bhedaghat

bhedaghat
भेड़ाघाट

Monday, June 30, 2014

लोहे के सरदार के लिए ढाई लाख लोगों का जीवन दांव पर

गुजरात गौरव के लिए मध्यप्रदेश को डूबाने की तैयारी
स्टैचू आफ यूनिटी की आड़ में सरदार सरोवर पर पर्यटन स्थल विकसित करेगा गुजरात
भोपाल। सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है, बल्कि इसकी स्क्रिप्ट पहले से लिखी हुई थी। यही कारण है कि इसका निर्णय होने के साथ ही बांध के गेट में 16 मीटर का दरवाजा लगाने का काम शुरू हो गया है। दरअसल बांध की ऊंचाई बढ़ाना मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं को पूरा करने के लिए जरूरी था। मोदी गुजरात में बांध के बीचो-बीच सरदार पटेल की लोहे की प्रतिमा (स्टैचू आफ यूनिटी ) स्थापित कराना चाहते हैं और उस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है। इसलिए मप्र, महाराष्ट्र और राजस्थान की सरकारों से बिना सलाह किए ही आनन-फानन में मोदी सरकार ने बांध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय ले लिया। मोदी की मंशा है कि भले ही इस निर्णय से मप्र के ढ़ाई लाख लोगों की जान दांव पर लगे लेकिन गुजरात का गौरव बुलंद हो। माना जा रहा है कि इसके जरिए मोदी ने गुजरातवासियों से किया अपना एक वादा निभा दिया।
अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस हद तक जा सकते है इसका नजारा उन्होंने गुजरात में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 121.9 मीटर से बढ़ाकर 138.7 मीटर (17 मी.) करने के निर्णय से दे दिया है। उनका यह निर्णय मध्यप्रदेश को डूबाने वाला सिद्ध होगा। दरअसल,गुजरात में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने को मिली हरी झंडी निश्चित ही देश में बदले राजनीतिक माहौल का नतीजा है। 2006 में नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मु यमंत्री के तौर पर इस परियोजना को पूरी मंजूरी दिलाने के लिए 51 घंटों का उपवास किया था। अब वे प्रधानमंत्री हैं तो नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) ने बांध की ऊंचाई 121.9 मीटर से बढ़ाकर 138.7 मीटर करने की इजाजत दे दी है। इससे बांध के जलाशय में परियोजना में अपेक्षित पूरी क्षमता के साथ जल संग्रहण हो सकेगा। इससे गुजरात में सिंचाई और पेयजल की सुविधाएं अधिक इलाकों में दी जा सकेंगी और बिजली उत्पादन को बल मिलेगा। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को भी बिजली उत्पादन के लिहाज से लाभ होने का अनुमान है। लेकिन इससे मप्र के चार जिलों आलीराजपुर, बड़वानी, धार व खरगोन के अधिकांश क्षेत्र जलमग्र हो जाएंगे। इससे मध्यप्रदेश के किसानों की हजारों एकड़ जमीन, मछुआरों की आहुति दी जा रही है, फायदा गुजरात के बड़े शहरों व उद्योगों को मिलेगा। इतना होने के बाद भी, मप्र सरकार व प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे तीनों केंद्रीय मंत्री चुप्पी साधे हैं। उलटा फैसले का स्वागत कर रहे हैं। इससे प्रदेश के ढाई लाख लोगों की जिंदगी संकट में है। हैरानी की बात यह है कि एनसीए द्वारा जारी आदेश की प्रति में मप्र व महाराष्ट्र को आदेश की प्रति भेजे जाने का जिक्र नहीं है। मप्र व महाराष्ट्र के साथ बड़ा धोखा हुआ है। बांध में प्रदेश की बड़ी हिस्सेदारी है। 214 किमी के नदी क्षेत्र में प्रदेश का हिस्सा आधे से अधिक है। बांध की ऊंचाई बढऩे से रेजवायर क्षेत्र में सतही पानी फैलेगा और डूब क्षेत्र से लगे अन्य गांव भी प्रभावित होंगे।
पानी देने की योजना बन गई बिजली पैदा करने की योजना
दरअसल, नर्मदा घाटी में बांध की योजना 1946 में बनी थी (और सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड का दावा है कि इस बांध का स्वप्न सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ही देखा था।) लेकिन इसका फाउंडेशन रखा पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1961 में। सरदार वल्लभ भाई पटेल की मौत के 11 साल बाद। गुजरात के जिस गोरा गांव में इस बांध की नींव रखी गई थी उसकी मूल ऊचाईं 49.8 मीटर निर्धारित की गई थी। उस वक्त जिन चार बांधों को तत्काल प्राथमिकता के आधार पर बनाने का निर्णय लिया गया था वे पानी के प्यासे इलाके थे। गुजरात का भरुच जिला उसमें से एक था, जहां नर्मदा नदी पर बांध बनाकर किसानी के लिए पानी देने की योजना बनाई गई थी। लेकिन किसानों को पानी देने की यह योजना कब बिजली पैदा करने की योजना में तब्दील कर दी गई यह बिल्कुल वैसे ही जैसे किसानों के सरदार को बिजली पैदा करनेवाले बड़े-बड़े बांधों का समर्थक घोषित कर दिया जाए। नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर कहती हैं कि सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा के बहाने असल में बांध की ऊंचाई बढ़ाने की साजिश रची जा रही है जिसके कारण एक बार फिर बड़ी सं या में स्थानीय निवासी अपने घरों से दरबदर होंगे। बांध की उचाईं इसके मूल 49.8 मीटर से ऊंचा उठते-उठते अब 122 मीटर तक पहुंच चुकी है। अब सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा की आड़ में इस बांध की ऊचाईं 138.7 मीटर ले जाने की योजना है ताकि पीने के पानी की सप्लाई बढ़ाई जा सके और बिजली की पैदावार भी। लेकिन बांध का स्तर ऊपर उठाया गया तो आस पास के और 70 गांवों के लोग सदा सर्वदा के लिए विस्थापित हो जाएंगे, मोदी की सरकार यह बात नहीं बता रही है।
मोदी की मंशा और स्टैचू आफ यूनिटी
जानकारों की माने तो,स्टैचू आफ यूनिटी को स्थापित करने की अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना से मोदी एक तीर से कई शिकार कर रहे हैं। एक तरफ जहां इतिहास का पुनर्पाठ करवाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ कुछ विदेशी कंपनियों (खासकर अमेरिकी कंपनी टर्नर कन्ट्रक्शन) को उपकृत भी किया जा रहा है। देशभर से लोहा मांगकर सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने का दावा करनेवाले मोदी ने किसी को यह नहीं बताया था कि वास्तव में वे इस प्रतिमा के बहाने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाना चाहते थे और बांध के आस पास पर्यटन विकास के काम में लगे हुए हैं जिसमें सरदार की लौह प्रतिमा, अ युजमेंट पार्क, अंडरवाटर एक्वेरियम, थीम पार्क, होटल, रेस्टोरेंट और भरूच तक पर्यटन कारीडोर सबकुछ शामिल है। स्टैचू आफ यूनिटी प्रोजेक्ट की हकीकत यह कि सरदार पटेल की आकृति वाली एक साठ मंजिला इमारत बनाई जा रही है जिसकी ऊंचाई 182 मीटर होगी। नर्मदा बचाओ आंदोलन के आलोक अग्रवाल कहते हैं कि अमेरिका की टर्नर कन्सट्रक्शन और माइकल ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स भवन निर्माण की कंपनियां हैं जिन्होंने पूरी दुनिया में भवन निर्माण का जाल खड़ा कर रखा है। इन कंपनियों में जहां टर्नर कंस्ट्रक्शन मु य निर्माण कंपनी है वही मीनहाट्र्ज तथा माइकल ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स डिजाइन और आर्किटेक्ट फर्म हैं। अगर आप इन दोनों कंपनियों का इतिहास खंगाले तो पाएंगेे कि किसी बांध परिसर में इतने भारी भरकम निर्माण का किसी कंपनी ने नहीं किया है। मीनहाट्र्ज ने सिंगापुर में एक बांध के बीच एक वॉच टॉवर का निर्माण जरूर किया है और शायद उसकी इसी खूबी की वजह से टर्नर के जरिए उसे नर्मदा सरोवर के बीचो बीच सरदार वल्लभ भाई पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने के योग्य मान लिया गया।
लेकिन नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट ने परियोजना के बारे में अपनी वेबसाइट पर जो आधिकारिक जानकारी मुहैया कराई है उसमें मूर्ति बनाने का कहीं कोई जिक्र नहीं है। तकनीकि तौर पर यह एक 182 मीटर (597 फुट) ऊंची ईमारत होगी जिसमें अंदर पहुंचकर कोई भी व्यक्ति विस्तृत सरदार सरोवर का नजारा कर सकता है। इस इमारत की शक्ल एक इंसान जैसी होगी जो सरदार वल्लभ भाई पटेल होंगे। दुनिया में भवन निर्माण में जो क्रांतिकारी प्रयोग हो रहे हैं उसे देखते हुए यह कल्पना कोई बहुत आश्चर्यजनक नहीं लगती है। गुजरात सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सरदार पटेल के इस लौह भवन की जो भव्य कल्पना की गई है उसमें सरदार की मूर्ति के भीतर 500 फुट पर एक डेक का निर्माण किया जाएगा। बिल्कुल एफिल टॉवर की तर्ज पर। इस डेक तक पहुंचने के लिए सरदार के लौह भवन के भीतर तेज लि ट लगाई जाएंगी और एक वक्त में यहां 200 लोग एक साथ मौजूद रहकर 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले विशाल सरदार सरोवर जलाशय का नजारा देख सकेंगे। इसके अलावा इस भवन के आसपास थीम पार्क, होटल, रेस्टोरेण्ट, अंडरवाटर अ यूजमेंट पार्क जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को साकार किया जाना है। यह सब तो पहले चरण में तीन साल के भीतर होना है। दूसरे चरण में भरुच तक नर्मदा तट का विकास। सड़क, रेल यातायात सहित पर्यटन के अन्य आधारभूत ढांचे का विकास। शिक्षा अनुसंधान केन्द्र और नॉलेज सिटी। गरुणेश्वर से भाड़भूत तक पर्यटन कारीडोर आदि विकसित किए जाने हैं।
जाहिर है गुजरात सरकार राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक सरदार की प्रतिमा बनाने की बजाय सरदार सरोवर के आस-पास एक पर्यटन केंद्र विकसित कर रही है। फिर सवाल उठता है कि मोदी पर्यटन की इस परियोजना को राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक के तौर पर क्यों प्रस्तुत कर रहे हैं? जानकारों का कहना है कि यह मोदी का स्टाइल है। व्यापार और कारोबार को राष्ट्रीय अस्तिमा के रूप में पेश करके वे और उनकी टीम गुजरात में टूरिज्म विकसित करने की आधारशिला रख रहे हैं। आज नर्मदा नदी के जिस नर्मदा बांध के कारण सरदार सरोवर का निर्माण हुआ है, उस सरोवर पर बनने वाली प्रस्तावित मूर्ति को एकता की बुनियाद बताया जा रहा है, असलियत यह है कि लगातार बढ़ती बिजली की भूख ने इस बांध को बंटवारे का बांध बना दिया है।
अदालत की अवमानना
मेधा पाटकर ने सरकार के इस फैसले को सर्वोच्च अदालत के 2000 अक्टूबर के फैसले में सूचित निर्णय प्रक्रिया व संरचना की अवमानना करार दिया। उनका कहना है कि निर्णय लेते वक्त पर्यावरण मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में गठित पर्यावरण उपदल की पूर्व बैठक तथा 17 मीटर उंचाई बढाने की मंजुरी वह भी पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति कार्य की पूर्व शर्त का पालन सुनिश्चित करने के बाद दी जाना जरूरी था। इस फैसले में जल संसाधन मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और सामाजिक न्याय मंत्रालय की भी सहमति ली गई है या नहीं।
साल 2000 और 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि सरदार सरोवर की ऊंचाई बढ़ाने के छह महीने पहले सभी प्रभावित परिवारों को ठीक जगह और ठीक सुविधाओं के साथ बसाया जाए। मगर 8 मार्च, 2006 को ही बांध की ऊंचाई 110 मीटर से बढ़ाकर 121 मीटर के फैसले के साथ प्रभावित परिवारों की ठीक व्यवस्था की कोई सुध नहीं ली गई। हांलाकि 1993 में, जब इसकी ऊंचाई 40 मीटर ही थी तभी बड़े पैमाने पर बहुत सारे गांव डूबना शुरू हो गए थे। फिर यह ऊंचाई 40 मीटर से 110 मीटर की गई और प्रभावित परिवारों को ठीक से बसाया नहीं गया।
तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार ने भी स्वीकारा था कि वह इतने बड़े पैमाने पर लोगों का पुनर्वास नहीं कर सकती। इसीलिए 1994 को राज्य सरकार ने एक सर्वदलीय बैठक में बांध की ऊंचाई कम करने की मांग की थी ताकि होने वाले आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक और पर्यावरणीय नुकसान को कम किया जा सके। 1993 को विश्व बैंक भी इस परियोजना से हट गया था। इसी साल केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय के विशेषज्ञ दल ने अपनी रिपोर्ट में कार्य के दौरान पर्यावरण की भारी अनदेखी पर सभी का ध्यान खींचा था। इन सबके बावजूद बांध का काम जारी रहा और जो कुल 245 गांव, कम से कम 45 हजार परिवार, लगभग 2 लाख 50 हजार लोगों को विस्थापित करेगा।
हजारों परिवारों का पुनर्वास नहीं
जानकारों का कहना है कि सरदार सरोवर बांध में पुनर्वास और पर्यावरण शर्तो का पालन नहीं हो रहा है। हजारों प्रभावित परिवारों का आज भी पुनर्वास नहीं हुआ है। कई लोगों को जमीन नहीं मिली है। पुनर्वास पूर्ण नहीं हुआ है। बांध की ऊंचाई आगे बढ़ाना सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना है। सरदार सरोवर बांध में कई हजार पेड़ों का विनाश होना है। बांध को लेकर कई जांचे चल रही है। उसके बाद भी इसकी ऊंचाई बढ़ाने का फैसला लिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि ये सब झा आयोग की रिपोर्ट का दबाने का प्रयास है। भ्रष्टाचार को दबाना चाहते हैं। अब तक 12 हजार से ज्यादा परिवारों के घर और खेत डूब चुके हैं। बांध में 13,700 हेक्टेयर जंगल डूबना है और करीब इतनी ही उपजाऊ खेती की जमीन भी। मु य नहर के कारण गुजरात के एक लाख 57 हजार किसान अपनी जमीन खो देंगे। हालांकि इस मामले में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारत का कहना है कि विस्थापितों को ध्यान में रख कर दिए गए सुझावों के बाद सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की मंजूरी दी गई है। सामाजिक न्याय मंत्रालय विस्थापितों के लिए उठाए गए कदमों से संतुष्ट है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार डूब क्षेत्र में 2.5 लाख जनसं या, हजारों आदिवासी, किसानों मजदूरों, मछुआरों को वैकल्पिक जमीन, आजीविका, पुनर्वास, वसाहटों में भू-खण्ड अभी प्राप्त होना बाकी हैं। 3,000 फर्जी रजिस्ट्रियों की जांच, 88 बसाहटों के निर्माण कार्यों में गुणक्ताहीनता, भूमिहीनों के साथ धोखाधड़ी की जांच 5 सालों से चल रही है। शिकायत निवारण प्राधिकरण के सैकड़ों आदेशों का अमल होना बाकी है। पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति कार्य बहुत बड़े पैमाने पर अधूरा होते हुए, पुनर्वास उपदल, पर्यावरण उपदल एवं नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा बांध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय लेना कानूनी अपराध है।
केंद्र ने सरदार सरोवर की उंचाई 122 मी से आगे 138 .6 8 मीटर (17 मी.) बढाने का फैसला अमानवीय और अन्यायपूर्ण निर्णय है। इस बांध को केवल गुजरात के बड़े उद्योगपतियों के दबाव में आगे बढाने के लिए अब इसकी महत्ता चढा-बढाकर दिखाई जा रही है। इससे होने वाली त्रासदी छुपाने के लिए झूठे या गलत आंकडे पेश किए जा रहे है। विकास का मूलमंत्र और जनतंत्र भी कितना विकृत हो सकता है, यह इसका नमूना है। मप्र सरकार के पास जमीन ही नहीं हैं। तीन राज्यों में बांध से प्रभावित परिवारों की सं या 51 हजार है, जिसमें अकेले मप्र में करीब 40 हजार परिवार है। प्रदेश में करीब 4 हजार परिवार ऐसे है जिन्होंने पूनर्वास स्थलों पर मकान बनाए है जिसमें से करीब 4 सौ परिवार ही रहने के लिए गए हैं। अन्य प्रभावित अभी भी मूल गांव में ही रह रहे हैं।
मप्र व महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रभावित
नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) की अंतरराज्यीय संरचना इसीलिए बनी है कि सरदार सरोवर केवल गुजरात का बांध नहीं है। इस बांध में महाराष्ट्र और सबसे ज्यादा मप्र की ॅउपजाऊ भूमि व गांव जा रहे हैं। उनसे नर्मदा और उसका पानी पर हक ही छीना जा रहा है जबकि लाभों की मात्रा अनुसार हर राज्य का पूंजी निवेश भी है। महाराष्ट्र और मप्र को एक बंूद पानी इस योजना से नहीं मिल रहा है, केवल 27 प्रतिशत व 57 प्रतिशत (अनुक्रम में) बिजली मिल रही है तो बिजली निर्माण के खर्च का 27 और 57 प्रतिशत हिस्सा ये राज्य बराबर चुका रहे है। मप्र में हजारों किसान परिवारों को जमीन के बदले पैसा (5 एकड़ के बदले 5.5 लाख केवल) देकर खरीदी के नाम पर जमीन की फर्र्जी रजिस्ट्री बनाकर फंसाया गया है।
उनकी जांच हाईकोर्ट से नियुक्त न्यायाधीश श्
रवणशंकर झा आयोग की ओर से जारी है। कुल 45000 परिवार (2.5 लाख लोग) डूब क्षेत्र में होते हुए तथा पात्रता अनुसार ज्यादा प्रभावित किसानों के लिए दोनो राज्यों में हजारों हेक्टेयर जमीन ढूंढनी और देनी हैं। मछुआरे, कु हार, दुकानदारों को वैकल्पिक आजीविका देना बाकी है। सर्वोच्च अदालत के चार फैसलों के अनुसार ट्रिब्यूनल फैसले का पूरा पालन, यहीं डूब/विस्थापन के पहले पूर्व शर्त होते हुए, इसे भी निर्णय करते वक्त सोच समझकर नजर अंदाज किया गया।
उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए बढ़ा रहे बांध की ऊंचाई
परियोजना के प्रारंभ में लगभग 18 लाख हैक्टेयर में सिंचाई का प्रस्ताव था। 122 मीटर जलस्तर पर लगभग 6 लाख हैक्टेयर प्रस्तावित थी। इसके बावजूद महज डेढ़ लाख हैक्टेयर में सिंचाई हो पाई। अब पूरी क्षमता पर बांध भरने के बाद 6.8 लाख हैक्टेयर सिंचाई की बात कही जा रही है। इसका सीधा-सा मतलब है कि सिंचाई का क्षेत्र घटाकर उद्योगों को पानी दिया जाएगा। गुजरात ने जब पानी का उपयोग नहीं किया तो क्या जरूरत है बांध की ऊंचाई बढ़ाने की। नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार सरकार इसमें अनुमानित खर्च 90 हजार करोड़ बता रही है। इसमें से 60 हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं। योजना आयोग की रिपोर्ट बता रही है, 2012 तक 70 हजार करोड़ खर्च होना थे। सरकार को आगे काम करने से पहले इसके लागत-लाभ अध्ययन का खुलासा करना चाहिए।
गुजरात को ही लाभ
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, जल संसाधन मंत्री उमा भारती, सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गेहलोत तीनों प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके बाद भी प्रदेश के हितों की अनदेखी की जा रही है। जल संसाधन मंत्री तो स्वयं नर्मदा किनारे कई बार जा चुकी हैं। उन्हें हकीकत पता है। मु यमंत्री हवाई दौरे व कागजों के आंकड़ों को देख कर बोल रहे हैं। एक बार पैदल जाकर पुनर्वास स्थल का अवलोकन करें तो पता चलेगा। 214 किमी नदी क्षेत्र देने के बाद भी हम दबाव में हैं। इससे गुजरात के बड़े शहरों अहमदाबाद, बड़ौदा व गांधीनगर के आसपास बसे उद्योगों को फायदा देने की योजना है।
जितना पानी, उसी का उपयोग नहीं
उमा भारती द्वारा फैसले की घोषणा करने के एक घंटे के भीतर ही गुजरात की मु यमंत्री आनंदीबेन पटेल साइट पर जाकर कैसे काम शुरू करवा देती हैं? जबकि ऐसा संभव नहीं है। डूब क्षेत्र असुरक्षित है। वर्तमान में बांध में भरे पानी का उपयोग ही नहीं कर पा रहे हैं। इसी से प्रभावित गांवों का पुनर्वास नहीं किया जा सका है। प्रदेश के चार जिले आलीराजपुर, बड़वानी, धार व खरगोन के कई गांवों के लिए बनाए गए पुनर्वास केंद्र रहने लायक नहीं हैं। मछुआरों व जमीनहीन लोगों को रोजगार के साधन मुहैया नहीं कराए गए। 1993 से कहा जा रहा है, आठ मुद्दों पर अध्ययन कर एक्शन प्लान बनाए जाएं, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं है। बांध के पर्यावरणीय प्रभावों की लगातार अनदेखी की जा रही है। तीस साल बाद भी हेल्थ प्लान नहीं सौंपा है। डूब क्षेत्र में मलेरिया, फाइलेसिस जैसी गंभीर बीमारियां फैल रही हैं। बांध की 90 मीटर ऊंचाई से प्रभावित अलिराजपुर एवं बड़वानी जिले के पहाड़ी गांवों के सैकड़ों आदिवासी परिवारों की कृषि ज़मीन तथा मकान 15 बरसों से जलाशय के नीचे चले गए। मगर किसी भी परिवार को मध्य प्रदेश में सर्वोच्च अदालत के आदेशानुसार सिंचित, कृषि-योग्य, उपयुक्त एवं बिना अतिक्रमण वाली ज़मीन का आवंटन नहीं हुआ।
70,000 हजार करोड़ की लागत के बाद अभी 30 सालों में मात्र 30 प्रतिशत नहरें ही बन पाई हैं वो भी पहले से ही सिंचित क्षेत्र की खेती को उजाड़ कर बनाई जा रही है। इसलिए गुजरात के किसानों ने अपनी ज़मीन नहरों के लिए देने से इंकार कर दिया है। 122 मी. उंचाई पर 8 लाख हेक्टर सिंचाई का वादा था जबकि वास्तविक सिंचाई मात्र 2.5 लाख हेक्टेयर से भी कम हुई है। बांध के लाभ क्षेत्र से 4 लाख हेक्टेयर ज़मीन बाहर करके कंपनियों के लिए आरक्षित की गई है। पीने का पानी भी कच्छ-सौराष्ट्र को कम, गांधीनगर, अहमदाबाद, बड़ौदा शहरों को अधिक दिया जा रहा है जो कि बांध के मूल उद्देश्य मे था ही नहीं।पर्यावरणीय हानिपूर्ति के कार्य अधूरे हैं और गाद, भूकंप, दलदल की समस्याएं बनी हुई है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में 245 गांवों की हजारों हेक्टेयर उपजाऊ ज़मीन और जंगल डूब में जा रहे है। 48,000 किसान, मज़दूर, मछुआरा, कु हार, केवट परिवारों का पुनर्वास अभी बाकी है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को मु त बिजली के झूठे राजनीतिक वादे किए जा रहे हैं जो कि असलियत से कही दूर है वहां आज भी पुनर्वास के लिए 30,000 एकड़ ज़मीन जरूरत है। ज़मीन ना देने के लिए और पुनर्वास पूरा दिखाने के लिए डूब में आ रहे 55 गांवों और धरमपुरी शहर को डूब से बाहर कर दिया गया है। यह डुबाने का पुराना खेल है।
विवाद से घिरी रही नर्मदा परियोजना
सरदार सरोवर बांध परियोजना 1960 से विवादों में फंसी हुई है। पहले इस परियोजना से जुड़े तीन राज्यों के बीच आपसी सहमति न बनने के कारण परियोजना रूकी रही। 1979 में यह मामला नर्मदा जल विवाद प्राधिकरण में पहुंचा, जहां तीनों राज्यों में सहमति बनीं। इस दौरान स्थानीय लोगों ने नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के तहत इस बांध के निर्माण का विरोध शुरू कर दिया। एनबीए ने इस बीच सुप्रीम कोर्ट में बांध निर्माण रोकने के लिए जनहित याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2000 में दिए गए अपने फैसले में कहा कि बांध उतना ही बनाया जाना चाहिए जहां तक लोगों का पुर्नस्थापन और पुनर्वास हो चुका है।
क्या शिवराज करेंगे मोदी का मुकाबला
केंद्र सरकार ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का जब फैसला लिया था,उस समय मप्र के मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दक्षिण अफ्रीका में थे। उन्होंने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट 'ट्विटरÓ पर टिप्पणी की, ''मैं नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) के निर्णय का स्वागत करता हूं, मेरी सरकार ने वर्ष 2008 में ही विस्थापन एवं पुनर्वास (आर एण्ड आर) का काम बांध की पूर्ण ऊंचाई 138 मीटर तक पूरा कर लिया है। बांध पर गेटों की वर्तमान स्थापना अनुमति (खुले हुए स्थिति में गेट) से वर्तमान डूब का स्तर बढऩे की कोई संभावना नहीं है। मु यमंत्री ने कहा कि एनसीए की इस अनुमति को लेकर भयभीत होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि निर्माण का यह काम 36 माह में पूरा होगा और एहतियाती प्रक्रिया अपनाने के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध है। लेकिन 16 जून को भोपाल पहुंचते ही उनके सुर बदल गए। उन्होंने कहा कि नर्मदा बांाध की ऊंचाई बढऩे के बाद भी कोर्ट के आदेश का पालन होगा। कोर्ट के आदेश से एक इंच भी अधिक जमीन डूब में नहीं आने दी जाएगी। डूब प्रभावितों का बेहतर पुर्नवास होगा, किसी को भी परेशानी नहीं होने दी जाएगी। अब सवाल उठता है कि क्या शिवराज बांध की ऊंचाई बढ़ाने के बाद मप्र को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए मोदी से मुकाबला कर पाएंगे। उधर,ऊंचाई बढ़ाने का विरोध करते हुए नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने मु यमंत्री को पत्र लिखकर आपति जताई है।
उन्होंने मु यमंत्री से पूछा है कि अगर इस पर आपने विदेश जाने के पहले कोई सहमति दी है तो विपक्ष या जनता को भरोसे में क्यों नहीं लिया? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने कहा है कि सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाया जाना मप्र के हितों पर कुठाराघात है। ऊंचाई बढ़ाए जाने से प्रदेश की उपजाऊ जमीन डूब में चली जाएगी और ऐसी जमीन का कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे बिजली उत्पादन बढ़ेगा और सिंचाई की सुविधाएं बढ़ेंगी लेकिन यह सब नर्मदा घाटी को बरबाद करने की कीमत पर किया जा रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई को बढ़ाना गैरकानूनी बताया है। साथ ही केंद्र सरकार के इस फैसले को नर्मदा घाटी को डूबोने वाला फैसला करार दिया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुसार इस तरह से केंद्र सरकार पुनर्वास और पर्यावरणीय शर्तों का उल्लंघन नहीं कर सकती है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने बताया कि सत्ता में आने के एक महीनें के भीतर ही केंद्र सरकार ने गुजरात हित के बहाने नर्मदा घाटी की आहुति देने का निर्णय लिया है। 8 सालों से पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति, पुनर्वास के अभाव और भ्रष्टाचार के जांच के कारण रूका हुआ सरदार सरोवर बांध को पूर्ण जलाश्य स्तर (138 .6 8 ) तक ले जाना का निर्णय घोर अन्याय है।
बांध का 260 से 455 फीट तक का सफर -फरवरी 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने नर्मदा बांध की ऊंचाई 80 मीटर (260 फीट) से 88 मीटर (289 फीट) करने की अनुमति दी थी। -अक्टूबर 2000 में फिर से सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 90 मीटर (300 फीट) तक करने की अनुमति दी। -मई 2002 में नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने बांध की ऊंचाई 95 मीटर (312 फीट) करने को अनुमोदित किया। -मार्च 2004 में प्राधिकरण ने 110 मीटर (360 फीट) करने की अनुमति दी। -मार्च 2006 में प्राधिकरण ने बांध की ऊंचाई 110.64 मीटर (363 फीट) से 121.92 मीटर (400 फीट) करने की अनुमति दी। यह अनुमति वर्ष 2003 में सुप्रीम कोर्ट के बांध की ऊंचाई और बढ़ाने देने की अनुमति देने से इनकार करने के बाद दी गई थी। -अगस्त 2013 में भारी बारिश की वजह से बांध का जलस्तर 131.5 मीटर (431 फीट) तक पहुंच गया था, जिससे नर्मदा नदी के किनारे के 7000 हजार गांवों को लोगों को हटना पड़ा था। -जून 2014 में प्राधिकरण ने ऊंचाई 455 फीट करने की अनुमति दी।
सरदार सरोवर नर्मदा बांध योजना एक नजर में
सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र व राजस्थान चार राज्यों की योजना है। नर्मदा कंट्रोल ऑथोरिटी से मंजूरी के बाद अब इसकी ऊंचाई 138.68 मीटर तक बढ़ाई जा सकेगी। बांध की ऊंचाई 121.92 मीटर तक बढ़ाने की आखिरी मंजूरी 8 मार्च 2006 को मिली थी। प्रोजेक्ट में देरी के चलते गुजरात को प्रतिदिन 10 करोड़ के नुकसान के हिसाब से अब तक 45 हजार 500 करोड़ के नुकसान का आकलन है। बांध पर आगामी 30 माह में 13-13 हजार टन के तीस रेडियल गेट लगेंगे जिसके बाद बांध अपनी पूर्ण ऊंचाई पर होगा। पूरी ऊंचाई हासिल करने के बाद बांध में 4.75 मिलियन एकड़ फीट पानी जमा हो सकेगा जो वर्तमान क्षमता 1.27 मिलियन एकड़ फीट से तीन गुना होगा साथ ही ऊंचाई बढऩे से सालाना 150 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन बढ़ेगा। यहां कुल 24 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा। परियोजना से गुजरात का 18.45 लाख हेक्टेयर, राजस्थान के बाडमेर व जालोर की 37 हजार 500 हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के लिए पानी जबकि मध्यप्रदेश को 57 प्रतिशत, महाराष्ट्र को 27 प्रतिशत तथा गुजरात को 16 प्रतिशत बिजली मिलेगी।
23 हजार ग्राम पंचायतों में रखा है सरदार पटेल का लोहा
गुजरात में बनने वाली लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के लिए गुजरात के मु यमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में लोह संग्रहण का अभियान छेड़ा था। मध्य प्रदेश की 23 हजार ग्राम पंचायतों में लोहा और गांवों की पवित्र मिट्टी एकत्रित की गई है। ये सामग्री अभियान के तहत आए हुए बक्सों में इकट्ठा की गई। एक अनुमान के अनुसार प्रदेश से करीब 1 लाख 84 हजार किलो लोहा स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के लिए गुजरात जाएगा। प्रदेश महामंत्री और प्रदेश में इस अभियान के कर्ताधर्ता विनोद गोटिया ने बताया कि अभियान के तहत एकत्रित किया गया किसानी लोहा, मिट्टी और कार्यकर्ताओं की सूची बॉक्स में रखी गई है। सभी बॉक्स तैयार हैं। इन्हें फिलहाल ग्राम पंचायतों, मंडल कार्यालयों और जिला कार्यालयों में रखा गया है।
गुजरात से ही आए हैं बॉक्स
जिन बॉक्स में लोहा और मिट्टी रखी गई है, वे बॉक्स गुजरात से ही आए हुए हैं। गोटिया ने बताया कि एक बॉक्स में 8 किलो लोहा रखने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन कई जगह तो किसानों ने बड़ी सं या में लोहा इस बॉक्स में डाला है। उन्होंने बताया कि यह अभियान भारत को एक सूत्र में बांधने की एक पहल है।

No comments:

Post a Comment