रामजी के बाद डांगे को ही ज्यादा जानकारी थी।
मालेगांव-अजमेर ब्लास्ट के सूत्रधार और आरएसएस के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी मर्डर केस की फिर से जांच के सवाल पर राज्य सरकार का फिलहाल मूड आफ है। दरअसल नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी (एनआईए) अब इस मामले क ी जहां अपने स्तर पर जांच करना चाहती है वहीं राज्य सरकार इसके लिए राजी नहीं है। डीजीपी एसके राउत दो टूक कहते हैं,जांच पूरी हो चुकी है और चालान कोर्ट में है। ऐसे में फिर से जांच का औचित्य नहीं है। सूत्रों के मुताबिक इसके विपरीत जोशी मर्डर केस पर एनआईए को अभी भी एक बड़ी मिस्ट्री दिखती है। रहस्य आखिर क्या है?
जानकारों के अनुसार वैसे भी ऐसे किसी मामले में एनआईए एक्ट के तहत केंद्र को राज्य से अनुमति लेकर जांच नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी को सौंपने की जरूरत नहीं होती है तब केंद्र के इशारे पर एनआईए प्रदेश सरकार से जांच सुपुर्द करने का स्वांग क्यो रच रही है? गौरतलब है, केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम पहले ही जोशी मर्डर केस की जांच नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी से कराने का एलान कर चुके हैं।
केंद्र को अगर जोशी मर्डर केस में मिस्ट्री दिखती है तो इसमें अनुचित कुछ भी नहीं है। इस मामले में एनआईए से जुडेÞ सूत्रों के इस दावे में दम है कि संघ के पूर्व प्रचारक सुनील जोशी का नाम अजमेर और हैदराबाद ही नहीं समझौता बम धमाकों से भी जुड़ा था। लेकिन तीनों ब्लास्ट की जांच कभी भी एक साथ एक ही एजेंसी ने नहीं की है।

दागी-दागी भाई-भाई

जुगलबंदी वाले होंगे सत्ता से बाहर

एक तो करौला ऊपर से नीम चढ़ा वाली कहावत इन दिनों मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के मंत्रियों पर खरी उतर रही है। यानी पहले से ही विवादित (करैलानुमा) कुछ मंत्रियों को ऐसे अफसरों (नीमनुमा )का साथ मिल गया है जिससे सरकार की छवि दागदार हो रही है। इससे भाजपा में शुद्धिकरण के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं। ऐसा भी नहीं की इसकी भनक सरकार और संगठन को नहीं है। अपने कदावर मंत्रियों की करतूते जानने के बाद भी सरकार मजबूर है लेकिन संगठन ने शुद्धिकरण के लिए किसी भी हद तक जाने का मन बना लिया है।
सत्ता पाते ही राम को धोखा देने वाले भाजपाईयों की लूटखसोट को लेकर अब पार्टी के सत्ता वाले प्रदेशों में चल रहे गफलत को लेकर पार्टी हाईकमान न केवल चिंतित है बल्कि कड़ाई बरतने का संकेत दिया है। बताया जाता है कि मध्यप्रदेश में इन दिनों मंत्रियों कि करतूतों को लेकर उच्च स्तर पर जबरदस्त बवाल मचा है। ्रसूत्र बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा, संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नई तिकड़ी इस मामले में परफार्मेंस और पार्टी के प्रति निष्ठा को आधार बनाकर बड़े निर्णय ले सकती है। भारत-श्रीलंका के बीच हुए क्रिकेट विश्व कप फाइनल के दौरान तीनों नेताओं की एक साथ उपस्थिति से अटकलों का बाजार गर्म है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल कर या उनके विभाग बदल कर इन विवादित मंत्रियों को सबक सिखाया जा सकता है ताकि मंत्रियों और अधिकारियों की जुगलबंदी से निजात मिल सके। सत्ता और संगठन की बक्र दृष्टि जिन मंत्रियों पर पडऩे की संभावना व्यक्त की जा रही है उनमें रामकृष्ण कुसमरिया, राजेंद्र शुक्ला, रंजना बघेल,जगदीश देवड़ा,पारस जैन और करण सिंह वर्मा का नाम शामिल है।
शिवराज सिंह चौहान सरकार पर मंत्रियों के विभाग और की निजी स्थापना में पदस्थ अधिकारी भारी पड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि उनकी कैबिनेट के तीन सहयोगियों के विशेष सहायकों के खिलाफ लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू जांच कर रहा है। इस स्वीकारोक्ति के बाद भी ये अधिकारी मंत्रियों के खासमखास बने हुए हैं। सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और स्वच्छता की वकालत के बीच मंत्रियों के निज सचिव, निज सहायक और विशेष सहायक जब-तब भ्रष्टाचार और अनियमितता को लेकर सुर्खियां बटोरते रहे हैं। इस मामले में दो मंत्रियों के विशेष सहायकों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुद पहल कर हटवाना भी पड़ा था। भाजपा संगठन की नजर भी इस मामले में कुछ विशेष सहायकों पर टेढ़ी थी, लेकिन अभी भी तीन मंत्रियों के विशेष सहायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ गंभीर मामलों में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज है।
प्रदेश में दूसरी बार भाजपा की सरकार बनने के बाद मंत्रियों के निजी स्टाफ में पदस्थ होने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बारे में संगठन ने गाइडलाइन जारी की थी। पचमढ़ी में हुए मंत्रियों के चिंतन शिविर में मंत्री स्टाफ को प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया गया था, लेकिन उस पर अमल नहीं हो सका। अपने पीए की कारगुजारियों के कारण जो मंत्री सरकार के लिए संकट खड़ा कर रहे हैं उनमें रामकृष्ण कुसमरिया, राजेंद्र शुक्ला, जगदीश देवड़ा, रंजना बघेल के काम-काज की भी संगठन अपने स्तर पर जांच करा चुका है और इन मंत्रियों को सफाई देने के लिए प्रदेश अध्यक्ष के दरबार में जाना पड़ा। विवादित बयानों और अक्षम कार्यशैली के चलते कृषि मंत्री कुसमरिया पहले से ही किसान संघ के सीधे निशाने पर हैं।

विवादित जोडिय़ां———-
रामकृष्ण कुसमरिया और उमेश शर्मा-
अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए बदनाम रामकृष्ण कुसमरिया और उमेश शर्मा की जोड़ी हमेशा विवादों में रहती है। बाबाजी के नाम से जाने वाले कुसमरिया अपने पीए के कारण बदनामी और तमाम आरोप झेल रहे हैं। उन पर पीए के माध्यम से वसूली के आरोप हैं। पशुपालन मंत्री रहते हुए मछली ठेके गलत तरीके से दिए, जिस पर विवाद हुआ। इसी वजह से उनसे विभाग छिना। पिछले दो साल से जैविक नीति का राग अलाप रहे हैं, लेकिन आज तक नीति का अता-पता नहीं। मंत्री से पहले जब सांसद थे, तब मिस्टर टेन परसेंट कहलाते थे। मंत्री के रूप में भी यही पहचान। अधिकारियों में नूरा-कुश्ती कराने में माहिर।
वहीं उनके पीए उमेश शर्मा मूलत डीएसपी हैं, लेकिन किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया उन्हें अपना विशेष सहायक बनाए हुए हैं। कहा जाता है कि कृषि विभाग में शर्मा की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं खड़कता। उन्हें विशेष सहायक बनाने का मामला खासा चर्चित रहा था, लेकिन अंतत: कुसमरिया की जिद मानी गई। शर्मा के खिलाफ 18 जून 1010 को ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज हुआ।
राजेंद्र शुक्ल और रमेश पाल
खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ल और रमेश पाल की जोड़ी भी खुब चर्चा में हैं। मंत्री पर खनिज माफिया को संरक्षण देने का आरोप है। अपने गृह जिले रीवा के पड़ोसी जिले सतना में समर्थकों को खनिज लूट की खुली छूट दी। कटनी और अन्य स्थानों पर खनिज चोरी पर आंखें बंद किए हुए हैं। बताया जाता है को मंत्री को यह सब आईडिया उनके पीए रमेश पाल ने ही दिए हैं। ये महाशय एडीशनल कलेक्टर कटनी के पद पर पदस्थ थे। इससे पहले मंत्रालय में नगरीय प्रशासन विभाग के उपसचिव जैसे मलाईदार पद पर रहे हैं। मंत्री की निजी पदस्थापना के लिए सरकार ने बातें तो बड़ी-बड़ी की, लेकिन विभागीय जांच से घिरे होने के बावजूद पाल को मंत्री का विशेष सहायक बना दिया गया। अपर कलेक्टर स्तर के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रमेश पाल को भी खनिज एवं ऊर्जा राज्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल तमाम आरोपों के बावजूद अपना विशेष सहायक बनाए हुए हैं। पाल के खिलाफ छह दिसंबर 2010 को लोकायुक्त संगठन और 18 अगस्त 2010 को ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज हुआ। कहा जाता है कि खनिज विभाग में कोई भी निर्णय उनकी सहमति के बिना नहीं होता।

रंजना बघेल और अरूण निगम
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही संगठन ने मंत्रियों के निज स्टाफ में पदस्थ होने वाले अधिकारियों के कार्यों की जांच कराने के बाद ही इन्हें रखने के निर्देश दिए थे। खासकर कुछ मंत्रियों के स्टाफ में संघ से जुडे कार्यकर्ताओं को भी निज सहायक एवं निज सचिव बनाया गया है, लेकिन महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार श्रीमती रंजना बघेल एक ऐसे शिक्षक को पाल रही हैं जो कि भष्टाचार के मामले में गले-गले फंसे हुए हैं। वहीं रंजना बघेल पर कुपोषण के कलंक से परेशान सरकार ने पूरा भरोसा जताया,लेकिन धांधली के एक नहीं दर्जनों आरोप उन पर हैं। आरोप है कि विभाग को उनके पीए अरूण निगम चला रहे हैं। अधिकारियों की पोस्टिंग विभाग का सबसे अहम काम बना हुआ है। पोषण आहार सप्लाई के ठेके में भारी भ्रष्टाचार। अपने गृह जिले धार के ठेकेदारों को ही सर्वाधिक ठेके देने के आरोप उन पर हैं। कुपोषण के निपटने के तमाम प्रयास विफल हुए। अब अटल बाल आरोग्य मिशन में कुपोषण से निपटने के तरीकों से बजट खर्च करने की योजना पर ध्यान है। महिला एवं बाल विकास मंत्री रंजना बघेल के पीए अरुण निगम शिक्षा विभाग के भ्रष्ट अफसरों की सूची में शामिल रहे हैं। इन पर स्कूलों में होने वाले नलकूप खनन में लाखों रुपए की हेराफेरी के आरोप लगे हैं। इनकी शिकायत खरगोन के पूर्व सांसद इंदौर के मेयर कृष्णमुरारी मोघे ने इंदौर संभागायुक्त से की थी। बीते साल इंदौर संभागायुक्त ने निगम को तत्काल सेवा से बर्खास्त करने के लिए कलेक्टर खरगोन को सिफारिश भेजी थी। इनके खिलाफ पुलिस प्रकरण दर्ज करने के भी निर्देश दिए गए। मामला अदालत भी पहुंचा। अदालत ने संभागायुक्त के फैसले को सही ठहराया पर निगम सुरक्षित स्थान पर पहुंच ही गए हैं। भष्टाचार के आरोप में फंसे महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती रंजना बघेल के निज सहायक की विभागीय जांच शुरू हो गई है।
जगदीश देवड़ा और राजेन्द्र सिंह
जेल मंत्री जगदीश देवड़ा के विशेष सहायक राजेंद्र सिंह गुर्जर को सीएम के निर्देश पर पिछले साल ही पद से हटा कर मूल विभाग भेजा गया है। देवड़ा के साथ बीते छह-सात साल से जुड़े रहे राजेंद्र को हटाने की वजह खाचरौद जेल से सिमी के कार्यकर्ताओं को रिहा करने में उनकी भूमिका थी। लेकिन बताया जाता है कि इनको हटाने के लिए मंत्री पर पहले से ही दबाव था। वैसे तो राजेन्द्र सिंह कुछ समय पहले ही पदोन्नत होकर राजपत्रित हुए हैं, लेकिन देवड़ा जी के यहां ये ही सर्वशक्तिमान थे। इनके हाल ये थे कि मंत्री जी के निर्देशों का भी इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। परिवहन विभाग में एक साल में जितने लोग डेपुटेशन पर गए, उनके लिए लाइजनींग इन्होंने ही की थी।
पारस जैन और राजेंद्र भूतड़ा
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री पारस जैन शकर एवं दाल खरीदी के मामले के बाद अब फोर्टिफाइड आटे को लेकर गंभीर आरोपों से घिरे हैं। इनके विशेष सहायक राजेंद्र भूतड़ा ने मंत्री जी के नाम पर ठेकेदारों और अफसरों से जमकर वसूली की है। एक खाद्य निरीक्षक द्वारा आत्महत्या किए जाने को लेकर उसकी पत्नी ने भूतड़ा पर तबादले के लिए रिश्वत लेने के आरोप लगाए थे। इंस्पेक्टर के परिजनों ने मंत्री पर अरोप लगाए। लेकिन भूतड़ा को कुछ माह पहले मुख्यमंत्री के निर्देश पर हटाया गया था।
करण सिंह वर्मा अजय कुमार शर्मां
ईमानदारी के लिए मिसाल के तौर पर पहचाने जाने वाले राजस्व एवं पुनर्वास राज्यमंत्री करण सिंह वर्मा ने अजय कुमार शर्मां अपना विशेष सहायक बना रखा है। राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शर्मा के खिलाफ 12 जनवरी 2009 को लोकायुक्त संगठन में प्रकरण दर्ज हुआ और जांच चल रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री और नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर पर एक बार फिर दबाव बनाया जा रहा है कि नगरीय प्रशासन विभाग छोड़ें, लेकिन गौर हर पखवाड़े केंद्रीय नेताओं से मिलकर अपना दबदबा जाहिर करते रहे हैं। दूसरी ओर अंत्योदय मेले के दौरान जिन राज्यमंत्रियों ने शिवराज सिंह का दिल जीता है उन्हें पदोन्नति का इंतजार है। इस सूची में बृजेंद्र प्रताप सिंह और हरिशंकर खटीक का नाम सबसे ऊपर है। यही नहीं, अजय विश्नोई के लिए भी कई केंद्रीय नेताओं का दबाव है। ग्वालियर का प्रतिनिधित्व करने वाले अनूप मिश्रा की वापसी के लिए मैदानी फील्ंिडग जम चुकी है, लेकिन राह में रोड़े अटकाने वालों की भी कमी नहीं है। मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक अनूप के प्रति सहानुभूति जता चुके हैं, लेकिन लंबे समय से अधर में है।

मध्य प्रदेश में बे-पटरी होती भाजपा

भारतीय जनता पार्टी अगर किसी राज्य में सबसे अधिक एकजुट है तो वह है मध्य प्रदेश। यहां सत्ता और संगठन में जितनी पटती है उतनी किसी अन्य राज्य में नहीं। यही कारण है कि हर कभी संगठन के पदाधिकारी यहां के मंत्रियों का कान उमेठ जाते हैं और ताकतवर होते हुए भी मंत्री को सब कुछ सहना पड़ता है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से यहां के भाजपाईयों को भी कांग्रेस का रोग लग गया है।
इस रोग यानी अपनी ढ़पली अपना राग की शुरूआत हुई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनशन एपिसोड के साथ। अनशन एपिसोड के दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच पैदा हुए मनभेद शांत हो गया था, लेकिन मध्य प्रदेश भाजपा के नए संगठन महामंत्री की कुर्सी संभालने वाले अरविंद मेनन के आते ही एक बार फिर से भाजपा बे-पटरी होती नजर आ रही है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के बीच एक बार फिर से मतभेद शुरू हो गए हैं। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा विधानसभा में दिए गए एक उत्तर में प्रभात झा की बात को पूरी तरह खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री अनशन के स्थल से ही अस्थाई सचिवालय चलेगा। केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश के साथ भेदभाव के विरोध में मुख्यमंत्री ने 13 फरवरी को सविनय आग्रह उपवास प्रारंभ की घोषणा की थी। हालांकि राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर के सुझाव के बाद मुख्यमंत्री ने उपवास का विचार त्याग दिया था। केन्द्र के खिलाफ इस लड़ाई को भाजपा ने अपने हाथ में लेते हुए उपवास को खूब प्रचारित किया। प्रदेशभर से पार्टी कार्यकर्ता उपवास स्थल पर आए। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने उस दौरान घोषणा की थी कि उपवास स्थल से मुख्यमंत्री सचिवालय चलेगा। कैबिनेट बैठक भी उपवास स्थल पर ही होगी। इसके लिए कैबिनेट कक्ष सचिव अधिकारियों को बैठने की व्यवस्था भी की गई थी। मुख्य सचिव सहित अन्य अधिकारी भी उपवास स्थल का निरीक्षण करने गए। उन्होंने कैबिनेट कक्ष सहित अधिकारियों की बैठक व्यवस्था का भी जायजा लिया था। कांग्रेस के आरिफ अकील के सवाल पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिए लिखित जवाब में कहा कि उपवास स्थल पर पर कैबिनेट बैठक व्यवस्था नहीं की गई थी। मुख्यमंत्री के इस जवाब से प्रभात झा की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।
प्रदेश भाजपा कार्यसमिति में राज्य के साथ केंद्र सरकार के सौतेलेपन को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के रवैये में जो विरोधाभाष उभरकर सामने आया उसने एक बार फिर सत्ता और संगठन के मुखियाओं के बीच मतभेद को हवा दे दी। शिवराज सिंह ने उज्जैन में इस मुद्दे पर सीधे पीएम को घेरने में कोताही बरती, लेकिन प्रभात झा ने पीएम के नाम खुली चि_ी जारी कर यह जता दिया कि सरकार की भले ही सीमाएं हों, लेकिन केंद्र को सबक सिखाने के लिए पूरी पार्टी इकाई दिल्ली जाकर हल्ला बोल सकती है।
उज्जैन कार्यसमिति में अनंत कुमार के सुर बदलने और अरुण जेटली के सत्ता और संगठन में जोश भरने के बावजूद केंद्र से मध्यप्रदेश की अपेक्षाओं को लेकर शिवराज-प्रभात की राह तथा रणनीति जुदा नजर आई। यूं तो उपवास के उपहास एपीसोड के समय शिवराज सिंह और प्रभात झा के बीच समन्वय-सामंजस्य को लेकर सवाल उठे थे, लेकिन उस वक्त शीर्ष नेताओं के हस्तक्षेप के बाद बात आई-गई हो गई थी। दोनों ने पार्टी को सर्वोपरि मानते हुए कुक्षी और सोनकच्छ की जीत के जश्न की आड़ में 'हम एक हैंÓ का नारा देकर मतभेदों को नकार दिया था। इस बार उज्जैन कार्यसमिति में बाकी सभी मुद्दों पर केन्द्र के प्रति सरकार और संगठन के रुख में मतभिन्नता नजर आई।
विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के कार्यक्षेत्र और उनकी भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा था कि दोनों किसी दल तक सीमित नहीं रहते हैं। शिवराज सिंह को उपवास से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भले ही शिकायतें रहीं और विभिन्न मंचों पर वे भेदभाव और सौतेलेपन के आरोप लगाते रहे, लेकिन विधानसभा में उन्होंने जो कुछ कहा उसका यही अर्थ निकाला गया कि पिछले प्रधानमंत्रियों की तरह मनमोहन सिंह भी दृष्टि दलीय नहीं है। उज्जैन कार्यसमिति के दौरान पीएम पर सीधा निशाना न साधकर उन्होंने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। कारण साफ है कि ऐनटाइम पर शिवराज सिंह के उपवास का इरादा टालने के पीछे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बड़ी भूमिका रही, जिन्होंने राज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद शिवराज सिंह को छोटे भाई का सम्मान दिया था। लेकिन कार्यसमिति में ही प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के तेवर जिस तरह एक बार फिर तीखे नजर आए और उन्होंने प्रदेश सरकार के प्रति केंद्र को घेरने की चेतावनी दी उसने भाजपा में एक नई बहस जरूर छेड़ दी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को लिखी चि_ी में उन सारी योजनाओं का बिन्दुवार ब्योरा दिया है, जिनको लेकर शिवराज सिंह स्वयं प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी मंत्रियों से मुलाकात कर कई बार रिमाइंडर भी दे चुके हैं। प्रधानमंत्री और उनकी केंद्र सरकार को विभिन्न मंचों से आरोपों के कटघरे में खड़ा करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह नरम रुख अपनाया और उनकी जगह प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने सख्त चेतावनी दी, वह आपसी मतभेद की बजाय भाजपा की सोची-समझी राजनीति का हिस्सा भी हो सकती है।
बड़ा सवाल यह है कि क्या संवैधानिक दायित्व से बंधे होने के कारण शिवराज सिंह ने अपने कदम पीछे खींचकर संगठन को आगे आने के लिए प्रेरित किया है या फिर पार्टी ने सरकार पर चाबुक चलाते हुए स्वयं फ्रंट फुट पर आकर केंद्र को घेरने की रणनीति बनाई है? सवाल यह भी है कि क्या उपवास के तौर-तरीकों को लेकर संगठन की कसक बरकरार है और उसने पार्टी को सर्वोपरि बताते हुए सरकार को बाध्य किया है कि वह अपनी सोच भले ही बदल दे, लेकिन संगठन इस लड़ाई को जनता के हक के लिए मुकाम तक ले जाएगा। लाख टके का सवाल यह भी है कि क्या बतौर प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके सलाहकारों को यह संदेश दे दिया है कि उपवास के दौरान जिस तरह संगठन की उपेक्षा हुई उसे पार्टी हित में भले ही उस वक्त नजरअंदाज कर दिया गया, लेकिन संगठन बढ़ते हुए कदमों को पीछे खींचने को तैयार नहीं है? यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र के खिलाफ दिल्ली में हल्ला बोल की रणनीति भाजपा की कितनी और कब तक कारगर होती है तथा इससे शिवराज-प्रभात में से राजनीतिक कद किसका बढ़ता है?
ऐसे में प्रदेश भाजपा के नए संगठन महामंत्री की कुर्सी संभालने वाले अरविंद मेनन के सामने चुनौती बाहर से ही नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर से भी है। चुनौती यदि कांग्रेस को लगातार तीसरी बार सत्ता से दूर रखने के लिए संगठन को मजबूत कर उसे संघ की विचारधारा के तहत आगे बढ़ाने की है तो भाजपा में अपनी स्वीकायर्ता बढ़ाने के साथ-साथ सत्ता और संगठन में बेहतर समन्वय बनाने की भी है।
मेनन के पास संगठन का दीर्घ अनुभव है तो पार्टी में उनके शुभचिंतक की भी ऐसी लंबी फेहरिस्त है, जिनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं आपस में टकराती रहीं और विशेष मौकों पर एक-दूसरे के पूरक साबित होते रहे। अरविंद मेनन के संगठन महामंत्री बनने के बाद यह तय हो गया है कि विभाग और जिला स्तर पर संघ की पृष्ठभूमि वाले संगठन मंत्रियों की भूमिका भी आने वाले समय में बदलेगी। मेनन नीचे से सफलता की पायदान चढ़ते हुए उस मुकाम पर पहुंचे हैं, जहां पहुंचने के सपने हर कोई देखता है। उन्होंने मालवा, महाकौशल के साथ प्रदेश के पूरे जिलों की भाजपा की राजनीति को संघ के आईने से देखा है। फेरबदल से पहले कई संगठन मंत्री उनके भरोसेमंद समर्थक रहे तो इस महत्वपूर्ण दायित्व को निभा रहे कई संगठन मंत्रियों की निष्ठा भाजपा से ज्यादा माखन और माथुर के प्रति भी रही है। नई भूमिका में मेनन को इनकी योग्यता और अनुभव कितना भाएगा, कहना जल्दबाजी होगी। बनते-बिगड़ते नए समीकरणों के बीच कुछ संगठन मंत्री उनके निशाने पर जरूर आ गए होंगे।
अरविंद मेनन के सामने बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा दोनों को संतुष्ट करना ही नहीं, उनके बीच समन्वय बनाना भी है। जिसके बाद ही कांग्रेस को मात देने और भाजपा के तीसरी बार सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त होगा। ऐसा नहीं है कि सत्ता और संगठन में समन्वय नहीं है, लेकिन बड़ा सच यह भी है कि दोनों एक-दूसरे की कार्यप्रणाली पर पर्दे के पीछे ही सही उंगली उठाते रहे हैं। भाजपा में बदल रहे समीकरणों के बीच मेनन की नई भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। उनके सामने चुनौती संघ की उस लाइन को आगे बढ़ाने की भी है, जो समिधा से निकलती है। संघ के क्षेत्रीय और प्रांत प्रचारक की भूमिका भी उसकी होली वार्षिक बैठक के बाद नए सिरे से तय की जा सकती है। संघ के इन नेताओं ने मेनन को प्रचारक घोषित कराने में छह माह पहले ही निर्णायक भूमिका निभाई थी, जिसके बाद उनके संगठन महामंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। अरविंद मेनन के शुभचिंतकों की कमी नहीं है। वे शिवराज सिंह चौहान के सबसे विश्वसनीय होकर उभरे हों, लेकिन सरकार में नंबर दो पर अपना दबदबा साबित करते रहे उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से अरविंद मेनन की निकटता जगजाहिर है। ऐसे में मेनन के लिए बड़ी चुनौती दोनों को विश्वास में लेने के साथ उन्हें संतुष्ट करने की भी होगी।
संगठन महामंत्री रहते कप्तान सिंह के साथ मेनन ने लंबे समय तक काम किया और उन्हें वे बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते रहे। कप्तान सिंह का खुला समर्थन कैलाश विजयवर्गीय को हमेशा रहा है, जबकि परिस्थितियों ने उन्हें प्रदेश की राजनीति से दूर होने को मजबूर कर दिया था, बदली भूमिका में कप्तान और कैलाश की जुगलबंदी प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को कितना भाएगी, कहना कठिन है। मेनन ने सह संगठन महामंत्री रहते तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के साथ भी काम किया है, जिनकी गिनती शिवराज के करीबी लोगों में होती है। ऐसे में प्रभात और शिवराज के बीच समन्वय बनाने में जुटे मेनन के लिए बड़ी चुनौती नरेन्द्र के अस्तित्व को भी सम्मान देने की होगी। राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने अरविन्द मेनन के लिए प्रदेश की राजनीति में रोड़ा साबित होने वाले उनके वरिष्ठ माखन सिंह और भगवतशरण माथुर को राज्य से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई है, जबकि मेनन की गिनती पर्दे के पीछे सक्रिय पूर्व संगठन महामंत्री संजय जोशी के करीबी में होती है। जोशी और रामलाल को संतुष्ट करना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

मध्य प्रदेश में मची जमीनों की बंदरबाट

विनोद उपाध्याय

मध्यप्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाने के नाम पर राज्य में जमीनों की बंदरबाट मची हुई है। सरकार ने अपनों के साथ-साथ उद्योगपतियों को प्रदेश की बेशकीमती जमीनों को कौडिय़ों के भाव बांट दिया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा भोपाल में कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट को आवंटित 20 एकड़ भूमि का आवंटन गैरकानूनी बताते हुए रद किए जाने के बाद सरकार की नींद उड़ गयी है। ट्रस्ट को यह जमीन 2004 में उमा भारती सरकार ने बहुत सस्ती कीमत पर आवंटित की थी। इस ट्रस्ट में लालकृष्ण आडवाणी, वेंकैया नायडू, संजय जोशी और कैलाश जोशी जैसे भाजपा के कई वरिष्ठ नेता ट्रस्टी हैं। मालूम हो कि ट्रस्ट को 25 लाख रुपये पर भोपाल में बावडिय़ा कला गांव में 20 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी जबकि जमीन की वास्तविक कीमत करोड़ों में थी।
कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट को रियायती दर पर भूमि देने के मामले में भले ही प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार को सुप्रीम कोर्ट का झटका लगा हो, लेकिन प्रदेश में रेवड़ी की तरह महज एक रुपए के भाड़े पर बेशकीमती जमीनों की खैरात बांटने का रिवाज पुराना है। प्रदेश में दस साल तक राज करने वाले दिग्विजय सिंह ने अपने शासनकाल में सबसे ज्यादा मुफ्त जमीनें बांटी तो प्रदेश में पांच साल पूरे कर चुके शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2009 तक केवल दो प्रकरण में मुफ्त जमीन दी है।
ठाकरे ट्रस्ट को 25 लाख रुपए में 20 एकड़ जमीन देने के अपने फैसले को सही साबित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामा इसका खुलासा करता है। प्रमुख सचिव राजस्व अनिल श्रीवास्तव ने अदालत में एक रुपए सालाना लीज रेंट और बिना किसी प्रीमियम के आवंटित जमीनों की लिस्ट पेश की थी। इसमें बताया गया कि वर्ष 1982 से 2009 तक 69 संस्थाओं को प्राइम लोकेशन की जमीन महज एक रुपए के किराए पर दी गई है। ठाकरे ट्रस्ट के सचिव कैलाश जोशी कहते हैं कि ट्रस्ट ने आवेदन के समय की सरकारी दर पर जमीन मांगी थी। भाजपा जिला कार्यालयों के लिए भी पार्टी ने जमीन के लिए पैसा चुकाया है, लेकिन कांग्रेस के समय तो मुफ्त में जमीन बांटने की परंपरा थी।
यही नहीं प्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकार ने प्रदेश में उद्योगों को स्थापित करने के नाम पर 40 उद्योगपतियों को 71 हजार एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन बांटकर उपकृत कर चुकी है। यह जमीन औद्योगीकरण के साथ-साथ गैर वन पड़त भूमि के विकास के बहाने भी दी गई है। अद्योसंरचना विकास और औद्योगिकीकरण के नाम पर हुए इस जमीन आवंटन से सरकार के खजाने में चंद रुपयों से ज्यादा कुछ जमा नहीं हो पाया है। लंबी अवधि की लीज पर सिर्फ एक रुपए के न्यूनतम लीजरेंट पर जमीनों का आवंटन भी हुआ है।
यह जमीनें पिछले सालों के दौरान बांटी गर्इं हैं। पिछले तीन चार सालों में सबसे ज्यादा जमीनें आवंटित हुई हैं। राज्य की शिवराज सरकार पांच सालों से देश-विदेश के निवेशकों को निवेश के लिए आमंत्रित कर प्रदेश की तरफ उनका रुझान बढ़ाने तरह-तरह की सुविधाएं उपलब्ध करा रही है। इसके लिए अब तक 21 इन्वेस्टर्स मीट हो चुकी हंै जिनमें हुए औद्योगिक करारों तहत उद्योगपतियों को जमीनें बांटी गर्इं हैं। हालांकि उद्योगों को भूमि आवंटन के लिए उद्योग विभाग की संस्था ट्रायफेक ने नियम बनाए हैं, जिनकी कसौटी पर परखने के बाद जमीनें आवंटित की हैं, लेकिन निवेश बढ़ाने हजारों एकड़ जमीन आवंटन से सरकारी खजाने की सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। दरअसल, सरकार ने अधिकांश उद्योगपतियों को मुफ्त के भाव जमीनें इस उम्मीद पर दे दी हैं कि उद्योग स्थापित होने के बाद इसका लाभ प्रदेश को मिलेगा, लेकिन इसी उम्मीद के बीच उद्योगपतियों के साथ अब तक हुए 432 करारों में से 111 करार निरस्त हो चुके हैं। इससे सरकार की मंशा पर सवाल भी उठने लगे हैं।
प्रदेश में उद्योग लगाने के नाम पर बीते साल नवंबर तक देश भर के और कुछ विदेशों के 3096 निवेशकों ने सरकार के सामने जमीन आवंटित के आवेदन प्रस्तुत किए थे। इनमें निजी निवेश के लिए भूमि आवंटन के लिए 1594 आवेदन आए जिसमें से चुनिंदा 40 उद्योगतियों को 71 हजार 385.98 एकड़ (28889 हेक्टेयर) गैर वन पड़ भूमि आवंटित की है। दो हेक्टेयर की सीमा में कृषि परिवर्तनीय भूमि के आवंटन के लिए सरकार को 1502 आवेदन मिले, जिसमें से 22 आवंटितियों को 1667.95 एकड़ (675 हेक्टेयर) जमीन दी गई। प्रदेश में 4 लाख 74 हजार 78 हेक्टेयर गैर वन पड़त भूमि चिन्हित की गई है जिमसें से 92 हजार 465 भूमि परिवर्तनीय रूप में वर्गीकृत की गई है।
राजस्व विभाग के अनुसार मध्यप्रदेश को स्वर्णिम बनाने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की परिकल्पना में औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने के लिए भूमि उपलब्ध कराना प्रमुख है। इस दृष्टि से विभाग ने प्रदेश में स्थापित होने वाले लगभग सभी वृहद, मध्यम एवं लघु उद्योगों को भूमि उपलब्ध कराई है। विभाग का कहना है कि इस काम को विभाग ने उच्च प्राथमिकता और विशेष तत्परता से किया है। अद्योसंरचना निर्माण में लोक प्रयोजन के लिए भूमि उपलब्ध कराना उसका लक्ष्य रहा है। भू-अर्जन समिति की बैठकों के माध्यम से विभाग द्वारा जमीन आवंटन करके औद्योगीकरण को गति प्रदान की गई है।जमीन बांटने के मामले में राज्य सरकार हिंडाल्को और रिलायंस समूह के अलावा जयप्रकाश एसोसिएट्स पर जमकर मेहरबान है। इन तीनों औद्योगिक समूहों को ही सरकार साढ़े तीन हजार एकड़ से ज्यादा जमीन बांट चुकी है।
राज्य सरकार ने हिंडाल्को कंपनी के विभिन्न प्रोजेक्ट के नाम पर कुल 1847.64 एकड़, रिलायंस इण्डस्ट्रीज को 1344.615 एकड़ और जयप्रकाश एसोसिएट्स को 333.34 एकड़ जमीन आवंटित कर चुकी है। हिंडाल्को ने प्रदेश में छह परियोजनाओं के नाम पर इतनी जमीन ली है तो रिलायंस इण्डस्ट्रीज के सासन पॉवर प्रोजेक्ट के लिए आठ बार अलग-अलग जमीन आवंटित की गर्इं हैं। इसके अलावा रिलायंस कंपनी ने प्रदेश में अपना निजी हवाई अड्डा बनाने के लिए भी सरकार के जमीन ली है। जयप्रकाश एसोसिएट्स (जेपी ग्रुप) भी ने पॉवर, सीमेंट, मिनरल्स सहित अन्य आठ प्रोजेक्ट के नाम पर जमीन हथियाई है।
अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्री रहते ही प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के लिए राजधानी में 1.18 एकड़ जमीन केवल एक रुपए के लीज रेंट पर दी गई थी। इसके बाद भाजपा ने अपने कार्यालय के लिए जमीन मांगी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के समय पार्टी से एक लाख रुपए जमा करने को कहा गया। वोरा के बाद सीएम बने अर्जुन ने यह कहते हुए भाजपा को भी एक रुपए किराए पर 1.50 एकड़ जमीन अलाट की कि कांग्रेस को मिल सकती है तो भाजपा को क्यों नहीं। उनके कहने पर भाजपा ने पचास साल के लिए एकमुश्त 50 रुपए किराया जमा कर जमीन हासिल की। बाद में पटवा ने भाजपा कार्यालय की भूमि का स्थान बदला।
किसे कितनी भूमि
अधोसंरचना निर्माण के लिए
कंपनी आवंटित भूमि (हेक्टेयर)
हिंडाल्को कंपनी 23.77
सासन पॉवर लिमिटेड 28.43
महेश्वर हाईड्रल पॉवर कार्पो. 0.462
न्यू जोन इंडिया लिमि. 476.788
एसजेके पॉवरजोन 30.960
सासन पॉवर लिमिटेड 44.48
मप्र पॉवर ट्रांसमिशन कंपनी 0.539
महेश्वर हायड्रल पॉवर कार्पो. 4.67
जय प्रकाश एसोसिएट्स 34.231
हिण्डाल्को कंपनी 25.96
ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमि. 7.681
पॉवर ग्रिड कार्पो. 25.50
आर्यन कोल एमपी लिमिटेड 12.800
महेश्वर हायड्रल पॉवर कार्पो. 136.954
औद्योगिकीकरण के लिए
सासन पॉवर लिमिटेड 128
हिंडाल्को 547
महेश्वर हाईड्रल पॉवर परि. 12.2
ईरा इन्फ्रा लिमिटेड उमरिया 126
सासन पॉवर सिंगरौली 198
झाबुआ पॉवर सिवनी 19.4
जेपी मिनरल्स, सिंगरौली 36.7
महान कोल 5.4
जेपी सीमेंट 1.96
मोजरबेयर अनूपपुर 70.2
झाबुआ पॉवर 69.2
सांघी इंडस्ट्रीज 230
एस्सार पॉवर 186
आर्यन कोल 10.92
महेश्वर हायड्रल पॉवर 12.204
जेपी पॉवर वेंचर्स 0.720
महान कोल लिमिटेड 2.68
सासन पॉवर लिमिटेड 9.749
हिंडाल्को कंपनी 74.96
छिंदवाड़ा प्लस 242.019
एसईसीएल 14.450
सांघी एनर्जी 133.981
आर्यन कोल लिमिटेड 45.13
न्यू जोन इंडिया लिमिटेड 39.776
जयप्रकाश पॉवर वेंचर्स 25.500
जयप्रकाश पॉवर वेंचर्स 28.303
रिलायंस हवाई अड्डा हेतु 63.951
हिंडाल्को कंपनी 62.86
सासन पॉवर लिमिटेड 3.65
मप्र सैनिक कोल माइंस लिमि. 31.48
सासन पॉवर लिमिटेड 11.290
जय प्रकाश पॉवर वेंचर्स 4.047
एस्सार पावर लिमिटेड 1.09
रिलायंस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड 3.529
सासन पॉवर लिमिटेड 53.070
हिंडाल्को लिमिटेड 13.17
एसकेएम लिमिटेड 101.076

एक रुपए में बंटी करोड़ों की जमीनें
इन्हें मिला बंटरबांट का लाभ
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