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भेड़ाघाट

Wednesday, January 15, 2014

अपने और आप की फांस में अरूण यादव

क्षत्रपों के चक्रव्यूह को तोडऩा अरुण के लिए चुनौती
भोपाल। मध्य प्रदेश में राजनीति के वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस को उबारने की जिम्मेदारी आलाकामन ने अरूण यादव को सौंप तो दी है लेकिन Óसिर मुढ़ाते ही ओले पड़ेÓ की तर्ज पर वे अपने(कांग्रेसियों) और आप (आम आदमी की पार्टी)की फांस में फंस गए है।
उल्लेखनीय है कि यादव को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस नेतृत्व ने अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने की कोशिश की है कि प्रदेश के क्षत्रपों की अब ज्यादा नहीं चलेगी। लेकिन इसी तरह के संकेत पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव के पूर्व भी दिए थे,लेकिन हुआ वही जो क्षत्रपों ने चाहा। इस लिए यादव को को उनके पिता सुभाष यादव के साथियों से पार पाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। प्रदेश में सहकारिता के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले सुषाभ यादव के साथ दिग्विजय, कमलनाथ और सुरेश पचौरी ने भी राजनीति शुरू की थी। अरुण की राह में ये तीनों क्षत्रप सबसे ज्यादा मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। इनको साथ लेकर चलना भी नए पीसीसी चीफ के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। प्रदेश कांग्रेस की राजनीति से अब तक अपने को दूर रखने वाले सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को वैसे तो पिता की विरासत में हर ब्लाक और जिले में समर्थक मिले हैं, लेकिन उनके पिता के गुट की उपेक्षा के कारण अब ये सब लोग हाशिए पर हैं। ऐसे में अरुण यादव को संगठन के अलावा अपनी अलग से नई टीम बनाना होगी। जिसमें पिता से जुड़े लोगों को एक साथ लाना होगा। प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में बरसों से छाए क्षत्रपों को भी साधना चुनौती है। हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि अरुण यादव को अध्यक्ष बनाने के पीछे केंद्रीय नेतृत्व अगले पांच सालों में प्रदेश कांग्रेस संगठन को फिर से मजबूत करना चाहता है। ऐसे में अरुण प्रदेश अध्यक्ष की लंबी पारी खेल सकते हैं। इसलिए ही हाईकमान ने युवा नेतृत्व को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी है।
क्या अरूण को पचा पाएंगे दिग्गज
आलाकमान ने अरूण यादव को प्रदेश की कमान तो सौंप दी है,लेकिन सवाल उठता है कि अपने से बहुत जूनियर को कांग्रेस के क्षत्रप अपना नेता मान सकेंगे। इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री असलम शेर खान कहते हैं कि कमलनाथ,दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रहते मप्र मे कांग्रेस कभी खड़ी नहीं हो सकती। वे कहते हैं कि अरुण यादव को इन तीनों से दूर रहना चाहिए। इससे पहले कांग्रेस की तेजतर्रार नेत्री कल्पना परुलेकर ने बगावती तेवर दिखाते हुए यह तक कह दिया कि, 'मप्र कांग्रेस का अध्यक्ष अरुण यादव क्या कोई भी बन जाए, जब तक गद्दारों को सजा नहीं मिलती, पार्टी का भला होने से रहा।Ó यह मामला अभी राजनीतिक गलियारों में चर्चा से बाहर आ भी नहीं पाया था कि अब नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता आलोक अग्रवाल ने घाटी प्रभावित हजारों लोगों के संग आप की सदस्यता लेने का ऐलान किया है। उन्होंने खंडवा से अरुण यादव के खिलाफ लोकसभा चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है।
एक साथ कई चुनौतियां
यादव के सामने एक संग कई चुनौतियां आकर खड़ी हो गई हैं। पहली चुनौती दिग्गज नेताओं से समन्वय बिठाकर अपनी टीम का गठन करना। यादव की ताजपोशी से पीसीसी के कई पदाधिकारियों की छुट्टी होना तय माना जा रहा है जिनमें प्रदेश उपाध्यक्ष बिसाहू लाल सिंह, अरुणोदय चौबे, हुकुम सिंह कराड़ा, विजय दुबे, मोहम्मद अबरार के साथ महासचिव सुनील सूद, गोविंद गोयल, शशि कथूरिया, संजय ठाकुर, बटनलाल साहू, रवि जोशी, रघुवीर सिंह सूर्यवंशी और शांतिलाल पडियार शामिल हैं। ऐसे में इन नेताओं के आका दिग्गज नेताओं को साधना अरूण के लिए बड़ी चुनौती होगी। वहीं इंदौर एक से विधायक रह चुके रामलाल यादव बल्लू भैया, केके मिश्रा को महत्व मिल सकता है। इसी तरह रीवा के विमलेंद्र तिवारी, भोपाल के पूर्व महापौर दीपचंद यादव को भी संगठन में महत्व मिल सकता है। विधायक मुकेश नायक और प्रवक्ता रवि सक्सेना का संगठन में कद बढ़ेगा।
अरूण के सामने दूसरी चुनौती है लोकसभा चुनाव में पूरी तैयारी के साथ उतरना। चुनाव निकट हैं विधानसभा चुनाव में बुरी पराजय के बाद कांग्रेस क मनोबल टूटा हुआ है। ऐसे में कांग्रेस की लोकसभा की 12 सीटें बचाना अरुण यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
तीसरी चुनौती अंदरुनी कलह है। कांग्रेस में कलह इस कदर है कि असलम शेर खान और कल्पना परूलेकर खुलेआम पार्टी गाइड लाइन की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कांग्रेस की तेजतर्रार नेत्री में शुमार कल्पना परुलेकर लंबे समय से अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज चल रही हैं। उन्होंने आप में जाने का ऐलान कर दिया है। इस लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अरुण यादव के सामने पार्टी की अंदरुनी कलह दूर करने के अलावा अब पार्टी में आप की सेंधमारी रोकना भी एक बड़ी चुनौती होगी। दअरसल, नर्मदा बचाओ आंदोलन से हजारों गांववाले जुड़े हुए हैं। ये वो डूब प्रभावित हैं, जो उचित मुआवजा नहीं मिलने के कारण वर्षों से लगातार संघर्ष करते आ रहे हैं। हालांकि ये भाजपा के लिए भी चुनौती हैं, लेकिन वे इस बात से भी नाराज हैं कि सांसद रहते हुए अरुण यादव ने उनकी आवाज को ताकत नहीं दी।
खंडवा की सीट बचाना टेड़ी खीर
अब नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता आलोक अग्रवाल ने अरुण यादव के खिलाफ खंडवा से लोकसभा चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है। हालांकि सूत्रों के मुताबिक, अरुण यादव संभवत: इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। यदि वे चुनाव लड़ते हैं, तो इस बार उन्हें नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक अग्रवाल का सामना करना होगा। आलोक अग्रवाल ने आप की सदस्यता लेने का ऐलान करते हुए खंडवा से अरुण यादव के विरुद्ध चुनाव लडऩे की घोषणा की है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता आलोक अग्रवाल ने दावा किया कि बहुत जल्द लाखों डूब प्रभावित आप में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि करप्शन सबसे बड़ा मुद्दा है, जो डूब प्रभावितों के अलावा सब पर बुरा असर डालता है।
खत्म हुआ दिग्गी राजा का वक्त!
कांग्रेस आलाकमान ने मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए पार्टी सचिव एवं सांसद अरुण यादव पर भरोसा जता कर एक ओर जहां अन्य पिछड़ा वर्ग कार्ड चला है, वहीं पीसीसी में लंबे समय बाद किसी भी महत्वपूर्ण पद पर कांग्रेस महासचिव एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खेमे को जगह नहीं दी गई है। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे और अब पीसीसी मुखिया अरुण यादव केन्दीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे से हैं। युवा कांग्रेस और महिला कांग्रेस में भी अब दिग्विजय समर्थक नहीं हैं। इससे पहले राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह और पीसीसी मुखिया सांसद कांतिलाल भूरिया और युवा कांग्रेस अध्यक्ष प्रियव्रत सिंह को दिग्विजय सिंह का समर्थक माना जाता था। हालांकि अब भी प्रदेश कांग्रेस में सबसे अधिक संख्या दिग्विजय समर्थक नेताओं एवं विधायकों की ही है, लेकिन चूंकि विधानसभा चुनाव में दिग्विजय समर्थकों के नेतृत्व में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है, इसलिए इस बार होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दूसरे खेमे को महत्व दिया गया है।
पुराने नेताओं के दिन लदे
प्रदेश कांग्रेस के इतिहास में सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने अरुण यादव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर खंडवा के सांसद अरुण यादव की ताजपोशी के साथ ही प्रदेश में अब कांग्रेस के पुराने नेताओं के दिन लदते नजर आ रहे हैं। वे प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने वाले अब तक के सबसे कम उम्र के नेता होंगे। यादव केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं और अभी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव हैं। प्रदेश में कांग्रेस नेताओं के अंतरकलह से त्रस्त केंद्रीय नेतृत्व के इस फैसले को लोकसभा चुनाव की दृष्टि से अहम व नए नेतृत्व को आगे लाने की शुरुआत कहा जा रहा है। अजयसिंह व महेंद्रसिंह कालूखेड़ा जैसे दिग्गजों को नेता प्रतिपक्ष पद पर दरकिनार कर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने विवादों से परे रहने वाले सत्यदेव कटारे को कुछ दिन पहले ही यह दायित्व सौंपा था। विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद कांतिलाल भूरिया द्वारा इस्तीफा देने, सिंधिया के प्रदेश कांग्रेस का दायित्व संभालने से मना करने के बाद से ही अरुण यादव का नाम भी इस पद के लिए चर्चा में था।
जातिगत समीकरण की अहम भूमिका
जातिगत समीकरण के आधार पर पदों का बंटवारा करने वाली कांग्रेस में यादव को यह पद मिलने में भी यही समीकरण काम आए। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद पर ब्राम्हण, उपनेता आदिवासी व उपाध्यक्ष के रूप में क्षत्रिय को मौका देने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद पिछड़ा वर्ग के नेता को जाना तय था।

सर्वे कराकर लोकसभा टिकट बांटेगी भाजपा

शिवराज का टारगेट-29 .........
23 से मोदी फॉर पीएम अभियान शुरू करेगी भाजपा
22 से शिवराज जिलों में करेंगे सभाएं
भोपाल। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए भाजपा ने लोकसभा की 545 में से 272 सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा है,वहीं मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मिशन टारगेट-29 शुरू करने जा रहे हैं। यानी भाजपा इस बार प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों का जितना चाहती है और इसके लिए विधानसभा की तर्ज पर सर्वे कराकर टिकटों का वितरण किया जाएगा।
विधानसभा की तर्ज पर टिकटों का वितरण
भाजपा ने अब अपना ध्यान आगामी लोकसभा चुनावों पर लगा दिया है। इसके तहत लोकसभा चुनाव के लिए भी विधानसभा चुनाव टिकट वितरण का फार्मूला ही लागू करने जा रही है। इसके तहत तीन स्तरों पर सर्वे करने के साथ ही पर्ची पर क्षेत्र के प्रमुख नेताओं से संभावित उम्मीदवारों के नाम लिखवाए जाएंगे। पार्टी ने फरवरी के अंत तक उम्मीदवार तय करने का लक्ष्य तय किया है। केन्द्रीय से लेकर निचले स्तर त होगी पूछ
पार्टी ने फरवरी के अंत तक टिकटों को अंतिम रूप देने के साथ ही निचले स्तर तक के कार्यकर्ता एवं पदाधिकारियों से संपर्क साधने की रणनीति तैयार की है। पार्टी ने उम्मीदवार तय करने के लिए विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से सर्वे कराने की योजना बनाई है। इसके लिए एक-एक मंत्री को दो से तीन लोकसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। केंद्रीय सर्वे सहित प्रदेश स्तर पर भी कार्यकर्ताओं से राय लेने के साथ ही जीतने की संभावना की जांच करने के बाद भी जिताऊ को टिकट दिया जाएगा।
अंकों से तय होगी प्राथमिकता
पार्टी के मुताबिक, लोकसभा क्षेत्र में रहने वाले पार्टी पदाधिकारियों को एक स्थान पर बुलाया जाएगा। जहां पर चुनाव पर चर्चा करने के साथ ही एक पर्ची पर तीन-तीन संभावित उम्मीदवारों के नाम लिखवाए जाएंगे। प्रथम स्थान वाले को 10 अंक और दूसरे, तीसरे नाम को क्रमश: 7 व 5 अंक दिए जाएंगे। इसके बाद सूची तैयार करने के बाद सर्वे होगा। लोकसभा चुनाव में टिकट के लिए क्षेत्र के पदाधिकारियों की राय 19 से 21 फरवरी के बीच ली जाएगी। तीन दिन में आठ-आठ लोकसभा क्षेत्र के पदाधिकारियों को एक स्थान पर बुलाया जाएगा।
तोमर ने भेजे मुखबिर
लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने की योजना बना रही भाजपा ने जिताऊ उम्मीदवार की तलाश के लिए निजी एजेंसी से सर्वे के साथ संगठन स्तर पर फीडबैक का तरीका अख्तियार किया है। प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने इस काम में कुछ वरिष्ठ नेताओं को लगाया है, जो सौंपे गए क्षेत्र में जाकर अपनी राय से प्रदेश नेतृत्व को अवगत कराएंगे। भाजपा सांसद पद के लिए अपने प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया फरवरी में शुरू करेगी। इससे पहले प्रदेश नेतृत्व विभिन्न स्त्रोतों से वर्तमान सांसद के साथ ही अन्य दावेदारों के बारे में जानकारी जुटा रहा है। जिलों से आने वाले सुझाव के आधार पर प्रदेश नेतृत्व प्रत्याशियों के नाम के पैनल बनाएगा और केंद्रीय नेतृत्व को सौंपेगा।
उधर,इस मिशन को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आओ बनाएं मध्यप्रदेश अभियान के तहत 22 जनवरी से जिलों में सभाएं लेंगे। वहीं संगठन 23 जनवरी को प्रदेशभर में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती से मोदी फॉर पीएम अभियान शुरू होने जा रहा है। 11 फरवरी तक चलने वाले इस अभियान के दौरा एक नोट-एक वोट का कार्यक्रम चलेगा। खेतों की मिट्टी संग्रह होगी। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के लिए लोहा एकत्रीकरण किया जाएगा। इसके अलावा मंडल-मंडल जनसंपर्क अभियान होंगे।
पूर्व मंत्री खटीक और नागेंद्र लड़ सकते हैं चुनाव
भाजपा लोकसभा चुनाव में कुछ वर्तमान सांसदों की सीट बदलने के साथ कुछ के टिकट काटने पर विचार कर रही है। सतना सांसद गणेश सिंह की जगह इस बार विधानसभा चुनाव नहीं लडऩे वाले नागेंद्र सिंह नागौद के नाम पर विचार किया जा रहा है। विंध्य अंचल की चार सीटों में ब्राह्मण, ठाकुर, आदिवासी आदि का संतुलन रखा जाएगा। खजुराहो सीट पर भी जितेंद्र सिंह बुंदेला की जगह पिछड़ा वर्ग से टीकमगढ़ जिलाध्यक्ष अभय प्रताप सिंह यादव के नाम पर विचार हो सकता है। यहां से पूर्व राज्यमंत्री हरिशंकर खटीक का नाम भी विचार में है। हरिशंकर खटीक के बारे में टीकमगढ़ सुरक्षित सीट के लिए भी चर्चा चल रही है। यहां के सांसद वीरेंद्र खटीक को यदि बदला जाता है तो हरिशंकर को प्रत्याशी बनाया जाएगा। सागर से टिकट की रेस में कई दावेदार हैं। इनमें युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष रजनीश अग्रवाल, मुकेश जैन ढाना आदि शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के यहां से चुनाव लडऩे की सुगबुगाहट के चलते इस सीट पर कांग्रेस से आने वाले प्रत्याशी को देख कर भाजपा अपना उम्मीदवार उतारेगी।
दिग्गजों के मुकाबले होंगे मंत्री
भाजपा कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के मुकाबले मंत्रियों को चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है। छिंदवाड़ा में केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के मुकाबले पंवार वोट वाले कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन, गुना में केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने पूर्व मंत्री केएल अग्रवाल, खंडवा में प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष अरूण यादव के मुकाबले खाद्य मंत्री विजय शाह अथवा उनकी पत्नी एवं महापौर भावना शाह पर भाजपा दांव खेल सकती है। अलग-अलग राय ली जाएगी।

इंदौर में फिर भूमाफिया के चंगुल में फंसा सहकारिता विभाग

185 भूखंडों पर डाका, 100 करोड़ की हेराफेरी
इंदौर क्लॉथ मार्केट गृह निर्माण की साढ़े 8 एकड़ जमीन तैय्यबी रियल एस्टेट के हवाले
इंदौर । जमीन की जंग को अब असली जंग लग चुकी है और जितने भी भूमिगत भूमाफिया थे वे फिर सीना ठोंककर गृह निर्माण संस्थाओं की जमीन के खेल में जुट गए हैं, जिस सहकारिता विभाग की मिलीभगत के चलते मुख्यमंत्री ने इंदौर सहित प्रदेशभर में संस्थाओं की जमीनों के महाघोटालों को पुलिस प्रशासन की सहायता से उजागर करवाया था, अब वही सहकारिता विभाग एक बार फिर भूमाफिया के चंगुल में फंस गया है। धड़ाधड़ एनओसी के साथ नगर तथा ग्राम निवेश से अभिन्यास मंजूर होने लगे। बिजलपुर मेें इंदौर क्लॉथ मार्केट गृह निर्माण की साढ़े 8 एकड़ जमीन तैय्यबी रियल एस्टेट के हवाले हो गई। संस्था के 185 भूखंडों की इस डाकेजनी में 100 करोड़ की हेराफेरी की गई।
तीन साल पहले जोर-शोर से गृह निर्माण संस्थाओं के फर्जीवाड़े की जांच पड़ताल पुुलिस प्रशासन ने शुरू की थी और कई चर्चित भूमाफिया जेल भी गए, क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का लगातार दबाव बना हुआ था। मगर जैसे ही यह दबाव समाप्त हुआ और प्रशासन के साथ-साथ पुलिस पर मिलीभगत के आरोप लगे, इस अभियान ने दम तोडऩा शुरू कर दिया। पिछले एक साल से तमाम भूमिगत हुए भूमाफिया फिर सक्रिय हो गए और तमाम गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनों की अफरा-तफरी पहले की तरह शुरू हो गई और हजारों भूखंड पीडि़त अब फिर अपनी शिकायतों को लेकर चप्पलें घिस रहे हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण इंदौर क्लॉथ मार्केट का है, जिसकी ग्राम बिजलपुर में साढ़े 8 एकड़ जमीन थी। खसरा नंबर 13/1, 13/6, 12/2, 13/5, 13/7 की ये जमीनें संस्था के सदस्यों की आवास समस्या हल करने के लिए मूल जमीन मालिक जगजीतसिंह व हरजिंदरसिंह से 1996 में खरीदी। बाद में यही जमीन नाकोड़ा और नवभारत गृह निर्माण को भी बेच दी गई। कुछ समय पूर्व नवभारत संस्था के कर्ताधर्ताओं ने यह जमीन तैय्यबी रियल एस्टेट प्रायवेट लिमिटेड के मोहम्मद पिता अब्दुल खम्बाती को बेच डाली, जबकि इंदौर क्लॉथ मार्केट संस्था के 185 सदस्यों को 1500 स्क्वेयर फीट के भूखंड इस साढ़े 8 एकड़ जमीन में से प्राप्त होना थे। 3 हजार रुपए स्क्वेयर फीट से अधिक वर्तमान में इस जमीन का मूल्य है और 185 भूखंडों पर सीधे-सीधे डाका डालते हुए 100 करोड़ रुपए की हेराफेरी कर दी गई। मजे की बात यह रही कि इंदौर क्लॉथ मार्केट गृह निर्माण संस्था के अध्यक्ष सीताराम पिता देवकिशन व्यास ने स्थायी लोक अदालत के माध्यम से मूल जमीन मालिक हरजिंदरसिंह, जगजीतसिंह से लेकर सत्यनारायण बजाज, पॉवर अटॉर्नी लेने वाले मदनलाल पिता छोगालाल जैन के अलावा नाकोड़ा गृह निर्माण और नवभारत गृह निर्माण के साथ तैय्यब अली रियल एस्टेट के मामले में समझौता करते हुए 31-8-2013 को अवॉर्ड पारित करवा लिया। इसकी भनक इंदौर क्लॉथ मार्के ट गृह निर्माण के मूल 185 सदस्यों को लगी ही नहीं और फर्जी बनाए गए सदस्यों के माध्यम से बुलाई गई साधारण सभा में लिए गए निर्णय और ठहराव-प्रस्ताव को प्रस्तुत कर स्थायी लोक अदालत जिला न्यायालय में राजीनामा कर लिया गया। इस राजीनामे में यह कहा गया कि सदस्यों द्वारा जमा की गई राशि 12 प्रतिशत ब्याज के साथ तैय्यबी रियल एस्टेट द्वारा लौटाई जाएगी और इस संबंध में जमीन पर विकास कार्य करने, भूखंडों को विक्रय करने और अपनी इच्छानुसार उपभोग, उपयोग व्ययन के अधिकार भी तैय्यबी रियल एस्टेट को रहेंगे। इतना ही नहीं इसके पूर्व एक अनुबंध लेख भी तैय्यबी रियल एस्टेट और नाकोड़ा गृह निर्माण संस्था के अध्यक्ष निलेश पिता जसवंतलाल शाह और क्लॉथ मार्केट संस्था के संरक्षक अमित पिता ब्रजमोहन के बीच हुआ, जिसमें 7.44 एकड़ जमीन के सौदे के फलस्वरूप प्रतिफल राशि 13 करोड़ रुपए तय की गई और बतौर बयाने के 1 लाख रुपए लेना बताए गए और शेष 12 करोड़ 99 लाख की राशि भूखंडों के विक्रय पश्चात तैय्यबी रियल एस्टेट द्वारा प्रदान की जाएगी। इतना ही नहीं 50 लाख रुपए की राशि अमित पिता ब्रजमोहन को पूर्व में अदा करना बताई गई। इस लोक अदालत में मंजूर अवॉर्ड और अनुबंध के आधार पर तैय्यबी रियल एस्टेट ने सहकारिता विभाग से एनओसी भी प्राप्त कर ली। उपायुक्त सहकारिता जगदीश कनोजे द्वारा इस तरह की एनओसी कई संस्थाओं को दे दी गई, जबकि पूर्व के उपायुक्त ने ऐसी तमाम एनओसी पर न सिर्फ रोक लगाई थी, बल्कि पुलिस प्रशासन की जांच में यह तमाम एनओसी अवैध पाई गई, जिसके चलते सहकातिा विभाग के कई अफसरों और निरीक्षकों के खिलाफ विभागीय जांच शासन ने शुरू करवाई, मगर इंदौर क्लॉथ मार्केट गृह निर्माण की बिजलपुर स्थित साढ़े 8 एकड़ जमीन अब पूरी तरह तैय्यबी रियल एस्टेट के हवाले हो गई, जिस पर नगर तथा ग्राम निवेश से पिछले दिनों नक्शा मंजूर करवा लिया गया। अब संस्था के मूल 185 सदस्य संघर्ष समिति के माध्यम से अपने हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं और कलेक्टर से लेकर अदालत और सहकारिता विभाग के संयुक्त पंजीयक न्यायिक के समक्ष भी याचिका प्रस्तुत की है। 185 भूखंडों की इस डाकेजनी में सीधे-सीधे 100 करोड़ रुपए की हेराफेरी की गई और इसमें भी शहर के तमाम चर्चित भूमाफिया शामिल हैं।
जमीन सीलिंग प्रभावित, संस्था के नाम से हटी तो सरकार की....
बिजलपुर में इंदौर क्लॉथ मार्केट ने 1995 में जो साढ़े 8 एकड़ जमीन खरीदी वह सीलिंग प्रभावित थी और उसे सीलिंग से मुक्ति के लिये ही नाकोड़ा गृह निर्माण ने नवभारत गृह निर्माण से समझौता किया था, क्योंकि नाकोड़ा गृह निर्माण संस्था नई होने के कारण उसे सीलिंग मुक्ति की पात्रता नहीं थी। संस्था के नाम किए जाने पर उसे सरकार ने धारा 20 से विमुक्ति आदेश यानी सीलिंग मुक्त किया। अब यदि जमीन किसी निजी व्यक्ति के नाम पर होती है तो वह फिर सीलिंग प्रभावित होकर सरकार की हो जाएगी। लेकिन इस जानकारी के अभाव में उक्त जमीन का नामंतरण निजी नाम से हो गया है। जांच अधिकारी अब इस मामले की जांच कर उक्त भूमि पर शासन का नाम चढ़ा सकते हैं।
नगर तथा ग्राम निवेश से नक्शा भी मंजूर
पहले इंदौर क्लॉथ मार्केट के कर्ताधर्ताओं ने तैय्यबी रियल एस्टेट को जमीन बेची और फिर नाकोड़ा तथा नवभारत के साथ अनुबंध भी कर लिया। इसके आधार पर स्थायी लोक अदालत से अभी पिछले दिनों 31-8-2013 को अवॉर्ड पारित करवा लिया गया और इसमें जो राजीनामा मंजूर हुआ उसके आधार पर सहकारिता उपायुक्त जगदीश कनोजे ने एनओसी तैय्यबी रियल एस्टेट के पक्ष में हांसिल कर ली गई और नगर तथा ग्राम निवेश से इसी एनओसी के आधार पर अभिन्यास पिछले ही दिनों मंजूर करवा लिया गया। संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश संजय मिश्र ने बिजलपुर की इस संस्था की जमीन पर मंजूर किए गए। अभिन्यास की पुष्टि करते हुए बताया कि चूंकि लोक अदालत का राजीनामा और उसके आधार पर सहकारिता विभाग की एनओसी मिली जिस पर अभिन्यास मंजूर करना पड़ा।
कलेक्टर ने बनाई जांच कमेटी
संघर्ष समिति की ओर से कलेक्टर आकाश त्रिपाठी को भी मयप्रमाण शिकायत सौंपी गई, जिसमें भूमाफियाओं के हाथों सदस्यों की जमीनों के विक्रय के प्रमाण भी दिए गए। नतीजतन कलेक्टर ने एक कमेटी बनाकर इसकी जांच शुरू करवाई, जिसमें अपर कलेक्टर रवीन्द ्रसिंह और सहकारिता विभाग के संयुक्त पंजीयक न्यायिक अनिल कुमार वर्मा शामिल हैं।
संस्था पर व्यास परिवार का कब्जा
इंदौर क्लॉथ मार्केट संस्था पर शुरु से ही व्यास परिवार का कब्जा रहा है। संघर्ष समिति के विशाल शर्मा का आरोप है कि पूर्व अध्यक्ष सीताराम व्यास ने अपने सगे साले अश्विन कुमार हीरालाल को अध्यक्ष बनाया और अपनी बेटी श्रीमती करुणा पति रामकुमार शर्मा को उपाध्यक्ष। अपने सगे भाई गोपाल देवकिशन व्यास को संचालक, अपने साले देवकीनंदन रामचंद्र तिवारी को भी संचालक और एक अन्य सगे भतीजे अमित राधेश्याम व्यास को भी संचालक और बहन पुष्पा को भी इसी तरह निर्वाचित करवाया और वर्तमान अध्यक्ष अश्विन कुमार बरमोटा भी पूर्व अध्यक्ष व्यास के ही साले हंै।
बोगस आमसभा में सदस्यों के हित डेढ़ करोड़ में बेचे
इंदौर क्लॉथ मार्केट के कर्ताधर्ताओं ने 185 मूल सदस्यों को अंधेरे में रखकर फर्जी सदस्यों की बोगस आमसभा 21-7-2013 को आयोजित की और उसमें यह प्रस्ताव भी पारित कर दिया कि संस्था यह स्वीकार करती है कि सदस्यों की अमानत राशि 87 लाख 2 हजार 950 रुपए तथा 1-4-1998 से 31-12-2009 तक 4 प्रतिशत ब्याज और फिर 1-1-2010 से 31-3-2012 तक 12 प्रतिशत की ब्याज राशि 64 लाख 40 हजार 184 रुपए होती है। इस तरह कुल 1 करोड़ 51 लाख 43 हजार 134 रुपए तैय्यबी रियल एस्टेट द्वारा दिए जाएंगे, ताकि यह राशि सदस्यों को लौटाई जा सके। यानी 185 सदस्यों के 100 करोड़ रुपए कीमत के भूखंडों के हितों को बोगस आमसभा के जरिए मात्र डेढ़ करोड़ रुपए में बेच डाला।
नाकोड़ा और नवभारत भी इस फर्जीवाड़े में शामिल
बिजलपुर में साढ़े 8 एक ड़ जमीन इंदौर क्लॉथ मार्केट संस्था द्वारा खरीदी गई और 8 हिस्सों में इसकी रजिस्ट्री करवाई गई, लेकिन 8 महीने बाद ही संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष ओमप्रकाश व्यास ने यह जमीन नाकोड़ा गृह निर्माण को बेच डाली। वहीं नाकोड़ा के चेक तक बाउंस हो गए। बावजूद इसके संचालकों ने कोई कार्रवाई नहीं की और मदनलाल जैन ने आम मुख्त्यार बनकर यही जमीन नवभारत गृह निर्माण संस्था को बेच डाली और फिर त्रिपक्षीय अनुबंध 8 दिसम्बर 1999 को इंदौर क्लॉथ मार्केट, नाकोड़ा और नवभारत के बीच किया गया, जिसमें नवभारत को क्लॉथ मार्केट के सदस्यों को भूखंड उपलब्ध कराना तय किया गया। इस पूरे घोटाले में इंदौर क्लॉथ मार्केट के नाकोड़ा और नवभारत का फर्जीवाड़ा भी शामिल रहा।
संघर्ष समिति की याचिका पर अब जारी हुए नोटिस
इंदौर क्लॉथ मार्केट संस्था के मूल 185 सदस्यों ने संघर्ष समिति गठित की और सहकारिता उप पंजीयक न्यायिक के समक्ष याचिका भी दायर की। संघर्ष समिति के राजेन्द्र वर्मा और विशाल शर्मा के मुताबिक उसकी याचिका पर अभी उप पंजीयक न्यायिक महेन्द्र दीक्षित ने संचालकों सहित एक दर्जन पदाधिकारियों को नोटिस जारी कर दिए हैं, जिसमें संस्था के सदस्यों को चुनाव की जानकारी न देने और गुपचुप निर्वाचन कर आमसभा के निर्णय के आधार पर अवॉर्ड पारित कराने और इसके आधार पर नक्शा मंजूरी को चुनौती दी गई है। लिहाजा इस नोटिस पर 22 जनवरी तक जवाब मांगा गया है।

बेदाग और तेजतर्रार अफसर बनेंगे दमदार

विनोद उपाध्याय
भोपाल। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए फिलहाल चुस्त-दुरूस्त प्रशासन की जरूरत है,ताकि सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से हो सके। इसके लिए जनवरी में एक बड़ी प्रशासनिक सर्जरी की तैयारी की जा रही है। मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही सर्जरी का खाका तैयार होना शुरू हो गया है। 'मिशन 2014Ó और 'विजन डाक्यूमेंट 2018Ó को देखते हुए इस सर्जरी में बेदाग और तेजतर्रार अफसरों को दमदार बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव एंटोनी डीसा ने इसके लिए खाका तैयार कर लिया है।
शिवराज की ड्रीम टीम
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लगभग 8 साल के कार्यकाल को देखें तो उनकी ड्रीम टीम में शामिल अफसरों में पीके दाश, एमएम उपाध्याय,देवराज बिरदी, अरुणा शर्मा, अजय नाथ, एस आर मोहंती, के सुरेश, एपी श्रीवास्तव, राधेश्याम जुलानिया, मनोज श्रीवास्तव, संजय दुबे, अरुण पांडे, एसके मिश्रा, विवेक अग्रवाल, हरिरंजन राव, राकेश श्रीवास्तव, अजातशत्रु श्रीवास्तव, मो. सुलेमान, संजय शुक्ला, आकाश त्रिपाठी, निशांत बरवड़े, कवीन्द्र कियावत,पी नरहरि,विवेक पोरवाल,नवनीत मोहन कोठारी,केके सिंह,दीपक खाण्डेकर, बीएम शर्मा,एमबी ओझा, सीबी सिंह आदि शामिल है। अत: इन अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तो सौंपी ही जाएगी,इनके अलावा क्षेत्रीय संतुलन भी बनाए रखा जाएगा,ताकि अफसरों में गुटबाजी न हो। सीएम सचिवालय में भी बदलाव बताया जाता है की संभावित प्रशासनिक फरबदल में काफी समय से एक ही विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रमुख सचिव, सचिव, निगम-मंडलों के एमडी तथा कुछ कमिश्नरों व कलेक्टरों के भी बदले जाने की संभावना है। सीएम सचिवालय से भी मुख्यमंत्री एक-दो अफसरों को बदल सकते हैं और यह फेरबदल जनवरी में होने की अटकलें हैं। मंत्रालय में भी कई अफसरों को एक ही विभाग का काम संभालते काफी समय बीत गया है। पोस्टिंग में मंत्रियों की पसंद! विकास की गति में किसी तरह का व्यवधान न हो इसके लिए मंत्रियों की पसंद को भी ध्यान दिया जाएगा। खासकर राजस्व, नगरीय प्रशासन, आवास एवं पर्यावरण,वित्त,ग्रामीण और पंचायत,उद्योग एवं लोकनिर्माण विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभागों में भी मंत्रियों की इच्छानुरूप अफसरों की पोस्टिंग की जाएगी। उल्लेखनीय है कि पिछली सरकार में कई मंत्रियों और उनके विभाग के अधिकारियों के बीच टकराव की स्थिति बनी रही। इससे इन विभागों के कामकाज भी प्रभावित होते रहे। लेकिन इस बार मुख्यमंत्री सामंजस्य बिठाकर काम कराना चाहते हैं,ताकि मिशन 2014 को पूरा किया जा सके। जमे-जमाए भी होंगे इधर-उधर वर्षो से एक ही विभाग में जमे अफसरों को भी इस बार इधर से उधर किया जाएगा। इनमें जल संसाधन विभाग के पीएस राधेश्याम जुलानिया के पास विभाग की जिम्मेदारी 5 फरवरी 2010 से है, जबकि एनवीडीए में सदस्य पुनर्वास के अलावा उपाध्यक्ष का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे रजनीश वैश को भी इतना ही समय हो गया है। वे सदस्य बतौर 3 मई 2010 से काम देख रहे हैं। नगरीय प्रशासन आयुक्त संजय शुक्ला को भी काफी समय बीत गया है। यही स्थिति उच्च शिक्षा आयुक्त वीएस निरंजन की है और वे भी अपना विभाग बदलवाने के पक्ष में हैं। ऊर्जा विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे मोहम्मद सुलेमान भी कमिश्नर बनने के इच्छुक हैं। साथ ही आयुक्त उद्योग तथा एमडी ट्रायफेक, एमडी लघु उद्योग निगम, राज्य शिक्षा केंद्र आयुक्त सहित मध्य एवं पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण के सीएमडी की जिम्मेदारी संभाल रहे अफसरों का भी बदला जाना तय माना जा रहा है। सबसे ज्यादा दबाव इंदौर कमिश्नर की पोस्टिंग को लेकर बनाए जाने की चर्चा है और यह फेरबदल नए मंत्रिमंडल के गठन के बाद होगा। बीच में दो बार बदलने की अटकलों के बाद भी नहीं बदले गए पीएस लोक निर्माण केके सिंह के पास भी यह विभाग 21 अप्रैल 2010 से हैं, जबकि काफी सीनियर हो चुके जबलपुर कमिश्नर दीपक खांडेकर का भी बदला जाना पक्का माना जा रहा है। वे 1985 बैच के आईएएस हैं, जबकि उनसे जूनियर सीएम सचिवालय के अलावा अन्य विभागों में महत्वपूर्ण जबावदारी संभाल रहे हैं। इसके अलावा प्रशासनिक की नए सिरे से जमावट करने के लिए भी सीएम को कुछ ऐसे अफसरों को जिम्मेदारी देनी होगी, जिनका तालमेल नए मंत्रियों से बैठ सके। जैसे महिला एवं बाल विकास मंत्री कौन बनता है। वैसे इस विभाग के पीएस बीआर नायडु भी 23 अगस्त 2010 से विभाग का काम संभाल रहे हैं। मप्र के अफसरों का बढ़ेगा मान मध्य प्रदेश में सत्ता कांग्रेस की रही हो या भाजपा की यहां हमेशा से ही बिहारी,पंजाबी,उडिय़ा और उत्तर प्रदेश लॉबी के नौकरशाहों का राज रहा है। सत्ता के प्रति इस लॉबी का समर्पण भाव हर कोई जानता है तथा इस लॉबी के लिए यह भी प्रचारित है कि अगर इस लॉबी के नौकरशाह ठान लें तो किसी भी सरकार का बोरिया-बिस्तर बंधवा दें। शायद यह बात शिवराज जानते हैं इसलिए उनकी ड्रीम टीम में हर प्रदेश के नौकरशाह शामिल है। फिर भी उनके कार्यकाल में मप्र के मूल निवासी आईएएस अफसरों को सबसे अधिक महत्व मिलता रहा है। और इस बार की सर्जरी में भी यहां के अधिकांश अफसरों की मैदानी जमावट की जाएगी,ताकि लोकसभा चुनाव में मद्देनजर ये अफसर यहां के लोगों के साथ सामंजस्य बिठा सकें। मप्र के मूल निवासी आईएएस अफसरों में केएम आचार्य, राकेश बंसल, विनय शुक्ला, डीआरएस चौधरी, आईएस दाणी, स्वर्णमाला रावला, अजीता वाजपेयी, स्नेहलता श्रीवास्तव, जयदीप गोविंद, रजनीश वैश्य, राधेश्याम जुलानिया, दीपक खाण्डेकर,प्रभाकर बंसोड़, मनोज श्रीवास्तव, शिखा दुबे, संजय बंदोपाध्याय, अनुराग जैन, एसडी अग्रवाल, राजेश राजौरा, मलय श्रीवास्तव, एसके वेद, मधु हाण्डा, पीके पाराशर, मनोज गोविल, सतीश चंद्र मिश्रा, विश्वमोहन उपाध्याय, अरुण तिवारी, एसके मिश्रा, सुधा चौधरी, पंकज अग्रवाल, केसी गुप्ता, रघुवीर श्रीवास्तव, ओमेश मूंदड़ा, प्रदीप खरे, सीमा शर्मा, अरुण पाण्डेय, वीके बाथम, वीके कटेला, नीरज मण्डलोई, हीरालाल त्रिवेदी, अंजू सिंह बघेल, एसबी सिंह, राकेश श्रीवास्तव (छग), अरुण भट्ट, हरिरंजन राव, मनीष रस्तोगी, चंद्रहास दुबे, एसके पॉल, अरुण कोचर, जेएस मालपानी, सूरज डामोर, सचिन सिन्हा, अशोक शिवहरे, रामकिंकर गुप्ता, डीडी अग्रवाल, राजकुमार माथुर, भरत व्यास, सुभाष जैन, डीपी अहिरवार, संजीव झा, अमित राठौर, अजातशत्रु श्रीवास्तव, विजय कुरील, राजकुमारी खन्ना, शिवानंद दुबे, पीजी गिल्लौरे, राजकुमार पाठक, जगदीश शर्मा, रामअवतार खण्डेलवाल, मनीष सिंह, राघवेन्द्र सिंह, मधु खरे, जीपी श्रीवास्तव, केके खरे, एसएन शर्मा, विनोद बघेल, गीता मिश्रा, आकाश त्रिपाठी, केपी राही, राजेन्द्र शर्मा, महेन्द्र ज्ञानी, पुष्पलता सिंह, एसएस बंसल, जीपी कबीरपंथी, आरपी मिश्रा, उर्मिला मिश्रा, अनिल यादव, शशि कर्णावत, केदार शर्मा, संतोष मिश्रा, योगेन्द्र शर्मा, रजनी उईके, शोभित जैन, विवेक पोरवाल, कवीन्द्र कियावत, एमके अग्रवाल, सुनीता त्रिपाठी, मनोहर दुबे, शिवनारायण रूपला,जयश्री कियावत, एसपीएस सलूजा, नीरज दुबे, अशोक सिंह, केसी जैन, एसएस कुमरे, नवनीत कोठारी, चतुर्भुज सिंह, बृजमोहन शर्मा, निशांत बरबड़े, लोकेश जाटव, राहुल जैन, डीएस भदौरिया, श्रीमन शुक्ला, एसके सिंह, भरत यादव, विशेष गढ़पाले आदि शामिल हैं। सरकार की नीति से नौकरशाही में गुटबाजी जनवरी में होने वाली संभावित प्रशासनिक सर्जरी में सरकार को क्षेत्रीय संतुलन का ध्यान रखना होगा। क्योंकि वर्तमान में नौकरशाही में असंतोष है। राज्यवार विभिन्न लॉबियों में बंटी प्रदेश की नौकरशाही में असंतोष की पहली वजह है मप्र लॉबी का सरकार में बढ़ता वर्चस्व। मप्र में संभवत: पहली बार प्रशासनिक सत्ता दूसरे राज्यों के निवासी नौकरशाहों के हाथों से निकलकर मप्र में पले-बढ़े और पढ़े-लिखे नौकरशाहों के हाथों में आ रही है। अब तक प्रदेश में बिहारी, उडिय़ा, पंजाबी और उत्तर प्रदेश लॉबी का राज था और इन्हीं लॉबियों के अधिकारी सरकार के सबसे अहम पदों पर पदस्थ किए जाते थे, लेकिन लंबे समय बाद इस स्थिति में बदलाव आया है। सरकार में टॉप टू बॉटम के ज्यादातर अहम पदों पर मप्र,राजस्थान और उत्तर प्रदेश लॉबी के अफसर जमे हुए हैं। मप्र कैडर में प्रमुख सचिव और इससे अधिक वेतनमान के कुल 87 आईएएस अधिकारी हैं। इनमें 33 प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में केन्द्र सरकार को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। दो प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी अरविंद जोशी और टीनू जोशी सस्पेंड हैं। बाकी बचे 52 अधिकारियों को सरकार ने उनके कामकाज के अलावा क्षेत्रवाद के पैमाने और वरिष्ठ भाजपा नेताओं की सिफारिशों पर पदस्थ किया है। सरकार के 54 विभागों में इन्हें एडजस्ट किया गया। हालांकि कई प्रमुख विभागों की कमान अब भी दूसरी लॉबियों के अफसरों के हाथों में हैं, लेकिन यह सरकार की मजबूरी है, क्योंकि प्रदेश में मप्र के निवासी वरिष्ठ अधिकारियों की भारी कमी है। इस कारण फील्ड में कमिश्नर-कलेक्टर जैसे अहम पदों पर मप्र के अफसरों की बिठाया गया है। नए साल में प्रमोट होगे तीन दर्जन आईएएस नया साल आते ही सरकार 35 आईएएस अफसरों को प्रमोशन देने की तैयारी में जुट गई है। यह प्रमोशन पीएस से एसीएस, सचिव से पीएस, अपर सचिव से सुपर टाइम स्केल तथा जूनियर अफसरों को वरिष्ठ एवं प्रवर श्रेणी वेतनमान के पदों पर दिया जाएगा और इसके लिए डीपीसी जनवरी 2014 के पहले सप्ताह में होने की संभावना है, जबकि पीएस से एसीएस के एक रिक्त हुए पद पर प्रमोशन देने डीपीसी जल्द हो सकती है, वहीं सचिव से पीएस के पदों पर प्रमोशन के लिए अफसरों को अभी इंतजार करना होगा। दिल्ली में विशेष आवासीय आयुक्त के पद पर पदस्थ 79 बैच की आईएएस स्नेहलता कुमार की सेवाएं केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर सौंप दिए जाने से एसीएस का एक पद रिक्त हो गया है। इस रिक्त पद पर प्रमोशन देने के लिए डीपीसी इसी माह के अंत तक होने की संभावना है और एसीएस का प्रमोशन पाने 79 बैच के दो तथा 82 बैच के दो आईएएस कतार में हैं। वैसे 79 बैच के अफसरों को प्रमोशन मिलने में कठिनाई होगी, मगर 82 बैच के आईएएस एसीएस बन सकते हैं। उधर, सचिव से प्रमुख सचिव के पद पर प्रमोशन देने के लिए पद रिक्त नहीं हैं। वर्तमान में पीएस के कैडर में 19 तथा नॉन कैडर में 19 पद स्वीकृत होने की वजह से 38 पदों की अपेक्षा 42 पर पीएस पदस्थ हैं फिर भी अधिकारी 91 बैच के आईएएस प्रमोशन पाने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। वैसे सरकार ने कुछ महीने पहले ही 90 बैच के अफसरों को पीएस बनाया है। यानी वर्ष 2013 में 89 तथा 90 बैच एक साथ प्रमोट हुआ है। 2001 बैच के जिन आईएएस अफसरों को प्रवर श्रेणी वेतनमान का लाभ मिलना हैं, उनमें डा. नवनीत कोठारी, पी नरहरि, लक्ष्मीकांत द्विवेदी, सीबी सिंह, अखिलेश श्रीवास्तव, एमबी ओझ, एनएस भटनागर, एनपी डहेरिया तथा आशुतोष अवस्थी का नाम हैं, जबकि लक्ष्मीकांत द्विवेदी के खिलाफ वर्तमान में विभागीय जांच लंबित है। वरिष्ठ श्रेणी वेतनमान जिन अधिकारियों उनमें 2010 बैच के आईएएस अनय द्विवेदी, तन्वी एस बहुगुणा, तरुण राठी, जीएस मिश्रा, अभिजीत अग्रवाल, कर्णवीर शर्मा, के विक्रम सिंह, अनुराग चौधरी, भास्कर लक्षाकार, आशीष सिंह तथा संमुगा प्रिया आर का नाम शामिल है। 1998 बैच के आईएएस एवं इंदौर कलेक्टर आकाश त्रिपाठी, एमके गुप्ता, केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर जा चुके निकुंज श्रीवास्तव, केपी राही अपर आयुक्त रीवा, राजेन्द्र कुमार शर्मा उपसचिव खनिज, महेन्द्र ज्ञानी एमडी मंडीबोर्ड, पुष्पलता सिंह, एसएस बंसल अपर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, जीपी कबीरपंथी, राजेश मिश्रा तथा उर्मिला मिश्रा अपर सचिव से सुपरटाइम स्केल सचिव के पद पर प्रमोट हो जाएंगे। बाक्स आईपीएस अधिकारियों के प्रमोशन में अडंगा 84 बैच के आईपीएस अधिकारियों को पुलिस महानिदेशक बनने के मंसूबे पर करारा झटका लगा है। गृह विभाग ने प्रमोशन के लिए 30 साल की सेवा का को अनिवार्य कर दिया है। इससे दिसंबर में प्रमोशन देने होने वाली डीपीसी अब जनवरी 2014 में कराई जाएगी। वर्तमान में डीजी के दो पद रिक्त हैं। उल्लेखनीय है कि अधिकारी 29 साल की सेवा पूरी होने पर ही डीजी बनना चाहते थे, जबकि नियम में 30 साल की सेवा पूरी करने पर ही डीजी बनाया जा सकता है। जिस तेजी से अफसरों ने प्रमोशन के लिए गृह विभाग पर दबाव बनाया था, उसी तेजी से उन्हें झटका भी लगा है। वैसे प्रमोशन के लिए गृह विभाग ने निर्वाचन आयोग से अनुमति भी ले ली, लेकिन अब डीपीसी जनवरी 2014 में होगी। प्रदेश में आईपीएस कैडर में पुलिस महानिदेशक के तीन पद कैडर में तथा तीन पद नॉन कैडर में स्वीकृत हैं। इसके तहत डीजीपी पुलिस, डीजीपी होम गार्ड, डीजीपी पुलिस हाउसिंग में चेयरमेन का पद हैं, जबकि नॉन कैडर में डीजी लोकायुक्त, डीजी ईओडब्ल्यू तथा डीजी जेल के पदों पर पदस्थापना की जा सकती है। वर्तमान में डीजी लोकायुक्त तथा डीजी होमगार्ड का पद रिक्त है। इन दोनों पदों पर पदोन्नति पाने के लिए दौड़ में 84 बैच के पांच आईपीएस शामिल हैं। वैसे तत्कालीन एडीजी रहे विवेक जौहरी के केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले जाने की वजह से चार ही अफसर बचते हैं और डीजी बनने के लिए इन्होंने काफी भाग-दौड़ करते हुए निर्वाचन आयोग से डीपीसी कराने की अनुमति भी गृह विभाग को दिलवा दी, लेकिन अब इन्हें गृह विभाग से करारा झटका लगा है। क्योंकि कोई भी आईपीसी 30 साल की सेवा पूरी करने पर ही डीजी के पद पर प्रमोट हो सकता है। इसके पहले नहीं, जबकि इन अफसरों को अभी सेवा में आए 29 साल ही पूरे हुए हैं। डीजी बनने की दौड़ में एडीजी एसएएफ वीके सिंह, एडीजी रेल एमएस गुप्ता, एडीजी एवं परिवहन आयुक्त संजय चौधरी तथा डीजी के पद पर काम संभाल रहे डीजी लोकायुक्त सुखराज सिंह का नाम शामिल है। इन अफसरों ने डीजी बनने के लिए गृह विभाग पर इतना दबाव बनवाया कि विभाग भी प्रमोशन देने के लिए तैयार हो गया, लेकिन जब डीजी के पद पाने के लिए केटेगिरी यानी योग्यता देखी गई तो पता चला कि आईपीएस की नौकरी में आने के 30 साल बाद ही कोई अफसर डीजी बन सकता है। वैसे यह चारों अफसर 17 दिसंबर 1984 को आईपीएस सेवा में आए थे। इस हिसाब से दिसंबर 2013 तक इनकी सरकारी सेवा 29 वर्ष की पूर्ण हो रही है और 30 साल पूरी होने में अभी एक साल बकाया है। यानी 17 दिसंबर 2014 को इन आईपीएस अफसरों की सेवा 30 साल की पूरी होगी।

स्वीकृत राशि से 1100 करोड़ अधिक खर्च कर डाला मप्र ने

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोट का खुलासा अफसरों ने सरकार को लगाई करोड़ों की चपत सड़क निर्माण और मनरेगा में करोड़ों की चपत अनियमितता व लापरवाही के गंभीर आरोप 2224.78 करोड़ प्रदेश को सड़क परिवहन मंत्रालय ने दिए थे। 19.74 लाख अपात्रों का मनरेगा में चयन। 7.19 करोड़ का भुगतान संस्कृति विभाग ने बिना मापदण्ड के किए। 12.34 करोड़ के निधि का दुरूपयोग। 110 करोड़ के व्यय में लापरवाही से लगा 20 करोड़ का ब्याज 110 भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग)ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर राज्य सरकार के कामकाज पर सवाल उठाया है और प्रदेश सरकार के दावों की एक बार फिर पोल खोली है। रिपोर्ट की माने तो सरकार ने विकास के नाम पर जनता को सिर्फ धोखा देने का काम किया। कहीं ज्यादा पैसा चुकाकर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया, कहीं ठेकेदार को फायदा पहुंचाकर। सड़क निर्माण और मनरेगा में करोड़ों की चपत लगी है। यही नहीं मध्यप्रदेश में मनरेगा में स्वीकृत राशि से 1100 करोड़ से ज्यादा की राशि का व्यय किए जाने का खुलासा भी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोट में हुआ है। महालेखाकार डीके शेखर के प्रतिवेदन की रिपोर्ट में मुताबिक, वर्ष 2007-12 की अवधि में भारत सरकार द्वारा योजना के लिए 15 हजार 946.54 करोड़ रुपए मंजूर किए गए, मगर खर्च हो गए 17 हजार 193.12 करोड़ रुपए। ं मनरेगा के तहत हर जिले में 13 से 20 लाख तक अपात्र हितग्राहियों का पंजीकरण किया गया है। ग्रामीण इलाकों के गरीब परिवारों को उनके ही गांव में रोजगार मुहैया कराने के लिए अमल में लाई गई केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में मध्य प्रदेश में बड़े पैमान पर गड़बडिय़ां हुई हैं। यह खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट से हुआ है। राज्य सरकार ने विधानसभा के पटल पर सीएजी के 31 मार्च 2012 को खत्म हुए वित्तवर्ष का प्रतिवेदन रखा, जिसमें मनरेगा में हुई गड़बडिय़ों का खुलासा किया गया है। प्रतिवेदन में कहा गया है कि राज्य सरकार के एक आदेश में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हर परिवार का पंजीकरण मनरेगा के तहत करने के निर्देश दिए गए थे। प्रतिवेदन में आगे कहा गया है कि राज्य सरकार के इस आदेश के चलते राज्य के हर जिले में 13.35 लाख से 19.74 लाख अपात्र परिवारों का योजना के अंतर्गत पंजीकरण किया गया है। एक तरफ जहां अपात्रों का पंजीकरण हुआ है, वहीं वार्षिक विकास योजना तैयार करने में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। श्रम बजट वास्तविकता के आधार पर तैयार नहीं किया गया है। इतना ही नहीं, विस्तृत परियोजना प्रतिवेदनों को तैयार करने में अनावश्यक व्यय किया गया है। सीएजी रिपोर्ट राज्य में लोगों को योजना के मुताबिक काम न मिलने का भी खुलासा करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में मात्र 2.31 प्रतिशत से 12.60 प्रतिशत पंजीकृत परिवार ही ऐसे हैं, जिनके द्वारा 100 दिवस का गारंटीशुदा रोजगार पूरा किया जा सका है। मनरेगा के जरिए रोजगार हासिल करने वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग परिवारों की कम होती संख्या का खुलासा भी इस रिपोर्ट में किया गया है। सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2007-12 की अवधि के दौरान राज्य में अनुसूचित जनजाति परिवारों के मनरेगा के तहत उपलब्ध कराए गए रोजगार का प्रतिशत 49 से घटकर 27 प्रतिशत हो गया है। रिपोर्ट में राज्य में निर्धारित समयावधि में राज्य में रोजगार गारंटी परिषद गठित किए जाने का जिक्र करते हुए कहा गया है कि परिषद का गठन तो समयावधि में हुआ, मगर उसकी बैठकें नियमित अंतराल पर आयोजित नहीं की गई हैं। इतना ही नहीं, राज्य, ब्लॉक तथा ग्राम पंचायत स्तर पर रोजगार गारंटी निधि की स्थापना भी नहीं की गई है। सीएजी की रिपोर्ट राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण परिवारों के लिए किए जा रहे विकास कार्य व उनके कल्याण के लिए उठाए जा रहे कदमों के दावों के ठीक उलट है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार इससे क्या सीख लेती है। केंद्र से फंड मिलने के बावजूद सड़कों का निर्माण नहीं कराया प्रदेश की सड़कों के लिए केंद्र सरकार ने पिछले पांच साल में 16 सौ करोड़ रुपए से अधिक राशि दी, लेकिन राज्य सरकार समय पर निर्माण कार्य नहीं करा पाई। वहीं कैग द्वारा पेश की गई वित्तीय वर्ष 2012-13 की रिपोर्ट में सड़कों के निर्माण में सबसे ज्यादा अनियमितताएं सामने आई है, जिससे सरकार को करोड़ों की चपत लगी है। कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि केन्द्रीय सड़क निधि में 12.34 करोड़ का नुकसान हुआ, वहीं 110 करोड़ से निर्मित होने वाली सड़कों के निर्माण में बरती गई लापरवाही के कारण अकेले ब्याज भुगतान पर ही 20 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ। साथ ही निर्माण कार्यो के लिए तय मजदूरी तथा सामग्री क्रय के अनुपात 60- 40 का भी पालन नहीं हुआ, जिससे केन्द्र सरकार को करोड़ों की चपत लगी। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2001 से 2012 के मध्य मप्र को 2 हजार 224.78 करोड़ की लागत पर जिला मुख्य सड़कों एवं अन्य जिला सड़कों के चौड़ीकरण, सुदृढ़ीकरण तथा उन्नयन के 298 निर्माण कार्य अनुमोदित किए थे, जिसमें वर्ष 2007-08 2011- 12 के दौरान 1653.67 करोड़ की लागत के 152 निर्माण स्वीकृत किए गए । नाबार्ड की सहायता से 1499 करोड़ की लागत के 510 निर्माण कार्य स्वीकृत किए गए, लेकिन केन्द्रीय सड़क निधि के 42 निर्माण कार्यो तथा नाबार्ड के 169 कार्य वास्तविक रूप से पूर्ण नहीं कराए गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि 12.34 करोड़ की केन्द्रीय निधि का दुरूपयोग सामने आया है, जबकि सीआरएफ एवं नाबार्ड से स्वीकृत सड़कों के निर्माण में भी काफी विलंब हुआ। निर्माण कार्यों पर 15.19 करोड़ का अपव्यय हुआ और 5.69 करोड़ की अतिरिक्त लागत पर राशि खर्च की गई। सुदृढ़ीकरण तथा नवीनीकरण का गलत वर्गीकरण करने की वजह से शासन को 2.30 करोड़ की चपत लगी, वहीं वाटर बाउण्ड मेकेडम पर सरफेस ड्रेसिंग अप्राधिकृत प्रावधान के कारण 2.76 करोड़ की चपत लगी। साथ ही अपात्र भुगतान से जहां शासन को 25.37 करोड़ की क्षति पहुंचाई गई, जबकि सड़क निर्माण कार्यो पर किए गए 109.54 करोड़ का व्यय विलंब से करने और निर्माण कार्य पूर्ण न होंने के कारण विफल रहे कार्यो ऋण पर 20.30 करोड़ के ब्याज का भुगतान करना पड़ा। ठेकेदारों पर मेहरबान जल संसाधन महकमा जल संसाधन महकमे के आला अफसर पिछले साल ठेकेदारों पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहे। ठेकेदारों को उन्होंने अनुचित वित्तीय सहायता देकर सरकार को करोड़ों की चपत लगा दी। इतना ही नहीं अनुबंध के अनुसार तय समय में काम न करने पर जुर्माना वसूलने के बजाए अधिक भुगतान देने जैसी गंभीर अनियमितताएं कैग की रिपोर्ट में उजागर हुई है। महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नवंबर 2011 से अप्रैल 2012 तक चंबल बेतवा बेसिन के 11 संभागों में से 7 संभाग भोपाल, नरसिंहगढ़, रायसेन, राजगढ़, विदिशा, गंजबासौदा और सीहोर के अनुबंधों की जांच की गई तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए। इसमें पता चलता है कि जल संसाधन महकमे ने ठेकेदरों को अनुचित लाभ देकर सरकार के खजाने पर करोड़ों की चपत लगाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नरसिंहगढ़, रायसेन और गंजबासौदा में असंतुलित दरों के कारण उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त सुरक्षा राशि 9 करोड़ 58 लाख रूपए को ठेकेदारों के बिल से काटी जानी आवश्यक थी, लेकिन इसके बावजूद मात्र 66 लाख रूपए काटकर ठेकेदारों को 8 करोड़ 48 लाख रूपए की अनुचित वित्तीय सहायता दी गई। इसके चलते ठेकेदारों द्वारा दो कार्य अधूरे छोडऩे पर सरकार को 43 लाख 92 हजार की चपत लगी। ़बिना काम के बांट दिए लाखों जिल संसाधन विभाग के नरसिंहगढ़ संभागीय अधिकारी ने कुशलपुरा तालाब के लिए रेडियल क्रस्ट गेट मय स्टाप लॉग लिफ्टिंग बीम एवं जेन्ट्री क्रेन लगाने का ठेका इंदौर की अनिल स्टील को लघु उद्योग निगम के माध्यम से सौंपा था। संबंधित अधिकारी ने ठेकेदार को फरवरी 2012 को स्टील की वास्तविक दरों से 15 लाख 10 हजार का अधिक भुगतान कर दिया। इतना ही नहीं उक्त सामग्री को लगाने के नाम पर भी 66 लाख 61 हजार रूपए का भुगतान किया गया, जबकि उक्त कार्य ठेकेदार द्वारा किया ही नहीं गया। इस प्रकार ठेकेदार को 81 लाख 71 हजार का फायदा पहुंचाकर सरकार को चूना लगाने की बात सामने आई। महालेखाकार शेखर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विभाग के प्रमुख सचिव ने जुलाई 2012 को अपने जवाब में कहा है कि ठेकेदार को अधिक भुगतान की गई राशि को उसकी बकाया राशि के भुगतान के समय समायोजित कर लिया जाएगा। ़जिल संसाधन विभाग में पिछले तीन साल से प्रमुख सचिव पद पर राधेश्याम जुलानिया काबिज हैं। इनके कामकाज को लेकर बैठकों में अनेक बार मुख्यमंत्री भी तारीफ कर चुके हैं, लेकिन कैग की रिपोर्ट ने जुलानिया कार्यशैली पर अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। पर्यटन निगम को भारी फटका एक तरफ सरकार प्रदेश में पर्यटन के क्षेत्र में ऐतिहासिक विकास की बात करती है वहीं दूसरी तरफ कैग की रिपोर्ट के अनुसार,पर्यटन निगम के अफसरों के कुप्रबंधन के कारण निगम को करोड़ों का फटका लगा है, वहीं देशी-विदेशी पर्यटकों के जरिए मिलने वाले करोड़ों रूपए के राजस्व का भी नुकसान हुआ है। प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने अक्टूबर 2010 में पर्यटन नीति बनाई थी, लेकिन पर्यटन विकास के लिए कोई योजना ही नहीं बनाई गर्ई। पर्यटन के कई स्थलों जिन्हें निजी क्षेत्रों के माध्यम से विकसित किया जाना था, उसमें भी विभाग उद्यमियों को आमंत्रित करने में पूरी तरह असफल रहा। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यटन निगम ने 2007 से 2011 तक अपने होटलों में पर्यटकों की कम उपस्थिति के बावजूद 9 होटलों की दरों में 27 से 102 प्रतिशत तक का इजाफा कर दिया। इसके चलते निगम के पांच होटलों में पर्यटकों की संख्या पहले से भी कम हो गई। इतना ही नहीं निगम के कुप्रबंधन के कारण उनकी 32 इकाइयां (होटल, रेस्टॉरेंट एवं हाईवे रिट्रीट) भी घाटे में चले गए। इनमें खान-पान की लागत अधिक आने से निगम को दो करोड़ 81 लाख का नुकसान हुआ। इतना ही नहीं पर्यटन निगम ने अपनी घाटे वाली 13 इकाइयों को निजी कंपनी को लीज पर देने के लिए चि-ति किया, लेकिन दिसंबर 2012 तक केवल चार इकाइयां ही लीज पर दी जा सकीं। इसमें भी जमीन का मूल्य कम आंकने से निगम को 4 करोड़ 56 लाख की चपत लगाई गई। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यटन निगम के अफसरों ने करोड़ों रूपए खर्च किए बगैर केन्द्र और राज्य सरकार को उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी कर दिए। अपनी करतूतें छिपाने के लिए उन्होंने आंकड़ों की बाजीगरी भी की। इतना ही नहीं निगम ने 2007 से 2010 तक केन्द्र और राज्य से मिली अनुदान राशि खर्च किए बगैर इन्हें खर्च करना बता दिया। इनमें 3 करोड़ 12 लाख वित्त आयोग की 10 योजनाओं में, 4 करोड़ 90 लाख केन्द्र की सात योजनाओं में और 93 लाख प्रदेश सरकार की चार योजनाओं में खर्च करना बताया। केन्द्रीय वित्त आयोग की पांच योजनाओं में 1 करोड़ 53 लाख तथा केन्द्र की तीन योजनाओं में 72 लाख रूपए खर्च करना बताए। वहीं पर्यटन निगम ने केन्द्र की 13 योजनाओं में 21 करोड़ 36 लाख रूपए समर्पित न करते हुए केन्द्र की अनुदान शर्तों का उल्लंघन किया। यह गड़बडिय़ां भी सामने आई . राज्य, ब्लाक तथा ग्राम स्तर पर रोजगार गारंटी निधि की स्थापना नहीं की गई। . जेलों से भागने के 91 प्रकरणों में 96 कैदी जेलों से फरार हुए और प्रतिबंधित वस्तुएं जब्त की गई। . जेलों के उद्योगों में कार्यरत कैदियों को न्यूनतम वेतन मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया। . मनरेगा श्रम बजट वास्तविकता के आधार पर तैयार नहीं किए गए। . चयनित जिलों में 13.35 लाख से 19.74 लाख अपात्र हितग्राहियों के पंजीयन किए गए और इनके नाम पर राशि खर्च की गई। . संस्कृति विभाग में बिना मापदण्ड कलाकारों, फिल्मी हस्तियों, पाश्र्व गायकों को 7.19 करोड़ का भुगतान कर दिया। . कला मंडलियों को वाद्य यंत्रों के क्रय में 1.17 करोड़ की राशि अधिक व्यय की गई। . अशासकीय संस्थाओं को वर्ष 2009-10 से 2011- 12 के दौरान बिना संस्कृति गतिविधियां तय किए बगैर 3.02 करोड़ की राशि खर्च की गई। . भारत भवन ट्रस्ट ने सभागार के उन्नयन के लिए उपलब्ध राशि 63.55 लाख का समयावधि में उपयोग ही नहीं किया। . स्मारकों के जीर्णोद्धार पर व्यय की गई राशि पर्याप्त सुरक्षा एवं रखरखाव के अभाव में निष्फल साबित हुई। . रीवा,सागर तथा खण्डवा में तीन कला संकुल निर्माण के लिए आवंटित 3.01 करोड़ की राशि बिना आवश्यकता के नवंबर 2012 तक खर्च की गई।
ये कौन सा विकास मप्र पर है 92 हजार करोड़ रुपये का कर्ज:लक्ष्मण सिंह कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष लक्ष्मण सिंह कहते हैं कि कैग की रिपोर्ट ने प्रदेश सरकार के दावों की एक बार फिर पोल खोली है। उन्होंने सरकार पर खराब वित्तीय प्रबंधन का आरोप लगाते हुए कहा है कि दस साल पहले जब कांग्रेस ने सत्ता छोड़ी थी उस समय का 22 हजार करोड़ रुपए का कर्ज अब बढ़कर 92 हजार करोड़ रुपए हो गया है। सिंह ने कहा कि प्रदेश के वित्तीय हालात इतने बदतर हो गए हैं कि सरकार को अपने कर्मचारियों को वेतन बांटने के लिए भी बाहर से एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा 'आओ बनाएं मध्यप्रदेशÓ नामक यात्रा निकलने का कोई औचित्य नहीं है। सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री चौहान को यह साफ करना चाहिए कि 92 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के साथ वह स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने की बात कैसे कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का यह कहना भी गलत है कि केन्द्र सरकार प्रदेश को वांछित मदद नहीं दे रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत केन्द्र से आया 500 करोड़ रुपया अब तक उपयोग ही नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार केन्द्र से गैस राहत की दवाओं के लिए आया 58 लाख रुपया कथित तौर पर प्रदेश के स्वास्थ्य संचालक के व्यक्तिगत बैंक खाते में क्यों और कैसे रखा हुआ है। जिस नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पर भाजपा ने संसद की कार्यवाही बाधित की थी। जब वही सीएजी मध्यप्रदेश के मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी के सरकार के दावे खोखले बताता हैं तो वह चुप्पी क्यों साध लेती है।

अपनों को अंधेरे में रख यूपी को बिजली बेचेगी पावर मैनेजमेंट कंपनी

कंपनी ने उत्तरप्रदेश को 100 से 1000 मेगावाट बिजली बेचने का टेंडर भरा
भोपाल। अब तक बिजली खरीदने का आदि रहा मप्र अब बिजली का व्यापारी बनने जा रहा है। बिजली की भीषण किल्लत झेल रहे उत्तरप्रदेश को बिजली बेचने मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने दावेदारी जताई है। उप्र ने बिजली खरीदने देशभर के बिजली उत्पादकों से टेंडर आमंत्रित किए हैं। इसमें मप्र ने भी हिस्सा लिया है। मप्र के इतिहास में यह पहली बार होने जा रहा है कि वह किसी राज्य को बिजली बेचने किसी टेंडर में शामिल हुआ हो। अब तक केवल पॉवर एक्सचेंज के माध्यम ही मप्र अपनी अतिरिक्त बिजली बेचते आया है। यह बिजली बेचने के लिए उसे प्रतिदिन लगने वाली बोली में शामिल होना पड़ता था। लेकिन पहली बार किसी निश्चित समयावधि में एक तय समय तक मप्र किसी राज्य को बिजली देने का लिखित वादा करने जा रहा है। अगर इस दौरान प्रदेश में बिजली का उत्पादन कम होता है तो अपनों की बिजली काट कर यूपी को देना पड़ सकता है। राज्य सरकार ने भले ही आम आदमी को 24 घंटे बिजली देने के लिए अटल ज्योति अभियान शुरू कर रखा है, लेकिन गांव, कस्बों की तो छोड़ो, शहरों में भी अघोषित कटौती का दौर मिनटों से बढ़कर घंटों तक पहुंच गया है। यानी अपने ही प्रदेश की आवश्यकताएं पूरी करने में असफल रही कंपनी ने उत्तरप्रदेश को 100 से 1000 मेगावाट बिजली बेचने का टेंडर भर दिया है। ये बिजली मई से अगस्त के बीच बेची जाएगी। कंपनी ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में रबी सीजन (नवंबर से फरवरी) के दौरान बिजली की मांग 9500 मेगावाट तक पहुंच जाती है। वर्तमान में पावर मैनेजमेन्ट कंपनी 500 मेगावाट बिजली खरीद रही है। इसके बावजूद किसानों को सिंचाई के लिए 10 घंटे ही बिजली दी जा रही है। मई के अंत से बिजली की मांग घटकर 5000 मेगावाट के आसपास आ जाती है। पिछले पांच साल से बारिश के दौरान दूसरे राज्यों के साथ बिजली की बैंकिंग की जा रही है। बैंकिंग की बिजली को रबी सीजन में वापस ले लिया जाता है। बिजली की मांग कम होने से कई यूनिटों को बंद भी रखा जाता है। पहली बार पावर मैनेजमेन्ट ने कंपनी ने बारिश के दौरान बिजली बेचने का निर्णय लिया है। बिड में हिस्सा लेने वाला मप्र अकेला राज्य यूपी को बिजली बेचने के लिए कुल पांच बिडर्स ने बिड में भागीदारी की है। लेकिन मप्र का एमपी पॉवर मेनेजमेंट कंपनी अकेला ऐसा उपक्रम है, जो कि किसी राज्य सरकार के अधीन है। बाकी बिडरों में टाटा पॉवर, पॉवर ट्रेडिंग कापरेरेशन , एनटीपीसी का विद्युत व्यापार निगम, जीएमआर, और नेक्स्ट शामिल है। अगर प्रदेश बिजली बेचने के कारोबार में लगता है तो पावर मैनेजमेन्ट कंपनी का बिजली बेचने के लिए देश की कई बंड़ी कंपनियों के साथ मुकाबला है। इसमें रिलायंस पावर, टाटा पावर, एस्सार पावर एवं पावर एक्सचेंज ऑफ इंडिया जैसी कंपनियां शामिल हैं। फिलहाल बिजली के मामले में सरप्लस राज्यों में गुजरात, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश शामिल है। लेकिन इन राज्यों ने बिड में हिस्सा नहीं लिया। मप्र ने उप्र को मई से लेकर अगस्त 2014 तक लगातार चार माह तक बिजली बेचने के लिए टेंडर में हिस्सा लिया है। मई के लिए जहां 100 मेगावाट बिजली बेचने के लिए बिड में शामिल हुए हैं। वहीं जून में 200 मेगावाट, जुलाई में 750 मेगावाट बिजली बेचने के लिऐ दावेदारी जताई है, लेकिन अगस्त में सबसे अधिक 1000 मेगावाट बिजली बेचने की हिम्मत मप्र ने दिखाई है। जुलाई-अगस्त के माह में मप्र में बिजली की मांग कम हो जाती है। ऐसे में मप्र इस अवधि में सरप्लस राज्यों में शुमार हो जाता है, लेकिन मई और जून की अवधि में भी मप्र ने बिजली बेचने का साहस दिखाया है। इसका यह साहस कही भारी न पड़ जाए। फिर तो लेने के देने पड़ सकते हैं। क्योंकि प्रदेश में 24 घंटे बिजली देने वाली अटल ज्योति योजना प्रदेशवासियों के लिए बड़ी राहत की उम्मीदें लेकर आई है। कहीं झूठ तो कही सच नजर आ रही ये योजना भविष्य में कितना अटल रहेंगी? यह सवाल भी अब उठने लगा हैं। असल में मप्र सरकार ने गुजरात मॉडल की नकल करके अटल ज्योति अभियान को शुरू किया है। भविष्य में भी 24 घंटे की सप्लाई लोगों को मिलती रहें इसके लिए मप्र सरकार ने गुजरात की तरह विद्युत उत्पादन बढ़ाने में अपनी अकल नहीं चलाई। 16 जून को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डबरा से अटल ज्योति योजना का शुभारंभ किया था। अपने हाइड्रल पावर प्रोजेक्ट(पनबिजली परियोजना) और फ्यूचर सौदे की दम पर अटल ज्योति योजना को शुरू किया गया है। अब कृषि कार्य के लिए बिजली की डिमांड बढऩे लगी है। विशेषज्ञों की मानें तो बिजली की डिमांड बढऩे पर अटल ज्योति योजना को जबरदस्त करंट लग सकता है। ऐसी स्थिति में पहले से करोड़ो के कर्ज में दबी बिजली कंपनियों को मजबूरन विद्युत दरें बढ़ानी पड़ेगी। मतलब ये कि बिना किसी ठोस प्लानिंग के शुरू हुई इस योजना से उपभोक्ताओं को जेब के साथ-साथ पहले की तरह बिजली कटौती की मार भी झेलनी पड़ सकती हैं। मप्र सरकार का दावा है कि अटल ज्योति योजना के तहत प्रदेश के 50 जिलों, 476 शहरों और 54903 गांवों में 24 घंटे बिजली की सप्लाई रहेगी। बिना किसी ठोस प्लानिंग के शुरू की गई इस योजना के दावे अभी से ही झूठे नजर आने लगे हैं।
सरकार के अपने तर्क इन तमाम विसंगतियों के बावजुद सरकार का तर्क है कि वित्तीय वर्ष 2013 -14 में 6142 करोड यूनिट विद्युत आपूर्ति होगी। जिसमें एक यूनिट भी लघु अवधि विद्युत क्रय से नहीं होगी। प्रदेश के पूर्व ऊर्जा मंत्री राजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि राज्य में अब तक किए गये दीर्घकालीन अनुबंध के आधार पर ही वर्ष 2018 तक विद्युत सरप्लस की स्थिति बनी रहेगी। शुक्ला ने 2003 और 2013 का तुलनात्मक विवरण देते हुए बताया कि वर्ष 2003 में दीर्घकालीन विद्युत क्रय अनुबंध से उपलब्ध विद्युत की कुल क्षमता 4673 मेगावाट थी जो मार्च 2013 में बढ़कर 10480 मेगावाट हो गयी है और मार्च 14 तक 14384 मेगावाट हो जायेगी। वर्ष 2018 में यह क्षमता बढ़कर 20199 मेगावाट होगी। वर्ष 2003 में 2709 करोड़ यूनिट विद्युत प्रदाय हुई थी जो मार्च 2014 में बढ़कर 6142 करोड़ यूनिट हो जाएगी। जिसमें उन्होंने बताया कि वर्ष 2003 में हमारी ट्रांसमिशन प्रणाली की क्षमता 3890 मेगावाट थी जो मार्च 2013 में 10361 मेगावाट तक पहुंच चुकी है। 33/11केव्ही विद्युत ग्रिड में लगे पावर ट्रांसफ ार्मरों की संख्या वर्ष 2003 में 2680 थी जो इस वर्ष 4793 हो गयी है। वर्ष 2003 में हमारा राजस्व 4521 करोड़ था जो अब बढ़कर 15284 करोड़ रूपए हो चुका है। वर्ष 2003 में ट्रांसमिशन हानियां 7.93 प्रतिशत थी जो अब घटकर 3.30 प्रतिशत रह गयी है। ऐसे में न तो प्रदेश में बिजली संकट पैदा होगा और न ही हमें दूसरे पर निर्भर रहना पड़ेगा। सारणी ताप विद्युत गृह भी दे गया दगा 312 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाली सारणी ताप विद्युत गृह परियोजना भी दगा देने लगी है। यहां की चार यूनिट बंद हो गई है। मप्र विद्युत कंपनी के एमडी विजेन्द्र नानावटी कहते है कि सारणी ताप विद्युत गृह से कम खर्च में अधिक विद्युत उत्पाद करने की तैयारी हो रही है। जितने कोयले से अभी 312 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा रहा है, उसी खर्च पर दोगुनी बिजली बनाने की योजना है। इसी योजना के तहत कंपनी सारणी चार यूनिट बंद कर दी गई हैं। इन यूनिटों के बंद करने से कोई ऊर्जा संकट उत्पन्न नहीं होगा, क्योंकि फिलहाल प्रदेश में मांग से ज्यादा उत्पादन हो रहा है। नानावटी कहते हैं कि सारणी में पुरानी यूनिट बंद कर नई यूनिट खोलने के पीछे का कारण सीधा है। लगभग 50 साल पुरानी यूनिटें काफी खर्चीली पड़ रही हैं। पुराने सेटअप के कारण इन यूनिटों में कोयला, पानी और तेल की खपत अधिक होती है। नई तकनीक और सेटअप वाली प्रस्तावित 660 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाली यूनिट में कोयला, पानी और तेल का खर्च कम होगा। जानकारों का अनुमान है कि पुराने खर्चे में ही बिजली उत्पादन दोगुना हो सकता है। नई यूनिट को चालू होने में करीब चार साल का वक्त लगेगा। ऐसे में निश्चित रूप से आने वाले समय में बिजली संकट गहराएगा। मप्र में सबसे महंगी बिजली मध्यप्रदेश के उपभोक्ताओं को देश के कई राज्यों की तुलना में महंगी बिजली मिल रही है। इसके बावजूद प्रदेश में फ्यूल कॉस्ट एडजस्टमेंट के नाम पर हर तीन महीने में रेट बढ़ाए जा रहे हैं। महंगी बिजली की वजह से जनता पर बोझ बढ़ रहा है। दिल्ली में बिजली के रेट कम होने के बाद लोग मध्यप्रदेश में भी बिजली सस्ती करने की मांग कर रहे हैं। मध्यप्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ में बिजली के रेट मध्यप्रदेश से आधे हैं। बिहार जैसे राज्य में भी बिजली की दरें 50 प्रतिशत तक कम है। इसके अलावा गुजरात, आंध्रप्रदेश और राजस्थान में भी बिजली मध्यप्रदेश से सस्ती मिल रही है। इसके बावजूद मध्यप्रदेश में फिर से बिजली के रेट बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। लोकसंवाद जनवकालत केन्द्र के गोपाल हूंका का कहना है कि मध्यप्रदेश में बिजली के नाम पर खुली लूट मची हुई है। प्रदेश में 101 से 300 यूनिट तक बिजली के रेट 4.80 रूपए प्रति यूनिट हैं। नियत प्रभार और विद्युत शुल्क जोड़कर उपभोक्ताओं को 7.50 रूपए प्रति यूनिट की दर से भुगतान करना पड़ता है। हालत ये है कि 300 यूनिट से अधिक उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को बिजली 9 रूपए प्रति यूनिट पड़ रही है। अलग-अलग प्रदेशों में बिजली के रेट मध्यप्रदेश 01-50 यूनिट 3.40 रूपए 51-100 यूनिट 3.85 रूपए 101- 300 यूनिट 4.80 रूपए गुजरात 01-50 यूनिट 2.95 रूपए 101-200 यूनिट 3.25 रूपए 201- 600 यूनिट 3.90 रूपए बिहार 01-50 यूनिट 2.00 रूपए 51-100 यूनिट 2.30 रूपए 101 से अधिक 2.70 रूपए राजस्थान 01-50 यूनिट 3.00 रूपए 51-150 यूनिट 4.65 रूपए 151-300 यूनिट 4.85 रूपए छत्तीसगढ़ 01-100 यूनिट 1.40 रूपए 101-200 यूनिट 1.60 रूपए 201-600 यूनिट 2.30 रूपए आंध्रप्रदेश 01-50 यूनिट 1.45 रूपए 51- 100 यूनिट 2.60 रूपए 101-150 यूनिट 3.25 रूपए
मप्र में बिजली का गणित मप्र में तीन वितरण कंपनियां हैं। इन पर मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी का होल्ड हैं। मप्र में बिजली का उत्पादन करीब 4000 मैगावाट हैं जबकि 6000 मैगावाट बिजली की जरूरत हैं। अटल ज्योति योजना के बाद 1000 मैगावाट बिजली एक्स्ट्रा चाहिए। कृषि कार्य के लिए बिजली की डिमांड करीब 1500 मैगावाट होगीं। 3 कंपनियां करीब 11 हजार करोड़ के कर्ज में डूबी हैं। इसे घाटे से उबारने के लिए सरकार पहले से परेशान। अटल ज्योति से अब घाटा और भी बढ़ रहा है। घाटे को पाटने के लिए दरें बढ़ाई जा रही है। हमारे पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में बिजली का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता हैं। हांलाकि इस उत्पादन में मप्र का भी हक है, लेकिन मप्र से अलग होने के बाद भुगतान नीति के चलते छत्तीसगढ़ से हमें सीधे बिजली नहीं मिलती। यही कारण है कि मप्र को पंजाब, हरियाणा जैसे दूसरे राज्यों और पॉवर कंपनियों से करीब 3000 मेगावाट बिजली खरीदनी पड़ रहीं हैं। मप्र में विद्युत मण्डल का कंपनीकरण हुआ। इसके बाद से हर साल विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरों मे इजाफा किया। आयोग और कंपनी मामूली वृद्धि बताते हैं। ये हैं हमारे पावर प्रोजेक्ट हाईड्रल पावर: इंदिरा सागर, बाण सागर, सरदार सरोवर, ओंकारेश्वर, राणा प्रताप सागर,राजघाट, पेंच,चंबल, नाथा आदि। थर्मल पावर:वीरसिंहपुर, सारंणी, अमरकंटक, सिंगाजी व सीधी में दो प्रोजेक्ट। 2013 में इतना उत्पादन ताप विद्युत 3057.50 मेगावाट प्राइवेट विद्युत उत्पादन 912 मेगावाट दूसरी कंपनियों से मध्यप्रदेश का समझौता 656 मेगावाट जल विद्युत 915.17 मेगावाट केंद्रीय शेयर 3021 मेगावाट कुल उत्पादन 10859.69 मेगावाट

योगी की क्षत्रछाया में भोगी बना 60,000 करोड़ का मालिक

भोपाल। भारतीय योग और ध्यान की परम्परा का दुनिया से परिचय कराने वाले आध्यात्मिक गुरु महर्षि महेश योगी की 6 फरवरी,2008 को मृत्यु के बाद उनकी क्षत्रछाया में पला-बढ़ा एक भोगी(गिरीश वर्मा) उनके 60,000 करोड़ के एम्पायर का छल पूर्वक मालिक बन बैठा। अब अपने कुकर्मो के कारण महर्षि महेश योगी का वह तथाकथित भतीजा गिरीश वर्मा अब भोपाल सेंट्रल जेल का कैदी नंबर 6364 है। महर्षि शिक्षा संस्थान के सर्वेसर्वा वर्मा पर संस्थान की एक महिला कर्मचारी का 16 सालों से यौन शोषण करने का आरोप है। इन आरोपों के 9 माह बाद वर्मा की गिरफ्तारी और अब वर्मा के जेल जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महर्षि संस्थान की छवि धूमिल हुई है। इस घटनाक्रम के बाद महर्षि महेश योगी के सगे भतीजे अजय प्रकाश और आनंद प्रकाश भी चिंतित हैं। महर्षि महेश योगी के अनुयायियों का मानना है कि इन आरोपों से संस्थान की छवि खराब हुई है। महर्षि महेश योगी ने अपनी जन्म स्थली जबलपुर से अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की थी और पश्चिम में जब हिप्पी संस्कृति का बोलबाला था, उस वक्त महेश योगी ने 'ट्रेन्सेडेंशल मेडिटेशनÓ (टीएम) तकनीक से दुनिया को रूबरू कराया। महर्षि महेश योगी के तकरीबन 60 हजार करोड़ की संपत्ति के वारिस गिरीश वर्मा के इस सफर की शुरुआत भी वहीं से हुई थी। लेकिन देखते ही देखते महेश योगी के इस साम्राज्य को वर्मा ने इतना बड़ा कर दिया कि देखने वाले देखते रह गए। साल 2008 में जब महेश योगी की मृत्यु हुई तो वर्मा एक झटके में योगी के तमाम स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी और शिक्षण संस्थान के मालिक बन गए और इस विरासत को सालों तक उन्होंने बखूबी संभाला भी। निरंकुश हो गया था वर्मा बताया जाता है कि महर्षि महेश योगी के निधन के बाद उनकी तकरीबन तकरीबन 60 हजार करोड़ की संपत्ति का वारिस बनने के बाद से ही गिरीश वर्मा निरंकुश हो गया था। जहां एक तरफ देश भर में फैली महर्षि की अन्य संपत्तियों को लेकर उनके सगे भतीजों और ट्रस्टियों में झगड़े हो रहे थे,वहीं वर्मा उनके महर्षि शिक्षा संस्थान का स्वयंभू बना हुआ था। धीरे-धीरे वह विलासिता और अय्याशी की जिंदगी जीने का आदि होने लगा। उसी दौरान 2011 में मिसरोद स्थित महर्षि शिक्षा संस्थान की पीडि़त शिक्षिका उसके संपर्क में आई और तब से वह उसका लगातार यौन शोषण कर रहा था। शिक्षिका ने 13 मार्च 2013 को राज्य महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। इस मामले में आयोग ने वर्मा को नोटिस जारी किए थे, लेकिन वह हाजिर नहीं हुए। इसके बाद महिला ने 19 मार्च 2013 को महिला थाने में वर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। अगले दिन महिला के पति ने अपने बयान दर्ज कराए थे। इस संबंध में टीचर ने पहले दिए अपने बयान में कहा था कि गिरीश चंद्र वर्मा 1996 से ही उसके साथ ज्यादती करने की कोशिश में थे। लेकिन दो साल बाद यानी 1998 को उन्होंने पहली बार उसके साथ बलात्कार किया और फिर 2013 यानी 16 सालों तक उसके साथ बलात्कार करते रहे। इस दौरान उन्होंने उसके पति से उसके बैंक एकाउंट और ई-मेल की आईडी और पासवर्ड भी हासिल कर लिए और ट्रांजैक्शन करते रहे। बाद में उन्हें पता चला कि इस आईडी और पासवर्ड के माध्यम से वर्मा ने खुद को कई मेल भी किए, ताकि जरूरत पडऩे पर वह खुद को बचा सके और उन्हें ब्लैकमेल कर सके। शिकायत की जांच के तहत पुलिस ने गिरीश वर्मा व कुछ अन्य लोगों को नोटिस जारी किए थे। इनमें से सिर्फ महर्षि इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के संचालक वीएन गोस्वामी ने अपने बयान दर्ज कराए थे। बाद में दबाव बढऩे पर 27 दिसंबर को गिरीश वर्मा ने महिला थाने में अपने बयान दर्ज कराए थे। 29 दिसंबर को वर्मा के खिलाफ दफा-376, 506 के तहत मुकदमा कायम किया गया है। एफआईआर होते ही वर्मा को गिरफ्तार भी कर लिया गया। महर्षि महेश योगी संस्थान के चेयरमेन गिरीश वर्मा पर लगा यौन उत्पीडऩ का मामला संस्थान के अंतरराष्ट्रीय चेयरमेन और महर्षि महेश योगी द्वारा बनाए गए विश्व शांति राष्ट्र के महाराजाधिराज डॉ. टोनी नाडर तक पहुंच गया है। डॉ. नाडर ने गिरीश वर्मा पर लगे आरोपों की खबरों को मेल पर मंगा लिया है। ऐसे में लोगों का कहना है कि संभव है कि गिरीश वर्मा को संस्थान के सभी पदों से हटा दिया जाए।
9 माह बाद दर्ज हुई थी एफआईआर बलात्कार जैसे संगीन मामले में भी किसी शख्स के रसूख और जलवे के आगे कानून कमजोर पड़ जाता है? ये सवाल इसलिए है, क्योंकि महर्षि महेश योगी शिक्षण संस्थान के मुखिया गिरीश वर्मा के खिलाफ एफआईआर करने में भोपाल पुलिस को पूरे नौ महीने लग गए। आखिर ये देरी हुई क्यों? इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। अपने ही स्कूल में काम करने वाली एक टीचर के साथ सोलह सालों तक बलात्कार करने के इल्जाम में भोपाल पुलिस ने आखिरकार गिरीश वर्मा को गिरफ्तार कर जेल तो भेज दिया, लेकिन ये सवाल अब भी उठ रहा है कि आखिर कार्रवाई करने में पुलिस को नौ महीने से भी ज्यादा का वक्त क्यों लग गया। गुरू की पुत्र बधू है पीडि़ता जिस महिला ने वर्मा पर यौन शोषण का आरोप लगाया है उसके ससुर ने गिरीश वर्मा को संगीत की शिक्षा दी है। अब वे दृष्टिहीन हैं। महिला के पति राजेश शर्मा पिछले 12 वर्षों से गिरीश वर्मा के प्राइवेट सक्रेट्री रहे हैं। मूलत:जबलपुर निवासी राजेश शर्मा के पिता भी महर्षि संस्थान से जुडे थे। उनके पिता के म्यूजिक कॉलेज में गिरीश वर्मा बतौर शिष्य सितार वादन व गाना सीखने आता था। पिता का शिष्य होने के नाते राजेश शर्मा और गिरीश वर्मा के बीच पुराना परिचय था। महिला का आरोप है कि गिरीश वर्मा ने भोपाल से बाहर की यात्राओं के दौरान होटलों में उनका यौन शोषण किया। शर्मा का आरोप है कि गिरीश वर्मा ब्रह्मचारी नहीं, बल्कि महिलाओं के शौकीन हैं। वे न केवल महिलाओं के साथ बाहर आते-जाते हैं, बल्कि बड़े-बड़े होटल्स में रुकते भी हैं। पीडि़ता के पति के साथ हॉलैंड में गिरीश वर्मा ने किया था कुकृत्य 15 साल तक लगातार पीडि़ता को हवस का शिकार बनाने के आरोपी महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय के कुलाधिपति गिरीश वर्मा उसके पति राजेश शर्मा के साथ भी एक बार कुकृत्य कर चुके हैं, उस वक्त राजेश की उम्र 19 साल थी। आरोप है कि गत 1992 में यूरोप के हॉलैंड में घटित इस कुकृत्य का खुलासा खुद राजेश शर्मा ने मीडिया के सामने किया। राजेश ने बताया कि 1987 में उन्होंने महर्षि संस्थान ज्वाइन किया था, 1992 में गिरीश वर्मा के पिता का देहांत हो गया था। महर्षि ने खुद गिरीश वर्मा, उसकी मां और बहनो को हॉलैंड स्थित महर्षि यूनिवर्सिटी बुलवाया था। वर्मा परिवार के साथ 19 वर्षीय राजेश शर्मा भी हॉलैंड के रौरमुंड के स्टेशन 24 के बाद पडऩे वाले फ्लोडरोव इलाके स्थित महर्षि विश्वविद्यालय गया था। पीडि़त ने बताया कि होटल के कमरे में गिरीश वर्मा ने नशीली चीज खिलाकर उनके साथ कुकृत्य किया था। हालांकि घटना का विरोध जताने के बाद वर्मा ने दूसरी बार कभी कोशिश नहीं की। वर्मा ने पति-पत्नि को दिखाया बाहर का रास्ता पुलिस को दी गई शिकायत की मानें तो गिरीश वर्मा पर इल्जाम लगाने वाले पति-पत्नी सालों से उनके यहां काम कर रहे थे, लेकिन एक दिन अचानक उनका इस्तेमाल करने के बाद वर्मा ने उन्हें संस्थान से बाहर का रास्ता दिखा दिया। महर्षि महेश योगी संस्थान की ओर से जारी हुआ मात्र एक बयान: इतना सबकुछ होने और यौन शोषण के इल्जाम में गिरफ्तार हो कर जेल चले जाने के बावजूद महर्षि महेश योगी संस्थान की ओर से गिरीश वर्मा के हक में मात्र एक बयान जारी किया गया है। इस बयान में वर्मा को ना सिर्फ बेगुनाह बताया गया है, बल्कि ये भी कहा गया है कि बलात्कार का ये आरोप उनके दुश्मनों की साजिश के सिवा और कुछ भी नहीं। विरासत मे मिली थी अरबों की संपत्ति
वर्मा की दौलत की चमक देखकर आपकी आंखें भी चौंधिया जाएगी, उनके पास जमीन इतनी है कि पैमाइश मुश्किल हो, कारें इतनी कि गिनना दुश्वार हो जाए और नौकर-चाकर इतने कि पहचान नामुमकिन है। बलात्कार के इल्जाम में जेल जाने वाले महर्षि महेश योगी यूनिवर्सिटी के चांसलर गिरीश वर्मा आडम्बर ऐसा था कि शासन-प्रशासन भी उनसे खौफ खाता था। महर्षि महेश योगी यूनिवर्सिटी के चांसलर गिरीश वर्मा को विरासत में ही अरबों की दौलत मिली, लेकिन वर्मा ने देखते ही देखते इस दौलत का दायरा और भी बड़ा कर लिया। 16 राज्यों में है वर्मा के स्कूल आज हालत ये है कि वर्मा देश के 16 राज्यों में मौजूद 148 स्कूलों का संचालन खुद करते हैं और कई आश्रमों के मालिक हैं। लेकिन अब इन्हीं गिरीश वर्मा पर आईपीसी की धारा 376 यानी बलात्कार और 506 यानी जान से मारने की धमकी देने का मामला दर्ज हो चुका है और फिलहाल वह जेल में है। आखिर हैं कौन ये गिरीश वर्मा गिरीश वर्मा महर्षि महेश योगी के दूर के भतीजे हैं। चूंकि हालैंड में गिरीश ने महर्षि के काफी वक्त गुजारा है, इसलिए उनकी प्रभाव साफ दिखता है। वैदिक धर्म की स्थापना और योग की शिक्षा के लिए गिरीश वर्मा ने ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। 1998 में महर्षि महेश योगी ने हॉलैंड में विश्व शांत ट्रस्ट की स्थापना की थी। महर्षि जी ने पूरी दुनिया को एक शांति राष्ट्र के रूप में मानते हुए इस लक्ष्य की स्थापना के लिए अपने 40 अनुयायियों को राजा बनाते हुए डॉ. टोनी नाडर को महाराजाधिराज बनाकर भव्य समारोह में इनका राज्याभिषेक किया था। टोनी नाडर ने उसी समय गिरीश वर्मा को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा मंत्री बनाते हुए उनका शपथ समारोह किया था। तभी से गिरीश वर्मा महर्षि महेश योगी द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थानों की कमान संभाले हुए हैं। महलनुमा कोठी में रहता है वर्मा बताया जाता है कि महर्षि के निधन के बाद गिरीश और महर्षि के सगे भतीजों अजय और आनंद से विवाद भी हुआ। बाद में समझौते के रूप में गिरीश वर्मा को सभी शिक्षण संस्थानों और अजय-आनंद को अन्य संस्थानों की जिम्मेदारी मिली। अजय-आनंद ने दिल्ली में घर बनाया तो दूसरी ओर ब्रह्मचारी गिरीश वर्मा ने भोपाल में भोजपुर रोड पर पांच एकड़ में महलनुमा घर बनाया। इसमें उसकी सेवा में लगभग 40 से अधिक कर्मचारी और 30 से अधिक कारें हैं। वर्मा की महलनुमा कोठी के लिए वर्ष 2005 में जमीन खरीदी गई थी, जो वर्मा और उनकी बहन के नाम पर है। इसका निर्माण वर्ष 2006 में शुरू हुआ और कोठी 2008 में बनकर तैयार हो गई। वर्ष 2009 से वर्मा ने आसपास की पांच एकड़ जमीन और खरीद ली। वर्तमान में तकरीबन 11 हजार वर्गफुट में बनी कोठी दो मंजिला है। पूरी कोठी में सफेद मार्बल का काम हुआ है। जबकि कोठी के ऊपर पीतल का कलश लगाया गया है। वर्मा ऊपर की मंजिल में रहते हैं। दोनों मंजिल पर ड्राइंग और डायनिंग रूम के अलावा चार कमरे बने हैं। पहली मंजिल पर जाने के लिए लिफ्ट लगी है। कोठी के गार्डन में जयपुर से मंगाया हुआ सफेद मार्बल का फव्वारा लगाया है। गार्डन के आसपास विभिन्न कलाकृतियां लगी हैं। महंगी गाडिय़ों का शौकिन है वर्मा आज हालत ये है कि इतने स्कूल कॉलेजों के अलावा इस संस्थान के पास नोएडा जैसे खास इलाके में तकरीबन 12 सौ एकड़ की जमीन है। जबकि देश विदेश में कई जगहों पर करोड़ों की दूसरी चल-अचल संपत्ति। भोपाल में वर्मा खुद जिस महल में रहते हैं, उसकी चकाचौंध देखते ही बनती है। यहां 40 से ज्यादा नौकर-चाकर चौबीसों घंटे उनकी सेवा में लगे होते हैं और वर्मा की गाडिय़ों का गैराज इतना बड़ा है कि उनके नजदीकी लोगों को भी इसकी सही-सही थाह नहीं है। वर्मा के गैराज में मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू और ऑडी समेत अनगिनत महंगी गाडिय़ां शामिल है। वर्मा की संपत्ति पर डालें एक नजर -148 स्कूल - दो यूनिवर्सिटी - हजारों एकड़ की जमीन - अनगिनत बेशकीमती गाडिय़ां - दर्जनों महल और आश्रम - 60 हजार करोड़ की दौलत भक्तों के झगड़े में फंसी गुरु की विरासत भावातीत ध्यान गुरु महर्षि महेश योगी की भारत में करीब 60,000 करोड़ रु. की विशाल संपत्ति ने उनके वारिसों और अनुयायियों के बीच वर्षों से लड़ाई चल रही है। उनकी संपत्ति में ज्यादातर जमीन है। 2012 में कुछ लोगों पर आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने जमीन के अवैध सौदे किए हैं और संपत्ति हथियाने के लिए फर्जी ट्रस्ट बनाए हैं। भारत को प्रख्यात बीटल्स से परिचित कराने वाले इस भागवत पुरुष की फरवरी, 2008 में मौत हो गई और वे अपने पीछे देशभर में 12,000 एकड़ से ज्यादा जमीन छोड़कर गए। इनमें दिल्ली, नोएडा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और गोवा में कई प्रमुख जगहों पर जमीन शामिल है, जो फिलहाल योगी द्वारा 1959 में स्थापित आध्यात्मिक पुनरुद्धार आंदोलन (एसआरएम फाउंडेशन) के नियंत्रण में है। योगी ने कई सोसाइटियों की स्थापना की थी जिनमें एसआरएम फाउंडेशन और उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित महर्षि ग्लोबल यूनिवर्सिटी सबसे ऊपर हैं। महर्षि शिक्षा संस्थान, महर्षि वेद विज्ञान विद्यापीठ, महर्षि गंधर्व वेद विद्यापीठ और महिला ध्यान विद्यापीठ जैसे चार अन्य शैक्षणिक संस्थान भी हैं जो देश के 16 राज्यों में 148 स्कूल चला रहे हैं। नीदरलैंड के व्लोड्रोप में निधन के तुरंत बाद ही योगी के शिष्यों और सोसाइटियों के सदस्यों के बीच संपत्ति पर नियंत्रण को लेकर तनाव शुरू हो गया था। अपने को उनका असल उत्तराधिकारी बताने वाले दो गुटों ने एक-दूसरे पर जमीन से संपन्न सोसाइटियों पर नियंत्रण के लिए स्वांग रचने का आरोप लगाया। एक तरफ योगी के भतीजे व एसआरएएम फाउंडेशन इंडिया के चेयरमैन 54 साल के आनंद प्रकाश श्रीवास्तव, एसआरएम फाउंडेशन के 46 साल के सचिव अजय प्रकाश श्रीवास्तव और शैक्षणिक ट्रस्टों के चेयरमैन 58 साल के ब्रह्मचारी गिरीश चंद्र वर्मा हैं। वे 12 सदस्यीय एसआरएम फाउंडेशन के एक सदस्य 64 साल के जी. राम चंद्रमोहन के खिलाफ खड़े हैं। राम चंद्रमोहन के साथ छत्तीसगढ़ के रियल एस्टेट एजेंट और योगी के शिष्य 51 साल के विजय धावले और जालंधर स्थित एनजीओ इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख 55 साल के उपेंद्र कलसी हैं। जनवरी 2012 में श्रीवास्तव बंधुओं ने दिल्ली हाइकोर्ट में एक याचिका दायर कर महर्षि समूह द्वारा स्थापित कई सोसाइटियों के स्वामित्व वाली जमीन की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि चंद्रमोहन और उनके सहयोगी फर्जी दस्तावेजों के सहारे सोसाइटी की जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा करना चाहते हैं। दूसरी तरफ, चंद्रमोहन का दावा है कि श्रीवास्तव परिवार एसआरएम फाउंडेशन बोर्ड के सभी सदस्यों की मंजूरी लिए बिना गुरु की जमीन को खुद बेच रहा है। एक तरफ जहां महर्षि महेश योगी की अपार संपत्ति को लेकर उनके वारिशों में जंग छिड़ी हुई है,वहीं गिरीश वर्मा संस्थान के अंतरराष्ट्रीय चेयरमेन और महर्षि महेश योगी द्वारा बनाए गए विश्व शांति राष्ट्र के महाराजाधिराज डॉ. टोनी नाडर को विश्वास में लेकर उनकी 60 हजार करोड़ की विरासत का मालिक बन बैठा है। अब महेश योगी के बारे में श्री श्री रविशंकर के गुरु महर्षि महेश योगी जब 91 साल की उम्र में स्वर्ग सिधारे तो उनके संस्थान के पास छह अरब डॉलर की संपत्तियां थी और एक छोटा मोटा देश बसाने लायक जमीन हॉलैंड और जर्मनी की सीमा के पास मौजूद थी। उन्होंने एक निजी मुद्रा भी इजाद की थी और उसे कई देशों मे मान्यता भी मिली थी। रुपए और डॉलर की तरह इस मुद्रा का नाम राम था। एक राम की कीमत पांच रुपए थी। ये वे महेश योगी थे जिन्होंने योग की कई विधियों को जोड़ कर भावातीत ज्ञान यानी ट्रांसडेंटल मेरिडेसन की रचना की थी और पश्चिमी देशों में इसकी धूम मचा दी थी। टाइम पत्रिका के कवर पर उनकी जीवनी छपी थी और इतनी सारी दौलत होने के बाद भी महेश चंद्र श्रीवास्तव उर्फ महेश योगी कहा करते थे कि मैं तो योगी हूं और मेरी पोशाक में कोई जेब नहीं है। पैसा मैं कहां रखूंगा? महेश योगी जबलपुर में जन्में थे। इस शहर की खासियत है कि इसमें दुनिया को रजनीश कुमार जैन उर्फ भगवान रजनीश उर्फ ओशो दिए, महेश योगी दिए और यहीं के स्वामी प्रज्ञानंद भी पूरे संसार में घूम कर अपना ठीक ठाक आध्यात्मिक साम्राज्य बना चुके हैं। महेश योगी ने पहले भारत में नाम कमाया और फिर अमेरिका रवाना हो गए। तब तक वे योग की कक्षाओं के लिए फीस नहीं लेते थे। कक्षाओं और टीवी चैनलों में ठहाके लगाने के कारण उन्हें हंसमुख गुरु भी कहा जाता था। ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य ब्रह्मनंद सरस्वती के शिष्य रहे महेश योगी ने अपने भावातीत योग को ट्रेडमार्क करवा लिया था। जैसे बाद में उनके शिष्य होने का दावा करने वाले रविशंकर ने सुदर्शन क्रिया को ट्रेडमार्क करवाया। महेश योगी के बारे में बहुत सारी बाते प्रचलित है। मगर जब उनका निधन हुआ तो दुनिया भर के अखबारों ने खबर का शीर्षक यही दिया कि बीटल्स के गुरु नहीं रहे। बीटल्स दुनिया के इतिहास में अब तक का सबसे पॉप बैंड रहा है और पचास से ले कर सत्तर के दशक तक अंग्रेजी संगीत के प्रेमी उनके नाम की कसमे खाया करते है। बीटल्स महर्षि महेश योगी के आश्रम में काफी समय रहे और बाद में यह आरोप लगा कर गए कि खुद को ब्रह्मचारी कहने वाले महर्षि ने उनके साथ आई एक युवती पर हाथ डाला था। महर्षि ने पूरी दुनिया घूमी और उनकी पहली विदेश यात्रा रंगून की थी। एक भी पैसा नहीं रखने वाले महेश योगी के पास इतना पैसा है कि दिल्ली, ऋषिकेश, भोपाल और कई जगहों पर किराए पर कोठियां ली गई हैं और लगभग बीस साल से उनमें कोई नहीं रहता लेकिन किराया वक्त पर पहुंचता रहता है। बीच में उन्होंने एक हिंदी अखबार भी निकाला था जो कब का बंद हो चुका है मगर इसके पत्रकारों को वेतन अब तक मिलता है। महेश योगी ने महर्षि वेद विश्वविद्यालय के अलावा कई अंर्तराष्ट्रीय विश्वविद्यालय खोले और उनमें मुख्य पढ़ाई योग या बाबा के ध्यान की नहीं बल्कि मैनेजमेंट की होती है। जल्दी ही अकिंचन योगी निजी विमानों में उडऩे लगे और दुनिया की सबसे महंगी कार रास रॉयल्स में चलने लगे। ब्रिटिश टेलीविजन पर तो उनके चरित्र को ले कर एक सीरियल बना और दूसरे सीरियल गॉडनेस ग्रेसियस मी का प्रसारण तो बीबीसी पर हुआ। महेश योगी काफी आधुनिक गुरु थे। वे दुनिया भर मे मौजूद अपने आश्रमों में आज से बीस साल पहले सैटेलाइट डिश लगवा चुके थे और एक बड़े पर्दे पर प्रकट हो कर भक्तों से वीडियो संवाद करते थे। राजनैतिक महत्वकांक्षा उनमें इतनी बड़ी थी कि उन्होंने नेचुरल लॉ पार्टी ब्रिटेन में बनाई और 1952 के आम चुनाव में पूरे तीन सौ दस उम्मीदवार खड़े किए। इस गरीब योगी ने इस आम चुनाव पर घोषित कर के एक अरब डॉलर खर्च किया था। उस चुनाव में तो पार्टी को कोई खास सफलता नहीं मिली लेकिन 1999 में यह विजेता लेबर पार्टी के बाद कई जगह नंबर दो पर आई और चार लाख वोट प्राप्त किए। महर्षि की नजर अमेरिका की राजनीति पर भी थी। उसके लिए उन्होंने दो अरब डॉलर का फंड बनाया था और उनकी पार्टी में चालीस हजार कार्यकर्ता शामिल हो गए थे। फिर भी अमेरिका में उन्हें सफलता नहीं मिली। विश्व विख्यात टीवी इंटरव्यू एंकर लैरी किंग से उन्होंने कहा था कि मुझे एक अरब डॉलर मिल जाए तो मैं दुनिया की तस्वीर बदल दूंगा। पासपोर्ट पर पता नहीं क्यों उन्होंने अपना नाम बदल कर महेश श्रीवास्तव से महेश चंद्र वर्मा रख दिया था। एक जमाने में हॉलीवुड की नामी हीरोइन मिया फैरो ने उन पर अश्लील हरकतों का आरोप लगाया था और आश्रम छोड़ कर चली गई थी। बीटल्स भी बाद में इतने दुखी हो गए थे कि उन्होंने और खास तौर पर बीटल्स के सबसे लोकप्रिय गायक जॉन लैनन ने महर्षि का मजाक उड़ाते हुए कई गीत बनाए। बीटल्स के दूसरे साथी हैरीसन ने बाद में महर्षि से माफी मांगी। फिलहाल दुनिया में घूम कर शांति का पाठ पढ़ा रहे दीपक चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बीटल्स ऋषिकेश के आश्रम में ड्रग्स लेते थे, गांजा पीते थे और इसीलिए महर्षि ने उन्हें निकाल दिया था। मिया फैरो ने जब यह इंटरव्यू पढ़ा तो आग बबूला हो गई और उन्होंने कहा कि दीपक चोपड़ा को उतना ही बोलना चाहिए जितना उन्हें आता है। आश्रम में कभी नशीली दवाएं या गांजा नहीं पिया गया बल्कि बीटल्स बोर होने की वजह से गए और मैं इसलिए आई क्योंकि गुरु की नजरे मुझे खराब लग रही थी। महर्षि को असली चुना मध्य प्रदेश के एक राजनेता ने लगाया जो कांग्रेस की एक सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। महेश योगी ने भारत में राजनीति की शुरूआत अपने प्रदेश यानी मध्य प्रदेश से ही की और ये नेता जी उनकी पार्टी के अखिल भारतीय अध्यक्ष बन गए। उन्हें एक हैलीकॉप्टर दे दिया गया, खर्चे के लिए अपार पैसे दे दिए गए और दिल्ली और भोपाल में कोठियां दे दी गई। काफी रकम कमाने के बाद नेताजी वापस कांग्रेस में लौट आए। भोपाल की जो कोठी महर्षि की ओर से जो खरीदी गई थी वह दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना करवाने वाली यूनियन कार्बाइड का गेस्ट हाउस था।

शिवराज ने ठाना है... मोदी को पीएम बनाना है

शिवराज जुटे मिशन टारगेट 29 में 25 जनवरी से 11 फरवरी के तक महाजनसंपर्क करेगी पार्टी भोपाल। जुनून,जिद और जज्बात किसी पर सवार हो जाए तो फिर वह सब कुछ कर लेता है जो वह चाहता है। मप्र में सत्ता की हैट्रिक बनाकर यह सिद्ध कर दिखाया है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने। अब उन्होंने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने की ठानी है और इसके लिए उन्होंने प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों को जीतने के लिए मिशन टारगेट 29 बनाया है। इस टारगेट को पूरा करने के लिए वह तथा उनकी टीम के पदाधिकारी 25 जनवरी से प्रदेश भर में महाजनसंपर्क यात्रा करने वाले हैं। विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 'टारगेट 29Ó में जुट गए हैं। फिलहाल मध्यप्रदेश में भाजपा के पास लोकसभा की 16 सीटें हैं। कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं, इनमें एक होशंगाबाद सांसद उदय प्रताप सिंह को हाल के विधानसभा चुनावों में प्रदेश भाजपा ने तोड़कर अपने यहां मिलाया है। एक अन्य सीट रीवा बसपा के पास है। विधानसभा चुनाव में जिस तरह का बहुमत भाजपा को मिला है और कांग्रेस के कब्जे वाले लोकसभा क्षेत्रों की विधानसभा सीटों पर जिस तरह से सेंध लगाई है, उसके बाद 'टारगेट 29Ó में तो बहुत ज्यादा कठिन राह नजर नहीं आ रही है। फिर भी शिवराज सिंह चौहान कोई भी मौका चुकना नहीं चाहते हैं। लगातार दस साल तक केंद्र की सत्ता से दूर रहने के आद भाजपा एक बार फिर केंद्र में सरकार बनाने के सपने पूरा करने में जुट गई है। कवायद में भाजपा का प्रदेश संगठन भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बतौर सहयोगी मिशन साधने की फिराक में है। वह इसलिए भी कि मौजूदा समय में शिवराज ही एक ऐसा चेहरा है, जिसके पास न केवल शासन की कमान है। बल्कि जनता का समर्थन भी। लिहाजा संगठन की तैयारी भले ही नजर नहीं आ रही है। लेकिन सरकार की तैयारियां परवान चढऩे को है। वह इसलिए कि उसके सामने विगत लोकसभा चुनाव के मुकाबले प्रतिद्वंदी दल कांग्रेस के पास मौजूद सींटे छीनने की चुनौती है। भाजपा से जुड़े सूत्रों की माने तो इसकी गंभीरता को समझने के बाद ही शिवराज सरकार हरकत में आई और 100 दिन कार्ययोजना के साथ जनता के बीच जा रही है। लोकसभा चुनावों के मद्देनजर सरकार की यह कवायद क्या रंग लाएगी, यह भविष्य के गर्त में है। लेकिन पार्टी पदाधिकारी इस बात से आश्वास्त है, कि इन प्रयासों से जहां जनमत भाजपा के पक्ष में बनेगा और शिवराज का मिशन टारगेट 29 सफल होगा। पूरा प्रदेश नापेंगे शिवराज तीसरी बार प्रदेश में भारी बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनने के बाद पूरी भाजपा बहुत उत्साहित है। शिवराज सरकार भाजपा संगठन के लोग दुगने उत्साह से लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गये हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी ने लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीटें जीतने का जो लक्ष्य रखा है,उसके लिए संगठन ने विशेष कार्ययोजना बनाई है। इसके लिए प्रदेश भाजपा कार्यालय में दो दिनों तक मंथन कर तय किया गया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश के सभी जिलों में पहुंच कर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए सहयोग भी मांगेंगे। पार्टी ने 25 जनवरी से 11 फरवरी के बीच महाजनसंपर्क सहित अन्य कार्यक्रम करने की योजना बनाई है। शिवराज के अलावा पार्टी के अन्य पदाधिकार घर-घर दस्तक देंगे। भाजपा से लोगों को जोडऩे और मिशन को पॉसिबल करने हर घर से 10 रुपए की सहयोग राशि मांगी जाएगी। प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने के लिए हर घर से 10 रुपए की सहयोग राशि मांगी जाएगी। भाजपा इस अभियान के जरिए एक साथ दो काम करना चाहती है, पहला वो घर-घर पहुंचेगी, दूसरा सहयोग राशि का चुनाव में उपयोग कर पाएगी। उन्होंने कहा कि 272 भाजपा का लक्ष्य है। इसके लिए मप्र की सभी 29 सीटें जीतना उनका लक्ष्य है। सरकार भी गिनाएगी केंद्र की कमियां कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को सत्ता से बाहर करने में प्रदेश की भाजपा सरकार की भूमिका भी अहम होगी। पार्टी की कार्ययोजना के अनुसार,लोकसभा चुनाव की अधिसूचना से पूर्व ही न केवल शिवराज बल्कि अन्य मंत्री भी केंद्र सरकार के खिलाफ बयानी हमले करने की तैयारी में है। यह हमले योजनाओं के माध्यम से मिलने वाली मदद के अलावा केंद्रीय नीतियों में विसंगितयों को लेकर हो सकती है। 26 सीटों पर भाजपा मजबुत विधानसभा के हाल के चुनावों में भाजपा ने सूबे की 230 में से 165 सीटें हासिल की हैं। विजयी विधानसभा क्षेत्रों के अनुसार लोकसभा की कुल 29 सीटों में 26 लोकसभा सीटें ऐसी रही हैं जिनमें भाजपा का सफलता मिली है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के अधिपत्य वाली गुना और गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी के अधिपत्य वाली धार सीट को बचा पाने भर में कांग्रेस सफल हो पाई है। इसके अलावा यशोधरा राजे सिंधिया के अधिपत्य वाली ग्वालियर संसदीय सीट को कांग्रेस ने पन्द्रह सौ कुछ ऊपर वोटों से जीता है। कमलनाथ, अरुण यादव, सज्जन वर्मा, प्रेमचंद गुड्डू, मीनाक्षी नटराजन और राजेश नंदिनी सिंह समेत अन्य उन सीटों को कांग्रेस हार गई है जहां अभी कांग्रेस के सांसद हैं। कई सांसदों के यहां डेढ़ लाख तक के अंतर से हार हुई है। फिर भी भाजपा फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। फिलहाल भाजपा को प्रदेश की चार सीटों को छोड़कर 25 सीटों पर अपनी जीत नजर आ रही है। गुना की ज्योतिरादित्य सिंधिया और छिंदवाड़ा की कमलनाथ की सीटों को किस तरह जीता जाए, इसके लिए विशेष रणनीति बनाई जा रही है। वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और दिग्विजयसिंह, लक्ष्मणसिंह के प्रभाव वाली झाबुआ,राजगढ़ सीट को भी हथियाने के लिए स्पेशल प्लान भाजपा संगठन तैयार कर रहा है। छिंदवाड़ा कर जिम्मेदारी शिवराज ने ली कमलनाथ की संसदीय सीट छिंदवाड़ा फतह करने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिम्मेदारी ली है। उनके साथ कुछ और वरिष्ठ नेता काम करेंगे। औपचारिक रूप से यह भी तय किया गया कि छिंदवाड़ा के लिए प्रत्याशी चयन का जिम्मा मुख्यमंत्री के पास रहेगा। अभी तक कांग्रेस की कोई तैयारी नहीं विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद भी कांग्रेस नेताओं ने अभी तक कोई सबक नहीं लिया। यहीं कारण है कि आज तक पार्टी ने हार के कारणों की समीक्षा करना भी गंवारा नहीं समझ, जबकि भाजपा ने लोकसभा की तैयारियां शुरू कर दी है। जिस ढंग से भाजपा तैयारी में जुटी हैं, उससे लगता है कि वह लोकसभा चुनाव में 25 सीटें लाने की स्थिति में पहुंच गई है। क्योंकि 26 लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा ने कांग्रेस से अच्छी-खासी बढ़त ले रखी है। पार्टी छिंदवाड़ा सीट को भी टफ मान रही है। वर्तमान में कांग्रेस के पास सांसद के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना-शिवपुरी, श्रीमती राजेश नंदिनी सिंह शहडोल, बसोरी सिंह मसराम मंडला, कमलनाथ छिंदवाड़ा, उदयप्रताप सिंह होशंगाबाद, नारायण सिंह अमलावे राजगढ़, सज्जन सिं हवर्मा देवास, प्रेमचंद गुड्ड उज्जैन, सुश्री मीनाक्षी नटराजन मंदसौर, कांतिलाल भूरिया झबुआ- रतलाम, गजेन्द्र सिंह राजूखेड़ी धार तथा अरुण यादव खण्डवा की सीट थी, लेकिन होशंगाबाद सांसद उदयप्रताप सिंह के भाजपा में शामिल हो जाने से कांग्रेस की सीट घटकर 12 से 11 रह गई हैं। पार्टी बड़ेे नेताओं में से खासकर केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, झबुआ-रतलाम से कांतिलाल भूरिया को तो चुनाव मैदान में उतारेगी। इसके अलावा यदि वह राजगढ़ से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह या लक्ष्मण सिंह, सीधी से पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, सतना से पूर्व मंत्री इंद्रजीत पटेल को टिकट देती हैं, तो यह कांग्रेस की सीटें बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। यहां कांग्रेस को खतरा विधानसभा के चुनाव परिणामों और अभी तक मिले संकेतों के आधार पर कांग्रेस को अपनी कमलनाथ छिंदवाड़ा,सज्जन सिंह वर्मा देवास,अरुण यादव खण्डवा,बसोरी सिंह मसराम मंडला, मीनाक्षी नटराजन मंदसौर, नारायण सिंह अम्लाबे राजगढ़,कांतिलाल भूरिया रतलाम, राजेश नंदिनी सिंह शहडोल, प्रेमचंद गुड्ड उज्जैन, उदय प्रताप सिंह होशंगाबाद सीट बचाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। पार्टी को इन सीटों पर या तो अपने उम्मीदवार बदलने होंगे अथवा अभी से तैयारी करनी होगी। केवल कांग्रेस के लिए ग्वालियर, गुना, धार सीट ही सुरक्षित मानी जा रही है। जबकि टीकमगढ़, मुरैना, भिण्ड, सागर,सतना, रीवा,सीधी,जबलपुर, दमोह,खजुराहो, बालाघाट, विदिशा, भोपाल, इंदौर,बैतूल तथा खरगौन में तो भाजपा इतनी मजबुत है कि कांग्रेस की यहां दाल नहीं गलने वाली है।