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भेड़ाघाट

Tuesday, July 27, 2010

खेल नहीं बस हो रहा खिलवाड़

महिला हॉकी खिलाड़ी रंजीता द्वारा टीम के कोच एमके कौशिक पर लगाए यौन शोषण के आरोपों को हॉकी इंडिया ने सही मानते हुए उन पर कार्रवाई करने का निर्णय लिया है। देश में हॉकी के सबसे बड़े निकाय ने सेक्स स्कैंडल पर रिपोर्ट जारी कर दी है। इसके साथ ही हॉकी इंडिया ने फैसला लिया है कि भविष्य में वो कभी कौशिक को अनुबंधित नहीं करेगी ना ही उनकी सेवाएं लेगी। अभी यह मामला चल ही रहा है कि इसी बीच मैच फिक्सिंग के आरोप में आजीवन प्रतिबंध का सामना कर रहे टीम इंडिया के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन और बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा के प्रेम का मामला उछल गया। जिससे अब तो यह भ्रम भी चरमरा कर अपनी अंतिम सांसें ले रहा है कि खेल सिर्फ खेल नहीं एक तरह का खिलवाड़ भी है। चाहे यह खेल क्रिकेट हो या हॉकी, इंडियन प्रीमियर लीग की चौंधियाहट हो या फीफा की जगमगाहट। देश हो या विदेश - जहां खेल है, पैसा है, वहां परोसा जाता है सेक्स।
देश की पहले से चरमराई महिला हॉकी टीम की एक सदस्या ने जब कोच पर यौन शोषण का आरोप लगाया, तब खेल मंत्रालय जैसे सोते से जाग गया। इसके तुरंत बाद यह खबर आई कि जब भारतीय महिला हॉकी टीम चीन और कनाडा के दौरे पर थी, तब टीम का एक अधिकारी अपने कमरे में कार्ल गल्र्स लाता था। हमारे देश में हॉकी के साथ कोई ग्लैमर नहीं जुडा, लेकिन यहां भी खेल की आड़ में देह व्यापार झांकने लगा है।
इस घटना का गौरतलब पहलू यह है कि टी रंजीता के इन आरापों के बाद कई महिला खिलाडिय़ों ने अपने साथ या अन्य महिला खिलाडिय़ों के साथ हुए द्रव्र्यवहार पर खुलकर बोलना शुरू कर दिया है। टीम की पूर्व गोलकीपर और अर्जुन अवार्ड से सम्मानित हेलन मेरी की प्रतिक्रिया कुछ यों रही- टीम में यह खेल बहुत पहले से चल रहा है। फेडरेशन और मंत्रालय में शिकायत करने पर भी पीडि़तों की ज्यादा सुनवाई नहीं होती। हाकी खिलाड़ी नवनीत भी दो महीने बाद दिल्ली में होने वाले कामनवेल्थ गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व कर रही होतीं, अगर उन्होंने दो साल पहले लखनऊ में जूनियर नेशनल कैंप के दौरान राष्ट्रीय गोलकीपिंग कोच ई एडवर्ड्स के कथित दुर्व्यवहार को चुपचाप सहन कर लिया होता। नवनीत का कहना था कि उन्होंने इस मामले की शिकायत राष्ट्रीय जूनियर हाकी के तत्कालीन कोच जीएस भंग्गू से की थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। नवनीत की मानें तो उन्हें विकल्प दिया गया था कि समझौता कर लो या फिर हाकी छोड़ दो। नवनीत ने हाकी छोडऩे वाला विकल्प चुना। इसी तरह जून 2009 में आंध्र क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव पर यौन शोषण का आरोप लगा था और इस साल फरवरी में सुमन रावत ने आरोप लगाया कि अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर और कोच जगत सिंह बेलाल ने उनके साथ बलात्कार की कोशिश की। बाद में सुमन रावत को टीम से निकाल दिया गया।
यहा टेनिस की उभरती खिलाड़ी रुचिका गिरोत्रा का जिक्र करना जरूरी हो जाता है, जिसका यौन उत्पीडऩ हरियाणा के तत्कालीन डीजीपी राठौर ने किया था। उस समय राठौर हरियाणा टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। रुचिका ने यौन उत्पीडऩ और अपने परिवार को राठौर द्वारा दी जाने वाली मानसिक यातनाओं से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। महिला खिलाडिय़ों द्वारा अपने प्रशिक्षकों के खिलाफ यौन उत्पीडऩ के आरोपों वाले मामलों की सूची बहुत लंबी है, जो इस बात की ओर इशारा करती है कि कहीं दाल में कुछ काला है।
दाल में कुछ काला नहीं रहता तो भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) से कांग्रेस सांसद मोहम्मद अजहरुद्दीन का दिल अपने से आधी उम्र की एक बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा पर क्यो आ गया है। ज्वाला की वजह से अजहर और संगीता बिजलानी की 14 साल पुरानी शादी खतरे में बताई जा रही है। खबर यहां तक है कि एक हफ्ते के भीतर अजहर तलाक के लिए अर्जी देने वाले हैं। ज्वाला गुट्टा भी शादीशुदा हैं। उनकी शादी विजेता चेतन आनंद से हुई है। ज्वाला 26 की है जबकि अजहर 47 के। शादीशुदा अजहर हाल ही में एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप के दौरान दिल्ली में शादीशुदा ज्वाला के साथ कई मैचों के दौरान क्यों घुम रहे थे। इस पूरे मामले पर पुलेला गोपीचंद ने भी कुछ कहने से इनकार कर दिया है। अजहर की पहली शादी नौरीन से हुई थी। शादी के करीब 8 साल बाद अजहर-नौरीन के रिश्ते में खटास आ गई थी जब अजहर संगीता के करीब आ रहे थे। नौरीन से अजहर के दो बेटे हैं-असादुद्दीन और अबासुद्दीन। हालांकि, तलाक के पांच साल बाद नौरीन ने एक कनाडाई बिजनेसमैन से शादी कर ली थी। इस मामले पर जब ज्वाला गुट्टा से पूछा गया तो उन्होंने न तो ख़बर से इनकार ही किया और न ही उसे सही बताया। वहीं, उनके पति चेतन आनंद ने कहा कि मीडिया को किसी की निजी जि़ंदगी में झांकने का हक नहीं है। संगीता बिजलानी की ओर से भी इस मामले पर कोई बयान नहीं आया है।
बैडमिंटन से जुड़े पदाधिकारियों का कहना है कि ज्वाला से नजदीकियों के कारण ही अजहर बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (बीएआई) में अध्यक्ष का चुनाव लडऩा चाहते थे। उल्लेखनीय है कि अजहर ने अध्यक्ष पद के चुनाव में वीके वर्मा को चुनौती देने का एलान करते हुए सभी को चौंका दिया था। सूत्रों के अनुसार अजहर ने ज्वाला को बीएमडब्ल्यू कार तोहफे में दी है और बैडमिंटन स्टार हैदराबाद की सड़कों पर इसे दौड़ाते हुए सबकी नजरों में आ चुकी हैं। आंध्रप्रदेश बैडमिंटन संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि अजहर जब भी हैदराबाद में होते हैं, तो गोपीचंद एकेडमी के काफी चक्कर लगाते हैं। ज्वाला यहीं प्रैक्टिस करती हैं और उन्हें कई बार अजहर के साथ जाते हुए देखा गया है।
एक सवाल यह भी है कि विभिन्न खेल संघों ने अपने-अपने यहा यौन उत्पीडऩ शिकायत सेल और जाच समितियों का गठन भी किया हुआ है या नहीं? कई महिला खिलाडिय़ों के बयानों से यही गंध मिलती है कि यौन उत्पीडऩ की शिकायत करने पर आला अधिकारियों का रवैया मामले को दबाने का ही होता है। कई मर्तबा महिला खिलाड़ी ऐसे मुद्दों पर खामोश ही रहती हैं। विरोध न करने की कई वजहें हो सकती हैं।
जब छोटे-छोटे कस्बों की लड़कियां प्रतिकूल माहौल से जद्दोजहद करते हुए खेल के मैदान तक पहुंचने का जज्बा दिखा रही हैं तो ऐसे में सरकार उन्हें भयमुक्त सुरक्षित महौल मुहैया कराने की जवाबदेही से कैसे बच सकती है।
खेल के साथ सेक्स को आईपीएल के मैचों में भी खूब भुनाया गया। वैसे भी आईपीएल खेलों में देश-विदेश की छरहरी बालाएं, जो चियर लीडर्स का काम करती हैं, अपनी आकर्षक मुद्राओं से दर्शकों को भी स्टेडियम आने का आमंत्रण देती हैं। आईपीएल की आलीशान पार्टियां, टीम के मालिकों का रईसाना अंदाज और उनका साथ देने के लिए मौजूद बालाएं। हॉकी के एक अधिकारी की रंगीन रातों के खुलासे के बाद आईपीएल के उन अधिकारियों पर उंगली उठने लगी है, जो ऐसी पार्टियों के कर्ताधर्ता थे। अनुमान के मुताबिक एक माह तक जारी इन खेलों में लगभग ढाई सौ चियर लीडर्स थीं और हजार से ज्यादा यौनकर्मी विभिन्न शहरों में खास मेहमानों का मनोरंजन करने के लिए आमंत्रित की जाती थीं।
ताजा प्रकरण ने एक साथ कई सवालों को जन्म दिया है, जिनके हल उच्च पदों पर आसीन संबंधित अधिकारियों को तलाश करने होंगे। कौशिक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। लेकिन क्या उनका इस्तीफा देना ही इस मसले का हल है? क्या इस के सामने आने के बाद हम अपने परिवार की किसी लड़की को खेलों की ओर प्रोत्साहित करने का विचार करेंगे? क्या आप मानते हैं कि इस तरह की घटनाएं खेल की दुनिया में आम बात हैं? क्या विदेश दौरों के दौरान पुरुष अधिकारियों के साथ पत्नी का जाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए? क्या हॉकी की दुर्दशा के लिए यही सब कारण जिम्मेदार हैं? क्या सिर्फ कोच का बदला जाना इस समस्या का हल है?

एक माह में होगा 500 करोड़ का देह व्यापार

इस साल अक्टूबर माह में भारत की राजधानी दिल्ली में होनेे वाले कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में सरकार भले ही पिछड़ रही है लेकिन यहां आने वाले सैलानियों की दैहिक भूख शांत करने के लिए जोरदार तैयारियां चल रही है या यूं कहें कि ट्रायल भी शुरू हो गया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक अनुमान के तहत जिस दिल्ली में देह व्यापार का सालाना टर्न ओवर 650 करोड़ का है वहां करीब एक महीने चलने वाले इस कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान 500 सौ करोड़ की देह बिकेगी। यानी जीबी रोड से लेकर आलीशान होटलों में जमकर देह व्यापार होगा। इसके लिए विदेशी देहजीवीयाएं भी यहां आ धमकी हैं।
दिल्ली के जीबी रोड के चकलाघरों को जहां आधुनिकता के रंग में संवारा-सजाया जा रहा है वहीं बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रांतों से देहजीवीयाओं को भी लाया जा रहा है जहां उन्हें अंग्रेजी बोलना,पश्चिमी रहन-सहन के साथ-साथ काम कला और मुद्राओं की जानकारी दी जा रही है। इसके लिए वकायदा विदेशी सेक्स विशेषज्ञों का सहारा भी लिया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि यहां आने वाले विदेशी सैलानियों की अधिकतर मांग भारतीय बालाओं की होती है लेकिन उन्हें काम कलाओं की जानकारी नहीं होने के कारण कई बार प्रवासी ग्राहक नाकार देता है। इसी प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप से आने वाले लोगों के लिए गोरी चमड़ी वाली विदेशी बालाओं को बुलाया गया है।
जानकारों की माने तो उपमहाद्वीप में गोरी चमड़ी वाली विदेशी बालाओं का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। जीबी रोड हो या फिर शहर के आलीशान होटल सभी ने इंग्लैंड,अमेरिका,जापान,चीन,इटली,फ्रांस आदि देशों से सेक्स वर्कर्स को बुलाया है। इनमें खासकर सोवियत संघ से अलग हुए राष्ट्रों की गरीब लेकिन खूबसूरत और मस्त अदाओं वाली लड़कियां, जो पूरी तरह से देखने में आकर्षित लगती हैं, इस धंधे में भाग ले रही है। सोवियत संघ से अलग हुए कॉमनवेल्थ ऑफ इंडीपेंडन्ट स्टेट (सीआईएस) के राष्ट्र यूक्रेन, ज्यॉर्जिया, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, चेचेन्या और किग्रिस्तान से बड़ी संख्या में लड़कियां देह बेचने के लिए भारत आती हैं। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में मौजूदा समय में इन राष्ट्रों से 5500 लड़कियां मौजूद हैं। यहां पर लड़कियां अपने खूबसूरत चेहरे के दम पर अच्छा-खासा पैसा कमा रही हैं। इन लड़कियों का मकसद एकदम साफ है। भारत में अपना शरीर बेचने के बाद लड़कियां अपने वतन वापस जाकर घर बनाती है, कुछ परिवार को पैसा भेजती रहती है। इन लड़कियों को भारत लाने के लिए व्यवस्थित नेटवर्क बना हुआ है। उपरोक्त राष्ट्रों की अनेक आंटियां काफी समय से दिल्ली में स्थायी रुप से निवास कर चुकी हैं। इन आंटियों का भारत में वेश्या दलालों के साथ गठबंधन है। विदेश से आती गोरी युवतियों का संपूर्ण संचालन ये आंटियां ही करती हैं साथ ही देशी दलाल और ग्राहक ढूढ़कर कमीशन भी बनाती है।
जीबी रोड की लवजीत के मुताबिक भारत सहित उपमहाद्वीप में विदेशी लड़कियों का डिमांड बड़ी संख्या में है। पैसा खर्च कर देह की भूख मिटाना बहुत समय से चलता आ रहा है लेकिन अब पैसा देकर सुख भोगने का तरीका थोड़ा एडवांस हो गया है। हिंदुस्तानी पुरुषों को अब सांवली या फिर खूबसूरत वेश्या या कॉलगर्ल में रस नहीं रह गया है। अब भारतीय पुरुष गोरी बालाओं के दीवाने हो गए हैं। इसके लिए वे अच्छा-खासा पैसा खर्च करने के लिए तैयार भी हो जाते हैं। नाम भले ही खत्म हो जाए लेकिन देहव्यापार करके कई तरह के शौख पूरा करना इन गोरी लड़कियों का पेशा बन गया है। लड़कियां प्लेजर ट्रीप्स, बिजनेस मीट्स, कॉर्पोरेट इवेंट्स, फंक्शन और डिन डेट्स के लिए भी उपलब्ध होती हैं। कई लड़कियां तो नाइट क्लबों में वेटर्स या बेले डांसर का रुप धारण कर धंधे के लिए तैयार हो जाती हैं। रशियन लड़कियों का मिनिमम चार्ज दो हजार से 8 हजार रुपया है। अधिकतम चार्ज की कोई सीमा नहीं है। लड़कियों के पीछे काफी पैसा खर्च करके ग्राहकों से मोटी रकम वसूल की जाती है। उसने बताया कि अमीर और अधिकारी वर्ग के लोगों में गोरी त्वचा वाली विदेशी लड़कियों का क्रेज चल रहा है। यहां पर पहले तो नेपाली लड़कियों की ज्यादा डिमांड थी। भारतीय युवतियों की अपेक्षा नेपाली लड़कियों की कीमत 40 फीसदी ज्यादा थी लेकिन अब जमाना रशियन लड़कियों का है।
देहव्यापार के धंधे में शामिल एक भारतीय लड़की का कहना है कि रशियन लड़की अपने शरीर को पूरी तरह से ग्राहक के हवाले कर देती हैं लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाते। जीबी रोड के कोठा नंबर 54 में रहने वाली आसमां की माने तो विदेशी लड़कियों को दलालों द्वारा मसाज और एस्कोर्ट सर्विस के नाम पर ग्राहकों को बुलाया जाता है। यहां पर ऐसा निर्देश दिया जाता है जो आम आदमी भी समझ लेता है। वाइल्डेस्ट फेन्टसी, ट्रेइड हेंडलिंग और फुल सेटिस्फेक्शन गेरेंटेड जैसे शब्द का प्रयोग इस्तेमाल होता है। ग्राहक क्रेडिट कार्ड से भी पेमेंट कर सकते हैं। सोवियत संघ के पतन के पीछे सीआईएस राष्ट्रों की लड़कियां दुबई में स्थाई हो जाती थी और परिणाम में दुबई वैश्यावृत्ति का एक अंतराष्ट्रीय केन्द्र बन गया था। लेकिन दुबई पुलिस की सख्ती के बाद गोरी लड़कियों ने अब दिल्ली को निशाने पर लिया है। दिल्ली और मुंबई विदेशी शाला बन रही है। यहां से ही देश भर में लड़कियां सप्लाई की जाती हैं।
यह बात अलग है कि पुरुषों की जन्नत में औरतों को सपने देखने की भी इजाजत नहीं है लेकिन लालबत्तियों की शोभा बनी औरतें भी कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों पर जुट गई हैं। शहरी चकाचौंध से दूर बैठी ये देह बेच कर कुछ ज्यादा कमा लेने की चाहत में खुश भले ही हो रही हों पर हकीकत में इनको वही सौ में पन्द्रह रुपये पा कर तसल्ली करना होगा। उपेक्षित स्त्री को नजदीक से देखते विनीत उत्पल तन समर्पित, मन समर्पित, बावजूद इसके दिहाड़ी नाममात्र। यह किसी फिल्म का डायलॉग नहीं बल्कि कड़वी हकीकत है बदनाम बस्तियों की महिलाओं की। अगर मजदूरी सौ रूपए है तो उसे मिलता है मात्र पंद्रह रूपए। बाकी बंटता है कोठी की मालकिन, दलालों, भडुवों, राशन वालों, पुलिसकर्मियों, डॉक्टरों और साहूकारों के बीच।
कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान सेक्स परोसने की तैयारी किस प्रकार चल रही है यह जानने के लिए हमने जब 18 वर्षिय सना से पूछा तो वह उबल पड़ी। उसने अपनी चलताऊ भाषा में हमें जो बताया उसका आशय कुछ ऐसा है-दिल्ली के उच्च वर्ग, पार्टी सर्किल और सोशलाइटों के बीच 'गुड सेक्स फॉर गुड मनीÓ एक नया चलताऊ वाक्य बन गया है। यही वजह है कि दिल्ली पर भारत की सेक्स राजधानी होने का एक लेबल चस्पां हो गया है। आंकड़ों की बात करें तो मुंबई में दिल्ली से ज्यादा सेक्स वर्कर हैं। लेकिन जब प्रभावशाली और रसूखदार लोगों को सेक्स मुहैया करवाने की बात आती है तो दिल्ली ही नया हॉट स्पॉट है। ये प्रभावशाली और रसूखदार लोग हैं राजनेता, अफसरशाह, व्यापारी, फिक्सर, सत्ता के दलाल और बिचौलिए। यहां इसने पांच सितारा चमक अख्तियार कर ली है। पांच सितारा कॉल गर्ल्स पारंपरिक चुसी हुई शोषित और पीडि़त वेश्या के स्टीरियोटाइप से बिल्कुल अलग हैं। न तो ये भड़कीले कपड़े पहनती हैं और न बहुत रंगी-पुती होती हैं और न ही उन्हें बिजली के धुंधले खंभों के नीचे ग्राहक तलाश करने होते हैं। पांच सितारा होटलों की सभ्यता और फार्महाउसों की रंगरेलियों में वे ठीक तरह से घुलमिल जाती हैं। वे कार चलाती हैं, उनके पास महंगे सेलफोन होते हैं। जैसा कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि हाल ही के एक छापे के दौरान पकड़ी गई लड़कियों को देखकर उन्हें धक्का लगा। वे सब इंगलिश बोलने वाली और अच्छे घरों से थीं। कुछ तो नौकरी करने वाली थीं, जो जल्दी से कुछ अतिरिक्त पैसा बनाने निकली थीं। 34 साल की सीमा भी एक ऐसी ही कनवर्ट है। उसे इस धंधे में काफी फायदा हुआ है।
ग्लोबलाइजेशन के दौर में विज्ञापन हो या फिर पोर्न फिल्में, बार गर्ल हो या फिर रैम्प पर मदमस्त चाल चलतीं मॉडल्स, कॉलगर्ल हों या फिर बहुतेरे शहर के कोठों पर रहने वालीं यौनकर्मी, परिभाषाएं समान ही नजर आती हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि कोई अपनी मर्जी से देह बेचता है तो कोई मजबूरन धंधे को अपनाने के लिए विवश होती है। आंकड़ें बताते हैं कि रेड लाइट एरिया में आने के लिए हर साल दस लाख लड़कियां मजबूर होती हैं, जिनमें से 25 हजार तो महज सार्क देशों से आती हैं।
इसके अलावा दिल्ली का एक इलाका ऐसा भी है, जो इन विदेशी मेहमानों के नाम से ही सहमा हुआ है और डर की वजह है आप्रकृतिक यौन संबंधी और एचआईवी एड्स। दिल्ली के रेड लाइट एरिया जीबी रोड में रहने वाली सैकड़ों महिलाएं नहीं चाहतीं कि कोई विदेशी उनकी चौखट पर आए। जीबी रोड की असिमा बानो के मुताबिक भारत आने से पहले विदेशियों की एचआईवी जांच करवाई जाए। जो इस जांच में पास हों, केवल उसे ही भारत का वीजा देना चाहिए। विदेशियों से यह डर किसी एक का नहीं है। यही कारण है कि जीबी रोड की महिलाओं के लिए काम करने वाले संगठन पतिता उद्धार संघ ने इस बाबत विदेश मंत्री व स्वास्थ्य मंत्री से मदद की गुहार लगाई है। संगठन के अध्यक्ष खैरातीलाल भोला के मुताबिक उन्होंने जीबी रोड में रहने वाली महिलाओं की ओर से 18 अप्रैल को विदेश मंत्री एसएम कृष्णा को एक पत्र लिखा है। जिसमें मांग की गई है कि बिना एचआईवी जांच के किसी विदेशी को भारत का वीजा न दिया जाए। इस मामले में संस्था स्वास्थ्य मंत्रालय की भी मदद ले रही है। भोला के मुताबिक 1984 में हुए एशियाई खेलों के दौरान बड़ी संख्या में विदेशी भारत आए थे। यही वह अवसर था, जब विदेशी नागरिकों से कई दिल्लीवालों में एचआईवी का संक्रमण फैलना शुरू हुआ। एशियाई खेलों में मिला यह दर्द जीबी रोड के अधिकांश कोठों की महिलाएं अभी तक नहीं भूली हैं। यहां रहने वाली नीरूजी का कहना है एशियाई खेलों के समय ज्यादातर महिलाओं को सुरक्षित यौन संबंधों की जानकारी भी नहीं थी, जिससे कई युवतियां इस बीमारी से ग्रस्त हुई और बाद में उनकी मृत्यु हो गई। अब जब एक बार फिर बड़े पैमाने पर विदेशी भारत आने को हैं तो जीबी रोड में रहने वाली महिलाओंं में डर लॉजिमी है। इसकी एक वजह यह भी है कि उन्हें डर सता रहा है कि खेलों का जश्न कहीं उनके लिए मातम न बन जाए।

..क्यों बिगड़ जाती है रसूख वालों की तबियत

हमारे नेता न जाने किस मिट्टी के बने हैं। उनकी तबियत कब खराब हो जाय यह भगवान भी नहीं जानते। चुनाव के दिनों में जेठ की दोपहरी हो या फिर माघ की आधी रात उनकी तबियत तनिक भी नासाज हो जाए,क्या मजाल। यही कुछ हाल अन्य रसूखदार बिरादरी वालों का भी है। लेकिन न जाने क्या विडम्बना है कि जब हमारे रसूखदार एसी कमरे में बैठकर कोई गलत कार्य कर जाते हैं और उनके उसी एसी कमरे में उन्हें पकडऩे पुलिस पहुंचती है तो उनकी तबियत अचानक खराब हो जाती है,वह भी दिल के रास्ते।
हाल ही में मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री और विधायक कमल पटेल पर एक युवक की हत्या के साक्ष्य मिटाने के आरोप के तहत सीबीआई ने गिरफ्तार किया और जब उन्हें जेल भेजा गया तो वे अचानक बीमार हो गए। वैसे पटेल पहले मंत्री नहीं हैं जो अरेस्ट होने के बाद अचानक बीमार पड़े हैं। उनसे पहले भी कई राजनीतिज्ञ और रसूख वाले इस सोची-समझी बीमारी का बहाना बना चुके हैं। पेश है पेनफुल रिलीफ के ऐसे ही कुछ खास मामलों पर हमारी एक रिपोर्ट।
गोवा के पूर्व पर्यटन मंत्री पचेको पर अपनी गर्लफ्रेंड के मर्डर का आरोप लगा। काफी दिनों तक जनाब बचते फिरते रहे। अग्रिम जमानत के लिए लंबी कवायदें कर डालीं मगर उन्हें निराशा ही हाथ लगी। हारकर सरेंडर करना पड़ा। इनका संबंध टोरैडो नाम की महिला से था। अचानक यह महिला मृत अवस्था में पाई गई। इसके बाद से पचेको के लिए मुसीबतों का दौर शुरू हो गया। पुलिस ने कहा कि वह अपनी इस क्लोज फ्रेंड की मौत में शामिल हैं। इसकी बिनाह पर पचेको को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पीछे पड़ी तो पचेको गायब हो गए थे। अग्रिम जमानत लेने की तमाम कोशिशें नाकाम होने के बाद उन्होंने ज्यूडिशियल सेशन कोर्ट में सरेंडर कर दिया। मगर कोर्ट में सुनवाई के दौरान ही वे अनईजी फील करने लगे और उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया और उन्हें आईसीयू में ले जाया गया। अभी भी उनका इलाज चल रहा है।
कर्नाटक के मंत्री रहे हरातुलु हलप्पा का किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है। इनकी नीयत अपने ही दोस्त की बीवी पर खराब हो गई। फिर क्या पूरी साजिश बनाकर उसकी इज्जत लूटने की कोशिश की, मगर दोस्त ने रंगे हाथों पकड़ लिया। इसके बाद उन्हें इस्तीफा भी देना पड़ा और उसके बाद उन्होंने सीआईडी के सामने सरेंडर कर दिया। बाद में पुलिस ने उन्हें अरेस्ट कर लिया। कस्टडी में हलप्पा ने सीने में दर्द की शिकायत की। बाद में मजिस्ट्रेट ने जेल अथॉरिटीज को उन्हें जरूरी मेडिकल फैसिलिटीज मुहैया कराने का आदेश दिया।
निर्दल विधायक रहते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री बनकर इतिहास बनाने वाले मधु कोड़ा ने कमाई के मामले में भी इतिहास बना दिया। उनके ऊपर हजारों करोड़ रुपए के घोटाले का मामला सामने आया। इसके बाद तो मानों तूफान सा मच गया। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की लगातार रेड के बाद कोड़ा बीमारी का बहाना बनाकर एक हॉस्पिटल में एडमिट हो गए। इस तरह वे किसी भी तरह की पूछताछ से बचे रहे। हॉस्पिटल में एडमिट होकर लंबे समय तक वे आईटी डिपार्टमेंट को चकमा देने में कामयाब रहे।
सत्यम घोटाले के सूत्रधार रामालिंगा राजू का मामला भी कुछ ऐसा ही है। सत्यम मामले में अरेस्ट होने के बाद वे बीमार पड़े और हॉस्पिटल में एडमिट हुए। हॉस्पिटल में उनके साथ वीआईपी जैसा ट्रीटमेंट किया गया। उस दौरान पब्लिश हुई एक रिपोर्ट की मानें तो रामालिंगा राजू उस जगह पर थे जिसे वहां के स्टाफर वीआईपी सेक्शन के नाम से बुलाते हैं। उन्हें अटैच्ड बाथरूम के साथ एक अलग कमरा मिला हुआ था। वहां पर डॉक्टर्स उनकी हर पल निगरानी कर रहे थे। साथ ही बेटा और वाइफ भी मौजूद थे। इतना ही नहीं उनकी सिक्योरिटी के नाम पर पांच पुलिसकर्मी भी कमरे के बाहर हमेशा तैनात रहते थे। जाहिर सी बात है सजा के इस रूप-स्वरूप पर किसी भी क्रिमिनल को रस्क हो सकता है।
बरसों पहले एक नाम खूब सुर्खियों में था। यह थे कभी यूपी गवर्नमेंट में मिनिस्टर रहे अमरमणि त्रिपाठी। मधुमिता शुक्ला नाम की लड़की के साथ उनके एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर्स की बात सामने आई। कहा गया कि वह उनके बच्चे की मां बनने वाली थी इसलिए उसका मर्डर कर दिया गया। अमरमणि त्रिपाठी को अरेस्ट किया गया। अरेस्ट होने के बाद अमरमणि ने अपने सीने में दर्द की शिकायत की और उन्हें फौरन हॉस्पिटल ले जाया गया। हालांकि लाख कोशिशों के बावजूद वह सजा के शिकंजे से बच नहीं पाए।
ऐसा ही मामला उस समय सामने आया जब इंदौर का प्रख्यात भू-माफिया बॉबी झाबड़ा पुलिस गिरफ्त में आया।

कुलीनों के कुनबे में कलह

साध्वी उमा भारती को भगवा वस्त्रधारी महिला नेताओं में सबसे विवादित नाम के रूप में ही जाना जाता है। अपनी आक्रामक प्रवृति के कारण उनकी कभी किसी से लंबे समय तक नहीं बनी है। यही कारण है कि आज भी देश के सबसे दमदार नेताओं में गिने जाने के बावजुद भी उन्हें अपनों ने ही दुत्कार-सा दिया है। आज हालात यह है कि जब एक बार फिर से उमा भारती की भाजपा में वापसी की कवायद चल रही है तो उनके गृह राज्य में ही इसका विरोध शुरू हो गया है।
अंगद के पांव की तरह जमकर मप्र में शासन कर रहे दिग्विजय सिंह को 2003 के विधानसभा चुनाव में धूल चटाकर भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाने वाली साध्वी आज अपने लोगों के लिए ही भूत (बीती हुई नेत्री)हो गई हैं। भूत (डरावनी) इस लिए भी कि अब उनकी वापसी की खबर मात्र से ही उनके भाई लोग डरे हुए हैं। कभी भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री रहीं उमा भारती की घर वापसी की अटकलों ने एक बार फिर भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई के आलंबरदारों की धडकनों को बढा दिया है।
जब जब उमा भारती की भाजपा में वापसी की बयार बहती है, उमा विरोधी सर उठाकर खड़े हो जाते हैं। उमा भारती की घर वापसी का सबसे अधिक असर मध्य प्रदेश की भाजपाई राजनीति पर होने वाला है। जब उमा भारती भाजपा को कोस रहीं थीं तब उनके कलदार सिक्के राजनैतिक फिजां को भांपकर उनसे दूरी बनाने में लगे हुए थे।
लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की पहल पर जब उमा भारती की घर वापसी की बात सामने आई तब सुमित्रा महाजन, बाबू लाल गौर, कैलाश विजयवर्गीय, जयभान पवैया, सरताज सिंह आदि उमा भारती की घरवापसी की वकालत करते हुए आगे आ गए। बाकी सारे नामों पर तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ पर बाबू लाल गौर की पल्टी मारने की बात लोगों को हजम नहीं हो सकी। उमा भारती अपना ताज बाबूलाल गौर को सौंपकर गईं थीं, किन्तु बाद में गौर ने ही उमा भारती को आंखें दिखाना आरंभ कर दिया था।
लेकिन 13 जुलाई को मप्र मंत्रिमंडल की बैठक में जो कुछ हुआ उससे तो यह लगने लगा है कि भाजपा के नेता भले ही उमा को भूत(बीती हुई नेत्री) समझ रहें हो लेकिन वह

पार्टी के लिए आज भी वर्तमान हैं।
उमा भारती के बहाने शिवराज के मंत्री अपनी अपनी भड़ास तबियत से निकाल रहे हैं। कैबिनेट की बैठक में जब मंत्रियों को उमा की वापसी संबंधी कोई भी टिप्पणी न करने की हिदायत मुख्यमंत्री द्वारा दी गई तो कैलाश विजयवर्गीय ने तो मुख्यमंत्री पर ही निशाना साधते हुए कहा कि मंत्रियों के खिलाफ बड़े -बड़े समाचार छप रहे हैं और मुख्यमंत्री की तारीफ में कशीदे गढे जा रहे हैं। इसके पीछे कौन काम कर रहा है उसकी पड़ताल की जाए तो अच्छा होगा। वहीं बाबूलाल गौर तो इतने आहत थे कि उन्होंने साफ कहा कि इतने सालों के संसदीय अनुभव के बाद उन्हें संसदीय ज्ञान सिखाया जाएगा? गौर का शिवराज से प्रश्न था कि क्या वे सरकार के बंधुआ हैं? क्या उन्हें हर बात को सरकार से पूछकर ही बोलना होगा?
दरअसल कुलीनों के कुनबे में शरू हुई इस खंदक की जंग के पीछे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज का बढ़ता कद है। राजग के पीएम इन वेटिंग आडवाणी ही चाहते हैं कि उमा भारती की घर वापसी हो जाए। आडवाणी मण्डली को डर सता रहा है कि उनसे नेता प्रतिपक्ष का ताज छीनने वाली सुषमा स्वराज अगर जमकर बैटिंग करने लगीं तो आडवणी को रिटायरमेंट लेना ही अंतिम विकल्प बचेगा। आडवाणी मण्डली जानती है कि सुषमा स्वराज की काट सिर्फ और सिर्फ उमा भारती ही हो सकती हैं। इसके साथ ही साथ मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह, प्रभात झा, सुषमा स्वराज की जुगलबंदी अगर चल निकली तो फिर ये ही केंद्र स्तर पर अपने आप को बहुत ताकतवर कर लेंगे। संभवत: यही कारण है कि आडवाणी को उल जलूल बकने वाली उमा भारती को भाजपा में वापस लाने वे ही आडवाणी सबसे ज्यादा लालायित दिखाई दे रहे हैं।
लेकिन इसका क्या प्रमाण है कि भाजपा में वापसी के बाद उमा आडवाणी मंडली की ही होकर रहेंगी। निश्चित रूप से इसका उत्तर किसी के पास नहीं है,स्वयं उमा के पास भी नहीं। क्योंकि 3 मई 1959 को मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में लोधी राजपूत परिवार में जन्मी उमा भारती राजनीति में एक विवादित महिला के रूप में जानी गई हैं। उमा ने अपनी राजनैतिक यात्रा ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया के संरक्षण एवं देख रेख में शुरु की। अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने उनका प्रयोग साम्प्रदायिकता का ज़हर उगलने वाली एक फ़ायर ब्रांड नेता के रूप में किया। अपने फ़ायर ब्रांड भाषण के द्वारा साम्प्रदायिकता का ज़हर उगलने में उन्हें विशेष महारत हासिल थी। उमा भरती ने साध्वी का चोला तो ज़रूर धारण कर लिया था, परन्तु सत्ता के लिए लालायित रहने वाले अन्य नेताओं की तरह वह भी सत्ता में अपना स्थान बनाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहीं। उमा भारती ने 1984 में अपना पहला संसदीय चुनाव खजुराहो से लड़ा। परन्तु इंदिरा गांधी की हत्या के परिणामस्वरूप कांग्रेस के पक्ष में बनी लहर में उमा को भी पराजय का सामना करना पत्रडा। उसके पश्चात 1989 में वह खजुराहो सीट से विजयी हुईं। 1991, 96 तथा 98 के चुनावों में भी उमा भारती खजुराहो संसदीय सीट पर विजय पाने में सफल होती रही। 1999 का चुनाव उन्होंने भोपाल से लड़ा।
उमा भारती का राजनैतिक क़द उस समय और बढ़ गया जबकि अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में इन्हें राज्य मंत्री के रूप में मानव संसाधन मंत्रालय, पर्यटन मंत्रालय, युवा एवं खेल मामलों की मंत्री तथा कोयला मंत्री आदि के रूप में कार्य करने का अवसर मिला। 2003 के मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने उमा भारती को अपना अगुआ बनाया। इसमें मध्य प्रदेश की 231 सदस्यों की विधानसभा में भाजपा ने 166 सीटें जीतकर सदन में तीन चौथाई बहुमत प्राप्त किया। इस प्रकार उमा भारती को भाजपा ने मध्य प्रदेश की जनता के समक्ष 22वीं मुख्यमंत्री के रूप में 8 दिसंबर 2003 को पेश किया। मात्र 9 माह तक मुख्यमंत्री रहने के पश्चात कर्नाटक में साम्प्रदायिकता फैलाने तथा दंगे भड़काने के आरोप में उमा भारती के संलिप्त होने के आरोप पर इन्हें 23 अगस्त 2004 को त्यागपत्र देना पड़ा। भाजपा ने इनकी सलाह पर इनके विशेष सेहयोगी बाबू लाल गौर को मध्य प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री मनोनीत कर दिया। 29 नवम्बर 2005 को भाजपा ने बाबू लाल गौर को भी मुख्यमंत्री पद से चलता किया तथा वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को राज्य की बागडोर सौंप दी।
मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद उमा भारती अपने ऊपर लगे आरोपों से बरी हो गईं। उसके पश्चात उन्होंने मुख्यमंत्री का पद वापस पाने का भरसक प्रयास करना शुरु किया। उसके बाद घटनाक्रम कुछ इस कदर बदले रहे कि पहले उमा भाजपा से निकाली गईं फिर उन्होंने एक नए दल भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया। लेकिन उमा का वहां भी मन नहीं लगा और उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से उसे भी छोड़ दिया और उमा भारती द्वारा बनाई गई भाजश ने शैशव काल में ही दम तोड दिया। आज उमा न घर की रह गई हैं और न घाट की।