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भेड़ाघाट

Friday, May 27, 2011

तिहाड़ बना रसूखदारों का आशियाना

दिल्ली का तिहाड़ जेल इन दिनों रसूखदारों का आशियाना बना हुआ है। कभी देश-प्रदेश की दिशा और दशा निर्धारित करने वाले इन लोगों की दुर्दशा देखकर दूसरे अचंभित हो रहे हैं। ऐसे लोगों की आमद से देश की इस सर्वाधिक चर्चित जेल में फिलहाल हाई-प्रोफाइल राजनेता और कॉरपोरेट दिग्गज मेहमान बने हुए हैं। वहां कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें पिछले दो दशकों के दौरान समय-समय पर अदालतों ने सजा-ए-मौत सुनाई। अपराध साबित होने के बाद भी वे फल-फूल रहे हैं। अपराध की दुनिया में जिनकी कभी तूती बोलती थी, उन्होंने तिहाड़ जेल को ही अपना आशियाना बना लिया है। अपने दिमागी कौशल से वे कानून व्यवस्था की खामियों का पूरा फायदा उठा रहे हैं। तिहाड़ जेल में भीड़ तेजी से बढ़ती जा रही है। जो लोग पिछले कुछ सालों से देश को किसी निजी जागीर की तरह इस्तेमाल कर रहे थे, उनके लिए दिल्ली की तिहाड़ जेल कांटों भरी सेज बन गई है।
रूसी उपन्यासकार फ्योदोर दोस्तोयेवस्की ने लिखा था, कोई भी समाज कितना सभ्य है, इसका आकलन उसकी जेलों में जाकर किया जा सकता है। तो क्या सचमुच ऐसा ही है, तिहाड़ की बात छोडि़ए, दिल्ली का केंद्रीय कारागार फिलहाल असाधारण रूप से व्यस्त स्थान बन गया है। अमीर और प्रसिद्ध लोगों का, राजकीय अतिथि के तौर पर सीखचों के पीछे रहकर समय बिताना, यहां की पुरानी परंपरा रही है। यहां रहने वाले विशेष लोगों में एक बात समान है। सभी पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे हैं। इन लोगों ने हाल के दो बड़े मामलों यानी टू-जी स्पेक्ट्रम और कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर देश के खजाने को अरबों रुपये की चपत लगाई है। इन हाई-प्रोफाइल लोगों में जाने-माने राजनेता, कॉरपोरेट दिग्गज, राजनीतिक दलाल और क्षुद्र अधिकारी शामिल हैं। हालात और कानून ने इन्हें ठाट-बाट और शानो-शौकत भरी जीवनशैली छोड़ वंचितों की तरह मुश्किल जीवन जीने को मजबूर कर दिया। डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि की बेटी और सांसद कनीमोझी को ही लें। उन पर टू-जी घोटाले में डीबी रियलिटी से 200 करोड़ रुपये रिश्वत लेने का आरोप है। उन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने यह राशि क्लंैग्नार टीवी के खाते में स्थानांतरित कर दी, जिसमें उनकी मां दयालुअम्मा की 60 फीसदी हिस्सेदारी है, 20 फीसदी हिस्सेदारी सांसद कनीमोझी की और 20 फीसदी हिस्सेदारी क्लैंग्नार के निदेशक शरद कुमार की है। शरद भी फिलहाल तिहाड़ जेल में हैं।
कनिमोझी
कनिमोझी तिहाड़ के कारागार संख्या छह में बंद हैं। यहां उनका साथ निभा रही हैं देह व्यापार का धंधा करने वाली विवादस्पद सोनू पंजाबन, कथित पाकिस्तानी जासूस माधुरी गुप्ता और दिल्ली के निगम पार्षद की हत्या कीआरोपी शारदा। सचमुच! जेल समानता का बेहतरीन मंच है, और इस मामले में तिहाड़ का कोई जवाब नहीं। इसे कनीमोझी की किस्मत और संयोग ही मानिए कि अब तिहाड़ के कैंटीन में दक्षिण भारतीय व्यंजन यानी डोसा, इडली और सांभर भी उपलब्ध हैं। नई दिल्ली और चेन्नई के सत्ता के गलियारों से होते हुए अब वह 10 गुणा 12 के एक छोटे कमरे में आराम फरमा रही हैं। हालांकि तिहाड़ के तमाम दूसरे कैदियों के विपरीत उनका सेल काफी सुसज्जित है। उन्हें टीवी, लाइट, फैन, अखबार और पाश्चात्य शैली वाले टॉयलेट की सुविधा मुहैया है। कनीमोझी का सेल इसलिए भी खास है, क्योंकि वहां जेल कर्मियों के अलावा कोई नहीं पहुंच सकता। सुरक्षा के भी तगड़े इंतजाम हैं।
ए राजा
अनुमान लगाइए, पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा कैसे होंगे? उन पर गैरकानूनी तरीके से टू-जी स्पेक्ट्रम आवंटन कर भारत सरकार कोएक लाख सत्तर हजार करोड़ रुपये की चपत लगाने का आरोप है। फिलहाल तिहाड़ के कारागार संख्या तीन के 10 गुणा 15 फीट वाले सेल में बैठ कर वह तमाम चीजें सीख रहे हैं। खांटी तमिल, राजा को हिंदी सिखा रहे हैं, दिल्ली के कनॉट प्लेस में गलती से निर्दोष लोगों को मार गिराने के आरोप में बंद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट एसीपी एसएस राठी। सत्ता के शिखर से तिहाड़ तक की गहरी और अंधकारमय यात्रा ने इस पूर्व मंत्री के रुतबे को काफी कम कर दिया है। राजा की दिनचर्या काफी व्यवस्थित है। वह सुबह पांच बजे उठते हैं और थोड़ा-बहुत व्यायाम करते हैं। रोज शेविंग बनवाना उनकी दिनचर्या में शामिल है। अंग्रेजी के तीन अखबार पढऩे के साथ उनके दिन की शुरुआत होती है। जेल अधिकारियों के मुताबिक, राजा सौम्य आचरण और अच्छे व्यवहार वाले व्यक्ति हैं।
अब जरा विडंबनाओं की विडंबना देखिए! राजा पर दूरसंचार बजट का आधा हिस्सा हथियाने का आरोप लगा है। वह चमड़े काफटा काला जूता पहने जेल परिसर में टहलते रहते हैं। यह सचमुच विडंबना है, राजा बन गया रंक। एक जेलकर्मी ने माना, जब से एयर कंडिशनर और कूलर के इस्तेमाल पर रोक लगी है, राजा अक्सर टहलते हुए जेल अधीक्षक के दफ्तर में जाकर एसी का आनंद लेते हैं। तिहाड़ में हफ्ते में दो बार ही बाहर का खाना मंगवाने की इजाजत है। शुक्र है कि तिहाड़ में दक्षिण भारतीय व्यंजन उपलब्ध हैं। कनीमोझी की तरह ही राजा भी इस मामले में किस्मतवाले हैं। राजा के पूर्व निजी सचिव आरएस चंदौलिया और पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरिया को सुरक्षा कारणों से एक ही हॉल में रखा गया है। यह उनके लिए अच्छा ही है, क्योंकि कारागार संख्या तीन में कई कुख्यात अपराधी भी रहते हैं।
सुरेश कलमाडी
कामनवेल्थ गेम्स में हेराफेरी के मुख्य आरोपी और राजनेता सुरेश कलमाडी तिहाड़ के कारागार संख्या चार में हैं। जबकि इस अपराध में उनके साथी रहे ललित भनोट और वीके वर्मा कारागार संख्या तीन की हवा खा रहे हैं। इसका सीधा मतलब है कि पायलट से राजनेता बने कलमाडी को उनसे बातचीत तक का मौका नहीं मिलता।जेलकर्मियों के मुताबिक, 'हो सकता है, वह इस वजह से नाराज हों कि उन लोगों से छोटी-मोटी बात भी नहीं हो पाती। हालांकि नाश्ते, दिन और रात के भोजन के मामले में वह समय के पाबंद हैं। सालों-साल शानो-शौकत से रहने के बाद, यहां तक कि तिहाड़ में एक बिस्तर, पंखा और टीवी के साथ तीन हफ्ते बिताने के बाद भी, जो कि उन्हें खासतौर पर मुहैया कराया गया है, कलमाडी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। अब प्रचंड गर्मी और मच्छरों के आतंक से उन्हें कैसे निजात मिलेगी? जेल अधिकारियों के मुताबिक, कलमाडी शाम को बैडमिंटन खेलना पसंद करते हैं। इसी बहाने उन्हें साथी कैदियों से मिलने का मौका मिल जाता है। शुगर का लेबल लगातार बढऩा इस राजनेता के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है। शुगर कंट्रोल करने के लिए उन्हें दिन में दो बार दवाइयां लेनी पड़ती हैं।
उनके साथ और भी दिक्कतें हैं। जब वह तिहाड़ में आए तो तमाम कैदी उन्हें देखने को लेकर बहुत उत्साहित थे। पर अपराधियों का एक ऐसा समूह भी था, जो उन्हें राष्ट्रद्रोही मानता है। एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक, इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए उनकी सुरक्षा चाक-चौबंद करनी पड़ी। तिहाड़ जेल के महानिदेशक नीरज कुमार ने टीएसआई से कहा, वीवीआईपी कैदियों के साथ कोई अलग तरह का व्यवहार नहीं होता। उनके साथ भी हम आम कैदियों की तरह व्यवहार करते हैं। वे भी सुबह की हाजिरी के लिए कतार में खड़े होते हैं। उनके साथ भी वही होता है जो दूसरे कैदियों के साथ होता है। उन्हें एक कप चाय और ब्रेड कीदो स्लाइसें मिलती हैं। बाकी सब चीजें दूसरे कैदियों की ही तरह हैं। जब वे अदालत से लौटते हैं, तो दूसरे कैदियों की तरह इन वीवीआईपी की भी तलाशी ली जाती है। नीरज कुमार की मानें तो समस्याएं तो आती ही हैं। उन्होंने कहा, ये लोग ऐश-ओ-आराम और शान- ओ-शौकत की जिंदगी जीने के आदी होते हैं। सेल में उनके सामने स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें तो आती ही हैं। हमें इन सब चीजों से भी निपटना पड़ता है। इसमें दो राय नहीं कि राजनेता अभी भी ताकतवर हैं, पर कॉरपोरेट दिग्गजों की मौजूदगी ने जेल परिसर का नजारा ही बदल दिया है।
शाहिद बलवा और विनोद गोयनका
इन दोनों की तुलना फोब्र्स पत्रिका द्वारा जारी अमीर लोगों की सूची में शामिल भारतीयों से की जा सकती है- दोनों फिलहाल जेल की हवा खा रहे हैं। 2010 में फोब्र्स ने बलवा की व्यक्तिगत संपत्ति एक बिलियन से ज्यादा, जबकि गोयनका की संपत्ति 1।18 बिलियन आंकी थी। गोयनका को अमीर भारतीयों की सूची में 49वां और बलवा को 50वेंं स्थान पर रखा गया था। सीबीआई ने 8 फरवरी, 2011 को बलवा को मुंबई में गिरफ्तार किया था। बलवा और गोयनका के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। उनकी कंपनी डीबी रियलिटी ने पहले तो स्वान टेलीकाम नामक कंपनी बनाई फिर उसे टू-जी आवंटन के हिस्से के तौर पर 13 सर्किलों के एवज में 1,537 करोड़ का भुगतान कर दिया। इसके तुरंत बाद, स्वान टेलीकॉम ने दुनिया की जानी-मानी टेलीकॉम कंपनी एटीलिस्टैट को 4, 500 करोड़ रुपये में 45 फीसदी शेयर बेच दिए। भारतीय जांच एजेंसियां आज भी इस लेन-देन की जड़ तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं। अब जरा बलवा और गोयनका के अतीत की बात करते हैं। लगभग 15 साल पहले, दोनों ने एक साथ कारोबार शुरू किया। उन्होंने संयुक्त रूप से मुंबई में होटल रॉयल मेरीडियन का निर्माण कराया, जिसे अब हिल्टन के तौर पर जाना जाता है। तब से लेकर टू-जी तक उन लोगों ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
दुर्भाग्य से तिहाड़ ने दोनों मित्रों को अलग कर दिया। बलवा कारागार संख्या एक में है तो गोयनका कारागार संख्या तीन में। दोनों की मुलाकात सिर्फ अदालत में होती है, लेकिन वर्षों के ऐश-ओ-आराम ने उनसे अपनी कीमत वसूल ली। तिहाड़ के सख्त बेड से बलवा की पीठ में दर्द उभर आया है। उसने थोड़ा नरम बिस्तर और तकिया मुहैया कराने के लिए तिहाड़ प्रशासन को पत्र लिखा है।
उसके लिए यह किस्मत की बात है कि भाई आसिफ को भी वहीं स्थित एक वार्ड में रखा गया है। उस पर गैरकानूनी तरीके से क्लैंग्नार टीवी के खाते में 214 करोड़ रुपये ट्रांसफर कराने का आरोप है। हफ्ते में दो बार दोनों भाइयों को घर का खाना मिल जाता है। इस तरह से वे चार बार घर का बना खा लेते हैं और सिर्फ तीन दिन ही उन्हें तिहाड़ की रोटियां चखनी पड़ती हैं। दोनों हिंदी फिल्में देख कर अपना समय गुजार रहे हैं। इससे बेहतर कोई और चीज उनके करने के लिए है भी नहीं।
संजय चंद्रा
तिहाड़ में बंद हाई प्रोफाइल कॉरपोरेट दिग्गजों में यूनिटेक का पूर्व मुखिया संजय चंद्रा भी हैं। देश की दूसरी सबसे बड़ी रियलिटी कंपनी यूनिटेक के बॉस रहे संजय के जीवन का यह सबसे कठिन दौर है। उनकी मुख्य समस्या शौचालय को लेकर है। हर वार्ड में ज्यादातर भारतीय शैली के ही शौचालय हैं और पाश्चात्य शैली केकुछ इक्के-दुक्के शौचालय हैं भी तो इतने गंदे की अंदर जाना भी मुश्किल मालूम पड़ता है। इसलिए उन्हें भारतीय शैली के शौचालय से काम चलाना पड़ता है। संजय जैसे व्यक्ति के लिए यह काफी मुश्किल भरा समय है। उसने बोस्टन विश्वविद्यालय से एमबीए करने के बाद रियलिटी के कारोबार में हाथ डाला। प्रबंध निदेशक के तौर पर और अपने भाई अजय चंद्रा के साथ मिलकर संजय ने कंपनी को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। यूनिटेक की किस्मत उसी दिन बदल गई जब उसने यूनिटेक वायरलेस के तौर पर टेलीकॉम सेक्टर में कदम रखा। टू-जी के साथ ही उनकी किस्मत पर ग्रहण लग गया। अब वह उस घड़ी को कोसते हैं, जब उन्होंने टेलीकॉम सेक्टर में कदम रखने का फैसला किया था।
ललित भनोट -वीके वर्मा
हाई प्रोफाइल कैदियों की सूची अभी खत्म नहीं हुई है। कामनवेल्थ गेम्स की संचालनसमिति के सचिव ललित भनोट और उसके महानिदेशक वीके वर्मा को कैसे भुलाया जा सकता है। दोनों को खेल प्रशासन का लंबा अनुभव है। उन पर एक स्विस कंपनी को गैरकानूनी ढंग से 107 करोड़ रुपये का ठेका देने का आरोप है। फिलहाल वे कारागार संख्या तीन में बंद हैं। जेल अधिकारियों के अनुसार, दोनों अपने आप तक ही सीमित रहते हैं, बाहरी लोगों के साथ किसी भी तरह की बातचीत से परहेज करते हैं। ललित को नॉवेल पढऩा खूब पसंद है, इसलिए उनका ज्यादातर वक्त लाइब्रेरी में ही व्यतीत होता है।
कारागार संख्या तीन में वैसे भी सबसे ज्यादा भीड़ है। यहां कुल 2011 कैदी हैं। जेल प्रशासन के मुताबिक, सुबह छह बजे रजिस्टर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बाद सभी कैदी आस्था चैनल पर प्रसारित होने वाले बाबा रामदेव के योग का कार्यक्रम देखते हैं और स्वयं भी योगाभ्यास करते हैं। तिहाड़ के कैदियों को सुबह आठ बजे नाश्ते में एक कप चाय और ब्रेड के दो स्लाइस दिए जाते हैं। खाने में चपाती, मसूर की दाल, चावल और सब्जी मिलती है। उन्हें दोपहर का भोजन ठीक 12 बजे और रात का भोजन ठीक सात बजे उपलब्ध करा दिया जाता है। प्रचंड गर्मी की वजह से कै दियों को शाम पांच बजे एक गिलास नींबू पानी भी दिए जाने का प्रावधान है। कारागार संख्या तीन में बंद वर्मा और भनोट को जब शाम को भूख लगती है, तब वह जेल की कैंटीन से समोसा और भुजिया मंगा लेते हैं। इसके लिए उन्हें विशेष कूपन जारी किए गए हैं। इसकी अधिकतम सीमा 3000 रुपये है। हालांकि यह हर एक के लिए आसान है, क्योंकि भारत का कानून बेहद कमजोर और दंतहीन है। जिन लोगों ने तिहाड़ में थोड़ा वक्त भी गुजारा है, उनके लिए जिंदगी के मायने बदल गए और जानना चाहते हैं तो कनिमोझी, राजा और कलमाडी से पूछिए।
मनु शर्मा
29 अप्रैल, 1999 को मॉडल जेसिका लाल की टेमरेंड कोर्ट कैफे रेस्तरां में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वहां फैशन डिजाइनर बीना रमानी ने अपने कनाडाई पति जार्ज मेलहार्ट के लिए पार्टी आयोजित की थी। जेसिका लाल की हत्या के आरोप में मनु शर्मा को दोषी करार दिया गया। मनु शर्मा हरियाणा के प्रभावशाली कांग्रेसी नेता विनोद शर्मा का पुत्र है और एक बड़े आर्थिक साम्राज्य का स्वामी है। हत्या की घटना के समय उसके पास लगभग 20,000 करोड़ रुपये की संपत्ति थी। 21 फरवरी, 2006 को जब हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू हुई, तो हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट के फैसले को बदल कर शर्मा और उस हत्याकांड में शामिल दूसरे लोगों को उम्रकैद की सजा दी। हाईकोर्ट ने शर्मा और अन्य आरोपियों को बरी किए जाने के लोअर कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया था। अंदर की बात यह है कि मनु तिहाड़ के सीईओÓ की तरह काम करता है। पूरी तिहाड़ जेल को वह किसी कंपनी की तरह चला रहा है। कैदी भी तरह-तरह की गतिविधियों में जुड़े हुए हैं- रोटी बेलने, सेंकने से लेकर फर्नीचर बनाने तक। किसी अधिकारी की तरह मनु इन कैदियों को किसी निश्चित काम की जिम्मेदारी देता है। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि पहली बार तिहाड़ जेल को 30 हजार स्कूल डेस्क बनाने का ठेका मिला। मनु शर्मा का तिहाड़ जेल के अंदर रसूख का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एक बार वह पैरोल पर जेल के बाहर आया तो मां की बीमारी के बहाने, लेकिन उसे देखा गया दोस्तों के साथ डिस्कोथेक में मौज-मस्ती करते हुए।
संतोष सिंह
23 जनवरी, 1996 को अपनी सहपाठी और दिल्ली विश्वविद्यालय में कानून की छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू की बलात्कार के बाद निर्ममतापूर्ण तरीके से हत्या करने के आरोप में संतोष सिंह तिहाड़ केकारागार संख्या दो में उम्रकैद की सजा काट रहा है। अक्टूबर, 2006 में दिल्ली हाईकोर्ट ने संतोष सिंह को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। संतोष ने हाईकार्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 6 अक्टूबर, 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले की सुनवाई करते हुए संतोष कुमार की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। संतोष सिंह फिलहाल साथी कैदियों को मुफ्त कानूनी सलाह देता है। सामान्य तौर पर जिस कैदी को फांसी की सजा सुनाई गई होती है, उसे किसी काम की जिम्मेदारी नहीं दी जाती, लेकिन संतोष सिंह के मामले में यह अपवाद है। वह प्रतिदिन सुबह आठ से 11 बजे तक और अपराह्नï तीन से शाम छह बजे तक कैदियों का कानूनी मार्गदर्शन करता है। उससे सलाह लेने वाले कैदियों की संख्या कम नहीं है।
आर के शर्मा
पूर्व आईपीएस अधिकारी आरके शर्मा, पत्रकार शिवानी भटनागर की हत्या के मामले में तिहाड़ के कारागार संख्या एक में उम्रकैद की सजा काट रहा है। हत्या के बाद से ही, शर्मा ने संन्यासी का रूप धारण कर लिया है। उसका काफी समय अखबार और किताबे पढऩे में निकलता है। अधिकारियों के मुताबिक, अपने साथी कैदियों से शर्मा एक सुरक्षित दूरी बना कर रहता है। जब वह तिहाड़ में पहली बार आया, तो लोगों के बीच चर्चा का विषय बना रहा। उसके बाद जब वह सेल में गया, तो चंदन-तिलकधारी संन्यासी के रूप में सामने आया।
अफजल गुरु
2001 में भारत की संसद पर आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु को 2004 में ही सजा-ए-मौत सुनाई गई थी। 16 गुणा 12 फीट के कमरे वाले कारागार संख्या तीन में रहने वाले गुरु ने राष्ट्रपति से क्षमादान की अपील की है। उसकी अपील राष्टï्रपति के पास विचाराधीन है। उसका ज्यादातर समय राजनीतिक व धार्मिक पुस्तकें पढऩे में बीतता है। उसके पास एक ट्रांजिस्टर सेट है। समाचारों के लिए अफजल रोजाना अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू के अखबार पढ़ता है। पत्नी तबस्सुम के अलावा उससे मिलने आने वाला कोई और नहीं है।
विकास यादव
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता डीपी यादव का पुत्र विकास अपनी बहन भारती यादव के प्रेमी नीतीश कटारा की 17 फरवरी, 2002 को हत्या किए जाने के आरोप में तिहाड़ के कारागार संख्या दो में उम्रकैद की सजा काट रहा है। एक शादी समारोह में उसने नीतीश को विश्वास में लेकर क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी थी। विकास का अंक ज्योतिष और ज्योतिष में पूरा विश्वास है। विकास को पहले कारागार संख्या चार में रखा गया था, लेकिन ज्योतिषियों की सलाह पर उसने जेल कारागार संख्या दो में अपना स्थानांतरण करवा लिया। अधिकारियों के मुताबिक, विकास ने अपने स्तर पर गाजियाबाद की डासना जेल में स्थानांतरण की बहुत कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। विकास को अत्यधिक महत्वाकांक्षी माना जाता है।
सुशील शर्मा
अपनी पत्नी नैना साहनी की नृशंस हत्या के मामले में युवा कांग्रेसी नेता सुशील शर्मा तिहाड़ के कारागार संख्या दो में उम्रकैद की सजा काट रहा है। 2003 में लोअर कोर्ट ने सुशील को हत्या का दोषी करार दिया था। सुशील ने पत्नी की हत्या करने के बाद उसके शव को टुकड़े-टुकड़े कर अशोक होटल के बगिया रेस्तरां के तंदूर में झोंक दिया था। लोअर कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा। इसके बाद सुशील ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस मामले की सुनवाई पर रोक लगा रखी है। 1995 में जब यह हत्याकांड हुआ था, तब से लेकर अब तक, इस मामले की सुनवाई के लिए लगभग 350 तारीखें पड़ चुकी हैं। तमाम दूसरे दुर्दांत अपराधियों की तरह सुशील शर्मा ने भी धर्म का रास्ता अख्तियार कर लिया। जेल अधिकारियों के मुताबिक वह हमेशा 'परेशान' रहता है। वह अपने परिवार के किसी सदस्य या माता-पिता से मिलने की इच्छा भी नहीं जताता और न ही वे लोग इससे मिलने आते हैं।

Wednesday, May 25, 2011

सिंधिया घराने ने मप्र सरकार पर डाली अड़ी

विनोद उपाध्याय
विरासत के लिए सिंधिया घराने में छिड़ी जंग का लुत्फ उठा रही मध्य प्रदेश सरकार की बोलती बंद कर दी है उसी की सांसद यशोधराराजे सिंधिया ने। आजादी के बाद राजपाठ छिनने के बावजूद हुकूमत पर हावी ग्वालियर का सिंधिया राजघराना अब राज्य सरकार से अपना हक मांगने पर उतर आया है। दरअसल, पचपन साल पहले जब नया मध्यप्रदेश बना था तब सिंधिया घराने की प्राविडेंट इन्वेस्टमेंट कंपनी भी उसमें मर्ज हो गई थी। अब राज्य के वित्त विभाग का हिस्सा बन चुकी इस कंपनी के शेयर की हिस्सेदारी यशोधराराजे सिंधिया मांग रही हैं। इससे मप्र.सरकार सांसत में है। ग्वालियर की भाजपा सांसद यशोधरा राजे सिंधिया ने सिंधियाराज घराने की द प्राविडेन्ट इन्वेस्टमेंट कम्पनी जो अब मप्र सरकार के वित्त विभाग के अधीन है, के शेयर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मांग कर इस कम्पनी में हड़कम्प मचा दी है।
वित्त विभाग ने इस अप्रिय स्थिति से निपटने के लिये यशोधरा को जवाब दिया है कि वे पहले सभी उत्तराधिकारियों की सहमति प्रस्तुत करें तब वह सिंधिया घराने के शेयरों का विधिवत वितरण कर देगी। वित्त विभाग ने बड़ी चतुराई से यह चाल चली है क्योंकि उसे मालुम है कि आजादी के बाद भी ग्वालियर को खुद की जागीर समझने वाला सिंधिया घराना, ग्वालियर और यहां की बदौलत देशभर में बनाई अपनी जागीरों को लेकर आपस में लड़ता रहता है। पहले बड़े सिंधिया यानी माधवराव सिंधिया और विजयाराजे सिंधिया में दशकों तक विभिन्न कारणों से अबोला रहा। इन अबोले और रंजिश की एक बड़ी वजह सिंधिया खानदान की पैतृक संपत्ति भी थी। अब इतिहास खुद को दोहराता दिख रहा है। अब एक ओर हैं माधवराव के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया और दूसरी ओर हैं उनकी बुआ यानी माधवराव की बहन और नेपाल के शमशेर जंग बहादुर राणा की पत्नी उषा राजे सिंधिया, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में विधायक वसुंधरा राजे सिंधिया और ग्वालियर से सांसद यशोधरा राजे भंसाली (सिंधिया)। दांव पर लगी है ग्वालियर सहित देशभर में फैली करीब 20 हजार करोड़ की संपत्ति।
ताजा झगड़ा तब शुरू हुआ, जब सिंधिया ने अपने कब्जे वाली कुछ संपत्ति को बेचने के लिए सौदा करना शुरू किया। इसकी भनक लगते ही उनकी तीनों बुआ एक हो गईं और ग्वालियर में अतिरिक्त सत्र एवं जिला न्यायाधीश (एडीजे) की अदालत में एक अर्जी दायर कर सौदे पर रोक लगवाने की मांग की। इस पर उन्होंने स्टे भी ले लिया। सिंधिया घराने के पास ग्वालियर में छोटे-बड़े महल, हवेली हैं। इनकी कीमत आज की तारीख में सात हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है। इसी तरह मुंबई, दिल्ली और पुणे में भी इस घराने के पास हजारों करोड़ की संपत्ति है। एक नामी टेक्सटाइल्स कंपनी में भी भारी भरकम निवेश है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ज्येष्ठाधिकार के तहत खुद को सिंधिया परिवार का एकमात्र वारिस होने का दावा पेश कर चुके हैं। लेकिन 2001 में विजयाराजे की मौत के बाद उनके विश्वस्त और तत्कालीन निज सचिव संभाजी राव आंग्रे ने एक वसीयत पेश की है। इसमें उन्होंने अपने बेटे माधवराव सिंधिया और पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया को बेदखल कर दिया था। इसके अलावा इस वसीयत में उन्होंने अपनी दो तिहाई संपत्ति अपनी बेटियों को देने और एक तिहाई संपत्ति 1975 में बनाए एक ट्रस्ट को दान में देने की घोषणा कर दी थी। विजयाराजे के ही वकीलों ने 2001 में मुबई में एक और वसीयत पेश की। इसमें भी उन्होंने अपने बेटे-पोते को संपत्ति से वंचित कर दिया था। उन्होंने अपने नियंत्रण वाली सारी संपत्ति अपनी बेटियों को दे दी थी। हालांकि ये दोनों वसीयत कानूनी झमेले में फंसी हैं। अब दोबारा संपत्ति के लिए शुरू इस जंग पर दोनों पक्ष मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में वित्त विभाग ने यशोधरा से सभी उत्तराधिकारियों की सहमति मांग कर फिलहाल तो इस मामले को शांत करने में सफलता तो अर्जित कर ली है लेकिन यह बात यही रूकने वाली नहीं हैं।
ज्ञातव्य है कि द प्राविडेन्ट इन्वेस्टमेंट कम्पनी की स्थापना सन 1926 में सिंधियाराज घराने के हिज हाईनेस महाराज जीवाजीराव सिंधिया द्वारा मुम्बई में की गई थी। ग्वालियर राज्य एवं अन्य निकायों के पास उपलब्ध धन का विनियोग मुम्बई में सर शापुरजी ब्रोचा एवं उनकी मृत्यु के पश्चात एफ.ई.दिनशा द्वारा किया गया। बाद में यह कम्पनी वर्ष 1956 में बने मप्र में संविलियत कर दी गई तथा यह मप्र के वित्त विभाग की सरकारी कम्पनी बन गई। उक्त कम्पनी की कुल अंश पूंजी 49 लाख 66 हजार रुपये की है जिसमें चालीस शेयर सिंधिया राजघराने को आवण्टित हैं। इस कम्पनी का मुख्यालय मुम्बई में है जिसके पास मुम्बई के कफ परेड में बेशकीमती एडविर्ड विला भवन तथा केरल में हजारों एकड़ में फैला बीनाची टी स्टेट है।
यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सरकार के पहले कार्यकाल में पर्यटन मंत्री थीं तथा उन्होंने बीनाची स्टेट के कुछ हिस्से में पर्यटन निगम को रिसोर्ट बनाने की अनुमति दिये जाने का प्रस्ताव दिया था। परन्तु सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया था। इससे यशोधरा लम्बे समय से खिन्न चल रही थीं। अब लम्बे समय बाद उन्होंने प्राविडेन्ट इन्वेस्टमेंट कम्पनी में जमा सिंधिया राज घराने के चालीस शेयरों के आवण्टन की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मांग कर दी। उनके इस लिखित आग्रह पर मुख्यमंत्री ने वित्त विभाग से जवाब मांगा जिस पर विभाग ने यशोधरा की मांग को नामंजूर करते हुये लिखा है कि पहले यशोधरा सभी उत्तराधिकारियों की संयुक्त सहमति प्रस्तुत करे, इसके बाद वह सिंधिया राज घराने के सभी उत्तराधिकारियों जिनमें राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया और केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं,को चालीस शेयरों का व्यक्तिश: बराबर-बराबर आवण्टन किया जायेगा।
यहां यह उल्लेखनीय है कि प्राविडेन्ट इन्वेस्टमेंट कम्पनी सिंधिया राज घराने के चालीस शेयरों पर हर साल डिविडेन्ट भुगतान करती है जो मुश्किल से पांच-छह हजार होता है। यशोधरा इन शेयरों के व्यक्तिश: आवण्टन की मांग कर एडवर्ड विला और बीनाची स्टेट में मालिकाना हक चाह रही हैं। लेकिन वित्त विभाग इसके लिये तैयार नहीं है। अब यशोधरा को सिंधिया राज घराने के सभी उत्तराधिकारियों की संयुक्त सहमति लेनी होगी।

Wednesday, May 18, 2011

शिवराज के खिलाफ उमा को हथियार बनाने की तैयारी

विनोद उपाध्याय
उमा भारती के भारतीय जनता पार्टी में वापसी के मुद्दे पर म.प्र. से लेकर दिल्ली तक महाभारत की शुरूआत हो गई है। लेकिन राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि उमा भारती के पक्ष में माहौल बनाने वाले भी भारतीय जनता पार्टी के भले के लिये नहीं बल्कि शिवराज सिह चौहान को झुकाने के लिये व उनके खिलाफ माहौल बनाने के एक हथियार के तौर पर उमा भारती को इस्तेमाल कर रहे हैं।
साध्वी व पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भारतीय जनता पार्टी में वापसी के मुद्दे पर म.प्र. से लेकर दिल्ली तक महाभारत की शुरूआत हो गई है एक तरफ बाबूलाल गौर के नेतृत्व में सांसद सुमित्रा महाजन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भाजपा के लौह पुरूष लाल कृष्ण आडवाणी हैं दूसरी ओर उमाभारती के रास्ते में मुख्य रूकावट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान , श्रीमती सुषमा स्वराज , अरूण जेठली और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सुरेश सोनी की लॉबी सक्रिय है । दरअसल म.प्र. की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान जिस तरह से कार्यकर्ताओं व मंत्रियो को हतोत्साहित व सरकारी अधिकारियों को उपकृत करने की राह पर चले हैं व भाजपा के म.प्र. के इकलौते नेता के तौर पर उभरे हैं वह उनके विरोधियों को कांटे की तरह चुभ रहा है।
मुख्यमंत्री ने जिस प्रकार लाड़ली लक्ष्मी योजना व अन्य जनहितैषी योजनाओं की शुरूआत की है वह फाईलों को निपटाने की एक समय सीमा तय की है। उससे उनके समर्थक शिवराज सिंह चौहान को भाजपा की राजनीति का मुख्य चेहरा बनाने की कोशिश मे है वहीं मंत्रियों के खिलाफ जिस सुनियोजित ढंग से खबरें मीडिया के जरिये बाहर आ रही हैं उससे उन मंत्रियो की छवि को क्षति पहुंच रही है जो किसी न किसी ढंग से मुख्यमंत्री के ताज को पहनने के इच्छुक थे। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने जिस तरह के बगावती तेवर दिखाये हैं उससे यह साफ प्रतीत होता है कि उमा भारती की आड़ में असंतुष्ट मंत्रियो को एक करने की कबायद की जा रही है। गौरतलब है विगत दिनों पूर्व उप प्रधानमंत्री व लौह पुरूष लाल कृष्ण आडवाणी की पहल पर जसवंत सिंह को पुन: भाजपा में शामिल कर लिया गया है। पिछले वर्ष में पाकिस्तान के संस्थापक मो. अली जिन्ना के उपर लिखी गई एक चर्चित किताब के बाद पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया था क्योंकि इस किताब में जसवंत सिंह ने जिन्ना के बजाये नेहरू के नजरिये को देश बटवारे के लिये जिम्मेदार बताया था जबकि जिन्ना को लेकर संघ परिवार की आम राय यह रही है कि बटवारे के मुख्य अपराधी जिन्ना ही थे। पूर्व मंत्री जसवंत सिंह की पार्टी में दोबारा वापसी पर भी जसवंत सिंह ने खुले तौर पर जिन्ना के बारे में अपने नजरिये को वापस नहीं लिया यहां तक कि खेद भी व्यक्त नहीं किया । इस मुददे पर भाजपा का पूरा नेतृत्व भी चुप्पी साध गया इसी फार्मूले के तहत पैसे के बदले सवाल पूछने के घोटाले में रंगे हाथ स्टिंग ऑपरेशन में पकडे गये व पार्टी से निकाले गये अन्ना पाटिल को दोबारा भाजपा में शामिल कर पवित्र कर लिया गया । इन्हीं फामूर्लो की आड लेकर बाबूलाल गौर ने उमा भारती के मुद्दे पर काफी कडा रूख अपना लिया है व भाजपा नेतृत्व को स्पष्ट संकेत दे दिये हैं कि वे अपना अभियान बंद नही करेगें भले ही उन्हें ही मंत्री पद से इस्तीफा क्यों न देना पडे।
उमा भारती की वापसी से भाजपा को फायदा क्या होगा यह प्रश्न है किन्तु शिवराज सिंह के राजनैतिक प्रेक्षकों का मानना है कि उमा भारती की भाजपा में वापसी से शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ लॉबिग तेज हो जायेगी। इंदौर से जीत का रिकार्ड बना चुकी व मुख्यमंत्री पद की एक सशक्त दावेदार सुमित्रा महाजन भी उमा भारती के भाजपा में पुर्नप्रवेश की वकालत की है। शिवराज सिंह चौहान के मंत्री मंडल में शामिल वरिष्ठ मंत्री, कैलाश विजय वर्गीज , रंजना बघेल, नागेन्द्र सिंह, अजय विश्नोई, उमाशंकर गुप्ता भी उमा भारती के पक्ष में दिखाई प्रतीत होते हैं। बेलगांव की घटना के बाद मंत्री अनूप मिश्रा के इस्तीफे के बाद से मुख्यमंत्री के मंत्रियो को भरोसा हो गया है कि शिवराज सिंह चौहान उन्हे बचाने के लिये कभी भी आगे नही आयेगें व पी.वी. नरसिन्हाराव की तरह अपनी सफेद चादर बचाकर दूसरों के दामन पर दाग पडने पर उस दामन को झटक देगें। मंत्रियो का मानना है कि बेलगाव घटना के समय अनूप मिश्रा उज्जैन में थे व उनका बेटा घटना स्थल पर नहीं था मंत्रियो का यह भी मानना है कि अटल बिहारी बाजपेयी के भान्जे व ब्राम्हणों के नेता के तौर पर स्थापित अनूप मिश्रा जिस घटना में मंत्री मंडल से बाहर हुये या किये गये वह उसके पात्र नहीं थे वह भाजपा की अंदरूनी राजनीति के शिकार हुये हैं। मंत्री यह भी भयभीत है कि शिवराज सिंह चौहान की कार्यशैली पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अनुरूप है कि म.प्र. में अपने से ज्यादा नामवर नेता स्थापित न रहें ताकि भविष्य में उनके नेतृत्व के खिलाफ कोई भी आवाज न उठे। उमा भारती की वापसी से भाजपा को फायदा क्या होगा यह एक यक्ष प्रश्न है किन्तु शिवराज सिंह के करीबी तथा राजनैतिक प्रेक्षकों का मानना है कि उमा भारती की भाजपा में वापसी से शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ लॉबिग तेज हो जायेगी। यह भी एक कटु सत्य है कि उमा भारती चाहे जितने वायदे कर लें कि वह म.प्र. की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी नही लेगंी लेकिन व्यवहारिक रूप से यह संभव नही है क्योंकि उमा की जन्म भूमि व कर्मभूमि म.प्र. ही रही है। उनकी लोकप्रियता के चलते दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेता के नेतृत्व वाली को 2003 में बुरी तरह से हार का सामना करना पडा था।
कांग्रेस के दिग्गज नेता भी उमा भारती की कार्यशैली के चलते यह नहीं चाहते कि उमा भारती भाजपा में भाजपा मे वापिस आयें। उमा श्री भारती लोध समुदाय की एक क्षत्र नेता व राम मंदिर आंदोलन के दौर में संघ परिवार की सबसे तेज तर्रार नेता मानी जाती थी । चुनाव में नेताओं के विश्वासघात व कलह के बाद भी उमा भारती के नाम से 5 प्रतिशत से अधिक वोट मिलना भी अपने आप में एक मायने है। किन्तु अफसोस उमा भारती के पक्ष में माहौल बनाने वाले भी भारतीय जनता पार्टी के भले के लिये नहीं बल्कि शिवराज सिह चौहान को झुकाने के लिये व उनके खिलाफ माहौल बनाने के एक हथियार के तौर पर उमा भारती को इस्तेमाल कर रहे हैं व उमा भारती से डर कर मुख्यमंत्री उनका विरोध कर रहे हैं। भाजपा का हित सोचने की किसी को फुरसत नहीं है म.प्र. का प्रशासन खनन माफिया , वन माफिया , शराब माफिया , भू माफिया, के हाथो का खिलौना बना हुआ है किन्तु मंत्रियो को आपस में लडने से फुरसत नहीं। हालाकि यह म.प्र. का अभिशाप ही है कि इस प्रदेश में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की मुख्यमंत्री के खिलाफ मुख्यमंत्री के खिलाफ हमेशा से बगावती तेवर हमेशा रहे हैं। 1962 से लेकर सिर्फ दिग्विजय सिंह व शिवराज सिह चौहान ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं जो पांच वर्ष से अधिक म.प्र. के मुख्यमंत्री के तौर पर स्थापित रहे है। कुल मिलाकर भाजपा में जो महाभारत चल रही है उसके आत्मघाती दुष्परिणाम भाजपा को ही भोगना पडेगा वैसे भी भाजपा की छवि कांग्रेस से ज्यादा भ्रष्ट होने की बनती जा रही है। अब यह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर निर्भर करता है कि वह भाजपा का भला सोचे मुख्यमंत्री का भला सोचे या असंतुष्टो का भला सोचे । जनता को तो पिसना ही है।

Saturday, May 14, 2011

कुंवर सिंह के बहाने




भोपाल। स्वाधीनता के प्रथम संघर्ष के अनेक नायक अतीत के अंधेरे में गुम हो चुके है, लेकिन कुछ ऐसे हैं जिनका शौर्य आज भी देशवासियों को प्रेरित करता है। इनके तेज से तत्कालीन साम्राज्यवादी शासक भी अच्छी तरह अवगत हुए। ऐसे ही रणबांकुरे थे भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव के बाबू कुंवर सिंह। यह बात यहां स्वराज भवन में बाबू कुंवर सिंह के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यशाला में युवा पत्रकार विनोद उपाध्याय ने की।
बिहार के बक्सर जिला के निवासी श्री उपाध्याय ने कुंवर सिंह के जीवनवृत प्रकाश डालते हुए कहा कि कुंवर सिंह का जन्म 1782 में हुआ। इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजों में से थे। उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा लड़ते रहे। 1846 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया। मंगल पांडेय की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया। बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी। मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।
विनोद उपाध्याय के अनुसार 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा जमा लिया। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए। आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को जन्म भूमि छोडऩी पड़ी। अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव के नगाड़े बजाते रहे। ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, 'उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन-बान के साथ लड़ाई लड़ी। यह गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी। अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोडऩा पड़ता।
विनोद उपाध्याय ने कहा कि सन् 1857 से बहुत पहले कुंवर सिंह जवानी पार कर चुके थे। जब देश में चारों ओर विद्रोह की ज्वाला फूटी उस समय उनकी अवस्था लगभग 70 वर्ष की थी। उनका स्वास्थ्य खराब हो चुका था।
उपाध्याय के अनुसार कुंवर सिंह के पास जमीनें बहुत अधिक थीं। उन्हें लगभग 3 लाख रुपये किराया उन जमीनों से मिलता था। वे 1 लाख 48 हजार रुपये का सालाना कर अदा करते थे। लेकिन वे अशिक्षित थे और अपनी जागीरों की देखभाल को लेकर बहुत सावधान नहीं थे। तत्कालीन अंग्रेज कमिश्नर टेलर ने उनके बारे में लिखा है, 'बाबू कुंवर सिंह जिला शाहाबाद की कीमती और लंबी-चौड़ी जागीरों के मालिक हैं। वे पुराने और भद्र परिवार से संबंध रखते हैं। सहृदय और लोकप्रिय कुंवर सिंह को उनके बटाईदार बहुत प्रेम करते हैं। जिले के देसी और यूरोपीय सभी उनकी इज्जत करते हैं। लेकिन ज्यादातर राजपूतों की तरह बाबू भी पूरी तरह अशिक्षित हैं। वे आसानी से चालबाजी में आ जाते हैं और अपने एजेंटों के हाथ की कठपुतली हैं। पूर्वजों से मिली शाहखर्ची की आदतों के कारण उनके खर्च बहुत हैं। इस कारण वे हमेशा उधार में दबे रहते हैं।Ó
जून, 1857 में जब वहाबी नेताओं को गिरफ्तार किया गया और विद्रोहियों को फांसी दी गई तब शाहाबाद के मजिस्ट्रेट वेक ने खुलेआम कुंवर सिंह पर सिपाहियों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया। इन खबरों पर बातचीत करने के लिए जुलाई में टेलर ने उन्हें पटना बुलाया। खराब स्वास्थ्य का बहाना बनाकर कुंवर सिंह ने यह यात्रा रद्द कर दी। वहाबी नेताओं के साथ जो हुआ, उसके आधार पर कुंवर सिंह जानते थे कि टेलर का न्योता उनकी गिरफ्तारी का षडयंत्र भी हो सकता है। वेक के आरोपों और टेलर के न्यौते ने कुंवर सिंह को चौकन्ना कर दिया था। वे विद्रोह में अपनी भूमिका पर विचार कर ही रहे थे कि विद्रोहियों ने आरा से आकर उनसे नेतृत्व की प्रार्थना की। वह उनके नैसर्गिक नेता थे। ज्यादातर सिपाही राजपूत थे और उनके बटाईदार। उनकी सैनिक शिक्षा न के बराबर थी। लेकिन, राजपूत होने के कारण उन्हें अपने आप पर पूरा भरोसा था। कुंवर सिंह के मुख्य सेनानायकों में उनके भाई अमर सिंह, उनके भतीजे रितुभंजन सिंह, उनके तहसीलदार हरकिशन सिंह और उनके मित्र निशान सिंह थे। शाहाबाद के राजपूत यह सिद्ध करना चाहते थे कि उनकी जाति की ताकत अभी समाप्त नहीं हुई है।
विनोद उपाध्याय ने कहा कि आरा में सिपाहियों ने कैदियों को जेल से छुड़ा लिया और खजाने को लूट लिया। फिर वे यूरोपियों की तलाश में निकले और आरा हाउस पर हमला किया। यहां घिरे अंग्रेजों को बचाने के लिए बंगाल तोपखाने के मेजर विंसेंट को भेजा गया। विंसेंट को जिस जंगल को पार करना था, उसके पास जोरदार लड़ाई हुई। विंसेंट के तोपखाने और एनफील्ड राइफलों के सामने सिपाहियों की मस्किटें निष्प्रभावी साबित हुईं। कुंवर सिंह ने फिर बीबीगंज में उसके आगे बढऩे को चुनौती दी। उनके धारदार हमले के कारण सैनिक धीरे-धीरे पीछे हट रहे थे। इसी समय संगीनों के हमले ने सिपाहियों की दाहिनी पांत को तोड़ दिया और रास्ता बन गया। यह लड़ाई 2 अगस्त की रात को हुई और अगली सुबह तक आरा फिर से अंग्रेजों के कब्जे में आ गया था। इस हार से कुंवर सिंह विचलित नहीं हुए। वे आरा से अपने पूर्वजो के किले जगदीशपुर में आ गए जहां विंसेंट ने उनका पीछा किया। यहां भी कड़ा मुकाबला हुआ लेकिन, आरा की तरह यहां भी अंग्रेजों को अपने उन्नत हथियारों का लाभ मिला। अंग्रेजों ने भयंकर अत्याचार किए। यहां तक कि घायल सिपाहियों को भी फांसी पर लटका दिया गया। कुंवर सिंह द्वारा बनवाए गए एक मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया। जगदीशपुर महल और दूसरी इमारतें खंडहरों में बदल गईं।
कुंवर सिंह की सेना पराजित हुई। उनका गढ़ नष्ट हो गया। लेकिन, बूढ़ा शेर अभी पालतू नहीं हुआ था। जगदीशपुर के जंगलों से हटाए जाने पर वे रोहतास की पहाडिय़ों में आ गए। यहां वे ब्रिटिश संचार सेवा की जीवन रेखा ग्रैंड ट्रंक रोड के लिए खतरा हो गए। बाद में उन्होंने और भी जोखिम भरी योजनाएं बनाईं। सितंबर की शुरुआत में कुंवर सिंह रीवा में दिखाई दिए। लेकिन, उनका अंतिम मुकाम दिल्ली होने की बात कही जाती है। रीवा के अंग्रेज भक्त राजा ने उनका प्रतिरोध किया और कुंवर सिंह को मजबूरन उसका इलाका छोड़ देना पड़ा। इस समय 500 के अलावा बाकी सिपाहियों ने बूढ़े सरकार का साथ छोड़ दिया था। पूरे सितंबर वे मिर्जापुर-रीवा इलाके में भटकते रहे। अक्टूबर में वे बांदा आए, जहां के नवाब पहले ही विद्रोह में शामिल हो चुके थे। कहा जाता है कि कानपुर पर हमला करने के लिए नाना ने कुंवर सिंह को निमंत्रित किया था।
इस समय तक दिल्ली अंग्रेजों के हाथों में आ चुकी थी और बदली हुई परिस्थतियों के मद्देनजर कुंवर सिंह को अपनी योजनाओं में फेरबदल करना पड़ा। इसलिए या तो नाना या ग्वालियर की टुकड़ी या दोनों के निमंत्रण पर नवंबर में कानपुर पर होने वाले दूसरे हमले में भाग लेने वे बांदा से कालपी आए। अगर निशान सिंह की बात पर यकीन करें तो कानपुर की उस लड़ाई में नाना उपस्थित थे जिसमें तात्या ने विंढैम के ऊपर यादगार जीत हासिल की थी। सर कॉलिन के हाथों तात्या की हार के बाद कुंवर सिंह मराठा सरदारों के साथ कालपी नहीं गए। इसके बजाय वे लड़ाई के सबसे महत्तवपूर्ण स्थान लखनऊ आए।
फरवरी 1858 में कुंवर सिंह लखनऊ और दरियाबाद के बीच कहीं थे। मार्च में वे पहले से भी ज्यादा सक्रिय हो गए। गोरखा आजमगढ़ के इलाके से विद्रोहियों को साफ कर रहे थे। लेकिन, जब वे लखनऊ पर आखिरी हमले में सर कालिन की सहायता करने इलाके से चले गए तो बाज की दृष्टि वाले बूढ़े राजपूत ने आजमगढ़ शहर से बीस मील दूर अतरौली नामक गांव पर हमला कर दिया। यहां के कमांडर कर्नल मिलमैन ने उनका मुकाबला किया लेकिन उसे हराकर भागने के लिए मजबूर कर दिया गया। कुंवर सिंह ने इसके बाद आजमगढ़ पर कब्जा किया। शहर पर फिर से कब्जा करने के लिए गाजीपुर से आए कर्नल डेम्स के छक्के छुड़ा दिए गए और उसके अनेक आदमी मारे गए। एक के बाद एक दो हारों और आजमगढ़ के हाथ से निकल जाने के कारण अंग्रेजों की इज्जत को गहरा धक्का लगा। लखनऊ पर कब्जे के बाद ही इसे फिर से बनाया जा सका।
विनोद उपाध्याय ने कहा कि कुछ ही समय बाद आजमगढ़ पर कब्जा करने के लिए एक बड़ी सेना भेजी गई। इतनी बड़ी सेना के सामने कुंवर सिंह को जीत की कोई संभावना नजर नहीं आई और उन्होंने बिहार लौट जाने का निर्णय किया। बिहार जाने के क्रम में उन्होंने अपने पीछे लगे जनरल डगलस के साथ कई शातिराना लड़ाइयां लड़ीं। ऐसी एक लड़ाई का मैलसन ने इस प्रकार वर्णन किया है, 'अपने दस्तों के लिए, जिन्हें दो भागों में बांट दिया गया था, पीछे हटने के दो रास्ते तैयार होने तक कुंवर सिंह ने डगलस को दूरी पर रखा। फिर वे आराम से पीछे आ गए और उनके कई आदमियों के मारे जाने के बावजूद उनके सिपाहियों के चेहरों पर शिकन तक नजर न आई। इस तरह वे शिवपुर घाट पहुंच गए और डगलस के आने के पहले ही बहुत कुशलता और रफ्तार से उन्होंने गंगा पार कर ली।Ó
विनोद उपाध्याय ने कहा कि कुंवर सिंह अब अपने नष्ट हो चुके घर जगदीशपुर की ओर बढ़ रहे थे। गंगा पार करते समय तोप के एक गोले ने उनकी एक बांह घायल कर दी। कहा जाता है कि अपनी धारदार तलवार के एक ही वार से अपनी घायल बांह को उन्होंने काट डाला और गंगा की पवित्र धारा में उसे अपने आखिरी चढ़ावे के तौर पर फेक दिया। इस समय तक उनके पास बमुश्किल दो हजार आदमी थे और ये सभी युद्ध से थके हुए और अच्छे हथियारों से लैस नहीं थे। आरा के कैप्टेन लिग्रैंड इसी जंगल में विंसेंट के कारनामों को दुहराना चाहते थे। परन्तु उत्साही अंग्रेज यह भूल गया कि मरता हुआ शेर बिजली की तरह हमला कर सकता है। आरा के जंगलों में कुंवर सिंह ने अंग्रेज टुकड़ी को बुरी तरह पराजित किया। 150 सैनिकों में से लिगै्रंड सहित 100 लोग मारे गए।
इस लड़ाई के अगले दिन 24 अप्रैल को कुंवर सिंह की मृत्यु हो गई। वे विजेता के रूप में इस धरती से विदा हुए। भयंकर लड़ाइयों के बावजूद उन्होंने राजपूतों की शानदार परंपरा को बरकरार रखा। उनके सबसे बुरे विरोधी भी मासूम अंग्रेजों का खून बहाने का आरोप उन पर नहीं लगा सकते थे।

दुनिया में सबसे ज्यादा लफंगे होते हैं क्रिकेटर



विनोद उपाध्याय
ग्लैमर और चकाचौंध से भरे टी-20 फॉर्मेट ने जितनी जल्दी कामयाबी के आसमान को छुआ उसका विववादों से भी चोलीदामन का ाथ रहा। लीग के पहले सीजन से ही इसमें कई विवाद उठते गए। और आईपील-4 के शुरू होने तक विवादों का सिलसिला लगातार जारी है।
खेलों की दुनिया में जब क्रिकेट का अवतरण हुआ था तब इसको भद्र पुरुषों के खेल की संज्ञा दी गई थी लेकिन धीरे-धीरे इस खेल की बढ़ती लोकप्रियता ने क्रिकेट को भद्र पुरुषों के खेल की जगह लफंगों तथा भ्रष्टों का खेल बना दिया। इंडियन प्रिमियर लीग यानी आईपीएल में तो सारी वर्जनाएं तार-तार हो गई हैं और इस बात को बल मिला है दक्षिण अफ्रीका की चीयरगर्ल गैबरियला के खुलाशे से।
राममनोहर लोहिया ने क्रिकेट के इस पहलू के संबंध में एक पत्र गार्डियन मेन्चेस्टर के संपादक को लिखा था और कहा था कि भारत जैसा देश इसे नहीं खेल सकता। लेकिन क्रिकेट को आज का युवा वर्ग धर्म मानता है और सचिन को भगवान। कारपोरेट सेक्टर इस नए धरम का मसीहा है और मीडिया इसका पुरोहित। यह सब मिलकर देश की नई पीढ़ी को अफीम नहीं बल्कि मलानाक्रीम चटा रहे हैं और मेरे देश के नेता उच्चार रहे हैं-तमसो मा ज्योतिर्गमय।
क्रिकेट मैदान पर सही मायने में भद्रजनों का खेल नजर आता है,लेकिन पिछले कुछ सालों से जिस तरह से खेल-खेल में अमीर बनने की चाहत में खिलाडिय़ों ने मैच के नतीजे पहले से ही निर्धारित करने शुरू कर दिए और इस खेल के छोटे भारतीय संसकरण आईपीएल ने तो इस खेल को अभद्रजनों का खेल बना दिया है। आईपीएल ने तो इस खेल को चरम पर पहुंचाया है लेकिन आईपीएल को रोमांच के हद तक ले जाने में कहीं न कहीं चीयरगल्र्स की एक बड़ी भूमिका रही है। लेकिन अब जो मामला सामने आया है उसने इस चकाचौंध का काला सच जिसने क्रिकेटरों को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। दक्षिण अफ्रिकाकी एक चीयरगर्ल गैबरिएला पास्कालोटो ने क्रिकेटरों पर पार्टियों के दौरान अश्लील हरकत करने का आरोप लगाया है। गैबरिएला पर एक नजर डालें तो वह दक्षिण अफ्रीकी चीयरगल्र्स में से एक थी जो टी-20 सीजन 4 में आई तो थी जलवा बिखेरने, लेकिन एक ब्लॉग में सच लिखना इतना महंगा पड़ा कि उन्हें बीच टूर्नामेंट से ही वापस भेज दिया गया।
मगर अब चीयरगल्र्स के सनसनीखेज खुलासे ने आईपीएल के स्वाद को बेमजा कर दिया है। क्रिकेटरों को चीयर करने का जिम्मा जिस लड़की पर था उसने यह इल्जाम लगाया है कि क्रिकेटरों का कोई चरित्र नहीं होता, क्रिकेटर सबसे बदतमीज होते हैं। ब्लॉगिंग के जरिये क्रिकेटरों की निजी जानकारी बाहरी दुनिया को लीक करने के इल्जाम में टी-20 से निकाली गई दक्षिण अफ्रिका की चीयरगर्ल गैबरियला ने क्रिकेटरों और टी-20 के पार्टी कल्चर को लेकर कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। यह बात तो सच है कि ग्लैमर और क्रिकेट का रिश्ता काफी पुराना है। आईपीएल चीयरलीडर गैब्रिएला के ब्लॉग से आईपीएल इस कदर घबरा गया कि उसे तत्काल दक्षिण अफ्रिका वापस भेज दिया गया। द सीक्रेट डायरी ऑफ एन आईपीएल चीयरलीडर में उसने खिलाडिय़ों के अभद्र बर्ताव के बारे में जिस तरह बताया है, उससे दरअसल ऑफ द पिच पार्टी की पूरी संस्कृति ही कटघरे में नजर आती है।
वैसे गैब्रिएला के उस पूरे ब्लॉग में क्रिकेटर्स पर तो महज कुछ ही वाक्य हैं। बाकी बातें दूसरे लोगों के बारे में हैं। इस तरह उसके ब्लॉग से वीआईपी रूम के रियल फन का भी पर्दा उठता है। ब्लॉग में लिखा है कि पार्टी में कुछ लोग चीयरलीडर को पीस ऑफ मीट की तरह देखते हैं और उन्हें आसानी से हासिल करने की इच्छा रखने वालों की नशे के बाद की स्थिति को समझा जा सकता है। गैब्रिएला का दावा है कि ब्लॉग पर वही लिखा है, जो उसने महसूस किया है। अब इन हरकतों के खिलाफ वह कोई कानूनी कार्रवाई करती है या नहीं, यह तो बाद की बात है, लेकिन इससे चीयरलीडरों को आईपीएल मैचों से जोडऩे की पूरी कवायद पर ही एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। जो लोग इनके सहारे क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने की बात करते हैं, उन्होंने कभी इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया कि ज्यादातर दर्शक मैदान में खेल देखना चाहते हैं, मटकती हुई सुंदरियां नहीं। इसलिए गैब्रिएला के बयान के बाद इस बात पर विचार करना जरूरी है कि उन्हें आखिर किन लोगों को खुश करने के लिए मैदान में उतारा जाता है।
गैब्रिएला की भाषा में, कहीं ये वही दूसरे लोग तो नहीं। ऐसा आखिर क्यों हुआ कि एक चीयरलीडर को ही यह कहना पड़ गया कि उन्हें चलते-फिरते पोर्न की तरह ट्रीट किया जाता है। हो सकता है कि इस मामले को सिर्फ उसी ने इस तरह से देखा हो या सिर्फ उसी के साथ इस तरह का व्यवहार किया गया हो। लेकिन इस मुद्दे के उछलने के बाद दूसरी चीयरलीडर्स से भी उनके अनुभव के बारे में जानने की कोशिश की जानी चाहिए। कहीं कुछ चीयरलीडर ऐसी तो नहीं जो विवशता में अपना मुंह न खोल पा रही हों। आयोजन को दिलचस्प बनाया जाना चाहिए और नए प्रयोग भी करने चाहिए। पर नौबत यहां तक भी नहीं पहुंचनी चाहिए कि किसी गैब्रिएला को अपने ब्लाग में अपनी तकलीफ बयान करनी पड़े।
गैबरिएला की मानें तो उन्हें खिलाडिय़ों के शिकायत करने पर ही वापस भेजा गया है। अपने ब्लॉग के माध्यम से उसने कहा कि मुझे वापस भेज दिया गया जैसे कि मैं कोई अपराधी हूं, मुझसे इस तरह बात की गई जैसे मैंने ड्रग्स ली हो या फिर कोई बड़ी गलती की हो, मेरी बात रखने का भी मुझे मौका नहीं दिया गया। गैबरिएला ने जो सनसनीखेज खुलासा किया है वह यह है कि ज़्यादातर चीयरगल्र्स की क्रिकेटरों से नज़दीकियां हैं। उसने अपने ब्लॉग में लिखा है कि ये एक भद्दा मज़ाक है, सब जगह कैमरे रहते हैं और हर कोई देख सकता है कि इन पार्टियों में क्रिकटरों का रवैया क्या होता है। वो हमें गोश्त समझते हैं। गैब्रियाला ने अपने ब्लॉग में लिखा है, ग्रीम स्मिथ तो किसी के भी साथ फ्लर्टिंग कर सकता है इसलिए उसकी गर्लफ्रेंड उसके पीछे रहती है। कंगारू बहुत शरारती हैं। ऑस्ट्रेलिया में उनकी गर्लफ्रेंड हैं, लेकिन फिर भी वो यहां तीन-तीन लड़कियों के साथ रंगरेलियां मनाते हैं। कहते हैं मेरे कमरे में आओ कुछ काम है।
गैब्रियाला की सीक्रेट डायरी ऑफ एन आईपीएल चीयरलीडर में लिखा है कि भारत के लिए रवाना होने से पहले मेरे परिवार और दोस्तों ने मुझे कई समझाइश, सुझाव और टिप्स दिए थे। चूंकि ये मेरा पहला विदेशी दौरा था, मुझे इन सब बातों का ध्यान रखना चाहिए था। लेकिन मैंने खुले दिमाग और सकारात्मक रवैये के साथ भारत जाने का फैसला किया। ये सिर्फ एक विदेश में छुट्टी नहीं बल्कि मेरी जॉब थी और क्रिकेट के लिए दिमागी तौर पर मुझे खुद से ज्यादा कोई और बेहतर तैयार नहीं कर सकता था। यहां पूरे तीन हफ्ते गुजर चुके हैं और मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि किस प्रकार साधारण सी लड़कियों का समूह एकदम से सेलिब्रिटी बन सकता है। हम 40 लड़कियां हैं। हर दस लडि़कयों के ग्रुप के ऊपर एक मैनेजर है जिसने हमें कड़े दिशा निर्देश दे रखे हैं। हमें कहा गया है कि यदि कोई पूछे कि हम यहां क्यों आए हैं तो हमें यह बताना है कि हम छुट्टियां बिताने आए हैं। यहां लोग क्रिकेट के दीवाने हैं। सभी अपनी-अपनी फेवरेट टीम को फॉलो करते हैं। ऐसे में हम कौन हैं इसका खुलासा हमें मुश्किल में डाल सकता है। जिस दिन हमारी छुट्टी होती है हम भारत में घूमने निकल जाते हैं। लेकिन ये आसान नहीं होता। लोग आपको चलते फिरते पॉर्न की तरह देखते हैं। सबकी नजरें सिर्फ हम पर टिकी होती हैं। सभी पुरुष हमें ऊपर से नीचे तक देखते हैं। दूसरी ओर महिलाएं हमें ऐसे देखती हैं जैसे कि हम हैं ही नहीं। शाम 4 बजे से होने वाले मुकाबलों के बाद पार्टियां होती हैं। म्यूजिक, मदिरा और क्रिकेटर सब मिलकर पार्टियों की रंगीनियां बढ़ाते हैं। असली फन तो वीआईपी कमरों में होता है। उसने आगे लिखा है कि कुछ भारतीय क्रिकेटर तो बहुत शालीन हैं। धोनी और रोहित शर्मा तो बस कोने में बैठे रहते हैं। तेंडुलकर जैसे हॉटशॉट अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करते हैं। लेकिन यदि आपको जॉन्टी रोड्स और एल्बी मोर्केल मिल जाएं तो समझो आप फंस गए। ग्रीम स्मिथ बहुत फ्लर्ट करते हैं। शायद इसलिए उनकी गर्लफ्रेंड उनका पीछा नहीं छोड़ती।
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर मजेदार होते हैं लेकिन वो बहुत शरारती हैं। एडन ब्लिजार्ड और डेन क्रिश्चियन इसका उदाहरण हैं। हर लड़की के पास जाकर बस एक ही बात बोलते हैं, कमरे में चलो। ओह प्लीज! अब मुझे ऐहसास हो गया है कि दुनिया में सबसे ज्यादा लफंगे क्रिकेटर होते हैं। इसलिए मैंने तो यही सबक सीखा है, क्रिकेटरों से सावधान।
इंडियन प्रीमियर लीग पर क्रिकेट के अलावा ग्लैमर का भी तड़का रहता है। मैदान पर मासूम से दिखने वाले खिलाड़ी मैच के बाद होने वाली पार्टियों में कितने जंगली होते हैं, इस सच्चाई का खुलासा करना एक दक्षिण अफ्रीकी चीयरलीडर को भारी पड़ गया। गैब्रियाला पास्कालोटो नाम की इस मॉडल को पर्दे के पीछे की बातें सार्वजनिक करने के कारण स्वदेश वापस भेज दिया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक गैब्रियाला के ब्लॉग से क्रिकेटरों की निजी जिंदगी खतरे में पड़ गई थी। गैब्रियाला ने बताया है कि उन्हें भारत आते ही कुछ दिशा निर्देश दिए गए थे जिनके अंतरगत वो खिलाडिय़ों से ज्यादा दोस्ती नहीं बढ़ा सकती, क्योंकि इससे उनके प्रदर्शन पर असर हो सकता है। लेकिन कुछ चीयलगर्ल्स के क्रिकेटरों के साथ अंतरंग संबंध भी हैं, गैब्रियाला ने खुलासा किया। यकीनन क्रिकेटरों के बारे में गैबरियला की ये राय उनके फैन्स को हिला सकती हैं, जो क्रिकेटरों को दीवानगी की हद तक चाहते हैं। क्रिकेट की दुनिया की ये काला सच शर्मसार करने वाला है।

उल्लेखनीय है कि जब आईपीएल-3 समाप्त हुआ था तो अफगानिस्तान से मुजाहिद्दीन संगठन ने आईपीएल समिति को एक धमकी भरा खत भेजा था जिसमें वहां के मौलवियों ने आईपीएल के दौरान नाचने वाली चेयर लीडर लड़कियों को बुर्का फहनने की सलाह दी थी। उनके प्रवक्ता ने बताया था कि शर्म आंखों से होती है और बदनामी सूरत से, इसी लिये ये चीयर लीडर नीचे कुछ पहने या न पहने चेहरे पर बुर्का जरूरी है।
क्रिकेट भारत का खेल नहीं है परन्तु क्रिकेट के नशे ने समूची गरीब दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। दरअसल अब क्रिकेट की मालकियत सामन्तवाद के हाथ से निकलकर उद्योग जगत के हाथ पहुँच गयी है तथा देश व दुनिया के उद्योग जगत ने अपने सबसे बड़े अस्त्र मीडिया के माध्यम से क्रिकेट को ऐसे नशे में बदल दिया है, जिससे बच पाना अब भारत व एशिया के गरीब मुल्को को संभव नहीं दिखता।
आईपीएल और विवाद
1.भज्जी ने जड़ा श्रीसंत को थप्पड़-
आईपीएल 2008 में 26अप्रैल को मुंबई इंडियंस और किंग्स इलेवन के बीच मैच का रोमांच चरम पर था। तेज गेंदबाज श्रीसंत ने अचानक विकेट लेकर मैच का रुख अपनी ओर मोड़ लिया लेकिन वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आए और मुंबई के खिलाडिय़ों को चिढ़ाने लगे। मैच हारने के बाद भी श्रीसंत ने ऐसी हरकत की तो मुंबई के हरभजन आगबूबला हो गए और श्रीसंत पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। हरभजन को लीग के शेष मैचों के लिए सस्पेंड कर दिया गया लेकिन बोर्ड के हस्तक्षेप के बाद उनके बैन को 5 मैचों तक सीमित कर दिया गया।
2. चीयरगर्ल्स की ड्रेस पर बवाल-
दर्शकों को भरपूर मनोरंजन देने के लिए आईपीएल के मैचों के दौरान चीयरगर्ल्स का कॉन्सेप्ट लाया गया। एनबीए लीग की तर्ज पर हर मैच में चौके छक्के लगने या विकेट गिरने पर संबंधित टीमों की ओर से चीयरगर्ल्स मोहक अदाओं में डांस कर दर्शकों का मनोरंजन करने लगी। लेकिन जल्छ ही इस पर बवाल खड़ा हो गया। चीयरगर्ल्स के बेहद कम कपड़ों पर कई लोगों ने आंखें तरेरी और जयपुर व मुंबई में उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करवाया। कुछ नेताओं को भी चीयर करने का यह अंदाज नागवार गुजरा। इसी बवाल को देखते हुए आईपीएल के दौरान जयपुर व पुणे प्रशासन ने निर्देश दिए हैंैं कि चीयरगर्ल्स पारंपरिक ड्रेस मेंं रहें। साल 2009 में मोहाली में मैच के दौरान ब्रिटेन की कुछ चीयरगर्ल्स ने विजक्राफ्ट कंपनी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई कि उन पर नस्लभेदी टिप्पणी की गई और उनके रंग के कारण स्टेडियम में नहीं घुसने दिया गया।
3. सुरक्षा कारणों से जाना पड़ा अफ्रीका -
आईपीएल-1 का सफलतापूर्वक आयोजन करने के बाद आईपीएल-2 में भी दर्शकों का ऐसा ही समर्थन मिलने की उम्मीद थी लेकिन देश में हो रहे आम चुनावों के कारण सरकार ने लीग को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने से इनकार कर दिया। इस कारण लीग को देश से बाहर ले जाने का विकल्प ही बचा था। लीग के आयोजकों ने ललित मोदी के नेतृत्व में जल्द ही सारा इंतजाम किया और आईपीएल-2 को साउथ अफ्रीका में सफलतापूर्वक आयोजित किया।
4- पाक के खिलाडिय़ों को बाहर का रास्ता-
आईपीएल के पहले सीजन में पाकिस्तान के कई खिलाड़ी शामिल हुए थे। लेकिन मुंबई पर आतंकी हमले के बाद स्थितियां बदली और दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया। पीसीबी ने अपने खिलाडिय़ो ंको भारत न जारने की हिदायत दी तो आईपीएल में खिलाड्यि़ों की बोली के दौरान किसी भी टीम ने पाक खिलाडिय़ों को शामिल नहीं किया। यह सिलसिला तीसरे संस्करण तक भी जारी रहा। आईपीएल-4 के लिए फिर से लगी बोली में भी पाकिस्तानी खिलाडिय़ों को पूल में शामिल नहीं किया गया।
5.केकेआर में कप्तान,कोच व मालिक में आरपार-
कोलकाता नाइटराइडर में पहले सीजन से कोच कप्तान व मालिक के बीच मतभेद खुलकर सामने आए। टीम के कोच जॉन बुचनन के कहने पर मालिक शाहरुख खान ने दादा को कप्तानी से हटा दिया। बुचनन ने टीम के लिए एक से ज्यादा कप्तानों का फॉर्मूला सुझाया जिसे दादा ने खारिज कर दिया। शाहरुख को तगड़ा झटका उस वक्त लगबा जब उन्होंने सौरव से कहा कि वे पश्चिम बंगाल सरकार से फ्रेंचाइजी को टैक्स में छूट दिलाने की बात करें लेकिन दादा ने इसे ठुकरा दिया। इसके बाद दोनों में कुछ दिनों तक मनमुटाव रहा। इसका नतीजा आईपीएल-4 के लिए नीलामी के दौरान देखने को मिला जब शाहरुख ने दादा को रीटेन नहीं किया। इसके बाद भी दादा को किसी टीम ने नहीं खरीदा। हालांकि शाहरुख ने दादा को टीम का मेंटर बनने का प्रस्ताव दिया लेकिन दादा ने इसे भी ठुकरा दिया।
6- घोटालों के बाद ललित मोदी की छुट्टी-
आईपीएल को नई ऊंचाइयों और सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाने वाले आईपीएल के पूर्व कमिश्नी ललित मोदी को करोड़ों के घोटालों के आरोप में लीग से हाथ धोना पड़ा। मोदी पर आरोप हैं कि उन्होंने लीग में करोड़ों की धांधली की है। इसके बाद आयकर विभाग ने कर न चुकाने के आरोप में मोदी का पीछा किया। मोदी इस सबसे बचते बचाते फिरते रहे। इस बीच मोदी को आईपीएल और बीसीसीआई से हटाने की पूरी तैयारी हो गई। मोदी को 25 अप्रैल 2010 को फाइनल मैच के बाद आईपीएल चेयरमैन के पद से निलंबित कर दिया गया।
मोदी ने ट्वीट कर खुलासा किया कि कोच्चि फ्रेंचाइजी को खरीदने के लिए रॉन्देवू स्पेार्टस के साथ केंद्र सरकार में मंत्री रहे शशि थरूर का समर्थन प्राप्त है। और थरूर अपनी गर्लफ्रेंड सुनंदा पुष्कर को टीम का शेयर दिलाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। इस से बौखलाए थरूर ने भी ट्वीट कर जवाब दिया कि मोदी उनकी विरोधी कंसोर्टियम को फ्रेंचाइजी खरदने में मदद कर रहे हैं। इसी दौरान मोदी पर करोड़ों की धांधली वित्तीय जालसाजी और कर से बचने के आरोप भ्ज्ञी लगे। उनके खिलाफ कई एजेंसियों ने जांच शुरू कर दी। बीसीसीआई के साथ उनका मामला अभी तक कोर्ट में लंबित पड़ा है।
7. कोच्चि पर विवाद, थरूर से छिना मंत्री पद-
कोच्चि फ्रेंचाइजी अस्तित्व में आने से पहले ही विवादों में घिरी रही। रॉन्देवू स्पोर्टस को फ्रेेंचाइजी की बिड जीतने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा और यह आरोप लगा कि केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कोच्चि को बिड जिताने में मदद की। थरूर पर आरोप लगा कि उन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड सुनंदा पुष्कर को फ्री इक्विटी दिलाने की भी कोशिश की। काफी विवादों के बाद सुनंदा ने फ्री इक्विटी लौटा दी थी।
कोच्चि का विवाद यहीं नहीं थमा। झगड़ा अब रॉन्देवू स्पोर्टस के मालिक गायकवाड़ परिवार और कोच्चि के अन्य शेयरधारकों के बीच था। जिस कारण फ्रेंचाइजी एक कॉरपोरेट निगम के रूप में गठित नहीं हो सकी। इस बीच बीसीसीआई और आईपीएल गवर्निंग काउंसलि ने कोच्चि को तमाम विवाद सुलझाने के लिए 30 दिन का समय दिया। साथ ही कोच्चि को चेतावनी दी कि अगर तक तक कोई हल नहीं निकलता तो उसे आईपीएल से बाहर कर दिया जाएगा। हालांकि समय रहते कोच्चि के शेयरधारको ंके बीच विवाद काफी सुलझ गया था और रॉन्देवू को फ्री इक्विटी अन्य साथियों में बांटनी पड़ी।
8. रॉयल्स और किंग्स पर लटकी तलवार-
आईपीएल-1 की चैंपियन राजस्थान रॉयल्स और किंग्स इलेवन पंजाब को उस वक्त तगड़ा झटका लगा जब बीसीसीआई ने दोनों टीमों के आईपीएल -4 में शामिल होने पर रोक लगा दी। बीसीसीआई ने मालिकाना हक और शेयरहोल्डिंग के नियमों का उल्लंघन करने, कर न चुकाने व बोर्ड का उसकी फीस न चुकाने के आरोप में आईएल-4 से निलंबित कर दिया। हालांकि दोनों टीमों ने बाद में कोर्ट की शरण आर बॉबे हाईकोर्ट के दखल के बाद दोनो टीमों को आईपीएल-4 में शामिल होने की सशर्त इजाजत मिली। दोनों टीमों को आईपीएल-4 के लिए लगने वाली खिलाडिय़ों की बोली में सीमित पैसा खर्च करने का अधिकार था।
राजस्थान रॉयल्स आयकर न चुकाने के आरोप में भी आयकर विभाग के निशाने पर रही तो किंग्स इलेवन खिलाडिय़ों का बकाया न चुकाने व बोर्ड की फीस न भरने के आरोप में उसकी फजीहत हुई। दोनों टीमों में शेयरीहोल्डिंग को लेकर भी काफी विवाद हुआ।

Wednesday, May 11, 2011

अफसरों की एशगाह बना पर्यटन निगम

पर्यटन निगम से चालीस फीसदी के रियायती गोल्डन कार्ड से लुत्फ

भोपाल। भले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश को आने वाले समय में स्वर्णिम बनाने का प्रयास करें परन्तु अफसरों का स्वर्णिम मप्र तो पहले से ही बना हुआ है। उन्हें उच्च पदों पर आसाीन होने के कारण पहले से ही भारी भरकम सरकारी सुविधायें पहले से ही मिली हुई हैं परन्तु इसके अलावा वे मप्र पर्यटन विकास निगम का चालीस प्रतिशत रियायती गोल्डन कार्ड लेकर पर्यटन निगम की होटलों और उनके खानपान का जमकर लुत्फ उठा रहे हैं। सरकारी धन एवं सुविधाओं से बने पर्यटन निगम की होटलों को तो आम लोगों की पहुंच से दूर रखने के लिये पहले से ही भारी भरकम दरें निर्धारित की हुई हैं परन्तु अफसरों को इसका लाभ देने के लिये या उनका एशगाह बनाने के लिये उन्हें जमकर रियायतें दे रखी हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि पर्यटन निगम ने गरीब वर्ग के लोगों के लिये विभिन्न धार्मिक एवं प्राकृतिक पर्यटन केद्रों पर एक भी आउटलेट नहीं बनाया है जबकि राज्य की शिवराज सरकार एकात्म मानववाद का नारा देकर अंतिम पंक्ति पर बैठे व्यक्ति को सरकारी योजनाओं, कार्यक्रमों एवं गतिविधियों का लाभ देने का नारा लगाती है।
पर्यटन निगम को अफसरों की एशगाह बनाने का भडाफोड़ किया है एक एनजीओ संस्था जनसंवेदना ने। इस एनजीओ के प्रमुख राधेश्याम अग्रवाल ले सूचना के अधिकार का कानून के तहत पर्यटन निगम से अफसरों को रियायती कार्ड देने सम्बन्धी जो जानकारी हासिल की वह चौंकाने वाली है। इसमें लोकायुक्त से लेकर चीफ सेके्रटरी, डीजीपी, आयकर आयुक्त, मेजर जनरल और भारतीय वन सेवा के लोग तक भी शामिल हैं। कई महिला आईएएस एवं आईपीएस अधिकारी भी इस रियायत का लुत्फ उठाने में पीछे नहीं हैं। यही नहीं आयकर छापे में करोड़ों रुपये निवास से मिलने पर निलम्बित आईएएस अधिकारी अरविन्द जोशी को भी पर्यटन निगम ने इस साल गोल्डन रियायती कार्ड जारी किया हुआ है।
सूचना के अधिकार कानून के तहत लगे आवेदन पर पर्यटन निगम ने जानकारी दी है कि उसने अफसरों को गोल्ड कार्ड जारी किये हैं जिसमें पर्यटन निगम के होटलों के कक्षों में ठहरने हेतु चालीस प्रतिशत तथा खानपान पर तीस प्रतिशत की छूट दी जाती है। ऐसे गोल्डन कार्ड वर्ष 2009-10 तथा वर्ष 2010-11 दोनों में जारी किये गये हैं।
ये अफसर उठा रहे हैं गोल्डन कार्ड का लुत्फ :
राकेश साहनी, आभा अस्थाना, अनुराग जैन, वीरा राणा, प्रवेश शर्मा, प्रशांत मेहता, सुमित बोस, अंशु वैश्य, दिलीप मेहरा, अवनि वैश्य, एपी श्रीवास्तव, डीपी तिवारी, आईएस दाणी, एसपीएस परिहार, पद्मवीर सिंह, डीएस राय, सुधा चौधरी, मनोज झालानी, आरके स्वाई, अरविन्द कुमार जोशी, स्नेहलता श्रीवास्तव, रंजना चौधरी, एके अग्रवाल, मोहम्मद सुलेमान, केके सिंह, एएन अस्थाना, शहबाज अहमद, आलोक दवे, डीबी गंगोपाध्याय, एचएस पाबला, सुहास कुमार, पीके शर्मा, अनिल जैन, सुखराज सिंह, अरविन्द कुमार, एसके राउत, एमपी जार्ज, एमआर कृष्णा, डीजी कपाडिया, आईएस चौहान, पवन कुमार जैन, विजय कुमार, विजय रमन, संजीव कुमार सिंह, वीके पंवार, संजलय राणा, एमपी द्विवेदी, यूसी सारंगी, एमबी सागर, आरके दिवाकर, स्वराज पुरी, सीपीजी उन्नी, ओपी रावत, राजेन्द्र कुमार, रमन कक्कड़, यूके लाल, अन्वेष मंगलम, वीके सिंह, रमेश शर्मा, ओपी गर्ग, आईएन कंसोटिया, आरसी छारी, डीसी जुगरान, पंकज राग, आरपी कपूर, एससी बेहार, निर्मला बुच, केएस शर्मा, अलका उपाध्याय, अशोक दोहरे, हेमंत सरीन, महेश शर्मा, विश्वमोहन उपाध्याय, एसपी डंगवाल, एमके मोघे, आरपी शर्मा, एससी शर्मा, डीएस सेंगर, जेएस माथुर, एसआर मोहन्ती,एम मोहन राव, देवेन्द्र सिंघई, एम नटराजन, जयदीप गोविन्द, एएस जोशी, राकेश बंसल, राकेश अग्रवाल, राकेश बहल, वीआर खरे, डीएस माथुर, सरबजीत सिंह, मनोज झालानी, एके दुबे, शिखा दुबे, विनोद चौधरी, शिवनारायण द्विवेदी, अशोक दास, एसके मितना, अजीता वाजपेई, एआर पवार, शैलेन्द्र श्रीवास्तव, एमएम उपाध्याय, जब्बार ढाकवाला,केसी गुप्ता, विपिन दीक्षित, आरएस नेगी, एमएस राणा, एके रेखी, वीणा घाणेकर, वीरेन्द्र सिंह, आईएम चहल, केके तिवारी, आरबी सिंह, टी धर्माराव, राजन एस कटोच, शैलेन्द्र सिंह, विनोदानन्द झा, एसके वेद, राजेन्द्र मिश्रा, अजय कुमार शर्मा, के नायक, मेजर जनरल वायएस नेगी, जगदीश प्रसाद, आरके गर्ग, ललित कुमार सूद, आर परशुराम, एमआर आसुदानी, एससी वर्धन, अनिमेश शुक्ल, एसएन मिश्रा, पुरुषोत्तम शर्मा, एके राणा, आरबी सिन्हा, सुशाील कुमार लूथरा, पीपी नावलेकर, जीके सिन्हा, एमपी सिंह, पीएम शर्मा तथा एसपी शुक्ला।
क्या कहना है पर्यटन निगम का :
उच्च पदों पर बैठे सरकारी प्रमुखों को रियायती दर का गोल्डन कार्ड देने के बारे में पर्यटन निगम के अफसर चुप्पी साधे हैं। एक अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम तो ऐसी किसी भी रियाय के खिलाफ हैं परन्तु मंत्रालय में बैठे शासन के लोगों के दबाव में ऐसा करना पड़ता है।

115 करोड़ के घोटाले की फांस में शिव राज

जुलाई में मप्र की भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस बोलेगी हल्लाबोल
मछली तालाब से कितना पानी पीती है क्या आप इसका पता लगा सकते हैं....? बिल्कु ल इसी तरह ये पता लगाना भी मुश्किल है कि सरकारी अमला खजाने से कितना धन लूटता है। इसी उधेड़बुन में मध्यप्रदेश के अधिकारी और नेता मिलकर लूट-खसोट में जुटे हुए हैं। खुद को किसान पुत्र कहने वाले शिवराज के राज में किसान भी इस लूट से अछूते नहीं हैं। एक साल पहले प्रदेश के 36 जिलों में कर्ज माफी के नाम पर 115 करोड़ की हेराफेरी का मामला सामने आया था। राज्य की सहकारी बैंकों व प्राथमिक सहकारी समितियों ने धडल्ले से अपात्रों से मिलीभगत करके यह घपला किया था। इस घपले में जिला सहकारी बैंकों के 299 अधिकारी, 395 कर्मचारी एवं प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी दोषी पाए गए हैं किन्तु राज्य सरकार ने अभी तक केवल 10 कर्मचारियों को ही सेवा से पृथक करने की कार्यवाही की है। अब इस मामले को लेकर कांग्रेस सीबीआई जांच कराने की मांग की रही है तथा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी शिकायत कर चुकी है। सूत्र बताते हैं कि इस रीण माफी घोटाले को भुनाने के लिए कांगे्रस ने कमर कस ली है और जुलाई में मप्र की भाजपा सरकार के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की रणनीति तैयार की जा रही है। इस अभियान की जिम्मेदारी संभाली है नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने।
उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने मप्र के गरीब एवं बैंकों का कर्ज न पटा सकने वाले किसानों के ऋण माफ करने एवं उन्हें ऋण चुकाने में राहत देने की योजना के तहत राज्य सरकार को 914 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई थी। इस राशि से जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को उन किसानों के ऋण पूरी तरह माफ करने थे जिनके पास 5 एकड़ से कम भूमि है तथा वे 1997 से 2007 के बीच अपना कर्ज अदा नहीं कर सके हैं, इसके अलावा पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले ऐसे किसानों के लिए भी केन्द्र सरकार ने ऋण राहत योजना प्रारंभ की थी जो पिछले दस वर्षों तक बैंकों का ऋण नहीं चुका सके थे। जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार किसानों की ऋण माफी एवं ऋण राहत करना थी। ऋण राहत योजना में 5 एकड़ से बड़े किसानों को एकमुश्त राशि जमा करने पर 25 प्रतिशत ऋण से मुक्ति देने की योजना थी। लेकिन यह जानते हुए कि सहकारी बैंकों में बैठे नेता और दलाल घपले से बाज नहीं आएंगे, राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि सभी जिलों सहकारी बैंकों को भेज दी। सहकारी बैंको ने भी बेहद लापरवाही का परिचय दिया और ऋण राहत एवं ऋण माफी के प्रकरण प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से तैयार कराए। इन समितियों में स्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं होती। जिला सहकारी बैंकों के कर्मचारियों, अधिकारियों एवं समितियों ने सदस्यों ने मनमाने ढंग से जिस किसान का ले देकर कर्ज माफ कर दिया। केन्द्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि केवल कृषि ऋण ही माफ किया जाएगा, लेकिन बैंकों एवं सहकारी समितियों ने मकान, मोटर सायकिल, चार पहिया वाहनों के ऋण भी माफ कर दिए।
मप्र विधानसभा में कांग्रेस के विधायक डा. गोविन्द सिंह ने 28 जुलाई 2009 को यह मामला विधानसभा में उठाया। इसके बाद 23 जुलाइ्र 2009 को विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर ध्यानाकर्षण सूचना के तहत सरकार का ध्यान इस घपले की ओर आकर्षित किया। तब सहकरिता मंत्री ने घपले को स्वीकार करते हुए 31 दिसम्बर तक इसकी जांच कराने एवं दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का भरोसा दिलाया था। लेकिन इस घपले की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है।
10 मार्च 2010 को कांग्रेस के डा. गोविन्द सिंह ने प्रश्र के माध्यम से फिर से इस मामले को विधानसभा में उठाया तो सहकारिता मंत्री बिसेन ने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होंने सदन में स्वीकार किया कि इस योजना में अभी तक की जांच में 114.81 करोड़ की अनियमितता हो चुकी है। उसके बाद इस वर्ष बजट सत्र के दौरान भी कांग्रेस ने इस मुददे को लेकर कई बार हंगामा किया लेकिन परिणाम सिफर रहा।
कांग्रेस का आरोप है कि केन्द्र की कर्ज माफी योजना के जरिए किसानों को मिलने वाली 200 करोड़ की राहत का किसानों के नाम पर अपहरण हो गया और इसकी भनक किसानों को लगी भी नहीं और प्रदेश के नेता और अफसर तो किसानों के कर्ज से मालामाल हो रहे हैं। यूपीए सरकार ने जब कर्ज माफी का ऐलान किया तो हरदा जिले के बघवार गांव में रहने वाले किसान गरीबदास को लगा पैसा ना सही कर्जे से मुक्ति ही सही कुछ तो फायदा होगा। आठ एकड़ जमीन के मालिक गरीबदास को सहकारी बैंक के पचास हजार रुपये चुकाने थे। कर्जा जस का तस है। ये अलग बात है कि कर्जा माफी की लिस्ट में गरीबदास के नाम से 32,090 रुपए माफ हो चुके हैं।
किसानों के कर्ज माफी की लिस्ट की तरह बैंक के गोलमाल की लिस्ट भी लंबी है। कमल सिंह पांच एकड़ के किसान हैं। नियम कायदे से इनका पूरा कर्जा माफ होना था। बेचारे दो साल में पच्चीस हजार रुपए बैंक में जमा कर चुके हैं। इनके नाम पर भी लिस्ट में 22,162 रुपए की माफ हुई। लेकिन फायदा कमल को नहीं मिला। दिलावर खान की कहानी चौंकाने वाली है। इनके वालिद का नाम नेक आलम है लेकिन लिस्ट में दिलावर का धर्म ही बदल गया। इनकी वल्दियत में रामसिंह का नाम लिखा है। जबकि दिलावर रामसिंह नाम का कोई शख्स हरदा जिले की टिमरनी तहसील के करताना गांव में रहता ही नहीं। इस नाम पर लिस्ट में 11,400 रुपए माफ कर दिए गए। कर्ज माफी के इस अपहरण से जुड़े दस्तावेज साबित करते हैं कि होशंगाबाद और हरदा जिलों में ही 13 करोड़ से ज्यादा के फर्जी कर्ज माफी क्लेम बनाए गए हैं। जब दो जिलों का ये हाल है तो पचास जिलों में क्या हुआ होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं। गोंदा गांव में रहने वाले रामनारायण के तीन खाते हैं। इन खातों में दो लाख से ज्यादा की कर्ज माफी हो गई। लेकिन हरदा जिले के इस गरीब किसान को कर्ज माफी की भनक तक नहीं लगी। सहकारी बैंक से लगातार जल्दी ही कुछ करने का भरोसा दिलाया जा रहा है। गोंदा गांव के ही रेवाराम ने पिछले साल साठ हजार रुपए बैंक का कर्ज चुकाने के लिए जमा किए। इसके बाद भी इनके दो खातों पर डेढ़ लाख रुपए का कर्ज माफ हो गया। बगैर पढ़े-लिखे किसान सहकारी बैंकों के गोलमाल में फंसकर रह गए।
ज्यादातर मामलों में बैंकों ने ऐसे कर्जे भी माफ कर दिए जो खेती के लिए नहीं लिए गए थे। कई जगह तो खेती की आड़ में मोटर साइकिल, जीप और घरों के कर्ज माफ हो गए। सरकार ने विधानसभा में भी माना है कि 36 जिलों में हेराफेरी हुई। सींधी और सिंगरौली जिलों में तो बैंक के रिकॉर्ड ही गायब हो गए। भिंड जिले में गोलमाल के ही रिकॉर्ड मिले। जाहिर है कि सहकारी बैंक के मैनेजरों की जानकारी के बगैर ये हेराफेरी नामुमकिन है। बीजेपी के राज में ज्यादातर बैंकों में बीजेपी के ही नेता अध्यक्ष बनकर बैठे हैं। सबकी आंखे बंद थीं या फिर बंद होने का नाटक कर रही हैं।
आखिर को-ऑपरेटिव बैंक करोड़ों की हेराफेरी करते कैसे हैं। इसकी पड़ताल करने पर पता चला है कि किसानों को उनके खाते की न तो पासबुक दी जाती है, ना ही कर्जे के हिसाब-किताब के लिए ऋण पुस्तिका। नतीजा ये कि किसानों को न तो कर्ज का पता चलता है न कर्ज माफ का। लिस्ट में कई ऐसे फर्जी नाम भी हैं जिनका असल में कोई वजूद ही नहीं। गोंदा गांव में कर्ज माफी घोटाले की कहानी किसी का भी होश उड़ाने के लिए काफी है। हरदा जिले के इस गांव के किसानों को खबर ही नहीं लगी कि केन्द्र सरकार ने उनका कर्ज माफ किया। लिस्ट में तमाम नाम ऐसे हैं जो इस गांव में ढूंढ़े से भी नहीं मिले। लेकिन इनके नाम पर लिया कर्ज माफ हो चुका है।
हरिओम वल्द रामदास....माफ हुए....9707 रुपए
मंगलसिंह वल्द गुलाबसिंह....माफ हुए....5863 रुपए
विजय सिंह वल्द सूरत सिंह....माफ हुए...11017 रुपए
चमनसिंह वल्द गजराज सिंह....माफ हुए...37208 रुपए
देवीसिंह वल्द कल्लू सिंह....माफ हुए.....61687 रुपए
मंगल सिंह वल्द रामाधऱ....माफ हुए....57147 रुपए
अधार वल्द पूनाजी....माफ हुए....86593 रुपए
जगदीश वल्द बहादुर...माफ हुए...81051 रुपए
गोंदा के पड़ोस में सडोरा नाम का एक गांव ऐसा भी है जहां को ऑपरेटिव बैंक के एक भी खातेदार के पास पासबुक नहीं। गांव वाले बार-बार पासबुक मांगते हैं तो हर बार जवाब मिलता है बन रही हैं। जगदीश प्रसाद के खाते से कब 27,000 रुपए का लोन हो गया उसे पता ही नहीं चला। ना तो उसने कहीं दस्तखत किए ना ही कहीं अंगूठा लगाया। मगर जब नोटिस आया तो आंखें खुली रह गईं। गांव के ही किसान कमलकिशोर को भी एक अदद पासबुक की दरकार है जो अब तक नहीं मिली।
देर से ही सही कांग्रेस को भी केन्द्र की कर्जा माफी में हुआ घोटाला नजर आने लगा है। पार्टी में इस घोटाले की सीबीआई जांच कराने की मांग चल रही है। कांगे्रस प्रदेश अध्यक्ष भूरिया का कहना है कि किसान ऋण-पुस्तिका लेकर घूम रहा है पर उसका कर्जा माफ नहीं हो रहा है। भारत सरकार ने किसानों के कर्जमाफी के लिए करोड़ों रुपये राज्य सरकार को दिए पर उसमें से 114 करोड़ रुपये भाजपा नेताओं की जेब में चले गए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी कहते हैं कि 114 करोड़ रूपये के घोटाले की बात राज्य सरकार स्वयं विधानसभा में स्वीकार कर चुकी है। राज्य सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि यह राशि और बढ़ सकती है। पचौरी कहते हैं कि वे इस संबंध में प्रधानमंत्री से बात कर चुके हैं। उधर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कहते हैं कि केन्द्र शासन द्वारा किसानों के हित में ऋण माफी की योजना प्रदेश में भ्रष्टाचार और घोटाले में फंस गई और पात्र एवं गरीब किसान ऋण माफी के लिए अभी से परेशान है। सरकार के संरक्षण में सहकारिता विभाग दोषी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को बचाने की कोशिश कर रहा है और इसी कारण अभी तक केवल पन्ना जिले का ही प्रकरण आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो को सौंपा जा सका है।
इस मामले का पर्दाफास करने वाले कांगे्रसी विधायक डा. गोविन्द सिंह कहते हैं कि यह मप्र के इतिहास में किसानों के नाम पर किया गया अभी तक का सबसे बड़ा घोटाला है। राज्य सरकार द्वारा दोषी अधिकारियों कर्मचारियों को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं, इससे उसकी नीयत पर भी शक हो रहा है।

एक नजर में
- योजना का नाम : कृषि ऋण माफी एवं
ऋण राहत योजना 2008
- कुल आंवटित राशि : 916 करोड़ रुपए
- सरकार द्वारा स्वीकार घपला : 114.81 करोड़
- कुल घपला : लगभग 200 करोड़
- दोषी अधिकारी : 218
- दोषी कर्मचारी : 395 बैंक के
- दोषी कर्मचारी : 1507 प्राथमिक सहकारी समिति के
- देाषी कर्मचारी सेवा से पृथक : मात्र 10 प्राथमिक समितियों के

मप्र भाजपा में बढ़ता स्त्रीवाद

भारतीय जनता पार्टी की नाम राशि धनू है। इस राशि का स्वामी गुरु है लेकिन मध्य प्रदेश के संदर्भ में इनदिनों इस पार्टी में कन्या(राशि) का प्रभाव बढ़ा है। जहां पार्टी की कमान कन्या राशि वाले प्रभात झा के हाथ में है वहीं कई कदावर मंत्रियों और नेताओं की पत्नियों और बहुओं ने उनका संरक्षण पाकर अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाते हुए महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हैं। इसमें सबसे तेजी से जो नाम उभर कर सामने आया है वह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह का। इसकी शुरूआत तब हुई जब महिला सम्मेलन में भाग लेने आईं भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष स्मृति ईरानी ने मीडिया के सामने ही साधना सिंह से कह दिया था कि भाभी, मैं आपको संगठन में खींच लूंगी, मुझे आपकी जरूरत है। यह सुनकर साधना सिंह के चेहरे पर जो मुस्कुराहट थिरकी थी, उसे देखने के बाद इस बात में रंचमात्र भी संशय नहीं रह गया था कि साधना सिंह जल्दी ही सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने वाली हैं। 11 अक्टूबर 2010 को प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष नीता पटेरिया ने जब कार्यकारिणी घोषित करते हुए साधना सिंह को उपाध्यक्ष बनाया तो सक्रिय राजनीति में साधना सिंह का औपचारिक रूप से प्रवेश हो गया और इसके ठीक एक माह बाद साधना सिंह को होशंगाबाद जिले का प्रभारी बनाए जाने के साथ ही इन चर्चाओं ने भी जोर पकड़ लिया कि वे आगामी लोकसभा चुनावों में होशंगाबाद सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ सकती हैं।
वैसे साधना सिंह की राजनीतिक दिलचस्पी भी किसी से छुपी नहीं है। जब शिवराज विदिशा से सांसद थे तो कार्यकर्ताओं के बीच साधना सिंह पति के निर्वाचन क्षेत्र की चिंता करती थीं। मुख्यमंत्री बनने के बाद से की साधना सिंह का राजनीतिक ग्राफ लगातार ऊपर उठ रहा है। मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शिवराज ने लोकसभा से इस्तीफा दिया तो उपचुनाव के लिए वरुण गांधी के साथ साधना सिंह का नाम भी उछला था लेकिन शिवराज सिंह ने अपने आलोचकों को ध्यान में रखते हुए अपने मित्र रामपाल सिंह को मौका दिया। जब 2009 में लोकसभा के आमचुनाव हुए तब भी कहा गया कि साधना सिंह को विदिशा से लोकसभा में भेजकर शिवराज अपना विकल्प सुरक्षित रखना चाहते हैं लेकिन इस बार लोकसभा की नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज पहुंच गईं। अब श्रीमती इस सीट को छोडऩे के मूड में नहीं है। वह भारी व्यस्तता के बावजूद जिस तरह से विदिशा संसदीय क्षेत्र को वक्त दे रही हैं, उससे साफ है कि सुषमा जी आगे भी अपनी संसदीय पारी विदिशा से ही जारी रखना चाहेंगी। ऐसे में साधना सिंह की निगाह होशंगाबाद संसदीय सीट पर है। यह सीट पिछले चुनाव में भाजपा के हाथ से छिनकर कांग्रेस के खाते में जा चुकी है। इस साल जनवरी में मुख्यमंत्री ने अपने गृह ग्राम जैत में स्वामी अवधेशानंद जी के प्रवचन कराए थे। इस हाई प्रोफाइल प्रवचन में सबसे ज्यादा फोकस होशंगाबाद क्षेत्र को ही किया गया था।
मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के साथ ही यदि मंत्रियों की ओर निगाह दौड़ाई जाए तो उसमें सबसे ज्यादा प्रभावी जल संसाधन विकास मंत्री जयंत मलैया की पत्नी सुधा मलैया का नाम आता है। सुधा मलैया की सक्रियता राजनीति से लेकर पत्रकारिता और पुरातत्व प्रेम से लेकर इंजीनियरिंग कॉलेज के संचालन तक कहीं भी देखी जा सकती है। भाजपा संगठन में कई ओहदों के साथ वह राष्टï्रीय महिला आयोग की भी सदस्य रह चुकी है। श्रीमती मलैया की इच्छा भी चुनाव लडऩे की रही है लेकिन जयंत मलैया की दमोह विधानसभा क्षेत्र में गहरी पैठ और लगातार चुनाव जीतने के कारण उन्हें अब तक मौका नहीं मिला है।
प्रदेश के तेजतर्रार नेता और उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की पत्नी आशा विजयवर्गीय अपने-अपने पति के राजनीतिक काम में सीधे कोई दखल नहीं देती, लेकिन वह घर पर मोर्चा संभालते हुए श्री विजयवर्गीय के समर्थकों और कार्यकर्ताओं का खुद ध्यान रखती है। उन्होंने सीधे राजनीति में आने के बजाए एक स्वयं सेवी संस्था आशा फाउंडेशन एसोसिएशन आफ सेल्फ हेल्प एक्शन के जरिये समाज सेवा का बीड़ा जरूर उठा रखा है। यह संस्था इंदौर में गरीबों के लिए काम करने वाली संस्थाओं को मदद करती है। खासियत यह है कि इसने सरकार से मदद के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं ली, लेकिन जरूरतमंद बच्चों को कापी किताबों से लेकर गरीब लड़कियों के विवाह में मदद करने में आशा फाउंडेशन आगे है। जब इंदौर में भाजपा का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था तब हजारों लोगों के लिए मालवी भोज की जिम्मेदारी यानी कैटरिंग व्यवस्था उद्योगमंत्री की पत्नी आशा विजयवर्गीय ने बखूबी निभाई। मालवा के जायकेदार पकवान खा कर नेतागण उंगली चाटते दिखाई दए। दाल-बाफलों ने तो सबका मन हर लिया।
प्रदेश के आदिवासी कल्याण मंत्री कुंवर विजय शाह की पत्नी भावना शाह भी अपने पति के चुनाव क्षेत्र की देखभाल करते-करते खुद भी राजनीति में आ गई है। वह खंडवा की महापौर है और अपने पति से भी दो कदम आगे बढ़कर काम कर रही है। मध्यप्रदेश के खंडवा शहर की मेयर भावना शाह कुछ वर्ष पूर्व एक घरेलू महिला थीं। परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि ने उन्हें समाज सेवा की तरफ मोड़ दिया। सामाजिक कार्यो में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें मेयर का चुनाव लडऩे का मौका मिला। अब वह घर व शहर दोनों की जिम्मेदारी बड़े ही सलीके से संभाल रही है।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गौरीशंकर बिसेन की पत्नी रेखा बिसेन की राजनीति में सक्रिय रह चुकी है। वह बालाघाट की जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी है। बिसेन जब लोकसभा में थे तब वह विधानसभा चुनाव के लिए टिकट की दौड़ में भी रह चुकी है। अभी वह प्रदेश भाजपा महिला मोर्चे की कोषाध्यक्ष है।
बाबूलाल गौर की पत्नी और बेटे तो राजनीतिक फलक पर कभी सक्रिय नहीं दिखे लेकिन गौर के बेटे पुरुषोत्तम गौर की असामयिक मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कृष्णा गौर राजनीति में जरूर सक्रिय हुईं। गौर ने मुख्यमंत्री रहते हुए उनको राज्य पर्यटन विकास निगम का अध्यक्ष बनाकर सबको चौंका दिया था पर विरोध के कारण उन्हें यह पद छोडऩा पड़ा। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उन्होंने कृष्णा गौर को न सिर्फ भोपाल की महापौर का टिकट दिलाया बल्कि जिताया भी। आज कृष्ण गौर एक परिपक्व नेत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं।
लोक निर्माण मंत्री नागेन्द्र सिंह की पत्नी पद्यमावती सिंह राजनीति के सीधे तौर पर सक्रिय तो नहीं है लेकिन उनकी पुत्रवधु सिमरन सिंह नागौद नगर पंचायत अध्यक्ष है। ग्वालियर के वरिष्ठï भाजपा नेता नरेश गुप्ता अपने पुत्र को तो आगे नहीं बढ़ा सके लेकिन उन्होंने भी अपनी पुत्रवधु समीक्षा गुप्ता को ग्वालियर का महापौर बनवाया है। वित्त मंत्री राघवजी ने तमाम विरोध के बाद भी बेटी ज्योति शाह को नगरपालिका अध्यक्ष बनाने में सफल रहे।
प्रदेश भाजपा में पुरुष नेताओं से उलट ऐसी नेत्री भी रही हैं जिन्होंने अपने पति को या तो पीछे छोड़ा या उन्हें आगे बढ़ाया। भाजपा के पूर्व मंत्री ध्यानेंद्र सिंह की पत्नी माया सिंह तो अपने पति को भी राजनीति में पीछे छोड़ते हुए राज्यसभा के जरिए केंद्रीय राजनीति में पहुंच गईं जबकि पति पूर्व मंत्री से पूर्व विधायक की स्थिति में चले आए। इसके विपरीत पटवा काबीना में संसदीय सचिव रहीं रंजना बघेल ने शिवराज काबीना में महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री का ओहदा पाया। उन्होंने अपने पति मुकाम सिंह किराड़े को विधायक बनवाकर ही दम लिया। रंजना ने उन्हें धार से 2009 के लोकसभा का टिकट दिलाया था लेकिन वह हार गए तो जमुना देवी के निधन के बाद उन्हें विधानसभा उपचुनाव का टिकट मिला।
कुछ ऐसे मंत्री भी हैं जिन्होंने अपनी पत्नियों को राजनीति से बिल्कुल दूर रखा है। इनमें सबसे पहला नाम है गोपाल भार्गव। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले साल करवा चौथ पर सारे मंत्रियों को अपनी पत्नियों के साथ मुख्यमंत्री निवास पर भोजन के लिए बुलाया था तो भार्गव सहित कुछ मंत्री अकेले ही वहां पहुंच गए थे। शिवराज ने उनको तब इस बात पर चटखारे भी लिए थे लेकिन सच तो यही है कि पिछले सात सालों में केवल एक मौका ही ऐसा आया जब भार्गव की पत्नी गढ़ाकोटा से भोपाल आईं और उनके सरकारी बंगले में रुकीं। नरोत्तम मिश्रा, राजेंद्र शुक्ल और पारस जैन आदि भी ऐसे मंत्री हैं जो पत्नियों को राजनीति के चमक-दमक भरे माहौल से दूर रखते हैं।
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मुख्यमंत्रियों की पत्नियों की राजनीतिक महत्वकांक्षा
मध्य प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्रियों की पत्नियों की राजनीतिक महत्वकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। इस प्रदेश का जो भी मुख्यमंत्री हुआ है यहां के राजनीतिक और प्रशासनीक वीथिका में उनकी पत्नी का प्रभावी हस्तक्षेप रहा है। मोतीलाल वोरा और दिग्विजय सिंह जरूर ऐसे अपवाद रहे हैं जिन्होंने अपनी पत्नी शांति वोरा और आशा सिंह को राजनीति के जंजाल से दूर रखा। जबकि श्यामाचरण शुक्ल के मुख्यमंत्रित्व काल में उनकी पत्नी पद्मिनी शुक्ल का दबदबा था। प्रकाशचंद्र सेठी के आने के बाद इस पर विराम लगा लेकिन अर्जुन सिंह के दौर में उनकी पत्नी सरोज सिंह का वजन होता था। एक ब्यूरोक्रेट ने तो उनके घरेलू नाम (बिट्टन) पर बाजार का नाम ही रख दिया था। बहुत कम लोगों को यह बात पता है कि नए भोपाल का मशहूर बिट्टन मार्केट सरोज सिंह के नाम पर ही है। यह नामकरण भी देश के ईमानदार प्रशासकों में शुमार हासिल एमएन बुच ने किया था। सुंदरलाल पटवा की पत्नी फूलकुंअर पटवा तो गाहे-बगाहे ही अपने पति के साथ किसी राजनीतिक कार्यक्रम में दिखीं लेकिन कैलाश जोशी की पत्नी तारा जोशी ने पूरी शिद्दत के साथ भाजपा की राजनीति में शिरकत की थी।