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भेड़ाघाट

Wednesday, January 15, 2014

स्वीकृत राशि से 1100 करोड़ अधिक खर्च कर डाला मप्र ने

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोट का खुलासा अफसरों ने सरकार को लगाई करोड़ों की चपत सड़क निर्माण और मनरेगा में करोड़ों की चपत अनियमितता व लापरवाही के गंभीर आरोप 2224.78 करोड़ प्रदेश को सड़क परिवहन मंत्रालय ने दिए थे। 19.74 लाख अपात्रों का मनरेगा में चयन। 7.19 करोड़ का भुगतान संस्कृति विभाग ने बिना मापदण्ड के किए। 12.34 करोड़ के निधि का दुरूपयोग। 110 करोड़ के व्यय में लापरवाही से लगा 20 करोड़ का ब्याज 110 भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग)ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर राज्य सरकार के कामकाज पर सवाल उठाया है और प्रदेश सरकार के दावों की एक बार फिर पोल खोली है। रिपोर्ट की माने तो सरकार ने विकास के नाम पर जनता को सिर्फ धोखा देने का काम किया। कहीं ज्यादा पैसा चुकाकर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया, कहीं ठेकेदार को फायदा पहुंचाकर। सड़क निर्माण और मनरेगा में करोड़ों की चपत लगी है। यही नहीं मध्यप्रदेश में मनरेगा में स्वीकृत राशि से 1100 करोड़ से ज्यादा की राशि का व्यय किए जाने का खुलासा भी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोट में हुआ है। महालेखाकार डीके शेखर के प्रतिवेदन की रिपोर्ट में मुताबिक, वर्ष 2007-12 की अवधि में भारत सरकार द्वारा योजना के लिए 15 हजार 946.54 करोड़ रुपए मंजूर किए गए, मगर खर्च हो गए 17 हजार 193.12 करोड़ रुपए। ं मनरेगा के तहत हर जिले में 13 से 20 लाख तक अपात्र हितग्राहियों का पंजीकरण किया गया है। ग्रामीण इलाकों के गरीब परिवारों को उनके ही गांव में रोजगार मुहैया कराने के लिए अमल में लाई गई केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में मध्य प्रदेश में बड़े पैमान पर गड़बडिय़ां हुई हैं। यह खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट से हुआ है। राज्य सरकार ने विधानसभा के पटल पर सीएजी के 31 मार्च 2012 को खत्म हुए वित्तवर्ष का प्रतिवेदन रखा, जिसमें मनरेगा में हुई गड़बडिय़ों का खुलासा किया गया है। प्रतिवेदन में कहा गया है कि राज्य सरकार के एक आदेश में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हर परिवार का पंजीकरण मनरेगा के तहत करने के निर्देश दिए गए थे। प्रतिवेदन में आगे कहा गया है कि राज्य सरकार के इस आदेश के चलते राज्य के हर जिले में 13.35 लाख से 19.74 लाख अपात्र परिवारों का योजना के अंतर्गत पंजीकरण किया गया है। एक तरफ जहां अपात्रों का पंजीकरण हुआ है, वहीं वार्षिक विकास योजना तैयार करने में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। श्रम बजट वास्तविकता के आधार पर तैयार नहीं किया गया है। इतना ही नहीं, विस्तृत परियोजना प्रतिवेदनों को तैयार करने में अनावश्यक व्यय किया गया है। सीएजी रिपोर्ट राज्य में लोगों को योजना के मुताबिक काम न मिलने का भी खुलासा करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में मात्र 2.31 प्रतिशत से 12.60 प्रतिशत पंजीकृत परिवार ही ऐसे हैं, जिनके द्वारा 100 दिवस का गारंटीशुदा रोजगार पूरा किया जा सका है। मनरेगा के जरिए रोजगार हासिल करने वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग परिवारों की कम होती संख्या का खुलासा भी इस रिपोर्ट में किया गया है। सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2007-12 की अवधि के दौरान राज्य में अनुसूचित जनजाति परिवारों के मनरेगा के तहत उपलब्ध कराए गए रोजगार का प्रतिशत 49 से घटकर 27 प्रतिशत हो गया है। रिपोर्ट में राज्य में निर्धारित समयावधि में राज्य में रोजगार गारंटी परिषद गठित किए जाने का जिक्र करते हुए कहा गया है कि परिषद का गठन तो समयावधि में हुआ, मगर उसकी बैठकें नियमित अंतराल पर आयोजित नहीं की गई हैं। इतना ही नहीं, राज्य, ब्लॉक तथा ग्राम पंचायत स्तर पर रोजगार गारंटी निधि की स्थापना भी नहीं की गई है। सीएजी की रिपोर्ट राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण परिवारों के लिए किए जा रहे विकास कार्य व उनके कल्याण के लिए उठाए जा रहे कदमों के दावों के ठीक उलट है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार इससे क्या सीख लेती है। केंद्र से फंड मिलने के बावजूद सड़कों का निर्माण नहीं कराया प्रदेश की सड़कों के लिए केंद्र सरकार ने पिछले पांच साल में 16 सौ करोड़ रुपए से अधिक राशि दी, लेकिन राज्य सरकार समय पर निर्माण कार्य नहीं करा पाई। वहीं कैग द्वारा पेश की गई वित्तीय वर्ष 2012-13 की रिपोर्ट में सड़कों के निर्माण में सबसे ज्यादा अनियमितताएं सामने आई है, जिससे सरकार को करोड़ों की चपत लगी है। कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि केन्द्रीय सड़क निधि में 12.34 करोड़ का नुकसान हुआ, वहीं 110 करोड़ से निर्मित होने वाली सड़कों के निर्माण में बरती गई लापरवाही के कारण अकेले ब्याज भुगतान पर ही 20 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ। साथ ही निर्माण कार्यो के लिए तय मजदूरी तथा सामग्री क्रय के अनुपात 60- 40 का भी पालन नहीं हुआ, जिससे केन्द्र सरकार को करोड़ों की चपत लगी। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2001 से 2012 के मध्य मप्र को 2 हजार 224.78 करोड़ की लागत पर जिला मुख्य सड़कों एवं अन्य जिला सड़कों के चौड़ीकरण, सुदृढ़ीकरण तथा उन्नयन के 298 निर्माण कार्य अनुमोदित किए थे, जिसमें वर्ष 2007-08 2011- 12 के दौरान 1653.67 करोड़ की लागत के 152 निर्माण स्वीकृत किए गए । नाबार्ड की सहायता से 1499 करोड़ की लागत के 510 निर्माण कार्य स्वीकृत किए गए, लेकिन केन्द्रीय सड़क निधि के 42 निर्माण कार्यो तथा नाबार्ड के 169 कार्य वास्तविक रूप से पूर्ण नहीं कराए गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि 12.34 करोड़ की केन्द्रीय निधि का दुरूपयोग सामने आया है, जबकि सीआरएफ एवं नाबार्ड से स्वीकृत सड़कों के निर्माण में भी काफी विलंब हुआ। निर्माण कार्यों पर 15.19 करोड़ का अपव्यय हुआ और 5.69 करोड़ की अतिरिक्त लागत पर राशि खर्च की गई। सुदृढ़ीकरण तथा नवीनीकरण का गलत वर्गीकरण करने की वजह से शासन को 2.30 करोड़ की चपत लगी, वहीं वाटर बाउण्ड मेकेडम पर सरफेस ड्रेसिंग अप्राधिकृत प्रावधान के कारण 2.76 करोड़ की चपत लगी। साथ ही अपात्र भुगतान से जहां शासन को 25.37 करोड़ की क्षति पहुंचाई गई, जबकि सड़क निर्माण कार्यो पर किए गए 109.54 करोड़ का व्यय विलंब से करने और निर्माण कार्य पूर्ण न होंने के कारण विफल रहे कार्यो ऋण पर 20.30 करोड़ के ब्याज का भुगतान करना पड़ा। ठेकेदारों पर मेहरबान जल संसाधन महकमा जल संसाधन महकमे के आला अफसर पिछले साल ठेकेदारों पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहे। ठेकेदारों को उन्होंने अनुचित वित्तीय सहायता देकर सरकार को करोड़ों की चपत लगा दी। इतना ही नहीं अनुबंध के अनुसार तय समय में काम न करने पर जुर्माना वसूलने के बजाए अधिक भुगतान देने जैसी गंभीर अनियमितताएं कैग की रिपोर्ट में उजागर हुई है। महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नवंबर 2011 से अप्रैल 2012 तक चंबल बेतवा बेसिन के 11 संभागों में से 7 संभाग भोपाल, नरसिंहगढ़, रायसेन, राजगढ़, विदिशा, गंजबासौदा और सीहोर के अनुबंधों की जांच की गई तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए। इसमें पता चलता है कि जल संसाधन महकमे ने ठेकेदरों को अनुचित लाभ देकर सरकार के खजाने पर करोड़ों की चपत लगाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नरसिंहगढ़, रायसेन और गंजबासौदा में असंतुलित दरों के कारण उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त सुरक्षा राशि 9 करोड़ 58 लाख रूपए को ठेकेदारों के बिल से काटी जानी आवश्यक थी, लेकिन इसके बावजूद मात्र 66 लाख रूपए काटकर ठेकेदारों को 8 करोड़ 48 लाख रूपए की अनुचित वित्तीय सहायता दी गई। इसके चलते ठेकेदारों द्वारा दो कार्य अधूरे छोडऩे पर सरकार को 43 लाख 92 हजार की चपत लगी। ़बिना काम के बांट दिए लाखों जिल संसाधन विभाग के नरसिंहगढ़ संभागीय अधिकारी ने कुशलपुरा तालाब के लिए रेडियल क्रस्ट गेट मय स्टाप लॉग लिफ्टिंग बीम एवं जेन्ट्री क्रेन लगाने का ठेका इंदौर की अनिल स्टील को लघु उद्योग निगम के माध्यम से सौंपा था। संबंधित अधिकारी ने ठेकेदार को फरवरी 2012 को स्टील की वास्तविक दरों से 15 लाख 10 हजार का अधिक भुगतान कर दिया। इतना ही नहीं उक्त सामग्री को लगाने के नाम पर भी 66 लाख 61 हजार रूपए का भुगतान किया गया, जबकि उक्त कार्य ठेकेदार द्वारा किया ही नहीं गया। इस प्रकार ठेकेदार को 81 लाख 71 हजार का फायदा पहुंचाकर सरकार को चूना लगाने की बात सामने आई। महालेखाकार शेखर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विभाग के प्रमुख सचिव ने जुलाई 2012 को अपने जवाब में कहा है कि ठेकेदार को अधिक भुगतान की गई राशि को उसकी बकाया राशि के भुगतान के समय समायोजित कर लिया जाएगा। ़जिल संसाधन विभाग में पिछले तीन साल से प्रमुख सचिव पद पर राधेश्याम जुलानिया काबिज हैं। इनके कामकाज को लेकर बैठकों में अनेक बार मुख्यमंत्री भी तारीफ कर चुके हैं, लेकिन कैग की रिपोर्ट ने जुलानिया कार्यशैली पर अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। पर्यटन निगम को भारी फटका एक तरफ सरकार प्रदेश में पर्यटन के क्षेत्र में ऐतिहासिक विकास की बात करती है वहीं दूसरी तरफ कैग की रिपोर्ट के अनुसार,पर्यटन निगम के अफसरों के कुप्रबंधन के कारण निगम को करोड़ों का फटका लगा है, वहीं देशी-विदेशी पर्यटकों के जरिए मिलने वाले करोड़ों रूपए के राजस्व का भी नुकसान हुआ है। प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने अक्टूबर 2010 में पर्यटन नीति बनाई थी, लेकिन पर्यटन विकास के लिए कोई योजना ही नहीं बनाई गर्ई। पर्यटन के कई स्थलों जिन्हें निजी क्षेत्रों के माध्यम से विकसित किया जाना था, उसमें भी विभाग उद्यमियों को आमंत्रित करने में पूरी तरह असफल रहा। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यटन निगम ने 2007 से 2011 तक अपने होटलों में पर्यटकों की कम उपस्थिति के बावजूद 9 होटलों की दरों में 27 से 102 प्रतिशत तक का इजाफा कर दिया। इसके चलते निगम के पांच होटलों में पर्यटकों की संख्या पहले से भी कम हो गई। इतना ही नहीं निगम के कुप्रबंधन के कारण उनकी 32 इकाइयां (होटल, रेस्टॉरेंट एवं हाईवे रिट्रीट) भी घाटे में चले गए। इनमें खान-पान की लागत अधिक आने से निगम को दो करोड़ 81 लाख का नुकसान हुआ। इतना ही नहीं पर्यटन निगम ने अपनी घाटे वाली 13 इकाइयों को निजी कंपनी को लीज पर देने के लिए चि-ति किया, लेकिन दिसंबर 2012 तक केवल चार इकाइयां ही लीज पर दी जा सकीं। इसमें भी जमीन का मूल्य कम आंकने से निगम को 4 करोड़ 56 लाख की चपत लगाई गई। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यटन निगम के अफसरों ने करोड़ों रूपए खर्च किए बगैर केन्द्र और राज्य सरकार को उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी कर दिए। अपनी करतूतें छिपाने के लिए उन्होंने आंकड़ों की बाजीगरी भी की। इतना ही नहीं निगम ने 2007 से 2010 तक केन्द्र और राज्य से मिली अनुदान राशि खर्च किए बगैर इन्हें खर्च करना बता दिया। इनमें 3 करोड़ 12 लाख वित्त आयोग की 10 योजनाओं में, 4 करोड़ 90 लाख केन्द्र की सात योजनाओं में और 93 लाख प्रदेश सरकार की चार योजनाओं में खर्च करना बताया। केन्द्रीय वित्त आयोग की पांच योजनाओं में 1 करोड़ 53 लाख तथा केन्द्र की तीन योजनाओं में 72 लाख रूपए खर्च करना बताए। वहीं पर्यटन निगम ने केन्द्र की 13 योजनाओं में 21 करोड़ 36 लाख रूपए समर्पित न करते हुए केन्द्र की अनुदान शर्तों का उल्लंघन किया। यह गड़बडिय़ां भी सामने आई . राज्य, ब्लाक तथा ग्राम स्तर पर रोजगार गारंटी निधि की स्थापना नहीं की गई। . जेलों से भागने के 91 प्रकरणों में 96 कैदी जेलों से फरार हुए और प्रतिबंधित वस्तुएं जब्त की गई। . जेलों के उद्योगों में कार्यरत कैदियों को न्यूनतम वेतन मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया। . मनरेगा श्रम बजट वास्तविकता के आधार पर तैयार नहीं किए गए। . चयनित जिलों में 13.35 लाख से 19.74 लाख अपात्र हितग्राहियों के पंजीयन किए गए और इनके नाम पर राशि खर्च की गई। . संस्कृति विभाग में बिना मापदण्ड कलाकारों, फिल्मी हस्तियों, पाश्र्व गायकों को 7.19 करोड़ का भुगतान कर दिया। . कला मंडलियों को वाद्य यंत्रों के क्रय में 1.17 करोड़ की राशि अधिक व्यय की गई। . अशासकीय संस्थाओं को वर्ष 2009-10 से 2011- 12 के दौरान बिना संस्कृति गतिविधियां तय किए बगैर 3.02 करोड़ की राशि खर्च की गई। . भारत भवन ट्रस्ट ने सभागार के उन्नयन के लिए उपलब्ध राशि 63.55 लाख का समयावधि में उपयोग ही नहीं किया। . स्मारकों के जीर्णोद्धार पर व्यय की गई राशि पर्याप्त सुरक्षा एवं रखरखाव के अभाव में निष्फल साबित हुई। . रीवा,सागर तथा खण्डवा में तीन कला संकुल निर्माण के लिए आवंटित 3.01 करोड़ की राशि बिना आवश्यकता के नवंबर 2012 तक खर्च की गई।
ये कौन सा विकास मप्र पर है 92 हजार करोड़ रुपये का कर्ज:लक्ष्मण सिंह कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष लक्ष्मण सिंह कहते हैं कि कैग की रिपोर्ट ने प्रदेश सरकार के दावों की एक बार फिर पोल खोली है। उन्होंने सरकार पर खराब वित्तीय प्रबंधन का आरोप लगाते हुए कहा है कि दस साल पहले जब कांग्रेस ने सत्ता छोड़ी थी उस समय का 22 हजार करोड़ रुपए का कर्ज अब बढ़कर 92 हजार करोड़ रुपए हो गया है। सिंह ने कहा कि प्रदेश के वित्तीय हालात इतने बदतर हो गए हैं कि सरकार को अपने कर्मचारियों को वेतन बांटने के लिए भी बाहर से एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा 'आओ बनाएं मध्यप्रदेशÓ नामक यात्रा निकलने का कोई औचित्य नहीं है। सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री चौहान को यह साफ करना चाहिए कि 92 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के साथ वह स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने की बात कैसे कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का यह कहना भी गलत है कि केन्द्र सरकार प्रदेश को वांछित मदद नहीं दे रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत केन्द्र से आया 500 करोड़ रुपया अब तक उपयोग ही नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार केन्द्र से गैस राहत की दवाओं के लिए आया 58 लाख रुपया कथित तौर पर प्रदेश के स्वास्थ्य संचालक के व्यक्तिगत बैंक खाते में क्यों और कैसे रखा हुआ है। जिस नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पर भाजपा ने संसद की कार्यवाही बाधित की थी। जब वही सीएजी मध्यप्रदेश के मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी के सरकार के दावे खोखले बताता हैं तो वह चुप्पी क्यों साध लेती है।

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