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भेड़ाघाट

Tuesday, April 3, 2012

चौतरफा मुश्किलों में घिरे कृपाशंकर सिंह




विलासराव देशमुख के बाद राज्य के एक और कांग्रेसी नेता मुंबई अध्यक्ष व पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह पर मुंबई उच्च न्यायालय ने अपना हथौड़ा चलाया है और उनकी बेहिसाब संपत्ति को ज़ब्त कर उनके व उनके परिवार के खिला़फ आर्थिक अपराध दाखिल करने का निर्देश पुलिस को दिया. राज्य में भ्रष्टाचार की परत-दर-परत उधड़ रही है और हमारे नेता आत्ममुग्ध नज़र आ रहे हैं.
जब तक अदालती हथौड़ा नहीं पड़ता है तब तक उनका संरक्षण पार्टी संगठन सहित सरकार भी करती नज़र आती है. अब मनपा, चुनाव नतीजों के परिणाम की उलटबांसी कहा जाए या अदालती हथौड़े की मार का नतीजा कि कृपाशंकर को तुरंत मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा.
महाराष्ट्र के राजनीतिक क्षितिज में इन दिनों का़फी उथल-पुथल मची हुई है, जिससे राजनीति को भी शर्मिंदगी ज़रूर महसूस होती होगी, पर राजनेताओं का शर्म से कोई नाता नहीं रहता है. आ़खिर वे माननीयों की बिरादरी से आते हैं.
अदालती हथौड़ा तो विलासराव देशमुख पर भी पड़ा है, जिन्हें फिल्म निर्माता सुभाष घई के लिए अपने पद का दुरुपयोग करने और क़ानून का उल्लंघन करने का सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ठहराया गया है, लेकिन उन पर अभी भी पार्टी आलाकमान की कृपादृष्टि बनी हुई और वह केंद्रीय मंत्रिमंडल के नगीने बने हुए हैं. साधारण सी बात है कि उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले से रोज़ी-रोटी की तलाश में कृपाशंकर मुंबई आए थे. पहले तो उन्हें रोजगार के लिए मुंबई में भटकना पड़ा. कृपाशंकर सिंह राजनीति में आने से पहले कुछ वर्षों तक एक दवा कंपनी में मशीन ऑपरेटर थे.

उसके बाद उन्होंने आलू-प्याज़ की दुकान लगानी शुरू की. उसी दरम्यान उनका कुछ कांग्रेसी नेताओं से संपर्क हुआ और उन्होंने राजनीति का दामन थाम लिया. उसके बाद उनके क़दम तेज़ी से राजनीति में बढ़ते चले गए. राजनीति में पावर हासिल करने के बाद तो कृपाशंकर सिंह का जैसे विवादों से चोली-दामन सा साथ हो गया. उनकी शिक्षा-दीक्षा को लेकर भी विवाद रहा है. हालांकि कृपाशंकर सिंह के अनुसार वह बीएससी यानी स्नातक हैं, लेकिन जौनपुर स्थित जयहिंद इंटर कॉलेज जहां उन्होंने पढ़ाई की है, उसके रिकॉर्ड के अनुसार वह 12वीं फेल हैं. इसका खुलासा भी मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता संजय तिवारी द्वारा सुचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने पर जौनपुर के जयहिंद इंटर कॉलेज के प्राचार्य ने स्कूल सर्टीफिकेट की कॉपी भेज कर सूचित किया कि वह 12वीं फेल हैं. इतना ही नहीं वर्ष 2004 और 2009 के विधानसभा चुनाव के दरम्यान कृपाशंकर सिंह ने जो एफीडेविट पेश किए थे, उसमें आयकर पैन कार्ड के नंबर भी अलग-अलग भरे थे. इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पत्नी और अपने नाम की उत्तर प्रदेश स्थित संपत्तियों की जानकारी नहीं दी थी. इसका मतलब यही है कि कृपाशंकर सिंह का पूरा साम्राज्य ही झूठ की नींव पर खड़ा है.

अब सवाल यह उठता है कि एक आलू-प्याज़ की दुकान लगाने वाला, दवा कंपनी में कुछ हज़ार की मशीन ऑपरेटर की नौकरी करने वाला एकाएक करोड़ों की संपत्ति का मालिक कैसे बन गया? यहां तो लोग आलू-प्याज़ की दुकान लगाते-लगाते ज़िदगी गुज़ार देते हैं, लेकिन एक अदद मकान तक नहीं बनवा पाते हैं. जैसे-जैसे जीवन की गाड़ी खींचते नज़र आते हैं, लेकिन कृपाशंकर सिंह तो एकदम से आसमान में ही पहुंच गए. उनका आर्थिक साम्राज्य महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक फैल गया. इसका राज़ क्या है? इस सवाल को लेकर लोगों की जिज्ञासा का जाग उठना स्वाभाविक है. दरअसल, वर्ष 2008 में कृपाशंकर सिंह के बेटे नरेंद्र सिंह की शादी झारखंड के राजनेता कमलेश सिंह की बेटी अंकिता के साथ हुई. उसके तुरंत बाद ही झारखंड में 4000 करोड़ रुपये के गोलमाल का मामला सामने आया, जिसमें वहां के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कौड़ा के साथ ही कृपाशंकर सिंह के समधी यानी नरेंद्र सिंह के ससुर कमलेश सिंह का नाम भी आया. इस मामले में कृपाशंकर सिंह का नाम भी सामने आया. यह भी पता चला कि उनकी पत्नी, पुत्रवधू और बेटे के बैंक खातों में करोड़ों रुपये का ट्रांसफर झारखंड से किया गया. इस बात के सामने आने के बाद से आरटीआई कार्यकर्ता संजय तिवारी ने उनकी बेनामी संपत्ति होने की शिकायत राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक विभाग में की थी. मगर यहां कृपाशंकर सिंह को पूरा राजकीय संरक्षण प्राप्त होने से जांच में कुछ खास प्रगति नहीं हो सकी. मामला जब न्यायालय में पहुंचा तो राज्य सरकार ने एसीबी की रिपोर्ट पेश कर दी. एसीबी की रिपोर्ट में कहा गया था कि कृपाशंकर सिंह के खिला़फ अपराध करने योग्य सबूत नहीं हैं. इस तरह तब उनको एसीबी की रिपोर्ट के आधार पर बेदाग़ बताकर छोड़ दिया गया. मगर बाद में एसीबी ने इस मामले में स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि जो रिपोर्ट गृह मंत्रालय द्वारा न्यायालय में पेश की गई है, उसकी जानकारी के बिना ऐसा किया गया. इससे यह बात तो सा़फ हो जाती है कि पूरी सरकार कृपाशंकर सिंह को बचाने में लगी थी. उसके बाद वर्ष 2009 में जब 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले का खुलासा हुआ तो इसके आरोपियों से भी कृपाशंकर सिंह व उनके बेटे नरेंद्र सिंह का संबंध होने की बात सामने आई. शाहिद बलवा के साथ बिजनेस पार्टनरशिप के तथ्य सामने आए. इसके बाद भी कृपाशंकर सिंह का कुछ नहीं बिगड़ा. इसका मुख्य कारण यह था कि कृपाशंकर सिंह कभी राज्य के गृह राज्यमंत्री की कुर्सी की शोभा बढ़ा चुके थे. उनकी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से अच्छी पटती थी. इसलिए पुलिस भी उनके खिला़फ गंभीरता से जांच कर कार्रवाई नहीं कर सकी. इसलिए विधान परिषद में विपक्ष के नेता विनोद तावड़े के इस दावे मे दम नज़र आता है कि अवैध संपत्ति की जांच में मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह को बचाने में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार व राज्य के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. प्रेस कांफ्रेंस में तावड़े ने कहा कि दरअसल भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की जांच में ढिलाई के लिए कृपाशंकर सिंह ने 19 साल बाद एकाएक शरद पवार और गृहमंत्री से मुलाक़ात की थी और उनसे दोषमुक्त करने का अनुरोध किया था. उसके बाद ही कृपा को बचाने की सरकारी कोशिशें त़ेज हो गईं और न्यायालय में एसीबी की रिपोर्ट को आधार बनाकर गृह मंत्रालय ने उनके खिला़फ सबूत न होने का हल़फनामा दायर किया था. कृपाशंकर पर राजकीय कृपा होने के बाद भी आरटीआई कार्यकर्ता ने हार नहीं मानी और राज्य के गृह मंत्रालय द्वारा इस मामले की एसीबी की गोपनीय जांच की रिपोर्ट न देने का हवाला देते हुए मुंबई उच्च न्यायालय में गए. उच्च न्यायालय से अवैध बेहिसाबी संपत्ति अर्जित करने पर कृपाशंकर सिंह के खिला़फ एसीबी को आपराधिक मामला दर्ज करने और उसकी विशेष दल से जांच कराने का अनुरोध किया. सरकार ने पुनः कृपाशंकर सिंह को न्यायालय में बचाने के भरपूर प्रयास किए, पर एसीबी के यह कहने पर कि उसने उन्हें मामले में कोई छूट नहीं दी है, सुनवाई दरम्यान इन सारे तथ्यों के सामने आने पर मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह और न्यायाधीश रोशन दलवी की खंडपीठ ने कड़ा रु़ख अपनाते हुए पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक को सीधे आदेश दिया कि पुलिस आयुक्त भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत कृपाशंकर सिंह पर आपराधिक कदाचार के लिए सरकार से मुक़दमा चलाने की अनुमति प्राप्त करें. कृपाशंकर सहित उनके परिजनों (पत्नी, बेटे, पुत्रवधू समेत) की चल-अचल संपत्ति के बारे में दस्तावेज़ी साक्ष्य एकत्र करें. खंडपीठ ने यह भी कहा कि कृपाशंकर की अचल संपत्ति को ज़ब्त कर लिया जाएगा, लेकिन प्रतिवादियों के बैंक खातों के संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि आरोप है कि पैसा उड़ा दिया गया है. खंडपीठ ने उक्त आदेश पर रोक लगाने के लिए कृपाशंकर सिंह के वकील द्वारा पेश याचिका को तत्काल खारिज कर दिया और पुलिस को अपने आदेश पर गंभीरता से अमल करने का आदेश है. उच्च न्यायालय के उक्त निर्देश के तत्काल बाद ही मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद से कृपाशंकर की छुट्टी कर दी गई. अदालत के गंभीर व सख्त रु़ख से ऐसा लगता है कि कृपाशंकर सिंह व उनके परिजन पूरी तरह क़ानून के घेरे में आ गए हैं. इसी के साथ उनकी मुश्किलों को दौर शुरू हो गया है. अब आरटीआई कार्यकर्ता संजय तिवारी को आशा है कि उनकी मेहनत रंग लाएगी और एक भ्रष्ट राजनेता के चेहरे को बेनक़ाब करने में कामयाबी मिलेगी. कृपाशंकर सिंह की संपत्तियों के संबंध में तिवारी का कहना है कि विधायक के रूप में कृपाशंकर सिंह को हर माह क़रीब 45 हज़ार रुपये मिलते हैं. उनके परिवार की इसके अलावा आय का अन्य कोई ज्ञात स्त्रोत नहीं है. इसलिए उनके द्वारा एकत्रित पूरी संपत्ति बेमानी है. अब देखना यह है कि राज्य सरकार कृपाशंकर सिंह पर मुक़दमा चलाने की अनुमति कब तक देती है? पुलिस आयुक्त कब तक उनके खिला़फ आय से अधिक बेहिसाबी संपत्ति एकत्र करने के दस्तावेज़ी सबूत जुटा पाते हैं? इस मामले से तो यह सा़फ हो गया है कि कृपाशंकर सिंह का भ्रष्टाचारियों से गहरा नाता है और उनका आर्थिक साम्राज्य पूरी तरह से ग़ैर क़ानूनी ढंग से एकत्रित करोड़ों रुपये के दम पर जुटाई गई है.
करोड़ों रुपये कहां गए

कृपाशंकर सिंह की पत्नी मालती देवी के बैंक खाते में वर्ष 2009 के मार्च से लेकर नवंबर तक यानी आठ माह की अवधि में 3 करोड़ 40 लाख रुपये का व्यवहार किया गया. इसी तरह उनके पुत्र नरेंद्र के बैंक खाते से दो साल में 60 करोड़ का लेन-देन का व्यवहार हुआ. कृपाशंकर की पुत्रवधू अंकिता के बैंक खाते से चार माह में 1 करोड़ 25 लाख और एक वर्ष में क़रीब 1 करोड़ 75 लाख का अलग से व्यवहार किया गया. इससे यह सवाल उठता है कि इनके खातों में एकदम रुपयों की इतनी बाढ़ आई कहां से और कहां गई? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि खातों से रक़म ग़ायब की जा चुकी है. इस बात का उल्लेख न्यायालयीन निर्देश में भी किया गया है.
कृपा शंकर के बेटे ने फिल्म व रियल इस्टेट कंपनियों में पैसा लगाया

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कौड़ा की करो़डों की रक़म को कृपाशंकर सिंह के पुत्र नरेंद्र द्वारा फिल्मों में भी निवेश किए जाने की चर्चा है. चर्चा है कि उसने उड़ान नामक एक फिल्म बनाई थी. इसके अलावा उसके द्वारा रियल इस्टेट का व्यवसाय करने वाली कंपनियों को भी क़रीब 22 करोड़ रुपये बिना ब्याज़ के देने के तथ्य भी सामने आए हैं. बहरहाल, इस मामले में राज्य की एसीबी अब तक इसका जवाब न्यायालय को स्पष्ट रूप से नहीं दे पाई है.
भ्रष्ट कमाई से जुटाई गई संपत्ति

पूर्वी बांद्रा में बांद्रा-कुर्ला संकुल के एचडीआईएल के आलीशान व्यापारी संकुल में 22 हज़ार 500 चौरस फुट का कार्यालय.
पूर्वी बांद्रा-कुर्ला संकुल के ट्रेड-लिंक, वाधवा बिल्डिंग में 12 हज़ार चौरस फुट का कार्यालय
पश्चिम बांद्रा में स्थित कार्टर रोड में 423 चौरस मीटर क्षेत्रफल का आलीशान तरंग बंगला.
पश्चिम बांद्रा में ही माउंट मेरी मार्ग पर आलीशान इमारत में फ्लैट.
विले पारले के पूर्व में स्थित वीर घाणेकर मार्ग पर जूपीटर बिल्डिंग में छठवीं एवं सातवीं मंज़िल पर 1355 चौरस फुट में निर्मित व 550 चौरस फुट का छत सहित फ्लैट.
भांडुप के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित लाल बहादुर शास्त्री मार्ग पर एचडीआईएल बिल्डिंग में दुकानें.
सांताक्रूज टाऊन प्लानिंग स्कीम क्रमांक 4, सीटीएस 445, वांद्रे दांडा में 959 यार्ड का भूखंड.
अंधेरी पूर्व में पवई में किंगस्टन बी में 401 क्रमांक की 700 चौरस फुट और 1006 क्रमांक का फ्लैट (मुख्यमंत्री के कोटे से हासिल किया हुआ).
पश्चिम बांद्रा में टर्नर रोड में स्थित आलीशान इमारत अफेयर में 401 क्रमांक के 2000 चौरस फुट का फ्लैट.
पवई स्थित हिरानंदानी गार्डन में स्थित भव्य व्यापारी संकुल में 38 व 39 क्रमांक के 930 चौरस फुट की दुकानें.
कुर्ला स्थित हिरानंदानी गार्डंस की अब्रोसिया बहुमंज़िली इमारत में 202 क्रमांक का फ्लैट.
रत्नागिरी, वडापेठ में 250 एकड़ का भूखंड.
उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले में 8000 चौरस फुट का व्यावसायिक परिसर.
पनवेल में 1100 चौरस फुट की दुकानें.
कोंकण के राजापुर तहसील में भी कृपाशंकर का 100 एकड़ का बाग़ होने का भी पता चला है.

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