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भेड़ाघाट

Monday, November 2, 2015

मोदी सरकार की गर्मी नहीं सह पा रहे बाबू?

अहम मंत्रालयों की डोर 'सुपर पीएमओÓ के हाथ
पीएम की पाठशाला में मप्र के आईएएस फेल
भोपाल। अपने स्टेट कैडर से केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाना आईएएस अधिकरियों के गर्व और सम्मान का विषय माना जाता था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गाइड लाइन पर काम करना अफसरों को नहीं भा रहा है। यही कारण है कि राज्यों से बार-बार मांग के बावजुद आईएएस अफसर केंद्र में जाने को तैयार नहीं हैं। आलम यह है कि मोदी सरकार के अभी तक 56 आईएएस ऑफिसर्स सेंट्रल पोस्टिंग को छोड़कर अपने स्टेट कैडर में वापस चले गए हैं। वापस जाने का ऑप्शन चुनने वाले ज्यादातर ऑफिसर्स सीनियर हैं। वे जॉइंट सेक्रेटरी या इससे ऊपर के रैंक के हैं। आमतौर पर आईएएस अधिकारी इस तरह से वापस अपने राज्य का रुख नहीं करते हैं। वहीं मात्र चार अफसर ही केंद्र में गए हैं। जहां तक मप्र का सवाल है तो यहां से इस दौरान एक भी आईएएस दिल्ली नहीं गया है, बल्कि करीब आधा दर्जन वापस ही लौटे हैं। जबकि केंद्र सरकार ने मप्र सरकार को पत्र लिखकर केंद्रिय कोटे के 30 आईएएस की मांग कई बार कर चुकी है। बताया जाता है कि वर्तमान केंद्र सरकार के अब तक के कार्यकाल में मध्यप्रदेश के नौकरशाहों की भूमिका महत्वपूर्ण नहीं हो सकी। या यूं कहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली में मप्र के आईएएस फिट नहीं बैठ रहे हैं। यही कारण है कि कभी केंद्र सरकार के विभागों में महत्वपूर्ण पदों को संभालने वाले मप्र के आईएएस अफसरों के पास महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं है।
56 आईएएस ऑफिसर्स स्टेट कैडर में लौटे
क्या स्टेट कैडर के आईएएस अधिकारियों को दिल्ली रास नहीं आ रही? केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद के आंकड़े कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं। मई 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से अबतक कम से कम 56 आईएएस अधिकारी केंद्र की पदस्थापना समय से पूर्व छोड़कर अपने प्रादेशिक कैडर में वापस लौट चुके हैं। इसके उलट केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारियों की संख्या इस दौरान महज 4 रही। अपने स्टेट कैडर में जल्द वापस जाने वाले अधिकारियों में ज्यादातर सीनियर रैंक के हैं यानी संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के पद के। इससे पहले इस तरह के मामले कम देखने को मिलते थे। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) की वेबसाइट के मुताबिक 2013 में सिर्फ 3 आईएएस ऑफिसर्स केंद्र से राज्य में गए थे। अगस्त से सितंबर 2012 के बीच सिर्फ एक ऑफिसर ने ऐसा किया था, मगर जनवरी से लेकर मई 2014 तक यह संख्या बढ़कर 13 हो गई। यह वह दौर था, जिसमें लोकसभा चुनाव हुए और सत्ता बदली। डीओपीटी के अधिकारी ने बताया कि इस आंकड़े से यह नहीं कहा जा सकता कि अधिकारी मोदी सरकार के दौरान केंद्र में काम नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा, हो सकता है कि वे राज्य में चीफ सेक्रेटरी या सीनियर लेवल की अन्य जिम्मेदारी संभालना चाहते हों। डीओपीटी के ऑर्डर्स के मुताबिक 7 ऑफिसर्स अपने राज्यों में चीफ सेक्रेटरी के पद पर गए हैं। रक्षा मंत्रालय के सूत्र ने बताया कि चार जॉइंट सेक्रेटरी रैंक के ऑफिसर्स अपने कैडर में लौट गए हैं, क्योंकि मौजूदा स्थिति में मेहनत करना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। सरकार की चिंता सिर्फ खाली पड़े पद ही नहीं है। राज्यों से बहुत कम अधिकारी सीनियर पदों पर आने के इच्छुक हैं। इस साल जॉइंट सेक्रेटरी रैंक के 30 पद खाली हुए, मगर चार ही आईएएस ऑफिसर्स इसके लिए राज्यों से आए। इनमें से एक ने अपनी पसंद की पोस्टिंग के लिए बेंगलुरु का नाम भरा है। आमतौर पर वरिष्ठता के एक निश्चित स्तर पर पहुंच जाने के बाद ऑफिसर्स दिल्ली में ही रहना पसंद करते हैं, जहां पर आगे बढऩे की संभावनाएं ज्यादा होती हैं।
दिल्ली में घटता जा रहा मप्र के आईएएस का रुतबा!
मप्र कैडर के आईएएस अफसर हमेशा अपनी मेहनत और बेहतर कार्यप्रणाली के लिए सराहे जाते रहे हैं। केंद्र में किसी भी पार्टी की सरकार हो या कोई भी प्रधानमंत्री हो मप्र के नौकरशाहों ने हमेशा अपना उत्कृष्ट योगदान दिया है। लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार के अब तक के कार्यकाल में मध्यप्रदेश के नौकरशाहों की भूमिका महत्वपूर्ण नहीं हो सकी। या यूं कहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली में मप्र के आईएएस फिट नहीं बैठ रहे हैं। यही कारण है कि मोदी सरकार ने अहम मंत्रालयों में सचिव व संयुक्त सचिव स्तर पर अफसरों की भूमिकाओं में जो परिवर्तन किया है, उसमें मप्र कॉडर के बिमल जुल्का, स्नेहलता कुमार, राजन कटोच व जेएस माथुर(अतिरिक्त सचिव)अपनी भूमिका बरकरार तो रख पाए हैं, लेकिन अहम महकमों में मप्र के अफसरों को जिम्मेदारी नहीं मिली। इसके पीछे मुख्य वजह यह बताई जा रही है कि पीएमओ की दक्षता गाइड लाइन पर मप्र के अफसर खरे नहीं उतर सके हैं। पीएमओ के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार केंद्र में पदस्थ मप्र कैडर के 33 आईएएस में से मात्र पांच के कार्य को सराहा गया है, जबकि 28 आईएएस के कार्य को मात्र संतोषप्रद माना गया है।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार संभालते ही सबसे पहले नौकरशाही पर नकेल कसने की कोशिश की। इसके लिए कई तरह की गाइड लाइन बनाई। मोदी की आक्रामकता देख नौकरशाह भी सहम गए। मोदी ने केंद्र में अफसरों की कमी की पूर्ति के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अपने कोटे के 952 अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर भेजने के लिए यह गाइड लाइन जारी की। केंद्र ने कहा है कि उसके पास उपसचिव, निदेशक स्तर के आईएएस अधिकारियों की बहुत कमी है। जो आईएएस 14 साल की सेवा पूरी कर चुके हैं वे निदेशक तथा जो 9 साल की सेवा पूरी कर चुके हैं वे उपसचिव पर प्रतिनियुक्ति पर भेजे जा सकते हैं। इसके अलावा संयुक्त सचिव स्तर के आईएएस अधिकारियों की भी मांग की गई है। बताया जाता है कि मोदी सरकार की कार्यप्रणाली और जरा-सी चुक पर मिडनाइट ट्रांसफर से घबराकर किसी भी प्रदेश का कोई भी आईएएस दिल्ली जाना नहीं चाहता है। आईएएस की कमी के कारण जहां एक-एक अफसर पर कई विभागों की जिम्मेदारी है वहीं कई महत्वपूर्ण विभाग और कार्य बाबूओं के कंधों पर है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार संभालते ही जिस तरह की आक्रामकता दिखाई, उससे नौकरशाहों में अनजाना-सा भय समा गया है। इसका परिणाम यह हुआ की केंद्र में पदस्थ नौकरशाह अपने राज्य की ओर रूख कर गए, वहीं केंद्र की बार-बार की मांग के बावजुद भी राज्य से आईएएस दिल्ली जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। ऐसे में मोदी ने सभी प्रमुख विभागों की निगरानी के लिए 'सुपर पीएमओÓ (पीएमओ में पदस्थ प्रधानमंत्री के पसंदीदा अफसरों की टीम यानी प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा, अजीत कुमार डोभाल, राजीव टोपनो, संजीव सिंगला, गुलजार नटराजन, बृजेश पांडेय, मयूर माहेश्वरी और श्रीकार केशव परदेसी )का गठन कर डाला। अब लगभग हर विभाग में 'सुपर पीएमओÓ का हस्तक्षेप बढ़ गया है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि जहां एक साल पहले तक दिल्ली में जो नौकरशाह अपने विभागों में बिना दबाव और बिना तनाव के कार्य कर रहे थे, अब उन्हें 'सुपर पीएमओÓ की निगरानी में काम करना पड़ रहा है। आलम यह है कि केंद्र में जितने अहम मंत्रालय हैं उनकी डोर 'सुपर पीएमओÓ ने अपने हाथ में ले रखी है। 'सुपर पीएमओÓ ने केंद्र सरकार में पदस्थ अफसरों की जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें मप्र के अफसरों को फिसड्डी बताया गया है।
मोदी की वर्किंग स्टाइल से डरे अफसर
केंद्र की अफसरशाही में अब प्रदेश के नौकरशाहों की 'रुचिÓ कम होने लगी है। इसे केंद्र सरकार का असर माना जाए या अफसरों की हिचकिचाहट लेकिन केंद्र में मप्र कॉडर के आईएएस अफसरों की आमद में कमी आने लगी है। गौरतलब है कि यूपीए सरकार के समय मप्र के अफसरों का केंद्र सरकार व महत्वपूर्ण मंत्रालयों में काफी दबदबा रहा है। एक समय यह संख्या 60 से ज्यादा थी इनमें सचिव स्तर के 11 अफसर थे। मप्र कॉडर की संख्या के मान से नियमानुनसार 84 आईएएस केंद्र में पदस्थ किए जा सकते हैं, लेकिन अमूमन राज्य सरकार इतने अफसर नहीं देती हैं। अभी केंद्र में मप्र के अफसरों की संख्या 33 है, क्योंकि दो अफसर मनोज गोविल आईएमएफ यूएसए में पदस्थ हैं व पल्लवी जैन गोविल लंबे अवकाश पर हैं। केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव स्तर के अफसरों में मप्र की भूमिका महत्वपूर्ण है। इनमें आलोक श्रीवास्तव के पास पोत परिवहन, रश्मि शुक्ला शर्मा के पास पंचायती राज, अनिल श्रीवास्तव नागर विमानन, एम गोपाल रेेड्डी गृह, एसपीएस परिहार कैबिनेट सेक्रेटेरिएट, मनोज झालानी स्वास्थ्य, संजय बंदोपाध्याय सड़क परिवहन, शैलेंद्र सिंह उद्योग, प्रवीण गर्ग सामाजिक न्याय, अनुराग जैन पीएमओ, नीरज मंडलोई शहरी विकास मंत्रालय में हैं। जबकि निकुंज श्रीवास्तव व ई.रमेश कुमार केंद्रीय मंत्रियों के निज सचिव हैं। इनके अलावा केंद्र में प्रवेश शर्मा, राघवचंद्रा, विजया श्रीवास्तव, जयदीप गोविंद, पीके दास, पंकज राग, आशीष श्रीवास्तव, दीप्ति गौड़ मुखर्जी, अनिल जैन, अनिरूद्ध मुखर्जी, केरोलिन खोंगवार, मनीष सिंह, पवन शर्मा पदस्थ हैं। लेकिन 'सुपर पीएमओÓ के हस्तक्षेप के कारण ये अपनी छाप अपने विभाग में छोड़ पा रहे हैं। हालांकि, डीओपीटी के सूत्र इस बात से इंकार करते हैं कि इसका कारण अधिकारियों के बीच मोदी सरकार के साथ काम करने को लेकर किसी प्रकार की अरूचि है। क्योंकि मोदी सरकार का ज़ोर प्रशासनिक कामकाज में व्यापक बदलाव पर है। इसका कारण ये हो सकता है कि राज्यों में उनके कैडर में अधिकारियों को बड़ी जिम्मेदारी मिली हो। डीओपीटी के आंकड़े बताते हैं कि वापस जाने वाले 7 आईएएस अधिकारियों ने अपने राज्य में जाकर मुख्य सचिव का पद संभाला। हालांकि, राज्यों के कैडर से बड़ी संख्या में अधिकारी इन जिम्मेदारियों को संभालने को इक्छुक दिख रहे हैं। लेकिन अधिकारियों का पैनल बनाने, उनमें आईएएस अधिकारियों और नॉन-आईएएस अधिकारियों की पदास्थापना जैसे मुद्दों के कारण इन पदों को भरने में देरी हो रही है।
मध्यप्रदेश आईएएस संवर्ग में 417 पद स्वीकृत हैं और इनमें से 325 अधिकारी ही पदस्थ हैं। यानी 92 पद अभी भी खाली है। दो सीनियर अधिकारी एसीएस देवराज बिरदी तथा पीएस स्तर के विश्वमोहन उपाध्याय 31 जनवरी को ही रिटायर हुए हैं। इस कारण भी संख्या घटी है। वैसे इस साल 21 आईएएस रिटायर होने जा रहे हैं, जिसमें बिरदी तथा उपाध्याय भी शामिल थे। एक समय पीएमओ कार्यालय में आर. रामानुजम , वित्त मंत्रालय में सुमित बोस सहित अन्य मंत्रालयों में सचिव के रूप में ओपी रावत, डीआरएस चौधरी, सुधीरनाथ, सुषमानाथ, अलका सिरोही, राघवेन्द्र सिरोही, अमिता शर्मा, जेमिनी शर्मा, विश्वपति त्रिवेदी आदि शामिल थे। केंद्र में मप्र के सचिव स्तर के अफसरों की कमी आने से भी मप्र के आईएएस का रुतबा लगातार भारत सरकार में घटता जा रहा है।
उधर, जब से केंद्र में मोदी की सरकार बनी है कोई भी अफसर केंद्र में जाने को तैयार नहीं हो रहा है। दरअसल, मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद ब्यूरोक्रेसी में बदलाव को सबसे बड़ा एजेंडा बनाया और इसपर काम भी हुए। इस प्रक्रिया में सख्त फैसले भी हुए। बीच रात में सीनियर अधिकारियों को हटाया गया। कुछ अफसरों को विदेश दौरे के समय उनके पद से हटा दिया गया। मोदी सरकार के टॉप लेवल के अफसरों को हटाने के फैसले की जगह उन्हें हटाए जाने के तरीके पर सवाल उठे। एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि महज अतिरिक्त उत्साह के कारण विदेश सचिव बदलने जैसा फैसला भी विवादों में आया। पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह को भी हटाने के तरीके पर सवाल उठाए गए। हालांकि भले ही अधिकारियों को हटाने के तरीके पर विवाद हुए लेकिन इनकी जगह पर जिन अधिकारियों की नियुक्ति हुई, वे बेहतर पंसद साबित हुए। इससे विवाद कम हुआ। एक अधिकारी ने बताया कि अगर सरकार किसी को हटाकर उसकी जगह योग्य लोगों को बैठाती रहेगी, तब तब यह मामला तूल नहीं पकड़ेगा लेकिन जिस दिन इसके उलट हुआ, विवाद बढ़ जाएगा। पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी टीआरएस सुब्रहमण्यम का कहना है, 13 महीने के शासन में मोदी सरकार की खासियत रही है कि उन्होंने बड़े पदों पर जो नियुक्ति की है, उसमें योग्यता को विशेष तरजीह दी गई। साथ ही अफसरों के साथ अधिक पूर्वाग्रह कम दिखा। ऐसे में संभव है कि कुछ मिसाल संयोग रहे हो।
ये तो चंद उदाहरण हैं जो केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली को दर्शातें हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र सरकार की कमान संभालते ही नौकरशाही उनकी रफ्तार के साथ कदम मिलाने की कोशिश में जुट गई। लेकिन उनसे कदम ताल मिलाने में कुछ नौकरशाह हांफने लगे तो कुछ कांपने। आलम यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम-काज को देख कर नौकरशाहों में खलबली मची हुई है। नौकरशाह मोदी के काम के प्रति जुनून से हतप्रभ है। मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जिस तरह से अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर एजेंडा तैयार करने में जुटे रहे, उससे अधिकारी हैरत में है। मोदी के काम-काज के इस तरीके को देख काम करने वाले नौकरशाह उत्साहित हैं। हालांकि मोदी के काम-काज के तरीके से एक सकारात्मक बदलाव भी दिख रहा रहा है। मोदी ने अपने मंत्रियों से भी 16 से 17 घंटा काम करने की बात कही है और मंत्री ऐसा कर भी रहे हैं। मंत्रियों की देखा देखी अफसर भी काम में लगे रहते हैं।
'सुपर पीएमओÓ का बढ़ता दबदबा
लोकप्रियता के शिखर पर सवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शासन चलाने का तरीका संभवत: अलग है। पीएमओ के बाद केंद्रीय कैबिनेट में गृह, वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालयों को सबसे ताकतवर माना जाता है, लेकिन मोदी के 'सुपर पीएमओÓ के जरिए इन मंत्रालयों के कामकाज में पर्दे के पीछे से हस्तक्षेप ने फैसले लेने की गति धीमी कर दी है। पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले अरुण जेटली का वित्त मंत्रालय गुजरात कैडर के अधिकारियों से भरा हुआ है, जिससे लगता है कि मोदी ने जेटली की घेरेबंदी कर दी है। ऐसे में अन्य राज्यों से आए अफसर काम करने में असहज महसूस कर रहे हैं। ऐसी ही स्थिति अन्य विभागों की भी है। मप्र कैडर के अफसर पीडी मीणा को मोदी सरकार ने रक्षा मंत्रालय में भेजा, लेकिन उन्हें भूतपूर्व कर्मचारी कल्याण का काम मिला। जहां ऐसा करने को कुछ नहीं है जो मीणा की कार्य क्षमता को प्रदर्शित कर सके। मप्र में मुख्यसचिव स्तर के एक अफसर ने बताया कि दिल्ली के बजाए फिलहाल मप्र में काम करना बेहतर है। माना जा रहा है कि मोदी सरकार के कामकाज और इसे लेकर अक्सर होने वाली चर्चाओं के चलते अफसरों में दिल्ली आने को लेकर हिचक है। वहीं मप्र सरकार भी अफसरों की कमी के चलते अफसरों को अनुमति देने से बच रही है। स्थितियां यही रही तो जल्द ही केंद्र में सचिव स्तर के मप्र के अफसरों की संख्या दो रह जाएगी,क्योंकि सचिव सीमा प्रबंधन(गृह)स्नेहलता कुमार रिटायर हो गई हैं और सचिव सूचना प्रसारण बिमल जुल्का अगस्त में सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
कुछ ऐसी ही स्थिति अन्य अहम मंत्रालयों की हैं। 'सुपर पीएमओÓ के मंत्रालयों पर नियंत्रण करने की कवायद पिछले साल नवंबर में मोदी के भरोसेमंद गुजरात कैडर के अधिकारी हसमुख अधिया की वित्त मंत्रालय में वित्तीय सेवा विभाग के सचिव के रूप में नियुक्ति से शुरू हुई। अधिया भारतीय प्रबंधन संस्थान के गोल्ड मेडलिस्ट हैं और उन्होंने योग में भी पीएचडी की है। मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पसंदीदा 1985 बैच के आईएएस गिरीश चंद्र मूर्मू को वित्त मंत्रालय में व्यय विभाग का संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया है। हालांकि, राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि उन्हें प्रवर्तन निदेशालय का निदेशक बनाने की तैयारी चल रही है। यह पद लंबे समय से खाली है। कुछ ही दिन पहले 1987 बैच के वरिष्ठ आईएएस राज कुमार को भी वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों का संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया। यह सब नियुक्तियां बड़े मंत्रालयों पर 'सुपर पीएमओÓ का दबदबा कायम करने के लिए किया गया है।
कई फैसलों में 'सुपर पीएमओÓ के हस्तक्षेप
जैसा कि सभी जानते हैं नरेंद्र मोदी का काम करने का तरीका संभवत: अलग है। मोदी ने 'सुपर पीएमओÓ के जरिए इन मंत्रालयों के कामकाज में पर्दे के पीछे से हस्तक्षेप ने फैसले लेने की गति धीमी कर दी है। मंत्रालय के अधिकारियों की जानकारी के बगैर इसमें कई अहम बदलाव कर दिए गए। कई अधिकारियों का कहना है कि अन्य मंत्रालयों में पीएमओ का इसी तरह का हस्तक्षेप सामान्य बात है। यही कारण है कि मोदी सरकार के सत्ता संभालने के 13 माह से अधिक होने के बावजूद अभी तक दिल्ली की नौकरशाही उनके कामकाज के तरीकों से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाई है और मेक इन इंडिया अभियान सहित कई अहम परियोजनाएं अनिश्चय की स्थिति में हैं या फिर उनमें संतोषजनक प्रगति नहीं हुई है। पीएमओ की कार्यप्रणाली को अच्छी तरह जानने वाले एक आईएएस कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उन्हीं मंत्रियों और अफसरों की पट रही है जिनकी बुलेट ट्रेन रफ्तार वाली कार्यशैली है। लेकिन आलम यह है कि अधिकांश मंत्री बैलगाड़ी मिजाज वाले साबित हो रहे हैं। मंत्रियों की रफ्तार धीमी होने का खामियाजा अफसरों को भूगतना पड़ रहा है। उन विभागों के अफसर मोदी की पाठशाला में पास हो गए हैं जिने विभाग के मंत्री अपनी तरफ से पीएमओ में प्रस्ताव, नोट ले कर पहुंचते हैं। ये नरेंद्र मोदी के कहे आईडिया को लपकते हैं और तुरत फुररत प्रस्ताव बना कर पीएमओ को भेज देते हैं। इससे फैसले भी होते हैं और काम भी। एक और पेंच है। जो मंत्री ई मेल, ई-गर्वनेश को अपना रहे हैं वे पीएमओ से फटाफट काम करवा ले रहे हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि मोदी के पीएमओ की कार्यसंस्कृति से बुनियादी परिवर्तन हुए हैं। ई-मेल, ई-गवर्नेश में प्रधानमंत्री निवास और पीएमओ दोनों धड़ल्ले से काम कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी ई-मेल पर प्रस्ताव, नोट, ड्राफ्ट लेने-देने और उसी पर तुरंत मंजूरी का रिकार्ड बना रहे हैं। यदि मंत्री और उनके अफसरों ने ई-मेल से नोट, प्रस्ताव, मसला भेजा तो पीएमओ से तुरंत रिस्पोंस होगा। तुरंत काम होगा। और फाइलों के अंदाज में यदि मंत्रालयों से प्रस्ताव, नोट और मसले आए तो उनमें देरी मुमकिन है। इस हकीकत में अपने लिए हैरानी वाली बात यह है कि पुराने आला अफसर यानि पीएमओ के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र, एके मिश्रा आदि कैसे ई-मेल, ई-गवर्नेंश में रम पा रहे होंगे
पीएमओ पर मंत्रालयों की निर्भरता!
केंद्र में पदस्थ बिहार कैडर के एक आईएएस कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय की गरिमा और उसकी खोई हुई ताकत लौटाई है। पिछली सरकार में कई सत्ता केंद्रों में से एक सत्ता केंद्र पीएमओ भी था, लेकिन आज यह इकलौता सत्ता केंद्र है। केंद्र सरकार के कामकाज की केंद्रीय कमान प्रधानमंत्री कार्यालय में होनी चाहिए, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। यह कमान सिर्फ निर्देश देने और निगरानी करने तक हो तो बेहतर है। लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार के मंत्री अपने हर काम के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के भरोसे बैठे हैं। वे पीएमओ का मुंह ताकते हैं। फैसले करने से हिचक रहे हैं। और तभी मंत्रालयों के मामूली फैसलों की फाइलें प्रधानमंत्री के पास जा रही हैं। मंत्री पीएमओ का मुंह देख रहे हैं कि वहां से कोई निर्देश आए तो वे आगे बढ़ें। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके दफ्तर ने अपने कंधों पर इतना बोझ ले लिया हैं जिससे अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है मप्र कैडर के एक आईएएस कहते हैं कि संदेह नहीं है कि नरेंद्र मोदी और उनके दफ्तर ने देश-दुनिया की तमाम चिंताओं का बोझ लिया हैं। सबका साथ, सबका विकास के साथ सबका काम खुद करने का भी पीएमओ का अंदाज हैं। जाहिर है कई मंत्री बात-बात के लिए पीएमओ की तरफ देखते हैं। पीएमओ पहल करे और कहे तो बात आगे बढ़ेगी। ऐसे में विभिन्न विभागों की कमान संभाल रहे नौकरशाह भी पंगू बने हुए हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि कई विभागों में तो काम ही नहीं हो रहा है। मंत्रियों के पीएमओ पर निर्भर होने का एक नतीजा यह हुआ है कि प्रधानमंत्री कार्यालय पर बहुत ज्यादा बोझ बढ़ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी रूचि से बुनियादी ढांचे के विकास, आर्थिक महत्व के मसलों और विदेशी मामलों में लगे रहते हैं। उन्होंने अपने आप को कूटनीति और उसके जरिए देश की अर्थव्यवस्था में जान फंूकने के काम में लगाया है। लेकिन इनके अलावा छोटे-छोटे मसलों की भी उनके पास भरमार हो गई है। वेहर महीने बुनियादी ढांचे से जुड़े मंत्रालयों की बैठक कर रहे हैं और समीक्षा कर रहे हैं। गंगा की सफाई पर वे बैठक कर रहे हैं। यहां तक की खेल से जुड़े मामूली फैसलों की फाइल भी उनके पास जा रही है। ऐसे में इन विभागों के मंत्रियों औश्र अफसरों के पास अपने स्तर पर काम करने के लिए कुछ भी नहीं है।
खेमों में बंटने लगे हैं ब्यूरोक्रेट्स !
जैसे-जैसे केंद्र में गुजरात कैडर के आईएएस का रूतबा बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे ब्यूरोक्रेसी क्षेत्रीय और जातीय खेमों में बंटती जा रही है। सरकार के हिसाब से ही अफसर भी आते-जाते रहते हैं। यूपीए सरकार में यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान और मप्र के अफसरों का बोलबाला था वहीं मोदी सरकार में हर जगह गुजरात कैडर के अफसरों का रूतबा बढ़ता जा रहा है। केंद्र में पदस्थ मप्र कैडर के एक आईपीएस का दावा है कि केंद्र में हमेशा से कायस्थ लॉबी, बनिया लॉबी और ब्राह्मण लॉबी प्रभावशाली बनी रहती है। जिन अफसरों के कामकाज की तारीफ होती भी है तो वह उनके काम की मेरिट से ज्यादा किसी और वजह से होती है। वह कहते हैं कि जो आईएएस अफसर मंत्रियों के करीबी रहते हैं, उन्हें मनचाही पोस्टिंग मिलती रहती है। यहां तक कि रिटायरमेंट के बाद भी इन अफसरों की सेवा बढ़ती रहती है। इसके अलावा उन अफसरों को भी मलाईदार पोस्टिंग मिलती है जो पैसा खर्च कर सकते हैं। रिटायर्ड आईएएस प्रोमिला शंकर ने अपनी किताब 'गॉड ऑफ करप्शनÓ में ब्यूरोक्रेसी में तो जातीयता पर भी सवाल भी खड़े किए हैं।
सिविल सर्विसेज बोर्ड बनाने की मांग
राजनीतिक हस्तक्षेप से बार-बार तबादलों से अजीज आ चुके अफसरों ने प्रदेश में सिविल सर्विसेज बोर्ड बनाने की मांग तेज कर दी है। इसकी सबसे पहले अवाज राजस्थान कैडर के अफसरों ने उठाई है। राजस्थान कैडर के आईएएस समित शर्मा ने सिविल सेवा के अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए सिविल सर्वे बोर्ड बनाने की मांग की। शर्मा ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुका है कि सिविल सेवा अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए सिविल सर्विसेज बोर्ड होगा। उन्होंनेे राजनीतिक आधार पर तबादलों पर सवाल उठाते हुए सिविल सेवा अफसरों का कार्यकाल तय करने की मांग उठाई।
विदेशों में जम गए आईएएस की होगी छुट्टी
अब उन आईएएस अफसरों की खैर नहीं है जो विदेश दौरे पर गए लेकिन लौट कर नहीं आए। मोदी सरकार अब ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर रही है। कुछ आईएएस सरकारी नौकरियों में डेप्युटेशन पर विदेश गए और वहां करोड़ों के पैकेज पाकर दूसरी नौकरियों में जम गए। उन्हें इतनी भी फुरसत नहीं मिल सकी कि वह नौकरी छोडऩे की औपचारिकता निभा सके। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग के अनुसार इस तरह के मिसिंग आईएएस की संख्या लगभग 20 है। ये ऐसे आईएएस है, जो सरकारी नौकरियों में डेप्युटेशन पर विदेश गए, लेकिन न तो निश्चित समय में लौटे और न ही कोई सूचना दी। सरकार अब उन्हें नौकरी से बर्खास्त करने की तैयारी कर रही है। एक ऐसे ही आईएएस प्रशांत को सरकार ने हटा दिया। सरकार ने उन्हें हटाने का औपचारिकता आदेश जारी कर दिया। 1988 बैच के बिहार के प्रशांत पश्चिम बंगाल कॉडर के आईएएस थे। इन्हें 2009 में मिनिस्ट्री ऑफ पेट्रोलियम की ओर से वॉशिंगटन में डेप्युटेशन पर भेजा गया था। वहां से उन्हें एक साल बाद लौटना था, लेकिन सूत्रों के अनुसार उन्होंने वहां एक बड़ी मल्टिनेशनल कंपनी में बड़े पैकेज पर नौकरी पकड़ ली। सरकार ने उन्हें कई बार तलाशने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मिले। इसके बाद सरकार ने उन्हें मिसिंग आईएएस के लिस्ट में शामिल कर दिया और अंतत: हटा दिया।
आईएएस नियुक्ति के बाद कितना कमाया बताना होगा
अखिल भारतीय सेवा के प्रत्येक अफसर को अब अचल संपत्ति ही नहीं, बल्कि अब चल संपत्ति का भी लेखा-जोखा हर वर्ष सरकार को प्रस्तुत करना होगा। खासकर आईएएस, आईपीएस तथा आईएफएस की नियुक्ति के समय उसके नाम पर कितनी संपत्ति थी और आज वह बढ़कर कितनी हो गई है। पत्नी, पुत्र-पुत्री और आश्रितों के नाम पर कितनी संपत्ति है, उनके नाम पर बैंक में कितना पैसा जमा है, जमीन, बीमा पालिसी, बैंक में जमा बॉंड, वाहन मकान आदि का ब्यौरा भी अब बताना होगा। 31 मार्च तक लेखा-जोखा केंद्र सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम के तहत अफसरों को हर वर्ष पहली जनवरी की स्थिति में इसका लेखा-जोखा देना होगा। जीएडी ने इस मामले में अफसरों से 31 जुलाई तक उक्त प्रावधानों के तहत जानकारी मांगी है। केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय ने प्रत्येक लोक सेवक, यथास्थिति, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 44 की उपधारा (2)या उपधारा (3)के अधीन अपनी आस्तियों और दायित्वों की घोषणा करेगा। प्रत्येक लोक सेवक उस वर्ष की 31 जुलाई को या उसके पूर्व लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियमों के अंतर्गत सक्षम प्राधिकारी को प्रत्येक वर्ष के 31 मार्च को अपनी संपत्ति के विषय में घोषणा, सूचना या विवरणी फाइल करेगा। इन अधिनियमों में 26 दिसंबर 2014 को प्ररूप 2 एवं 4 में आंशिक संशोधन भी किए गए है। तीनों अखिल भारतीय सेवा के अफसरों को अपनी संपत्ति के बारे में जानकारी हिंदी और अंग्रेजी दोनों में से किसी एक भाषा में देना होगा। इस मामले में सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रदेश के सभी आईएएस अफसरों से 31 जुलाई तक जानकारी मांगी है।
संपत्ति का ब्योरा नहीं दे रहे मप्र के आईएएस मध्यप्रदेश संवर्ग के भारतीय प्रशासनिक सेवा के करीब 5 दर्जन अधिकारियों ने अभी तक अपनी चल-अचल संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया है। सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइट में आईएएस अधिकारियों की संपत्ति का ब्योरा अपलोड करने का प्रावधान है। लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम के तहत अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को हर साल अपनी चल-अचल संपत्ति का ब्योरा देना अनिवार्य है। सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2014 में जिन आईएएस अफसरों ने अपनी चल-अचल संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया है, उनमें प्रमोद अग्रवाल, संजय दुबे, शिवशेखर शुक्ला, चंद्रहास दुबे, एसके पाल, फैज अहमद किदवई, मुकेश चंद गुप्ता, कमता प्रसाद राही, पवन कुमार शर्मा, शशि कर्णावत, सुरेंद्र कुमार उपाध्याय, विवेक कुमार पोरवाल, नीरज दुबे, कैलाशचंद जैन, श्याम सिंह कुमरे, पी नरहरि, सीबी सिंह, राजेंद्र सिंह, राजेश बहुगणा, अजीत कुमार, पीके गुप्ता, डी बी पाटिल, नरेंद्र सिंह परमार, एम के शुक्ला, जॉन किग्सले, लोकेश कुमार जाटव, शेखर वर्मा, अशोक कुमार वर्मा, आरके जैन, एनएम विभीष्ण, छवि भारद्वाज, नंद कुमरे, अविनाश लवानी, गणेश शंकर मिश्रा, कर्मवीर शर्मा, एसपी मिश्रा, विजय कुमार जे, बी विजय दत्ता, हर्षिका सिंह, नीरज कुमार सिंह, पंकज जैन, अजय कटेसरिया, निधि निवेदिता, रोहित सिंह, एस सोमवंशी, प्रवीण सिंह अधयच, अनुराग वर्मा, एफ राहुल हरिदास, राजीव रंजन मीना, बी कार्तिकेय, गिरिश कुमार मिश्रा, सोनिया मीना,हर्ष दीक्षित, सोमेश मिश्रा, प्रियंका मिश्रा, मयंक अग्रवाल, फ्रेंक नोबेल, संदीप जीआर आदि शामिल है। सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक निर्धारित समय-सीमा में चल-अचल संपत्ति का ब्योरा नहीं देने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। उनकी गोपनीय चरित्रावली में भी इसका उल्लेख किया जा सकता है। चल-अचल संपत्ति का ब्योरा नहीं देने वाले अधिकारियों की पदोन्नित रोके जाने का प्रावधान है।