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भेड़ाघाट

Friday, August 8, 2014

संघ के लिए केंद्र और राज्यों की सरकारों की जासूसी करेंगे अफसर

-सरकार के काम और मंत्रियों के क्रियाकलापों की हर माह संघ मुख्यालय पहुंचेगी रिपोर्ट
-भोपाल में संघ के पांच दिनी चिंतन बैठक में बनी आगामी कार्ययोजना
-भाजपा की हर राजनैतिक गतिविधियों की लगातार होगी समीक्षा
-2018 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी से तैयार होगी जमीनी रणनीति
-राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, अकादमिक और प्रचार के लिए बनाए जाएंगे कोर ग्रुप binod upadhyay/विनोद उपाध्याय
भोपाल। पिछले 10 सालों से संक्रमण काल से गुजर रही भाजपा को देश की सत्ता तक पहुंचाने का लक्ष्य पा चुका राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अब सरकार को अपनी नीति और रणनीति के तहत संचालित करवाएगा। ताकि देश में आर्थिक व सामाजिक सुधार हो तथा भाजपा की राजनीतिक ताकत और बढ़े। इसके लिए संघ ने भोपाल में अपनी पांच दिनी चिंतन शिविर में कार्ययोजना पर विचार किया। इसके तहत संघ परस्त नौकरशाहों को केंद्र और राज्यों में महत्वपूर्ण पदों पर बिठाकर सरकारों की जासूसी कराने की योजना बनाई है। ये नौकरशाह सरकार के काम और मंत्रियों के क्रियाकलापों की हर माह रिपोर्ट तैयार करके संघ मुख्यालय पहुंचाएंगे।
...ताकि जनता का भरोसा न टूटे
भोपाल में ठेंगड़ी भवन एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यालय 'छात्र शक्ति भवनÓ में हुई चिंतन बैठक में हिंदुत्व, धर्मातरण, समान नागरिक संहिता, कश्मीर एवं अयोध्या में राम मंदिर निर्माण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर विचार विमर्श किया गया। लेकिन सबसे अधिक मंथन भाजपा और उसकी केंद्र और राज्य सरकारों की चाल और चरित्र को सुधारने को लेकर हुआ। संघ प्रमुख मोहन भागवत,संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी, तीनों सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी, दत्तात्रय होसबोले एवं डॉ कृष्णगोपाल,क्षेत्रीय प्रचारक रामदत्त चक्रधर, मुरलीधर राव,वरिष्ठ प्रचारक राम माधव, शिवप्रकाश, वी सतीश, सौदान सिंह आदि की उपस्थिति में इस बात पर मुहर लगाई गई की भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने के बाद भी संघ की राजनैतिक गतिविधियां रुकेगी नहीं। पार्टी के लिए संघ अभी कई अहम फैसले लेगा ताकि भाजपा देश की जनता के मन में इस कदर बैठ जाए की आगामी दिनों में लोग इसके अलावा किसी और पार्टी के बारे में सोचे भी नहीं। उल्लेखनीय है कि अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संघ ने भाजपा की आधारशिला रखी थी। और उसका अंतिम लक्ष्य था भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाना। इसके लिए बिना फ्रंट पर आए सतत कोशिशें जारी रखीं ताकि देश की कमान भाजपा के हाथ में आए। अब जब पहली बार भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला है तो संघ की कोशिश है कि जनता से मिले इस भरोसे को टूटने ना दिया जाए। लिहाजा हर स्तर पर संघ अपनी रणनीति के तहत काम कर रहा है।
सरकार और संगठन की लगातार होगी मॉनिटरिंग
चिंतन शिविर में पहले दिन ही संघ के अनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ ने केंद्र सरकार के हालिया फैसलों पर कड़ी आपत्ति जताई। मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि जिस एफडीआई और जीएम फसलों के परीक्षण का हम विरोध कर रहे हैं उसी को सरकार लागू करने जा रही है। अगर भाजपा मूल विचारधारा से भटकेगी तो गलत संदेश जाएगा। ऐसी कुछ और शिकायतें सामने आने के बाद संघ पदाधिकारियों ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे अंतिम दिन कोर ग्रुप की बैठक में उठाया। इस अवसर पर भैय्याजी जोशी ने कहा कि भाजपा सरकार बनने के बाद देश की निगाहें संघ पर हैं। हमें शुचिता के साथ समन्वय बनाकर आगे बढऩा होगा। कोर ग्रुप की बैठक में इस बात का फैसला लिया गया कि अब सरकार और भाजपा संगठन के क्रियाकलापों की लगातार मॉनिटरिंग की जाएगी। इसके लिए जहां सरकार के कामकाज की निगरानी नौकरशाह करेंगे वहीं भाजपा की संगठन महामंत्री। ये लोग हर माह अपनी रिपोर्ट तैयार कर संघ मुख्यालय भेजेंगे। बताया जाता है कि अभी दो साल तक केंद्र सरकार के मामलों में संघ केवल सलाह देगा, उसके बाद कठोर कदम उठाएगा।
व्यापमं जैसी घटनाएं भविष्य में न हो
व्यापमं घोटाले और उसमें संघ नेताओं के नाम आने के बाद भी संघ ने चिंतन बैठक में चर्चा के लिए इस मुद्दे को नहीं रखा था। लेकिन संघ प्रमुख ने सभी पदाधिकारियों को हिदायत दी की वे ऐसे मामलों से दूर रहें। उन्होंने संघ के नेताओं से कहा की देश को एक साफ-सुथरी सरकार देना और उससे विकास कार्य करवाना हमारी प्राथमिकता है। सत्ता के आकर्षण और रूतबे से अपने आप को दूर रखते हुए हमें काम करना है,ताकि संघ की छवि खराब न हो। साथ की केंद्र और राज्यों की सरकारों पर भी निगाह रखनी है। उल्लेखनीय है कि व्यापमं घोटाले में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दो बड़े नेताओं नाम उछलने पर संघ की खुब किरकिरी हुई है। हालांकि अभी संघ प्रमुख मोहन भागवत सहित अन्य नेताओं ने आरोप को पूरी तरह से निराधार बताया है और जांच एजेंसी एसटीएफ भी इसे नकार चुकी है।
सरकार में तय होगा आरएसएस का कोटा
संघ कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही आरएसएस एक बार फिर सुर्खियों में छा गया है। मोदी के मंत्रिमंडल में 23 कैबिनेट मंत्री हैं, जिनमें से 17 की जड़ें कहीं न कहीं आरएसएस से जुड़ी हैं। हालांकि पूरी भाजपा ही संघ आंदोलन की उपज है और मोदी के राज्य मंत्रियों में भी शाखा से जुड़े लोग अच्छी खासी संख्या में हैं। इस पर देश भर में छिड़ी चर्चा को देखते हुए संघ ने भोपाल के चिंतन शिविर में तय किया है की सरकार चाहें केंद्र की हो या फिर राज्य की आरएसएस से आने वाले नेताओं को शामिल करने के लिए कोटा तय किया जाएगा। वहीं भाजपा संगठन में भी संघ के पदाधिकारियों को उपयोगिता के आधार पर भेजने का निर्णय हुआ। अभी जहां संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति भाजपा में संगठन मंत्री और संघ प्रभारी के तौर पर हुआ करती थी अब उन्हें लोकसभा और विधानसभावार नियुक्त किया जा रहा है। ताकि पार्टी के प्रतिनिधियों के काम-काज पर संघ सीधे नजर रख सके और जरूरत पडऩे पर दखल दे सके। ये कवायद भाजपा को जड़ों तक मजबूत बनाए रखने की है। ताकि सफलता का सिलसिला जारी रह सके और लगातार सफलता के जरिए संघ अपने उस अंतिम लक्ष्य को हासिल कर सके। लक्ष्य समाज के हर तबके को साथ लिए हुए संपूर्ण हिंदू राष्ट्र बनाने का।
विकास के एजेंडे को प्राथमिकता से ले सरकार
संघ ने केंद्र सरकार के लिए विकास, सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, प्रशासन और सामाजिक सौहाद्र्र ये पांच एजेंडे फिलहाल तय किया है। इसमें विकास का सबसे अधिक को प्राथमिकता देना है। हालांकि सामाजिक सौहाद्र्र वाला मसला बहुत विस्तृत और निजी नजरिए पर आधारित है। भाजपा ने घोषणापत्र में उन तीन चीजों को रखा है, जो मुख्य तौर पर संघ की मांगें हैं। इनमें अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भी शामिल है। यहां 16वीं सदी की ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद को 1992 में गिरा दिया गया था। इसके अलावा जम्मू कश्मीर को दिए गए विशेष राज्य का दर्जा वापस लेने और समान नागरिक कानून लागू करने की बात है। हालांकि दबे स्वरों में कहा जा रहा है कि यह सरकार की प्राथमिकता नहीं हो सकती।
नई कार्यकारिणी और संगठनात्मक बदलाव पर चर्चा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चिंतन बैठक के भाजपा में काम कर रहे अखिल भारतीय स्तर के सारे पदाधिकारियों ने संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की। संघ नेतृत्व से मुरलीधर राव की मुलाकात को सबसे अहम माना जा रहा है, जिसमें भाजपा की नई कार्यकारिणी और उसमें होने वाले बदलाव को अंतिम रूप दिया गया। इस बैठक में भाजपा की नई कार्यकारिणी के गठन को मंजूरी देने के साथ ही संगठनात्मक बदलाव को भी हरी झंडी दे दी गई है। इसके साथ ही राष्ट्रीय परिषद के एजेंडे पर भी चर्चा हुई। इससे पहले संघ प्रमुख ने राममाधव और शिवप्रकाश से चर्चा की थी। ये दोनों नेता फिलहाल प्रचारक ही हैं लेकिन भाजपा में काम कर रहे हैं। इन दोनों नेताओं की बदली हुई भूमिका को लेकर भी संघ नेतृत्व ने राव को अपना फैसला सुना दिया है। राम माधव को समन्वय से संबंधित अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। शिवप्रकाश की सेवाएं संगठनात्मक मामलों के लिए रखे जाने का सुझाव संघ ने दिया है। बैठक में जो अहम निर्णय हुआ उसमें पांच महत्वपूर्ण विषयों पर कोरग्रुप बनाने का फैसला किया गया है। इसमें राजनीतिक मामलों में राय देने के लिए भी एक कमेटी बनाई जाएगी, जो भाजपा के साथ समन्वय से लेकर राजनीतिक मुद्दों पर संघ प्रमुख का सलाह दिया करेगी। इसी तरह अकादमिक मुद्दों को लेकर भी संघ पहली बार अलग से कोर ग्रुप बना रहा है। ये कोरग्रुप यूपीएससी से लेकर हिन्दी को बढ़ावा देने पर रणनीति तैयार करेगा। इसी तरह आर्थिक मामलों की समीक्षा भी संघ प्रचारकों का एक कोरग्रुप करेगा। सामाजिक और प्रचार प्रसार के लिए भी एक ग्रुप गठित होगा।
रामलाल की विदाई तय
भाजपा में संगठन महामंत्री की भूमिका निभा रहे रामलाल की भोपाल में अनुपस्थिति और संघ नेतृत्व से मुलाकात के लिए न आने को इस बात का संकेत माना जा रहा है कि अब उनकी छुट्टी होना तय है। मोहनखेड़ा बैठक में ही संघ ने रामलाल को नई जिम्मेदारी देने से मना कर दिया था। संघ नेतृत्व ने तब तय किया था कि उनकी सेवाएं भाजपा को एक बार सौंप दी गई हैं इसलिए अब भाजपा ही उनकी नई जिम्मेदारी तय करेगी।
भाजपा के साथ संघ में भी पीढ़ीगत बदलाव
लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली अबतक की सबसे बड़ी जीत के बाद भाजपा में शीष नेतृत्व को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हालांकि पीढ़ीगत बदलाव के बाद संघ ने भाजपा के सांगठनिक तानेबाने में भी फेरबदल की कवायद शुरू कर दी है। संभावना है कि संघ और पार्टी के बीच समन्वय का काम देखने की जिम्मवारी सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल को मिलेगी। वहीं संगठन मंत्री के रूप में सौदान सिंह को जिम्मेवारी दी जा सकती है। मालूम हो कि वर्तमान में समन्वय का काम संघ के वरिष्ठ नेता सुरेश सोनी देखते हैं। जबकि संगठन मंत्री कि जिम्मेवारी रामलाल पर है। संघ के ये दोनों नेता मौजूदा जिम्मेदारी को लगभग एक दशक से निभा रहे हैं। ऐसे में यह बदलाव स्वभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है। संघ द्वारा किए जाने वाले इस बदलाव के अलग मायने है। सोनी को इस पद से हटाकर दूसरी जिम्मदारियां दी जा सकती है। इसी के मद्देनजर संघ ने भाजपा में प्रभारी की भूमिका के साथ-साथ कई राज्यों के प्रचारक और कार्यकर्ताओं को महत्वपूर्ण भूमिका देने का मन बना चुका है। इस कड़ी में कुछ को पद दे दिया गया है और अन्य को देने की तैयारी है। पदाधिकारियों का कहना है कि भाजपा को देश की सत्ता पर काबिज कराने में संघ के पदाधिकारियों और स्वयंसेवकों ने बडी भूमिका निभाई है। पार्टी की रैलियों से लेकर साधारण प्रचार में संघ के कई सदस्यों ने अहम भूमिका निभाई है। चुनाव के बाद संघ उन कार्यकर्ताओं को उनकी मेहनत और लगन के अनुसार पद आवंटित कर सकता है।
संगठन तय करेगा सांसद निधि का उपयोग
विकास को प्राथमिकता देने की अपनी रणनीति के तहत संघ ने निर्णय लिया है कि सांसद निधि का प्रयोग अब भाजपा संगठन तय करेगा और संगठन ही विकास कार्यों का एजेंडा बनाएगा। इतना ही नहीं संघ के कार्यकर्ता इन कामों पर नजर भी रखेंगे। अगर ऐसा हो जाता है तो भाजपा के सांसदों की संघ के प्रति पूरी जिम्मेदारी हो जाएगी। उन्हें अपने क्षेत्र में सांसद निधि का इस्तेमाल करने के लिए संघ कार्यकर्ताओं के साथ मिल बैठकर ही एजेंडा तय करना होगा। संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि संघ की मंशा है कि सांसद निधि का न दुरुपयोग हो और न ही वह लैप्स हो। वह कहते हैं कि सांसदों को पहले भी अधिकार था कि वो अपने क्षेत्र के विकास कार्यों की समीक्षा और गुणवत्ता की जांच कर सकते हैं, हालांकि इसके बाद भी विकास का पैसा बिचौलियों की जेब में चला जाता था लेकिन अब जबकि हर कार्यकर्ता की भूमिका इसमें रहेगी तो पारदर्शिता की गुंजाइश बढ़ जाएगी और कामों में भी तेजी आएगी।
अब बैकग्राउंड में नहीं रहेगा संघ
भाजपा की जीत में भले ही संघ के कार्यकर्ताओं का बड़ा हाथ रहता हो। जीत के बाद भाजपा अपने काम को लेकर स्वतंत्र रहा करती थी और संघ पूरी तरह बैकग्राउंड में चला जाता था लेकिन अब बदले हालात में देश में पूर्ण बहुमत की सरकार दिलाने के बाद संघ बैकग्राउंड में जाता नजऱ नहीं आ रहा। संघ, सरकार और संगठन में बेहतर तालमेल बनाकर आगे बढऩे के लिए तमाम बदलाव किए जा रहे हैं। भोपाल के चिंतन शिविर में शामिल होने आए संघ के एक नेता इस मसले पर कहते हैं कि संघ अपनी भूमिका नेतृत्व के हिसाब से तय करता है। जब इससे पहले भाजपा की सरकार में कमान अटल बिहारी वाजपेयी के हाथ में थी तो संघ बैकग्राउंड में था। लाल कृष्ण आडवाणी अध्यक्ष थे तब भी संघ बैकग्राउंड में रहकर काम करता रहा। लेकिन मोदी की शख्सियत अटल-आडवाणी से अलग है। मोदी कामयाबी का मंत्र जानते हैं लेकिन उनके जीवन और व्यक्तित्व से कई सवाल और विवाद भी जुड़े हैं। लिहाजा संघ बैकग्राउंड में रहकर काम करने से कतरा रहा है। ये भी तय है कि संघ के इस भूमिका में रहने पर देर-सवेर विवाद होगा, हो सकता है संघ की विचारधारा से जुड़े अलग-अलग संगठन नाराज हो जाएं जैसा कि ज़मीन अधिग्रहण, लेबर रिफॉम्र्स, और जेनेटिकली मॉडिफाइड क्रॉप के मुद्दे पर भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ और स्वदेशी जागरण को मोदी के विकास का एजेंडा रास नहीं आ रहा, लेकिन संगठन की मजबूती और कार्यकर्ताओं में जोश बनाए रखने के लिए संघ अपनी भूमिका तय कर चुका है।
बहरहाल संघ की ये रणनीति पहली नजर में कारगर तो दिखती है लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं को सीधे स्थानीय स्तर से सक्रिय सियासत का हिस्सा बनाना दोधारी तलवार पर चलने जैसा भी हो सकता है। अतीत में ऐसे कई मौके आए हैं जब राजनीतिक रंग में रंगने के बाद संघ कार्यकर्ताओं पर भ्रष्टाचार और चारित्रिक पतन के आरोप लगे हैं। तो वहीं कई ऐसे भी मौके आए हैं जब संघ के ऐसे सक्रिय कार्यकर्ताओं को परम्परागत राजनीति में रंगने की कोशिशें हुई है। तो सवाल ये कि संगठन मजबूत करने की कवायद कहीं भारी तो नहीं पड़ेगी और ये भी कि कहीं इस कवायद में संघ का मूल चरित्र,चेहरा और चिंतन तो नहीं बदल जाएगा
संघ की शाखाओं के भी आए अच्छे दिन
भोपाल चिंतन शिविर में संघ पदाधिकारियों ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि दस साल से जारी सत्ता का सूखा खत्म होते ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भी अच्छे दिन आ गए हैं। सत्ता में बदलाव के साथ ही न केवल संघ की शाखाओं की संख्या बढ़ी है, बल्कि इन शाखाओं में भाग लेने वालों की संख्या भी अचानक बढ़ गई है। इस दौरान ज्यादातर उन जगहों पर नए सिरे से शाखाएं लगनी शुरू हुई हैं, जहां बीते कुछ वर्षों से लोगों की रुचि न दिखने के कारण शाखा लगाना बंद कर दिया गया था। शाखाओं की संख्या पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में ज्यादा बढ़ी हैं, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में बंद हो चुकी शाखाएं फिर से शुरू हुई हैं। इसके अलावा भाजपा में प्रभाव बढ़ाने के इच्छुक नेता, टिकटों के दावेदार इन दिनों शाखा में लगातार उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। राजग के सत्ता में रहते 2004 तक संघ के 13 लाख सक्रिय सदस्य थे और देश भर में संघ की 50000 शाखाएं लगाती थी। इसी साल केंद्र की सत्ता से विदाई के साथ ही शाखा की संख्या लगातार कम होती चली गई। संघ सूत्रों के मुताबिक भाजपा की सत्ता से विदाई के बाद हालांकि सक्रिय सदस्यों की संख्या में कमी नहीं आई। इसमें कुछ बढ़ोत्तरी ही हुई। मगर शाखा की संख्या लगातार कम होती गई। कई जगहों पर लोगों के रुचि न लेने के कारण शाखा लगना धीरे-धीरे बंद हुआ तो कई जगहों पर शाखा लगाने के लिए पहल करने वालों ने ही रुचि लेनी बंद कर दी।
उपचुनाव से दूर रहेगा संघ
बैठक में इस बात पर भी आम सहमति बनाई गई की बिहार की दस, मध्यप्रदेश तथा कर्नाटक की तीन-तीन और पंजाब की दो सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में संघ अपने-आप को दूर रखेगा। दरअसल, संघ इन चुनावों में भाजपा की सांगठनिक शक्ति का आंकलन करना चाहता है ताकि आगामी दिनों में संगठन की खामियों को दूर किया जा सके।
दक्षिण के राज्यों में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश
संघ की योजना शाखाओं के माध्यम से दक्षिण के राज्यों खासकर तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में अपना प्रभाव बढ़ाने की है। संघ केरल में पहले से ही बहुत अधिक सक्रिय है, जबकि कर्नाटक में भी संघ का बड़ा आधार है।
महिलाओं की भागिदारी बढ़ेगी
लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका महिलाओं की रही है। इससे महिला कार्यकर्ताओं की कमी अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को खलने लगी है। उसे लग रहा है कि आधी आबादी के बड़े हिस्से के बीच अपनी पकड़ व पहुंच बनाए बगैर काम नहीं चलेगा। विचारधारा के आधार पर मजबूत और बड़ा जनमत बनाने का काम भी नहीं हो पाएगा। विरोधियों को करारा जवाब देना मुश्किल रहेगा। इसीलिए उसने संघ परिवार के संगठनों में महिला कार्यकर्ताओं की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इसकी जिम्मेदारी विद्यार्थी परिषद को सौंपी गई है। जिसने छात्राओं के बीच अपना कामधाम और संपर्क बढ़ाकर संघ की इस चिंता को दूर करने की कार्ययोजना बनाकर काम शुरू भी कर दिया है। इसके लिए छात्राओं की एक समिति गठित की गई है। समिति की सदस्याएं विश्वविद्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों में छात्राओं के बीच संपर्क कर रही हैं। उन्हें विद्यार्थी परिषद से जुडऩे के लिए प्रेरित कर रही हैं। इस सिलसिले को गति देने पर भी संघ के चिंतन शिविर में विचार-विमर्श किया गया। योजना यह भी बनी है कि विद्यार्थी परिषद से जुड़ी नई छात्राओं को साथ लेकर महिला उत्पीडऩ की घटनाओं पर आंदोलन चलाया जाए। जिससे इन्हें संगठन के साथ स्थायी रूप से जोड़ा जा सके। दरअसल संघ बहुत दिनों से अपने राजनीतिक संगठन भाजपा की स्थिति को लेकर चिंतित चल रहा था। काफी विचार-विमर्श के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ताकत बढ़ाने के लिए पुराने प्रयोगों को दोहराते हुए विद्यार्थी परिषद के जरिए भाजपा व अन्य संगठनों में कार्यकर्ताओं को भेजने की प्रक्रिया फिर शुरू करनी होगी। जिससे वैचारिक अधिष्ठान भी मजबूत रहे और संघ की इच्छानुसार काम भी हो सके। लोकसभा चुनाव से लगभग एक वर्ष पहले संघ की प्रतिनिधि सभा में विचार-विमर्श के बाद इस सिलसिले में पूरी कार्ययोजना तैयार हुई। उसी का नतीजा रहा कि संघ ने डॉ. कृष्णगोपाल जैसे प्रचारक को सहसरकार्यवाह बनाकर भाजपा की जिम्मेदारी सौंपी। साथ ही नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, सुनील बंसल,विष्णुदत्त शर्मा सहित विद्यार्थी परिषद से निकले अन्य कई चेहरों को प्रभावी तरीके से आगे बढ़ाया गया। चुनाव में रणनीतिक कमान और सोशल मीडिया की जिम्मेदारी भी विद्यार्थी परिषद के कंधों पर डाली गई। इसके सार्थक नतीजे आए।
समर्थन बनाए रखने की कोशिश संघ ने अब इस प्रयोग को बड़े पैमाने पर आजमाने की योजना बनाई है। अभी हाल में भाजपा में भेजे गए वरिष्ठ प्रचारक राममाधव भी संघ की इसी सोच की अगली कड़ी हैं। संघ परिवार से जुड़े लोगों का कहना है कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के पीछे न सिर्फ आगे की चुनौतियों से निपटने की चिंता है बल्कि लोकसभा चुनाव में मिले समर्थन को भी शक्ति के रूप में सहेजकर रखने की फिक्र है। संघ का मानना है कि महिलाएं जुड़ गईं तो यह समर्थन स्थायी तौर पर साथ रहेगा। इसीलिए विद्यार्थी परिषद को छात्राओं को जोडऩे के इस काम में लगाया गया है। काम बढ़ाने के लिए समिति गठित करके उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई।
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मोदी और संघ के बीच चल रहा है शह और मात का खेल
संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अंदर ही अंदर रस्सा कस्सी शुरू हो गई है। भाजपा पर काबिज होने के बाद मोदी अब संघ को भी अपने कब्जे में रखने की जुगत में है। वहीं संघ मोदी पर अपना शिकंजा कसने के लिए उनके धुर विरोधी संजय जोशी को सक्रिय राजनीति में लौटाने के लिए दिल्ली का बुलावा भेजा है। जोशी ने दिल्ली वापस आकर सक्रिय राजनीति आरंभ कर दी है। दिल्ली पहुंचकर उन्होंने इसकी जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से दे दी है। संजय जोशी का सक्रिय राजनीति में लौटना मोदी की पेशानी पर बल बढ़ा सकता है। क्योंकि संजय जोशी को मई 2012 में मोदी के दबाव के चलते पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकाल दिया गया था। बाद में उन्हें भाजपा के कामों से भी आराम दे दिया गया। उस समय जोशी पार्टी के महासचिव थे। जोशी ने अपने लौटने की जानकारी संघ के नए माध्यम ट्विटर पर दी। जोशी ने कहा कि मैं भाजपा कार्यकर्ता हूं इसीलिए मैं आज भी भाजपा में ही हूं। सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि इस बारे में भविष्य में पता चलेगा पर मैं यहां रुकने के लिए आया हूं। जोशी की इन दिनों ट्विटर पर भी काफी सक्रियता बढ़ी है। इन ट्वीटस में ज्यादातर जिक्र दिल्ली और उत्तर प्रदेश का होता है। जोशी को जब बर्खास्त किया गया था उससे पहले जोशी को इन्हीं दोनों राज्यों का प्रभार सौंपा गया था। जोशी बीते कुछ दिनों में यूपी का कई बार दौरा भी कर चुके हैं, जिससे जोशी की दिल्ली में यूपी में दिलचस्पी का पता चलता है। जोशी और मोदी के बीच की दूरियों का इस बात से पता लगाया जा सकता है कि 16 मई को भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बाद जोशी ने ट्वीट कर देश को धन्यवाद कहा था। इस ट्वीट में मोदी का जिक्र तक नहीं था। वहीं मोदी संघ पर नकेल कसने के लिए मध्यप्रदेश व्यापमं घोटाले को अंदर ही अंदर तूल देने में जुटे हुए है। इस घोटाले में संघ के नेताओं का नाम खुलकर सामने आया है। इसके बाद से ही संघ केंद्रीय स्तर पर इस घोटाले की लीपापोती में जुट गया है। वहीं भाजपा को पूरी तरह से अपने शिकंजे में कसने के लिए नरेंद्र मोदी ने संघ के वरिष्ठ नेता राम माधव को पार्टी की जिम्मेदारी सौंपी है। दरअसल, मोदी के करीबी अमित शाह और राम माधव की एंट्री को मोदी के इसी एजेंडे का हिस्सा माना जा रहा है।