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भेड़ाघाट

Friday, March 21, 2014

छत्तीसगढ़ में जाति लोकप्रियता पर दांव

रायपुर। छत्तीसगढ़ की ग्यारह लोकसभा सीटों के लिए कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी तय होने के बाद अब यह तस्वीर लगभग साफ हो गई है कि दोनों दलों ने किन समीकरणों के आधार पर टिकट का बंटवारा किया है। प्रदेश की छह अनारक्षित सीटों पर दोनों दलों ने जातिगत समीकरणों का ध्यान रखने की कोशिश तो की ही है, लेकिन प्रत्याशी की लोकप्रियता के आधार पर जातिगत समीकरणों से परे भी टिकट बांटे गए हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि यदि जाति के आधार पर वोट पड़े तो कुछ सीटों पर उलटफेर हो सकता है।
रायपुर सीट पर पिछले छह चुनाव से भाजपा के रमेश बैस का कब्जा है। श्री बैस कुर्मी समुदाय से संबंध रखते हैं। उनके खिलाफ कांग्रेस ने पिछले चुनावों में उच्च सवर्ण से लेकर पिछड़े वर्ग तक के कई प्रत्याशियों को आजमाया, लेकिन श्री बैस की किलेबंदी को तोड़ने में कांग्रेस का कोई भी गणित कारगर नहीं हो सका। 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने कुर्मी समाज के भूपेश बघेल को मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें भी करारी हार का सामना करना पड़ा।
इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस के पास जातीय समीकरण के अलावा कोई और अस्त्र नहीं था। लिहाजा, पार्टी ने एक और कुर्मी प्रत्याशी छाया वर्मा को उतारा है। पार्टी के जानकारों का कहना है कि छाया वर्मा के कुर्मी होने के साथ-साथ महिला होने का कांग्रेस को लाभ मिल सकता है। रायपुर संसदीय क्षेत्र में कुर्मी वोटर करीब 12 प्रतिशत, साहू वोटर करीब दस प्रतिशत व सतनामी वोटर सात से आठ प्रतिशत है।
दुर्ग सीट पर भाजपा से सरोज पांडेय इस बार भी मैदान में हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप चौबे को हराया था। खास बात यह है कि दुर्ग लोकसभा क्षेत्र पिछड़ा बाहुल है। यहां सबसे अधिक संख्या कुर्मी, साहू और लोधी मतदाताओं की है। साहू वोटर लगभग 30 प्रतिशत, सतनामी वोटर लगभग 14 प्रतिशत, कुर्मी 20 प्रतिशत व लोधी वोटर तीन से चार प्रतिशत है।
भाजपा ने यहां से सरोज पांडेय को उनकी लोकप्रियता के आधार प्रत्याशी बनाया है। वे दुर्ग शहर की महापौर और वैशालीनगर से विधायक रह चुकी हैं। इस सीट से सरोज पांडेय से पहले भाजपा के टिकट पर ताराचंद साहू चार बार लोकसभा का चुनाव जीते थे। कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में दुर्ग के किले को भेदने के लिए जातीय गणित का सहारा लिया है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2013 में हारे ताम्रध्वज साहू को प्रत्याशी बनाया है। पार्टी के भीतर इस बात की संभावना देखी जा रही है कि यदि साहू मतदाता ताम्रध्वज के पक्ष में लामबंद हो गए तो नतीजा अनुकूल हो सकता है।
राजनांदगांव में टूटा ओबीसी गणित
राजनांदगांव में भाजपा ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट से 2009 के चुनाव में भाजपा के मधुसूदन यादव ने करीब सवा लाख वोटों से जीत दर्ज की थी। श्री यादव ने कांग्रेस उम्मीदवार राजपरिवार से जुड़े और सामान्य वर्ग के देवव्रत सिंह को हराया था। बल्कि तब भाजपा ने नारा उछाला था कि यह हल और महल के बीच की लड़ाई है।
माना जाता है कि पिछड़ा वर्ग की लामबंदी की वजह से मधुसूदन यादव को यह बड़ी जीत मिली थी। लेकिन 2014 के चुनाव में गणित बदल गया है। भाजपा ने मुख्यमंत्री के पुत्र और सामान्य वर्ग के अभिषेक सिंह को उतारकर उन्हें लोकप्रिय प्रत्याशी के रूप में पेश किया है। दूसरी ओर कांग्रेस ने पिछड़ा वर्ग के लोधी समाज से आने वाले कमलेश्वर वर्मा को मैदान में उतारा है। भाजपा को अपने युवा प्रत्याशी की लोकप्रियता पर और कांग्रेस को ओबीसी कार्ड पर भरोसा है। राजनांदगांव में साहू के अलावा यादव, सतनामी वोटर आठ प्रतिशत व लोधी छह प्रतिशत है।
महासमुंद में जोगी की जीत दोहराने का दांव
महासमुंद लोकसभा प्रदेश के उन संसदीय क्षेत्रों में शामिल है, जो हमेशा चर्चा में रही है। कांग्रेस ने इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को उतारा है। अजीत जोगी 2004 के चुनाव में इस सीट से भारी बहुमत से जीते थे। उन्होंने इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी विद्याचरण शुक्ल को महासमुंद संसदीय क्षेत्र की हर विधानसभा सीट में मात दी थी। पिछड़ा वर्ग में साहू, कुर्मी, यादव व आदिवासी मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। यहां साहू 22 प्रतिशत व कुर्मी वोटर लगभग 20 प्रतिशत है।
कांग्रेस ने पिछले चुनाव में पिछड़ा वर्ग का दांव खेलते हुए मोतीलाल साहू को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वे भाजपा के चंदूलाल साहू के हाथों मात खा गए। इस बार कांग्रेस ने इस सीट पर अपने पूर्व मुख्यमंत्री की लोकप्रियता को भुनाने का दांव खेलते हुए जीत की संभावनाओं के आधार पर अजीत जोगी को प्रत्याशी बनाया है। जबकि भाजपा ने एक बार फिर पिछड़ा कार्ड पर भरोसा जताते हुए चंदूलाल साहू को ही प्रत्याशी बनाया है। बिलासपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को प्रत्याशी बनाया है।
भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुकीं करुणा शुक्ला की उम्मीदवारी के पीछे उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की भूमिका अहम मानी जा रही है। हालांकि बिलासपुर संसदीय क्षेत्र में सतनामी, साहू, कुर्मी, यादवों की संख्या सबसे अधिक है। यहां सतनामी वोटर 15 प्रतिशत व साहू वोटर लगभग 12 प्रतिशत है। भाजपा ने इस सीट से एक नए नवेले नेता को दांव पर लगाया है। पिछड़ा वर्ग के साहू समाज से आने वाले लखनलाल साहू पार्टी के प्रत्याशी हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि भाजपा ने करुणा का मुकाबला करने के लिए ओबीसी कार्ड खेला है। कोरबा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. चरणदास महंत हैं। 2009 के चुनाव में उन्होंने यह सीट जीती थी। पिछड़ा वर्ग के पनिका समाज से आने वाले डॉ. महंत कबीरपंथी भी हैं। कबीरपंथ के ज्यादातर अनुयायी पिछड़े वर्ग के हैं। भाजपा ने उनके खिलाफ पिछड़ा वर्ग से आने वाले बंशीलाल महतो को प्रत्याशी बनाया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग कार्ड के खिलाफ भाजपा ने वही दांव दोहराया है। बंशीलाल महतो को भाजपा की राजनीति से पहले छात्र राजनीति और जनसंघ के जमाने में सक्रिय और आक्रामक नेता माना जाता था। उन्होंने 1999 में जांजगीर लोकसभा से डॉ. महंत के खिलाफ चुनाव लड़ा था, इस चुनाव में श्री महतो की महज डेढ़ हजार मतों से हार हुई थी। कोरबा संसदीय क्षेत्र में सतनामी वोटर लगभग 12 प्रतिशत व साहू वोटर 16 प्रतिशत के अलावा आदिवासी वोटर भी बड़ी संख्या में हैं।

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