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भेड़ाघाट

Friday, March 21, 2014

बड़े बाबू को चढ़ा नेता बनने का शौक

बात सिर्फ आला अफसरों के सियासत की दुनिया में आने तक सीमित नहीं है। ये अफसर कॉरपोरेट घरानों से भी जुड़ रहे हैं चुनावी मौसम में सरकारी आला अफसरों ने नौकरी को अलविदा कहकर सियासी संसार का रुख करना शुरू कर दिया है। यह पहली बार नहीं हो रहा है। नया कुछ है तो सिर्फ यह कि अभी सेवा के दौरान ही अफसर किसी नेता या दल के ‘आदमी’ के रूप में अपनी पहचान बनाने लगे हैं। के दामोदरन, के सुब्रमण्यम और जेएन दीक्षित जैसे तटस्थ और ईमानदार सरकारी अफसरों की तादाद हमारे यहां लगातार घट रही है। अभी तो सिविल सेवा के माध्यम से आए तमाम आला अफसर नौकरी पर रहते हुए ही किसी बड़े नेता के खासमखास बन जाते हैं ताकि रिटायर होने के बाद भी उन्हें कोई बढ़िया सी पोस्टिंग मिल जाए। दूसरी प्रजाति उन अफसरों की है,जो अपने सेवाकाल में ही किसी दल विशेष का आदमी बनकर बाकायदा किसी चुनाव क्षेत्र में अपना चुनावी ढांचा भी बनाना शुरू कर देते हैं।
‘पार्टी एनिमल’
बात वर्तमान की हो तो मुंबई के पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह बीजेपी से जुड़कर बागपत-बड़ौत लोकसभा क्षेत्र से पार्टी के प्रत्याशी बन गए हैं। पूर्व रक्षा सचिव आरके सिंह (प्रत्याशी, आरा लोकसभा क्षेत्र) और पूर्व आईएफएस अफसर हरदीप पुरी ने भी बीजेपी से जुड़ने का फैसला किया। मिडिल क्लास, गालिब और दिल्ली पर लिखते रहे पवन वर्मा पिछले कुछ वर्षों से जेडी-यू के साथ हैं। पश्चिम बंगाल के आईपीएस अफसर नजरुल इस्लाम सीपीएम में जा रहे हैं। माना जाता है कि सियासत से जुड़ने वाले अफसर उन्हीं दलों में अपने को बेहतर महसूस करते हैं, जिनके नेताओं से इनके संबंध अंतरंग और मधुर होते हैं। हाल के दौर में जिस तरह चोटी के सरकारी बाबुओं के नाम भ्रष्टाचार में आकंठ डूबने से लेकर अपने राजनीतिक आकाओं के लिए किसी भी स्तर तक जाकर काम करने से जुड़ रहे हैं, उसके चलते भयावह हालात बन गए हैं। लोकतंत्र में जो कानून संसद बनाती है, उन्हें जमीन पर लागू करने का दायित्व इन बाबुओं का ही होता है। पर 2जी घोटाले में तिहाड़ जेल की हवा खा चुके पूर्व टेलीकॉम सेक्रेटरी सिद्धार्थ बेहुरिया से लेकर मध्य प्रदेश के आईएएस द्वय जोशी दंपती तक ने जिस तरह से अपने पद का दुरुपयोग करके धन अर्जित किया, उससे साफ है कि हमारे नौकरशाह बेलगाम होते जा रहे हैं। यहां बात सिर्फ आला अफसरों के सियासत की दुनिया में आने तक सीमित नहीं है। ये अफसर कॉरपोरेट घरानों से भी जुड़ रहे हैं। भारत सरकार के वित्त सचिव पद पर आसीन आईएएस अफसर अशोक झा ने रिटायर होने के चंद माह बाद ही ह्युंदै के सीईओ का पद संभाल लिया। भारत की एक प्रमुख रीयल एस्टेट कंपनी डीएलएफ ने कुछ साल पहले एक वरिष्ठ आईएएस अफसर राजीव तलवार को अपने यहां बड़े पद पर रखा। जाहिर है, हमें इस बात से रत्ती भर भी लेना-देना नहीं है कि किसी को कितनी पगार मिलती है। मगर, ऐसे तमाम अफसरों के बारे में यह जरूर पता लगाया जाना चाहिए कि सेवा में रहते हुए उन्होंने किसी खास नेता, राजनीतिक जमात या कॉरपोरेट घराने के लिए ऐसा कौन सा काम किया, जिसके बदले में उन्हें इनसे ये रेवड़ियां प्राप्त हुईं। सीमा सुरक्षा बल के पूर्व डीजीपी प्रकाश चंद्रा ने अपने एक हालिया इंटरव्यू में कहा कि जब तक ऐसा कोई कठोर नियम नहीं बनाया जाता कि भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अफसर अपनी सेवा से मुक्त होने के कम से कम तीन-चार साल तक किसी पार्टी या कॉरपोरेट घराने से नहीं जुड़ेंगे, तब तक हालात ऐसे ही रहेंगे। वे मानते हैं कि अब अफसर पैसे कमाने को लेकर इतने व्याकुल रहते हैं कि अपने मूल काम की अनदेखी करते हुए किसी की भी सेवा करने को तैयार हो जाते हैं। आगे बढ़ने से पहले यशवंत सिन्हा और अजीत जोगी जैसे सरकारी सेवा से सियासत में आए लोगों की बात करना जरूरी है। इन और इन जैसे अफसरों ने उस वक्त अपनी सेवा से रिटायर होने का फैसला लिया, जब इनकी नौकरी 10-15 साल बची हुई थी। देश के किसी भी अन्य नागरिक की तरह इन्हें भी अपना पेशा चुनने या बदलने का अधिकार है। इन्होंने रिटायर होने से कुछ साल या महीने पहले नौकरी नहीं छोड़ी, लिहाजा इनका किसी पार्टी में शामिल होना गलत नहीं माना जा सकता। इनकी तुलना भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादन कंपनी एनटीपीसी के सीएमडी रहे आरएस शर्मा से नहीं की जा सकती जो रिटायर होने के कुछ ही समय बाद निजी क्षेत्र की एक बिजली कंपनी में शीर्ष पद पर चले गए।
कूलिंग पीरियड जरूरी
अपने फायदे के लिए सियासत का रुख करने वाले अफसरों पर लगाम लगाने के लिहाज से एक सुझाव यह भी आ रहा है कि रिटायर होने के बाद इन्हें खुद ही तीन साल तक किसी पार्टी या कॉरपोरेट घराने से नहीं जुड़ना चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि इस सुझाव को मानेगा कौन/ जाहिर है, स्वेच्छा पर छोड़ने से बात नहीं बनने वाली। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रशासनिक सेवाओं की गरिमा और विश्वसनीयता बचाए रखने के लिए कोई सरकार इस सवाल पर दलीय भावना से ऊपर उठकर विचार करेगी और इस दिशा में ठोस कानूनी उपाय करेगी। अफसरी छोड़ नेतागीरी के लिए निकल पड़ने की प्रवृत्ति लोकतंत्र की जड़ें हिला सकती है

छत्तीसगढ़ को मिले आधा दर्जन नए आईएएस

रायपुर। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों की कमी से जूझ रहे छत्तीसगढ़ को शुक्रवार को आधा दर्जन नए आईएएस अफसर मिले हैं। इनमें डॉ. राजेन्द्र कुमार कटारा (राजस्थान), इंद्रजीत सिंह चंद्रावल व जगदीश सोनकर (उत्तरप्रदेश), गौरवकुमार सिंह व नम्रता गांधी (महाराष्ट्र) और विनीत नंदनवार (छत्तीसगढ़) शामिल हैं। 2012 बैच के इन अधिकारियों को हाल ही में काडर आवंटित हुआ है। ट्रेनिंग के बाद ये अफसर छत्तीसगढ़ आकर जॉइनिंग देंगे। छत्तीसगढ़ के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के 178 पद स्वीकृत हैं। वर्तमान में यहां 129 आईएएस अफसर कार्यरत हैं। दो अफसर दूसरे काडर के हैं, जो अंतरराज्यीय प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़ कॉडर के आधा दर्जन से अधिक अफसर प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ से बाहर पदस्थ हैं। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ के राज्य प्रशासनिक सेवा के आधा दर्जन अधिकारियों को भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नति दी जानी है। इसकी प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। केंद्र सरकार द्वारा जल्द ही पदोन्नति का आदेश जारी होने की संभावना है। इसी तरह आईएएस एसोसिएशन ने छत्तीसगढ़ काडर रिव्यू किए जाने की मांग की है। राज्य सरकार की ओर से आईएएस काडर रिव्यू का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भी भेजा जा चुका है। इस पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।

छत्तीसगढ़ में जाति लोकप्रियता पर दांव

रायपुर। छत्तीसगढ़ की ग्यारह लोकसभा सीटों के लिए कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी तय होने के बाद अब यह तस्वीर लगभग साफ हो गई है कि दोनों दलों ने किन समीकरणों के आधार पर टिकट का बंटवारा किया है। प्रदेश की छह अनारक्षित सीटों पर दोनों दलों ने जातिगत समीकरणों का ध्यान रखने की कोशिश तो की ही है, लेकिन प्रत्याशी की लोकप्रियता के आधार पर जातिगत समीकरणों से परे भी टिकट बांटे गए हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि यदि जाति के आधार पर वोट पड़े तो कुछ सीटों पर उलटफेर हो सकता है।
रायपुर सीट पर पिछले छह चुनाव से भाजपा के रमेश बैस का कब्जा है। श्री बैस कुर्मी समुदाय से संबंध रखते हैं। उनके खिलाफ कांग्रेस ने पिछले चुनावों में उच्च सवर्ण से लेकर पिछड़े वर्ग तक के कई प्रत्याशियों को आजमाया, लेकिन श्री बैस की किलेबंदी को तोड़ने में कांग्रेस का कोई भी गणित कारगर नहीं हो सका। 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने कुर्मी समाज के भूपेश बघेल को मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें भी करारी हार का सामना करना पड़ा।
इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस के पास जातीय समीकरण के अलावा कोई और अस्त्र नहीं था। लिहाजा, पार्टी ने एक और कुर्मी प्रत्याशी छाया वर्मा को उतारा है। पार्टी के जानकारों का कहना है कि छाया वर्मा के कुर्मी होने के साथ-साथ महिला होने का कांग्रेस को लाभ मिल सकता है। रायपुर संसदीय क्षेत्र में कुर्मी वोटर करीब 12 प्रतिशत, साहू वोटर करीब दस प्रतिशत व सतनामी वोटर सात से आठ प्रतिशत है।
दुर्ग सीट पर भाजपा से सरोज पांडेय इस बार भी मैदान में हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप चौबे को हराया था। खास बात यह है कि दुर्ग लोकसभा क्षेत्र पिछड़ा बाहुल है। यहां सबसे अधिक संख्या कुर्मी, साहू और लोधी मतदाताओं की है। साहू वोटर लगभग 30 प्रतिशत, सतनामी वोटर लगभग 14 प्रतिशत, कुर्मी 20 प्रतिशत व लोधी वोटर तीन से चार प्रतिशत है।
भाजपा ने यहां से सरोज पांडेय को उनकी लोकप्रियता के आधार प्रत्याशी बनाया है। वे दुर्ग शहर की महापौर और वैशालीनगर से विधायक रह चुकी हैं। इस सीट से सरोज पांडेय से पहले भाजपा के टिकट पर ताराचंद साहू चार बार लोकसभा का चुनाव जीते थे। कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में दुर्ग के किले को भेदने के लिए जातीय गणित का सहारा लिया है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2013 में हारे ताम्रध्वज साहू को प्रत्याशी बनाया है। पार्टी के भीतर इस बात की संभावना देखी जा रही है कि यदि साहू मतदाता ताम्रध्वज के पक्ष में लामबंद हो गए तो नतीजा अनुकूल हो सकता है।
राजनांदगांव में टूटा ओबीसी गणित
राजनांदगांव में भाजपा ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट से 2009 के चुनाव में भाजपा के मधुसूदन यादव ने करीब सवा लाख वोटों से जीत दर्ज की थी। श्री यादव ने कांग्रेस उम्मीदवार राजपरिवार से जुड़े और सामान्य वर्ग के देवव्रत सिंह को हराया था। बल्कि तब भाजपा ने नारा उछाला था कि यह हल और महल के बीच की लड़ाई है।
माना जाता है कि पिछड़ा वर्ग की लामबंदी की वजह से मधुसूदन यादव को यह बड़ी जीत मिली थी। लेकिन 2014 के चुनाव में गणित बदल गया है। भाजपा ने मुख्यमंत्री के पुत्र और सामान्य वर्ग के अभिषेक सिंह को उतारकर उन्हें लोकप्रिय प्रत्याशी के रूप में पेश किया है। दूसरी ओर कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग के लोधी समाज से आने वाले कमलेश्वर वर्मा को मैदान में उतारा है। भाजपा को अपने युवा प्रत्याशी की लोकप्रियता पर और कांग्रेस को ओबीसी कार्ड पर भरोसा है। राजनांदगांव में साहू के अलावा यादव, सतनामी वोटर आठ प्रतिशत व लोधी छह प्रतिशत है।
महासमुंद में जोगी की जीत दोहराने का दांव
महासमुंद लोकसभा प्रदेश के उन संसदीय क्षेत्रों में शामिल है, जो हमेशा चर्चा में रही है। कांग्रेस ने इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को उतारा है। अजीत जोगी 2004 के चुनाव में इस सीट से भारी बहुमत से जीते थे। उन्होंने इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी विद्याचरण शुक्ल को महासमुंद संसदीय क्षेत्र की हर विधानसभा सीट में मात दी थी। पिछड़ा वर्ग में साहू, कुर्मी, यादव व आदिवासी मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। यहां साहू 22 प्रतिशत व कुर्मी वोटर लगभग 20 प्रतिशत है।
कांग्रेस ने पिछले चुनाव में पिछड़ा वर्ग का दांव खेलते हुए मोतीलाल साहू को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वे भाजपा के चंदूलाल साहू के हाथों मात खा गए। इस बार कांग्रेस ने इस सीट पर अपने पूर्व मुख्यमंत्री की लोकप्रियता को भुनाने का दांव खेलते हुए जीत की संभावनाओं के आधार पर अजीत जोगी को प्रत्याशी बनाया है। जबकि भाजपा ने एक बार फिर पिछड़ा कार्ड पर भरोसा जताते हुए चंदूलाल साहू को ही प्रत्याशी बनाया है। बिलासपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को प्रत्याशी बनाया है।
भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुकीं करुणा शुक्ला की उम्मीदवारी के पीछे उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की भूमिका अहम मानी जा रही है। हालांकि बिलासपुर संसदीय क्षेत्र में सतनामी, साहू, कुर्मी, यादवों की संख्या सबसे अधिक है। यहां सतनामी वोटर 15 प्रतिशत व साहू वोटर लगभग 12 प्रतिशत है। भाजपा ने इस सीट से एक नए नवेले नेता को दांव पर लगाया है। पिछड़ा वर्ग के साहू समाज से आने वाले लखनलाल साहू पार्टी के प्रत्याशी हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि भाजपा ने करुणा का मुकाबला करने के लिए ओबीसी कार्ड खेला है। कोरबा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. चरणदास महंत हैं। 2009 के चुनाव में उन्होंने यह सीट जीती थी। पिछड़ा वर्ग के पनिका समाज से आने वाले डॉ. महंत कबीरपंथी भी हैं। कबीरपंथ के ज्यादातर अनुयायी पिछड़े वर्ग के हैं। भाजपा ने उनके खिलाफ पिछड़ा वर्ग से आने वाले बंशीलाल महतो को प्रत्याशी बनाया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग कार्ड के खिलाफ भाजपा ने वही दांव दोहराया है। बंशीलाल महतो को भाजपा की राजनीति से पहले छात्र राजनीति और जनसंघ के जमाने में सक्रिय और आक्रामक नेता माना जाता था। उन्होंने 1999 में जांजगीर लोकसभा से डॉ. महंत के खिलाफ चुनाव लड़ा था, इस चुनाव में श्री महतो की महज डेढ़ हजार मतों से हार हुई थी। कोरबा संसदीय क्षेत्र में सतनामी वोटर लगभग 12 प्रतिशत व साहू वोटर 16 प्रतिशत के अलावा आदिवासी वोटर भी बड़ी संख्या में हैं।

रंगपंचमी जुलूस में नेता गले मिले, उड़ाया गुलाल

भोपाल। भोपाल शहर में रंगपंचमी की धूमधाम रही। नए और पुराने शहर दोनों स्थानों पर जुलूस निकाले गए। पुराने शहर में नेताओं ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर गले मिलकर एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाया। सेंट्रल स्कूल में त्योहार के बाद भी परीक्षा रखी गई जिससे बच्चे परेशान हुए। राजधानी में रंगों का विशेष पर्व रंगपंचमी शुक्रवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस दौरान शहरभर में करीब 6 बड़े जुलूस निकाले गए। श्री हिंदू उत्सव समिति के बैनर तले सुभाष चौक से चल समारोह निकाला गया। इसकी अगुवाई समिति के संरक्षक पंडित ओम मेहता ने की। नया भोपाल त्योहार उत्सव समिति के बैनर तले दुर्गा मार्केट शाहपुरा से जुलूस निकाला गया। अन्ना नगर, कोलार और भेल में भी टोलियां निकलीं। पुलिस रही मुस्तैद रंगपंचमी पर सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर शहरभर में करीब 3000 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। एसपी नॉर्थ अरविंद सक्सेना के मुताबिक, पुलिस ने लगातार ऐसे स्थलों पर गश्त की, जहां गडबड़ी की आशंका बनी रहती है। नए शहर में नेहरू नगर से युवकों ने जुलूस निकाला जो विभिन्न मार्गों से होता हुआ न्यू मार्केट पहुंचा। इसी तरह पुराने शहर में हिंदू उत्सव समिति ने रंगपंचमी का जुलूस निकाला जिसके सोमवारा पहुंचने पर टैंकर से पानी की बौछार की गई। पुराने शहर के जुलूस में ऊंट औऱ बैंडबाजे भी चल रहे थे। रंगपंचमी जुलूस में हिंदू उत्सव समिति के अध्यक्ष नारायण सिंह कुशवाहा, पूर्व विधायक रमेश शर्मा गुट्टू, बीजेपी की जिला अध्यक्ष आलोक शर्मा, भगवानदास सबनानी, विष्णु राठौर, कांग्रेस नेता गोविंद गोयल, ईश्वर सिंह चौहान आदि शामिल हुए। रंगपंचमी पर भी परीक्षाएं हुईं रंगपंचमी पर सरकारी छुट्टी के चलते शासकीय दफ्तर बंद थे लेकिन सेंट्रल स्कूल में घोषित परीक्षा कार्यक्रम के तहत स्कूल लगे। इससे सुबह बच्चों को स्कूल पहुंचने में परेशानी हुई। 80 पार गौर ने मारे ठुमके 80 के पार गौर साब ने रंगपंचमी पर खूब ठुमके मारे। उसके बाद रथ पर सवार होकर मुस्कराते, रंग उड़ाते अपने क्षेत्र में निकले। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री मौके की नजाकत को देखते हुए हर रंग में ढलने का हुनर जानते हैं। उम्र 80 के पार हो चुकी है, लेकिन जिंदगी को अपने अंदाज में जीते हैं। रंगपंचमी के मौके पर जब उनके विधानसभा क्षेत्र यानी भेल की जनता 74 बंगला स्थित उनके बंगले पर पहुंची, तब उन्होंने बगैर कोई ना-नुकुर के रंग खेला। उन्होंने फिल्मी गीतों और फागों पर ठुमके भी लगाए। इसके बाद गौर साब भानपुर पहुंचे। यहां पूर्व पार्षद तुलसा वर्मा ने रंगपंचमी का आयोजन किया था। यहां से एक भव्य जुलूस निकाला गया। इसमें गृहमंत्री जी को रथ पर बैठाया गया। जुलूस भानपुर ब्रिज से शुरू होकर दशहरा मैदान तक आया। यहां भी गौर साब अपने कार्यकर्ताओं के संग खूब मस्ती की।