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भेड़ाघाट

Saturday, May 31, 2014

साहब का काम अच्छा नहीं तो जाएगी कुर्सी

आधे अफसरों को बदलेगी शिवराज सरकार
मुख्यमंत्री के निर्देश पर तैयार हो रही कलेक्टर और एसपी की परफारमेंस रिपोर्ट
भोपाल। प्रदेश में विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव को सफलतापूर्वक संपन्न करवा कर प्रदेश के अधिकारियों ने फील्ड का टेस्ट तो पास कर लिया है, लेकिन अब उन्हें अपने महकमे की परीक्षा भी पास करनी होगी। जिन अधिकारियों का काम अच्छा होगा उनकी ही कुर्सी बची रहेगी। मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा इनदिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा तय किए गए फॉर्मेट के आधार पर उनके काम-काज की रेटिंग कर रहे हंै। इस रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही 15 जून के बाद अधिकारियों का तबादला किया जाएगा। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री और और मुख्य सचिव ने लोकसभा की आचार संहिता के दौरान ही तैयारी कर ली थी और आचार संहिता समाप्त होने के साथ ही मई के अंतिम सप्ताह में बड़े स्तर पर प्रशासनिक सर्जरी करने जा रहे थे। इस संबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा के बीच कई दौर की चर्चा हो चुकी थी। लेकिन कई अधिकारियों के रिपोर्ट कार्ड संतोषजनक नहीं मिलने के बाद मुख्यमंत्री ने मंत्रालय में पदस्थ प्रमुख सचिव, सचिव सहित कलेक्टरों और एसपी की परफारमेंस रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग में साफ-साफ कह दिया है कि जिनकी रिपोर्ट अच्छी नहीं है वे 15 जून तक बेहतर काम करके दिखाएं।
त्रि-स्तरीय तैयार हो रही रिपोर्ट
मुख्यमंत्री ने कलेक्टरों को बदलने के लिए तीन प्रकार की सूची बनाने को कहा है। पहली सूची में पांच साल से लगातार कलेक्टरी कर रहे अफसर, दूसरी में एक जिले में दो साल से अधिक समय से पदस्थ अफसर और तीसरी सूची में उन कलेक्टरों के नाम शामिल करने को कहा है, जिन्होंने राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं, समग्र सुरक्षा अभियान जैसी हितग्राही मूलक योजनाओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि जिन कलेक्टरों ने योजनाओं के क्रियान्वयन में बेहतर काम किया है, उनसे उनके पसंद वाले जिलों के विकल्प मांगे जाएं। उन्होंने प्रमोटी आईएएस को भी उनकी कार्यक्षमता के अनुसार जिले में पदस्थ करने की बात भी कही है। चार साल से एक ही विभाग में जमे अफसरों का होगा तबादला 30 जून से विधानसभा बजट सत्र होने वाला है। इसको देखते हुए इससे पहले फेरबदल होने की संभावना है। खबर है कि चार साल से अधिक समय से एक विभाग में जमे प्रमुख सचिवों को बदला जा सकता है। चार साल से एक विभाग में पदस्थ अफसरों में राधेश्याम जुलानिया प्रमुख सचिव जल संसाधन, केके सिंह प्रमुख सचिव पीडब्ल्यूडी, रजनीश वैश्य उपाध्यक्ष एनवीडीए, बीआर नायडू प्रमुख सचिव महिला एवं बाल विकास के नाम शामिल हैं। इनके अलावा जिन प्रमुख सचिवों को बदला जा सकता है, उनमें जयदीप गोविंद मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, पीसी मीणा प्रमुख सचिव आदिम जाति कल्याण, मोहम्मद सुलेमान प्रमुख सचिव ऊर्जा एवं उद्योग, अश्विनी राय प्रमुख सचिव कार्मिक एवं वाणिज्य कर, मोहन राव प्रमुख सचिव खेल एवं युवा कल्याण, एसएन मिश्रा प्रमुख सचिव आवास एवं पर्यावरण तथा नगरीय प्रशासन और मप्र भवन आवासीय आयुक्त के पद पर पदस्थ आईसीपी केसरी को प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने की संभावना है। इसी प्रकार कई आईएएस ऐसे हैं, जिन्हें प्रमुख सचिव के पद पर पदोन्नत कर ओएसडी बनाकर सचिव पद पर पदस्थ रखा था। इनमें 1988 बैच की वीरा राणा आयुक्त हस्तशिल्प विकास, 1990 बैच की अल्का उपाध्याय सीईओ एमपीआरआरडीए, वीएस निरंजन आयुक्त उच्च शिक्षा, 1991 बैच के मनु श्रीवास्तव एमडी पवार मैनेजमेंट कंपनी जबलपुर, विश्वमोहन उपाध्याय आयुक्त पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्य कल्याण एवं अरूण तिवारी आयुक्त नर्मदा पुरम संभाग के नाम शामिल हैं।
ये कलेक्टर हो सकते हैं इधर-उधर
मुख्य सचिव द्वारा तैयार की जा रही सूची में करीब दर्जन भर जिलों के उन कलेक्टरों का भी नाम है जिनको बदलना अनिवार्य माना जा रहा है। इनमें से अच्छे काम वाले अधिकारी को किसी दूसरे जिले का कलेक्टर बनाया जाएगा या प्रमोशन देकर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इनमें इंदौर कलेक्टर आकाश त्रिपाठी, धार कलेक्टर सीबी सिंह, खरगोन कलेक्टर डॉ. नवनीत मोहन कोठारी, बड़वानी कलेक्टर शोभित जैन, बुरहानपुर कलेक्टर आशुतोष अवस्थी, उज्जैन कलेक्टर बीएम शर्मा, देवास कलेक्टर एमके अग्रवाल, आगर-मालवा कलेक्टर डीडी अग्रवाल, ग्वालियर कलेक्टर पी नरहरि, शहडोल कलेक्टर अशोक कुमार भार्गव, उमरिया कलेक्टर सुरेन्द्र उपाध्याय, छतरपुर कलेक्टर डॉ. मसूद अख्तर, भोपाल कलेक्टर निशांत बरबड़े, सीहोर कलेक्टर कवीन्द्र कियावत, राजगढ़ कलेक्टर आनंद शर्मा, विदिशा कलेक्टर एमबी ओझा, हरदा कलेक्टर रजनीश श्रीवास्तव, शिवपुरी कलेक्टर रविकांत जैन, गुना कलेक्टर संदीप यादव, मुरैना कलेक्टर नागर गोजे मदान विभीषण, श्योपुर कलेक्टर ज्ञानेश्वर बी पाटिल, रीवा कलेक्टर शिवनारायण रूपला, सीधी कलेक्टर स्वाति मीणा, सिंगरोली कलेक्टर एम सेलवेन्द्रन, सतना कलेक्टर मोहनलाल मीणा, बैतूल कलेक्टर राजेश प्रसाद मिश्रा एवं कटनी कलेक्टर अशोक कुमार सिंह के नाम शामिल हैं।
प्रमोटी फिर होंगे पावरफुल
जून का महीना प्रशासनिक सर्जरी के लिहाज से बहुत अहम रहने वाला है। प्रदेश में प्रशासनिक अफसरों के ऊपर से शुरू हुए तबादलों का असर, नीचे तक होगा। प्रशासनिक फेरबदल की जद में अपर कलेक्टर, कुछ डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार भी आने वाले हैं। यह सारी उठापटक 15 जून के आसपास होने की संभावना है। सरकार इस सर्जरी में भी कई महत्वपूर्ण जिलों की कमान प्रमोटी आईएएस को सौंप सकती है। जिसमें भोपाल,इंदौर,उज्जैन,ग्वालियर जैसे जिले भी शामिल हैं। हालांकि इन जिलों कलेक्टर के लिए इस बार पदस्थापना डायरेक्ट-प्रमोटी आईएएस अफसरों में उलझती नजर आ रही है। जिलों की पदस्थापना के मामले में अपनी स्थिति मजबूत कर चुके प्रमोटी आईएएस अफसरों की निगाहें अब इन जिलों पर हैं, वहीं मंत्रालय में निर्णायक भूमिका निभाने वाले अफसर इस पद को डायरेक्ट आईएएस के पाले में ही रखना चाहते हैं। इंदौर कलेक्टर बनने के इच्छुक अफसरों की सूची में पी. नरहरि व विवेक पोरवाल के बाद अब प्रमोटी आईएएस सीबी सिंह कवींद्र कियावत का नाम भी जुड़ गया है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान 15 जून के बाद कलेक्टरों की पदस्थापना में बदलाव की बात कह चुके हैं। इसके पहले इस सूची में कुछ और नाम बढ़ सकते हैं। प्रमोटी अफसरों की लॉबी इन दिनों पावरफुल है। इसी का नतीजा है कि पिछले पांच साल में इन अफसरों ने जिलों में पदस्थापना के रिकॉर्ड तोड़ दिए। इसी दौर में कई बड़े जिलों की कमान भी प्रमोटी अफसरों को मिली।
एक दर्जन आईपीएस के होंगे तबादले!
राज्य सरकार आईएएस के साथ ही आईपीएस अफसरों के तबादलों में भी आईएएस पदस्थापना वाला फार्मूला अपनाएगी। 15 जून के बाद एक दर्जन से ज्यादा पुलिस अधीक्षकों का तबादला होना लगभग तय है। भोपाल जिले के पुलिस अधीक्षकों को भी बदले जाने की सुगबुगाहट तेज हो गई है। उधर तबादला नहीं चाहने वाले अधिकारी भी इन दिनों सक्रिय हो गए है। मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है कि जिन पुलिस अधीक्षकों ने पिछले दिनों अच्छा काम नहीं किया उनका तबादला किया जाएगा। मुख्यमंत्री के इस निर्देश के बाद पुलिस अधीक्षकों में हड़कंप मच गया है। वे अपना काम सुधारने के प्रयास में लग गए है। वहीं पुलिस मुख्यालय ने इन अधिकारियों के काम-काज का ब्यौरा एकत्रित करना शुरू कर दिया है। इस बार जिलों की कमान में नान आईपीएस अधिकारियों को फिर से मौका मिल सकता है। भोपाल जिला मुख्यालय के एसपी शशिकांत शुक्ला को किसी जिले की कमान सौंपी जा सकती है। या फिर उन्हें भोपाल में मैदानी पदस्थापना दी जा सकती है। जबकि एसपी ट्रैफिक टी.अमोंग्ला अय्यर का भी तबादला किया जा सकता है। उनके बैच तक के कुछ अन्य अधिकारियों को भी जिले की कमान सौंपी जा सकती है। इनके अलावा सतना और झाबुआ में एसपी का पद खाली है। सतना में केसी जैन बतौर एसएसपी पदस्थ है, जबकि झाबुआ में एसपी सिंह एसएसपी हैं। दोनों का तबादला तय है। दोनों जिलों में एसपी की नियुक्ति की जाएगी। 2001 बैच के ग्वालियर एसपी प्रमोद वर्मा, बड़वानी एसपी जेएस कुशवाह का तबादला हो सकता है। दोनों अधिकारी इस साल डीआईजी बनने वाले हैं। इनके अलावा सिंगरौली एसपी डी. कल्याण चक्रवर्ती, टीकमगढ़ एसपी अमित सिंह, मुरैना एसपी इरशाद वली, भिंड एसपी अशीष, खंडवा एसपी मनोज शर्मा, डिंडौरी एसपी आरके चौबे, धार एसपी बीएस चौहान, होशंगाबाद एसपी आईपी कुलश्रेष्ठ और छिंदवाड़ा एसपी पुरुषोत्तम शर्मा का तबादला भी हो सकता है।
दिल्ली की राह पकडऩे को तैयार दर्जन भर आईएएस
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही कई अफसर दिल्ली की राह पकडऩे की तैयारी कर रहे हैं। करीब एक दर्जन से ज्यादा आईएएस व आईपीएस अफसरों ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए पहले से ही आवेदन कर रखा है,लेकिन राज्य सरकार इन्हें छोडऩे को तैयार नहीं है। वर्तमान में केंद्र सरकार में प्रदेश के लगभग चार दर्जन आईएएस प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ हैं। इसके साथ ही केंद्र में जाने के इच्छुक अफसरों में एसीएस स्कूल शिक्षा एसआर मोहंती, लंबे समय से इंतजार कर रहे आशीष उपाध्याय, जीएडी के कार्मिक प्रमुख सचिव अश्वनी कुमार राय, अशोक बर्णवाल आदि अफसरों के भी नाम शामिल हैं। वैसे आशीष उपाध्याय का नाम प्रवीण गर्ग, एसपीएस परिहार, नीरज मंडलोई और पंकज राग के पहले से चल रहा है, लेकिन राज्य सरकार उन्हें केंद्र में भेजने तैयार नहीं है। क्योंकि एक बार केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाने के बाद मध्यप्रदेश लौटने में आईएएस अफसर की रूचि नहीं रहती। पिछले कई वर्षों में केंद्र में गए अंशु वैश्य, उदय कुमार वर्मा, सुमित बोस, ओपी रावत, डीआरएस चौधरी तथा पदमवीर सिंह आदि प्रतिनियुक्ति से ही रिटायर हो गए। वैसे श्रीमति वैश्य और उदय कुमार वर्मा को एक साल से ऊपर हो गया है, जबकि प्रशासनिक अकादमी मसूरी में पदस्थ रहे पदमवीर सिंह 28 फरवरी और सुमित बोस 30 मार्च को रिटायर हुए हैं, जबकि केंद्र सरकार में सचिव के रूप में पदस्थ स्वर्ण माला रावला 11 अक्टूबर 2006 से कार्यरत हैं और इनकी मप्र में वापसी जल्दी होने की संभावना है। इसी बीच राष्ट्रपति भवन और फिर जद्दा में काउंसिल जनरल के रूप में पदस्थ रहे 96 बैच के मप्र कैडर के आईएएस फैज अहमद किदवई ने जीएडी में अपनी ज्वाइनिंग दे दी है।
केंद्र में पदस्थ आईएएस
इस समय केंद्र में प्रदेश के करीब 41 आईएएस पदस्थ हैं। इनमें विश्वपति त्रिवेदी, डॉ राजन एस कटोच, आर रामानुज, विमल जुल्का, स्वर्ण माला रावला, पीडी मीना, अमिता शर्मा, प्रवेश शर्मा, जेएस माथुर, राघवचंद्रा, स्नेहलता श्रीवास्तव, स्नेहलता कुमार, विजया शुक्ला शर्मा, आलोक श्रीवास्तव, रश्मि शुक्ला शर्मा, एम गोपाल रेड्डी, दिलीप के सामंतराय, इकबाल सिंह बैस, अनिल श्रीवास्तव, अनिल कुमार जैन, प्रमोद कुमार दास, मनोज झालानी, गौरी सिंह, एसपीएस परिहार, प्रवीण गर्ग, शैलेंद्र सिंह, संजय बंदोपाध्याय, अनुराग जैन, मलय श्रीवास्तव, पंकज राग, मनोज गोविल,दीप्ति गौर मुखर्जी, पल्लवी जैन गोविल, ई रमेश कुमार, सचिन सिंहा, केरोलिन खोंगवार, निकुंज श्रीवास्तव, नीरज मंडलोई, डॉ पवन शर्मा, जॉन किग्सली एआर, सोनाली बायंणकर आदि के नाम शामिल हैं।
दो दर्जन आईपीएस-आईएफएस भी केंद्र में
केंद्र में मप्र के दो दर्जन आईपीएस पदस्थ हैं। वहीं आईएफएस की संख्या इस साल बढ़कर 20 पहुंच गई है। वर्तमान में आईपीएस कैडर के यशोवर्धन आजाद, एसए इब्राहिम, डॉ. आनंद कुमार, श्रीमती राना मित्रा, वीके जौहरी, आलोक कुमार पटेरिया, संजीव सिंह, मुकेश कुमार जैन, सुशोवन बेनर्जी, एसके झा, आलोक रंजन, अनंत कुमार, राजा बाबू सिंह, चंचल शेखर, जयदीप प्रसाद, योगेश देशमुख, ए. साई मनोहर, एसके मिंज, अंशुमान यादव, साजिद फरीद सापू और दीपिका सूरी जैसे आईपीएस पदस्थ हैं, लेकिन पिछले दो दशक से मप्र के आईएफएस केंद्र में जाने से बचते रहे। इस साल कुछ अफसर जरूर केंद्र में गए हैं, लेकिन जो भी अफसर एक बार चला जाता है, फिर दिल्ली से लौटने का नाम नहीं लेता। इनमें सबसे ज्यादा समय से डॉ. राजेश गोपाल 2007 से पदस्थ हैं। इसके बाद अन्य अफसरों ने केंद्र में जाना प्रारंभ किया है।
आईएफएस केंद्र में हैं डॉ. राजेश गोपाल डायरेक्टर टाइगर प्रोजेक्ट, डॉ. शिवेंदु श्रीवास्तव रीजनल डायरेक्टर, बीएमएस राठौर संयुक्त सचिव, अनिल के उपाध्याय, राकेश भूषण सिन्हा संयुक्त सचिव कृषि मंत्रालय, असीम श्रीवास्तव वाइल्ड लाइफ, डॉ. धर्मेंद्र वर्मा डायरेक्टर फारेस्ट एजुकेशन, अमिताभ अग्निहोत्री, हिम्मत सिंह नेगी, विजय एन. अंबाडे, श्रीमती संजुक्ता मुदगल, चरणजीत सिंह ग्रामीण विकास मंत्रालय, डॉ. रेनु सिंह एडीजी अकादमी देहरादून, संजय मजूमदार ग्रामीण विकास मंत्रालय में वाटर रिसोर्स का काम देख रहे हैं, जबकि डायरेक्टर एनीमल के रूप में शिवप्रसाद शर्मा, वैज्ञानिक के रूप में शुभाराजन सेन, सीएफ देहरादून के रूप में श्रीमती कंचन देवी, एडीजी आईसीएफआर देहरादून के पद पर पंकज अग्रवाल, डायरेक्टर पंचायती राज के पद पर शशि मलिक और मप्र भवन में अतिरिक्त कमिश्नर के रूप में प्रकाश उन्हाले पदस्थ हैं।
बिगड़ा कैडर मैनजमेंट वैसे प्रदेश के आईएएस अफसरों का कैडर मैनेजमेंट पहले से ही बिगड़ा हुआ है। प्रमोशन के चलते उच्च स्तर के लगातार पद बढ़वाए जाते रहे हैं। एक समय सीएस वेतनमान के तीन ही पद स्वीकृत थे, लेकिन वर्तमान में 6 हो गए, प्रमुख सचिव के 9 पदों से बढ़कर 23 हो चुके हैं और इन पर 42 अधिकारी पदस्थ है। इसी तरह सचिव, विभागाध्यक्ष तथा एमडी के 2 पद स्वीकृत होने के विपरीत 45 से ज्यादा आईएएस पदस्थ हैं, जबकि जिलों की संख्या 52 होने पर भी जूनियर आईएएस जिप सीईओ के मात्र 22 पद स्वीकृत हैं और इन पर भी अधिकारी पदस्थ नहीं है।
एनवीडीए के उपाध्यक्ष का पद पिछले दो साल से खाली एनवीडीए के उपाध्यक्ष का पद पिछले दो साल से खाली है और पीएस स्तर के अफसर को प्रभारी उपाध्यक्ष बनाकर काम चलाया जा रहा है। यही स्थिति व्यापमं के अध्यक्ष की है, यह पद भी सीनियरटी के कारण सीएस वेतनमान का स्वीकृत है, मगर वर्तमान में अध्यक्ष प्रमुख सचिव स्तर के अफसर को बना रखा है, जबकि इसके विपरीत सरकार ने नान कैडर पदों पर आईएएस अफसरों की भरमार कर रखी है। प्रदेश में मुख्य सचिव वेतनमान के कैडर में केंद्र सरकार से छह पद स्वीकृत हैं। साथ ही नान कैडर के छह पदों पर भी प्रमोशन दिया जा सकता है, लेकिन सरकार कैडर के पद खाली रख नान कैडर पदों पर अफसरों को पदस्थ करने में जुटी हुई है। सीएस वेतनमान में मुख्य सचिव के अलावा अध्यक्ष राजस्व मंडल, महानिदेशक प्रशासन अकादमी, अध्यक्ष माध्यमिक शिक्षा मंडल, अध्यक्ष व्यावसायिक परीक्षा मंडल तथा उपाध्यक्ष नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण का पद शामिल है, परंतु जब से तत्कालीन उपाध्यक्ष ओपी रावत केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गए हैं, तभी से उपाध्यक्ष का काम पीएस रजनीश वैश को प्रभारी बनाकर चलाया जा रहा है, जबकि रावत को केंद्र में गए दो साल से ज्यादा समय बीत गया है और वे रिटायर भी हो गए। व्यापमं के तत्कालीन अध्यक्ष डीके सामंतराय के भी केंद्र में चले जाने से पहले इसका अतिरिक्त प्रभार अध्यक्ष माशिमं अध्यक्ष देवराज बिरदी के पास रहा और अब सरकार ने पीएस वाणिज्यिकर से हटाए गए एपी श्रीवास्तव को अध्यक्ष बना दिया है। बिना कैडर के पद पर सीनियर होने के बावजूद सरकार ने एसीएस देवेंद्र सिंघई को संचालक आदिम जाति अनुसंधान बना रखा है। इसके पहले इस पद पर एसीएस प्रशांत मेहता को बनाया गया था।
यह अफसर नॉन कैडर पदों ंपर पदस्थ एसीएस के केंद्र से स्वीकृत नहीं होने के बावजूद नान कैडर पदों पर पदस्थ अफसरों में एसीएस योजना आर्थिक सांख्यिकी अजिता वाजपेयी पांडे, एसीएस उद्योग पीके दाश, एपीसी तथा एसीएस एमएम उपाध्यक्ष, एसईएस पंचायत एवं ग्रामीण विकास अरूणा शर्मा, एसीएस वित्त अजयनाथ, एसीेस स्कूल शिक्षाएसआर मोहंती, एसीेस अल्पसंख्यक तथा पिछड़ा वर्ग कल्याण, एसीेस ग्रामोद्योग एवं जनशिकायत राकेश अग्रवाल के नाम शामिल हैं।
यह अफसर कॉडर पदों पर पदस्थ मुख्य सचिव एन्टोनी डिसा अध्यक्ष राजस्व मंडल स्वदीप सिंह डीजी अकादमी आईएस दाणी अध्यक्ष माशिमं देवराज बिरदी उपाध्यक्ष एनवीडीए पीएस रजनीश वैश अध्यक्ष व्यापमं पीएस एपी श्रीवास्तव

Monday, May 26, 2014

बीड़ी पत्ते में धुआं-धुआं जिंदगी

पिछले वर्ष 244 करोड़ से अधिक का बोनस बांटने के बाद भी बदहाल हैं तेंदूपत्ता संग्रहकर्ता
भोपाल। 22 मार्च को जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मंडला जिले के घने जंगल में पटपटपरा रैयत गांव में पहुंचकर तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासी महिला श्रमिकों से मुलाकात की तो पूरे देश की नजर इस ओर गई। फिर क्या था हम भी ऐसे ही अन्य तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासियों की सुध लेने निकल पड़े। तेंदूपत्ता प्रदेश की आय का एक बड़ा स्रोत है। वर्ष 2012 में मध्य प्रदेश में तेंदूपत्ता संग्रहण के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया गया। इस वर्ष 26 लाख 6 हजार मानक बोरा तेंदुपत्ता का संग्रहण किया गया है और संग्राहकों को 98.25 करोड़ का बोनस दिया गया। वहीं वर्ष 2013 में तेंदूपत्ता संग्रहकर्ताओं को 244 करोड़ से अधिक का बोनस दिया गया। ये सरकारी आंकड़े देखकर हमें लगा की इसे संग्रहित करने वाले लोग खुब साधन संपन्न और खुशहाल होंगे। लेकिन वीरान जंगलों में जाकर पता चला कि तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासियों की जिंदगी बीड़ी पत्ते में धुआं-धुआं हो रही है। वैज्ञानिक तौर पर डायोसपायरस मेलेनोक्ज़ायलोन के नाम से पहचाने जाने वाले तेंदूपत्ता या केंदूपत्ता को बीड़ी पत्ता के नाम से भी जाना जाता है, जिसका इस्तेमाल बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है। इस पत्ते को आदिवासियों के बीच 'हरा सोनाÓ कहा जाता है लेकिन यह हरा सोना केवल बीड़ी पत्ता के व्यापारियों और अपने लिए अधिक से अधिक सुविधाएं इक_ी करने वाली सरकारी महकमे के लोगों की जिंदगी ही खुशहाल कर रही है। इस पत्ते को इक_ा करने वालों की जिंदगी तो सूखे हुए बीड़ी पत्ते की ही तरह है- बेजान। गरमी के दिनों में जब खेती के काम लगभग नहीं के बराबर रह जाते हैं तब प्रदेश के अनेक गांवों के लाखों गरीब लोग तेंदूपत्ता तोड़कर अपनी रोज-रोटी का जुगाड़ करते हैं। दिन भर की मेहनत के बाद भी पेट भरने लायक मजदूरी नहीं गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और बदहाल जिंदगी से परेशान बालाघाट, छिन्दवाड़ा, सिवनी, मंडला, डिंडौरी, बैतूल, खंडवा, होशंगाबाद, खरगौन, झाबुआ एवं जबलपुर के लाखों लोग इन दिनों तेंदूपत्ता तोडऩे के लिए निकलते हैं। प्रदेश में इन्हीं क्षेत्रों में सर्वाधिक तेंदूपत्ता होता है। दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद इन्हें एक दिन की मजदूरी से भी कम पैसा मिलता है। प्रदेश में करीब 18 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक परिवार और लगभग 35 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक हैं। हमने होशंगाबाद जिले के वनखेड़ी तहसील और बालाघाट के लालबर्रा के कुछ गांवों का दौरा किया तो पाया की वहां के आदिवासी तेंदूपत्ता संग्रह की तैयारी कर रहे हैं। ये आदिवासी पूरी तरह वनों पर ही निर्भर हैं। देश में हो रहे लोकसभा चुनाव से इन्हें कोई मतलब नहीं है। सभी की एक ही चिंता है की बरसात से पहले अधिक से अधिक पैसा कमा लें। होशंगाबाद जिले के वनखेड़ी तहसील स्थित पुरैनारंधीर गांव के साथी कपूरा ने बताया कि मई और जून के महीने की चिलचिलाती धूप में जब सब लोग अपने वातानुकुलित कमरे में बैठे आराम फरमा रहे होते हैं, उस समय इस इलाके की महिलाएं और बच्चे जंगल-जंगल भटक कर तेंदूपत्ता तोड़ रहे होते हैं। यह पत्ता ही है, जिसे बेचने के बाद उनके घरों में चुल्हा जल पाता है। वह कहते हैं कि मेरे दोनों बेटे और बहुएं काम की तलाश में आंध्रप्रदेश चले गये हैं। यहां मैं और मेरी पत्नी गांव में रहते हैं। पेट पालने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। इन दिनों तेंदूपत्ता तोड़कर हम अपना गुजारा करते हैं। तेंदूपत्ता तोडऩा इतना आसान काम नहीं है। जंगल-जंगल भटककर भूखे-प्यासे रहकर धूप में पत्ता तोड़कर लाना पड़ता है। पर परिश्रम के मुकाबले पैसा बहुत ही कम मिलता है। चंदखार गांव के एक बुजुर्ग हरिराम बताते हैं यहां सरकारी काम नहीं मिलता, किसानों के पास भी अधिक जमीन नहीं है। जो कुछ थोड़ा-बहुत है, उसमें खेती के समय परिवार के लोग ही काम कर लेते हैं। मजदूरों की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए यहां के लोग बनजात द्रव्य जैसे कि महुआ, टोल और तेंदूपत्ता का सहारा लेते हैं। फरवरी और मार्च में हम महुआ इकटृठा करके बेचते हैं और मई व जून में तेंदूपत्ता तोड़कर सरकार को बेचते हैं। इस इलाके के समाजसेवी प्रभात खरे सरकारी व्यवस्था से खफा हंै। उनका कहना है यहां के अधिकांश लोगों के पास जॉबकार्ड तो हैं पर सिर्फ दस प्रतिशत लोगों को 100 दिन का काम मिल पाया है। अगर हम पिपरिया विकासखंड के डापका गांव की बात करें तो यहां करीब 300 परिवार रहते हैं, जिनमें से नब्बे प्रतिशत भूमिहीन, कृषि मजदूर और छोटे किसान है। इनमें से पचास प्रतिशत लोगों को अभी तक जॉबकार्ड नहीं मिला है और जिनके पास कार्ड है उन्हें दो साल से कोई काम ही नहीं मिला। ऐसी हालत में ये सभी लोग इस महीने में तेंदूपत्ता न तोड़े तो क्या करें? यहां के लोगों का कहना है कि हमारा गुजारा वन उत्पादों से ही होता है। वह कहते हैं कि दुख तो इस बात का है कि मेहनत हम करते हैं और उसका फायदा किसी और को होता है। बालाघाट जिले के लालबर्रा विकासखण्ड के ग्राम बिरसोला के 55 वर्षीय भंवरदास एक किसान हैं, जिनके पास एक एकड़ जमीन है। सिंचाई की सुविधा न होने के कारण और बारिश की कमी की वजह से पिछले दो सालों से इनकी फसल अच्छी नहीं हो रही है। जो कुछ जमीन से मिलता है उसमें इनके दस सदस्यों का परिवार मुश्किल से गुजारा करता है। फरवरी और मार्च में जंगल से महुआ इकटृठा करके 3 हजार और मई तथा जून में तेंदूपत्ता तोड़कर 2500 से 4000 रुपए तक कमा लेते हैं। वे कहते हैं मेरे दो बेटों ने पिछले साल मनरेगा में काम किया था पर आठ महीने बाद उनकी मजदूरी मिल पाई। प्रदेश में तेंदूपत्ता एक लाभदायक व्यवसाय है। देश में सर्वाधिक तेंदूपत्ता उत्पादन मध्यप्रदेश ही होता है। तेंदूपत्ता संग्रहण में सरकार का निवेश न के बराबर है। तेंदूपत्ता का व्यापार लाखों श्रम दिवस पैदा करता है। इस तेंदूपत्ते के व्यापार में सबसे ज्यादा गांव की महिला और बच्चों की भागीदारी रहती है। फरवरी और मार्च में तेंदूपत्ता के पौधों की कटिंग का काम होता है और मई तथा जून में गांव के लोगों को तेंदूपत्ता तोडऩे के लिए कहा जाता है। ये कार्य राज्य के वन विभाग की देखरेख में चलता है। पहले महिलाएं पत्ता तोड़ कर घर लाती हैं, फिर पत्तों का गट्ठा बनाती है। प्रोसेस एरिया में 20 पत्ते का एक गट्ठा बनता है जबकि फाल एरिया में 40 पत्ते का। प्रोसेस एरिया में एक गट्ठा का मूल्य 35 पैसे है जबकि फाल एरिया में 70 पैसे यानि एक पत्ते का मूल्य दो पैसे से भी कम होता है। महिलाओं के कंधे पर टिका करोड़ों का व्यापार प्रदेश में करोड़ों रूपए के तेंदूपत्ता का व्यापार लाखों महिलाओं के कंधे पर टिका हुआ है,पर फिर भी महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ है। 35 साल की ज्याति लालबर्रा विकासखण्ड के ग्राम बघेली गांव में अपने पति और दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ रहती हैं। छोटा बेटा अभी सिर्फ 11 माह का है और बड़ा बेटा दो साल का है। ज्योति ने बताया कि पिछले साल वह हर दिन सबेरे साढ़े चार बजे उठकर अपने छोटे और बेटे को गोद में लेकर पत्ता तोडऩे के लिए जंगल की ओर निकल जाती थी। कड़ी धूप में भूखे-प्यासे करीब दोपहर तक पत्ता तोडऩे के बाद घर लौटती थी। घर आकर रात का पकाया हुआ खाना अपने परिवार को खिलाकर, वह फिर से शाम पांच बजे तक इक_े किए गए पत्तों का ग_ा बनाने में लग जाती थी। उसके बाद गट्ठों को फड़ी में देकर घर लौटते-लौटते शाम हो जाती थी। घर आकर फिर से रात और दूसरे दिन दोपहर का खाना बनाती थीं। वह बताती है कि इतनी मेहनत के बाद मुझे होश नहीं रहता कि कब रात होती है कब सवेरा। क्या करें, गरीब हूं और फिर औरत हूं तो इतनी परेशानी तो हिस्से आएगी ही न? अपनी पीड़ा छिपाती हुई ज्योति बताती है कि मेहनत के मुकाबले पैसा तो बहुत कम मिलता है, सरकार चप्पल देने का वादा की थी पर दो साल के बाद एक बार चप्पल मिलती है। बड़ी दुख भरी होती है हमारी जिंदगी। बालाघाट जिले के टेकाड़ी गांव की अनुराधा चौधरी कहती है कि उनका काम बहुत कठिन है, क्योंकि उन्हें अपने काम के लिए सुबह तड़के दो-तीन बजे जागकर जंगल में जाना होता है तथा उचित तेंदूपत्ता का चयन कर उनका संग्रहण कर गड्डियां बनाकर फड़ों में देर शाम तक जमा करना पड़ता है। इस सबमें वह अपने बच्चों और परिवार का ध्यान नहीं रख पाती हैं। लेकिन यह कहानी अकेले ज्योति या अनुराधा भर की नहीं है। इस इलाके में तेंदूपत्ता संग्रहण करने वाली अधिकांश महिलाओं की हालत ऐसी ही है। ज्याति जैसों की हालत देख कर पूछने का मन करता है कि बीड़ी के हरे पत्तों जैसी चमक क्या मप्र की इन औरतों के चेहरे पर भी कभी आएगी? मौसम की मार...पत्ते हुए दागदार प्रदेश में तेंदूपत्ता की क्वालिटी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है। इस बार मार्च में हुई बारिश और ओलावृष्टि का असर तेंदूपत्ता पर दिखने लगा है। तेंदूपत्ता फसल के मुख्य उत्पादन वाले क्षेत्रों में से बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, बैतूल, खंडवा, छिन्दवाड़ा, सिवनी,होशंगाबाद के जंगलों में पत्तों पर मौसम की मार देखी जा सकता है। गत वर्ष छिन्दवाड़ा, सिवनी एवं जबलपुर में अप्रैल माह में मौसम खराबी के कारण पत्ते लाल और दागी निकले थे। मौसम का प्रभाव मई माह में शुरू हो रहे तेंदूपत्ता के तुड़ाई के काम को प्रभावित कर सकता है। इसके लिए वन विभाग द्वारा सभी तैयारियां की जा चुकी हैं। बस इंतजार है तो पत्तों के ठोस होने का। यदि मौसम अनुकूल रहा तो इस वर्ष तेंदूपत्ता तुड़ाई का काम मई के प्रथम सप्ताह से ही शुरू होने की संभावना जताई जा रही है। यदि मौसम की बेरूखी आने वाले महीने में बनी रही तो शायद तेंदूपत्ता तुड़ाई का काम प्रभावित भी हो सकता है। प्रदेश की सभी वन उपज सहकारी समितियों की अग्रिम बिक्री नीलामी प्रक्रिया भोपाल में जनवरी से शुरू होकर फरवरी माह तक पूरी कर ली गई है। जिन समितियों के पत्ते की क्वालिटी पिछले साल अच्छी नहीं थी उनकी नीलामी नहीं हो पाई। संग्रहक दर निर्धारित मई महीने से तेंदूपत्ता तोड़ाई का काम शुरू होने की संभावना के साथ ही इसके दरों का भी निर्धारण किया जा चुका है। 2014 के लिए तेंदूपत्ता संग्रहक दर न्यूनतम 950 रुपए से लेकर अधिकतम 1600 रुपए प्रति मानक बोरा ( एक मानक बोरे में 50-50 पत्ते की 1000 गड्डियां होती हैं।) निर्धारित किया गया है। वहीं 2013 में भी 950 रुपए प्रति मानक बोरा रखा गया था। मध्यप्रदेश में वर्ष 2013 में 26 लाख 6 हजार मानक बोरा तेंदूपत्ता का रिकार्ड संग्रहण किया गया है। इसको देखते हुए प्रदेश में इस बार भी रिकार्ड मात्रा में तेंदूपत्ता संग्र्रहण की उम्मीद की जा रही है। राज्य शासन ने 1964 में एक अधिनियम लागू कर तेंदूपत्ते के व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित किया। वनवासियों को तेंदूपत्ते के संग्रहण एवं व्यापार से और अधिक लाभ दिलाने के उद्देश्य से वर्ष 1984 में मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित का गठन किया गया। वर्ष 1988 में राज्य शासन ने तेंदूपत्ता के व्यापार में सहकारी समितियों को सम्मिलित करने का निर्णय लिया। इस उद्देश्य से एक त्रिस्तरीय सहकारी संरचना की परिकल्पना की गई। मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ मर्यादित को इस संरचना के शीर्ष पर स्थापित किया गया। प्राथमिक स्तर पर प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियां गठित की गई। द्वितीय स्तर पर जिला वनोपज सहकारी संघ गठित किए गए। वास्तविक संग्राहकों की प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों द्वारा तेंदूपत्ता का संग्रहण किया जाता है। इसके लिए राज्य में 15,000 से अधिक संग्रहण केन्द्र स्थापित किए जाते हैं। संग्रहण का कार्य मौसम पर आधारित होता है और यह लगभग 6 सप्ताह तक चलता है। जिले की भौगोलिक स्थिति के आधार पर संग्रहणकाल अप्रैल के मध्य से मई के मध्य तक किसी भी समय प्रारंभ होता है। संग्रहण का कार्य मानसून के आगमन से 10 से 15 दिवस पूर्व बन्द कर दिया जाता है ताकि संग्रहित पत्तों को उपचारण एवं बोरों में भरकर सुरक्षित रूप से गोदामों तक परिवहन किया जा सकें। 'मालिकÓ नहीं बने तेंदूपत्ता मजदूर..! 1988 में मध्यप्रदेश की तीसरी बार कमान संभालने के बाद अर्जुन सिंह ने तेंदूपत्ता संग्राहकों को सक्षम बनाने के अभियान की घोषणा की थी। उन्होंने साफ कहा था कि अगली बार तेंदूपत्ता नीति में तब्दीली कर दी जाएगी ,बिचोलियों को जंगल में घुसने नहीं दिया जाएगा। उनके बाद की सरकार ने तेंदूपत्ता नीति में तब्दीली कर दी। मजदूरों को बोनस दिया जाने लगा। वर्तमान भाजपा सरकार ने तो इनके उत्थान के लिए रिकार्ड तोड़ योजनाओं की घोषणा के साथ ही बोनस भी जमकर बांटा। लेकिन आज भी स्थिति यह है कि तेन्दूपत्ता संग्रहण करने वालों के घर में मुश्किल से साल भर का खाना मिल पाएगा। ऐसे में तेंदूपत्ता जमा करने वाला मजदूर मालिक कैसे बन पाएगा। ये विचारणीय है। तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम बमुश्किल तीस-चालीस दिन होता है। इतने कम दिन के काम बाद इनको दूजे काम की तलाश करनी होती है। इन सबके बीच एक अच्छी बात यह है कि तेंदूपत्ता संग्रहण कीयोजना में सम्मिलित किसी भी संग्राहक की सामान्य मृत्यु होने पर उनके नामांकित व्यक्ति को 3500 रूपए की राशि दने का प्रावधान है। इसके अलावा दुर्घटना के कारण आंशिक विकलंगता के प्रकरण में 12500 रूपए और दुर्घटना में पूर्ण विकलंगता या मृत्यु होने पर 25000 रूपए देने का प्रावधान है। लेकिन इन योजनाओं का लाभ इन मजदूरों को मिल पाता है या नहीं यह भी खोज का विषय है। क्योकि अधिकांश मजदूरों को इन योजनाओं की जानकारी ही नहीं है। बोनस की रकम मजदूर तक नहीं पहुंचती प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2012 में संग्राहकों को 98.25 करोड़ तथा वर्ष 2013 में 244 करोड़ से अधिक का बोनस दिया गया। लेकिन विसंगति यह की प्रदेश में इस काम में लगे करीब 18 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों के लगभग 35 लाख मजदूरों में से अधिकांश को इसकी जानकारी ही नहीं है। दरअसल,जो मजदूर तेंदूपत्ता संग्रहण करते हंै,वे अशिक्षित हैं और उनको 'बोनसÓ की समझ नहीं है। पत्ता खरीदी के समय कई का नाम नहीं भरा जाता,उनके बदले परिचितों,रिश्तेदारों के नाम से खरीदी बताई जाती है। बोनस हक़दार तक पहुंचा, इसकी जांच ईमानदारी से होती रहनी चाहिए! पता लगाना होगा जिन समितियों के माध्यम बोनस दिया गया उनके सदस्य सही में कितने हैं। डेढ़ माह तक बंद रहेगी मनरेगा केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण बाशिंदों को रोजगार मुहैया कराने वाली मनरेगा आगामी एक मई से पन्द्रह जून तक पूरे डेढ़ महीने तक बंद कर दी जाएगी। जिससे इस योजना के तहत कराये जाने वाले विकास कार्यों पर ग्रहण लग जाएगा। लघु वनोपज संघ ने राज्य शासन को प्रस्ताव भेजकर मनेरगा के तहत होने वाले कार्य स्थगित रखने का आग्रह किया है। ऐसा इसलिए किया गया जिससे कि तेंदूपत्ता संग्रहण में किसी भी तरह का व्यवधान न हो। लघु वनोपज संघ ने राज्य के सभी कलेक्टरों को मनरेगा के कार्यों को बंद रखने की हिदायत दी है। उल्लेखनीय है कि मनरेगा योजना के कार्यों में निरंतरता बनी रहने से पिछले साल ग्रामीण क्षेत्रों से तेदूपत्ता संग्रहण के लिए मजदूर ढूंढ़े नहीं मिल रहे थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि बीते वर्ष तेंदूपत्ता का संग्रहण अपेक्षा से कम हुआ। जिसके चलते लघु वनोपज संघ इस बार गंभीर स्थिति में है। संघ ने तेंदूपत्ता संग्रहण को बढ़ाने के उद्देशय से पहले की तुलना में मजदूरी को भी बढ़ा दिया गया है।

कॉर्पोरेट वल्र्ड का हाथ थाम सकती हैं स्मिता गाटे

महाराष्ट्र में प्रतिनियुक्ति नहीं मिली तो ले सकती हैं स्वैच्छिक सेवानिवृति
फरवरी में केंद्र से वापस आते ही गईं लंबे अवकाश
भोपाल। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कॉर्पोरेट वल्र्ड को अट्रैक्ट करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए वे प्रदेश में कई ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन कर चुके हैं। कॉर्पोरेट वल्र्ड की नजर में मप्र की छवि बेहतर करने के इन प्रयासों के बीच तस्वीर का एक और पहलू यह है कि इसी कॉर्पोरेट वल्र्ड में प्रदेश के कई आईएएस अफसरों की काफी पूछ है। अगर पिछले दस साल का रिकार्ड देखें तो प्रदेश के करीब दो दर्जन आईएएस अफसरों ने कॉर्पोरेट वल्र्ड का हाथ थामा है। अब हमेशा अपने मन की करने वाली 1992 बैच की आईएएस स्मिता गाटे भारद्वाज(महाभारत के कृष्ण नीतीश भारद्वाज की पत्नी) पर कॉर्पोरेट वल्र्ड की कुछ नामी कंपनियां डोरे डाल रही हैं। बताया जाता है कि अगर उन्हें दोबारा महाराष्ट्र में प्रतिनियुक्ति पर नहीं भेजा जाता है तो वे स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर कॉर्पोरेट वल्र्ड का हाथ थाम सकती हैं। अगर वे ऐसा करती हैं तो पिछले 10 साल में स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने वाली मप्र की 12वीं और देश की 188 वीं आईएएस बनेंगी। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में अपनी तेजतर्रार छवि और मिलनसार व्यक्तित्व के कारण आईएएस लॉबी में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाली 1992 बैच की आईएएस और टेक्सटाइल निगम मुंबई में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ रही स्मिता गाटे भारद्वाज फरवरी में केंद्र से वापस आते ही जीएडी में अपनी ज्वाइनिंग देने के पश्चात लंबे अवकाश पर चली गई हैं। इसके लिए उन्होंने बच्चों की शिक्षा को आधार बनाया। स्मिता के इस कदम से पहले से आईएएस अधिकारियों की कमी के कारण परेशान मप्र सरकार की चिंता और बढ़ गई है। ऐसे में अब स्मिता के कॉर्पोरेट वल्र्ड के संपर्क में आने से राजनीतिक वीथिकाओं में हलचल मची हुई है। 2010 की सबसे चर्चित आईएएस मप्र कैडर की आईएएस अधिकारी स्मिता भारद्वाज वैसे तो अपने शुरूआती समय से ही चर्चा में रही हैं। लेकिन वह सबसे अधिक चर्चा में उस समय आई जब केंद्र सरकार के एक फैसले के कारण उन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधीकरण (कैट) में अपील की। दरअसल,उनको 2 फरवरी 2009 में काउंसिल की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में मुंबई में पांच साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ किया गया था। इसके कुछ माह बाद ही उन्होंने वहां पाई गई कुछ अनियमितताओं की जांच करवाने की मांग की। इस पर कपड़ा मंत्रालय ने 24 मई 2010 को उनकी प्रतिनियुक्ति समाप्त कर उन्हें वापस मूल कैडर में भेजने के आदेश जारी किए। इसके खिलाफ स्मिता भारद्वाज कैट चली गईं। कैट में केंद्र सरकार ने आश्चर्यजनक रूप से तर्क दिया कि मध्यप्रदेश की यह अफसर निजी कंपनी में प्रतिनियुक्ति पर गई हैं। केंद्र सरकार के दो वरिष्ठ आईएएस अफसरों-रीटा मेनन एवं शांतनु कंसल (कपड़ा मंत्रालय एवं कार्मिक प्रशासन मंत्रालय के तात्कालिन सचिव) के इस तर्क पर कि स्मिता भारद्वाज केंद्र सरकार की प्रतिनियुक्ति पर नहीं हैं, प्रशासनिक हल्कों में आश्चर्य व्यक्त किया गया। कैट के न्यायाधीश जोगसिंह और सुधाकर मिश्रा की दो सदस्यीय पीठ ने कपड़ा मंत्रालय के उक्त आदेश को अवैध, असंवैधानिक और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ मानकर रद्द कर दिया। अपने 44 पेज के आदेश में कैट ने भारत सरकार की इस दलील पर आश्चर्य जताया कि स्मिता केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर नहीं थीं। कैट ने कहा कि स्मिता भारद्वाज प्रतिनियुक्ति गाइडलाइंस के पैरा 6 (1) (1.2.1) के अनुसार एसआरटीईपीसी में मध्यप्रदेश से प्रतिनियुक्ति पर भेजी गई थी। वे प्रतिनियुक्ति के लिए पात्र हैं और इसलिए उन्हें कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा कैडर क्लियरेंस उचित था। स्मिता भारद्वाज के पक्ष में कैट का फैसला आया। कैट मुंबई ने सिंथेटिक एंड रैयान टेक्सटाइल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एसआरटीईपीसी) की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर स्मिता भारद्वाज (घाटे) की प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने के कपड़ा मंत्रालय के आदेश को खारिज कर दिया। कैट ने उन्हें तत्काल प्रभाव से उसी पद पर बहाल करने के निर्देश दिए। ज्ञातव्य है कि इस कानूनी लड़ाई के चलते स्मिता भारद्वाज करीब छह माह अवैतनिक अवकाश पर रहीं थीं। मप्र सरकार के असहयोग से खफा 2 फरवरी 2009 से 1 फरवरी 2014 तक की अपनी पांच साल की प्रतिनियुक्ति अवधि से वापस मप्र आई स्मिता गाटे भारद्वाज की छुट्टी पर जाने के कारणों को खोजा जाने लगा है। बताया जा रहा है कि मूलत: महाराष्ट्र की निवासी स्मिता को जब कपड़ा मंत्रालय ने 24 मई 2010 को उनकी प्रतिनियुक्ति समाप्त कर उन्हें वापस मूल कैडर में भेजने के आदेश जारी किए थे तो न मप्र की सरकार और न ही यहां के आईएएस अधिकारियों ने उनका सहयोग किया था। अपने कैडर वाले राज्य से सहयोग न मिलने के बाद से ही वह यहां के शासन-प्रशासन से खफा हैं। दूसरा कारण यह है कि अपनी तेजतर्रार छवि के कारण वह पहले से ही यहां के वरिष्ठ नौकरशाहों की आंख की किरकिरी बनी हुई हैं। जब वह सीहोर कलेक्टर थीं तो उनके खिलाफ कई नौकरशाहों ने मोर्चा खोल रखा था और उनके खिलाफ कई अफवाहों को हवा दिया गया थ। तीसरा कारण यह बताया जा रहा है कि जिस तरह उनके पति को मप्र की राजनीति से दरकिनार कर दिया गया उससे नीतीश और वे दोनों दोबारा मप्र में नहीं रहना चाहते हैं। 10 साल में 187 पहुंचे कॉर्पोरेट वल्र्ड पिछले दस साल में देश के करीब 187 आईएएस अफसरों ने कॉर्पोरेट वल्र्ड में ज्वाइन करने के लिए केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से अनुमति मांगी। इनमें कर्नाटक और महाराष्ट्र के 18-18,गुजरात के 15, उत्तर प्रदेश व बिहार के 12 और मध्य प्रदेश व तमिलनाडू के 11, आंध्र प्रदेश कैडर से 9,उत्तराखंड कैडर से 7, पश्चिम बंगाल कैडर से 8, राजस्थान कैडर से 4, पंजाब से 3, छत्तीसगढ़ कैडर से 6, हिमाचल प्रदेश कैडर से 6, हरियाणा कैडर से 4, केरल कैडर से 6, जम्मू कश्मीर कैडर से एक आईएसएस अधिकारी शामिल हैं। इन आंकड़ों में उन अफसरों के नाम नहीं हैं, जिन्होंने अपने रिटायरमेंट के दो साल बाद कारपोरेट वल्र्ड ज्वाइन किया है। एक आईएएस अधिकारी के प्रशिक्षण में सरकार के चार लाख रुपए खर्च होते हैं। लेकिन कुछ आईएएस अधिकारी बहुराष्ट्रीय एवं कंसल्टेंसी कंपनियों में अधिक वेतन और उच्च पद की चाहत में स्वैच्छिक सेवानिवृति ले रहे हैं।

न राहत राशि मिली...न मृत्यु प्रमाण पत्र

प्रदेश के लापता 1032 लोगों में से सरकार ने 542 को ही माना मृत
करीब एक साल बाद भी सरकार ने नहीं ली उत्तराखंड में मरे लोगों के परिजनों की सुध
भोपाल। 2 मई को उत्तराखंड में केदारनाथ धाम के कपाट खुलते ही एक बार फिर से उन लोगों के घाव हरे हो गए जिनके परिजन 16 जून 2013 को वहां आई प्राकृतिक आपदा में कालकवलित हो गए। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि आपदा के दौरान बच गए श्रद्धालुओं को वहां से निकाल कर लाने वाली प्रदेश सरकार ने उसके बाद किसी की सुध नहीं ली। आलम यह है कि प्रदेश के लापता 1032 यात्रियों में से सरकार ने केवल 542 को ही मृत माना है। सरकार लगभग एक साल बाद भी 490 लोगों का पता नहीं लगा सकी। उस पर हालात यह है कि इनमें से अधिकांश के परिजनों को न तो राहत राशि(एक मृतक पर सात लाख रूपए ) पहुंची है और न ही किसी को मृत्यु प्रमाण पत्र। सरकार के पास वास्तविक आंकड़े नहीं उत्तराखंड के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल केदारनाथ एवं बद्रीनाथ में आई प्राकृतिक आपदा में प्रदेश के लापता लोगों की संख्या को लेकर राज्य सरकार के पास वास्तविक आंकड़े नहीं हैं। एक अनुमान के अनुसार,आपदा में प्रदेश के दो हजार से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी,लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई। उसके बाद प्रदेश के लापता यात्रियों की संख्या जुटाने के लिए राज्य शासन ने जिला कलेक्टरों के माध्यम से सर्वे कराया। इसके लिए शासन ने 15 जुलाई 2013 की समय सीमा निर्धारित की थी। इस संबंध में उप राहत आयुक्त पुष्पा कुलैश ने बताया कि जिला कलेक्टरों द्वारा भेजी गई लापता लोगों की सूची के आधार पर उत्तराखंड सरकार को 542 यात्रियों के नाम भेजे गए हैं, जो उत्तराखंड में तीर्थयात्रा के दौरान प्राकृतिक आपदा के बाद से लापता हैं। इसके उलट उत्तराखंड सरकार ने लापता यात्रियों के संबंध में जो जानकारी उजागर की, उसके मुताबिक उत्तरप्रदेश के बाद मप्र से सर्वाधित यात्री लापता हुए हैं। उत्तराखंड सरकार के अनुसार मप्र के 1032 यात्री उस आपदा में लापता हुए , जिसमें 551 पुरूष यात्री, 431 महिला यात्री एवं 50 बच्चे भी लापताओं की सूची में है। हालांकि उत्तराखंड शासन द्वारा बताई गई मप्र के यात्रियों की संख्या को लेकर मप्र के अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं। हालांकि उत्तराखंड त्रासदी के महीने भर बाद तात्कालीन स्वास्थ्य संचालक एवं अपर आयुक्त राहत (उत्तराखंड त्रासदी) डॉ. संजय गोयल ने इसकी पुष्टि की थी कि प्रदेश के 1032 लोग लापाता हंै। वहीं राज्य सरकार ने जब हाईकोर्ट में एक याचिका की सुनवाई के दौरान जो जानकारी दी है, उसमें लापता लोगों की संख्या 542 बताई, जिनमें भोपाल के 25 लोग शामिल हैं। डॉ. गोयल ने बताया कि उत्तराखंड में तीर्थयात्रा पर गए लोगों में जो 15 जुलाई 2013 तक घर नहीं पहुंचे उनकी सूची, पहचान संबंधी दस्तावेजों के साथ उत्तराखंड सरकार को भेज दिया गया। यह सूची जिला कलेक्टरों को भी भेजी गई। इनमें से 542 व्यक्तियों के लापता होने की पुष्टि विभिन्न जिलों के कलेक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में की है। यानी एक बात तो स्पष्ट है कि जिस व्यक्ति के लापता होने का प्रमाण सरकार को मिला उसे की मृत माना गया। ऐसे बनाई लापता लोगों की सूची डॉ. संजय गोयल ने बताया कि लापता लोगों के परिजनों ने त्रासदी के बाद राज्य सरकार द्वारा हरिद्वार में लगाए राहत शिविर और जिला स्तर पर जो जानकारी दी, उसके आधार पर सूची तैयार की गई। इसमें 14 जुलाई तक 1032 लोगों के नाम दर्ज हुए हैं। इन सभी लोगों की गुमशुदगी हरिद्वार में पुलिस को दर्ज कराई गई। फिर सवाल उठता है कि सरकार ने किस आधार पर केवल 542 लोगों को ही उत्तराखंड आपदा में मृत माना। इस मामले में अधिकारियों का कहना है कि प्रशासन ने लापता लोगों की सूची तैयार करने के लिए उनके निकट रिश्तेदारों से शपथ पत्र व लापता का आवेदन मंगवाया था। जितने लोगों का आवेदन आया उनको ही मृत माना गया। यानी सरकार द्वारा शेष लोग लौट कर आए की नहीं और यदि नहीं आए तो वह कहां है यह जानने की कोशिश नहीं की गई। सरकार का मानना है कि जितने लोग बच गए वह अपने घर पहंच गए। नहीं पहुंचने वालों को मृत मानकर उनके परिवार को आर्थिक मदद दी जा रही है। उल्लेखनीय है कि त्राषदी में मरने वालों के परिजन को केंद्र सरकार 3 लाख, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश सरकार दो-दो लाख रूपए दे रही है। एक मृतक पर सात लाख रूपए की सहायता परिजन को मिल रही है। यानी उत्तराखंड आपदा में मृत लोगों के परिजनों को कुल 37,94,00000 रूपए बांटे जाएंगे। कईयों को अभी भी राहत राशि का इंतजार सरकार का दावा है कि राज्य शासन ने 15 जुलाई तक प्रदेश के लापता यात्रियों के परिजनों को घोषणानुसार राहत प्रदान करने के लिए 2-2 लाख रुपए की राशि जारी कर दी गई है। इस राशि का कलेक्टरों द्वारा वितरण किया गया। उत्तराखंड सरकार की ओर से 2 लाख रुपए और केंद्र सरकार की ओर से तीन लाख की राहत राशि भी लापता यात्रियों के परिजनों को दी जानी है। लेकिन अभी भी मृतकों के परिजन इस राशि के लिए भटक रहे हैं। मध्यप्रदेश के शाजापुर में उत्तराखंड त्रासदी के शिकार परिवारवालों को अभी तक राहत राशि नहीं मिली है। त्रासदी में शाजापुर के 26 लोगों की मौत हो गई थी। अरेरा कॉलोनी भोपाल के पराग श्रीवास्तव कहते हैं कि अब तक न तो मप्र सरकार से और न ही उत्तराखंड सरकार से उन्हें कोई मुआवजा मिला है। इधर, राहत आयुक्त पुष्पा कुलेश का कहना है कि मप्र और उत्तराखंड सरकार द्वारा घोषित मुआवजा राशि के चेक जिन प्रभावित परिवारों को नहीं मिले हैं, उन्हें चुनाव आचार संहिता खत्म होने के बाद दे दिए जाएंगे। अभी कई लोगों का ई अकाउंट खुलना बाकी है, जिसके जरिए राशि उनके बैंक खाते में जमा की जाएगी। दस माह बाद भी नहीं मिला मृत्यु प्रमाण पत्र राहत राशि तो छोडि़ए आज तक आपदा में मृत लोगों के परिजन को मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया है। सच्चाई ये है कि उत्तराखंड सरकार ने मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया लेकिन अब तक नहीं बांटा गया। बताया जाता है कि प्रमाण पत्र के साथ प्रदेश की शिवराज सरकार एक शोक संदेश भी देने वाली है, जिसकी वजह से वितरण अटक गया। उसको साथ देने पर आचार संहिता का उल्लंघन हो जाता। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार ने मृतकों के परिजन को सांत्वना देने के लिए शोक संदेश जारी किया है। बकायदा उसके लिए फोल्डर भी बनाया है, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का शोक संदेश भी रहेगा। जब ये फोल्डर तैयार हो गया, तब आम चुनाव के तारीख की घोषणा हो गई। आचार संहिता लागू होने से मामला लटका दिया गया। चुनाव के दौरान प्रमाण पत्र देना पड़ते तो फोल्डर व शोक संदेश ऐसे ही रखे रह जाते, अगर सारी सामग्री दी जाती तो आचार संहिता का उल्लंघन हो जाता। इसको देखते हुए अफसरों ने तय किया कि चुनाव खत्म होने के बाद उन्हें दिया जाएगा, ताकि कोई बवाल न हो। अब प्रदेश के सभी कलेक्टरों को सामग्री पहुंचा दी गई है। ये है शिवराज का संदेश जून 2013 में उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा में आप अपने परिजन को खोने के दुख से गुजरे हैं। मैं इस दुख में आपके साथ हूं। परिवार को पहुंची क्षति की पूर्ति नहीं की जा सकती है। राज्य सरकार की ओर से आपको संबल बनाए रखने के लिए दो लाख की सहायता राशि स्वीकृत कर पहले ही उपलब्ध कराई जा चुकी है। भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार से समुचित अनुग्रह राशि दिलाने का निरंतर प्रयास किया है। उत्तराखंड सरकार की ओर से आपदा में मृतक के परिजन को भेजे गए रूपए 1.50 लाख व भारत सरकार से प्राप्त रूपए दो लाख आपके जिले के कलेक्टर को भेजकर आपके खाते में जमा करा दिए हैं। इस पत्र के साथ उक्त राशि जमा कराने का विवरण व उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी किया मृत्यु प्रमाण पत्र आपकी ओर भेजा जा रहा है। राहत राशि में अंतर क्यों...? प्रदेश सरकार के अफसरों का कहना है कि लापता यात्रियों के परिजनों को घोषणानुसार राहत प्रदान करने के लिए 2-2 लाख रुपए की राशि जारी कर दी गई है। इस राशि का कलेक्टरों द्वारा वितरण किया गया। उत्तराखंड सरकार की ओर से 2 लाख रुपए और केंद्र सरकार की ओर से तीन लाख की राहत राशि भी लापता यात्रियों के परिजनों को दी जानी है। वहीं मुख्यमंत्री के शोक संदेश में कहा गया है कि उत्तराखंड सरकार की ओर से आपदा में मृतक के परिजन को भेजे गए रूपए 1.50 लाख व भारत सरकार से प्राप्त रूपए दो लाख आपके जिले के कलेक्टर को भेजकर आपके खाते में जमा करा दिए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार द्वारा कितनी राशि दी जा रही है। अभी तक नहीं आई डीएनए सैंपल रिपोर्ट मृतकों की पहचान के लिए उत्तराखंड सरकार ने 1000 शवों की डीएनए सैंपलिंग करवाई है। वहां अपने रिश्तेदारों को खोज रहे लोगों से भी डीएनए सैंपल लिए गए। उद्देश्य था मृतकों की सटीक पहचान करना। ये सारे डीएनए सैंपल हैदराबाद भेजे गए। इसके बाद इन शवों को जला दिया। लेकिन 11 माह बाद भी कोई रिपोर्ट नहीं आई है। आज भी अपनों के जिंदा होने की उम्मीद उत्तराखंड में पिछले साल 16 जून को बरपे प्रकृति के कहर का शिकार हुए लोगों के परिजनों की आंखें उस समय फिर छलछला उठीं, जब उन्होंने टीवी चैनलों पर केदारनाथ मंदिर के पट खुलने के दृश्य देखे। भोपाल से केदारनाथ धाम की यात्रा पर गए करीब डेढ़ सौ से अधिक लोग तो रास्ते खुलने के बाद वापस लौट आए थे, लेकिन इनमें 25 लोग ऐसे थे, जो आज तक नहीं लौटे। तुलसी नगर नर्मदा भवन भोपाल के पास रहने वाले अधिवक्ता उमाकांत मौर्य ने बताया कि उनके पिता रामअवध मौर्य, माता श्यामा मौर्य व जबलपुर निवासी उनके दो अन्य रिश्तेदार उत्तराखंड गए थे। उमाकांत ने बताया कि हादसे के बाद से वह अब तक तीन बार ऋषिकेश व हरिद्वार होकर आ चुके है। अब पुन: मंदिर के पट खुले हैं, तो एक बार फिर मैं अपने परिजनों का पता लगाने वहां जाऊंगा। शायद उनकी कोई निशानी ही मिल जाए। मौर्य ने बताया कि उन्हें और उनकी बहन शारदा मौर्य को अब भी अपनों के सुरक्षित लौटने की उम्मीद है। इसकी वजह इनमें से अब तक किसी का भी शव नहीं मिलना अपनों की उम्मीद जगा रहा है। अरेरा कॉलोनी भोपाल के पराग श्रीवास्तव ने 16 वर्षीय पुत्र सत्यम को उत्तराखंड में हुए हादसे में खोया है। सत्यम अपने एक रिश्तेदार सतीश वर्मा के साथ केदारनाथ गया था। वे वहां खोजबीन कर चुके हैं, लेकिन पता नहीं चला। उन्होंने कहा कि परिजनों का दिल नहीं मान रहा है कि सत्यम अब हमारे बीच नहीं है। अभी मैं पुन: उसे खोजने केदारनाथ जाऊंगा। ऐसा ही कहना है, चौबदारपुरा निवासी कमल राय और आलोक राय श्रीवास्तव का जिनके छह परिजन उत्तराखंड गए थे और अब तक नहीं लौटे हैं। राजधानी भोपाल से उत्तराखंड गए आनंद श्रीवास्तव, ऊषा किरण, विमल राय, मीनू राय, अरुणा खरे, रौनक खरे निवासी चौबदारपुरा और राम अवध मौर्य, श्यामा मौर्य, रामजग मौर्य, सीता मौर्य, सूरजा मौर्य निवासी नर्मदा भवन शिवाजी नगर तथा भीष्म सोनवानी, लक्ष्मी सोनवानी, आशीष सोनवानी, रमेश आजमानी, सरला आजमानी दुर्गेश विहार एवं अनिल कुमार ठाकुर, सोनवनी ठाकुर निवासी अरेरा कॉलोनी व करोड़ीलाल असाटी, रागिनी असाटी, चंद्रशेखर असाटी, शारदा असाटी, इंदू गुप्ता, रीतेश असाटी, पार्वती असाटी निवासी मिनाल रेसीडेंसी, सतीश वर्मा निवासी बाग मुगालिया व सत्यम श्रीवास्तव निवासी अरेरा कॉलोनी,आरके सिंह, सुमन सिंह, दीक्षा सिंह, वेदांत सिंह, नीरजा बिसारिया शिवाजी नगर आदि का आज तक कोई सुराग नहीं मिल सका। हालांकि इनके परिजनों को आज भी इनके लौटने का है इंतजार। एक साल बाद केदारनाथ का नजारा कपाट खुलने के पहले दिन केदारनाथ धाम पहुंचे श्रद्धालुओं को आपदा की वजह से बहुत सी कमियां खली। आपदा के बाद से प्रशासन और सरकार सुविधाजनक केदारनाथ यात्रा के दावे कर रहे हैं। प्रशासन ने दावा किया था कि श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी। लेकिन पहले ही दिन श्रद्धालुओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यहां न रुकने के इंतजाम हैं न खाने के। और अभी भी बफबारी हो रही है। रामबाड़ा पुल के ठीक नीचे जमा हैं अधजले शव और मलबा यहां से रामबाड़ा तक का पांच किमी का सफर शुरू होता है। मंदाकिनी नदी के किनारे-किनारे एक पगडंडी पर। बताया जाता है कि इस इलाके में सड़क बनाने के लिए पीडब्ल्यूडी ने 2200 करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं। आसपास घर, दुकानें सब नष्ट हैं। मलबा भी नहीं हटाया गया है। कभी चहल-पहल भरे इस इलाके में आज एक डरावनी खामोशी है। और रामबाड़ा पहुंचने पर सामने आता है एक खौफनाक मंजर। रामबाड़ा पुल के ठीक नीचे जमा हैं अधजले शव और मलबा। ये हाल तो मुख्य रास्ते का है। रास्ता छोड़कर ऊपर के जंगलों में झांका तो कंटीली झाडिय़ों में फंसे-कपड़े, मानव अंग गवाही दे रहे थे कि सरकार और प्रशासन ने कहीं-कुछ हाथ नहीं लगाया है। पिछले साल सेना के यहां से जाते ही मानो सब हालात पर छोड़ दिया गया। पांच फीट बर्फ होने के बावजूद भिनभिना रही हैं मक्खियां रामबाड़ा से केदारनाथ तक मार्ग दुरुस्त करने में प्रशासन ने सात किमी का सफर 12 किमी का बना दिया है। इस रास्ते में शव तो नहीं मिले लेकिन केदारनाथ पहुंचते ही दिलदहला देने वाला दृश्य है। मलबा जस का तस पड़ा है। पांच फीट बर्फ होने के बावजूद मक्खियां भिनभिना रही हैं। चारों ओर भयंकर दुर्गंध। एक चिंता और है, इतनी लाशों के सड़ते रहने से कोई बीमारी न फैलने लगे। यदि ऐसा हुआ तो यहां स्वास्थ्य सेवाओं के कोई इंतजाम नहीं हैं।

...स्मृति को सुषमा की काट बनाने की तैयारी!

भोपाल। किसी ने सच ही कहा है कि राजनीति में न तो किसी का कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही दुश्मन। समय के साथ इनके रिश्ते बदलते रहते हैं। इनदिनों कुछ ऐसा ही सुषमा स्वराज के साथ हो रहा है। अभी तक भाजपा की दमदार आवाज रही सुषमा स्वराज पर पार्टी ने सेंसर लगाना शुरू कर दिया है और अमेठी में कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी को जोरदार चुनौती देने वालीं स्मृति ईरानी का कद उनके बराबर करने की तैयारी शुरू कर दी है। बताया जाता है कि स्मृति को अमेठी में दमदारी से चुनाव लडऩे के लिए मोदी ने फोन कर उनकी तारीफ की। उन्होंने हारने की वजह भी जाननी चाही। साथ ही मोदी ने स्मृति को बड़ी जिम्मेदारी निभाने को तैयार रहने को कहा। बताया जाता है कि गुजरात से राज्यसभा सांसद स्मृति को राहुल के खिलाफ लडऩे को मोदी ने ही कहा था। ठीक उसी तरह जैसे 1999 के आम चुनाव में बेल्लारी से सोनिया के खिलाफ सुषमा को आडवाणी ने चुनाव लड़वा उनकी राष्ट्रीय छवि बनवा पार्टी में कद बढ़ा दिया था। वैसे ही मोदी ने स्मृति को अमेठी भेजा था। स्मृति को मोदी अब भाजपा में सुषमा की काट के रूप में तैयार कर रहे है। सूत्रों की मानें तो मोदी केबिनेट में स्मृति को लिया जा सकता है। किसी कारण उन्हें जगह नहीं मिली तो संगठन में अहम जिम्मेदारी जरूर मिलेगी।
भाषण में धार की समानता
सुषमा भाजपा की एकमात्र महिला नेता है जिसकी छवि राष्ट्रीय नेता की है। उनका पार्टी में दबदबा बना हुआ है। वे मोदी विरोधी मानी जाती हैं। सुषमा का कद कम करने के तहत ही स्मृति को भाजपा का महिला चेहरा बनाने की तैयारी की जा रही है। सुषमा के समान स्मृति भी अच्छी वक्ता के रूप में पहचानी जाती है। सुषमा स्वराज की भाजपा के लिए महत्वपूर्ण समझे जाने वाले लोकसभा चुनाव में नहीं के बराबर रही है, जबकि वे भाजपा की स्टार प्रचारकों में से एक हैं। दूसरी ओर योजनाबद्ध तरीके से उनके समानांतर खड़ा किया गया स्मृति ईरानी को। यह किसी से छिपा नहीं है कि सुषमा स्वराज को आडवाणी गुट का माना जाता है, इसीलिए वे कई बार नरेन्द्र मोदी का भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से विरोध करती रही हैं। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सुषमा ने रेड्डी बंधुओं को टिकट देने के नरेन्द्र मोदी के फैसले का ट्विटर पर विरोध किया था। फिलहाल सुषमा का कद पार्टी में काफी बड़ा है। पांच साल तक संसद में उन्होंने भाजपा की ओर से नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी सफलतापूर्वक निभाई है। उन्होंने विदिशा से लगातार तीसरी बार रिकार्ड मतों से जीत हासिल की है।
मोदी की खास सिपहसालार बनी इरानी
स्मृति अब मोदी की खास सिपहसालार बन गई हैं और उन्हें अमेठी से राहुल के खिलाफ लड़ाने में भी मोदी की अहम भूमिका रही है। यही नहीं आज पार्टी में भी उनकी भूमिका लगातार बढ़ रही है। पार्टी के अहम और महत्वपूर्ण मामलों में उनका दखल पार्टी के कद्दावर नेताओं जैसा हो गया है। कमोबेश स्मृति सुषमा की राह पर चल पड़ी हैं। कुछ साल पहले भाजपा में जो भूमिका सुषमा स्वराज की थी, वह अब स्मृति ले रही हैं और बड़ी तेजी से सुषमा के आगे बढऩे से पार्टी में खाली जगह को भर रही है। भाजपा में उनकी हैसियत और काबलियत का नमूना तब देखने को मिला था जब गोवा में मनोहर पाॢरकर के मुख्यमंत्री बनाने के अभियान को उन्होंने बड़े शानदार तरीके से संभाला था।
इतिहास दोहराने के लिए दिया टिकट
अमेठी से राहुल के खिलाफ स्मृति का चुनाव जीतना आसान नहीं था क्योंकि अमेठी गांधी परिवार की परम्परागत सीट है और वहां के लोग भी गांधी परिवार के भक्त हैं। उनका मानना है कि यदि गांधी परिवार का सदस्य यहां से सांसद बनेगा तो क्षेत्र का फायदा होगा। ऐसे में स्मृति का वहां से चुनाव जीतना आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने जिस तरह राहुल गांधी का जोरदार मुकाबला किया। राहुल गांधी को अमेठी में चुनौती देने वाली स्मृति को कुल तीन लाख सात सौ अड़तालिस वोट मिले, जबकि राहुल गांधी को चार लाख आठ हजार छह सौ इक्यावन वोट मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले 2009 और 2004 में राहुल गांधी ने एक तरफा जीत दर्ज की थी। पिछले आम चुनाव में उनका जीत का फर्क तीन लाख वोटों से भी अधिक था। इस बार के चुनाव में राहुल को स्मृति से कड़ी चुनौती मिली। स्मृति के कारण ही कांग्रेस पर जीत के लिए इतना दबाव था कि मतदान के दिन राहुल गांधी को खुद अमेठी आना पड़ा वहीं उनकी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका ने भी क्षेत्र का दौरा किया। इस हार से समृति के राजनीतिक कद पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वह वर्तमान में राज्यसभा की सांसद हैं और इस बात की भी पूरी संभावना है कि सरकार के साथ संगठन में भी उनका कद अब लगातार बढ़ेगा। इस लोकसभा चुनाव से स्मृति को अच्छा प्लेटफार्म मिल गया है, जो उनके कैरियर को आगे बढ़ाने में सहायक होगा।
कभी मोदी की धुर विरोधी थीं
पूर्व मिस इंडिया और 'सास भी कभी बहू थीÓ नामक धारावाहिक से सुॢखयों में आने वाली स्मृति ईरानी कभी नरेंद्र मोदी की धुर विरोधी रही हैं। ईरानी जब 'सास भी कभी बहू थीÓ में काम कर रही थीं तो उस दौरान उन्होंने धमकी दी थी कि यदि नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते तो वह आमरण अनशन शुरू करेंगी और इसकी शुरूआत वाजपेयी के जन्मदिन से करेंगी।
अडवानी ने किया था हस्तक्षेप
उनके इस मोदी विरोधी बयान से भाजपा में इतना बवाल मच गया था कि लालकृष्ण अडवानी को हस्ताक्षेप करना पड़ा था। मामले का संज्ञान लेते हुए अडवानी ने स्मृति को बुलाया और उनसे पूछा कि मोदी विरोधी बयान के पीछे उनकी क्या मंशा है? हालांकि उस समय स्मृति सक्रिय राजनीति में नहीं थीं। उन दिनों वह जिस धारावाहिक में मुख्य भूमिका में थीं वह उस दौरान घर-घर अपनी पैठ बना चुका था। लिहाजा कई जानकारों का यह भी मानना था कि स्मृति ने मोदी विरोधी बयान अपने धारावाहिक की टीआरपी बढ़ाने के लिए दिया था। तर्क कुछ भी हो लेकिन यह तय है कि गुजरात दंगों के बाद भाजपा का धर्मनिरपेक्ष धड़ा मोदी के खिलाफ हो गया था और स्मृति भी उनमें से एक थीं। लेकिन अब समय बदल गया है। जिस तरह देश की राजनीति में मोदी के नाम ने बड़ी-बड़ी पार्टियों और बड़े-बड़े दिग्गजों का सुपड़ा साफ किया है उससे अब हर राजनेता मोदी का मुरिद हो गया है।

Saturday, May 17, 2014

'मोदी पॉवरÓ मप्र में बदलेगा सत्ता समीकरण!

मंत्रिमंडल विस्तार में होगी मोदी की छाया भोपाल। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा के साथ न केवल उनकी ताकत में इजाफा हुआ है,बल्कि भाजपा भी मजबुत हुई है। अल्प समय में ही भाजपा में ही नहीं पूरे देश में 'मोदी पॉवरÓ छा गया है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में भाजपा की ऐतिहासिक जीत को 'मोदी पॉवरÓ से जोड़ कर देखा जाने लगा है। और अब जब 16 मई को 16वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आ रहे होंगे...उस समय जैसे-जैसे भाजपा की सीटों का ग्राफ बढ़ रहा होगा...वैसे-वैसे मप्र की राजनीति में भी सत्ता और संगठन के कई नेताओं का ग्राफ बदलेगा और बढ़ेगा। इसका असर आगामी दिनों में शिवराज कैबिनेट के विस्तार और प्रदेश भाजपा संगठन में बदलाव के तौर पर दिखेगा। इसका पूर्वानुमान लगाकर भाजपा का हर नेता मोदी के रंग में रंगा नजर आ रहा है। तमाम सर्वे रिपोर्टो में इस बार देश में मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनती नजर आ रही है। अगर भाजपा जीतती है और मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो संभवत: जब केंद्र में भाजपा सरकार के गठन की प्रक्रिया चल रही होगी,उसी समय मप्र में शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार की भी कवायद होगी। निश्चित रूप से इस विस्तार में मोदी का असर रहेगा। ज्ञातव्य है कि मप्र मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित 24 सदस्त हैं। इनमें 19 कैबिनेट और चार राज्यमंत्री। विधायकों की संख्या के मान से अभी 11 पद खाली हैं। माना जा रहा है कि बजट सत्र के पहले आठ से दस पद भर जा सकते हैं। संगठन इसके लिए विधायकों के परफार्मेंस को आधार बना रहा है, तो कई नेता संघ और मोदी से भी लगातार संपर्क में हैं। भाजपा हाईकमान के निर्देश के अनुसार रिक्त पड़े पदों को लोकसभा चुनाव के बाद भरा जाना है। पार्टी चाहती थी कि लोकसभा चुनाव में जिन विधायकों का काम उत्कृष्टï है, उन्हें मंत्रिमंडल विस्तार में तरजीह दी जाए। लोकसभा चुनाव के दौरान आचार संहिता के चलते मप्र में प्रशासनिक काम पूरी तरह ठप पड़ा है। कामकाज में तेजी लाने, विधानसभा सत्र शुरू होने और इसी सत्र में बजट लाने की तैयारी शुरू हो गई है। इसके अलावा विधानसभा चुनाव की तरह ही प्रदेश भाजपा नगरीय निकाय चुनाव में भी प्रचंड बहुमत से जीतने की कोशिश में लगी है। इन सबको देखते हुए फिलहाल मंत्रिमंडल में विस्तार को लेकर असमंजस है। हालांकि मंत्रिमंडल में शामिल होने की आस लगाए बैठे विधायकों ने लॉबिंग शुरू कर दी है। मोदी फाइनल करेंगी सूची संगठन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि लोकसभा चुनाव के पूर्व ही आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान को विस्तार करने के लिए हरी झंडी दे दी थी। उस समय अपेक्षाकृत विस्तार छोटा करने का निर्देश था और पांच मंत्रियों को शपथ दिलाने की अनुमति थी। जिन पांच लोगों को विस्तार में शामिल होने का मौका मिलता, उनके नामों को दिल्ली से हरी झंडी मिल चुकी थी, लेकिन उसे मिशन-29 को पूरा करने के चक्कर में रोक दिया गया। अब एक बार फिर से विस्तार की कवायद शुरू हुई है। पिछली सरकार में मंत्री रहे जिन नेताओं को इस बार मौका नहीं मिला है, वे भी विस्तार से आस लगाए बैठे हैं। गौरतलब है कि पिछली सरकार में मंत्री रही अर्चना चिटनीस, रंजना बघेल, मनोहर ऊंटवाल, नारायण सिंह कुशवाह, जगदीश देवड़ा, महेंद्र हार्डिया को इस बार मंत्रिमंडल में जगह नही मिली है। ये नेता चंद दिनों बाद होने वाले संभावित विस्तार में अपनी वापसी के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वहीं सुरेंद्र पटवा और दीपक जोशी के राज्यमंत्री बनने के बाद अब पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा के पुत्र ओमप्रकाश सकलेचा भी मंत्री बनने की उम्मीद पाले बैठे हैं। सकलेचा तीसरी बार विधायक बने हैं, तो भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश सारंग के पुत्र विश्वास सारंग को भी मंत्री बनने की आस है। इसके अलावा कमलनाथ के खिलाफ छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ रहे चंद्रभान सिंह अगर कमलनाथ की लीड को बेहद कम कर देते हैं तो उन्हें भी मंत्रिमंडल में लिया जाना तय है। वहीं कैलाश चावला, रुस्तम सिंह, केदारनाथ शुक्ला, हर्ष सिंह और तुकोजीराव पवार भी मंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं। इनके अलावा मंत्री बनने वालों की लंबी लिस्ट है। अब अगर मंत्रिमंडल विस्तार होता है और मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो सूची को वही फाइनल करेंगे। हालांकि पार्टी के सूत्र बताते हैं कि लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद मप्र मंत्रिमंडल में होने वाला संभावित विस्तार टलता नजर आ रहा है। बताया जा रहा है कि अब यह विस्तार जून में होने वाले विधानसभा सत्र और नगरीय निकाय चुनाव के बाद किया जाएगा। पार्टी की मंशा है कि नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस का पूरी तरह सफाया करने के बाद ही मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाए। वहीं संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बार मप्र,छत्तीसगढ़ और राजस्थान मंत्रिमंडल का चंहरा और स्वरूप दोनों बदला जाएगा। जीत-हार तय करेगा मंत्री-विधायक का कद लोकसभा चुनाव में मंत्रियों और विधायकों का परफॉर्मेंस भाजपा हाईकमान की कसौटी पर है। 16 मई को आने वाले नतीजों के आधार पर ही आगे इनका कद बढ़ाया या घटाया जाएगा। इस बात का भी आकलन किया जाएगा कि पार्टी उम्मीदवार की बढ़त विधानसभा चुनावों की तुलना में कहां बढ़ी और कहां घटी वरिष्ठ नेताओं की तरफ से मंत्रियों और विधायकों को इसके संकेत दे दिए गए हैं। शिवराज मंत्रिपरिषद में इस समय एक तिहाई पद रिक्त हैं। केंद्र में सरकार के गठन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद माना जा रहा है कि प्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है। इसके अलावा ऐसे नेता जिनको टिकट नहीं मिला या वे विधानसभा चुनाव हार गए, उन्हें निगम-मंडलों और आयोगों के जरिए लालबत्ती दी जा सकती है। सूत्रों की मानें तो भाजपा संगठन को उम्मीदवारों से लगातार शिकायतें मिल रही हैं कि कई विधायक और मंत्री पार्टी उम्मीदवार के पक्ष में दिल से प्रचार नहीं कर रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता फिलहाल इस पर बात करने से बच रहे हैं, लेकिन अंदरूनी स्तर पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है। मोदी लहर में भी यदि प्रत्याशी हारता है, तो गाज स्थानीय मंत्री और विधायकों पर गिर सकती है। बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह देखा जाएगा कि पार्टी प्रत्याशियों को विधानसभावार कितने मत मिले। सागर, सीधी, जबलपुर से कुछ शिकायतें आई हैं। सागर के मामले में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और भाजपा संगठन महामंत्री ने विधायकों और जिलाध्यक्षों को हिदायत भी दी थी।
पर
कतरने की अटकलें प्रदेश में चल रही मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों के बीच यह भी चर्चा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान जिम्मेदार नेताओं के परफार्मेंस को आधार बनाकर उनके पर कतरने की कार्रवाई भी की जाएगी। मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजे अनेक दिग्गज भाजपाइयों के भाग्य का फैसला भी करेंगे। मिशन 29 के तहत कुछ ऐसी सीटें भी हैं जिनकी वजह से प्रदेश मंत्रिमंडल के आधा दर्जन मंत्री सहित अन्य नेता संगठन के राडार पर आ गए हैं। चुनावी नतीजे व केन्द्र में सरकार बनने के बाद संगठन स्तर पर समीक्षा का दौर शुरू होगा। नगरीय निकाय चुनावों के पहले सर्जरी किए जाने की संभावना है। लोकसभा चुनाव के दौरान सत्ता एवं संगठन के नेताओं ने प्रदेश की सभी 29 सीटों पर पूरी ताकत झोंकने के साथ ही क्षेत्रीय नेताओं के बीच जवाबदारी बांट दी थी। जिन क्षेत्रों में पार्टी को अपनी स्थिति कमजोर नजर आई वहां अतिरिक्त संसाधन जुटाने के अलावा प्रभावी नेताओं को भी सक्रिय किया गया। चुनाव के बाद पार्टी ने अपने नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों से जो फीडबैक मंगाया है अब चुनावी नतीजों से उसका सत्यापन किया जाएगा। कुछ सीटें पर संगठन को अपने ही लोगों के बीच सामंजस्य बिठाने में अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ी।
इन पर थी जिम्मेदारी पार्टी के निशाने पर ग्वालियर, सागर, दमोह, खरगोन, बालाघाट, बैतूल, सतना, होशंगाबाद और खजुराहो सीटें खासतौर पर हैं। शिवराज कैबिनेट के सदस्य गोपाल भार्गव को दमोह, भूपेन्द्र सिंहठाकुर- सागर, अंतर सिंह आर्य- खरगोन, गौरीशंकर बिसेन-बालाघाट एवं विजय शाह को बैतूल संसदीय क्षेत्र की जवाबदारी सौंपी गई थी। इनके अलावा सतना, होशंगाबाद और खजुराहो के लिए भी संगठन के नेताओं को तैनात किया गया था। 16 मई को जो भी चुनाव परिणाम आएंगे उसके अनुसार इन नेताओं की जवाबदारी भी तय की जाएगी।
शिवराज ने भी गाया मोदी राग...
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को दो तिहाई बहुमत हासिल हुआ। ज्यादातर लोगों का यह मानना है कि इस जीत के लिए मोदी को श्रेय देना मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ बेईमानी होगी। इन लोगों का यह तर्क है कि शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में जिस तरह का काम किया था उसके चलते मोदी के बगैर भी वे इतनी सीटें हासिल करने में सफल होते। लेकिन खुद शिवराज सिंह चौहान ने अपनी जीत में मोदी के योगदान के लिए उनका आभार व्यक्त किया। ऊपरी तौर पर अगर देखा जाए तो किसी को भी शिवराज सिंह द्वारा मोदी को श्रेय दिया जाना समझ में आ सकता है। नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश की जिन 15 विधानसभाओं में चुनाव प्रचार किया उनमें से 14 पर भाजपा को जीत हासिल हुई। मगर 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में जिस तरह से चौहान को दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत मिला है उस हिसाब से 15 में से 14 विधानसभा की जीतें कुछ खास मायने नहीं रखतीं। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि मध्यप्रदेश में मोदी की जनसभाओं में से ज्यादातर में बहुत कम जनता उन्हें देखने-सुनने के लिए आई। और शिवराज उन इलाकों में भी विजयी रहे जिनमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा थी। फिर बिना किसी अहम के शिवराज ने संगठन को एक सूत्र में पिराने के लिए लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिताकर नरेंद्र मोदी की सरकार बनाने का संदेश देते फिरे। ऐसा लग रहा था कि आडवाणी को शिवराज ने स्वयं अपना कंधा उपलब्ध करा दिया है, क्योंकि आडवाणी अपने मध्यप्रदेश दौरों के दौरान ही शिवराज की तारीफों के पुल बांध रहे थे। यह सब नरेंद्र मोदी के भाजपा चुनाव समिति का अध्यक्ष घोषित किए जाने के परिणाम माना जा रहा था। आडवाणी पिछले आम चुनावों की तरह इस बार भी भाजपा के झंडाबरदार बनने को लालायित थे और स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानकर चल रहे थे। लेकिन पार्टी ने पहले तो चुनाव समिति की कमान मोदी के हाथों में दे दी और फिर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी उन्हें घोषित कर दिया। जले भुने आडवाणी को शिवराज के रूप मोदी से मुकाबिल होने लायक एक अस्त्र नजर आया और वे शिवराज को भी प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त बताने लगे। बड़े पद की लालसा किस नेता में नहीं होती। शिवराज ने भी गुजरात में नरेंद्र मोदी के कारनामे की तरह मध्यप्रदेश में भाजपा को लगातार तीसरी बार जिताकर सत्ता दिलाने का श्रेय हासिल किया है। स्वाभाविक है वे अपने आपको मोदी के मुकाबिल समझें। लेकिन, शिवराज भी 'अबकी बार मोदी सरकारÓ का नारा देते रहे।
कैलाश,उमा,प्रभात होंगे दमदार
संभावना जताई जा रही है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो कैलाश विजयवर्गीय,उमा भारती और प्रभात झा जैसे नेताओं का कद बढ़ सकता है। राज्य के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की मोदी से निकटता किसी से छिपी नहीं है। विधानसभा चुनाव से पूर्व विजयवर्गीय ने राजनीति से ब्रेक लेने की भी बात कही थी, लेकिन जल्द ही वे अपनी बात से पलट गए थे। बताया जाता है कि उन्हें मोदी ने सक्रिय रहने को कहा था। हालांकि उनकी बात को उनके बेटे को राजनीति में स्थापित करने से जोड़ा जा रहा था। इंदौर में एक कार्यक्रम के दौरान मोदी कैलाश विजयवर्गीय से अपनी निकटता भी जाहिर कर चुके हैं। राज्य के सत्ता समीकरण बदलने में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा भी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। वहीं प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती केंद्र में मंत्री बनने के साथ ही प्रदेश में अपनी हैसियत बढ़ाने की कोशिश करेंगी। इनके अलावा प्रहलाद पटेल,नरोत्तम मिश्रा और कांग्रेस से भाजपा में आए विधायक संजय पाठक भी मोदी की गुड लिस्ट में हैं।
संगठन का होगा कायाकल्प
मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही प्रदेश भाजपा संगठन का भी कायाकल्प होगा। इसलिए निचले स्तर पर पार्टी की कमजोरियां दूर कर उसे सशक्त बनाने की कवायद शुरू होगी। नगरीय निकाय चुनाव तक बदलाव का रोडमेप तैयार कर लिया जाएगा। संगठन में कसावट लाने नए ऊर्जावान लोगों को जोडऩे पर भी काम होगा। इसलिए निकाय चुनाव के पहले ही जिलाध्यक्षों से लेकर अन्य पदाधिकारियों के कामकाज की समीक्षा कर ली जाएगी। साथ ही संगठन में कसावट लाने के लिए कुछ उत्साही और ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को जोड़ा जाएगा। डेढ साल पहले 16 दिसंबर 2012 को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने जब कमान संभाली थी तब उन्होंने अपनी टीम में भी ज्यादा फेरबदल नहीं किया था। विधानसभा चुनाव के बाद अनेक पदाधिकारियों की भूमिकाएं भी बदल गईं, इसलिए सत्ता और संगठन के प्रमुख इस दिशा में गंभीरता से सोच रहे हैं। वैसे भी पार्टी में अनेक महत्वपूर्ण पद रिक्त पड़े हैं उनकी पूर्ति के साथ-साथ नई कार्ययोजना पर भी अमल शुरू कर दिया जाएगा।
बड़ी प्रशासनिक सर्जरी की भी तैयार
प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों के बीच एक बड़ी प्रशासनिक सर्जरी की भी तैयारी की जा रही है। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता समाप्त होने के बाद मई के अंतिम सप्ताह में बड़े स्तर पर प्रशासनिक सर्जरी होने की संभावना है। इस संबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा के बीच पहले दौर की चर्चा हो चुकी है। इसमें मंत्रालय में पदस्थ प्रमुख सचिव, सचिव सहित दो दर्जन से अधिक कलेक्टरों को बदले जाने के संकेत मिले हैं।
त्रि-स्तरीय सूची हो रही तैयार
मुख्यमंत्री ने कलेक्टरों को बदलने के लिए तीन प्रकार की सूची बनाने को कहा है। पहली सूची में पांच साल से लगातार कलेक्टरी कर रहे अफसर, दूसरी में एक जिले में दो साल से अधिक समय से पदस्थ अफसर और तीसरी सूची में उन कलेक्टरों के नाम शामिल करने को कहा है, जिन्होंने राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं, समग्र सुरक्षा अभियान जैसी हितग्राही मूलक योजनाओं में अच्छा प्रदर्शननहीं किया है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि जिन कलेक्टरों ने योजनाओं के क्रियान्वयन में बेहतर काम किया है, उनसे उनके पसंद वाले जिलों के विकल्प मांगे जाएं। उन्होंने प्रमोटी आईएएस को भी उनकी कार्यक्षमता के अनुसार जिले में पदस्थ करने की बात भी कही है। प्रारंभिक दौर की चर्चा में मंत्रालय में प्रमुख सचिवों के पदभार को लेकर कोई स्पष्ट रूप से राय नहीं बन पाई।
सूची में इन कलेक्टरों के नाम
इंदौर कलेक्टर आकाश त्रिपाठी, धार कलेक्टर सीबी सिंह, खरगोन कलेक्टर डॉ. नवनीत मोहन कोठारी, बड़वानी कलेक्टर शोभित जैन, बुरहानपुर कलेक्टर आशुतोष अवस्थी, उज्जैन कलेक्टर बीएम शर्मा, देवास कलेक्टर एमके अग्रवाल, आगर-मालवा कलेक्टर डीडी अग्रवाल, ग्वालियर कलेक्टर पी नरहरि, शहडोल कलेक्टर अशोक कुमार भार्गव, उमरिया कलेक्टर सुरेन्द्र उपाध्याय, छतरपुर कलेक्टर डॉ. मसूद अख्तर, भोपाल कलेक्टर निशांत बरबड़े, सीहोर कलेक्टर कवीन्द्र कियावत, राजगढ़ कलेक्टर आनंद शर्मा, विदिशा कलेक्टर एमबी ओझा, हरदा कलेक्टर रजनीश श्रीवास्तव, शिवपुरी कलेक्टर रविकांत जैन, गुना कलेक्टर संदीप यादव, मुरैना कलेक्टर नागर गोजे मदान विभीषण, श्योपुर कलेक्टर ज्ञानेश्वर बी पाटिल, रीवा कलेक्टर शिवनारायण रूपला, सीधी कलेक्टर स्वाति मीणा, सिंगरोली कलेक्टर एम सेलवेन्द्रन, सतना कलेक्टर मोहनलाल मीणा, बैतूल कलेक्टर राजेश प्रसाद मिश्रा एवं कटनी कलेक्टर अशोक कुमार सिंह के नाम प्रस्तावित हैं।

Saturday, May 3, 2014

मंडी में ही सड़ जाएगा 22 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा गेहूं

100 लाख मीट्रिक टन गेंहू खरीदी का लक्ष्य
गेंहू रखने के लिए पर्याप्त गोदाम और वेयर हाउस नहीं
भोपाल। फरवरी-मार्च में हुई बारिश और ओलावृष्टि से प्रदेश के 51 जिलों के 30,000 गांवों की फसल बर्बाद होने के बाद अब प्रदेश भर की मंडियों में खुले में पड़े गेंहू के बारिश में भींगने और सडऩे की संभावना बढ़ गई है। क्योंकि प्रदेश में बेमौसम की बारिश पडऩे का सिलसिला शुरू हो गया है। मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में आंधाी के साथ वर्षा होगी। इससे प्रदेश की मंडियों में खुले में पड़ा करीब 22 लाख मीट्रिक टन गेंहू के भींगने और सडऩे की आशंका जताई जा रही है। प्रदेश की सभी 292 मंडिय़ों में सोसायटियों द्वारा किसानों का गेहूं खरीदा जा रहा है, जिसे केंद्रों से उठाने की जिम्मेदारी नगरिक आपूर्ति निगम की है। निगम द्वारा समय पर गेहूं नहीं उठाने से हर मंडी में सैकड़ों या हजारों क्विंटल गेंहू खुले में पड़ा है। इस गेहूं के बेमौसम बारिश की वजह से खराब होने की आशंका बन गई है। पिछले एक सप्ताह से मौसम खराब चल रहा था, परंतु गेहूं उठाने की चिंता किसी में नहीं दिखी। सोसायटी मैनेजरों का कहना है की हमारा काम खरीदने का है, माल उठाने का काम आपूर्ति निगम का है। भोपाल जिला आपूर्ति निगम के जिला प्रबंधक राजेन्द्र यादव ने बताया कि हमने काम सोना ट्रांसपोर्ट को दे रखा है। लगभग 150 गाडियां उठाने में लगी हैं। चुनाव के कारण हम गेहूं नहीं उठवा पाए थे एक दो दिन में उठावा लेंगे। वेयर हाउस मैंनेजर एसके जैन ने बताया कि हमने सभी वेयर हाउस खोल रखे हैं, परंतु ट्रांसपोर्ट संचालक कम गाडियां चला रहे हैं इसलिए माल उठाने में देरी हो रही है। 18 अप्रैल को अचानक हुई तेज बारिश से कई केंद्रों में रखा हुआ हजारों टन गेहूं पानी में भीग गया। हर साल की इस तरह आग-बारिश का अंदेशा रहता है, लेकिन इसके बावजूद खरीद केंद्रों में बचाव के पर्याप्त उपाए नहीं किए गए हैं। इससे यहां पहुंचने वाले किसानों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ा। प्रदेश में पिछले माह हुई जोरदार बारिश से फसलों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सोयाबीन, चना और गेहूं में हुए नुकसान के बाद जिन किसानों की थोड़ी बहुत उपज बची हुई है, वह भी प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही के चलते खराब हो सकती है। प्रदेश के कई इलाकों में हो रही बारिश को देखते हुए किसानों ने अपने खेतों में कटाई का तेज कर दिया है। वहीं जिन किसानों ने अपनी फसलें काट ली हैं, वह खरीदी केंद्रों में पहुंचने लगे हैं। प्रशासन द्वारा समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी तो की जा रही है, लेकिन उसके सुरक्षित भंडारण के काम में लापरवाही बरती जा रही है।
पर्याप्त वेयर हाउस नहीं प्रदेश में 100 लाख मीट्रिक टन गेंहू खरीदी का लक्ष्य रखा गया है,लेकिन इनको रखने के लिए पर्याप्त वेयर हाउस और गोदाम नहीं है। एक जिले में खरीदे जा रहे गेंहू को रखने के लिए कम से कम 60 से 80 वेयर हाउस चाहिए,लेकिन व्यवस्था हो पाई है 30-40 की ही। हालांकि अधिकांश जिलों में जिला प्रशासन द्वारा गेहूं की खरीदी के लिए केंद्रों में वारदानों की पर्याप्त व्यवस्था करा ली गई है, ताकि खरीदी प्रभावित न हो सके। मगर कई केंद्रों में अनाज के हिसाब से बरसाती की व्यवस्था तक नहीं की गई है। नागरिक आपूर्ति निगम जिला सागर के प्रबंधक एमपी मिश्रा बताते हैं कि में अब तक करीब साढ़े 7 लाख क्विंटल से ज्यादा गेहूं की खरीदी हो चुकी है और प्रतिदिन 60 हजार क्विंटल गेहूं का उठाव किया जा रहा है। अब तक कुल खरीदी का 82 प्रतिशत माल का भंडारण हो चुका है। मौसम को देखते हुए पहले केंदों के बाहर रखे हुए माल को अंदर किया जा रहा है, जिस कारण थोड़ी परेशानी हुई होगी। रतलाम जिले के कुछ क्षेत्रों में गत दिनों हुई मावठे की बारिश के बावजूद रतलाम मंडी में समर्थन मूल्य पर खरीदा गया गेंहू खुले में ही रखा हुआ है। परिवहन व्यवस्था की कमजोरी के कारण यह स्थिति निर्मित हो रही है। मंडी में अभी तक एक लाख चौसठ हज़ार से ज्यादा बोरी गेंहू की अभी तक खरीद हुई है। लेकिन इनमें से गोदामो में कुल एक लाख बारह हज़ार बोरी ही पहुचाई जा सकी है। पचास हज़ार से ज्यादा बोरी अभी भी मंडी के अन्दर खुले में ही रखी है।
कई मंडियों में अनाज तौलने तक की जगह नहीं
नागरिक आपूर्ति निगम की सरकारी खरीद योजना के अंतर्गत मंडी में गेंहू की भरपूर आवक हो रही है। यही हाल प्रदेश की अन्य मंडियों का भी है। किसानों की आफत कम नहीं हो रही है। अब वे अपना अनाज बेचने के लिए परेशान हो रहे हैं। समर्थन मूल्य खरीदी केंद्रों में किसानों की भीड़ है, पर अनाज नहीं तुल रहा। जिससे उन्हें केंद्र के आसपास खेतों में रात बिताना पड़ रही है। विदिशा जिले के ग्राम सौंथर, सांकलखेड़ा कला, सांकलखेड़ा खुर्द आदि खरीदी केंद्रों में बड़ी संख्या में किसान अपने अनाज की तुलाई का इंतजार कर रहे हैं। बताया जाता है अनाज मंडियों में गेंहू की भारी मात्रा होने और समय पर गेंहू की बोरियों के न उठने से किसानों और आढ़तियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अनाज मंडी में चारों और गेहू की फसल के ढेर ही ढेर लगे हुए हैं। अनाज मंडी में सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद की गई गेंहू की बोरियों का उठान न होने से पूरी मंडी भरी पड़ी है। किसानों और आढ़तियों में जिला प्रशासन और सरकार के खिलाफ भारी रोष है। यही नहीं कई जगह तो बरसात के कारण अनाज मंडी में पड़ा गेंहू भींग रहा है और बरसात के कारण गेंहू में नमी बढ़ जाने से किसानों के गेंहू की खरीद नहीं की जा रही है। गेंहू के उठान के न होने से किसानों का और सरकार द्वारा खरीदा गया गेंहू भींग कर खऱाब हो रहा है। अनाज मंडी में गेंहू की फसल लेकर आए एक किसान ने बताया कि पिछले कई दिनों से अपनी गेंहूू की फसल को अनाज मंडी में लाए हुए हैं लेकिन उनकी गेंहू की फसल खरीदी नहीं जा रही। अनाज मंडी में गेंहू की बोरियों के उठान न होने के कारण अनाज मंडी चारों और से ठसाठस भरी पड़ी है और किसानों को अपनी गेंहू की फसल को अनाज मंडी में डालने के लिए कोई जगह नहीं मिल रही। विदिशा जिले के ग्राम सौंथर में अंडिया, करैया, रोड़ा, भाटखेड़ी, सतपाड़ा, करारिया आदि गांव के किसान परेशान हो रहे हैं। ग्राम भाटखेड़ी के किसान रामबाबू शर्मा, बृजेश आदि ने बताया कि केंद्र में तुलाई के लिए चार कांटे लगे हैं, लेकिन तुलाई बंद है। केंद्र में बारदाना नहीं है। समिति कर्मचारी कहते हैं कि जब तक तुला हुआ माल नहीं उठेगा, तब तक तुलाई नहीं होगी। ऐसी ही नौबत ग्राम सांकलखेड़ाकला एवं सांकलखेड़ा खुर्द के केंद्रों में है। किसानों ने बताया कि सांकलखेड़ा कला में दो तुलाई कांटे हैं, पर बारदाना नहीं होने से अनाज नहीं तुल रहा है। ग्राम खेरूआ, कोठीचारखुर्द, चिड़ोरिया, सूखासेमरा, बमूरिया आदि गांवों के किसान अनाज बेचने के लिए खरीदी केंद्रों के आसपास खेतों में रूके हुए हैं। किसानों ने बताया कि ग्राम सांकलखेड़ा खुर्द केंद्र के तौल कांटों पर भी अनाज की तुलाई नहीं हो रही है। जिससे वे कई दिनों से परेशान हो रहे हैं। उधर,सहायक जिला खाद्य अधिकारी जीएस रघुवंशी के मुताबिक बारदानों की सिलाई न होने से माल नहीं उठ पाया है। कुछ केंद्रों पर गठानें भेजी गई है। केद्रों में तौल कांटे बंद रहने की सूचना नहीं है।
गोदामों में भी सड़ता है अन्न मध्यप्रदेश में जहां हजारों बोरी गेंहू बिना किसी रखरखाव से सड़ता ही है,वहीं यहां के गोदामों में भी हर साल हजारों टन अन्न सड़ जाता है। प्रदेश सरकार बड़ी शान से सीना चौड़ा कर बताती है कि उसने इस साल सबसे ज्यादा गेंहू खरीदा है। पर पिछले दिनों एकाएक आई बरसात ने इस गर्व भरे दावे को 'सड़ाÓ दिया। प्रदेश के इटारसी, होशंगाबाद, पिपरिया, सीहोर, नरसिंहगढ़, हरदा जैसे छोटे शहरों में लाखों टन अनाज अस्थाई शेड में रखा-रखा सड़ जाता है। अनाज सडऩे की यह प्रक्रिया गम्भीर अपराध की श्रेणी में नहीं आती, परिणामत: किसी भी अधिकारी कर्मचारी को इस बात की चिन्ता नहीं करनी पड़ती की उसे कोई सजा कभी मिल पाएगी। सरकारें अनाज सडऩे के मामले को एक सहज वृत्ति मानती है। जिस देश में करोड़ों लोग पेट भर भोजन न कर पाते हों वहां सरकारी गोदामों में हजारों टन अन्न की बर्बादी शर्मसार करने वाली है। सरकारी गोदामों में अनाज के बर्बाद होने का यह पहला मामला नहीं। पिछले कई वर्षो से यह शर्मनाक सिलसिला कायम है। 2007 से लेकर एक जुलाई 2013 की स्थिति के अनुसार भारतीय खाद्य निगम के विभिन्न गोदामों में 87,708 टन गेंहू और चावल खराब हो चुका है।