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भेड़ाघाट

Tuesday, April 17, 2012

अभी तो मोहरे मिले हैं, खिलाड़ी नहीं!





आर.टी.आई. कार्यकर्ता शेहला मसूद की हत्या के तार का सिरा मिलने के साथ ही मध्यप्रदेश की राजनीति में गर्माहट आ गई है. पिछले छह महीने से परेशान सी.बी.आई. ने जब शेहला की हत्या करने के लिए सुपारी देने वाली कथित युवती जाहिदा परवेज को अचानक अपनी गिरफ्त में लिया, तो प्रदेश की राजनीतिक गलियारे में चहलकदमी तेज हो गई. इस मामले में भोपाल के स्थानीय विधायक एवं मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष ध्रुवनारायण सिंह पर भी शक किया जा रहा है. दूसरी ओर इस हत्याकांड में जाहिदा परवेज को मदद करने वाले शाकिब डेंजर के साथ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का फोटो सार्वजनिक हो जाने से सांसद प्रभात झा पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया जाने लगा है.

सी.बी.आई. के अनुसार शेहला एवं जाहिदा पहले सहेली थी. शेहला ने ही जाहिदा को मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम में परिचय कराकर काम दिलाया था, पर वह शेहला से आगे निकल गई. पर्यटन निगम में जब जाहिदा को कोई काम मिलता था, तब शेहला आर.टी.आई. लगाती थी. इस तरह से शेहला न केवल जाहिदा बल्कि अन्य लोगों के लिए अड़चन बन रही थी. इससे परेशान होकर उसने शेहला को रास्ते से हटाने का निर्णय लिया. इसके लिए उसने स्थानीय अपराधी शाकिब से मदद ली एवं शाकिब ने कानपुर के शूटर से संपर्क साधकर इस घटना को अंजाम दिलवाया. इस कहानी के पहले यह भी कहा जा रहा था कि अवैध संबंधों के मामले को लेकर शेहला की हत्या की गई.

इस मामले में विधायक पर शक इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि वे उस समय पर्यटन निगम के अध्यक्ष थे और जिस तरह से जाहिदा की पूछपरख निगम में थी, उससे लगता है कि उस पर उनकी मेहरबानी थी. दूसरी ओर भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चे के एक कार्यक्रम में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का फोटो शाकिब के साथ है. इसे लेकर कांग्रेस द्वारा भाजपा अध्यक्ष से इस्तीफे की मांग की जा रही है. जबकि भाजपा अध्यक्ष का कहना है कि सार्वजनिक जगहों पर जनता साथ होती है, तो भीड़ में यह पता कर पाना कठिन होता है कि कौन अपराधी है. यद्यपि भाजपा के जिला अध्यक्षों को अब यह संदेश भेजा गया है कि मंच पर चढऩे वालों की छानबीन अच्छे से कर ली जाए. फिलहाल इस मामले में सी.बी.आई. सावधानी से कदम उठा रही है एवं राजनेताओं से अभी पूछताछ करने के बजाय, सबूतों को जुटाने एवं कडिय़ों को जोडऩे में लगी है.

सी.बी.आई. को कुछ अहम सुराग भी हाथ लगे हैं और वह जाहिदा का साइको टेस्ट भी करवाने जा रही है. कानपुर के शूटर इरफान से भी कड़ी पूछताछ की जा रही है एवं उससे काफी सुराग मिलने की उम्मीद है. सी.बी.आई. जिन कारणों को हत्या के लिए बता रही है, उसके लिए जरूरी है कि निगम के उन टेंडर या वर्क ऑर्डर की स्थिति को देखा जाए, जब जाहिदा को काम मिले हैं एवं आर.टी.आई. के आवेदनों की तिथियां एवं उसमें मांगी गई जानकारियों की स्थिति, मिले जवाब आदि को जांचा जाए, तभी इस कहानी पर विश्वास कर पाना संभव होगा कि निगम के कार्यों के कारण ही शेहला की हत्या की गई. साथ ही देखा जाना जरूरी है कि इस घटना को अंजाम देने के पीछे की ताकत कौन है? विपक्ष द्वारा राजनेताओं की भूमिका की जांच की मांग एवं परिजनों द्वारा यह कहे जाना कि जाहिदा इतना बड़ा कदम नहीं उठा सकती, इस बात की ओर इशारा करता है कि अभी तो मोहरे मिले हैं, खिलाड़ी नहीं. खिलाडिय़ों को बेनकाब करने में सी.बी.आई. कितनी जल्द सफल होती है, यह गिरफ्तार किए अभियुक्तों के बयान एवं सबूतों पर निर्भर करेगा.
भोपाल से भाजपा विधायक ध्रुव नारायण सिंह के फ़ोन की कालर ट्यून 'सुख के सब साथी, दुख में न कोय', उनकी वर्तमान स्थिति पर बिल्कुल मुफीद बैठती है. बीते पखवाड़े शेहला मसूद हत्याकांड से जुड़े सनसनीखेज खुलासों के बाद भोपाल की सड़कों से रातों-रात उनके पोस्टर और होर्डिंग उतरवा लिए गए. राजधानी के लोकप्रिय युवा नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले मध्यप्रदेश टूरिस्म डेवलपमेंट कारपोरशन के पूर्व अध्यक्ष सिंह के पोस्टरों से राजधानी के गली-मोहल्ले हमेशा पटे रहते थे. जानकारों का मानना है कि ऐसा करके प्रदेश भाजपा ने सिंह से दूरी बनाये रखने के अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं. प्रदेश भाजपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद किसी महत्वपूर्ण मंत्रालय की उम्मीद लगा रहे सिंह का राजनीतिक करियर अब लगभग समाप्त हो चुका है. पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, 'हत्याकांड से जुड़े खुलासों के बाद जिस तरह से उनका नाम कई महिलाओं के साथ जोड़ा जा रहा है, उससे पार्टी की छवि को काफ़ी नुकसान हो रहा है. ध्रुव को इसके लम्बे राजनीतिक दुष्परिणाम झेलने पड़ेंगे क्योंकि पार्टी किसी एक नेता के लिए अपनी राजनीतिक संभावनाओं का बलिदान नहीं करने वाली.'

ध्रुव नारायण सिंह की जाहिदा परवेज़ से पुरानी मित्रता थी और उन्होंने ही जाहिदा को बिना ज़रूरी डिग्रियों के मध्यप्रदेश टूरिस्म में रजिस्टर्ड आर्किटेक्ट के तौर पर शामिल भी करवाया था

बाघ बचाओ अभियान के तहत आयोजित एक प्रदर्शन में शेहला मसूद (दायें)हाल ही में सीबीआई ने राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित शेहला मसूद हत्याकांड से जुड़े अहम खुलासे किये हैं. जांच एजेंसी के अनुसार भोपाल के एक प्रतिष्ठित मुस्लिम परिवार की बहू जाहिदा परवेज ने अपनी महिला सेक्रेटरी के साथ मिलकर, प्रेम और व्यापार, दोनों की अपनी प्रतिद्वंद्वी शेहला मसूद का भाड़े के हत्यारों द्वारा क़त्ल करवा दिया. सीबीआई का कहना है कि 36 वर्षीय जाहिदा को शेहला मसूद की ध्रुव नारायण सिंह से बढ़ती नजदीकियां पसंद नहीं थीं. मध्यप्रदेश टूर्जि्म से मिलने वाले तमाम ठेकों में शेहला का बढता दखल भी जाहिदा को रास नहीं आ रहा था. ध्रुव नारायण सिंह की जाहिदा परवेज़ से पुरानी मित्रता थी और उन्होंने ही जाहिदा को बिना ज़रूरी डिग्रियों के मध्यप्रदेश टूरिस्म में रजिस्टर्ड आर्किटेक्ट के तौर पर शामिल भी करवाया था. सूत्रों के अनुसार जब शेहला ने जाहिदा को मिलने वाले ठेकों से जुड़ी जानकारियां सूचना के अधिकार के तहत मांगनी शुरू कर दीं तो जाहिदा के काम में तमाम अड़चनें आने लगीं. हालांकि इस मामले में सीबीआई ने अभी तक ध्रुव नारायण सिंह को गिरफ्तार नहीं किया है पर उन्हें तलब कर उनसे सघन पूछताछ की जा रही है. पिछले दिनों दिल्ली में उनका पोलिग्राफी टेस्ट भी हो चुका है. सीबीआई अधिकारियों का कहना है कि मामले की तहकीकात जारी है और फिलहाल ध्रुव को क्लीन चिट नहीं दी गई है.

शेहला मसूद हत्याकांड के केंद्र में उलझे ध्रुव नारायण सिंह मध्यप्रदेश के प्रभावशाली और अमीर राजनीतिक परिवार से जुड़े हैं. ध्रुव के पिता गोविन्द नारायण सिंह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उनके दादा अवधेश प्रताप सिंह विंध्यप्रदेश के पहले प्रधानमंत्री थे. पर अपनी खानदानी कांग्रेसी पृष्ठभूमि से इतर ध्रुव का राजनीतिक झुकाव भाजपा की तरफ रहा. उनके एक पुराने मित्र तहलका से बातचीत में कहते हैं, 'ध्रुव को राजनाथ सिंह का वरदहस्त प्राप्त था. वही ध्रुव को राजनीति में लेकर आए. यों तो पार्टी में उनके खिलाफ एक मजबूत लॉबी हमेशा से काम करती रही पर अब उनके प्रतिद्वंदियों को उनके खिलाफ एक मज़बूत आधार मिल गया है. आखिर राजधानी की 'मध्य भोपाल' सीट से कई लोग टिकिट पाना चाहते थे. फिर इतनी कम उम्र में उन्हें एमपीटीडीसी के अध्यक्ष का जो पद मिला था, उसके लिए भी बहुत मारा-मारी थी.' पर अपनी साफ़-सुथरी छवि के लिए पहचाने जाते रहे ध्रुव नारायण सिंह का 'लेडीज मैन' में हुआ यह रूपांतरण त्वरित नहीं है. पिछले 2 दशकों से ध्रुव को करीब से जानने वाले उनके एक मित्र बताते है, 'उन्होंने एक ब्राह्मण लड़की से प्रेम विवाह किया और पिछले 25 सालों में अपनी पत्नी के सिवा कभी किसी दूसरी महिला को नहीं देखा. पर पिछले 3 -4 सालों में जैसे ही वे रियल-एस्टेट के धंधे में आए, तब से उनकी संगत में कुछ नए लोग जुड़े. ये लोग ज़मीनों की संदिग्ध खरीद-फरोक्त के साथ-साथ ठेकों से जुड़े काम-काज के लिए आने वाली तमाम महिलाओं से मित्रता बढ़ाने वाले लोग थे. ध्रुव को भी पता था कि ये ठीक लोग नहीं है पर उन्होंने उनसे मेल-जोल जारी रखा और इस भयानक हत्याकांड में बिना-वजह उलझ गए.'

आतंकियों का हथियार बनीं बार गर्ल्स





भारत के ख़िलाफ़ रची गई है अब तक की सबसे ख़ौफ़नाक साजि़श. आतंकवादियों ने इस बार भारत पर हमले के लिए तैयार की है महिला ब्रिगेड. इस महिला ब्रिगेड में मुंबई और पाकिस्तान में काम करने वाली बार गर्ल्स शामिल हैं. भारतीय ख़ु़फिया एजेंसी के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि दुबई में बैठे दाऊद और उसके गुर्गे मुंबई और पाकिस्तान की बार गर्ल्स को डांस करने के नाम पर दुबई बुलाकर उन्हें आतंकी वारदातें अंजाम देने की ज़बरदस्त ट्रेनिंग दे रहे हैं. इतना ही नहीं, पाकिस्तान में भी 21 महिलाओं की एक टीम तैयार की जा चुकी है, जो मौक़ा मिलते ही भारत में घुसकर हमला करने की फिराक में है. आई बी को इस ख़तरनाक साजि़श की जानकारी तब मिली, जब मुंबई पुलिस ने जे बी नगर के अंधेरी कुर्ला रोड स्थित एक होटल सन एंड शील पर छापा मारा. इस होटल से गिरफ्तार बार डांसर्स और उनके मालिक से हुई गहन पूछताछ के बाद पुलिस को जो जानकारी मिली, वह दंग कर देने वाली थी. पता चला कि इस होटल में बार और डिस्कोथेक के नाम पर सेक्स रैकेट चलता है और यहां काम करने वाली लड़कियां दुबई, पाकिस्तान, मॉरिशस, बैंकॉक और थाईलैंड तक भेजी जाती हैं. ये लड़कियां भारत में आतंक फैलाने के लिए जि़म्मेदार संगठनों के लिए न सफिऱ् जासूस का काम करती हैं, बल्कि हवाला और मटका जैसे धंधों के लिए बड़ी मात्रा में पैसे इधर से उधर करने का भी ज़रिया बनती हैं. इस नए आतंकी गिरोह में शामिल लड़कियां अपने खातों में विदेशों से जमा पैसों को दर्जनों वीजा कार्ड्स के ज़रिए एटीएम से निकालती हैं.

ख़ुफिय़ा एजेंसियों की रिपोर्ट में इस बात की निशानदेही की गई है कि इन संगठनों के लोगों ने अपने और दूसरे लोगों के नामों से देशी और विदेशी मुद्रा में बैंक खाते खुलवा कर उन्हें इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. इनमें कुछ ऐसी बार बालाएं भी शामिल हैं, जो पहले से ही दाऊद के गिरोह के लिए पैसा वसूली और बैंक खातों के संचालन का काम करती रही हैं. हालांकि गृहमंत्री पी चिदंबरम की दलील है कि आतंकी संगठनों से संबंधित या शक के दायरे में आए इन खातों को पहले ही बंद किया जा चुका है और इन पर पैनी नजऱ रखी जा रही है. हैरानी की बात यह है कि सरकार की सतर्कता के बावजूद नए संदिग्ध खाते खोले जा रहे हैं और उनमें विदेशी धन की आमदरफ्त भी जारी है.

आई बी के मुताबिक़, ये लड़कियां ग्रुप बनाकर किसी सुनसान से एटीएम पर जाती हैं. फिर वहां के गार्ड को कुछ पैसे देकर अपने साथ मिला लेती हैं और फिर दर्जनों एटीएम के माफऱ्त वे लाखों रुपये की निकासी कर लेती हैं. बहरहाल, पुलिसिया तफ्तीश में होटल सन एन शील के सभी ग्राहकों के गहरे ताल्लुक खाड़ी देशों से निकले. यहां एक रात रुकने और खाने-पीने के छह लाख रुपये वसूले जाते थे, जिसमें ग्राहक को कॉलगर्ल के साथ शराब, खाने और डांस की सुविधा मुहैया कराई जाती थी. होटल के सुरक्षा इंतज़ामात ऐसे कि ख़ुफिय़ा एजेंसियों ने भी दांतों तले उंगलियां दबा लीं. मुंबई पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर राकेश मारिया ने बताया कि रात के गुमनाम अंधेरों में चलने वाले इस होटल के इर्द-गिर्द ढाबे और रोज़मर्रा की चीज़ों की दुकानें हैं. इमारत की तीसरी मंजिल पर एक रेस्टोरेंट है. पूरे दिन यहां सामान्य कारोबार होता और जैसे ही रात होती और दूसरी दुकानों पर ताले लगते, यहां की रौनक पूरे शबाब पर आ जाती. सुबह के छह बजे तक इस होटल का धंधा चलता रहता, फिर सड़कों पर चहलपहल बढ़ते ही रेस्टोरेंट अपने मामूली रंग-ढंग में तब्दील हो जाता.

इस होटल के हरेक कमरे की क़ीमत किसी भी सेवन स्टार होटल से ज़्यादा तो थी ही, अपने काले धंधे और ग्राहकों के अनैतिक काम को पुलिस या किसी भी अजनबी की नजऱ से बचाने की खातिर अत्याधुनिक तकनीक की व्यवस्था की गई थी. यह होटल इलेक्ट्रॉनिक दरवाजे से लैस है, जिसका दरवाज़ा जानी-पहचानी आहट या उसकी मेमोरी में फीड किए गए निशान को पहचान कर ही खुलता था. किसी भी ख़तरे की आशंका से जऱा से सिग्नल पर सक्रिय हो जाने वाली लिफ्ट, मैट्रेस के नीचे छुपाकर रखे गए अत्याधुनिक हथियार, किसी इमरजेंसी में दीवार तोडऩे के लिए रखे गए हैंडग्रेनेड, वॉयस आईडेंटिफिकेशन से खुलने वाले होटल के कमरे वग़ैरह जैसे सुरक्षा उपाय किसी ख़ुफिया एजेंसी के तौर तरीक़ों को भी मात दे देंगे. होटल में एक ऐसा इमरजेंसी रूम भी था, जो डांसर्स के लिए खास तौर पर तैयार किया गया था और जिसकी फर्श में लिफ्ट लगी थी, जो किसी भी ख़तरे की स्थिति में बग़ैर होटल का मेन डोर इस्तेमाल किए लड़कियों को सीधे इमारत की अंडरग्राउंड पार्किंग में पहुंचा देती थी. बिल्डिंग एंट्रेंस पर इलेक्ट्रॉनिक स्विच लगा था, जिसे दबाते ही डांस बार में ख़तरे का सिग्नल चला जाता था. ग्राउंड फ्लोर पर 12 धुरंधर सिक्योरिटी गार्ड्स की तैनाती थी, जिनका काम संदिग्ध विजिटर्स को रोकना और अपने कस्टमर्स से एक लाख रुपये कैश एंट्रेंस फीस वसूलना था.

राकेश मारिया बताते हैं कि पुलिस का छापा पडऩे पर कस्टमर्स और कॉलगर्ल्स को बचाने के लिए इस होटल में जितना मज़बूत इमरजेंसी प्लान था, उतना हिंदी फिल्मों में ही देखने को मिलता है, असल में नहीं. ख़ुफिय़ा एजेंसियों से मिली सूचना के आधार पर जब इस होटल में पूरे प्लान और एहतियात के साथ चारों ओर नाकेबंदी करके छापेमारी की गई, तब 45 लोगों और 6 कॉलगर्ल्स को गिरफ्तार किया गया, जिनमें होटल मालिक भी शामिल है. होटल मालिक लालजी सिंह उर्फ विनोद सिंह की इंटरपोल को लंबे वक़्त से तलाश थी. इस होटल के मालिक के धंधे खाड़ी देशों के साथ-साथ मॉरिशस, थाईलैंड, बैंकॉक, मलेशिया और सिंगापुर आदि में फैले हुए हैं. आई बी को यह ख़बर मिली थी कि इस होटल में डांस और कॉलगर्ल्स का काम करने वाली लड़कियों की माफऱ्त मालिक विनोद सिंह हवाला का कारोबार तो करता ही है, दुबई में बैठे आतंक के आकाओं को उन लड़कियों का पूरा ग्रुप भी मुहैया कराता है, जो पैसों की खातिर भारत के ख़िलाफ़ किसी भी हद तक जा सकती हैं. इसके अलावा यहां से इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी शाहरुख़ उर्फ यासीन अहमद के एक गुर्गे की भी गिरफ्तारी हुई, जिसकी निशानदेही पर हवाला के ज़रिए दस लाख रुपये यासीन अहमद को सौंपने के आरोप में गाजियाबाद से कंवर नयन वजीरचंद पथरेजा नामक हवाला कारोबारी को भी गिरफ्तार किया गया. गाजियाबाद में रहने वाला कंवर पथरेजा चांदनी चौक में आर्टिफिशियल ज्वेलरी का काम करता है. महाराष्ट्र एटीएस की जानकारी के अनुसार, कंवर पथरेजा द्वारा यासीन को सौंपी गई रकम का प्रयोग मुंबई धमाकों को अंजाम देने में किया गया था. आई बी को मिले सबूत के मुताबिक़, भारत पर हमला करने की यह साजि़श बेहद पुख्ता तरीक़े से बनाई जा चुकी है. इस हमले को अंजाम देने की खातिर प्रतिबंधित संगठनों ने नए-नए नामों से अलग-अलग बैंकों में खाते खुलवा लिए हैं. ये तमाम खाते बार गर्ल्स के नाम से खुलवाए गए हैं और ये खाते न सफिऱ् भारत, बल्कि पाकिस्तान में भी खुलवाए गए हैं. पाकिस्तान के गुप्तचर विभाग ने भी सरकार को चेतावनी दी है कि उन खातों में देश और विदेश से रक़म का स्थानांतरण हो रहा है. ये वे प्रतिबंधित संगठन हैं, जो पिछले काफ़ी समय से सुरक्षाबलों की कार्रवाई की वजह से कमज़ोर हो गए थे. इनमें से कुछ ऐसे भी संगठन हैं, जो ताज़ा चरमपंथी कार्रवाइयों में लिप्त रहे हैं और अब कल्याणकारी कामों में व्यस्त हैं. रकम के स्थानांतरण की वजह से ये प्रतिबंधित संगठन फिर से सक्रिय हो रहे हैं. गृह मंत्रालय के मुताबिक़, सात प्रतिबंधित संगठनों ने बैंकों में बार गर्ल्स के नाम से खाते खुलवाए हैं. इन संगठनों में जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए इस्लामी, मिल्लत-ए-इस्लामिया पाकिस्तान, ग़ाज़ी फ़ोर्स, हिज़बुत्तहरीर, जमीयत-उल-फ़ुरक़ान और ख़ैरुन निशा इंटरनेशनल ट्रस्ट शामिल हैं. पाकिस्तानी सरकार ने भी ऐसे लगभग 24 संगठनों के बैंक खातों पर प्रतिबंध लगा रखा है, जिनमें लश्करे तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, सिपाह साहेबा पाकिस्तान और लश्करे झंगवी शामिल हैं.

ख़ुफिय़ा एजेंसियों की रिपोर्ट में इस बात की निशानदेही की गई है कि इन संगठनों के लोगों ने अपने और दूसरे लोगों के नामों से देशी और विदेशी मुद्रा में बैंक खाते खुलवा कर उन्हें इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. इनमें कुछ ऐसी बार बालाएं भी शामिल हैं, जो पहले से ही दाऊद के गिरोह के लिए पैसा वसूली और बैंक खातों के संचालन का काम करती रही हैं. हालांकि गृहमंत्री पी चिदंबरम की दलील है कि आतंकी संगठनों से संबंधित या शक के दायरे में आए इन खातों को पहले ही बंद किया जा चुका है और इन पर पैनी नजऱ रखी जा रही है. हैरानी की बात यह है कि सरकार की सतर्कता के बावजूद नए संदिग्ध खाते खोले जा रहे हैं और उनमें विदेशी धन की आमदरफ्त भी जारी है. इन बैंक खातों में आ रही बेतहाशा रकम की वजह से प्रतिबंधित संगठन एक बार फिर एकजुट होकर सक्रिय हो रहे हैं. हालांकि संघीय जांच एजेंसी ने उन बैंक खातों की जानकारी जुटाना शुरू कर दिया है, जिनकी ख़ुफिय़ा एजेंसियों की रिपोर्ट में निशानदेही की गई है. ख़ासकर मुंबई के ग्रांट रोड, चरनी रोड, कालबादेवी, ओपरा हाउस और विरार में स्थित बैंकों पर ख़ुफिय़ा विभाग की पैनी नजऱ है. पहले भी महाराष्ट्र एटीएस ने इन्हीं इलाक़ों में चलने वाले अग्रणी बैंकों पर छापेमारी कर पैंसठ सौ करोड़ के हवाला कारोबार का भंडाफोड़ किया है. बहरहाल, सारी चौकसी और घेरेबंदी के बावजूद आतंकी संगठन हिंदुस्तान की सरज़मीं पर दहशत फैलाने के लिए रोज नए तरीक़े तो ईजाद कर ही रहे हैं, अब यह बार गर्ल्स का नया जाल भी ख़ु़फिया एजेंसियों और पुलिस के लिए पहेली साबित हो रहा है.

बिटिया होने का दंश




भारतीय इतिहास की तमाम कहानियां भले ही वीरांगनाओं के शौर्य एवं वीरता से भरी पड़ी हों, लेकिन वर्तमान भारतीय समाज में आज भी बेटियों के प्रति समाज की सोच कहीं न कहीं शर्मसार करने वाली है। दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में भर्ती कोमल के मामले में जिस तरह के राज परत दर परत खुल रहे हैं, वह कहीं न कहीं लिंगभेद के प्रति समाज की दुर्भावना को ही व्यक्त करते हैं। ऐसी न जाने कितनी कोमल इस देश में लिंगभेद के क्रूर और अमानविक कृत्यों का शिकार होती रहती हैं। आज हम एक तरफ 21वीं सदी में विकसित होने का सपना सजोए हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ समाज में फैली तमाम कुरीतियों, कुप्रथाओं को बढ़ावा भी दिया जा रहा है। भारतीय समाज में लिंगभेद की दूषित परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। इतिहास गवाह कि हमारे समाज में लिंग विशेष के प्रति प्राचीन काल से ही दोहरा रवैया अपनाया जाता रहा है और लिंगभेद की इस दूषित भावना ने तत्कालीन समाज का एक अभद्र रूप प्रस्तुत किया है। विधवा विवाह को आज भी समाज में मान्यता न मिलना लिंग विशेष के प्रति पूर्वाग्रह का ही प्रमाण है। तमाम सामाजिक प्रयासों के फलस्वरूप सती प्रथा जैसी दूषित कुरीति से काफी हद तक निजात पाई जा चुकी है, लेकिन लिंगभेद जैसी मुख्य समस्या आज भी अपने विकराल स्वरूप के साथ बरकार है। तमाम विकास के बावजूद अभी भी हमारे समाज से लिंगभेद के दंश को अलग नहीं किया जा सका है, जिसके फलस्वरूप आज भी तमाम समस्याएं समाज को घेरे हुए हैं। दरअसल, उपरोक्त तमाम समस्याओं पर अगर विचार करें सारी समस्याओं की जड़ में समाज की लिंगविशेष के प्रति दुर्भावना ही नजर आती है। लिंगभेद के चंगुल से कभी भी हमारा समाज बाहर नहीं निकल सका है और इसी कारण से लिंगभेद के इस पौधे से समय समय पर नए-नए सामाजिक समस्याओं के बीज अंकुरित होते रहे हैं। लिंगभेद के इस जहरीले वृक्ष ने कभी समाज में सती-प्रथा और विधवा विवाह की गैर मान्यता को अंकुरित किया तो आज दहेज-प्रथा, महिला उत्पीडऩ, भूण हत्या और तमाम घरेलू हिंसा से समाज में जहर भरने का काम कर रहा है। लिंगभेद की इस काली परंपरा को वर्तमान के संदर्भ में अगर देखें तो स्त्री वर्ग को लेकर समाज का एक ऐसा चेहरा भी देखने को मिलेगा, जो बड़ा ही असामाजिक एवं कुरूप नजर आता है। लिंगभेद की पारंपरिक समस्या ने हमारी सामाजिक संरचना की जड़ों को समय के साथ खोखला करने का काम किया है। दहेज, भ्रूण हत्या, महिला उत्पीडऩ ऐसी समस्याएं हैं, जिनका सरोकार लिंग पूर्वाग्रह पर आधारित है। बहुत साल पहले जब हम तकनीकी रूप से संपन्न नहीं थे, तब बेटियों को जन्म के बाद मार दिया जाता था। आज जबकि हम तकनीकी रूप से संपन्न हैं तो दो कदम आगे बढ़कर समाज ने बेटियों को गर्भ में मारना शुरू कर दिया है। तकनीक और संसाधनों से संपन्न समाज ने इस कुप्रथा को समाज से हटाने की बजाय तकनीक का सहारा लेकर इसे बढ़ाने का काम किया है। भ्रूण हत्या पर बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन दशकों में लगभग चालीस लाख से ज्यादा बच्चियों को भ्रूण हत्या का शिकार बनाया गया है, जो सामाजिक या मानवीय किसी भी दृष्टिकोण से ठीक नही है। लिंगभेद का इससे बड़ा उदाहरण भला क्या हो सकता है कि हम बड़ी निर्दायता से किसी मासूम से उसके जीने का अधिकार इसलिए छीन लेते हैं, क्योंकि वह उस लिंग के दायरे में नहीं आती, जिसे इस समाज ने झूठी प्रधानता दे रखी है। बेटियों के प्रति लिंगभेद के अपराध से ग्रसित हमारा कुंठित समाज जिस तरह की भावना रखता है वह कहीं न कहीं एक सामाजिक क्षति है और कहें तो एक तरह का अपराध है। आज समाज में लिंगभेद की दुर्भावना इस कदर हावी हो चुकी है कि बेटी के जन्म से पहले ही उसके खिलाफ सामाजिक साजिशें शुरू हो जाती हैं। ये साजिशें सिर्फ उसके जन्म लेने तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि जन्म लेने के बाद भी बहुसंख्यक समाज द्वारा उसके पालन-पोषण, प्राथमिक शिक्षा आदि को हाशिये पर रखा जाता है। आज जीवन के मूल अधिकारों जैसे शिक्षा, अभिव्यक्ति आदि के मामले में भी बेटियों को द्वितीय वरीयता पर रखकर समाज खुद को पुरुष प्रधान साबित करने का दंभ भर रहा है। समाज का यह एक कड़वा सच है कि बहुसंख्यक समाज द्वारा बेटे और बेटी के बीच शिक्षा जैसी मूल जरूरत में भी भेद किया जाता है। कहीं न कहीं हर कदम पर हमारे समाज द्वारा परंपरा के नाम पर बेटियों के अधिकारों का दमन किया जा रहा है जो समाज के लिए बहुत ही घातक साबित हो सकता है। अगर शिक्षा का स्तर देखें तो पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की शिक्षा का स्तर काफी नीचे है, जो इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा जैसी मूल सामाजिक अनिवार्यता भी लिंगभेद के दंश से अछूती नहीं है। बेटियों के पैरों में न जाने कितनी बेडिय़ां समाज द्वारा कदम कदम पर बांधी जाती हैं। बचपन से ही बेटियों को सामाजिक दायरों का पाठ पढ़ाना हमारे समाज का प्रिय शगल बन चुका है। बचपन से दायरों का पाठ पढ़ती हाशिये पर जी रही बेटी को एक ऐसे नाज़ुक मोड़ का सामना भी करना पड़ता है जब समाज की परंपराओं द्वारा उसको स्वीकार करने की खुलेआम कीमत लगाई जाती है। दहेज नामक इस कुप्रथा ने तो मानो रिश्तों की बुनियाद सौदों पर कर दी हो। हाल ही में बिहार के नवादा में दहेज के नाम पर विभा कुमारी की हत्या भी कहीं न कहीं हमारे समाज के इस सच को उजागर करने के लिए पर्याप्त है कि आज भी हमारा समाज लिंगभेद की सोच से बाहर नहीं आ पाया है और न जाने कितनी युवतियां हाथों की मेंहदी उतरने से पहले जला दी जाती हैं। दहेज भी इसी लिंगभेद के सामाजिक जहर का परिणाम है, जो व्यापक तौर पर समाज में मौजूद है। दहेज पर भले ही हमारे प्रशासन द्वारा कानून बनाकार इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया हो, लेकिन आज समाज में यह कानून कितना सफल है यह सर्वविदित है। दहेज के लिए हर साल न जाने कितनी बेटियों की जान ली जा रह है, इसका आकलन भी कर पाना मुश्किल है। बड़ी विडंबना तो यह भी है कि दहेज के बोझ में दबे बाप की हर कसक कहीं न कहीं बेटी के आंखों के आसुओं से चुकाई जाती है। आज घरेलू हिंसा की बढ़ती घटनाओं के लिए दहेज एक प्रमुख कारण है। दहेज के नाम पर सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि दिल्ली जैसे महानगरों में भी उत्पीडऩ की घटनाएं प्राय: सुनने में आती हैं। आज देश की अस्सी प्रतिशत शादियां दहेज के सौदे की बुनियाद पर होती हैं। इन सभी सामाजिक कुरीतियों के पीछे कहीं न कहीं परंपरागत रूप से चले आ रहे लिंगभेद की मानसिकता का ही बोध होता है। आज बेटियों के प्रति दोहरे रवैये के लिए पुरुष ही जिम्मेदार हैं। आज घरेलू हिंसा और महिला उत्पीडऩ के मामलों में ज्यादातर संलिप्तता घर की महिलाओं का होता है। स्वाभाविक है कि लिंगभेद को लेकर समाज में एक गलत धारणा पुरुष समाज को लेकर व्याप्त है, जो बिल्कुल निराधार है।

Thursday, April 5, 2012

आदित्य उपाध्याय ने ठोका 112 रन


मनीपाल की विशाल जीत
भोपाल लक्ष्मीपति इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलाजी द्वारा आयोजित प्रथम लक्ष्मीपति टी-20 इंटर स्कूल क्रिकेट टूर्नामेंट में मनीपाल एकेडमी ने आरडी कान्वेंट को 177 रनों से पराजित किया। टॉस जीतकर मनीपाल एकेडमी ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 256 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया। आदित्य उपाध्याय ने 112 और सूरज ने 65 रनों का महत्वपूर्ण योगदान दिया। आरडी कान्वेंट के अजीत और रिची ने 1-1 विकेट लिए। जवाब में आरडी कान्वेंट की टीम 12 ओवरों में 80 रन बनाकर आल आउट हो गई। दीपक ने 12 न और मनप्रीत ने 11 रन बनाए। मनीपाल एकेडमी के आकाश ने 5 और सूरज ने 2 विकेट लिए। लक्ष्मीपति इंस्टीट्यूट के मैनेजिंग डायरेक्टर इंजीनियर शिव कुमार बंसल तथा सेंट जॉर्ज स्कूल के संस्थापक बी. थॉमस ने आदित्य उपाध्याय को मैन ऑफ द मैच का खिताब दिया।

Tuesday, April 3, 2012

चौतरफा मुश्किलों में घिरे कृपाशंकर सिंह




विलासराव देशमुख के बाद राज्य के एक और कांग्रेसी नेता मुंबई अध्यक्ष व पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह पर मुंबई उच्च न्यायालय ने अपना हथौड़ा चलाया है और उनकी बेहिसाब संपत्ति को ज़ब्त कर उनके व उनके परिवार के खिला़फ आर्थिक अपराध दाखिल करने का निर्देश पुलिस को दिया. राज्य में भ्रष्टाचार की परत-दर-परत उधड़ रही है और हमारे नेता आत्ममुग्ध नज़र आ रहे हैं.
जब तक अदालती हथौड़ा नहीं पड़ता है तब तक उनका संरक्षण पार्टी संगठन सहित सरकार भी करती नज़र आती है. अब मनपा, चुनाव नतीजों के परिणाम की उलटबांसी कहा जाए या अदालती हथौड़े की मार का नतीजा कि कृपाशंकर को तुरंत मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा.
महाराष्ट्र के राजनीतिक क्षितिज में इन दिनों का़फी उथल-पुथल मची हुई है, जिससे राजनीति को भी शर्मिंदगी ज़रूर महसूस होती होगी, पर राजनेताओं का शर्म से कोई नाता नहीं रहता है. आ़खिर वे माननीयों की बिरादरी से आते हैं.
अदालती हथौड़ा तो विलासराव देशमुख पर भी पड़ा है, जिन्हें फिल्म निर्माता सुभाष घई के लिए अपने पद का दुरुपयोग करने और क़ानून का उल्लंघन करने का सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ठहराया गया है, लेकिन उन पर अभी भी पार्टी आलाकमान की कृपादृष्टि बनी हुई और वह केंद्रीय मंत्रिमंडल के नगीने बने हुए हैं. साधारण सी बात है कि उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले से रोज़ी-रोटी की तलाश में कृपाशंकर मुंबई आए थे. पहले तो उन्हें रोजगार के लिए मुंबई में भटकना पड़ा. कृपाशंकर सिंह राजनीति में आने से पहले कुछ वर्षों तक एक दवा कंपनी में मशीन ऑपरेटर थे.

उसके बाद उन्होंने आलू-प्याज़ की दुकान लगानी शुरू की. उसी दरम्यान उनका कुछ कांग्रेसी नेताओं से संपर्क हुआ और उन्होंने राजनीति का दामन थाम लिया. उसके बाद उनके क़दम तेज़ी से राजनीति में बढ़ते चले गए. राजनीति में पावर हासिल करने के बाद तो कृपाशंकर सिंह का जैसे विवादों से चोली-दामन सा साथ हो गया. उनकी शिक्षा-दीक्षा को लेकर भी विवाद रहा है. हालांकि कृपाशंकर सिंह के अनुसार वह बीएससी यानी स्नातक हैं, लेकिन जौनपुर स्थित जयहिंद इंटर कॉलेज जहां उन्होंने पढ़ाई की है, उसके रिकॉर्ड के अनुसार वह 12वीं फेल हैं. इसका खुलासा भी मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता संजय तिवारी द्वारा सुचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने पर जौनपुर के जयहिंद इंटर कॉलेज के प्राचार्य ने स्कूल सर्टीफिकेट की कॉपी भेज कर सूचित किया कि वह 12वीं फेल हैं. इतना ही नहीं वर्ष 2004 और 2009 के विधानसभा चुनाव के दरम्यान कृपाशंकर सिंह ने जो एफीडेविट पेश किए थे, उसमें आयकर पैन कार्ड के नंबर भी अलग-अलग भरे थे. इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पत्नी और अपने नाम की उत्तर प्रदेश स्थित संपत्तियों की जानकारी नहीं दी थी. इसका मतलब यही है कि कृपाशंकर सिंह का पूरा साम्राज्य ही झूठ की नींव पर खड़ा है.

अब सवाल यह उठता है कि एक आलू-प्याज़ की दुकान लगाने वाला, दवा कंपनी में कुछ हज़ार की मशीन ऑपरेटर की नौकरी करने वाला एकाएक करोड़ों की संपत्ति का मालिक कैसे बन गया? यहां तो लोग आलू-प्याज़ की दुकान लगाते-लगाते ज़िदगी गुज़ार देते हैं, लेकिन एक अदद मकान तक नहीं बनवा पाते हैं. जैसे-जैसे जीवन की गाड़ी खींचते नज़र आते हैं, लेकिन कृपाशंकर सिंह तो एकदम से आसमान में ही पहुंच गए. उनका आर्थिक साम्राज्य महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक फैल गया. इसका राज़ क्या है? इस सवाल को लेकर लोगों की जिज्ञासा का जाग उठना स्वाभाविक है. दरअसल, वर्ष 2008 में कृपाशंकर सिंह के बेटे नरेंद्र सिंह की शादी झारखंड के राजनेता कमलेश सिंह की बेटी अंकिता के साथ हुई. उसके तुरंत बाद ही झारखंड में 4000 करोड़ रुपये के गोलमाल का मामला सामने आया, जिसमें वहां के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कौड़ा के साथ ही कृपाशंकर सिंह के समधी यानी नरेंद्र सिंह के ससुर कमलेश सिंह का नाम भी आया. इस मामले में कृपाशंकर सिंह का नाम भी सामने आया. यह भी पता चला कि उनकी पत्नी, पुत्रवधू और बेटे के बैंक खातों में करोड़ों रुपये का ट्रांसफर झारखंड से किया गया. इस बात के सामने आने के बाद से आरटीआई कार्यकर्ता संजय तिवारी ने उनकी बेनामी संपत्ति होने की शिकायत राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक विभाग में की थी. मगर यहां कृपाशंकर सिंह को पूरा राजकीय संरक्षण प्राप्त होने से जांच में कुछ खास प्रगति नहीं हो सकी. मामला जब न्यायालय में पहुंचा तो राज्य सरकार ने एसीबी की रिपोर्ट पेश कर दी. एसीबी की रिपोर्ट में कहा गया था कि कृपाशंकर सिंह के खिला़फ अपराध करने योग्य सबूत नहीं हैं. इस तरह तब उनको एसीबी की रिपोर्ट के आधार पर बेदाग़ बताकर छोड़ दिया गया. मगर बाद में एसीबी ने इस मामले में स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि जो रिपोर्ट गृह मंत्रालय द्वारा न्यायालय में पेश की गई है, उसकी जानकारी के बिना ऐसा किया गया. इससे यह बात तो सा़फ हो जाती है कि पूरी सरकार कृपाशंकर सिंह को बचाने में लगी थी. उसके बाद वर्ष 2009 में जब 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले का खुलासा हुआ तो इसके आरोपियों से भी कृपाशंकर सिंह व उनके बेटे नरेंद्र सिंह का संबंध होने की बात सामने आई. शाहिद बलवा के साथ बिजनेस पार्टनरशिप के तथ्य सामने आए. इसके बाद भी कृपाशंकर सिंह का कुछ नहीं बिगड़ा. इसका मुख्य कारण यह था कि कृपाशंकर सिंह कभी राज्य के गृह राज्यमंत्री की कुर्सी की शोभा बढ़ा चुके थे. उनकी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से अच्छी पटती थी. इसलिए पुलिस भी उनके खिला़फ गंभीरता से जांच कर कार्रवाई नहीं कर सकी. इसलिए विधान परिषद में विपक्ष के नेता विनोद तावड़े के इस दावे मे दम नज़र आता है कि अवैध संपत्ति की जांच में मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह को बचाने में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार व राज्य के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. प्रेस कांफ्रेंस में तावड़े ने कहा कि दरअसल भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की जांच में ढिलाई के लिए कृपाशंकर सिंह ने 19 साल बाद एकाएक शरद पवार और गृहमंत्री से मुलाक़ात की थी और उनसे दोषमुक्त करने का अनुरोध किया था. उसके बाद ही कृपा को बचाने की सरकारी कोशिशें त़ेज हो गईं और न्यायालय में एसीबी की रिपोर्ट को आधार बनाकर गृह मंत्रालय ने उनके खिला़फ सबूत न होने का हल़फनामा दायर किया था. कृपाशंकर पर राजकीय कृपा होने के बाद भी आरटीआई कार्यकर्ता ने हार नहीं मानी और राज्य के गृह मंत्रालय द्वारा इस मामले की एसीबी की गोपनीय जांच की रिपोर्ट न देने का हवाला देते हुए मुंबई उच्च न्यायालय में गए. उच्च न्यायालय से अवैध बेहिसाबी संपत्ति अर्जित करने पर कृपाशंकर सिंह के खिला़फ एसीबी को आपराधिक मामला दर्ज करने और उसकी विशेष दल से जांच कराने का अनुरोध किया. सरकार ने पुनः कृपाशंकर सिंह को न्यायालय में बचाने के भरपूर प्रयास किए, पर एसीबी के यह कहने पर कि उसने उन्हें मामले में कोई छूट नहीं दी है, सुनवाई दरम्यान इन सारे तथ्यों के सामने आने पर मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह और न्यायाधीश रोशन दलवी की खंडपीठ ने कड़ा रु़ख अपनाते हुए पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक को सीधे आदेश दिया कि पुलिस आयुक्त भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत कृपाशंकर सिंह पर आपराधिक कदाचार के लिए सरकार से मुक़दमा चलाने की अनुमति प्राप्त करें. कृपाशंकर सहित उनके परिजनों (पत्नी, बेटे, पुत्रवधू समेत) की चल-अचल संपत्ति के बारे में दस्तावेज़ी साक्ष्य एकत्र करें. खंडपीठ ने यह भी कहा कि कृपाशंकर की अचल संपत्ति को ज़ब्त कर लिया जाएगा, लेकिन प्रतिवादियों के बैंक खातों के संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि आरोप है कि पैसा उड़ा दिया गया है. खंडपीठ ने उक्त आदेश पर रोक लगाने के लिए कृपाशंकर सिंह के वकील द्वारा पेश याचिका को तत्काल खारिज कर दिया और पुलिस को अपने आदेश पर गंभीरता से अमल करने का आदेश है. उच्च न्यायालय के उक्त निर्देश के तत्काल बाद ही मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद से कृपाशंकर की छुट्टी कर दी गई. अदालत के गंभीर व सख्त रु़ख से ऐसा लगता है कि कृपाशंकर सिंह व उनके परिजन पूरी तरह क़ानून के घेरे में आ गए हैं. इसी के साथ उनकी मुश्किलों को दौर शुरू हो गया है. अब आरटीआई कार्यकर्ता संजय तिवारी को आशा है कि उनकी मेहनत रंग लाएगी और एक भ्रष्ट राजनेता के चेहरे को बेनक़ाब करने में कामयाबी मिलेगी. कृपाशंकर सिंह की संपत्तियों के संबंध में तिवारी का कहना है कि विधायक के रूप में कृपाशंकर सिंह को हर माह क़रीब 45 हज़ार रुपये मिलते हैं. उनके परिवार की इसके अलावा आय का अन्य कोई ज्ञात स्त्रोत नहीं है. इसलिए उनके द्वारा एकत्रित पूरी संपत्ति बेमानी है. अब देखना यह है कि राज्य सरकार कृपाशंकर सिंह पर मुक़दमा चलाने की अनुमति कब तक देती है? पुलिस आयुक्त कब तक उनके खिला़फ आय से अधिक बेहिसाबी संपत्ति एकत्र करने के दस्तावेज़ी सबूत जुटा पाते हैं? इस मामले से तो यह सा़फ हो गया है कि कृपाशंकर सिंह का भ्रष्टाचारियों से गहरा नाता है और उनका आर्थिक साम्राज्य पूरी तरह से ग़ैर क़ानूनी ढंग से एकत्रित करोड़ों रुपये के दम पर जुटाई गई है.
करोड़ों रुपये कहां गए

कृपाशंकर सिंह की पत्नी मालती देवी के बैंक खाते में वर्ष 2009 के मार्च से लेकर नवंबर तक यानी आठ माह की अवधि में 3 करोड़ 40 लाख रुपये का व्यवहार किया गया. इसी तरह उनके पुत्र नरेंद्र के बैंक खाते से दो साल में 60 करोड़ का लेन-देन का व्यवहार हुआ. कृपाशंकर की पुत्रवधू अंकिता के बैंक खाते से चार माह में 1 करोड़ 25 लाख और एक वर्ष में क़रीब 1 करोड़ 75 लाख का अलग से व्यवहार किया गया. इससे यह सवाल उठता है कि इनके खातों में एकदम रुपयों की इतनी बाढ़ आई कहां से और कहां गई? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि खातों से रक़म ग़ायब की जा चुकी है. इस बात का उल्लेख न्यायालयीन निर्देश में भी किया गया है.
कृपा शंकर के बेटे ने फिल्म व रियल इस्टेट कंपनियों में पैसा लगाया

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कौड़ा की करो़डों की रक़म को कृपाशंकर सिंह के पुत्र नरेंद्र द्वारा फिल्मों में भी निवेश किए जाने की चर्चा है. चर्चा है कि उसने उड़ान नामक एक फिल्म बनाई थी. इसके अलावा उसके द्वारा रियल इस्टेट का व्यवसाय करने वाली कंपनियों को भी क़रीब 22 करोड़ रुपये बिना ब्याज़ के देने के तथ्य भी सामने आए हैं. बहरहाल, इस मामले में राज्य की एसीबी अब तक इसका जवाब न्यायालय को स्पष्ट रूप से नहीं दे पाई है.
भ्रष्ट कमाई से जुटाई गई संपत्ति

पूर्वी बांद्रा में बांद्रा-कुर्ला संकुल के एचडीआईएल के आलीशान व्यापारी संकुल में 22 हज़ार 500 चौरस फुट का कार्यालय.
पूर्वी बांद्रा-कुर्ला संकुल के ट्रेड-लिंक, वाधवा बिल्डिंग में 12 हज़ार चौरस फुट का कार्यालय
पश्चिम बांद्रा में स्थित कार्टर रोड में 423 चौरस मीटर क्षेत्रफल का आलीशान तरंग बंगला.
पश्चिम बांद्रा में ही माउंट मेरी मार्ग पर आलीशान इमारत में फ्लैट.
विले पारले के पूर्व में स्थित वीर घाणेकर मार्ग पर जूपीटर बिल्डिंग में छठवीं एवं सातवीं मंज़िल पर 1355 चौरस फुट में निर्मित व 550 चौरस फुट का छत सहित फ्लैट.
भांडुप के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित लाल बहादुर शास्त्री मार्ग पर एचडीआईएल बिल्डिंग में दुकानें.
सांताक्रूज टाऊन प्लानिंग स्कीम क्रमांक 4, सीटीएस 445, वांद्रे दांडा में 959 यार्ड का भूखंड.
अंधेरी पूर्व में पवई में किंगस्टन बी में 401 क्रमांक की 700 चौरस फुट और 1006 क्रमांक का फ्लैट (मुख्यमंत्री के कोटे से हासिल किया हुआ).
पश्चिम बांद्रा में टर्नर रोड में स्थित आलीशान इमारत अफेयर में 401 क्रमांक के 2000 चौरस फुट का फ्लैट.
पवई स्थित हिरानंदानी गार्डन में स्थित भव्य व्यापारी संकुल में 38 व 39 क्रमांक के 930 चौरस फुट की दुकानें.
कुर्ला स्थित हिरानंदानी गार्डंस की अब्रोसिया बहुमंज़िली इमारत में 202 क्रमांक का फ्लैट.
रत्नागिरी, वडापेठ में 250 एकड़ का भूखंड.
उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले में 8000 चौरस फुट का व्यावसायिक परिसर.
पनवेल में 1100 चौरस फुट की दुकानें.
कोंकण के राजापुर तहसील में भी कृपाशंकर का 100 एकड़ का बाग़ होने का भी पता चला है.

भेड़ाघाट में नर्मदा का सौंदर्य देखने उमड़ती है भीड़

मध्य प्रदेश में जबलपुर शहर के बगल में नर्मदा नदी के गोद में बसा एक जगह जहाँ घुमती सड़कें उचाइयों की तरफ बढ रही थी,पेड़ों से पटी झुरमुठ के पिछे से झांकती झाड़ियाँ,जो उस जगह के लिए किसी नवविवाहिता के द्वारा प्रयुक्त श्रिंगार प्रशाधन से कम न थी.
चारों तरफ फैली बड़ी-बड़ी चट्टानें खुद में अटल एवं आभायुक्त चरित्र को समेटे हुए थी.उन चरित्रों को उभारनें का कार्य वहाँ के शिल्पकार कर रहे थे,जो उनकी जीविका का साधन एवं आगन्तुकों के आकर्षण के केन्द्र भी थे.कलाक्रितियाँ ऐसी जो बरबस ही आगन्तुकों की भीड़ को अपनी ओर खींच रही थी.
आगे बढने पर नीचे उतरते पथरीले -संकड़े रास्ते,जहाँ सुरज की किरणें चारों तरफ व्याप्त संगमरमर के वास्तविक चरित्र के प्रदर्शन में अपना योगदान दे रही थी.नदजल की कलकल ध्वनी जो उँचाई से गिरने पर कर्णप्रिय संगित के रुप में हमारे कानों तक पहुँच रही थी तथा जल की बुंदे उँचाई से गिरने पर फुहरों में परिवर्तित हो कपासी प्रतिरुप प्रदर्शित कर रही थी.
नर्मदा एवं बैण-गंगा की सम्मिलित तेज धारा एवं गहरी खाई,जो हमारे दिल की धड़कनों को तेज कर रही थी और अनजान खतरे से आगाह भी.कुल मिलाकर एक ऐसा मनोरम जगह जो हमारे मन को आह्लादित एवं नयनों को त्रिप्ती की परकाष्ठा तक ले जा रहा था.
हम धुआंधार के सामने खड़े हैं। सामने यानी रेलिंग पर। नर्मदा यहां कोई 10-12 फीट नीचे खड्ड में गिरती है और फुहारों के साथ ऊपर उछलती है, मचलती है। गेंद की तरह टप्पा खाकर फब्वारों साथ ऊपर कूदती है । यहां नर्मदा का मनोरम सौंदर्य अपने चरम पर होता है। घंटों निहारते रहो, फिर भी मन न भरे। जल प्रपात का ऐसा नजारा शायद ही कहीं और देखने को मिले।

धुआंधार के सामने दोनों ओर कतारबद्ध संगमरमर की चटानें हैं, जो नर्मदा का रास्ता रोकती हैं। इन मार्बल राक्स की बनावट ऐसी है कि लगता है इन्हें किसी धारदार छेनी से तराशा गया हो। चट्टानों की बीच नर्मदा सिकुड़ती जाती है पर वह अपने वेग में बलखाती, इठलाती और अठखेलियां करती आगे बढ़ती जाती है। मानो कह रही हो "मुझे कोई नहीं रोक सकता।

यहां ’रोपवे’ भी हैं लेकिन मेरे बेटे ने इस पर यह कहकर जाने से मना कर दिया कि यह विकलांगों के लिए है। हम तो पैदल चलकर ही जाएंगे। यानी यह जेब ढीली करने का ही साधन है।

संझा आरती का समय है। भक्तजन नर्मदा मैया की आरती कर रहे हैं। दीया जलाकर लोग आरती कर रहे हैं और कुछ लोग नर्मदा में दीप प्रवाह कर रहे हैं। कर्तल ध्वनि के साथ आरती में बहुत से लोग शामिल हो गए हैं। आरती के पशचात प्रसाद वितरण हो रहा है।

कुछ परिक्रमावासी ’हर-हर नर्बदे’ का जयकारा कर रहे हैं। पहले लोग नर्मदा के एक छोर से दूसरे छोर तक और वापस उसी स्थान तक पैदल ही परिक्रमा करते थे। अब भी कुछ लोग करते हैं। लेकिन अब बस या ट्रेन से भी परिक्रमा करने लगे हैं।

जीवनदायिनी नर्मदा की महिमा युगों-युगों से लोग गाते आ रहे हैं। लेकिन अब नर्मदा संकट में है। बरसों से नर्मदा बचाओ की लड़ाई लड़ी जा रही है। इस पर बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं। मैं वापस लौटते समय सोच रहा था कि क्या इस जीवनदायिनी मनोरम सौंदर्य की नदी को बचाया नहीं जा सकता?
दम तोड़ रही हैं सतपुडा की नदियां

आमतौर पर जब कभी नदियों पर बात होती है तो ज्यादातर वह बड़ी नदियों पर केंद्रित होती है। लेकिन इन सदानीरा नदियों का पेट भरने वाली छोटी नदियों पर हमारा ध्यान नहीं जाता, जो आज अभूतपूर्व संकट से गुजर रही हैं। अगर हम नजर डालें तो पाएंगे कि कई छोटी-बडी नदियां या तो सूख चुकी हैं या फिर बरसाती नाले बनकर रह गई हैं। गांव-समाज के बीच से तालाब, कुंए और बाबडी जैसे परंपरागत पानी के स्रोत तो पहले से ही खत्म हो गए हैं। अब इन छोटी नदियों पर आए संकट से बडी नदियां तो प्रभावित हो ही रही हैं। जनजीवन के साथ पशु-पक्षी और वन्य- जीवों को भी परेशानी का सामना करना पड रहा है।

देश-दुनिया में नदियों के किनारे ही सभ्यताएं पल्लवित-पुष्पित हुई है। जहां जल है, वहां जीवन है। लेकिन आज नदियां धीरे-धीरे दम तोड रही हैं। नदियों का प्रवाह अवरूद्ध हो रहा है। वर्षों पुरानी नदी संस्कृति खत्म रही है। उनमें पानी नहीं हैं, पानी को स्पंज की तरह सोखकर रखने वाली रेत नहीं है। सतपुडा अंचल की बारहमासी सदानीरा नदियां या तो सूख गई है या बारिश में ही उनकी जलधारा प्रवाहित होती हैं, फिर टूट जाती है। उनके किनारे लगे हरे-भरे पेड और उन पर रहने वाले पक्षी भी अब नजर नहीं आते। यानी पानी बिना सब सून।

मध्यप्रदेश में सतपुड़ा पहाड और जंगल कई छोटे-बडे नदी-नालों का उद्‌गम स्थल है। पहाड और जंगलों में पेड पानी को जडों में संचित करके रखते हैं और धीरे-धीरे वह पानी रिसकर नदियों में जलधाराओं के रूप में प्रवाहित होता है। और एक्वीफर के माध्यम से संचित पानी भूजल में संग्रहीत होता है।

जंगल कम हो रहे हैं। कुछ वर्षों से बारिश कम हो रही है या खन्ड बारिश हो रही है । बार-बार सूखा पड रहा है। इसके अलावा, नदियों के तट पर बडी तादाद में ट्‌यूबवेल खनन किए जा रहे हैं। डीजल पंप से सीधे पानी को खेतों में लिफट करके सिंचाई की जा रही है। स्टापडेम बनाकर पानी को उपर ही रोक लिया जाता है, जिससे जलधारा आगे नहीं बढ पाती। उद्योगीकरण और शहरीकरण बढ रहा है। ज्यादा पानी वाली फसलें लगाई जा रही हैं। बेहिसाब पानी इस्तेमाल किया जा रहा है।

सतपुडा की दुधी, मछवासा, आंजन, ओल, पलकमती और कोरनी जैसी नदियां धीरे-धीरे दम तोड रही हैं। देनवा में अभी पानी नजर आता है लेकिन उसमें भी साल दर साल पानी कम होता जा रहा है। तवा और देनवा में भी पानी कम है। अमरकंटक से निकलकर इस इलाके से गुजरने वाली सबसे बडी नर्मदा भी इसी इलाके से गुजरती है। इनमें से ज्यादातर नदियां नर्मदा में मिलती हैं। इनके सूखने से नर्मदा भी प्रभावित हो रही है।

अगर हम मध्यप्रदेद्गा के पूर्वी छोर पर होशंगाबाद और नरसिंहपुर जिले विभक्त करने वाली दुधी नदी की बात करें, तो नदियों के संकट को समझा जा सकता है। यह नदी कुछ वर्ष पहले तक एक बारहमासी सदानीरा नदी थी। दुधी यानी दूध के समान। साफ और स्वच्छ। छिंदवाड़ा जिले में महादेव की पहाडियों से पातालकोट से दुधी निकलती है और सांडिया से ऊपर खैरा नामक स्थान में नर्मदा में आकर मिलती है। यह नर्मदा की सहायक नदी है। पर आज दुधी में एक बूंद भी पानी नहीं ढूंढने से नहीं मिलता। बारिश के दिनों में ही पानी रहता है और अप्रैल-मई माह तक आते-आते पानी की धार टूट जाती है और रेत ही रेत नजर आती है।

जहां कभी पानी होने के कारण नदी में जनजीवन की चहल-पहल होती थी, पशु-पक्षी पानी पीते थे। बरौआ- कहार समुदाय के लोग इसकी रेत में डंगरवारी तरबूज-खरबूज की खेती करते थे। धोबी कपडे धोते थे, मछुआरे मछली पकड ते थे, केंवट समुदाय के लोग जूट के रेशों से रस्सी बनाते थे। वहां अब सन्नाटा पसरा रहता है। नदी संस्कृति खत्म हो गई है। अब लोग नदी के स्थान पर हैंडपंप और ट्‌यूबवेल पर आश्रित हो गए हैं, जिनकी अपनी सीमाएं हैं।

इसी जिले के पिपरिया कस्बे से गुजरने वाली मछवासा नदी भी सूख चुकी है। सोहागपुर की पलकमती कचरे से पट गई है। इन नदियों में जो पानी दिखता है, वह नदियों का नहीं, शहरों की गंदी नालियों का है। पलकमती से ही पूरे सोहागपुर का निस्तार होता था। सोहागपुर का रंगाई उद्योग और पानी की खेती दूर-दूर तक मशहूर थे। अब यह खेती अपनी अंतिम सांसें गिन रही है।


तवा और नर्मदा पर बांध बनाए गए हैं। उनसे सैकडों गांव विस्थापित हुए। जबसे बरगी बांध बना है तबसे तरबूज-खरबूज की खेती चौपट हो गई है। बरगी बांध १९९० में बन गया लेकिन उसकी नहरें आज तक नहीं बनी। इसलिए बांध में ज्यादा पानी रहता है तो छोड दिया जाता है जिससे डंगरवारी बह जाती है। नर्मदा बांध बनने से उसमें मछलियां भी कम हो गई है।

हालांकि नर्मदा उसकी कई सहायक नदियों के सूखने के कारण वह बहुत कमजोर हो गई है। लेकिन हम इस सबसे नहीं चेत रहे हैं और पानी का बेहिसाब इस्तेमाल से पानी के स्रोतों को ही खत्म कर रहे है, जो शायद फिर पुनर्जीवित न हो सकें। अगर हमें बड़ी नदियों को बचाना है तो छोटी नदियों पर ध्यान देना होगा। छोटी नदियों का संरक्षण जरूरी है। अगर हम इन पर छोटे-छोटे स्टापडेम बनाकर जल संग्रह करें तो नदियां भी बचेंगी और खेती में भी सुधार संभव है।