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भेड़ाघाट

Wednesday, January 15, 2014

अपनों को अंधेरे में रख यूपी को बिजली बेचेगी पावर मैनेजमेंट कंपनी

कंपनी ने उत्तरप्रदेश को 100 से 1000 मेगावाट बिजली बेचने का टेंडर भरा
भोपाल। अब तक बिजली खरीदने का आदि रहा मप्र अब बिजली का व्यापारी बनने जा रहा है। बिजली की भीषण किल्लत झेल रहे उत्तरप्रदेश को बिजली बेचने मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने दावेदारी जताई है। उप्र ने बिजली खरीदने देशभर के बिजली उत्पादकों से टेंडर आमंत्रित किए हैं। इसमें मप्र ने भी हिस्सा लिया है। मप्र के इतिहास में यह पहली बार होने जा रहा है कि वह किसी राज्य को बिजली बेचने किसी टेंडर में शामिल हुआ हो। अब तक केवल पॉवर एक्सचेंज के माध्यम ही मप्र अपनी अतिरिक्त बिजली बेचते आया है। यह बिजली बेचने के लिए उसे प्रतिदिन लगने वाली बोली में शामिल होना पड़ता था। लेकिन पहली बार किसी निश्चित समयावधि में एक तय समय तक मप्र किसी राज्य को बिजली देने का लिखित वादा करने जा रहा है। अगर इस दौरान प्रदेश में बिजली का उत्पादन कम होता है तो अपनों की बिजली काट कर यूपी को देना पड़ सकता है। राज्य सरकार ने भले ही आम आदमी को 24 घंटे बिजली देने के लिए अटल ज्योति अभियान शुरू कर रखा है, लेकिन गांव, कस्बों की तो छोड़ो, शहरों में भी अघोषित कटौती का दौर मिनटों से बढ़कर घंटों तक पहुंच गया है। यानी अपने ही प्रदेश की आवश्यकताएं पूरी करने में असफल रही कंपनी ने उत्तरप्रदेश को 100 से 1000 मेगावाट बिजली बेचने का टेंडर भर दिया है। ये बिजली मई से अगस्त के बीच बेची जाएगी। कंपनी ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में रबी सीजन (नवंबर से फरवरी) के दौरान बिजली की मांग 9500 मेगावाट तक पहुंच जाती है। वर्तमान में पावर मैनेजमेन्ट कंपनी 500 मेगावाट बिजली खरीद रही है। इसके बावजूद किसानों को सिंचाई के लिए 10 घंटे ही बिजली दी जा रही है। मई के अंत से बिजली की मांग घटकर 5000 मेगावाट के आसपास आ जाती है। पिछले पांच साल से बारिश के दौरान दूसरे राज्यों के साथ बिजली की बैंकिंग की जा रही है। बैंकिंग की बिजली को रबी सीजन में वापस ले लिया जाता है। बिजली की मांग कम होने से कई यूनिटों को बंद भी रखा जाता है। पहली बार पावर मैनेजमेन्ट ने कंपनी ने बारिश के दौरान बिजली बेचने का निर्णय लिया है। बिड में हिस्सा लेने वाला मप्र अकेला राज्य यूपी को बिजली बेचने के लिए कुल पांच बिडर्स ने बिड में भागीदारी की है। लेकिन मप्र का एमपी पॉवर मेनेजमेंट कंपनी अकेला ऐसा उपक्रम है, जो कि किसी राज्य सरकार के अधीन है। बाकी बिडरों में टाटा पॉवर, पॉवर ट्रेडिंग कापरेरेशन , एनटीपीसी का विद्युत व्यापार निगम, जीएमआर, और नेक्स्ट शामिल है। अगर प्रदेश बिजली बेचने के कारोबार में लगता है तो पावर मैनेजमेन्ट कंपनी का बिजली बेचने के लिए देश की कई बंड़ी कंपनियों के साथ मुकाबला है। इसमें रिलायंस पावर, टाटा पावर, एस्सार पावर एवं पावर एक्सचेंज ऑफ इंडिया जैसी कंपनियां शामिल हैं। फिलहाल बिजली के मामले में सरप्लस राज्यों में गुजरात, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश शामिल है। लेकिन इन राज्यों ने बिड में हिस्सा नहीं लिया। मप्र ने उप्र को मई से लेकर अगस्त 2014 तक लगातार चार माह तक बिजली बेचने के लिए टेंडर में हिस्सा लिया है। मई के लिए जहां 100 मेगावाट बिजली बेचने के लिए बिड में शामिल हुए हैं। वहीं जून में 200 मेगावाट, जुलाई में 750 मेगावाट बिजली बेचने के लिऐ दावेदारी जताई है, लेकिन अगस्त में सबसे अधिक 1000 मेगावाट बिजली बेचने की हिम्मत मप्र ने दिखाई है। जुलाई-अगस्त के माह में मप्र में बिजली की मांग कम हो जाती है। ऐसे में मप्र इस अवधि में सरप्लस राज्यों में शुमार हो जाता है, लेकिन मई और जून की अवधि में भी मप्र ने बिजली बेचने का साहस दिखाया है। इसका यह साहस कही भारी न पड़ जाए। फिर तो लेने के देने पड़ सकते हैं। क्योंकि प्रदेश में 24 घंटे बिजली देने वाली अटल ज्योति योजना प्रदेशवासियों के लिए बड़ी राहत की उम्मीदें लेकर आई है। कहीं झूठ तो कही सच नजर आ रही ये योजना भविष्य में कितना अटल रहेंगी? यह सवाल भी अब उठने लगा हैं। असल में मप्र सरकार ने गुजरात मॉडल की नकल करके अटल ज्योति अभियान को शुरू किया है। भविष्य में भी 24 घंटे की सप्लाई लोगों को मिलती रहें इसके लिए मप्र सरकार ने गुजरात की तरह विद्युत उत्पादन बढ़ाने में अपनी अकल नहीं चलाई। 16 जून को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डबरा से अटल ज्योति योजना का शुभारंभ किया था। अपने हाइड्रल पावर प्रोजेक्ट(पनबिजली परियोजना) और फ्यूचर सौदे की दम पर अटल ज्योति योजना को शुरू किया गया है। अब कृषि कार्य के लिए बिजली की डिमांड बढऩे लगी है। विशेषज्ञों की मानें तो बिजली की डिमांड बढऩे पर अटल ज्योति योजना को जबरदस्त करंट लग सकता है। ऐसी स्थिति में पहले से करोड़ो के कर्ज में दबी बिजली कंपनियों को मजबूरन विद्युत दरें बढ़ानी पड़ेगी। मतलब ये कि बिना किसी ठोस प्लानिंग के शुरू हुई इस योजना से उपभोक्ताओं को जेब के साथ-साथ पहले की तरह बिजली कटौती की मार भी झेलनी पड़ सकती हैं। मप्र सरकार का दावा है कि अटल ज्योति योजना के तहत प्रदेश के 50 जिलों, 476 शहरों और 54903 गांवों में 24 घंटे बिजली की सप्लाई रहेगी। बिना किसी ठोस प्लानिंग के शुरू की गई इस योजना के दावे अभी से ही झूठे नजर आने लगे हैं।
सरकार के अपने तर्क इन तमाम विसंगतियों के बावजुद सरकार का तर्क है कि वित्तीय वर्ष 2013 -14 में 6142 करोड यूनिट विद्युत आपूर्ति होगी। जिसमें एक यूनिट भी लघु अवधि विद्युत क्रय से नहीं होगी। प्रदेश के पूर्व ऊर्जा मंत्री राजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि राज्य में अब तक किए गये दीर्घकालीन अनुबंध के आधार पर ही वर्ष 2018 तक विद्युत सरप्लस की स्थिति बनी रहेगी। शुक्ला ने 2003 और 2013 का तुलनात्मक विवरण देते हुए बताया कि वर्ष 2003 में दीर्घकालीन विद्युत क्रय अनुबंध से उपलब्ध विद्युत की कुल क्षमता 4673 मेगावाट थी जो मार्च 2013 में बढ़कर 10480 मेगावाट हो गयी है और मार्च 14 तक 14384 मेगावाट हो जायेगी। वर्ष 2018 में यह क्षमता बढ़कर 20199 मेगावाट होगी। वर्ष 2003 में 2709 करोड़ यूनिट विद्युत प्रदाय हुई थी जो मार्च 2014 में बढ़कर 6142 करोड़ यूनिट हो जाएगी। जिसमें उन्होंने बताया कि वर्ष 2003 में हमारी ट्रांसमिशन प्रणाली की क्षमता 3890 मेगावाट थी जो मार्च 2013 में 10361 मेगावाट तक पहुंच चुकी है। 33/11केव्ही विद्युत ग्रिड में लगे पावर ट्रांसफ ार्मरों की संख्या वर्ष 2003 में 2680 थी जो इस वर्ष 4793 हो गयी है। वर्ष 2003 में हमारा राजस्व 4521 करोड़ था जो अब बढ़कर 15284 करोड़ रूपए हो चुका है। वर्ष 2003 में ट्रांसमिशन हानियां 7.93 प्रतिशत थी जो अब घटकर 3.30 प्रतिशत रह गयी है। ऐसे में न तो प्रदेश में बिजली संकट पैदा होगा और न ही हमें दूसरे पर निर्भर रहना पड़ेगा। सारणी ताप विद्युत गृह भी दे गया दगा 312 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाली सारणी ताप विद्युत गृह परियोजना भी दगा देने लगी है। यहां की चार यूनिट बंद हो गई है। मप्र विद्युत कंपनी के एमडी विजेन्द्र नानावटी कहते है कि सारणी ताप विद्युत गृह से कम खर्च में अधिक विद्युत उत्पाद करने की तैयारी हो रही है। जितने कोयले से अभी 312 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा रहा है, उसी खर्च पर दोगुनी बिजली बनाने की योजना है। इसी योजना के तहत कंपनी सारणी चार यूनिट बंद कर दी गई हैं। इन यूनिटों के बंद करने से कोई ऊर्जा संकट उत्पन्न नहीं होगा, क्योंकि फिलहाल प्रदेश में मांग से ज्यादा उत्पादन हो रहा है। नानावटी कहते हैं कि सारणी में पुरानी यूनिट बंद कर नई यूनिट खोलने के पीछे का कारण सीधा है। लगभग 50 साल पुरानी यूनिटें काफी खर्चीली पड़ रही हैं। पुराने सेटअप के कारण इन यूनिटों में कोयला, पानी और तेल की खपत अधिक होती है। नई तकनीक और सेटअप वाली प्रस्तावित 660 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाली यूनिट में कोयला, पानी और तेल का खर्च कम होगा। जानकारों का अनुमान है कि पुराने खर्चे में ही बिजली उत्पादन दोगुना हो सकता है। नई यूनिट को चालू होने में करीब चार साल का वक्त लगेगा। ऐसे में निश्चित रूप से आने वाले समय में बिजली संकट गहराएगा। मप्र में सबसे महंगी बिजली मध्यप्रदेश के उपभोक्ताओं को देश के कई राज्यों की तुलना में महंगी बिजली मिल रही है। इसके बावजूद प्रदेश में फ्यूल कॉस्ट एडजस्टमेंट के नाम पर हर तीन महीने में रेट बढ़ाए जा रहे हैं। महंगी बिजली की वजह से जनता पर बोझ बढ़ रहा है। दिल्ली में बिजली के रेट कम होने के बाद लोग मध्यप्रदेश में भी बिजली सस्ती करने की मांग कर रहे हैं। मध्यप्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ में बिजली के रेट मध्यप्रदेश से आधे हैं। बिहार जैसे राज्य में भी बिजली की दरें 50 प्रतिशत तक कम है। इसके अलावा गुजरात, आंध्रप्रदेश और राजस्थान में भी बिजली मध्यप्रदेश से सस्ती मिल रही है। इसके बावजूद मध्यप्रदेश में फिर से बिजली के रेट बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। लोकसंवाद जनवकालत केन्द्र के गोपाल हूंका का कहना है कि मध्यप्रदेश में बिजली के नाम पर खुली लूट मची हुई है। प्रदेश में 101 से 300 यूनिट तक बिजली के रेट 4.80 रूपए प्रति यूनिट हैं। नियत प्रभार और विद्युत शुल्क जोड़कर उपभोक्ताओं को 7.50 रूपए प्रति यूनिट की दर से भुगतान करना पड़ता है। हालत ये है कि 300 यूनिट से अधिक उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को बिजली 9 रूपए प्रति यूनिट पड़ रही है। अलग-अलग प्रदेशों में बिजली के रेट मध्यप्रदेश 01-50 यूनिट 3.40 रूपए 51-100 यूनिट 3.85 रूपए 101- 300 यूनिट 4.80 रूपए गुजरात 01-50 यूनिट 2.95 रूपए 101-200 यूनिट 3.25 रूपए 201- 600 यूनिट 3.90 रूपए बिहार 01-50 यूनिट 2.00 रूपए 51-100 यूनिट 2.30 रूपए 101 से अधिक 2.70 रूपए राजस्थान 01-50 यूनिट 3.00 रूपए 51-150 यूनिट 4.65 रूपए 151-300 यूनिट 4.85 रूपए छत्तीसगढ़ 01-100 यूनिट 1.40 रूपए 101-200 यूनिट 1.60 रूपए 201-600 यूनिट 2.30 रूपए आंध्रप्रदेश 01-50 यूनिट 1.45 रूपए 51- 100 यूनिट 2.60 रूपए 101-150 यूनिट 3.25 रूपए
मप्र में बिजली का गणित मप्र में तीन वितरण कंपनियां हैं। इन पर मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी का होल्ड हैं। मप्र में बिजली का उत्पादन करीब 4000 मैगावाट हैं जबकि 6000 मैगावाट बिजली की जरूरत हैं। अटल ज्योति योजना के बाद 1000 मैगावाट बिजली एक्स्ट्रा चाहिए। कृषि कार्य के लिए बिजली की डिमांड करीब 1500 मैगावाट होगीं। 3 कंपनियां करीब 11 हजार करोड़ के कर्ज में डूबी हैं। इसे घाटे से उबारने के लिए सरकार पहले से परेशान। अटल ज्योति से अब घाटा और भी बढ़ रहा है। घाटे को पाटने के लिए दरें बढ़ाई जा रही है। हमारे पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में बिजली का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता हैं। हांलाकि इस उत्पादन में मप्र का भी हक है, लेकिन मप्र से अलग होने के बाद भुगतान नीति के चलते छत्तीसगढ़ से हमें सीधे बिजली नहीं मिलती। यही कारण है कि मप्र को पंजाब, हरियाणा जैसे दूसरे राज्यों और पॉवर कंपनियों से करीब 3000 मेगावाट बिजली खरीदनी पड़ रहीं हैं। मप्र में विद्युत मण्डल का कंपनीकरण हुआ। इसके बाद से हर साल विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरों मे इजाफा किया। आयोग और कंपनी मामूली वृद्धि बताते हैं। ये हैं हमारे पावर प्रोजेक्ट हाईड्रल पावर: इंदिरा सागर, बाण सागर, सरदार सरोवर, ओंकारेश्वर, राणा प्रताप सागर,राजघाट, पेंच,चंबल, नाथा आदि। थर्मल पावर:वीरसिंहपुर, सारंणी, अमरकंटक, सिंगाजी व सीधी में दो प्रोजेक्ट। 2013 में इतना उत्पादन ताप विद्युत 3057.50 मेगावाट प्राइवेट विद्युत उत्पादन 912 मेगावाट दूसरी कंपनियों से मध्यप्रदेश का समझौता 656 मेगावाट जल विद्युत 915.17 मेगावाट केंद्रीय शेयर 3021 मेगावाट कुल उत्पादन 10859.69 मेगावाट

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