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भेड़ाघाट

Wednesday, January 15, 2014

अपने और आप की फांस में अरूण यादव

क्षत्रपों के चक्रव्यूह को तोडऩा अरुण के लिए चुनौती
भोपाल। मध्य प्रदेश में राजनीति के वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस को उबारने की जिम्मेदारी आलाकामन ने अरूण यादव को सौंप तो दी है लेकिन Óसिर मुढ़ाते ही ओले पड़ेÓ की तर्ज पर वे अपने(कांग्रेसियों) और आप (आम आदमी की पार्टी)की फांस में फंस गए है।
उल्लेखनीय है कि यादव को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस नेतृत्व ने अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने की कोशिश की है कि प्रदेश के क्षत्रपों की अब ज्यादा नहीं चलेगी। लेकिन इसी तरह के संकेत पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव के पूर्व भी दिए थे,लेकिन हुआ वही जो क्षत्रपों ने चाहा। इस लिए यादव को को उनके पिता सुभाष यादव के साथियों से पार पाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। प्रदेश में सहकारिता के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले सुषाभ यादव के साथ दिग्विजय, कमलनाथ और सुरेश पचौरी ने भी राजनीति शुरू की थी। अरुण की राह में ये तीनों क्षत्रप सबसे ज्यादा मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। इनको साथ लेकर चलना भी नए पीसीसी चीफ के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। प्रदेश कांग्रेस की राजनीति से अब तक अपने को दूर रखने वाले सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को वैसे तो पिता की विरासत में हर ब्लाक और जिले में समर्थक मिले हैं, लेकिन उनके पिता के गुट की उपेक्षा के कारण अब ये सब लोग हाशिए पर हैं। ऐसे में अरुण यादव को संगठन के अलावा अपनी अलग से नई टीम बनाना होगी। जिसमें पिता से जुड़े लोगों को एक साथ लाना होगा। प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में बरसों से छाए क्षत्रपों को भी साधना चुनौती है। हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि अरुण यादव को अध्यक्ष बनाने के पीछे केंद्रीय नेतृत्व अगले पांच सालों में प्रदेश कांग्रेस संगठन को फिर से मजबूत करना चाहता है। ऐसे में अरुण प्रदेश अध्यक्ष की लंबी पारी खेल सकते हैं। इसलिए ही हाईकमान ने युवा नेतृत्व को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी है।
क्या अरूण को पचा पाएंगे दिग्गज
आलाकमान ने अरूण यादव को प्रदेश की कमान तो सौंप दी है,लेकिन सवाल उठता है कि अपने से बहुत जूनियर को कांग्रेस के क्षत्रप अपना नेता मान सकेंगे। इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री असलम शेर खान कहते हैं कि कमलनाथ,दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रहते मप्र मे कांग्रेस कभी खड़ी नहीं हो सकती। वे कहते हैं कि अरुण यादव को इन तीनों से दूर रहना चाहिए। इससे पहले कांग्रेस की तेजतर्रार नेत्री कल्पना परुलेकर ने बगावती तेवर दिखाते हुए यह तक कह दिया कि, 'मप्र कांग्रेस का अध्यक्ष अरुण यादव क्या कोई भी बन जाए, जब तक गद्दारों को सजा नहीं मिलती, पार्टी का भला होने से रहा।Ó यह मामला अभी राजनीतिक गलियारों में चर्चा से बाहर आ भी नहीं पाया था कि अब नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता आलोक अग्रवाल ने घाटी प्रभावित हजारों लोगों के संग आप की सदस्यता लेने का ऐलान किया है। उन्होंने खंडवा से अरुण यादव के खिलाफ लोकसभा चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है।
एक साथ कई चुनौतियां
यादव के सामने एक संग कई चुनौतियां आकर खड़ी हो गई हैं। पहली चुनौती दिग्गज नेताओं से समन्वय बिठाकर अपनी टीम का गठन करना। यादव की ताजपोशी से पीसीसी के कई पदाधिकारियों की छुट्टी होना तय माना जा रहा है जिनमें प्रदेश उपाध्यक्ष बिसाहू लाल सिंह, अरुणोदय चौबे, हुकुम सिंह कराड़ा, विजय दुबे, मोहम्मद अबरार के साथ महासचिव सुनील सूद, गोविंद गोयल, शशि कथूरिया, संजय ठाकुर, बटनलाल साहू, रवि जोशी, रघुवीर सिंह सूर्यवंशी और शांतिलाल पडियार शामिल हैं। ऐसे में इन नेताओं के आका दिग्गज नेताओं को साधना अरूण के लिए बड़ी चुनौती होगी। वहीं इंदौर एक से विधायक रह चुके रामलाल यादव बल्लू भैया, केके मिश्रा को महत्व मिल सकता है। इसी तरह रीवा के विमलेंद्र तिवारी, भोपाल के पूर्व महापौर दीपचंद यादव को भी संगठन में महत्व मिल सकता है। विधायक मुकेश नायक और प्रवक्ता रवि सक्सेना का संगठन में कद बढ़ेगा।
अरूण के सामने दूसरी चुनौती है लोकसभा चुनाव में पूरी तैयारी के साथ उतरना। चुनाव निकट हैं विधानसभा चुनाव में बुरी पराजय के बाद कांग्रेस क मनोबल टूटा हुआ है। ऐसे में कांग्रेस की लोकसभा की 12 सीटें बचाना अरुण यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
तीसरी चुनौती अंदरुनी कलह है। कांग्रेस में कलह इस कदर है कि असलम शेर खान और कल्पना परूलेकर खुलेआम पार्टी गाइड लाइन की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कांग्रेस की तेजतर्रार नेत्री में शुमार कल्पना परुलेकर लंबे समय से अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज चल रही हैं। उन्होंने आप में जाने का ऐलान कर दिया है। इस लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अरुण यादव के सामने पार्टी की अंदरुनी कलह दूर करने के अलावा अब पार्टी में आप की सेंधमारी रोकना भी एक बड़ी चुनौती होगी। दअरसल, नर्मदा बचाओ आंदोलन से हजारों गांववाले जुड़े हुए हैं। ये वो डूब प्रभावित हैं, जो उचित मुआवजा नहीं मिलने के कारण वर्षों से लगातार संघर्ष करते आ रहे हैं। हालांकि ये भाजपा के लिए भी चुनौती हैं, लेकिन वे इस बात से भी नाराज हैं कि सांसद रहते हुए अरुण यादव ने उनकी आवाज को ताकत नहीं दी।
खंडवा की सीट बचाना टेड़ी खीर
अब नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता आलोक अग्रवाल ने अरुण यादव के खिलाफ खंडवा से लोकसभा चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है। हालांकि सूत्रों के मुताबिक, अरुण यादव संभवत: इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। यदि वे चुनाव लड़ते हैं, तो इस बार उन्हें नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक अग्रवाल का सामना करना होगा। आलोक अग्रवाल ने आप की सदस्यता लेने का ऐलान करते हुए खंडवा से अरुण यादव के विरुद्ध चुनाव लडऩे की घोषणा की है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता आलोक अग्रवाल ने दावा किया कि बहुत जल्द लाखों डूब प्रभावित आप में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि करप्शन सबसे बड़ा मुद्दा है, जो डूब प्रभावितों के अलावा सब पर बुरा असर डालता है।
खत्म हुआ दिग्गी राजा का वक्त!
कांग्रेस आलाकमान ने मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के लिए पार्टी सचिव एवं सांसद अरुण यादव पर भरोसा जता कर एक ओर जहां अन्य पिछड़ा वर्ग कार्ड चला है, वहीं पीसीसी में लंबे समय बाद किसी भी महत्वपूर्ण पद पर कांग्रेस महासचिव एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खेमे को जगह नहीं दी गई है। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे और अब पीसीसी मुखिया अरुण यादव केन्दीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे से हैं। युवा कांग्रेस और महिला कांग्रेस में भी अब दिग्विजय समर्थक नहीं हैं। इससे पहले राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह और पीसीसी मुखिया सांसद कांतिलाल भूरिया और युवा कांग्रेस अध्यक्ष प्रियव्रत सिंह को दिग्विजय सिंह का समर्थक माना जाता था। हालांकि अब भी प्रदेश कांग्रेस में सबसे अधिक संख्या दिग्विजय समर्थक नेताओं एवं विधायकों की ही है, लेकिन चूंकि विधानसभा चुनाव में दिग्विजय समर्थकों के नेतृत्व में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है, इसलिए इस बार होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दूसरे खेमे को महत्व दिया गया है।
पुराने नेताओं के दिन लदे
प्रदेश कांग्रेस के इतिहास में सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने अरुण यादव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर खंडवा के सांसद अरुण यादव की ताजपोशी के साथ ही प्रदेश में अब कांग्रेस के पुराने नेताओं के दिन लदते नजर आ रहे हैं। वे प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने वाले अब तक के सबसे कम उम्र के नेता होंगे। यादव केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं और अभी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव हैं। प्रदेश में कांग्रेस नेताओं के अंतरकलह से त्रस्त केंद्रीय नेतृत्व के इस फैसले को लोकसभा चुनाव की दृष्टि से अहम व नए नेतृत्व को आगे लाने की शुरुआत कहा जा रहा है। अजयसिंह व महेंद्रसिंह कालूखेड़ा जैसे दिग्गजों को नेता प्रतिपक्ष पद पर दरकिनार कर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने विवादों से परे रहने वाले सत्यदेव कटारे को कुछ दिन पहले ही यह दायित्व सौंपा था। विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद कांतिलाल भूरिया द्वारा इस्तीफा देने, सिंधिया के प्रदेश कांग्रेस का दायित्व संभालने से मना करने के बाद से ही अरुण यादव का नाम भी इस पद के लिए चर्चा में था।
जातिगत समीकरण की अहम भूमिका
जातिगत समीकरण के आधार पर पदों का बंटवारा करने वाली कांग्रेस में यादव को यह पद मिलने में भी यही समीकरण काम आए। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद पर ब्राम्हण, उपनेता आदिवासी व उपाध्यक्ष के रूप में क्षत्रिय को मौका देने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद पिछड़ा वर्ग के नेता को जाना तय था।

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