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भेड़ाघाट

Friday, August 8, 2014

संघ के लिए केंद्र और राज्यों की सरकारों की जासूसी करेंगे अफसर

-सरकार के काम और मंत्रियों के क्रियाकलापों की हर माह संघ मुख्यालय पहुंचेगी रिपोर्ट
-भोपाल में संघ के पांच दिनी चिंतन बैठक में बनी आगामी कार्ययोजना
-भाजपा की हर राजनैतिक गतिविधियों की लगातार होगी समीक्षा
-2018 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी से तैयार होगी जमीनी रणनीति
-राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, अकादमिक और प्रचार के लिए बनाए जाएंगे कोर ग्रुप binod upadhyay/विनोद उपाध्याय
भोपाल। पिछले 10 सालों से संक्रमण काल से गुजर रही भाजपा को देश की सत्ता तक पहुंचाने का लक्ष्य पा चुका राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अब सरकार को अपनी नीति और रणनीति के तहत संचालित करवाएगा। ताकि देश में आर्थिक व सामाजिक सुधार हो तथा भाजपा की राजनीतिक ताकत और बढ़े। इसके लिए संघ ने भोपाल में अपनी पांच दिनी चिंतन शिविर में कार्ययोजना पर विचार किया। इसके तहत संघ परस्त नौकरशाहों को केंद्र और राज्यों में महत्वपूर्ण पदों पर बिठाकर सरकारों की जासूसी कराने की योजना बनाई है। ये नौकरशाह सरकार के काम और मंत्रियों के क्रियाकलापों की हर माह रिपोर्ट तैयार करके संघ मुख्यालय पहुंचाएंगे।
...ताकि जनता का भरोसा न टूटे
भोपाल में ठेंगड़ी भवन एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यालय 'छात्र शक्ति भवनÓ में हुई चिंतन बैठक में हिंदुत्व, धर्मातरण, समान नागरिक संहिता, कश्मीर एवं अयोध्या में राम मंदिर निर्माण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर विचार विमर्श किया गया। लेकिन सबसे अधिक मंथन भाजपा और उसकी केंद्र और राज्य सरकारों की चाल और चरित्र को सुधारने को लेकर हुआ। संघ प्रमुख मोहन भागवत,संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी, तीनों सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी, दत्तात्रय होसबोले एवं डॉ कृष्णगोपाल,क्षेत्रीय प्रचारक रामदत्त चक्रधर, मुरलीधर राव,वरिष्ठ प्रचारक राम माधव, शिवप्रकाश, वी सतीश, सौदान सिंह आदि की उपस्थिति में इस बात पर मुहर लगाई गई की भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने के बाद भी संघ की राजनैतिक गतिविधियां रुकेगी नहीं। पार्टी के लिए संघ अभी कई अहम फैसले लेगा ताकि भाजपा देश की जनता के मन में इस कदर बैठ जाए की आगामी दिनों में लोग इसके अलावा किसी और पार्टी के बारे में सोचे भी नहीं। उल्लेखनीय है कि अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संघ ने भाजपा की आधारशिला रखी थी। और उसका अंतिम लक्ष्य था भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाना। इसके लिए बिना फ्रंट पर आए सतत कोशिशें जारी रखीं ताकि देश की कमान भाजपा के हाथ में आए। अब जब पहली बार भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला है तो संघ की कोशिश है कि जनता से मिले इस भरोसे को टूटने ना दिया जाए। लिहाजा हर स्तर पर संघ अपनी रणनीति के तहत काम कर रहा है।
सरकार और संगठन की लगातार होगी मॉनिटरिंग
चिंतन शिविर में पहले दिन ही संघ के अनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ ने केंद्र सरकार के हालिया फैसलों पर कड़ी आपत्ति जताई। मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि जिस एफडीआई और जीएम फसलों के परीक्षण का हम विरोध कर रहे हैं उसी को सरकार लागू करने जा रही है। अगर भाजपा मूल विचारधारा से भटकेगी तो गलत संदेश जाएगा। ऐसी कुछ और शिकायतें सामने आने के बाद संघ पदाधिकारियों ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे अंतिम दिन कोर ग्रुप की बैठक में उठाया। इस अवसर पर भैय्याजी जोशी ने कहा कि भाजपा सरकार बनने के बाद देश की निगाहें संघ पर हैं। हमें शुचिता के साथ समन्वय बनाकर आगे बढऩा होगा। कोर ग्रुप की बैठक में इस बात का फैसला लिया गया कि अब सरकार और भाजपा संगठन के क्रियाकलापों की लगातार मॉनिटरिंग की जाएगी। इसके लिए जहां सरकार के कामकाज की निगरानी नौकरशाह करेंगे वहीं भाजपा की संगठन महामंत्री। ये लोग हर माह अपनी रिपोर्ट तैयार कर संघ मुख्यालय भेजेंगे। बताया जाता है कि अभी दो साल तक केंद्र सरकार के मामलों में संघ केवल सलाह देगा, उसके बाद कठोर कदम उठाएगा।
व्यापमं जैसी घटनाएं भविष्य में न हो
व्यापमं घोटाले और उसमें संघ नेताओं के नाम आने के बाद भी संघ ने चिंतन बैठक में चर्चा के लिए इस मुद्दे को नहीं रखा था। लेकिन संघ प्रमुख ने सभी पदाधिकारियों को हिदायत दी की वे ऐसे मामलों से दूर रहें। उन्होंने संघ के नेताओं से कहा की देश को एक साफ-सुथरी सरकार देना और उससे विकास कार्य करवाना हमारी प्राथमिकता है। सत्ता के आकर्षण और रूतबे से अपने आप को दूर रखते हुए हमें काम करना है,ताकि संघ की छवि खराब न हो। साथ की केंद्र और राज्यों की सरकारों पर भी निगाह रखनी है। उल्लेखनीय है कि व्यापमं घोटाले में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दो बड़े नेताओं नाम उछलने पर संघ की खुब किरकिरी हुई है। हालांकि अभी संघ प्रमुख मोहन भागवत सहित अन्य नेताओं ने आरोप को पूरी तरह से निराधार बताया है और जांच एजेंसी एसटीएफ भी इसे नकार चुकी है।
सरकार में तय होगा आरएसएस का कोटा
संघ कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही आरएसएस एक बार फिर सुर्खियों में छा गया है। मोदी के मंत्रिमंडल में 23 कैबिनेट मंत्री हैं, जिनमें से 17 की जड़ें कहीं न कहीं आरएसएस से जुड़ी हैं। हालांकि पूरी भाजपा ही संघ आंदोलन की उपज है और मोदी के राज्य मंत्रियों में भी शाखा से जुड़े लोग अच्छी खासी संख्या में हैं। इस पर देश भर में छिड़ी चर्चा को देखते हुए संघ ने भोपाल के चिंतन शिविर में तय किया है की सरकार चाहें केंद्र की हो या फिर राज्य की आरएसएस से आने वाले नेताओं को शामिल करने के लिए कोटा तय किया जाएगा। वहीं भाजपा संगठन में भी संघ के पदाधिकारियों को उपयोगिता के आधार पर भेजने का निर्णय हुआ। अभी जहां संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति भाजपा में संगठन मंत्री और संघ प्रभारी के तौर पर हुआ करती थी अब उन्हें लोकसभा और विधानसभावार नियुक्त किया जा रहा है। ताकि पार्टी के प्रतिनिधियों के काम-काज पर संघ सीधे नजर रख सके और जरूरत पडऩे पर दखल दे सके। ये कवायद भाजपा को जड़ों तक मजबूत बनाए रखने की है। ताकि सफलता का सिलसिला जारी रह सके और लगातार सफलता के जरिए संघ अपने उस अंतिम लक्ष्य को हासिल कर सके। लक्ष्य समाज के हर तबके को साथ लिए हुए संपूर्ण हिंदू राष्ट्र बनाने का।
विकास के एजेंडे को प्राथमिकता से ले सरकार
संघ ने केंद्र सरकार के लिए विकास, सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, प्रशासन और सामाजिक सौहाद्र्र ये पांच एजेंडे फिलहाल तय किया है। इसमें विकास का सबसे अधिक को प्राथमिकता देना है। हालांकि सामाजिक सौहाद्र्र वाला मसला बहुत विस्तृत और निजी नजरिए पर आधारित है। भाजपा ने घोषणापत्र में उन तीन चीजों को रखा है, जो मुख्य तौर पर संघ की मांगें हैं। इनमें अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भी शामिल है। यहां 16वीं सदी की ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद को 1992 में गिरा दिया गया था। इसके अलावा जम्मू कश्मीर को दिए गए विशेष राज्य का दर्जा वापस लेने और समान नागरिक कानून लागू करने की बात है। हालांकि दबे स्वरों में कहा जा रहा है कि यह सरकार की प्राथमिकता नहीं हो सकती।
नई कार्यकारिणी और संगठनात्मक बदलाव पर चर्चा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चिंतन बैठक के भाजपा में काम कर रहे अखिल भारतीय स्तर के सारे पदाधिकारियों ने संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की। संघ नेतृत्व से मुरलीधर राव की मुलाकात को सबसे अहम माना जा रहा है, जिसमें भाजपा की नई कार्यकारिणी और उसमें होने वाले बदलाव को अंतिम रूप दिया गया। इस बैठक में भाजपा की नई कार्यकारिणी के गठन को मंजूरी देने के साथ ही संगठनात्मक बदलाव को भी हरी झंडी दे दी गई है। इसके साथ ही राष्ट्रीय परिषद के एजेंडे पर भी चर्चा हुई। इससे पहले संघ प्रमुख ने राममाधव और शिवप्रकाश से चर्चा की थी। ये दोनों नेता फिलहाल प्रचारक ही हैं लेकिन भाजपा में काम कर रहे हैं। इन दोनों नेताओं की बदली हुई भूमिका को लेकर भी संघ नेतृत्व ने राव को अपना फैसला सुना दिया है। राम माधव को समन्वय से संबंधित अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। शिवप्रकाश की सेवाएं संगठनात्मक मामलों के लिए रखे जाने का सुझाव संघ ने दिया है। बैठक में जो अहम निर्णय हुआ उसमें पांच महत्वपूर्ण विषयों पर कोरग्रुप बनाने का फैसला किया गया है। इसमें राजनीतिक मामलों में राय देने के लिए भी एक कमेटी बनाई जाएगी, जो भाजपा के साथ समन्वय से लेकर राजनीतिक मुद्दों पर संघ प्रमुख का सलाह दिया करेगी। इसी तरह अकादमिक मुद्दों को लेकर भी संघ पहली बार अलग से कोर ग्रुप बना रहा है। ये कोरग्रुप यूपीएससी से लेकर हिन्दी को बढ़ावा देने पर रणनीति तैयार करेगा। इसी तरह आर्थिक मामलों की समीक्षा भी संघ प्रचारकों का एक कोरग्रुप करेगा। सामाजिक और प्रचार प्रसार के लिए भी एक ग्रुप गठित होगा।
रामलाल की विदाई तय
भाजपा में संगठन महामंत्री की भूमिका निभा रहे रामलाल की भोपाल में अनुपस्थिति और संघ नेतृत्व से मुलाकात के लिए न आने को इस बात का संकेत माना जा रहा है कि अब उनकी छुट्टी होना तय है। मोहनखेड़ा बैठक में ही संघ ने रामलाल को नई जिम्मेदारी देने से मना कर दिया था। संघ नेतृत्व ने तब तय किया था कि उनकी सेवाएं भाजपा को एक बार सौंप दी गई हैं इसलिए अब भाजपा ही उनकी नई जिम्मेदारी तय करेगी।
भाजपा के साथ संघ में भी पीढ़ीगत बदलाव
लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली अबतक की सबसे बड़ी जीत के बाद भाजपा में शीष नेतृत्व को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हालांकि पीढ़ीगत बदलाव के बाद संघ ने भाजपा के सांगठनिक तानेबाने में भी फेरबदल की कवायद शुरू कर दी है। संभावना है कि संघ और पार्टी के बीच समन्वय का काम देखने की जिम्मवारी सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल को मिलेगी। वहीं संगठन मंत्री के रूप में सौदान सिंह को जिम्मेवारी दी जा सकती है। मालूम हो कि वर्तमान में समन्वय का काम संघ के वरिष्ठ नेता सुरेश सोनी देखते हैं। जबकि संगठन मंत्री कि जिम्मेवारी रामलाल पर है। संघ के ये दोनों नेता मौजूदा जिम्मेदारी को लगभग एक दशक से निभा रहे हैं। ऐसे में यह बदलाव स्वभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है। संघ द्वारा किए जाने वाले इस बदलाव के अलग मायने है। सोनी को इस पद से हटाकर दूसरी जिम्मदारियां दी जा सकती है। इसी के मद्देनजर संघ ने भाजपा में प्रभारी की भूमिका के साथ-साथ कई राज्यों के प्रचारक और कार्यकर्ताओं को महत्वपूर्ण भूमिका देने का मन बना चुका है। इस कड़ी में कुछ को पद दे दिया गया है और अन्य को देने की तैयारी है। पदाधिकारियों का कहना है कि भाजपा को देश की सत्ता पर काबिज कराने में संघ के पदाधिकारियों और स्वयंसेवकों ने बडी भूमिका निभाई है। पार्टी की रैलियों से लेकर साधारण प्रचार में संघ के कई सदस्यों ने अहम भूमिका निभाई है। चुनाव के बाद संघ उन कार्यकर्ताओं को उनकी मेहनत और लगन के अनुसार पद आवंटित कर सकता है।
संगठन तय करेगा सांसद निधि का उपयोग
विकास को प्राथमिकता देने की अपनी रणनीति के तहत संघ ने निर्णय लिया है कि सांसद निधि का प्रयोग अब भाजपा संगठन तय करेगा और संगठन ही विकास कार्यों का एजेंडा बनाएगा। इतना ही नहीं संघ के कार्यकर्ता इन कामों पर नजर भी रखेंगे। अगर ऐसा हो जाता है तो भाजपा के सांसदों की संघ के प्रति पूरी जिम्मेदारी हो जाएगी। उन्हें अपने क्षेत्र में सांसद निधि का इस्तेमाल करने के लिए संघ कार्यकर्ताओं के साथ मिल बैठकर ही एजेंडा तय करना होगा। संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि संघ की मंशा है कि सांसद निधि का न दुरुपयोग हो और न ही वह लैप्स हो। वह कहते हैं कि सांसदों को पहले भी अधिकार था कि वो अपने क्षेत्र के विकास कार्यों की समीक्षा और गुणवत्ता की जांच कर सकते हैं, हालांकि इसके बाद भी विकास का पैसा बिचौलियों की जेब में चला जाता था लेकिन अब जबकि हर कार्यकर्ता की भूमिका इसमें रहेगी तो पारदर्शिता की गुंजाइश बढ़ जाएगी और कामों में भी तेजी आएगी।
अब बैकग्राउंड में नहीं रहेगा संघ
भाजपा की जीत में भले ही संघ के कार्यकर्ताओं का बड़ा हाथ रहता हो। जीत के बाद भाजपा अपने काम को लेकर स्वतंत्र रहा करती थी और संघ पूरी तरह बैकग्राउंड में चला जाता था लेकिन अब बदले हालात में देश में पूर्ण बहुमत की सरकार दिलाने के बाद संघ बैकग्राउंड में जाता नजऱ नहीं आ रहा। संघ, सरकार और संगठन में बेहतर तालमेल बनाकर आगे बढऩे के लिए तमाम बदलाव किए जा रहे हैं। भोपाल के चिंतन शिविर में शामिल होने आए संघ के एक नेता इस मसले पर कहते हैं कि संघ अपनी भूमिका नेतृत्व के हिसाब से तय करता है। जब इससे पहले भाजपा की सरकार में कमान अटल बिहारी वाजपेयी के हाथ में थी तो संघ बैकग्राउंड में था। लाल कृष्ण आडवाणी अध्यक्ष थे तब भी संघ बैकग्राउंड में रहकर काम करता रहा। लेकिन मोदी की शख्सियत अटल-आडवाणी से अलग है। मोदी कामयाबी का मंत्र जानते हैं लेकिन उनके जीवन और व्यक्तित्व से कई सवाल और विवाद भी जुड़े हैं। लिहाजा संघ बैकग्राउंड में रहकर काम करने से कतरा रहा है। ये भी तय है कि संघ के इस भूमिका में रहने पर देर-सवेर विवाद होगा, हो सकता है संघ की विचारधारा से जुड़े अलग-अलग संगठन नाराज हो जाएं जैसा कि ज़मीन अधिग्रहण, लेबर रिफॉम्र्स, और जेनेटिकली मॉडिफाइड क्रॉप के मुद्दे पर भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ और स्वदेशी जागरण को मोदी के विकास का एजेंडा रास नहीं आ रहा, लेकिन संगठन की मजबूती और कार्यकर्ताओं में जोश बनाए रखने के लिए संघ अपनी भूमिका तय कर चुका है।
बहरहाल संघ की ये रणनीति पहली नजर में कारगर तो दिखती है लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं को सीधे स्थानीय स्तर से सक्रिय सियासत का हिस्सा बनाना दोधारी तलवार पर चलने जैसा भी हो सकता है। अतीत में ऐसे कई मौके आए हैं जब राजनीतिक रंग में रंगने के बाद संघ कार्यकर्ताओं पर भ्रष्टाचार और चारित्रिक पतन के आरोप लगे हैं। तो वहीं कई ऐसे भी मौके आए हैं जब संघ के ऐसे सक्रिय कार्यकर्ताओं को परम्परागत राजनीति में रंगने की कोशिशें हुई है। तो सवाल ये कि संगठन मजबूत करने की कवायद कहीं भारी तो नहीं पड़ेगी और ये भी कि कहीं इस कवायद में संघ का मूल चरित्र,चेहरा और चिंतन तो नहीं बदल जाएगा
संघ की शाखाओं के भी आए अच्छे दिन
भोपाल चिंतन शिविर में संघ पदाधिकारियों ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि दस साल से जारी सत्ता का सूखा खत्म होते ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भी अच्छे दिन आ गए हैं। सत्ता में बदलाव के साथ ही न केवल संघ की शाखाओं की संख्या बढ़ी है, बल्कि इन शाखाओं में भाग लेने वालों की संख्या भी अचानक बढ़ गई है। इस दौरान ज्यादातर उन जगहों पर नए सिरे से शाखाएं लगनी शुरू हुई हैं, जहां बीते कुछ वर्षों से लोगों की रुचि न दिखने के कारण शाखा लगाना बंद कर दिया गया था। शाखाओं की संख्या पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में ज्यादा बढ़ी हैं, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में बंद हो चुकी शाखाएं फिर से शुरू हुई हैं। इसके अलावा भाजपा में प्रभाव बढ़ाने के इच्छुक नेता, टिकटों के दावेदार इन दिनों शाखा में लगातार उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। राजग के सत्ता में रहते 2004 तक संघ के 13 लाख सक्रिय सदस्य थे और देश भर में संघ की 50000 शाखाएं लगाती थी। इसी साल केंद्र की सत्ता से विदाई के साथ ही शाखा की संख्या लगातार कम होती चली गई। संघ सूत्रों के मुताबिक भाजपा की सत्ता से विदाई के बाद हालांकि सक्रिय सदस्यों की संख्या में कमी नहीं आई। इसमें कुछ बढ़ोत्तरी ही हुई। मगर शाखा की संख्या लगातार कम होती गई। कई जगहों पर लोगों के रुचि न लेने के कारण शाखा लगना धीरे-धीरे बंद हुआ तो कई जगहों पर शाखा लगाने के लिए पहल करने वालों ने ही रुचि लेनी बंद कर दी।
उपचुनाव से दूर रहेगा संघ
बैठक में इस बात पर भी आम सहमति बनाई गई की बिहार की दस, मध्यप्रदेश तथा कर्नाटक की तीन-तीन और पंजाब की दो सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में संघ अपने-आप को दूर रखेगा। दरअसल, संघ इन चुनावों में भाजपा की सांगठनिक शक्ति का आंकलन करना चाहता है ताकि आगामी दिनों में संगठन की खामियों को दूर किया जा सके।
दक्षिण के राज्यों में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश
संघ की योजना शाखाओं के माध्यम से दक्षिण के राज्यों खासकर तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में अपना प्रभाव बढ़ाने की है। संघ केरल में पहले से ही बहुत अधिक सक्रिय है, जबकि कर्नाटक में भी संघ का बड़ा आधार है।
महिलाओं की भागिदारी बढ़ेगी
लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका महिलाओं की रही है। इससे महिला कार्यकर्ताओं की कमी अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को खलने लगी है। उसे लग रहा है कि आधी आबादी के बड़े हिस्से के बीच अपनी पकड़ व पहुंच बनाए बगैर काम नहीं चलेगा। विचारधारा के आधार पर मजबूत और बड़ा जनमत बनाने का काम भी नहीं हो पाएगा। विरोधियों को करारा जवाब देना मुश्किल रहेगा। इसीलिए उसने संघ परिवार के संगठनों में महिला कार्यकर्ताओं की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इसकी जिम्मेदारी विद्यार्थी परिषद को सौंपी गई है। जिसने छात्राओं के बीच अपना कामधाम और संपर्क बढ़ाकर संघ की इस चिंता को दूर करने की कार्ययोजना बनाकर काम शुरू भी कर दिया है। इसके लिए छात्राओं की एक समिति गठित की गई है। समिति की सदस्याएं विश्वविद्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों में छात्राओं के बीच संपर्क कर रही हैं। उन्हें विद्यार्थी परिषद से जुडऩे के लिए प्रेरित कर रही हैं। इस सिलसिले को गति देने पर भी संघ के चिंतन शिविर में विचार-विमर्श किया गया। योजना यह भी बनी है कि विद्यार्थी परिषद से जुड़ी नई छात्राओं को साथ लेकर महिला उत्पीडऩ की घटनाओं पर आंदोलन चलाया जाए। जिससे इन्हें संगठन के साथ स्थायी रूप से जोड़ा जा सके। दरअसल संघ बहुत दिनों से अपने राजनीतिक संगठन भाजपा की स्थिति को लेकर चिंतित चल रहा था। काफी विचार-विमर्श के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ताकत बढ़ाने के लिए पुराने प्रयोगों को दोहराते हुए विद्यार्थी परिषद के जरिए भाजपा व अन्य संगठनों में कार्यकर्ताओं को भेजने की प्रक्रिया फिर शुरू करनी होगी। जिससे वैचारिक अधिष्ठान भी मजबूत रहे और संघ की इच्छानुसार काम भी हो सके। लोकसभा चुनाव से लगभग एक वर्ष पहले संघ की प्रतिनिधि सभा में विचार-विमर्श के बाद इस सिलसिले में पूरी कार्ययोजना तैयार हुई। उसी का नतीजा रहा कि संघ ने डॉ. कृष्णगोपाल जैसे प्रचारक को सहसरकार्यवाह बनाकर भाजपा की जिम्मेदारी सौंपी। साथ ही नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, सुनील बंसल,विष्णुदत्त शर्मा सहित विद्यार्थी परिषद से निकले अन्य कई चेहरों को प्रभावी तरीके से आगे बढ़ाया गया। चुनाव में रणनीतिक कमान और सोशल मीडिया की जिम्मेदारी भी विद्यार्थी परिषद के कंधों पर डाली गई। इसके सार्थक नतीजे आए।
समर्थन बनाए रखने की कोशिश संघ ने अब इस प्रयोग को बड़े पैमाने पर आजमाने की योजना बनाई है। अभी हाल में भाजपा में भेजे गए वरिष्ठ प्रचारक राममाधव भी संघ की इसी सोच की अगली कड़ी हैं। संघ परिवार से जुड़े लोगों का कहना है कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के पीछे न सिर्फ आगे की चुनौतियों से निपटने की चिंता है बल्कि लोकसभा चुनाव में मिले समर्थन को भी शक्ति के रूप में सहेजकर रखने की फिक्र है। संघ का मानना है कि महिलाएं जुड़ गईं तो यह समर्थन स्थायी तौर पर साथ रहेगा। इसीलिए विद्यार्थी परिषद को छात्राओं को जोडऩे के इस काम में लगाया गया है। काम बढ़ाने के लिए समिति गठित करके उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई।
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अंदुरूनी खबर यह भी
मोदी और संघ के बीच चल रहा है शह और मात का खेल
संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अंदर ही अंदर रस्सा कस्सी शुरू हो गई है। भाजपा पर काबिज होने के बाद मोदी अब संघ को भी अपने कब्जे में रखने की जुगत में है। वहीं संघ मोदी पर अपना शिकंजा कसने के लिए उनके धुर विरोधी संजय जोशी को सक्रिय राजनीति में लौटाने के लिए दिल्ली का बुलावा भेजा है। जोशी ने दिल्ली वापस आकर सक्रिय राजनीति आरंभ कर दी है। दिल्ली पहुंचकर उन्होंने इसकी जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से दे दी है। संजय जोशी का सक्रिय राजनीति में लौटना मोदी की पेशानी पर बल बढ़ा सकता है। क्योंकि संजय जोशी को मई 2012 में मोदी के दबाव के चलते पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकाल दिया गया था। बाद में उन्हें भाजपा के कामों से भी आराम दे दिया गया। उस समय जोशी पार्टी के महासचिव थे। जोशी ने अपने लौटने की जानकारी संघ के नए माध्यम ट्विटर पर दी। जोशी ने कहा कि मैं भाजपा कार्यकर्ता हूं इसीलिए मैं आज भी भाजपा में ही हूं। सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि इस बारे में भविष्य में पता चलेगा पर मैं यहां रुकने के लिए आया हूं। जोशी की इन दिनों ट्विटर पर भी काफी सक्रियता बढ़ी है। इन ट्वीटस में ज्यादातर जिक्र दिल्ली और उत्तर प्रदेश का होता है। जोशी को जब बर्खास्त किया गया था उससे पहले जोशी को इन्हीं दोनों राज्यों का प्रभार सौंपा गया था। जोशी बीते कुछ दिनों में यूपी का कई बार दौरा भी कर चुके हैं, जिससे जोशी की दिल्ली में यूपी में दिलचस्पी का पता चलता है। जोशी और मोदी के बीच की दूरियों का इस बात से पता लगाया जा सकता है कि 16 मई को भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बाद जोशी ने ट्वीट कर देश को धन्यवाद कहा था। इस ट्वीट में मोदी का जिक्र तक नहीं था। वहीं मोदी संघ पर नकेल कसने के लिए मध्यप्रदेश व्यापमं घोटाले को अंदर ही अंदर तूल देने में जुटे हुए है। इस घोटाले में संघ के नेताओं का नाम खुलकर सामने आया है। इसके बाद से ही संघ केंद्रीय स्तर पर इस घोटाले की लीपापोती में जुट गया है। वहीं भाजपा को पूरी तरह से अपने शिकंजे में कसने के लिए नरेंद्र मोदी ने संघ के वरिष्ठ नेता राम माधव को पार्टी की जिम्मेदारी सौंपी है। दरअसल, मोदी के करीबी अमित शाह और राम माधव की एंट्री को मोदी के इसी एजेंडे का हिस्सा माना जा रहा है।

Monday, June 30, 2014

1000 करोड़ के घोटाले का मास्टर माइंड कौन...?

व्यापमं महाघोटाला:......
सवालों के घेरे में एसआईटी,कम्प्यूटर के हार्डडिस्क खोलेंगे राज
एक साल पहले हुआ था खुलासा, 10 मामलों में अब तक 250 आरोपी गिरफ्तार
-150 से अधिक छात्र और उनके परिजन अभी भी पकड़ से दूर
भोपाल। परीक्षा और नौकरी के नाम पर व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं )और उसमें सक्रिय दलालों ने पिछले 9 साल में सवा करोड़ बेरोजगारों को करीब 1000 करोड़ का चूना लगाया है। लेकिन इस महाघोटाले का असली मास्टर माइंड कौन है इसका पता लगाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स नए सिरे से मामले की जांच कर रही है। हालांकि अभी तक धीरे-धीरे इस फर्जीवाड़े की कई परते खुल गई हैं,लेकिन जो ठगे गए हैं उन्हें न्याय मिलना तो दूर,बल्कि जांच के नाम पर उन्हें सताया जा रहा है। अभी हालही में ऐसे सैकड़ों लोगों को विभिन्न शहरों से छापामार कार्रवाई कर पकड़ कर भोपाल लाया गया था। उन्हें तीन दिनों तक भोपाल में अव्यवस्थाओं के बीच रखा गया था। इससे सरकार की खुब किरकिरी हुई। दरअसल, विशेष जांच दल (एसआईटी)गलतियों के कारण ऐसा हुआ है। जबकि इस पूरे घोटालेे का मास्टर माइंड और करीब 150 असली दोषी अभी एसटीएफ की पकड़ से दूर हैं। अब इनको पकडऩे के लिए एसटीएफ अब एक बार फिर से कम्प्यूटर के हार्डडिस्क में इनके ठिकानों की पड़ताल करेगी।
एक साल पहले 7 जून को हुआ था फर्जीवाड़े का खुलासा
व्यापमं घोटाले का खुलासा 7 जून को उस समय हुआ जब पीएमटी की फर्जी तरीके से परीक्षा दे रहे करीब एक दर्जन मुन्नाभाईयों को इंदौर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इसके बाद तो एक के बाद इस घोटाले के उलझे तार सुलझते चले गए। सबसे पहले पकड़ में आया डॉ जगदीश सागर। जगदीश सागर की गिरफ्तारी और उससे हुई पूछताछ के बाद पता चला कि, मामला उतना छोटा नहीं जितना समझा जा रहा था। लिहाजा मामले की जांच एसटीएफ को सौंप दी गई। यहां से शुरू हुआ व्यापमं फर्जीवाड़े की परत दर परत खुलने का सिलसिला। व्यापमं के पूर्व कंट्रोलर पंकज त्रिवेदी, सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा की गिरफ्तारी के बाद तो खुलासा हुआ कि, पूरा व्यापमं ही फर्जी परीक्षाओं का अड्डा बन चुका था। इस एक साल में एसटीएफ ने कई अधिकारियों, नेताओं, छात्रों और उनके परिजनों को गिरफ्तार किया है। इसके बाद एसटीएफ ने बाकी परीक्षाओं में हुई धांधलियों की भी पड़ताल की। व्यापमं द्वारा कराई गई-पीएमटी 2012-13, प्रीपीजी, आरक्षक भर्ती परीक्षा, एसआई भर्ती परीक्षा, संविदा शिक्षक वर्ग 2 और 3, दुग्ध संघ परीक्षा, वन रक्षक भर्ती परीक्षा, बीडीएस परीक्षा, संस्कृत बोर्ड परीक्षा और राज्य ओपन टायपिंग परीक्षा में फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। एसटीएफ ने फर्जीवाड़े में शामिल दो सैकड़ा से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन एसटीएफ अब तक भी उन बड़े नामों पर शिकंजा नहीं कस सकी है। जिनकी छत्रछाया में ही छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का ये पूरा खेल चल रहा था। इसमें एक नाम है खनन कारोबारी सुधीर शर्मा का। बताया जाता है कि व्यापमं में हुए कई घोटालों का सुत्रधार सुधीर ही था। इसके पर्याप्त सबूत एसटीएफ के पास है।
सुधीर शर्मा पर इतनी मेहरबानी क्यों ?
व्यापमं महाघोटाले का पहला सुराग उस समय मिला था जब आयकर विभाग ने खनन कारोबारी सुधीर शर्मा के यहां छापा मारा था। शर्मा की डायरी में मिले संकेतों पर आयकर विभाग ने अपने तरीके से जांच की तो उसे जो भी नाम मिले वह किसी काम के नहीं लगे। लेकिन व्यापमं घोटाला सामने आने के बाद उसमें शामिल कई बड़े नाम शर्मा की डायरी में भी मिले थे। खनन कारोबारी सुधीर भी आरएसएस के करीबियों में गिने जाते हैं। आरोप है कि सुधीर शर्मा भर्ती घोटाले का बड़ा खिलाड़ी है। गिरफ्तार हुए आरोपियों ने भी सुधीर के तार इस घोटाले से जुड़े होने की बात भी कबूल की है। एसटीएफ की जांच में सामने आया है कि पंकज त्रिवेदी को उच्च शिक्षा विभाग से व्यापमं में लाने का फैसला भी लक्ष्मीकांत शर्मा ने सुधीर शर्मा के कहने पर ही लिया था। खनन मंत्री बनने के बाद लक्ष्मीकांत शर्मा, सुधीर को डेपुटेशन पर खनन मंत्रालय में ओएसडी बनाकर लाए थे। जिसका फायदा उठाकर सुधीर शर्मा खनन कारोबारी बन गया। माना जा रहा है कि सुधीर शर्मा व्यापमं भर्ती घोटाले के कई बड़े 'राजÓ से पर्दा उठा सकता है। व्यापमं महाघोटाले में सुधीर के शामिल होने के प्रमाण एसटीएफ को कई बार मिले लेकिन वह उसके रसूख के आगे उसको पकड़ नहीं सकी। अब जब पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा गिरफ्तार हो गए हैं तो सुधीर की खोज तेज हो गई है लेकिन वह पकड़ से दूर निकल गया है। सुधीर शर्मा को फरार घोषित करते हुए एसटीएफ ने 5 हजार का इनाम घोषित कर दिया है।
सवालों के घेरे में स्पेशल टास्क फोर्स
व्यापमं महाघोटालों की जांच स्पेशल टास्क फोर्स के पास है। वह हाईकोर्ट की निगरानी में जांच कर रहा है। हाईकोर्ट के आदेश पर ही अलग-अलग शहरों में डेढ़ दर्जन से अधिक एसआईटी गठित की गई हैं। प्रदेश में ये एसआईटी व्यापमं से जुड़े मामलों की जांच कर रही हैं। यह जांच पुराने मामलों के चालानों के अध्ययन के बाद नए सिरे से की जा रही है। प्रदेश में करीब 295 ऐसे प्रकरण चिन्हित किए गए हैं। कई प्रकरणों में यह सामने आ रहा है कि पूर्व में सक्रियता से जांच की होती तो यह नैक्सेस बहुत पहले सामने आ जाता। लेकिन एसआईटी के कई सदस्यों के परिजन भी इस घोटाले के दोषी पाए गए। आरटीआई कार्यकर्ता आनंद राय ने बताया कि इंदौर में दर्ज प्रकरण में आज तक गवाही नहीं हो सकी। जबकि उसी प्रकरण से जुड़े अफसर एसआईटी के सदस्य है। इसलिए एसआईटी की जांच पर भी सवाल खड़े होते हैं। भोपाल एसआईटी ने पिछले दिनों जीएमसी के बाबू रवि गतखने को गिरफ्तार किया था। यह बाबू पहले जांच के दौरान एसआईटी को दस्तावेज उपलब्ध कराने का काम करता था। सूत्रों ने बताया इसी तरह एक अफसर व्यापमं में पदस्थ है। इस अफसर के रिश्तेदार के घर व्यापमं परीक्षा पेपर लीक होने के दौरान छापा भी मारा गया था। यही नहीं 23 जून को एसटीएफ ने ग्वालियर के गजराजा मेडिकल कॉलेज में पीएमटी फर्जीवाड़े के लिए गठित अविनाश चंद्रा के नेतृत्व वाली जांच समिति की जांच के लिए एसटीएफ के एआईजी राजेश चंदेल के नेतृत्व में एक टीम पहुंची। टीम ने कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में रखे कम्प्यूटर खंगाले और हार्डडिस्क अपने साथ ले गई। एसटीएफ अधिकारियों ने करीब 3 घंटे तक जांच समिति के सदस्यों से पूछताछ कर कमेटी के सभी सदस्यों के नाम, पते सहित अन्य जानकारियां भी एकत्र कीं। उन्होंने डीन चेम्बर में सभी ने कॉलेज के डीन डॉ.जीएस पटेल, पूर्व डीन डॉ. वीणा अग्रवाल और जांच कमेटी के सदस्यों से बातचीत की। अधिकारियों ने पूर्व डीन डॉ. वीणा अग्रवाल ने उनके कार्यकाल में हुई जांच और उसमें अनियमितता की शिकायतों पर चर्चा की। वहीं एक्शन कमेटी के हर सदस्य से जानकारी ली कि छात्रों के बयान और जांच में उनकी क्या भूमिका रही? अधिकारियों ने डॉ. पटेल से जीआरएमसी में उनकी डीन पद पर नियुक्ति से लेकर अब तक लिए गए निर्णय और फर्जीवाड़ों में क्या-क्या कार्रवाई की गई? आदि तथ्यों की विस्तार से जानकारी ली। सबसे अहम बात यह रही कि जब पूर्व की जांच कमेटी, जिसके चेयरपर्सन डॉ. एसी अग्रवाल, जो डॉ. अविनाश चंद्रा के नाम से भी चर्चित हैं, उनके बारे में पूरी जानकारी ली। डॉ. चंद्रा जिस विभाग के विभागाध्यक्ष थे, उस विभाग के कक्ष में पहुंचकर अधिकारियों ने विभाग का कम्प्यूटर देखा और उसका सीपीयू निकलवाकर उसे जब्त कर लिया। समझा जाता है कि इसकी हार्डडिस्क के डेटा की जांच की जाएगी। मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ.जीएस पटेल का कहना है कि एसटीएफ व एसआईटी के अधिकारियों ने अब तक की पूरी प्रगति पर विस्तार से चर्चा की। पूर्व डीन, एक्शन कमेटी व जांच कमेटी के सदस्यों से भी व्यक्तिगत रूप से जानकारियां एकत्र की हैं। टीम एनाटॉमी विभाग के कम्प्यूटर का सीपीयू जब्त कर अपने साथ ले गई है।
अब दूसरे प्रदेशों में होगी छापामारी
व्यापमं की पीएमटी परीक्षा सहित अन्य परीक्षाओं में हुए फर्जीवाड़े में नित नए खुलासे हो रहे हैं। व्यापमं महाघोटाले में एसटीएफ ने अब दूसरे राज्यों में भी फर्जी छात्रों की तलाश शुरू कर दी है। इसके लिए एसटीएफ की दो टीमें राजस्थान और उत्तर प्रदेश के लिए रवाना हुई हैं। ये टीमें कोचिंग सेंटरों में दबिश देकर फर्जी छात्रों का पता लगाएंगी और पूछताछ के लिए भोपाल लेकर आएंगी। एसटीएफ अधिकारियों के मुताबिक पीएमटी फर्जीवाड़े के समय सामने आई लिस्ट में से कुछ लोग गिरफ्तार हो गए हैं, जबकि कुछ आरोपियों ने जमानत ले ली है। अभी भी कुछ आरोपियों की गिरफ्तारी होना बाकी है। इसलिए एक बार फिर से इस लिस्ट को अपडेट किया जा रहा है। अधिकारियों को एक लिस्ट तैयार करने को कहा है जिसमें उन लोगों के नाम हैं जो अभी भी गिरफ्तारी से दूर हैं। इन लोगों को हिरासत में लिया जाएगा। इन छात्रों के अलावा इनके अभिभावकों को भी इसमें आरोपी बनाया गया है। अधिकारियों ने बताया कि कोर्ट की कार्रवाई के चलते कार्रवाई थोडी ठंडी पड़ गई थी। जांच में जुटे अधिकारियों की माने तो इस लिस्ट में से अधिकांश आरोपियों की गिरफ्तारी इसलिए नहीं हो पाई है, क्योंकि एसटीएफ के पास उपलब्ध लिस्ट में से अधिंकाश आरोपी फर्जी पते पर रहते हैं। यहां पर टीमें दबिश दे चुकी हैं, लेकिन आरोपी नहीं मिले हैं। इसके अलावा जो मध्यस्थ इस मामले में फरार हैं वे दूसरे आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद से ही अंडरग्राउड हैं। इन आरोपियों को गिरफ्तार करना भी एक बड़ी चुनौती है। सूत्रों की मानें तो करीब 150 से अधिक छात्र और उनके परिजन अभी भी पकड़ से दूर हैं। एसटीएफ के पास मौजुद विभिन्न परीक्षाओं में हुए फर्जीवाड़े के आरोपियों की सूची के अनुसार अभी तक जिन आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई है उनके खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई होगी। व्यापमं महाघोटाले में एसटीएफ ने कई छात्रों को भोपाल लाकर पूछताछ की थी। पूछताछ के दौरान एसटीएफ को 100 से अधिक फर्जी छात्रों के पते मिले हैं। जब एसटीएफ ने इन पतों के बारे में जानकारी निकाली तो अधिकांश पते फर्जी निकले। ये पते राजस्थान और उत्तरप्रदेश के हैं। इन फर्जी छात्रों की तलाश के लिए एसटीएफ की दो टीमें राजस्थान और उत्तरप्रदेश के लिए रवाना हो गई हैं। एसटीएफ के पास आरोपियों की सूची इस प्रकार है......
व्यापमं फर्जीवाड़े के आरोपी
व्यावसायिक परीक्षा मंडल द्वïारा आयोजित 9 विभिन्न परीक्षाओं के विषय में मध्यप्रदेश एसटीएफ द्वïारा प्रकरण पंजीबद्ध कर विवेचना की जा रही है। यह हैं (1) पीएमटी परीक्षा 2013 (2) पीएमटी परीक्षा 2012, (3) प्रीपीजी परीक्षा 2012, (4) खाद्य निरीक्षक/ निरीक्षक नापतौल भर्ती परीक्षा 2012, (5) दुग्ध संघ संयुक्त भर्ती परीक्षा 2012, (6) पुलिस उप निरीक्षक भर्ती परीक्षा 2012, (7) पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा 2012, (8) संविदा शाला शिक्षक पात्रता परीक्षा वर्ग -2 वर्ष 2011 (9) संविदा शाला शिक्षक पात्रता परीक्षा वर्ग -3 वर्ष 2011।
....पीएमटी परीक्षा वर्ष 2013...
व्यापमं द्वारा वर्ष 2013 में आयोजित पीएमटी में हुए फर्जीवाड़े के खिलाफ इंदौर के राजेन्द्र नगर थाना में अपराध क्रमांक-539/13 के तहत धारा 419, 420, 467, 468, 471, 120 बी, 201 भादवि, 65 आईटी एक्ट 25, 27 आम्र्स एक्ट, 34 आबकारी एक्ट 3 (घ)-1, 2/4 मध्यप्रदेश मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम 1937 सी-प्रथम सूचना पत्र में 67 लोगों के खिलाफ नामजद केस दर्ज किया गया है। जिनमें रमाशंकर, मो. रिजवान खान, राहुल कुमार सोनी, अरविंद कुमार वर्मा,अक्षय यादव, (विवेक) हरिकिशन, रामबाबू यादव, नीरज पाठक,अश्विनी कुमार,अखिलेश कुमार, अभिषेक सोनी,कृष्ण कुमारसिंह, अभिषेक वर्मा, वीरेन्द्र कुमार, दिवाकर पाण्डे, विकास सिंह,रुपेन्द्र सिंह, विनीत यादव, अजय कुमार सिंह, डॉ. जगदीश सागर,नितिन मोहिन्द्रा, अजय कुमार सेन, चंद्रकांत मिश्रा, संतोष गुप्ता, सुधीर राय, गंगाराम,तरंग शर्मा, संदीप कुमार दुबे, डॉ. पंकज त्रिवेदी, संजीव कुमार शिल्पकार विकास सिंह चंदेल, अनिमेश आकाश सिंह, जितेन्द्र मालवीया, अक्षय जुरयानी, तिलक राज जुरयानी, महेन्द्र कुमार सक्सेना,अभिषेक सक्सेना, दीपक कुमार गोयल, रघुवीर प्रसाद गोयल, शेखर पटेल, मानसिंहपेटल खराडी, राजकुमार जयसवाल, रोहित जयसवाल,राहुल जैन,अंकित पाटीदार, मयूर मसानी, संतोष कुमार,गेंदालाल पिपलिया,तेजराम पिपलिया, फैसल खान,जिया उलहक, राजकुमार योगी, गणेश योगी, अनूप कुमार शर्मा,पवन कुमार शर्मा,यादव मकवाना, डॉ. अरविंद सिन्हा, धीरज बारिया, रामलाल बारिया, संतोष डामोर, जोगेन्द्र सिंह डामोर, विनोद कुमार वर्मा, रविन्द्र यादव और सोनू पचौरी। इनके अलावापीएमटी परीक्षा वर्ष 2013 में अन्य आरोपियों के विरुद्ध विवेचना तथा शेष आरोपियों की तलाश जारी है। बताया जाता है कि एसटीएफ को इस मामले में कुछ अहम सुराग मिले हैं।
...पीएमटी परीक्षा वर्ष 2012...
व्यापमं द्वारा कराई गई पीएमटी परीक्षा वर्ष 2012 में हुए फर्जीवाड़े के कारण अपराध क्रमांक -12/13 के तहत 420, 467, 468, 471, 120बी भादवि 3 धारा के साथ ही 1,2,/4 मप्र मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम 1937, 65 66 आईटी एक्ट में अपराध दर्ज किया गया है। जिसमें प्रथम सूचना पत्र में नामजद आरोपियों डॉ. पंकज त्रिवेदी , नितिन मोहिन्द्रा,अजय कुमार सेन, सी.के.मिश्रा, डॉ. जगदीश सागर, डॉ. संजीव शिल्पकार,विकास सिंह, तरंग शर्मा, सुधीर राय,सोनू पचौरी और अमित निमावत के खिलाफ केस दर्ज हुआ है। इस मामले में कार्रवाई करते हुए 17 लोगों का गिरफ्तार किया गया है। जिसमें डॉ. पंकज त्रिवेदी, नितिन महेन्द्रा, अजय कुमार सेन, सी.के. मिश्रा, डॉ. जगदीश सागर, डॉ. संजीव शिल्पकार, विकास सिंह,तरंग शर्मा, प्रदीप रघुवंशी, सुधीर राय, संतोष गुप्ता, राजेश असरानी, रबीना असरानी, सोनू पचौरी, 15-डॉ. विनोद भण्डारी,अक्षय कुमार यादव और ओम प्रकाश शुक्ला शामिल हैं। एसटीएफ का कहना है कि पीएमटी परीक्षा वर्ष 2012 में अन्य आरोपीगण के विरुद्ध विवेचना तथा शेष आरोपियों की तलाश जारी है।
...प्री-पीजी परीक्षा वर्ष 2012...
प्री-पीजी परीक्षा वर्ष 2012 में हुए फर्जीवाड़े में अपराध क्रमांक 14/13 के अचुसार धारा : 409, 420, 120बी भादवि 3,1, 2, /4 म.प्र. मान्यता प्राप्त परीक्षा अधि. 1937 तहत अपराध दर्ज किया गया है। इसमें प्रथम सूचना पत्र में नामजद आरोपियों में डॉ. पंकज त्रिवेदी, नितिन मोहिन्द्रा, डॉ. विनोद भण्डारी, प्रदीप रघुवंशी, भरत मिश्रा, राघवेन्द्र सिंह तोमर, डॉ. अनुराग जैन, डॉ. सनी जुनेजा,डॉ. समीर मण्डलोई, डॉ. सोमेश माहेश्वरी,् डॉ. अभिजीत सिंह खनूजा, डॉ. आयुष मेहता, डॉ. आशीष आनंद गुप्ता, डॉ. नेहा शिवहरे, डॉ. अमित जैन, डॉ. आशुतोष मेहता, डॉ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह एवं अन्य शामिल हैं। इस फर्जीवाड़े में डॉ. पंकज त्रिवेदी, नितिन मोहिन्द्रा, प्रदीप रघुवंशी, डॉ. अनुराग जैन, डॉ. सनी जुनेजा,डॉ. समीर मण्डलोई, डॉ. सोमेश माहेश्वरी, डॉ. अमित जैन,डॉ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. विनोद भण्डारी, डॉ. नेहा शिवहरे, डॉ. आशीष आनंद गुप्ता, अजय कुमार जैन, विवेक कुमार जैन, सुरेश माहेश्वरी, किशोर कुमार जुनेजा और धरमचंद्र मण्डलोई को गिरफ्तार किया जा चुका है। जबकि अन्य आरोपियों के खिलाफ विवेचना तथा तलाश जारी है।
...कनिष्ठï खाद्यï आपूर्ति अधिकारी एवं निरीक्षक नाप-तौल भर्ती परीक्षा 2012...
इस भर्ती परीक्षा में नियमों को ताक पर रखकर फर्जी तरीके से अपात्रो को पास कराया गया। इसमें हुए फर्जीवाड़े के कारण अपराध क्रमांक -15/13 में धारा : 420, 467, 468, 471, 120बी भादवि 3(घ),1,2/4 मप्र मान्यता प्राप्तपरीक्षा अधिनियम 1937, 65, 66 आईटी एक्ट में केस दर्ज किया गया है। जिसमें प्रथम सूचना पत्र में डॉ. पंकज त्रिवेदी पूर्व नियंत्रक व्यापम भोपाल,नितिन मोहिन्द्रा व्यापम भोपाल, चंद्रकांत मिश्रा व्यापम भोपाल, अजय सेन व्यापम भोपाल, तरंग शर्मा चूना भट्टी भोपाल, संतोष गुप्ता नि. बी-8 साकार उदय न्यू जगदंबा कालोनी जबलपुर, सोनू रघुवंशी निवासी मुलताई, बेतूल, दिलीप गुप्ता, शाहपुरा भोपाल, अखिलेश चतुर्वेदी सुखसागर वेली ग्वारीघाट, जबलपुर, भरत मिश्रा, चूनाभट्टी भोपाल, संजीव सक्सेना कोलार रोड भोपाल एवं अभ्यर्थी, अभिजीत मेहता, आशुतोष गुमास्ता, शैलेष पटेल, रावेन्द्र सिंह, कृष्णकुमार, संदीप त्रिपाठी, देवकांत रघुवंशी, अमित सिंह, शिशुवेन्द्र सिंह तोमर, भानू प्रताप सिंह, मिहिर कुमार, राजकुमार धाकड़, नरेश चंद्र सागर, सुनील कुमार साहू, अवधेश कुमार भार्गव, उमेश प्रताप सिंह, अभिषेक सिंह ठाकुर, विश्वनाथ सिंह राजपूत एवं अन्य को नामजद आरोपी बनाया गया है। इनमें से डॉ. पंकज त्रिवेदी, नितिन मोहिन्द्रा, मिहिर कुमार चौधरी,नरेश चंद्र सागर, सुनील कुमार साहू और ओमप्रकाश शुक्ला गिरफ्तार हो चुके हैं।
...दुग्ध संघ संयुक्त भर्ती परीक्षा वर्ष 2012...
दुग्ध संघ संयुक्त भर्ती परीक्षा में हुए फर्जीवाड़े में अपराध क्रमांक 16/13 के तहत धारा : 420, 467, 468, 471, 120 बी भादवि, 3 (घ) 1,2,/4 म.प्र. मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम 1937, 65, 66 आईटी एक्ट का मामला दर्ज किया गया है। इस फर्जीवाड़े में डॉ. पंकज त्रिवेदी, पूर्व नियंत्रक व्यापम भोपाल,नितिन मोहन्द्रा व्यापम भोपाल,चंद्रकांत मिश्रा व्यापम भोपाल, अजय सेन व्यापम भोपाल, तरंग शर्मा चूना भट्टïी भोपाल, संतोष गुप्ता नि.बी-8 साकार उदय न्यू जगदंबा कालोनी जबलपुर, दिलीप गुप्ता शाहपुरा भोपाल, अखिलेश चतुर्वेदी सुखसागर वेली ग्वारीघाट जबलपुर, संजीव सक्सेना कोलार रोड भोपाल एवं अभ्यर्थी, विवेक गोस्वामी, राजेश कुमार रघुवंशी, प्रवीण पाण्डे, आनंद तिवारी, विनीत कुमार, रचना गुप्ता, नरेन्द्र पटेल, रामहेत उपाध्याय, शिल्पा उपाध्याय, हितेश शर्मा एवं अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इनमें से डॉ.पंकज त्रिवेदी,नितिन मोहिन्द्रा,आनंद तिवारी,विवेक गोस्वामी, नरेन्द्र कुमार पटेल, हीतेश शर्मा, रामहेत उपाध्याय, संतोष गुप्ता, अजय कुमार सेन, चंद्रकांत मिश्रा, तरंग शर्मा, राजेश रघुवंशी,शिल्पा गुप्ता गिरफ्तार हो चुके हैं।
...सूबेदार/उपनिरीक्षक/प्लाटून कमाण्डर भर्ती परीक्षा 2012...
सूबेदार,उपनिरीक्षक और प्लाटून कमाण्डर भर्ती परीक्षा में हुए फर्जीवाड़े के कारण कई योग्य उम्मीदवारों की जगह अपात्रों को परीक्षा पास करवाया गया। इस फर्जीवाड़े में अपराध क्रमांक-17/13 के तहत धारा :- 420, 467, 468, 471, 120 बी भादवि 3 (घ) 1, 2/4 मप्र मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम 1937, 65, 66 आईटी एक्ट में मामला दर्ज किया गया। प्रथम सूचना पत्र में डॉ. पंकज त्रिवेदी पूर्व नियंत्रक व्यापम भोपाल,नितिन मोहिन्द्रा व्यापम भोपाल, चंद्रकांत मिश्रा व्यापमं भोपाल, अजय सेन व्यापम भोपाल, प्रदीप रघुवंशी जीएम भण्डारी हास्पिटल,आर.के. शिवहरे,सुधीर शर्मा माईनिंग वाले, भरत मिश्रा ईडन गार्डन, चूना भट्टïी, कोलार रोड, भोपाल एवं अभ्यर्थी, शाहिद शेख, गौरव श्रीवास्तव, सेम श्रीवास्तव,प्रलेख तिवारी, संतोष शर्मा, गजेन्द्र सिंह, कोहर सिंह राजपूत,ज्योति साहू, अभिजीत सिंह पवार, जितेन्द्र सिंह चंद्रावत, जितेन्द्र सिंह रघुवंशी, कमलेन्द्र सिंह, भूपेन्द्र सिंह, हर्षवर्धन चौहान, कुनाल सिंह राठौर, सुधीर सिंह गुर्जर,श्रीकृष्ण सिकरवार को नामजद आरोपी बनाया गया है।
...पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा 2012...
व्यापमं द्वारा आयोजित बड़े पदों की परीक्षाओं में ही नहीं वरन आरक्षक भर्ती परीक्षा में भी जमकर फर्जीवाड़ा किया गया। इसमें फर्जीवाड़ा करने वालों के खिलाफ अपराध क्रमांक 18/13 में धारा : 420, 467, 468, 471, 120 बी भादवि, 3 (घ) 1,2,/4 म.प्र. मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम 1937, 65, 66 आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। जिसमें प्रथम सूचना पत्र में नामजद आरोपी डॉ. पंकज त्रिवेदी पूर्व नियंत्रक व्यापमं भोपाल,नितिन मोहिन्द्रा व्यापम भोपाल,चंद्रकांत मिश्रा व्यापम भोपाल, अजय सेन व्यापमं भोपाल, रमेश चांदगुडे मैनेजर भोपाल केयर हास्पिटल, तरंग शर्मा, डॉ. अजय मेहता, आशुतोष ,भरत मिश्रा, सुधीर शर्मा, संजीव सक्सेना एवं अभ्यर्थी, धर्मेन्द्र कुमार, योगेन्द्र रघुवंशी, भीम सिंह मवाड़ा, गोविन्द चौहान, ओम शंकर सोनी, हरिओम नारायण, प्रीतम मालवीय, धीरज बघेल,संजय मालवीय, राकेश गुर्जर,लक्ष्मीकांत दुबे, वीरेन्द्र यादव, शरद यादव, हरिओम शर्मा, राम अख्तयार सिंह गुर्जर, जबन सिंह, बिसम्भर सिंह,अनुराग सिंह भदौरिया, राकेश पाठक, सौरभ यादव, शिव प्रताप रघुवंशी, सुनील दत्त शर्मा, अभिलाष शर्मा, चन्द्र प्रकाश रघुवंशी, बालकृष्ण रघुवंशी,जितेन्द्र कुमार पवार, गौरव सिंह, मनीष यादव, प्रवीण शर्मा, सुधीर कुमार शर्मा, अंकित रावत, दुर्गेश सिंह, बृजेश कुमार साहू, भरत सिंह ठाकुर, रामेश्वर जाट, धीरज कौशल,कमलेश सिंह, अंकित शुक्ला, अखिलेश कुमार यादव, अजय मिश्रा, अजय शंकर मुखारिया, आलोक सिंह तोमर एवं अन्य को बनाया गया है। इसमें दुर्गेश सिंह पुरबिया,प्रवीण शर्मा,अंकित रावत,सुनील दत्त शर्मा, राम अख्तयार सिंह गुर्जर, हरिओम नारायण। को गिरफ्तार किया जा चुका है।
...संविदा शाला वर्ग-3 पात्रता परीक्षा 2011...
इस परीक्षा में हुए फर्जीवाड़े में अपराध क्रमांक 18/13 के तहत धारा : 420, 467, 468, 471, 120 बी भादवि, 3 (घ) 1,2,/4 म.प्र. मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम 1937, 65, 66 आईटी एक्ट में केस दर्ज किया गया है। जिसमें डॉ. पंकज त्रिवेदी पूर्व नियंत्रक व्यापमं भोपाल,नितिन मोहिन्द्रा व्यापमं भोपाल, चंद्रकांत मिश्रा व्यापम भोपाल, अजय सेन व्यापम भोपाल, ओपी शुक्ला ओएसडी मंत्री,लक्ष्मीकांत शर्मा,धनराज यादव ओएसडी राजभवन, अमित पाण्डे, अकबर खान (भोपाल केयर हास्पिटल)राजू भाई एवं अभ्यर्थी ,वंदना तोमर, विद्यïा विलास मिश्रा, पूजा पाण्डे,रजनी सेन, शिखा पाठक, 16, शिशिर पाठक, शिरीन खान, संध्या मिश्रा, मंजू नामदेव,नरेंद्र गौतम, श्रीमति कृष्मूर्ति, इंद्रजीत गौतम, चित्रा भार्गव, कविता वाल्मिक, जयश्री संत, रामवीर राजपूत, देवेंद्र सिंह झाला, सैयददा मरियम,शोभा गर्ग, प्रियंका शर्मा, किरण सेंगर, प्रियंका दुबे, चंदा शर्मा, विनोद कुमार कुशवाहा, मालती धाकड़,नेहा उपाध्याय, इजराईल पठान, कलावती विश्वकर्मा, सुनील सेन,यास्मीन हसन, रंजीता देवी,संजय सिंह गुर्जर, शत्रुधन सिंह राठौर, पंकज सिंह यादव, देवेंद्र धाकड़,मुकेश कुमार धाकड़, फातिमा हुसैन,रमेश सिंह यादव,ज्योति राठौर, चंद्रप्रकाश शर्मा, शिखा पारासर, योगेश प्रजापतिस,चंद्रप्रकाश प्रजापति, इन्दर सिंह भदौरिया, अवधेश सिंह भदौरिया, राजीव सिंह, नरेंद्र सिंह, सर्वेश यादव, रूबी यादव, सीमा सिंह चौहान, कुमार दीपक, रण सिंह,सुषमा सिंह, लक्ष्मी तोमर, सुखदेव सिंह, शिवानु मिश्रा, रमेश सिंह, राजेश पुरवंशी, गिरीश राजौरिया, प्रवीण कुमार सोनी, रविकांत शर्मा, विद्या सागर शर्मा, चंद्रशेखर, नरेन्द्र सिंह, रवीन्द्र सिंहयादव, पिंकी यादव, यशवीर सिंह यादव,इंद्रेश सिंह यादव, प्रमोद कुमार, राजकुमारी यादव, कौशलेश यादव, समरजीत यादव,दिनेश वर्मा, नेत्रा चांदगुदे,सतीश यादव, ललिता दांगी, शालिनी शर्मा एवं अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
...संविदा शाला वर्ग-2 पात्रता परीक्षा 2011...
इस परीक्षा में हुए फर्जीवाड़े में अपराध क्रमांक -20/13 में धारा : 420, 467, 468, 471, 120 बी भादवि, 3 (घ) 1,2,/4 म.प्र. मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम 1937, 65, 66 आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। जिसमें डॉ. पंकज त्रिवेदी पूर्व नियंत्रक व्यापमं भोपाल,नितिन मोहिन्द्रा व्यापमं भोपाल, चंद्रकांत मिश्रा व्यापमं भोपाल, अजय सेन व्यापमं भोपाल,ओपी शुक्ला ओएसडी मंत्री,लक्ष्मीकांत शर्मा,धनराज यादव ओएसडी राजभवन,शालिनी शर्मा,अर्चना शुक्ला, प्रेमलता पाण्डेय , संध्या पाण्डेय रोल, केशव श्रीवास्तव, 1सुरेन्द्र सिंह बागड़ी, रमेश सिंह यादव, महादेव लिधोरिया , माया पटेल , ममता पटेल, कल्याणी मीना, लक्ष्मण सिंह मीणा, अनुभव जैन,प्रीती चौधरी, सुशील भास्कर, सत्य प्रकाश त्यागी,संगीता सिंह, राहुल कुमार दुबे , लीलाधर पचौरी,बीनू मिश्रा,विकास शर्मा, वर्षा सिंह तोमर, जितेन्द्र सिंह राजपूत , उदय प्रकाश शर्मा , सविता साहू , सुनीता साहू , 34-प्रतीक्षा शर्मा, रानी राजपूत , बंटी सेन , रितु त्रिपाठी, रामेश्वरदयाल शर्मा ,संतोष कुमार शर्मा, निशा मिश्रा,रानी सेन, रेखा सोनी,सुनील कुमार सोनी एवं अन्य को आरोपी बनाया गया है। अब एसटीएफ नए सिरे से इन फर्जीवाड़ों की जांच में जुट गई है। जो आरोपी अभी तक गिरफ्तारी से बचे हुए हैं उनके खिलाफ अभियान चलाया जाएगा।
शिक्षा में फर्जीवाड़े का आभास विंध्य से
व्यावसायिक परीक्षा मंडल में हुए तमाम फर्जीवाड़े को उजागर करने वाली स्पेशल टॉस्क फोर्स (एसटीएएफ ) के मुखिया को शिक्षा में फर्जीवाड़े का आभास विंध्य से हुआ। एसटीएफ एडीजी सुधीर कुमार शाही 1988 बैच के आईपीएस हैं। वह दिल्ली विवि से बीए एलएलबी हैं। आईपीएस ट्रेनिंग के बाद वर्ष 1990 में उनकी पहली प्रोविजनल पदस्थापना सतना जिले के अमरपाटन थाना में हुई। यहीं उन्होंने शिक्षा में फर्जीवाड़ा का खुला खेल देखा। मन में शिक्षा शुद्धीकरण का संकल्प लिया। 22 वर्षो के लंबे कैरियर में उन्हें शिक्षा शुद्धीकरण का पूरा मौका नहीं मिल सका। वर्ष 2011 में पुलिस मुख्यालय ने उन्हें एसटीएफ के एडीजी का प्रभार सौंपा। कुछ दिनों बाद उनको व्यापमं में हो रहे फर्जीवाड़े की भनक लगी और उन्होंने व्यापमं में हो रहे फर्जीवाड़े पर नजर रखना शुरू किया। इसके कुछ ही दिनों बाद एसटीएफ चीफ ने व्यापमं में सिलेसिलेवार एक से बड़े एक घोटालों का पर्दाफाश कर सैकड़ों को हवालात पहुंचा दिया। सत्ता और शिक्षा जगत की तमाम हस्तियों की रातों की नींद और दिन का चैन छीन लेने वाले शाही ही हैं जिन्होंने व्यापमं में पीएमटी, प्रीपीजी, खाद्य निरीक्षक एवं नापतौल परीक्षा, दुग्ध संघ भर्ती परीक्षा, उप निरीक्षक भर्ती, पुलिस आरक्षक भर्ती, बीडीएस, टायपिंग बोर्ड, ओपन स्कूल फर्जीवाड़ा पर पर्दा उठा सैकड़ों रसूखदारों को हवालात पहुंचाया। ------------

पीला सोना किसानों को कर देगा कंगाल

लक्ष्य
66 लाख हेक्टेयर...बीज आधे का भी नहीं
मप्र में 42 लाख हेक्टेयर खेत रह जाएंगे खाली
मानसून की देरी और खराब बीज भी बना परेशानी का सबब
भोपाल। देश में उत्पादित होने वाले पीले सोने(सोयाबीन )का लगभग 55 फीसदी मध्य प्रदेश में उपजता है। सरकार ने इस बार 66 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती का लक्ष्य रखा है लेकिन बीज की कमी,मानसून की बेरूखी और घटिया बीज के कारण करीब 42 लाख हेक्टेयर खेत खाली रहने का अनुमान है। हालांकि इस संकट की घड़ी में सरकार किसानों को धैर्य से काम करने की सलाह देने के साथ ही सोयाबीन के बीज उपलब्ध कराने के प्रयास का दावा कर रही है,लेकिन पिछली बार खरीफ और फिर रवि फसल बर्बाद होने के बाद बेहाल किसान इस बार सोयाबीन की बुआई नहीं होने से कंगाल होने की कगार पर पहुंच गए हैं। दरअसल,मध्य प्रदेश में हर साल 25 लाख क्विंटल सोयाबीन बीज का उत्पादन होता है जिसमें से करीब 15 लाख टन बीज का इस्तेमाल राज्य में ही होता है। लेकिन पिछले साल भारी बारिश की वजह से कुल उत्पादन का करीब 80 फीसदी बीज बर्बांद हो चुका है। और इसकी कुल मात्रा घटकर 13 लाख क्विंटल तक रह गई। इसमें से भी लगभग आधा बीज खराब हो गया है। राज्य सरकार ने इसके लिए निजी बीज आपूर्तिकर्ताओं से बैठक करने और अवैध जमाखोरी या फिर नकली बीजों की बिक्री को रोकने जैसे कुछ कदम भी उठाए लेकिन इससे मांग पूरा करने में कुछ खास मदद नहीं मिली। अब आलम यह है कि सोयाबीन के बीज का टोटा इस कदर बढ़ गया है प्रदेश में 70 फीसदी रकबा खाली रह सकता है। प्रदेश में सोयाबीन के बीज की किल्लत पहली बार खड़ी हुई है। इसके पीछे मूल कारण बीते दो सालों में सोयाबीन की अंकुरण क्षमता का प्रभावित होना है। इसे देखते हुए पहले ही यह आशंका खड़ी हो गई थी कि मौजूदा खरीफ सीजन में सोयाबीन का बीज उपलब्ध होना आसान नहीं होगा। वही स्थिति बनी भी। हालात यह हैं कि कई जिलों में मांग से आधा बीज भी सोसायटियों में नहीं है। कई जिलों के कलेक्टर ने अन्य जिलों को बीज उपलब्ध करवाने के लिए पत्र लिखे, जिले से बाहर बीज सप्लाई पर प्रतिबंध भी लगाया है, लेकिन इन प्रयासों से भी भरपाई होना मुश्किल नजर आती है। देश में सोयाबीन की आपूर्ति करने वाला अकेला राज्य मध्य प्रदेश चालू खरीफ सीजन में बीज की मांग को पूरी करने के तरीके तलाश रहा है। अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि बीज की कमी खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है और फिलहाल इस संकट से निपटने का एकमात्र तरीका यही है कि किसानों को अन्य खरीफ फसलों का रकबा बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। अन्य विकल्पों का इस्तेमाल करने में काफी समय लगेगा और उनसे मदद भी नहीं मिलेगी क्योंकि बीज शृंखला खतरनाक स्तर तक अव्यवस्थित हो चुकी है। इन हालातों में इस बार प्रदेश में तय लक्ष्य के अनुरूप सोयाबीन की बोवनी समय से होना मुश्किल नजर आने लगा है। शासन का दावा है कि बोवनी के समय तक स्थिति सामान्य हो जाएगी, लेकिन जब बीज ही उपलब्ध नहीं है तो यह दावा कैसे पूरा होगा, यह समझ से परे है।
क्यों आई कमी
खरीफ की बोवनी से पहले बीज का जो संकट दिखाई दे रहा है उसका एक बड़ा कारण अतिवृष्टि को माना जा रहा है। खरीफ सीजन में पिछले दो सालों से अतिवृष्टि के कारण प्रदेश में सोयाबीन की फसल को तगड़ा नुकसान पहुंचा है। लगातार दो साल फसलें बर्बाद होने के कारण बीज तैयार नहीं हो सका जिससे एकाएक बीज का संकट गहरा गया। स्थिति यह रही कि किसानों के पास भी बीज उपलब्ध नहीं है। प्रदेश के अधिकांश किसान बीज के लिए सहकारी सोयायटियों पर ही निर्भर है। वहीं सोसायटियों में भी बीज भंडारण को लेकर स्थिति फिलहाल डावांडोल है। प्रदेश में पिछली बार खरीफ फसलों की बोवनी 116 लाख 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में की गई थी। जिसमें से 65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती की गई थी। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पिछले सीजनों से हो रही अतिवृष्टि के चलते सोयाबीन बीज को 30 से 35 फीसदी नुकसान पहुंचा है। अंकुरण क्षमता कम हो जाने से 50 फीसदी तक बीज किसी काम का नहीं रह गया। न्यूक्लियर सीड में भी 80 फीसदी तक नुकसान हुआ। ये बीज देखने में तो अच्छा लगता है, लेकिन इससे अंकुरण बेहद कम होता है। वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश सोयाबीन बीज की आपूर्ति करने वाला देख में सबसे बड़ा राज्य है। तकरीबन 80 फीसद तक बीज की सप्लाई महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश सहित अन्य राज्यों में होता है। चूंकि बीज कंट्रोल आर्डर सेंट्रल गवर्नमेंट का है, लिहाजा राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के बाहर निजी व्यापारियों को बीज ले जाने से रोका नहीं जा सकता है।
किसानों का स्टाक खाली
किसान अपनी फसल में से अगले सीजन के लिए बीज बचा कर रखते हैं, लेकिन भारी बारिश के कारण पिछली खरीफ की फसल चौपट हो गई थी। इसलिए किसानों के पास इस बार बोने के लिए बीज नहीं बचा। जानकारों के मुताबिक कुल जरूरत का लगभग 60 प्रतिशत बीज फसल से ही आता है। लेकिन इस बार किसानों के पास यह नहीं है। लेकिन दो सीजन से फसल बर्बाद होने के कारण किसान के पास बीज के लिए भी सोयाबीन नहीं बच पाया है। इसलिए किसानों के लिए यह खरीफ सत्र भी संकट भरा दिख रहा है। कृषि विभाग जितने बीज का इंतजाम कर रहा है वह जरूरत का बमुश्किल 15 प्रतिशत हो पाएगा। बाजार में जो बीज है इतना महंगा है कि खरीद कर बोना हर किसान के बस की बात नहीं है। सिहोर के किसान भंवरलाल पटेल कहते हैं कि सोयाबीन का बीज बहुत कमजोर होता है। थोड़ी भी क्वालिटी कमजोर होने की स्थिति में इसका जर्मिनेशन (अंकुरण) बहुत कम हो जाता है। बाजार में डिमांड ज्यादा और बीज कम है तो आशंका है कि विक्रेता कमजोर बीज भी खपा देंगे। कुछ विक्रेता स्थानीय स्तर पर मंडियों से माल खरीदकर, उसकी ग्रेडिंग कर बीज के दाम पर बेचते हैं। इसलिए इस बार बाजार की क्वालिटी का ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता। वहीं सीहोर जिले के कृषि उपसंचालक रामेश्वर पटेल का कहना है कि सोसायटियों में सोयाबीन की 335 बैरायटी तो पर्याप्त उपलब्ध, लेकिन किसानों की मांग जेए- 9560 की है, जो कम मात्रा में उपलब्ध है। इसके मिलने की संभावना भी कम ही है। इसलिए जो बीज किसानों के पास उपलब्ध है उसे ग्रडिंग करके उपयोग करें।
कृषि विभाग का इंतजाम
इस मामले में मप्र कृषि विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.राजेश राजौरा कहते हैं कि प्रदेश में 15 लाख क्विंटल सोयाबीन बीज की आवश्यकता है। जबकि उपलब्धता सभी स्रोतों से कुल 12 लाख 94 हजार 363 क्विंटल है। इसमें से 10 लाख 62 हजार 713 क्विंटल निर्धारित मानकों के अनुरूप है तथा भारत सरकार की अनुमति से 60 से 69 प्रतिशत अंकुरण क्षमता वाले बीज को भी उपयोग की अनुमति दी जाने के फलस्वरूप 2 लाख 31 हजार 649 क्विंटल बीज की अतिरिक्त उपलब्धता बढ़ जाने से किसानों को और अधिक मात्रा में सोयाबीन का बीज उपलब्ध करवाया जा सकेगा। वह कहते हैं की सरकार ने किसानों की समस्याओं के समाधान और बीज की कमी को पूरा करने के लिए 6-7 कदम उठाए हैं। साथ ही किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे विशेषज्ञों द्वारा तय प्रति हेक्टेयर 55 किलो बीज की बोवनी करें। कृषि विशेषज्ञ विजय गोंटिया कहते हैं कि सोयाबीन कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली कैश क्रॉप है, इसलिए किसानों के पास सोयाबीन का विकल्प नहीं है। इसमें पानी भी कम लगता है। जिस जगह पर सोयाबीन बोई जाती है वहां किसान धान की पैदावार भी नहीं ले सकते है। अब विकल्प उड़द, मूंग, राहर बचते हैं, लेकिन इन तीनों दलहनों में लागत ज्यादा आती है। इनके खरपतवार नाशक भी बाजार में नहीं है। वह कहते हैं कि सोयाबीन के बीज के संकट की यह स्थिति टाली जा सकती था, बशर्ते कृषि विभाग समय पर जाग जाता। कृषि विशेषज्ञ और मीडिया बताता रहा कि प्रदेश में सोयाबीन का संकट है, लेकिन कृषि विभाग ने ध्यान नहीं दिया। समय रहते अन्य राज्यों से या मंडियों से चुनिंदा बीज की खरीदी कर उसकी जांच तो की जा सकती थी। इस वर्ष किसानों के पास बीज नहीं है। बीज निगम का भंडार भी खाली है। कृषि विभाग ने अभी बीज बुलवाया नहीं। बाजार में बीज इतना महंगा है कि हर किसान की हिम्मत खरीदने की नहीं है। ऐसे में इस बार सोयाबीन का रकवा काफी होने की संभावना है।
इस बार 40 फीसदी ज्यादा दाम
बीज की किल्लत को देखते हुए कई निजी कंपनियों के बीज अचानक बाजार में नजर आने लगे हैं। 7 से 8 हजार रुपए क्विंटल की कीमत पर यह कंपनियां बीज उपलब्ध करवा रही हैं, लेकिन बीज सर्टिफाइड है या नहीं, उसकी उत्पादकता की क्या गारंटी है, इसका बीज के पैकेट पर कोई उल्लेख नहीं है। फिर भी ये पिछले साल से 40 प्रतिशत ज्यादा हैं। फसल का समय करीब आने तक इसके दाम बढ़ेंगे ही। उज्जैन के खाद,बीज विक्रेता वैभव शर्मा कहते हैं कि पिछले वर्ष की तुलना में बीज के दाम कम से कम 40 प्रतिशत ज्यादा हैं। बीते कृषि सत्र में दोनों फसलों को नुकसान होने के कारण किसानों की जेब खाली है। इस लिए डिमांड फिलहाल नहीं है। वहीं दाहोद के किसान ओपी तिवारी कहते हैं कि पिछले वर्ष 7 क्विंटल सोयाबीन बोया था। एक भी दाना लौट कर नहीं आया। रबी फसल में भी नुकसान हुआ है। बाजार में बीज के दाम सुनकर खरीदने की हिम्मत नहीं है। फसल की लागत और खर्चे भी बढ़े हैं। व्यवस्था न होने के कारण खरीफ में खेत खाली रखने का ही विचार है। कर्ज लेकर खेती करना अब ठीक नहीं है। पिछले साल सोयाबीन का बीज भी वापस नहीं लौटा।
दाम बढ़ाकर अनुदान में कटौती
सोयाबीन बीज को लेकर संकट का दौर तो बना हुआ है लेकिन इन सबके बीच प्रमाणित सोयाबीन बीज के दाम को लेकर एक नई समस्या खड़ी हो गई है। राज्य सरकार ने प्रमाणित बीजों की विक्रय दरें निर्घारित कर दी है। जिसके तहत प्रमाणित सोयाबीन बीज की दर 6600 रूपए प्रति क्विंटल निर्घारित की गई है जबकि पिछले साल सोयाबीन बीज के रेट 4960 रूपए प्रति क्विंटल थे। इस हिसाब से सोयाबीन बीज के दाम में 16 फीसदी की बढ़ोत्तरी की गई है। सोयाबीन के सरकारी रेट बढऩे से यह तो तय हो गया कि प्राइवेट में बीज इससे महंगा ही बिकेगा। ऐसे में किसानों के लिए महंगा बीज खरीदना किसी आफत से कम नहीं होगा। सोयाबीन बीज महंगा होने पर सरकार को अनुदान की राशि बढ़ाना चाहिए थी, ताकि किसानों को बीज खरीदने पर राहत मिल सके, लेकिन ऐसा न कर अनुदान की राशि में कटौती कर दी गई। बताया गया कि पिछले साल सोयाबीन बीज के रेट कम होने पर 600 रूपए प्रति क्विंटल तक का अनुदान दिया गया था, लेकिन इस बार अनुदान की राशि 100 रूपए घटाकर 500 रूपए कर दी गई है। जिससे किसानों के लिए मुश्किलें बढ़ गई है। भारतीय किसान संघ की बैतूल जिला इकाई के अध्यक्ष पुरूषोत्तम सरले कहते हैं कि किसानों के साथ यह अन्याय है और इसको लेकर हमारे द्वारा मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा जाएगा। जिसमें मांग की जाएगी कि सोयाबीन के रेट या तो यथावत रखे जाए या फिर अनुदान की राशि को बढ़ाया जाए। ताकि किसानों को थोड़ी राहत मिल सके। यदि यही स्थिति रही तो किसान सोयाबीन की बोवनी तक नहीं कर पाएंगे।
समितियां भी उधार नहीं दे रहीं
सहकारी समितियों में कुछ मात्रा में बीज उपलब्ध है लेकिन वह भी किसानों को नगद में ही मिल रहा है। इस स्थिति में वे किसान ही बीज ले पा रहे हैं, जिनके पास पूंजी उपलब्ध है। जो किसान हमेशा की तरह उधार बीज लेना चाहते हैं, उनके सामने समितियां पहले पिछला उधार चुकाने की शर्त रख रही हैं। इसलिए खरीफ सीजन में बोवनी के लिए महंगा बीज खरीदना किसान की मजबूरी होगी। सोसायटी से सरकारी रेट पर बीज केवल खातेदार किसानों को ही दिया जाएगा। वहीं सहकारी बैंक के नियमों के मुताबिक जो किसान कर्जदार है उन्हें बीज मिलना भी मुश्किल होगा। ऐसे में सरकारी दर से मिलने वाला बीज बहुत कम किसानों को ही उपलब्ध हो सकेगा।
सरकारी कोटे में खाद का भी टोटा
प्रदेश में खरीफ की फसल बोने के लिए केवल बीज का ही नहीं खाद का भी टोटा है। कृषि विभाग की मांग के अनुसार विपणन विभाग के पास खाद का इंतजाम भी नहीं है। कई जिलों में तो स्थिति यह है कि किसानों को जितने खाद की जरूरत है, उससे आधा उर्वरक भी गोदामों में नहीं है। बोवनी के समय खाद नहीं मिलने से कई किसानों को परेशानी का सामना परेशान होना पड़ेगा। इस दौरान किसानों को खाद की कालाबाजारी का सामना भी करना पडेगा। खाद की कालाबाजारी से किसान ठगे जाएंगे। बड़वानी उपसंचालक कृषि सुनील दुबे का कहना है कि सोयाबीन बीज की किल्लत पूरे प्रदेश में बनी हुई हैं। किसानों को सोयाबीन की जगह कपास बोने की सलाह दी जा रही हैं।
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद हो रही छापामार कार्रवाई
खरीफ फसल में खाद और सोयाबीन बीज की कमी ने प्रदेश में इसके गोरखधंधे को बढ़ा दिया है। गांव-गांव में बिक रहे महंगे दाम के बीज के नहीं उगने की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमानक बीज,खाद बेचने वालों तथा कालाबारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। आदेश मिलते ही कृषि विभाग बीज, खाद एवं कीटनाशक की जांच में लग गया। अब कृषि विभाग के द्वारा इसके सैंपल लिए जा रहे है। विभाग के द्वारा प्रदेश भर में सोयाबीन से लेकर मक्का और धान के बीजों के करीब 432 सैंपल एकत्रित किए गए है। इन सैंपलों को जांच के लिए भेजा जा रहा है। जांच रिर्पोट आने के बाद कई कंपनियों पर गाज भी गिर सकती है। गौरतलब है कि करोड़ों के कारोबार होने से बीज कंपनियों के द्वारा इस बार बीज की कमी का फायदा उठाया जा रहा है। इसके लिए ब्रांड से लेकर स्थानीय स्तर तक का बीज बड़े महंगे दाम में बेचा जा रहा है। ऐसे में छिंदवाड़ा के चौरई और अमरवाड़ा विकासखंड के कई गांवों में तो बीजों के नहीं उगने तक की शिकायत भी मिली थी। जिसके बाद विभाग ने बीजों के सैंपल लेने शुरू किए हैं।
बड़वानी के गोदामों में छापा
इंदौर संभाग के बड़वानी जिले में किसानों को सोयाबीन के घटिया बीज बेचने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है। बड़वानी कलेक्टर द्वारा गठित विशेष दल ने नीलेश एग्रो सीड्स कंपनी के सेंधवा स्थित गोदाम में छापा मार कर 146 क्विंटल सोयाबीन के बीज जब्त किए हैं। निर्माता कंपनी का लाइसेंस भी निरस्त कर एफआईआर दर्ज कराई जा रही है। होशंगाबाद, रतलाम और आगर जिले में बीज निर्माता कंपनियों के गोदामों की भी जांच शुरू हो गई है। सोयाबीन के बीज के संकट से जूझ रहे किसानों को निजी कंपनियों ने 2 लाख क्विंटल घटिया बीज बेच दिया है। 19 कंपनियों के गोदामों से बीज के नमूनों की जांच में पाया कि बीज की गुणवता तय मानकों से बहुत कम है। विभिन्न कंपनियों का जो सोयाबीन बीज सीज किया, उसमें से कुछ की गुणवत्ता इतनी घटिया है कि किसान ने 100 बीज बोए तो अंकुरित होंगे सिर्फ 29। गौर करने की बात यह है कि राज्य सरकार की ग्वालियर की बीज प्रयोगशाला ने इन्हीं बीजों को गुणवतापूर्ण होने का प्रमाण दे दिया था। कृषि विभाग की छापामार कार्रवाई में इंदौर की एएसएन एग्रो जनेस्टेट प्रालि, मोहरा सीड्स सामेर रोड, सावंरिया सीड्स बायोटेक, विगोर सीड्स बायोटेक, ईगल सीड्स बायोटेक, कृतिका सीड्स देवास नाका, महाधन सीड्स प्रालि, नेशनल सीड़स कारपोरेशन, ग्रीन गोल्ड एग्रीटेक, माणिक्या एग्रीटेक, रासायन एग्रो प्रालि और मयूर सीड्स एंड एग्रोटेक, होशंगाबाद की कृषक भारती कॉपरेटिव लिमिटेड,आगर की देवश्री सड्स कानड, जयकिसान कृषि सेवा केंद्र नलगोड़ा एवं प्रक्रिया प्रभारी ग्रीनटेग सीड्स नलखेड़ा,रतलाम की गुरुकृपा सीड्स प्रोपराइटर विक्रमगढ़ और आलोट की गुरुकृपा सीड्स कंपनी के नमूने राज्य शासन की ग्वालियर स्थित लैब में फेल हो चुके हैं। शासन ने कंपनी के खिलाफ एफआईआर के आदेश दिए हैं।
बारिश की देरी से सोयाबीन बुआई पिछड़ी
देश में सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक मध्य प्रदेश में मॉनसूनी वर्षा की देरी से इसकी बुआई पिछड़ रही है और किसानों चिंतित होने लगे हैं। मौसम विभाग के मुताबिक जून में 100 साल में सबसे कम बारिश इस बार हुई है। अभी तक 37 फीसद कम बारिश हुई है। कम मानसून की आशंका ने सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है। देश में सूखे जैसे हालात बन रहे हैं। मौसम केंद्र भोपाल के निदेशक डॉ. डीपी दुबे ने अनुसार मानसून ने पूर्वी मध्यप्रदेश में 20 जून को प्रवेश किया था लेकिन वहां से आगे नहीं बढ़ रहा है। इससे सूबे के दूसरे हिस्सों में अब तक बारिश शुरू नहीं हुई है। उन्होंने बताया, फिलहाल कोई ऐसा मौसमी तंत्र नहीं दिखाई दे रहा है जिससे लगे कि मानसून पूर्वी मध्यप्रदेश से आगे बढ़कर प्रदेश के अन्य हिस्सों में छाने जा रहा है। ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश के पश्चिमी इलाके सोयाबीन की खेती के प्रमुख क्षेत्रों में गिने जाते हैं। इन हिस्सों में मानसून आमतौर पर 15 जून के आस-पास पहुंचता है और इसके बाद सोयाबीन की बुआई शुरू हो जाती है। लेकिन इस बार मानूसन की आमद में देरी इन इलाकों में किसानों की चिंताएं बढ़ा रही है। इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर सांवेर क्षेत्र के सोयाबीन उत्पादक किसान रामसिंह कहते हैं कि हम सोयाबीन की बुआई के लिए पखवाड़े भर से बारिश का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन फिलहाल बारिश के कोई आसार नजर नहीं आते। भगवान ही जानता है कि इस बार हमारी फसल का क्या होगा।
मक्का और धान की खेती की सलाह
किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा ने बताया, 'हमें अकेले मध्य प्रदेश के लिए 15 लाख क्विंटल बीज की जरूरत होगी, इसके अलावा महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य भी हैं जिनकी मांग 10 लाख क्विंटल से कम नहीं है। भारी बारिश ने इस वर्ष बीज शृंखला को बरबाद कर दिया और करीब 80 फीसदी बीज नष्टï हो गए। इस वजह से बाजार में बीज की कमी हो गई। हमारे पास कुछ ही विकल्प शेष हैं या तो हम किसानों को मक्के और धान जैसी अन्य खरीफ फसलों का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करें या फिर बीज की बुआई की मात्रा को कम करें जो जरूरत से अधिक है। हमारे पास निर्यात करने का विकल्प नहीं है।Ó सोयाबीन की फसल में बीज बुआई दर 75 किग्रा प्रति हेक्टेयर से कम नहीं होती। विभाग की योजना है कि अगर किसान बीज बुआई की दर को 50 किग्रा प्रति हेक्टेयर तक कम कर दें तो देश की जरूरत के लिए भरपूर बीज रहेगा। इसके बदले सरकार के पास किसानों को अन्य खरीफ फसलों का उत्पादन करने के लिए प्रेरित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। राजौरा ने कहा, 'हम इस साल मध्य प्रदेश में अरंडी के बीज और ग्वार फसलों को भी पेश करेंगे। किसान न सिर्फ और कीमत पाएंगे बल्कि फसल का ढर्रा भी बदलेंगे।Ó
अब गर्मी में होगी सोयाबीन की खेती
डॉ. राजौरा कहते हैं कि सोयाबीन बीज की कमी को पूरा करने के लिए रबी और ग्रीष्मकालीन फसल ली जाएगी। किसानों को प्रोत्साहन राशि देने का भी प्रस्ताव है। वह कहते हैं कि सोयाबीन बीज के संकट से निपटने सरकार गर्मी में इसकी खेती करवाएगी। रबी और ग्रीष्मकाल में सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी। तय किया गया है कि केन्द्र सरकार से कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर को मिले न्यूक्लियस बीज से ब्रीडर बीज इसी खरीफ सीजन में तैयार किया जाएगा। रबी में ब्रीडर वन से ब्रीडर टू बीज बनाया जाएगा। प्रदेश में करीब 65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती होती है। दो साल से सोयाबीन फसल के अतिवर्षा से प्रभावित होने से बीज का संकट है। कृषि विभाग के अफसरों की मानें तो न्यूक्लियस बीज से ब्रीडर बनाने वाले बीज में 80 से 85 प्रतिशत का नुकसान पिछले साल हुआ। ब्रीडर से फाउंडेशन बीज में 75 से 80 फीसदी का हानि हुई। यही वजह है कि प्रमाणित बीज की कमी हो गई है। इस बार मौसम को लेकर कृषि विभाग अधिक आशांवित नहीं है। यही वजह है कि न्यूक्लियस से ब्रीडर बीज बनाने का काम इसी खरीफ सीजन में किया जाएगा। इसके चलते रबी मौसम में इस बार सोयाबीन के ब्रीडर वन से टू नंबर बीज के लिए खेती होगी। इसके लिए पंजीकृत किसान को बीज मुहैया कराया जाएगा और प्रोत्साहन स्वरूप प्रति हेक्टेयर तीन या चार हजार रुपए भी दिए जाएंगे।ब्रीडर टू बीज से फाउंडेशन बीज बनाने का काम फरवरी से मई के बीच किया जाएगा।

लोहे के सरदार के लिए ढाई लाख लोगों का जीवन दांव पर

गुजरात गौरव के लिए मध्यप्रदेश को डूबाने की तैयारी
स्टैचू आफ यूनिटी की आड़ में सरदार सरोवर पर पर्यटन स्थल विकसित करेगा गुजरात
भोपाल। सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है, बल्कि इसकी स्क्रिप्ट पहले से लिखी हुई थी। यही कारण है कि इसका निर्णय होने के साथ ही बांध के गेट में 16 मीटर का दरवाजा लगाने का काम शुरू हो गया है। दरअसल बांध की ऊंचाई बढ़ाना मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं को पूरा करने के लिए जरूरी था। मोदी गुजरात में बांध के बीचो-बीच सरदार पटेल की लोहे की प्रतिमा (स्टैचू आफ यूनिटी ) स्थापित कराना चाहते हैं और उस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है। इसलिए मप्र, महाराष्ट्र और राजस्थान की सरकारों से बिना सलाह किए ही आनन-फानन में मोदी सरकार ने बांध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय ले लिया। मोदी की मंशा है कि भले ही इस निर्णय से मप्र के ढ़ाई लाख लोगों की जान दांव पर लगे लेकिन गुजरात का गौरव बुलंद हो। माना जा रहा है कि इसके जरिए मोदी ने गुजरातवासियों से किया अपना एक वादा निभा दिया।
अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस हद तक जा सकते है इसका नजारा उन्होंने गुजरात में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 121.9 मीटर से बढ़ाकर 138.7 मीटर (17 मी.) करने के निर्णय से दे दिया है। उनका यह निर्णय मध्यप्रदेश को डूबाने वाला सिद्ध होगा। दरअसल,गुजरात में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने को मिली हरी झंडी निश्चित ही देश में बदले राजनीतिक माहौल का नतीजा है। 2006 में नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मु यमंत्री के तौर पर इस परियोजना को पूरी मंजूरी दिलाने के लिए 51 घंटों का उपवास किया था। अब वे प्रधानमंत्री हैं तो नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) ने बांध की ऊंचाई 121.9 मीटर से बढ़ाकर 138.7 मीटर करने की इजाजत दे दी है। इससे बांध के जलाशय में परियोजना में अपेक्षित पूरी क्षमता के साथ जल संग्रहण हो सकेगा। इससे गुजरात में सिंचाई और पेयजल की सुविधाएं अधिक इलाकों में दी जा सकेंगी और बिजली उत्पादन को बल मिलेगा। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को भी बिजली उत्पादन के लिहाज से लाभ होने का अनुमान है। लेकिन इससे मप्र के चार जिलों आलीराजपुर, बड़वानी, धार व खरगोन के अधिकांश क्षेत्र जलमग्र हो जाएंगे। इससे मध्यप्रदेश के किसानों की हजारों एकड़ जमीन, मछुआरों की आहुति दी जा रही है, फायदा गुजरात के बड़े शहरों व उद्योगों को मिलेगा। इतना होने के बाद भी, मप्र सरकार व प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे तीनों केंद्रीय मंत्री चुप्पी साधे हैं। उलटा फैसले का स्वागत कर रहे हैं। इससे प्रदेश के ढाई लाख लोगों की जिंदगी संकट में है। हैरानी की बात यह है कि एनसीए द्वारा जारी आदेश की प्रति में मप्र व महाराष्ट्र को आदेश की प्रति भेजे जाने का जिक्र नहीं है। मप्र व महाराष्ट्र के साथ बड़ा धोखा हुआ है। बांध में प्रदेश की बड़ी हिस्सेदारी है। 214 किमी के नदी क्षेत्र में प्रदेश का हिस्सा आधे से अधिक है। बांध की ऊंचाई बढऩे से रेजवायर क्षेत्र में सतही पानी फैलेगा और डूब क्षेत्र से लगे अन्य गांव भी प्रभावित होंगे।
पानी देने की योजना बन गई बिजली पैदा करने की योजना
दरअसल, नर्मदा घाटी में बांध की योजना 1946 में बनी थी (और सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड का दावा है कि इस बांध का स्वप्न सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ही देखा था।) लेकिन इसका फाउंडेशन रखा पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1961 में। सरदार वल्लभ भाई पटेल की मौत के 11 साल बाद। गुजरात के जिस गोरा गांव में इस बांध की नींव रखी गई थी उसकी मूल ऊचाईं 49.8 मीटर निर्धारित की गई थी। उस वक्त जिन चार बांधों को तत्काल प्राथमिकता के आधार पर बनाने का निर्णय लिया गया था वे पानी के प्यासे इलाके थे। गुजरात का भरुच जिला उसमें से एक था, जहां नर्मदा नदी पर बांध बनाकर किसानी के लिए पानी देने की योजना बनाई गई थी। लेकिन किसानों को पानी देने की यह योजना कब बिजली पैदा करने की योजना में तब्दील कर दी गई यह बिल्कुल वैसे ही जैसे किसानों के सरदार को बिजली पैदा करनेवाले बड़े-बड़े बांधों का समर्थक घोषित कर दिया जाए। नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर कहती हैं कि सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा के बहाने असल में बांध की ऊंचाई बढ़ाने की साजिश रची जा रही है जिसके कारण एक बार फिर बड़ी सं या में स्थानीय निवासी अपने घरों से दरबदर होंगे। बांध की उचाईं इसके मूल 49.8 मीटर से ऊंचा उठते-उठते अब 122 मीटर तक पहुंच चुकी है। अब सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा की आड़ में इस बांध की ऊचाईं 138.7 मीटर ले जाने की योजना है ताकि पीने के पानी की सप्लाई बढ़ाई जा सके और बिजली की पैदावार भी। लेकिन बांध का स्तर ऊपर उठाया गया तो आस पास के और 70 गांवों के लोग सदा सर्वदा के लिए विस्थापित हो जाएंगे, मोदी की सरकार यह बात नहीं बता रही है।
मोदी की मंशा और स्टैचू आफ यूनिटी
जानकारों की माने तो,स्टैचू आफ यूनिटी को स्थापित करने की अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना से मोदी एक तीर से कई शिकार कर रहे हैं। एक तरफ जहां इतिहास का पुनर्पाठ करवाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ कुछ विदेशी कंपनियों (खासकर अमेरिकी कंपनी टर्नर कन्ट्रक्शन) को उपकृत भी किया जा रहा है। देशभर से लोहा मांगकर सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने का दावा करनेवाले मोदी ने किसी को यह नहीं बताया था कि वास्तव में वे इस प्रतिमा के बहाने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाना चाहते थे और बांध के आस पास पर्यटन विकास के काम में लगे हुए हैं जिसमें सरदार की लौह प्रतिमा, अ युजमेंट पार्क, अंडरवाटर एक्वेरियम, थीम पार्क, होटल, रेस्टोरेंट और भरूच तक पर्यटन कारीडोर सबकुछ शामिल है। स्टैचू आफ यूनिटी प्रोजेक्ट की हकीकत यह कि सरदार पटेल की आकृति वाली एक साठ मंजिला इमारत बनाई जा रही है जिसकी ऊंचाई 182 मीटर होगी। नर्मदा बचाओ आंदोलन के आलोक अग्रवाल कहते हैं कि अमेरिका की टर्नर कन्सट्रक्शन और माइकल ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स भवन निर्माण की कंपनियां हैं जिन्होंने पूरी दुनिया में भवन निर्माण का जाल खड़ा कर रखा है। इन कंपनियों में जहां टर्नर कंस्ट्रक्शन मु य निर्माण कंपनी है वही मीनहाट्र्ज तथा माइकल ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स डिजाइन और आर्किटेक्ट फर्म हैं। अगर आप इन दोनों कंपनियों का इतिहास खंगाले तो पाएंगेे कि किसी बांध परिसर में इतने भारी भरकम निर्माण का किसी कंपनी ने नहीं किया है। मीनहाट्र्ज ने सिंगापुर में एक बांध के बीच एक वॉच टॉवर का निर्माण जरूर किया है और शायद उसकी इसी खूबी की वजह से टर्नर के जरिए उसे नर्मदा सरोवर के बीचो बीच सरदार वल्लभ भाई पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने के योग्य मान लिया गया।
लेकिन नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट ने परियोजना के बारे में अपनी वेबसाइट पर जो आधिकारिक जानकारी मुहैया कराई है उसमें मूर्ति बनाने का कहीं कोई जिक्र नहीं है। तकनीकि तौर पर यह एक 182 मीटर (597 फुट) ऊंची ईमारत होगी जिसमें अंदर पहुंचकर कोई भी व्यक्ति विस्तृत सरदार सरोवर का नजारा कर सकता है। इस इमारत की शक्ल एक इंसान जैसी होगी जो सरदार वल्लभ भाई पटेल होंगे। दुनिया में भवन निर्माण में जो क्रांतिकारी प्रयोग हो रहे हैं उसे देखते हुए यह कल्पना कोई बहुत आश्चर्यजनक नहीं लगती है। गुजरात सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सरदार पटेल के इस लौह भवन की जो भव्य कल्पना की गई है उसमें सरदार की मूर्ति के भीतर 500 फुट पर एक डेक का निर्माण किया जाएगा। बिल्कुल एफिल टॉवर की तर्ज पर। इस डेक तक पहुंचने के लिए सरदार के लौह भवन के भीतर तेज लि ट लगाई जाएंगी और एक वक्त में यहां 200 लोग एक साथ मौजूद रहकर 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले विशाल सरदार सरोवर जलाशय का नजारा देख सकेंगे। इसके अलावा इस भवन के आसपास थीम पार्क, होटल, रेस्टोरेण्ट, अंडरवाटर अ यूजमेंट पार्क जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को साकार किया जाना है। यह सब तो पहले चरण में तीन साल के भीतर होना है। दूसरे चरण में भरुच तक नर्मदा तट का विकास। सड़क, रेल यातायात सहित पर्यटन के अन्य आधारभूत ढांचे का विकास। शिक्षा अनुसंधान केन्द्र और नॉलेज सिटी। गरुणेश्वर से भाड़भूत तक पर्यटन कारीडोर आदि विकसित किए जाने हैं।
जाहिर है गुजरात सरकार राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक सरदार की प्रतिमा बनाने की बजाय सरदार सरोवर के आस-पास एक पर्यटन केंद्र विकसित कर रही है। फिर सवाल उठता है कि मोदी पर्यटन की इस परियोजना को राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक के तौर पर क्यों प्रस्तुत कर रहे हैं? जानकारों का कहना है कि यह मोदी का स्टाइल है। व्यापार और कारोबार को राष्ट्रीय अस्तिमा के रूप में पेश करके वे और उनकी टीम गुजरात में टूरिज्म विकसित करने की आधारशिला रख रहे हैं। आज नर्मदा नदी के जिस नर्मदा बांध के कारण सरदार सरोवर का निर्माण हुआ है, उस सरोवर पर बनने वाली प्रस्तावित मूर्ति को एकता की बुनियाद बताया जा रहा है, असलियत यह है कि लगातार बढ़ती बिजली की भूख ने इस बांध को बंटवारे का बांध बना दिया है।
अदालत की अवमानना
मेधा पाटकर ने सरकार के इस फैसले को सर्वोच्च अदालत के 2000 अक्टूबर के फैसले में सूचित निर्णय प्रक्रिया व संरचना की अवमानना करार दिया। उनका कहना है कि निर्णय लेते वक्त पर्यावरण मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में गठित पर्यावरण उपदल की पूर्व बैठक तथा 17 मीटर उंचाई बढाने की मंजुरी वह भी पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति कार्य की पूर्व शर्त का पालन सुनिश्चित करने के बाद दी जाना जरूरी था। इस फैसले में जल संसाधन मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय की भी सहमति ली गई है या नहीं।
साल 2000 और 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि सरदार सरोवर की ऊंचाई बढ़ाने के छह महीने पहले सभी प्रभावित परिवारों को ठीक जगह और ठीक सुविधाओं के साथ बसाया जाए। मगर 8 मार्च, 2006 को ही बांध की ऊंचाई 110 मीटर से बढ़ाकर 121 मीटर के फैसले के साथ प्रभावित परिवारों की ठीक व्यवस्था की कोई सुध नहीं ली गई। हांलाकि 1993 में, जब इसकी ऊंचाई 40 मीटर ही थी तभी बड़े पैमाने पर बहुत सारे गांव डूबना शुरू हो गए थे। फिर यह ऊंचाई 40 मीटर से 110 मीटर की गई और प्रभावित परिवारों को ठीक से बसाया नहीं गया।
तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार ने भी स्वीकारा था कि वह इतने बड़े पैमाने पर लोगों का पुनर्वास नहीं कर सकती। इसीलिए 1994 को राज्य सरकार ने एक सर्वदलीय बैठक में बांध की ऊंचाई कम करने की मांग की थी ताकि होने वाले आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक और पर्यावरणीय नुकसान को कम किया जा सके। 1993 को विश्व बैंक भी इस परियोजना से हट गया था। इसी साल केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय के विशेषज्ञ दल ने अपनी रिपोर्ट में कार्य के दौरान पर्यावरण की भारी अनदेखी पर सभी का ध्यान खींचा था। इन सबके बावजूद बांध का काम जारी रहा और जो कुल 245 गांव, कम से कम 45 हजार परिवार, लगभग 2 लाख 50 हजार लोगों को विस्थापित करेगा।
हजारों परिवारों का पुनर्वास नहीं
जानकारों का कहना है कि सरदार सरोवर बांध में पुनर्वास और पर्यावरण शर्तो का पालन नहीं हो रहा है। हजारों प्रभावित परिवारों का आज भी पुनर्वास नहीं हुआ है। कई लोगों को जमीन नहीं मिली है। पुनर्वास पूर्ण नहीं हुआ है। बांध की ऊंचाई आगे बढ़ाना सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना है। सरदार सरोवर बांध में कई हजार पेड़ों का विनाश होना है। बांध को लेकर कई जांचे चल रही है। उसके बाद भी इसकी ऊंचाई बढ़ाने का फैसला लिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि ये सब झा आयोग की रिपोर्ट का दबाने का प्रयास है। भ्रष्टाचार को दबाना चाहते हैं। अब तक 12 हजार से ज्यादा परिवारों के घर और खेत डूब चुके हैं। बांध में 13,700 हेक्टेयर जंगल डूबना है और करीब इतनी ही उपजाऊ खेती की जमीन भी। मु य नहर के कारण गुजरात के एक लाख 57 हजार किसान अपनी जमीन खो देंगे। हालांकि इस मामले में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारत का कहना है कि विस्थापितों को ध्यान में रख कर दिए गए सुझावों के बाद सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की मंजूरी दी गई है। सामाजिक न्याय मंत्रालय विस्थापितों के लिए उठाए गए कदमों से संतुष्ट है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार डूब क्षेत्र में 2.5 लाख जनसं या, हजारों आदिवासी, किसानों मजदूरों, मछुआरों को वैकल्पिक जमीन, आजीविका, पुनर्वास, वसाहटों में भू-खण्ड अभी प्राप्त होना बाकी हैं। 3,000 फर्जी रजिस्ट्रियों की जांच, 88 बसाहटों के निर्माण कार्यों में गुणक्ताहीनता, भूमिहीनों के साथ धोखाधड़ी की जांच 5 सालों से चल रही है। शिकायत निवारण प्राधिकरण के सैकड़ों आदेशों का अमल होना बाकी है। पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति कार्य बहुत बड़े पैमाने पर अधूरा होते हुए, पुनर्वास उपदल, पर्यावरण उपदल एवं नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा बांध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय लेना कानूनी अपराध है।
केंद्र ने सरदार सरोवर की उंचाई 122 मी से आगे 138 .6 8 मीटर (17 मी.) बढाने का फैसला अमानवीय और अन्यायपूर्ण निर्णय है। इस बांध को केवल गुजरात के बड़े उद्योगपतियों के दबाव में आगे बढाने के लिए अब इसकी महत्ता चढा-बढाकर दिखाई जा रही है। इससे होने वाली त्रासदी छुपाने के लिए झूठे या गलत आंकडे पेश किए जा रहे है। विकास का मूलमंत्र और जनतंत्र भी कितना विकृत हो सकता है, यह इसका नमूना है। मप्र सरकार के पास जमीन ही नहीं हैं। तीन राज्यों में बांध से प्रभावित परिवारों की सं या 51 हजार है, जिसमें अकेले मप्र में करीब 40 हजार परिवार है। प्रदेश में करीब 4 हजार परिवार ऐसे है जिन्होंने पूनर्वास स्थलों पर मकान बनाए है जिसमें से करीब 4 सौ परिवार ही रहने के लिए गए हैं। अन्य प्रभावित अभी भी मूल गांव में ही रह रहे हैं।
मप्र व महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रभावित
नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) की अंतरराज्यीय संरचना इसीलिए बनी है कि सरदार सरोवर केवल गुजरात का बांध नहीं है। इस बांध में महाराष्ट्र और सबसे ज्यादा मप्र की ॅउपजाऊ भूमि व गांव जा रहे हैं। उनसे नर्मदा और उसका पानी पर हक ही छीना जा रहा है जबकि लाभों की मात्रा अनुसार हर राज्य का पूंजी निवेश भी है। महाराष्ट्र और मप्र को एक बंूद पानी इस योजना से नहीं मिल रहा है, केवल 27 प्रतिशत व 57 प्रतिशत (अनुक्रम में) बिजली मिल रही है तो बिजली निर्माण के खर्च का 27 और 57 प्रतिशत हिस्सा ये राज्य बराबर चुका रहे है। मप्र में हजारों किसान परिवारों को जमीन के बदले पैसा (5 एकड़ के बदले 5.5 लाख केवल) देकर खरीदी के नाम पर जमीन की फर्र्जी रजिस्ट्री बनाकर फंसाया गया है।
उनकी जांच हाईकोर्ट से नियुक्त न्यायाधीश श्
रवणशंकर झा आयोग की ओर से जारी है। कुल 45000 परिवार (2.5 लाख लोग) डूब क्षेत्र में होते हुए तथा पात्रता अनुसार ज्यादा प्रभावित किसानों के लिए दोनो राज्यों में हजारों हेक्टेयर जमीन ढूंढनी और देनी हैं। मछुआरे, कु हार, दुकानदारों को वैकल्पिक आजीविका देना बाकी है। सर्वोच्च अदालत के चार फैसलों के अनुसार ट्रिब्यूनल फैसले का पूरा पालन, यहीं डूब/विस्थापन के पहले पूर्व शर्त होते हुए, इसे भी निर्णय करते वक्त सोच समझकर नजर अंदाज किया गया।
उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए बढ़ा रहे बांध की ऊंचाई
परियोजना के प्रारंभ में लगभग 18 लाख हैक्टेयर में सिंचाई का प्रस्ताव था। 122 मीटर जलस्तर पर लगभग 6 लाख हैक्टेयर प्रस्तावित थी। इसके बावजूद महज डेढ़ लाख हैक्टेयर में सिंचाई हो पाई। अब पूरी क्षमता पर बांध भरने के बाद 6.8 लाख हैक्टेयर सिंचाई की बात कही जा रही है। इसका सीधा-सा मतलब है कि सिंचाई का क्षेत्र घटाकर उद्योगों को पानी दिया जाएगा। गुजरात ने जब पानी का उपयोग नहीं किया तो क्या जरूरत है बांध की ऊंचाई बढ़ाने की। नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार सरकार इसमें अनुमानित खर्च 90 हजार करोड़ बता रही है। इसमें से 60 हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं। योजना आयोग की रिपोर्ट बता रही है, 2012 तक 70 हजार करोड़ खर्च होना थे। सरकार को आगे काम करने से पहले इसके लागत-लाभ अध्ययन का खुलासा करना चाहिए।
गुजरात को ही लाभ
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, जल संसाधन मंत्री उमा भारती, सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गेहलोत तीनों प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके बाद भी प्रदेश के हितों की अनदेखी की जा रही है। जल संसाधन मंत्री तो स्वयं नर्मदा किनारे कई बार जा चुकी हैं। उन्हें हकीकत पता है। मु यमंत्री हवाई दौरे व कागजों के आंकड़ों को देख कर बोल रहे हैं। एक बार पैदल जाकर पुनर्वास स्थल का अवलोकन करें तो पता चलेगा। 214 किमी नदी क्षेत्र देने के बाद भी हम दबाव में हैं। इससे गुजरात के बड़े शहरों अहमदाबाद, बड़ौदा व गांधीनगर के आसपास बसे उद्योगों को फायदा देने की योजना है।
जितना पानी, उसी का उपयोग नहीं
उमा भारती द्वारा फैसले की घोषणा करने के एक घंटे के भीतर ही गुजरात की मु यमंत्री आनंदीबेन पटेल साइट पर जाकर कैसे काम शुरू करवा देती हैं? जबकि ऐसा संभव नहीं है। डूब क्षेत्र असुरक्षित है। वर्तमान में बांध में भरे पानी का उपयोग ही नहीं कर पा रहे हैं। इसी से प्रभावित गांवों का पुनर्वास नहीं किया जा सका है। प्रदेश के चार जिले आलीराजपुर, बड़वानी, धार व खरगोन के कई गांवों के लिए बनाए गए पुनर्वास केंद्र रहने लायक नहीं हैं। मछुआरों व जमीनहीन लोगों को रोजगार के साधन मुहैया नहीं कराए गए। 1993 से कहा जा रहा है, आठ मुद्दों पर अध्ययन कर एक्शन प्लान बनाए जाएं, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं है। बांध के पर्यावरणीय प्रभावों की लगातार अनदेखी की जा रही है। तीस साल बाद भी हेल्थ प्लान नहीं सौंपा है। डूब क्षेत्र में मलेरिया, फाइलेसिस जैसी गंभीर बीमारियां फैल रही हैं। बांध की 90 मीटर ऊंचाई से प्रभावित अलिराजपुर एवं बड़वानी जिले के पहाड़ी गांवों के सैकड़ों आदिवासी परिवारों की कृषि ज़मीन तथा मकान 15 बरसों से जलाशय के नीचे चले गए। मगर किसी भी परिवार को मध्य प्रदेश में सर्वोच्च अदालत के आदेशानुसार सिंचित, कृषि-योग्य, उपयुक्त एवं बिना अतिक्रमण वाली ज़मीन का आवंटन नहीं हुआ।
70,000 हजार करोड़ की लागत के बाद अभी 30 सालों में मात्र 30 प्रतिशत नहरें ही बन पाई हैं वो भी पहले से ही सिंचित क्षेत्र की खेती को उजाड़ कर बनाई जा रही है। इसलिए गुजरात के किसानों ने अपनी ज़मीन नहरों के लिए देने से इंकार कर दिया है। 122 मी. उंचाई पर 8 लाख हेक्टर सिंचाई का वादा था जबकि वास्तविक सिंचाई मात्र 2.5 लाख हेक्टेयर से भी कम हुई है। बांध के लाभ क्षेत्र से 4 लाख हेक्टेयर ज़मीन बाहर करके कंपनियों के लिए आरक्षित की गई है। पीने का पानी भी कच्छ-सौराष्ट्र को कम, गांधीनगर, अहमदाबाद, बड़ौदा शहरों को अधिक दिया जा रहा है जो कि बांध के मूल उद्देश्य मे था ही नहीं।पर्यावरणीय हानिपूर्ति के कार्य अधूरे हैं और गाद, भूकंप, दलदल की समस्याएं बनी हुई है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में 245 गांवों की हजारों हेक्टेयर उपजाऊ ज़मीन और जंगल डूब में जा रहे है। 48,000 किसान, मज़दूर, मछुआरा, कु हार, केवट परिवारों का पुनर्वास अभी बाकी है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को मु त बिजली के झूठे राजनीतिक वादे किए जा रहे हैं जो कि असलियत से कही दूर है वहां आज भी पुनर्वास के लिए 30,000 एकड़ ज़मीन जरूरत है। ज़मीन ना देने के लिए और पुनर्वास पूरा दिखाने के लिए डूब में आ रहे 55 गांवों और धरमपुरी शहर को डूब से बाहर कर दिया गया है। यह डुबाने का पुराना खेल है।
विवाद से घिरी रही नर्मदा परियोजना
सरदार सरोवर बांध परियोजना 1960 से विवादों में फंसी हुई है। पहले इस परियोजना से जुड़े तीन राज्यों के बीच आपसी सहमति न बनने के कारण परियोजना रूकी रही। 1979 में यह मामला नर्मदा जल विवाद प्राधिकरण में पहुंचा, जहां तीनों राज्यों में सहमति बनीं। इस दौरान स्थानीय लोगों ने नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के तहत इस बांध के निर्माण का विरोध शुरू कर दिया। एनबीए ने इस बीच सुप्रीम कोर्ट में बांध निर्माण रोकने के लिए जनहित याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2000 में दिए गए अपने फैसले में कहा कि बांध उतना ही बनाया जाना चाहिए जहां तक लोगों का पुर्नस्थापन और पुनर्वास हो चुका है।
क्या शिवराज करेंगे मोदी का मुकाबला
केंद्र सरकार ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का जब फैसला लिया था,उस समय मप्र के मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दक्षिण अफ्रीका में थे। उन्होंने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट 'ट्विटरÓ पर टिप्पणी की, ''मैं नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) के निर्णय का स्वागत करता हूं, मेरी सरकार ने वर्ष 2008 में ही विस्थापन एवं पुनर्वास (आर एण्ड आर) का काम बांध की पूर्ण ऊंचाई 138 मीटर तक पूरा कर लिया है। बांध पर गेटों की वर्तमान स्थापना अनुमति (खुले हुए स्थिति में गेट) से वर्तमान डूब का स्तर बढऩे की कोई संभावना नहीं है। मु यमंत्री ने कहा कि एनसीए की इस अनुमति को लेकर भयभीत होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि निर्माण का यह काम 36 माह में पूरा होगा और एहतियाती प्रक्रिया अपनाने के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध है। लेकिन 16 जून को भोपाल पहुंचते ही उनके सुर बदल गए। उन्होंने कहा कि नर्मदा बांाध की ऊंचाई बढऩे के बाद भी कोर्ट के आदेश का पालन होगा। कोर्ट के आदेश से एक इंच भी अधिक जमीन डूब में नहीं आने दी जाएगी। डूब प्रभावितों का बेहतर पुर्नवास होगा, किसी को भी परेशानी नहीं होने दी जाएगी। अब सवाल उठता है कि क्या शिवराज बांध की ऊंचाई बढ़ाने के बाद मप्र को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए मोदी से मुकाबला कर पाएंगे। उधर,ऊंचाई बढ़ाने का विरोध करते हुए नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने मु यमंत्री को पत्र लिखकर आपति जताई है।
उन्होंने मु यमंत्री से पूछा है कि अगर इस पर आपने विदेश जाने के पहले कोई सहमति दी है तो विपक्ष या जनता को भरोसे में क्यों नहीं लिया? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने कहा है कि सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाया जाना मप्र के हितों पर कुठाराघात है। ऊंचाई बढ़ाए जाने से प्रदेश की उपजाऊ जमीन डूब में चली जाएगी और ऐसी जमीन का कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे बिजली उत्पादन बढ़ेगा और सिंचाई की सुविधाएं बढ़ेंगी लेकिन यह सब नर्मदा घाटी को बरबाद करने की कीमत पर किया जा रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई को बढ़ाना गैरकानूनी बताया है। साथ ही केंद्र सरकार के इस फैसले को नर्मदा घाटी को डूबोने वाला फैसला करार दिया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार इस तरह से केंद्र सरकार पुनर्वास और पर्यावरणीय शर्तों का उल्लंघन नहीं कर सकती है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने बताया कि सत्ता में आने के एक महीनें के भीतर ही केंद्र सरकार ने गुजरात हित के बहाने नर्मदा घाटी की आहुति देने का निर्णय लिया है। 8 सालों से पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति, पुनर्वास के अभाव और भ्रष्टाचार के जांच के कारण रूका हुआ सरदार सरोवर बांध को पूर्ण जलाश्य स्तर (138 .6 8 ) तक ले जाना का निर्णय घोर अन्याय है।
बांध का 260 से 455 फीट तक का सफर -फरवरी 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने नर्मदा बांध की ऊंचाई 80 मीटर (260 फीट) से 88 मीटर (289 फीट) करने की अनुमति दी थी। -अक्टूबर 2000 में फिर से सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 90 मीटर (300 फीट) तक करने की अनुमति दी। -मई 2002 में नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने बांध की ऊंचाई 95 मीटर (312 फीट) करने को अनुमोदित किया। -मार्च 2004 में प्राधिकरण ने 110 मीटर (360 फीट) करने की अनुमति दी। -मार्च 2006 में प्राधिकरण ने बांध की ऊंचाई 110.64 मीटर (363 फीट) से 121.92 मीटर (400 फीट) करने की अनुमति दी। यह अनुमति वर्ष 2003 में सुप्रीम कोर्ट के बांध की ऊंचाई और बढ़ाने देने की अनुमति देने से इनकार करने के बाद दी गई थी। -अगस्त 2013 में भारी बारिश की वजह से बांध का जलस्तर 131.5 मीटर (431 फीट) तक पहुंच गया था, जिससे नर्मदा नदी के किनारे के 7000 हजार गांवों को लोगों को हटना पड़ा था। -जून 2014 में प्राधिकरण ने ऊंचाई 455 फीट करने की अनुमति दी।
सरदार सरोवर नर्मदा बांध योजना एक नजर में
सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र व राजस्थान चार राज्यों की योजना है। नर्मदा कंट्रोल ऑथोरिटी से मंजूरी के बाद अब इसकी ऊंचाई 138.68 मीटर तक बढ़ाई जा सकेगी। बांध की ऊंचाई 121.92 मीटर तक बढ़ाने की आखिरी मंजूरी 8 मार्च 2006 को मिली थी। प्रोजेक्ट में देरी के चलते गुजरात को प्रतिदिन 10 करोड़ के नुकसान के हिसाब से अब तक 45 हजार 500 करोड़ के नुकसान का आकलन है। बांध पर आगामी 30 माह में 13-13 हजार टन के तीस रेडियल गेट लगेंगे जिसके बाद बांध अपनी पूर्ण ऊंचाई पर होगा। पूरी ऊंचाई हासिल करने के बाद बांध में 4.75 मिलियन एकड़ फीट पानी जमा हो सकेगा जो वर्तमान क्षमता 1.27 मिलियन एकड़ फीट से तीन गुना होगा साथ ही ऊंचाई बढऩे से सालाना 150 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन बढ़ेगा। यहां कुल 24 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा। परियोजना से गुजरात का 18.45 लाख हेक्टेयर, राजस्थान के बाडमेर व जालोर की 37 हजार 500 हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के लिए पानी जबकि मध्यप्रदेश को 57 प्रतिशत, महाराष्ट्र को 27 प्रतिशत तथा गुजरात को 16 प्रतिशत बिजली मिलेगी।
23 हजार ग्राम पंचायतों में रखा है सरदार पटेल का लोहा
गुजरात में बनने वाली लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के लिए गुजरात के मु यमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में लोह संग्रहण का अभियान छेड़ा था। मध्य प्रदेश की 23 हजार ग्राम पंचायतों में लोहा और गांवों की पवित्र मिट्टी एकत्रित की गई है। ये सामग्री अभियान के तहत आए हुए बक्सों में इकट्ठा की गई। एक अनुमान के अनुसार प्रदेश से करीब 1 लाख 84 हजार किलो लोहा स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के लिए गुजरात जाएगा। प्रदेश महामंत्री और प्रदेश में इस अभियान के कर्ताधर्ता विनोद गोटिया ने बताया कि अभियान के तहत एकत्रित किया गया किसानी लोहा, मिट्टी और कार्यकर्ताओं की सूची बॉक्स में रखी गई है। सभी बॉक्स तैयार हैं। इन्हें फिलहाल ग्राम पंचायतों, मंडल कार्यालयों और जिला कार्यालयों में रखा गया है।
गुजरात से ही आए हैं बॉक्स
जिन बॉक्स में लोहा और मिट्टी रखी गई है, वे बॉक्स गुजरात से ही आए हुए हैं। गोटिया ने बताया कि एक बॉक्स में 8 किलो लोहा रखने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन कई जगह तो किसानों ने बड़ी सं या में लोहा इस बॉक्स में डाला है। उन्होंने बताया कि यह अभियान भारत को एक सूत्र में बांधने की एक पहल है।

Sunday, June 15, 2014

14 वर्ष के वनवास में राम कहां-कहां रहे?

प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवान हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया। रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है। जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की। आओ जानते हैं कुछ प्रमुख स्थानों के बारे में... पहला पड़ाव... 1.केवट प्रसंग : राम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। 'सिंगरौर' : इलाहाबाद से 22 मील (लगभग 35.2 किमी) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित 'सिंगरौर' नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से परिज्ञात था। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे 'तीर्थस्थल' कहा गया है। 'कुरई' : इलाहाबाद जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा के उस पार सिंगरौर तो इस पार कुरई। सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी स्थान पर उतरे थे। इस ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था। दूसरा पड़ाव... 2.चित्रकूट के घाट पर : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है। यहां गंगा-जमुना का संगम स्थल है। हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा तीर्थस्थान है। प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। यहां स्थित स्मारकों में शामिल हैं, वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप इत्यादि। चित्रकूट में श्रीराम के दुर्लभ प्रमाण छत्तीसगढ़ के धमतरी में स्थित राम लक्ष्मण मंदिर। ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण श्री राम ने किया था। और महाराष्ट्र के जालना स्थित सीता नहानी। ऐसा कहा जाता है कि माता सीता ने यहाँ स्नान किया था। भगवान श्रीराम गमन पथ और उनके जीवन से जु़ड़े प्रमाणों को जुटाने और रहस्यों को जानने के लिए हरियाणा के देरैली गाँव के डॉ. राम अवतार शर्मा ने 31 साल में 21 देशों की यात्रा कर प्रमाण जुटाए। उनका कहना है कि भगवान राम के जहाँ-जहाँ चरण पड़े वे वहाँ पहुँचे। इन दुर्लभ प्रमाणों को सहेजने के लिए उन्होंने भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट में संग्रहालय स्थापित किया है, जिसका शुभारंभ 20 जून को किया गया। लगातार 31 साल तक राम पथ गमन की खोज करने वाले 61 वर्षीय डॉ. शर्मा बताते हैं कि उन्होंने 30 साल की उम्र में भगवान राम के जीवन के बारे में जानकारी एकत्र करने का संकल्प लिया था। उन्होंने अकेले पहाड़, घनघोर जंगलों में राम वन गमन पथ की खोज की। इसके लिए 21 देशों की यात्रा भी की है। ND डॉ. शर्मा ने बताया कि यात्रा के दौरान कई बार उन्हें मुसीबतों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन हार नहीं मानी। इस बीच उन्होंने दिल्ली से इलाहाबाद तक का सफर स्कूटर और मप्र से बिहार तक का सफर साइकिल से तय किया। इस दौरान वे कई जंगलों में भटके, लेकिन अदृश्य शक्तियों ने उन्हें राह दिखाई। अद्वितीय सिद्धा पहाड़ : यात्रा के अनुभव बताते हुए डॉ. शर्मा ने बताया कि पूरी यात्रा में उन्हें जो सबसे ज्यादा अद्वितीय लगा, वह है सतना जिले के बिरसिंहपुर क्षेत्र स्थित सिद्धा पहा़ड़। यहाँ पर भगवान श्रीराम ने निशाचरों का नाश करने पहली बार प्रतिज्ञा ली थी। उन्होंने कहा कि आज समाज इसे भले ही मानने से इनकार कर रहा है, लेकिन यह वहीं पहाड़ है, जिसका वर्णन रामायण में किया गया है। 50 देशों में होती है श्रीराम की पूजा : डॉ. शर्मा ने बताया कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पूजा भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग 50 देशों में होती है। विदेशों में रहने वाले भारतीय श्रीराम को जहां भगवान मानते हैं, वहीं विदेशियों में श्री राम की छवि एक आदर्श राजा की है। डॉ. राम अवतार शर्मा ने भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े 290 चित्र लिए हैं, जो उन्होंने चित्रकूट में स्थापित संग्रहालय में रखे हैं। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं। तीसरा पड़ाव 3.अत्रि ऋषि का आश्रम : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे। वहां श्रीराम ने कुछ वक्त बिताया। अत्रि ऋषि ऋग्वेद के पंचम मंडल के द्रष्टा हैं। अत्रि ऋषि की पत्नी का नाम है अनुसूइया, जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी। अत्रि पत्नी अनुसूइया के तपोबल से ही भगीरथी गंगा की एक पवित्र धारा चित्रकूट में प्रविष्ट हुई और 'मंदाकिनी' नाम से प्रसिद्ध हुई। ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने अनसूइया के सतीत्व की परीक्षा ली थी, लेकिन तीनों को उन्होंने अपने तपोबल से बालक बना दिया था। तब तीनों देवियों की प्रार्थना के बाद ही तीनों देवता बाल रूप से मुक्त हो पाए थे। फिर तीनों देवताओं के वरदान से उन्हें एक पुत्र मिला, जो थे महायोगी 'दत्तात्रेय'। अत्रि ऋषि के दूसरे पुत्र का नाम था 'दुर्वासा'। दुर्वासा ऋषि को कौन नहीं जानता? अत्रि के आश्रम के आस-पास राक्षसों का समूह रहता था। अत्रि, उनके भक्तगण व माता अनुसूइया उन राक्षसों से भयभीत रहते थे। भगवान श्रीराम ने उन राक्षसों का वध किया। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में इसका वर्णन मिलता है। प्रातःकाल जब राम आश्रम से विदा होने लगे तो अत्रि ऋषि उन्हें विदा करते हुए बोले, 'हे राघव! इन वनों में भयंकर राक्षस तथा सर्प निवास करते हैं, जो मनुष्यों को नाना प्रकार के कष्ट देते हैं। इनके कारण अनेक तपस्वियों को असमय ही काल का ग्रास बनना पड़ा है। मैं चाहता हूं, तुम इनका विनाश करके तपस्वियों की रक्षा करो।' राम ने महर्षि की आज्ञा को शिरोधार्य कर उपद्रवी राक्षसों तथा मनुष्य का प्राणांत करने वाले भयानक सर्पों को नष्ट करने का वचन देखर सीता तथा लक्ष्मण के साथ आगे के लिए प्रस्थान किया। चित्रकूट की मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, छोटी पहाड़ियां, कंदराओं आदि से निकलकर भगवान राम पहुंच गए घने जंगलों में... चौथा पड़ाव, FILE 4. दंडकारण्य : अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद श्रीराम ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रय स्थल बनाया। यह जंगल क्षेत्र था दंडकारण्य। 'अत्रि-आश्रम' से 'दंडकारण्य' आरंभ हो जाता है। छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों पर राम के नाना और कुछ पर बाणासुर का राज्य था। यहां के नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के रहने के सबूतों की भरमार है। यहीं पर राम ने अपना वनवास काटा था। यहां वे लगभग 10 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे थे। 'अत्रि-आश्रम' से भगवान राम मध्यप्रदेश के सतना पहुंचे, जहां 'रामवन' हैं। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे 10 वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनि आश्रमों में गए। बाद में सतीक्ष्ण आश्रम वापस आए। पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में कई स्मारक विद्यमान हैं। उदाहरणत: मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि। राम वहां से आधुनिक जबलपुर, शहडोल (अमरकंटक) गए होंगे। शहडोल से पूर्वोत्तर की ओर सरगुजा क्षेत्र है। यहां एक पर्वत का नाम 'रामगढ़' है। 30 फीट की ऊंचाई से एक झरना जिस कुंड में गिरता है, उसे 'सीता कुंड' कहा जाता है। यहां वशिष्ठ गुफा है। दो गुफाओं के नाम 'लक्ष्मण बोंगरा' और 'सीता बोंगरा' हैं। शहडोल से दक्षिण-पूर्व की ओर बिलासपुर के आसपास छत्तीसगढ़ है। वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है। दंडक राक्षस के कारण इसका नाम दंडकारण्य पड़ा। यहां रामायण काल में रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था। उसका इन्द्रावती, महानदी और पूर्व समुद्र तट, गोइंदारी (गोदावरी) तट तक तथा अलीपुर, पारंदुली, किरंदुली, राजमहेन्द्री, कोयापुर, कोयानार, छिन्दक कोया तक राज्य था। वर्तमान बस्तर की 'बारसूर' नामक समृद्ध नगर की नींव बाणासुर ने डाली, जो इन्द्रावती नदी के तट पर था। यहीं पर उसने ग्राम देवी कोयतर मां की बेटी माता माय (खेरमाय) की स्थापना की। बाणासुर द्वारा स्थापित देवी दांत तोना (दंतेवाड़िन) है। यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां वर्तमान में गोंड जाति निवास करती है तथा समूचा दंडकारण्य अब नक्सलवाद की चपेट में है। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है। दंडकारण्य क्षे‍त्र की चर्चा पुराणों में विस्तार से मिलती है। इस क्षेत्र की उत्पत्ति कथा महर्षि अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है। यहीं पर उनका महाराष्ट्र के नासिक के अलावा एक आश्रम था। -डॉ. रमानाथ त्रिपाठी ने अपने बहुचर्चित उपन्यास 'रामगाथा' में रामायणकालीन दंडकारण्य का विस्तृत उल्लेख किया है। पांचवा पड़ाव 'पंचानां वटानां समाहार इति पंचवटी'। 5. पंचवटी में राम : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम कई नदियों, तालाबों, पर्वतों और वनों को पार करने के पश्चात नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया। उस काल में पंचवटी जनस्थान या दंडक वन के अंतर्गत आता था। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 20 मील (लगभग 32 किमी) दूर है। वर्तमान में पंचवटी भारत के महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित विख्यात धार्मिक तीर्थस्थान है। अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए। नासिक में श्रीराम पंचवटी में रहे और गोदावरी के तट पर स्नान-ध्यान किया। नासिक में गोदावरी के तट पर पांच वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है। ये पांच वृक्ष थे- पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट। यहीं पर सीता माता की गुफा के पास पांच प्राचीन वृक्ष हैं जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इन वृक्षों को राम-सीमा और लक्ष्मण ने अपने हाथों से लगाया था। यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। यहां पर मारीच वध स्थल का स्मारक भी अस्तित्व में है। नासिक क्षेत्र स्मारकों से भरा पड़ा है, जैसे कि सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यम्बकेश्वर आदि। यहां श्रीराम का बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में विद्यमान है। मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है। छठा पड़ाव.. 6.सीताहरण का स्थान 'सर्वतीर्थ' : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी। पर्णशाला : पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से यह एक है। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था। इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है। सातवां पड़ाव 7.सीता की खोज : सर्वतीर्थ जहां जटायु का वध हुआ था, वह स्थान सीता की खोज का प्रथम स्थान था। उसके बाद श्रीराम-लक्ष्मण तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए। आठवां पड़ाव... 8.शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। पम्पा नदी भारत के केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे 'पम्बा' नाम से भी जाना जाता है। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। श्रावणकौर रजवाड़े की सबसे लंबी नदी है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है। नवम पड़ाव FILE 9.हनुमान से भेंट : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्रीराम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबली बाली अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। विरुपाक्ष मंदिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहां तुंगभद्रा नदी (पम्पा) धनुष के आकार में बहती है। तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास ही पहाड़ी के नीचे श्रीराम मंदिर है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था। दसवां पड़ाव 10.कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने अपनी सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। मलय पर्वत, चंदन वन, अनेक नदियों, झरनों तथा वन-वाटिकाओं को पार करके राम और उनकी सेना ने समुद्र की ओर प्रस्थान किया। श्रीराम ने पहले अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित किया। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है। लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया। सुग्रीव गुफा सुग्रीव अपने भाई बाली से डरकर जिस कंदरा में रहता था, उसे सुग्रीव गुफा के नाम से जाना जाता है। यह ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित थी। ऐसी मान्यता है कि दक्षिण भारत में प्राचीन विजयनगर साम्राज्य के विरुपाक्ष मंदिर से कुछ ही दूर पर स्थित एक पर्वत को ऋष्यमूक कहा जाता था और यही रामायण काल का ऋष्यमूक है। मंदिर के निकट सूर्य और सुग्रीव आदि की मूर्तियां स्थापित हैं। PR रामायण की एक कहानी के अनुसार वानरराज बाली ने दुंदुभि नामक राक्षस को मारकर उसका शरीर एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए दुंदुभि के रक्त की कुछ बूंदें मातंग ऋषि के आश्रम में गिर गईं। ऋषि ने अपने तपोबल से जान लिया कि यह करतूत किसकी है। क्रुद्ध ऋषि ने बाली को शाप दिया कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन क्षेत्र में आएगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब बाली ने उसे प्रताड़ित कर अपने राज्य से निष्कासित किया तो वह इसी पर्वत पर एक कंदरा में अपने मंत्रियों समेत रहने लगा। यहीं उसकी राम और लक्ष्मण से भेंट हुई और बाद में राम ने बाली का वध किया और सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य मिला। ग्यारहवां पड़ाव... 11.रामेश्‍वरम : रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है। रामसेतु रामसेतु जिसे अंग्रेजी में एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, भारत (तमिलनाडु) के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। भौगोलिक प्रमाणों से पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू-मार्ग से आपस में जोड़ता था। यह पुल करीब 18 मील (30 किलोमीटर) लंबा है। PR ऐसा माना जाता है कि 15वीं शताब्दी तक पैदल पार करने योग्य था। एक चक्रवात के कारण यह पुल अपने पूर्व स्वरूप में नहीं रहा। रामसेतु एक बार फिर तब सुर्खियों में आया था, जब नासा के उपग्रह द्वारा लिए गए चित्र मीडिया में सुर्खियां बने थे। समुद्र पर सेतु के निर्माण को राम दूसरी बड़ी रणनीतिक जीत कहा जा सकता है, क्योंकि समुद्र की तरफ से रावण को कोई खतरा नहीं था और उसे विश्वास था कि इस विराट समुद्र को पार कोई भी उसे चुनौती नहीं दे सकता। गोस्वामी तुलसीदासजी के मुताबिक जब दशानन रावण ने समुद्र पर पुल बनने की बात सुनी तो उसके दसों मुख एकसाथ बोल पड़े- बांध्यो जलनि‍धि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस, सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीश'। मानस के इस दोहे में आपको समुद्र के 10 पर्यायवाची भी मिल सकते हैं। मानस और नासा से इतर महाकवि जयशंकर प्रसाद की पंक्तियों में भी रामसेतु होने के संकेत मिलते हैं- सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह, दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह। बारहवां पड़ाव... 12.धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया। छेदुकराई तथा रामेश्वरम के इर्द-गिर्द इस घटना से संबंधित अनेक स्मृतिचिह्न अभी भी मौजूद हैं। नाविक रामेश्वरम में धनुषकोडी नामक स्थान से यात्रियों को रामसेतु के अवशेषों को दिखाने ले जाते हैं। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है। इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है। दरअसल, यहां एक पुल डूबा पड़ा है। 1860 में इसकी स्पष्ट पहचान हुई और इसे हटाने के कई प्रयास किए गए। अंग्रेज इसे एडम ब्रिज कहने लगे तो स्थानीय लोगों में भी यह नाम प्रचलित हो गया। अंग्रेजों ने कभी इस पुल को क्षतिग्रस्त नहीं किया लेकिन आजाद भारत में पहले रेल ट्रैक निर्माण के चक्कर में बाद में बंदरगाह बनाने के चलते इस पुल को क्षतिग्रस्त किया गया। 30 मील लंबा और सवा मील चौड़ा यह रामसेतु 5 से 30 फुट तक पानी में डूबा है। श्रीलंका सरकार इस डूबे हुए पुल (पम्बन से मन्नार) के ऊपर भू-मार्ग का निर्माण कराना चाहती है जबकि भारत सरकार नौवहन हेतु उसे तोड़ना चाहती है। इस कार्य को भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट का नाम दिया है। श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री श्रीजयसूर्या ने इस डूबे हुए रामसेतु पर भारत और श्रीलंका के बीच भू-मार्ग का निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा था। तेरहवां पड़ाव... 13.'नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है। रावण की लंका का रहस्य... रामायण काल को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं होने के कारण कुछ लोग जहां इसे नकारते हैं, वहीं कुछ इसे सत्य मानते हैं। हालांकि इसे आस्था का नाम दिया जाता है, लेकिन नासा द्वारा समुद्र में खोजा गया रामसेतु ऐसे लोगों की मान्यता को और पुष्ट करता है। आइए देखते हैं कुछ ऐसे ही साक्ष्य, जो रामायण काल के अस्तित्व को स्वीकारते हैं... PR रावण का महल कहा जाता है कि लंकापति रावण के महल, जिसमें अपनी पटरानी मंदोदरि के साथ निवास करता था, के अब भी अवशेष मौजूद हैं। यह वही महल है, जिसे पवनपुत्र हनुमान ने लंका के साथ जला दिया था। लंका दहन को रावण के विरुद्ध राम की पहली बड़ी रणनीतिक जीत माना जा सकता है क्योंकि महाबली हनुमान के इस कौशल से वहां के सभी निवासी भयभीत होकर कहने लगे कि जब सेवक इतना शक्तिशाली है तो स्वामी कितना ताकतवर होगा। ...और जिस राजा की प्रजा भयभीत हो जाए तो वह आधी लड़ाई तो यूं ही हार जाता है। गुसाईं जी पंक्तियां देखिए- 'चलत महाधुनि गर्जेसि भारी, गर्भ स्रवहि सुनि निसिचर नारी'। अर्थात लंका दहन के पश्चात जब हनुमान पुन: राम के पास जा रहे थे तो उनकी महागर्जना सुनकर राक्षस स्त्रियों का गर्भपात हो गया। श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए हैं। अशोक वाटिका अशोक वाटिका लंका में स्थित है, जहां रावण ने सीता को हरण करने के पश्चात बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है कि एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था, जिसे 'सीता एलिया' नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है। PR यहीं पर आंजनेय हनुमान ने निशानी के रूप में राम की अंगूठी सीता को सौंपी थी। ऐसा माना जाता है कि अशोक वाटिका में नाम अनुरूप अशोक के वृक्ष काफी मात्रा में थे। राम की विरह वेदना से दग्ध सीता अपनी इहलीला समाप्त कर लेना चाहती थीं। वे चाहती थीं कि अग्नि मिल जाए तो वे खुद को अग्नि को समर्पित कर दें। इतना हीं नहीं उन्होंने नूतन कोंपलों से युक्त अशोक के वृक्षों से भी अग्नि की मांग की थी। तुलसीदास जी ने लिखा भी है- 'नूतन किसलय अनल समाना, देहि अगिनि जन करहि निदाना'। अर्थात तेरे नए पत्ते अग्नि के समान हैं। अत: मुझे अग्नि प्रदान कर और मेरे दुख का शमन कर। श्रीवाल्मीकि ने रामायण की संरचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष 5075 ईपू के आसपास की होगी (1/4/1 -2)। श्रुति स्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिचलित रहने के बाद वर्ष 1000 ईपू के आसपास इसको लिखित रूप दिया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं। रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं- * कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दी ईपू) * बौ‍द्ध साहित्य में दशरथ जातक (तीसरी शताब्दी ईपू) * कौशाम्बी में खुदाई में मिलीं टेराकोटा (पक्की मिट्‍टी) की मूर्तियां (दूसरी शताब्दी ईपू) * नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) में खुदाई में मिले स्टोन पैनल (तीसरी शताब्दी) * नचार खेड़ा (हरियाणा) में मिले टेराकोटा पैनल (चौथी शताब्दी) * श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्य रचना 'जानकी हरण' (सातवीं शताब्दी)