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भेड़ाघाट

Monday, June 30, 2014

पीला सोना किसानों को कर देगा कंगाल

लक्ष्य
66 लाख हेक्टेयर...बीज आधे का भी नहीं
मप्र में 42 लाख हेक्टेयर खेत रह जाएंगे खाली
मानसून की देरी और खराब बीज भी बना परेशानी का सबब
भोपाल। देश में उत्पादित होने वाले पीले सोने(सोयाबीन )का लगभग 55 फीसदी मध्य प्रदेश में उपजता है। सरकार ने इस बार 66 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती का लक्ष्य रखा है लेकिन बीज की कमी,मानसून की बेरूखी और घटिया बीज के कारण करीब 42 लाख हेक्टेयर खेत खाली रहने का अनुमान है। हालांकि इस संकट की घड़ी में सरकार किसानों को धैर्य से काम करने की सलाह देने के साथ ही सोयाबीन के बीज उपलब्ध कराने के प्रयास का दावा कर रही है,लेकिन पिछली बार खरीफ और फिर रवि फसल बर्बाद होने के बाद बेहाल किसान इस बार सोयाबीन की बुआई नहीं होने से कंगाल होने की कगार पर पहुंच गए हैं। दरअसल,मध्य प्रदेश में हर साल 25 लाख क्विंटल सोयाबीन बीज का उत्पादन होता है जिसमें से करीब 15 लाख टन बीज का इस्तेमाल राज्य में ही होता है। लेकिन पिछले साल भारी बारिश की वजह से कुल उत्पादन का करीब 80 फीसदी बीज बर्बांद हो चुका है। और इसकी कुल मात्रा घटकर 13 लाख क्विंटल तक रह गई। इसमें से भी लगभग आधा बीज खराब हो गया है। राज्य सरकार ने इसके लिए निजी बीज आपूर्तिकर्ताओं से बैठक करने और अवैध जमाखोरी या फिर नकली बीजों की बिक्री को रोकने जैसे कुछ कदम भी उठाए लेकिन इससे मांग पूरा करने में कुछ खास मदद नहीं मिली। अब आलम यह है कि सोयाबीन के बीज का टोटा इस कदर बढ़ गया है प्रदेश में 70 फीसदी रकबा खाली रह सकता है। प्रदेश में सोयाबीन के बीज की किल्लत पहली बार खड़ी हुई है। इसके पीछे मूल कारण बीते दो सालों में सोयाबीन की अंकुरण क्षमता का प्रभावित होना है। इसे देखते हुए पहले ही यह आशंका खड़ी हो गई थी कि मौजूदा खरीफ सीजन में सोयाबीन का बीज उपलब्ध होना आसान नहीं होगा। वही स्थिति बनी भी। हालात यह हैं कि कई जिलों में मांग से आधा बीज भी सोसायटियों में नहीं है। कई जिलों के कलेक्टर ने अन्य जिलों को बीज उपलब्ध करवाने के लिए पत्र लिखे, जिले से बाहर बीज सप्लाई पर प्रतिबंध भी लगाया है, लेकिन इन प्रयासों से भी भरपाई होना मुश्किल नजर आती है। देश में सोयाबीन की आपूर्ति करने वाला अकेला राज्य मध्य प्रदेश चालू खरीफ सीजन में बीज की मांग को पूरी करने के तरीके तलाश रहा है। अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि बीज की कमी खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है और फिलहाल इस संकट से निपटने का एकमात्र तरीका यही है कि किसानों को अन्य खरीफ फसलों का रकबा बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। अन्य विकल्पों का इस्तेमाल करने में काफी समय लगेगा और उनसे मदद भी नहीं मिलेगी क्योंकि बीज शृंखला खतरनाक स्तर तक अव्यवस्थित हो चुकी है। इन हालातों में इस बार प्रदेश में तय लक्ष्य के अनुरूप सोयाबीन की बोवनी समय से होना मुश्किल नजर आने लगा है। शासन का दावा है कि बोवनी के समय तक स्थिति सामान्य हो जाएगी, लेकिन जब बीज ही उपलब्ध नहीं है तो यह दावा कैसे पूरा होगा, यह समझ से परे है।
क्यों आई कमी
खरीफ की बोवनी से पहले बीज का जो संकट दिखाई दे रहा है उसका एक बड़ा कारण अतिवृष्टि को माना जा रहा है। खरीफ सीजन में पिछले दो सालों से अतिवृष्टि के कारण प्रदेश में सोयाबीन की फसल को तगड़ा नुकसान पहुंचा है। लगातार दो साल फसलें बर्बाद होने के कारण बीज तैयार नहीं हो सका जिससे एकाएक बीज का संकट गहरा गया। स्थिति यह रही कि किसानों के पास भी बीज उपलब्ध नहीं है। प्रदेश के अधिकांश किसान बीज के लिए सहकारी सोयायटियों पर ही निर्भर है। वहीं सोसायटियों में भी बीज भंडारण को लेकर स्थिति फिलहाल डावांडोल है। प्रदेश में पिछली बार खरीफ फसलों की बोवनी 116 लाख 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में की गई थी। जिसमें से 65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती की गई थी। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पिछले सीजनों से हो रही अतिवृष्टि के चलते सोयाबीन बीज को 30 से 35 फीसदी नुकसान पहुंचा है। अंकुरण क्षमता कम हो जाने से 50 फीसदी तक बीज किसी काम का नहीं रह गया। न्यूक्लियर सीड में भी 80 फीसदी तक नुकसान हुआ। ये बीज देखने में तो अच्छा लगता है, लेकिन इससे अंकुरण बेहद कम होता है। वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश सोयाबीन बीज की आपूर्ति करने वाला देख में सबसे बड़ा राज्य है। तकरीबन 80 फीसद तक बीज की सप्लाई महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश सहित अन्य राज्यों में होता है। चूंकि बीज कंट्रोल आर्डर सेंट्रल गवर्नमेंट का है, लिहाजा राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के बाहर निजी व्यापारियों को बीज ले जाने से रोका नहीं जा सकता है।
किसानों का स्टाक खाली
किसान अपनी फसल में से अगले सीजन के लिए बीज बचा कर रखते हैं, लेकिन भारी बारिश के कारण पिछली खरीफ की फसल चौपट हो गई थी। इसलिए किसानों के पास इस बार बोने के लिए बीज नहीं बचा। जानकारों के मुताबिक कुल जरूरत का लगभग 60 प्रतिशत बीज फसल से ही आता है। लेकिन इस बार किसानों के पास यह नहीं है। लेकिन दो सीजन से फसल बर्बाद होने के कारण किसान के पास बीज के लिए भी सोयाबीन नहीं बच पाया है। इसलिए किसानों के लिए यह खरीफ सत्र भी संकट भरा दिख रहा है। कृषि विभाग जितने बीज का इंतजाम कर रहा है वह जरूरत का बमुश्किल 15 प्रतिशत हो पाएगा। बाजार में जो बीज है इतना महंगा है कि खरीद कर बोना हर किसान के बस की बात नहीं है। सिहोर के किसान भंवरलाल पटेल कहते हैं कि सोयाबीन का बीज बहुत कमजोर होता है। थोड़ी भी क्वालिटी कमजोर होने की स्थिति में इसका जर्मिनेशन (अंकुरण) बहुत कम हो जाता है। बाजार में डिमांड ज्यादा और बीज कम है तो आशंका है कि विक्रेता कमजोर बीज भी खपा देंगे। कुछ विक्रेता स्थानीय स्तर पर मंडियों से माल खरीदकर, उसकी ग्रेडिंग कर बीज के दाम पर बेचते हैं। इसलिए इस बार बाजार की क्वालिटी का ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता। वहीं सीहोर जिले के कृषि उपसंचालक रामेश्वर पटेल का कहना है कि सोसायटियों में सोयाबीन की 335 बैरायटी तो पर्याप्त उपलब्ध, लेकिन किसानों की मांग जेए- 9560 की है, जो कम मात्रा में उपलब्ध है। इसके मिलने की संभावना भी कम ही है। इसलिए जो बीज किसानों के पास उपलब्ध है उसे ग्रडिंग करके उपयोग करें।
कृषि विभाग का इंतजाम
इस मामले में मप्र कृषि विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.राजेश राजौरा कहते हैं कि प्रदेश में 15 लाख क्विंटल सोयाबीन बीज की आवश्यकता है। जबकि उपलब्धता सभी स्रोतों से कुल 12 लाख 94 हजार 363 क्विंटल है। इसमें से 10 लाख 62 हजार 713 क्विंटल निर्धारित मानकों के अनुरूप है तथा भारत सरकार की अनुमति से 60 से 69 प्रतिशत अंकुरण क्षमता वाले बीज को भी उपयोग की अनुमति दी जाने के फलस्वरूप 2 लाख 31 हजार 649 क्विंटल बीज की अतिरिक्त उपलब्धता बढ़ जाने से किसानों को और अधिक मात्रा में सोयाबीन का बीज उपलब्ध करवाया जा सकेगा। वह कहते हैं की सरकार ने किसानों की समस्याओं के समाधान और बीज की कमी को पूरा करने के लिए 6-7 कदम उठाए हैं। साथ ही किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे विशेषज्ञों द्वारा तय प्रति हेक्टेयर 55 किलो बीज की बोवनी करें। कृषि विशेषज्ञ विजय गोंटिया कहते हैं कि सोयाबीन कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली कैश क्रॉप है, इसलिए किसानों के पास सोयाबीन का विकल्प नहीं है। इसमें पानी भी कम लगता है। जिस जगह पर सोयाबीन बोई जाती है वहां किसान धान की पैदावार भी नहीं ले सकते है। अब विकल्प उड़द, मूंग, राहर बचते हैं, लेकिन इन तीनों दलहनों में लागत ज्यादा आती है। इनके खरपतवार नाशक भी बाजार में नहीं है। वह कहते हैं कि सोयाबीन के बीज के संकट की यह स्थिति टाली जा सकती था, बशर्ते कृषि विभाग समय पर जाग जाता। कृषि विशेषज्ञ और मीडिया बताता रहा कि प्रदेश में सोयाबीन का संकट है, लेकिन कृषि विभाग ने ध्यान नहीं दिया। समय रहते अन्य राज्यों से या मंडियों से चुनिंदा बीज की खरीदी कर उसकी जांच तो की जा सकती थी। इस वर्ष किसानों के पास बीज नहीं है। बीज निगम का भंडार भी खाली है। कृषि विभाग ने अभी बीज बुलवाया नहीं। बाजार में बीज इतना महंगा है कि हर किसान की हिम्मत खरीदने की नहीं है। ऐसे में इस बार सोयाबीन का रकवा काफी होने की संभावना है।
इस बार 40 फीसदी ज्यादा दाम
बीज की किल्लत को देखते हुए कई निजी कंपनियों के बीज अचानक बाजार में नजर आने लगे हैं। 7 से 8 हजार रुपए क्विंटल की कीमत पर यह कंपनियां बीज उपलब्ध करवा रही हैं, लेकिन बीज सर्टिफाइड है या नहीं, उसकी उत्पादकता की क्या गारंटी है, इसका बीज के पैकेट पर कोई उल्लेख नहीं है। फिर भी ये पिछले साल से 40 प्रतिशत ज्यादा हैं। फसल का समय करीब आने तक इसके दाम बढ़ेंगे ही। उज्जैन के खाद,बीज विक्रेता वैभव शर्मा कहते हैं कि पिछले वर्ष की तुलना में बीज के दाम कम से कम 40 प्रतिशत ज्यादा हैं। बीते कृषि सत्र में दोनों फसलों को नुकसान होने के कारण किसानों की जेब खाली है। इस लिए डिमांड फिलहाल नहीं है। वहीं दाहोद के किसान ओपी तिवारी कहते हैं कि पिछले वर्ष 7 क्विंटल सोयाबीन बोया था। एक भी दाना लौट कर नहीं आया। रबी फसल में भी नुकसान हुआ है। बाजार में बीज के दाम सुनकर खरीदने की हिम्मत नहीं है। फसल की लागत और खर्चे भी बढ़े हैं। व्यवस्था न होने के कारण खरीफ में खेत खाली रखने का ही विचार है। कर्ज लेकर खेती करना अब ठीक नहीं है। पिछले साल सोयाबीन का बीज भी वापस नहीं लौटा।
दाम बढ़ाकर अनुदान में कटौती
सोयाबीन बीज को लेकर संकट का दौर तो बना हुआ है लेकिन इन सबके बीच प्रमाणित सोयाबीन बीज के दाम को लेकर एक नई समस्या खड़ी हो गई है। राज्य सरकार ने प्रमाणित बीजों की विक्रय दरें निर्घारित कर दी है। जिसके तहत प्रमाणित सोयाबीन बीज की दर 6600 रूपए प्रति क्विंटल निर्घारित की गई है जबकि पिछले साल सोयाबीन बीज के रेट 4960 रूपए प्रति क्विंटल थे। इस हिसाब से सोयाबीन बीज के दाम में 16 फीसदी की बढ़ोत्तरी की गई है। सोयाबीन के सरकारी रेट बढऩे से यह तो तय हो गया कि प्राइवेट में बीज इससे महंगा ही बिकेगा। ऐसे में किसानों के लिए महंगा बीज खरीदना किसी आफत से कम नहीं होगा। सोयाबीन बीज महंगा होने पर सरकार को अनुदान की राशि बढ़ाना चाहिए थी, ताकि किसानों को बीज खरीदने पर राहत मिल सके, लेकिन ऐसा न कर अनुदान की राशि में कटौती कर दी गई। बताया गया कि पिछले साल सोयाबीन बीज के रेट कम होने पर 600 रूपए प्रति क्विंटल तक का अनुदान दिया गया था, लेकिन इस बार अनुदान की राशि 100 रूपए घटाकर 500 रूपए कर दी गई है। जिससे किसानों के लिए मुश्किलें बढ़ गई है। भारतीय किसान संघ की बैतूल जिला इकाई के अध्यक्ष पुरूषोत्तम सरले कहते हैं कि किसानों के साथ यह अन्याय है और इसको लेकर हमारे द्वारा मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा जाएगा। जिसमें मांग की जाएगी कि सोयाबीन के रेट या तो यथावत रखे जाए या फिर अनुदान की राशि को बढ़ाया जाए। ताकि किसानों को थोड़ी राहत मिल सके। यदि यही स्थिति रही तो किसान सोयाबीन की बोवनी तक नहीं कर पाएंगे।
समितियां भी उधार नहीं दे रहीं
सहकारी समितियों में कुछ मात्रा में बीज उपलब्ध है लेकिन वह भी किसानों को नगद में ही मिल रहा है। इस स्थिति में वे किसान ही बीज ले पा रहे हैं, जिनके पास पूंजी उपलब्ध है। जो किसान हमेशा की तरह उधार बीज लेना चाहते हैं, उनके सामने समितियां पहले पिछला उधार चुकाने की शर्त रख रही हैं। इसलिए खरीफ सीजन में बोवनी के लिए महंगा बीज खरीदना किसान की मजबूरी होगी। सोसायटी से सरकारी रेट पर बीज केवल खातेदार किसानों को ही दिया जाएगा। वहीं सहकारी बैंक के नियमों के मुताबिक जो किसान कर्जदार है उन्हें बीज मिलना भी मुश्किल होगा। ऐसे में सरकारी दर से मिलने वाला बीज बहुत कम किसानों को ही उपलब्ध हो सकेगा।
सरकारी कोटे में खाद का भी टोटा
प्रदेश में खरीफ की फसल बोने के लिए केवल बीज का ही नहीं खाद का भी टोटा है। कृषि विभाग की मांग के अनुसार विपणन विभाग के पास खाद का इंतजाम भी नहीं है। कई जिलों में तो स्थिति यह है कि किसानों को जितने खाद की जरूरत है, उससे आधा उर्वरक भी गोदामों में नहीं है। बोवनी के समय खाद नहीं मिलने से कई किसानों को परेशानी का सामना परेशान होना पड़ेगा। इस दौरान किसानों को खाद की कालाबाजारी का सामना भी करना पडेगा। खाद की कालाबाजारी से किसान ठगे जाएंगे। बड़वानी उपसंचालक कृषि सुनील दुबे का कहना है कि सोयाबीन बीज की किल्लत पूरे प्रदेश में बनी हुई हैं। किसानों को सोयाबीन की जगह कपास बोने की सलाह दी जा रही हैं।
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद हो रही छापामार कार्रवाई
खरीफ फसल में खाद और सोयाबीन बीज की कमी ने प्रदेश में इसके गोरखधंधे को बढ़ा दिया है। गांव-गांव में बिक रहे महंगे दाम के बीज के नहीं उगने की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमानक बीज,खाद बेचने वालों तथा कालाबारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। आदेश मिलते ही कृषि विभाग बीज, खाद एवं कीटनाशक की जांच में लग गया। अब कृषि विभाग के द्वारा इसके सैंपल लिए जा रहे है। विभाग के द्वारा प्रदेश भर में सोयाबीन से लेकर मक्का और धान के बीजों के करीब 432 सैंपल एकत्रित किए गए है। इन सैंपलों को जांच के लिए भेजा जा रहा है। जांच रिर्पोट आने के बाद कई कंपनियों पर गाज भी गिर सकती है। गौरतलब है कि करोड़ों के कारोबार होने से बीज कंपनियों के द्वारा इस बार बीज की कमी का फायदा उठाया जा रहा है। इसके लिए ब्रांड से लेकर स्थानीय स्तर तक का बीज बड़े महंगे दाम में बेचा जा रहा है। ऐसे में छिंदवाड़ा के चौरई और अमरवाड़ा विकासखंड के कई गांवों में तो बीजों के नहीं उगने तक की शिकायत भी मिली थी। जिसके बाद विभाग ने बीजों के सैंपल लेने शुरू किए हैं।
बड़वानी के गोदामों में छापा
इंदौर संभाग के बड़वानी जिले में किसानों को सोयाबीन के घटिया बीज बेचने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है। बड़वानी कलेक्टर द्वारा गठित विशेष दल ने नीलेश एग्रो सीड्स कंपनी के सेंधवा स्थित गोदाम में छापा मार कर 146 क्विंटल सोयाबीन के बीज जब्त किए हैं। निर्माता कंपनी का लाइसेंस भी निरस्त कर एफआईआर दर्ज कराई जा रही है। होशंगाबाद, रतलाम और आगर जिले में बीज निर्माता कंपनियों के गोदामों की भी जांच शुरू हो गई है। सोयाबीन के बीज के संकट से जूझ रहे किसानों को निजी कंपनियों ने 2 लाख क्विंटल घटिया बीज बेच दिया है। 19 कंपनियों के गोदामों से बीज के नमूनों की जांच में पाया कि बीज की गुणवता तय मानकों से बहुत कम है। विभिन्न कंपनियों का जो सोयाबीन बीज सीज किया, उसमें से कुछ की गुणवत्ता इतनी घटिया है कि किसान ने 100 बीज बोए तो अंकुरित होंगे सिर्फ 29। गौर करने की बात यह है कि राज्य सरकार की ग्वालियर की बीज प्रयोगशाला ने इन्हीं बीजों को गुणवतापूर्ण होने का प्रमाण दे दिया था। कृषि विभाग की छापामार कार्रवाई में इंदौर की एएसएन एग्रो जनेस्टेट प्रालि, मोहरा सीड्स सामेर रोड, सावंरिया सीड्स बायोटेक, विगोर सीड्स बायोटेक, ईगल सीड्स बायोटेक, कृतिका सीड्स देवास नाका, महाधन सीड्स प्रालि, नेशनल सीड़स कारपोरेशन, ग्रीन गोल्ड एग्रीटेक, माणिक्या एग्रीटेक, रासायन एग्रो प्रालि और मयूर सीड्स एंड एग्रोटेक, होशंगाबाद की कृषक भारती कॉपरेटिव लिमिटेड,आगर की देवश्री सड्स कानड, जयकिसान कृषि सेवा केंद्र नलगोड़ा एवं प्रक्रिया प्रभारी ग्रीनटेग सीड्स नलखेड़ा,रतलाम की गुरुकृपा सीड्स प्रोपराइटर विक्रमगढ़ और आलोट की गुरुकृपा सीड्स कंपनी के नमूने राज्य शासन की ग्वालियर स्थित लैब में फेल हो चुके हैं। शासन ने कंपनी के खिलाफ एफआईआर के आदेश दिए हैं।
बारिश की देरी से सोयाबीन बुआई पिछड़ी
देश में सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक मध्य प्रदेश में मॉनसूनी वर्षा की देरी से इसकी बुआई पिछड़ रही है और किसानों चिंतित होने लगे हैं। मौसम विभाग के मुताबिक जून में 100 साल में सबसे कम बारिश इस बार हुई है। अभी तक 37 फीसद कम बारिश हुई है। कम मानसून की आशंका ने सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है। देश में सूखे जैसे हालात बन रहे हैं। मौसम केंद्र भोपाल के निदेशक डॉ. डीपी दुबे ने अनुसार मानसून ने पूर्वी मध्यप्रदेश में 20 जून को प्रवेश किया था लेकिन वहां से आगे नहीं बढ़ रहा है। इससे सूबे के दूसरे हिस्सों में अब तक बारिश शुरू नहीं हुई है। उन्होंने बताया, फिलहाल कोई ऐसा मौसमी तंत्र नहीं दिखाई दे रहा है जिससे लगे कि मानसून पूर्वी मध्यप्रदेश से आगे बढ़कर प्रदेश के अन्य हिस्सों में छाने जा रहा है। ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश के पश्चिमी इलाके सोयाबीन की खेती के प्रमुख क्षेत्रों में गिने जाते हैं। इन हिस्सों में मानसून आमतौर पर 15 जून के आस-पास पहुंचता है और इसके बाद सोयाबीन की बुआई शुरू हो जाती है। लेकिन इस बार मानूसन की आमद में देरी इन इलाकों में किसानों की चिंताएं बढ़ा रही है। इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर सांवेर क्षेत्र के सोयाबीन उत्पादक किसान रामसिंह कहते हैं कि हम सोयाबीन की बुआई के लिए पखवाड़े भर से बारिश का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन फिलहाल बारिश के कोई आसार नजर नहीं आते। भगवान ही जानता है कि इस बार हमारी फसल का क्या होगा।
मक्का और धान की खेती की सलाह
किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा ने बताया, 'हमें अकेले मध्य प्रदेश के लिए 15 लाख क्विंटल बीज की जरूरत होगी, इसके अलावा महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य भी हैं जिनकी मांग 10 लाख क्विंटल से कम नहीं है। भारी बारिश ने इस वर्ष बीज शृंखला को बरबाद कर दिया और करीब 80 फीसदी बीज नष्टï हो गए। इस वजह से बाजार में बीज की कमी हो गई। हमारे पास कुछ ही विकल्प शेष हैं या तो हम किसानों को मक्के और धान जैसी अन्य खरीफ फसलों का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करें या फिर बीज की बुआई की मात्रा को कम करें जो जरूरत से अधिक है। हमारे पास निर्यात करने का विकल्प नहीं है।Ó सोयाबीन की फसल में बीज बुआई दर 75 किग्रा प्रति हेक्टेयर से कम नहीं होती। विभाग की योजना है कि अगर किसान बीज बुआई की दर को 50 किग्रा प्रति हेक्टेयर तक कम कर दें तो देश की जरूरत के लिए भरपूर बीज रहेगा। इसके बदले सरकार के पास किसानों को अन्य खरीफ फसलों का उत्पादन करने के लिए प्रेरित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। राजौरा ने कहा, 'हम इस साल मध्य प्रदेश में अरंडी के बीज और ग्वार फसलों को भी पेश करेंगे। किसान न सिर्फ और कीमत पाएंगे बल्कि फसल का ढर्रा भी बदलेंगे।Ó
अब गर्मी में होगी सोयाबीन की खेती
डॉ. राजौरा कहते हैं कि सोयाबीन बीज की कमी को पूरा करने के लिए रबी और ग्रीष्मकालीन फसल ली जाएगी। किसानों को प्रोत्साहन राशि देने का भी प्रस्ताव है। वह कहते हैं कि सोयाबीन बीज के संकट से निपटने सरकार गर्मी में इसकी खेती करवाएगी। रबी और ग्रीष्मकाल में सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी। तय किया गया है कि केन्द्र सरकार से कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर को मिले न्यूक्लियस बीज से ब्रीडर बीज इसी खरीफ सीजन में तैयार किया जाएगा। रबी में ब्रीडर वन से ब्रीडर टू बीज बनाया जाएगा। प्रदेश में करीब 65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की खेती होती है। दो साल से सोयाबीन फसल के अतिवर्षा से प्रभावित होने से बीज का संकट है। कृषि विभाग के अफसरों की मानें तो न्यूक्लियस बीज से ब्रीडर बनाने वाले बीज में 80 से 85 प्रतिशत का नुकसान पिछले साल हुआ। ब्रीडर से फाउंडेशन बीज में 75 से 80 फीसदी का हानि हुई। यही वजह है कि प्रमाणित बीज की कमी हो गई है। इस बार मौसम को लेकर कृषि विभाग अधिक आशांवित नहीं है। यही वजह है कि न्यूक्लियस से ब्रीडर बीज बनाने का काम इसी खरीफ सीजन में किया जाएगा। इसके चलते रबी मौसम में इस बार सोयाबीन के ब्रीडर वन से टू नंबर बीज के लिए खेती होगी। इसके लिए पंजीकृत किसान को बीज मुहैया कराया जाएगा और प्रोत्साहन स्वरूप प्रति हेक्टेयर तीन या चार हजार रुपए भी दिए जाएंगे।ब्रीडर टू बीज से फाउंडेशन बीज बनाने का काम फरवरी से मई के बीच किया जाएगा।

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