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भेड़ाघाट

Monday, May 26, 2014

बीड़ी पत्ते में धुआं-धुआं जिंदगी

पिछले वर्ष 244 करोड़ से अधिक का बोनस बांटने के बाद भी बदहाल हैं तेंदूपत्ता संग्रहकर्ता
भोपाल। 22 मार्च को जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मंडला जिले के घने जंगल में पटपटपरा रैयत गांव में पहुंचकर तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासी महिला श्रमिकों से मुलाकात की तो पूरे देश की नजर इस ओर गई। फिर क्या था हम भी ऐसे ही अन्य तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासियों की सुध लेने निकल पड़े। तेंदूपत्ता प्रदेश की आय का एक बड़ा स्रोत है। वर्ष 2012 में मध्य प्रदेश में तेंदूपत्ता संग्रहण के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया गया। इस वर्ष 26 लाख 6 हजार मानक बोरा तेंदुपत्ता का संग्रहण किया गया है और संग्राहकों को 98.25 करोड़ का बोनस दिया गया। वहीं वर्ष 2013 में तेंदूपत्ता संग्रहकर्ताओं को 244 करोड़ से अधिक का बोनस दिया गया। ये सरकारी आंकड़े देखकर हमें लगा की इसे संग्रहित करने वाले लोग खुब साधन संपन्न और खुशहाल होंगे। लेकिन वीरान जंगलों में जाकर पता चला कि तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासियों की जिंदगी बीड़ी पत्ते में धुआं-धुआं हो रही है। वैज्ञानिक तौर पर डायोसपायरस मेलेनोक्ज़ायलोन के नाम से पहचाने जाने वाले तेंदूपत्ता या केंदूपत्ता को बीड़ी पत्ता के नाम से भी जाना जाता है, जिसका इस्तेमाल बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है। इस पत्ते को आदिवासियों के बीच 'हरा सोनाÓ कहा जाता है लेकिन यह हरा सोना केवल बीड़ी पत्ता के व्यापारियों और अपने लिए अधिक से अधिक सुविधाएं इक_ी करने वाली सरकारी महकमे के लोगों की जिंदगी ही खुशहाल कर रही है। इस पत्ते को इक_ा करने वालों की जिंदगी तो सूखे हुए बीड़ी पत्ते की ही तरह है- बेजान। गरमी के दिनों में जब खेती के काम लगभग नहीं के बराबर रह जाते हैं तब प्रदेश के अनेक गांवों के लाखों गरीब लोग तेंदूपत्ता तोड़कर अपनी रोज-रोटी का जुगाड़ करते हैं। दिन भर की मेहनत के बाद भी पेट भरने लायक मजदूरी नहीं गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और बदहाल जिंदगी से परेशान बालाघाट, छिन्दवाड़ा, सिवनी, मंडला, डिंडौरी, बैतूल, खंडवा, होशंगाबाद, खरगौन, झाबुआ एवं जबलपुर के लाखों लोग इन दिनों तेंदूपत्ता तोडऩे के लिए निकलते हैं। प्रदेश में इन्हीं क्षेत्रों में सर्वाधिक तेंदूपत्ता होता है। दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद इन्हें एक दिन की मजदूरी से भी कम पैसा मिलता है। प्रदेश में करीब 18 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक परिवार और लगभग 35 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक हैं। हमने होशंगाबाद जिले के वनखेड़ी तहसील और बालाघाट के लालबर्रा के कुछ गांवों का दौरा किया तो पाया की वहां के आदिवासी तेंदूपत्ता संग्रह की तैयारी कर रहे हैं। ये आदिवासी पूरी तरह वनों पर ही निर्भर हैं। देश में हो रहे लोकसभा चुनाव से इन्हें कोई मतलब नहीं है। सभी की एक ही चिंता है की बरसात से पहले अधिक से अधिक पैसा कमा लें। होशंगाबाद जिले के वनखेड़ी तहसील स्थित पुरैनारंधीर गांव के साथी कपूरा ने बताया कि मई और जून के महीने की चिलचिलाती धूप में जब सब लोग अपने वातानुकुलित कमरे में बैठे आराम फरमा रहे होते हैं, उस समय इस इलाके की महिलाएं और बच्चे जंगल-जंगल भटक कर तेंदूपत्ता तोड़ रहे होते हैं। यह पत्ता ही है, जिसे बेचने के बाद उनके घरों में चुल्हा जल पाता है। वह कहते हैं कि मेरे दोनों बेटे और बहुएं काम की तलाश में आंध्रप्रदेश चले गये हैं। यहां मैं और मेरी पत्नी गांव में रहते हैं। पेट पालने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। इन दिनों तेंदूपत्ता तोड़कर हम अपना गुजारा करते हैं। तेंदूपत्ता तोडऩा इतना आसान काम नहीं है। जंगल-जंगल भटककर भूखे-प्यासे रहकर धूप में पत्ता तोड़कर लाना पड़ता है। पर परिश्रम के मुकाबले पैसा बहुत ही कम मिलता है। चंदखार गांव के एक बुजुर्ग हरिराम बताते हैं यहां सरकारी काम नहीं मिलता, किसानों के पास भी अधिक जमीन नहीं है। जो कुछ थोड़ा-बहुत है, उसमें खेती के समय परिवार के लोग ही काम कर लेते हैं। मजदूरों की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए यहां के लोग बनजात द्रव्य जैसे कि महुआ, टोल और तेंदूपत्ता का सहारा लेते हैं। फरवरी और मार्च में हम महुआ इकटृठा करके बेचते हैं और मई व जून में तेंदूपत्ता तोड़कर सरकार को बेचते हैं। इस इलाके के समाजसेवी प्रभात खरे सरकारी व्यवस्था से खफा हंै। उनका कहना है यहां के अधिकांश लोगों के पास जॉबकार्ड तो हैं पर सिर्फ दस प्रतिशत लोगों को 100 दिन का काम मिल पाया है। अगर हम पिपरिया विकासखंड के डापका गांव की बात करें तो यहां करीब 300 परिवार रहते हैं, जिनमें से नब्बे प्रतिशत भूमिहीन, कृषि मजदूर और छोटे किसान है। इनमें से पचास प्रतिशत लोगों को अभी तक जॉबकार्ड नहीं मिला है और जिनके पास कार्ड है उन्हें दो साल से कोई काम ही नहीं मिला। ऐसी हालत में ये सभी लोग इस महीने में तेंदूपत्ता न तोड़े तो क्या करें? यहां के लोगों का कहना है कि हमारा गुजारा वन उत्पादों से ही होता है। वह कहते हैं कि दुख तो इस बात का है कि मेहनत हम करते हैं और उसका फायदा किसी और को होता है। बालाघाट जिले के लालबर्रा विकासखण्ड के ग्राम बिरसोला के 55 वर्षीय भंवरदास एक किसान हैं, जिनके पास एक एकड़ जमीन है। सिंचाई की सुविधा न होने के कारण और बारिश की कमी की वजह से पिछले दो सालों से इनकी फसल अच्छी नहीं हो रही है। जो कुछ जमीन से मिलता है उसमें इनके दस सदस्यों का परिवार मुश्किल से गुजारा करता है। फरवरी और मार्च में जंगल से महुआ इकटृठा करके 3 हजार और मई तथा जून में तेंदूपत्ता तोड़कर 2500 से 4000 रुपए तक कमा लेते हैं। वे कहते हैं मेरे दो बेटों ने पिछले साल मनरेगा में काम किया था पर आठ महीने बाद उनकी मजदूरी मिल पाई। प्रदेश में तेंदूपत्ता एक लाभदायक व्यवसाय है। देश में सर्वाधिक तेंदूपत्ता उत्पादन मध्यप्रदेश ही होता है। तेंदूपत्ता संग्रहण में सरकार का निवेश न के बराबर है। तेंदूपत्ता का व्यापार लाखों श्रम दिवस पैदा करता है। इस तेंदूपत्ते के व्यापार में सबसे ज्यादा गांव की महिला और बच्चों की भागीदारी रहती है। फरवरी और मार्च में तेंदूपत्ता के पौधों की कटिंग का काम होता है और मई तथा जून में गांव के लोगों को तेंदूपत्ता तोडऩे के लिए कहा जाता है। ये कार्य राज्य के वन विभाग की देखरेख में चलता है। पहले महिलाएं पत्ता तोड़ कर घर लाती हैं, फिर पत्तों का गट्ठा बनाती है। प्रोसेस एरिया में 20 पत्ते का एक गट्ठा बनता है जबकि फाल एरिया में 40 पत्ते का। प्रोसेस एरिया में एक गट्ठा का मूल्य 35 पैसे है जबकि फाल एरिया में 70 पैसे यानि एक पत्ते का मूल्य दो पैसे से भी कम होता है। महिलाओं के कंधे पर टिका करोड़ों का व्यापार प्रदेश में करोड़ों रूपए के तेंदूपत्ता का व्यापार लाखों महिलाओं के कंधे पर टिका हुआ है,पर फिर भी महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ है। 35 साल की ज्याति लालबर्रा विकासखण्ड के ग्राम बघेली गांव में अपने पति और दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ रहती हैं। छोटा बेटा अभी सिर्फ 11 माह का है और बड़ा बेटा दो साल का है। ज्योति ने बताया कि पिछले साल वह हर दिन सबेरे साढ़े चार बजे उठकर अपने छोटे और बेटे को गोद में लेकर पत्ता तोडऩे के लिए जंगल की ओर निकल जाती थी। कड़ी धूप में भूखे-प्यासे करीब दोपहर तक पत्ता तोडऩे के बाद घर लौटती थी। घर आकर रात का पकाया हुआ खाना अपने परिवार को खिलाकर, वह फिर से शाम पांच बजे तक इक_े किए गए पत्तों का ग_ा बनाने में लग जाती थी। उसके बाद गट्ठों को फड़ी में देकर घर लौटते-लौटते शाम हो जाती थी। घर आकर फिर से रात और दूसरे दिन दोपहर का खाना बनाती थीं। वह बताती है कि इतनी मेहनत के बाद मुझे होश नहीं रहता कि कब रात होती है कब सवेरा। क्या करें, गरीब हूं और फिर औरत हूं तो इतनी परेशानी तो हिस्से आएगी ही न? अपनी पीड़ा छिपाती हुई ज्योति बताती है कि मेहनत के मुकाबले पैसा तो बहुत कम मिलता है, सरकार चप्पल देने का वादा की थी पर दो साल के बाद एक बार चप्पल मिलती है। बड़ी दुख भरी होती है हमारी जिंदगी। बालाघाट जिले के टेकाड़ी गांव की अनुराधा चौधरी कहती है कि उनका काम बहुत कठिन है, क्योंकि उन्हें अपने काम के लिए सुबह तड़के दो-तीन बजे जागकर जंगल में जाना होता है तथा उचित तेंदूपत्ता का चयन कर उनका संग्रहण कर गड्डियां बनाकर फड़ों में देर शाम तक जमा करना पड़ता है। इस सबमें वह अपने बच्चों और परिवार का ध्यान नहीं रख पाती हैं। लेकिन यह कहानी अकेले ज्योति या अनुराधा भर की नहीं है। इस इलाके में तेंदूपत्ता संग्रहण करने वाली अधिकांश महिलाओं की हालत ऐसी ही है। ज्याति जैसों की हालत देख कर पूछने का मन करता है कि बीड़ी के हरे पत्तों जैसी चमक क्या मप्र की इन औरतों के चेहरे पर भी कभी आएगी? मौसम की मार...पत्ते हुए दागदार प्रदेश में तेंदूपत्ता की क्वालिटी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है। इस बार मार्च में हुई बारिश और ओलावृष्टि का असर तेंदूपत्ता पर दिखने लगा है। तेंदूपत्ता फसल के मुख्य उत्पादन वाले क्षेत्रों में से बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, बैतूल, खंडवा, छिन्दवाड़ा, सिवनी,होशंगाबाद के जंगलों में पत्तों पर मौसम की मार देखी जा सकता है। गत वर्ष छिन्दवाड़ा, सिवनी एवं जबलपुर में अप्रैल माह में मौसम खराबी के कारण पत्ते लाल और दागी निकले थे। मौसम का प्रभाव मई माह में शुरू हो रहे तेंदूपत्ता के तुड़ाई के काम को प्रभावित कर सकता है। इसके लिए वन विभाग द्वारा सभी तैयारियां की जा चुकी हैं। बस इंतजार है तो पत्तों के ठोस होने का। यदि मौसम अनुकूल रहा तो इस वर्ष तेंदूपत्ता तुड़ाई का काम मई के प्रथम सप्ताह से ही शुरू होने की संभावना जताई जा रही है। यदि मौसम की बेरूखी आने वाले महीने में बनी रही तो शायद तेंदूपत्ता तुड़ाई का काम प्रभावित भी हो सकता है। प्रदेश की सभी वन उपज सहकारी समितियों की अग्रिम बिक्री नीलामी प्रक्रिया भोपाल में जनवरी से शुरू होकर फरवरी माह तक पूरी कर ली गई है। जिन समितियों के पत्ते की क्वालिटी पिछले साल अच्छी नहीं थी उनकी नीलामी नहीं हो पाई। संग्रहक दर निर्धारित मई महीने से तेंदूपत्ता तोड़ाई का काम शुरू होने की संभावना के साथ ही इसके दरों का भी निर्धारण किया जा चुका है। 2014 के लिए तेंदूपत्ता संग्रहक दर न्यूनतम 950 रुपए से लेकर अधिकतम 1600 रुपए प्रति मानक बोरा ( एक मानक बोरे में 50-50 पत्ते की 1000 गड्डियां होती हैं।) निर्धारित किया गया है। वहीं 2013 में भी 950 रुपए प्रति मानक बोरा रखा गया था। मध्यप्रदेश में वर्ष 2013 में 26 लाख 6 हजार मानक बोरा तेंदूपत्ता का रिकार्ड संग्रहण किया गया है। इसको देखते हुए प्रदेश में इस बार भी रिकार्ड मात्रा में तेंदूपत्ता संग्र्रहण की उम्मीद की जा रही है। राज्य शासन ने 1964 में एक अधिनियम लागू कर तेंदूपत्ते के व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित किया। वनवासियों को तेंदूपत्ते के संग्रहण एवं व्यापार से और अधिक लाभ दिलाने के उद्देश्य से वर्ष 1984 में मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित का गठन किया गया। वर्ष 1988 में राज्य शासन ने तेंदूपत्ता के व्यापार में सहकारी समितियों को सम्मिलित करने का निर्णय लिया। इस उद्देश्य से एक त्रिस्तरीय सहकारी संरचना की परिकल्पना की गई। मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ मर्यादित को इस संरचना के शीर्ष पर स्थापित किया गया। प्राथमिक स्तर पर प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियां गठित की गई। द्वितीय स्तर पर जिला वनोपज सहकारी संघ गठित किए गए। वास्तविक संग्राहकों की प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों द्वारा तेंदूपत्ता का संग्रहण किया जाता है। इसके लिए राज्य में 15,000 से अधिक संग्रहण केन्द्र स्थापित किए जाते हैं। संग्रहण का कार्य मौसम पर आधारित होता है और यह लगभग 6 सप्ताह तक चलता है। जिले की भौगोलिक स्थिति के आधार पर संग्रहणकाल अप्रैल के मध्य से मई के मध्य तक किसी भी समय प्रारंभ होता है। संग्रहण का कार्य मानसून के आगमन से 10 से 15 दिवस पूर्व बन्द कर दिया जाता है ताकि संग्रहित पत्तों को उपचारण एवं बोरों में भरकर सुरक्षित रूप से गोदामों तक परिवहन किया जा सकें। 'मालिकÓ नहीं बने तेंदूपत्ता मजदूर..! 1988 में मध्यप्रदेश की तीसरी बार कमान संभालने के बाद अर्जुन सिंह ने तेंदूपत्ता संग्राहकों को सक्षम बनाने के अभियान की घोषणा की थी। उन्होंने साफ कहा था कि अगली बार तेंदूपत्ता नीति में तब्दीली कर दी जाएगी ,बिचोलियों को जंगल में घुसने नहीं दिया जाएगा। उनके बाद की सरकार ने तेंदूपत्ता नीति में तब्दीली कर दी। मजदूरों को बोनस दिया जाने लगा। वर्तमान भाजपा सरकार ने तो इनके उत्थान के लिए रिकार्ड तोड़ योजनाओं की घोषणा के साथ ही बोनस भी जमकर बांटा। लेकिन आज भी स्थिति यह है कि तेन्दूपत्ता संग्रहण करने वालों के घर में मुश्किल से साल भर का खाना मिल पाएगा। ऐसे में तेंदूपत्ता जमा करने वाला मजदूर मालिक कैसे बन पाएगा। ये विचारणीय है। तेन्दूपत्ता संग्रहण का काम बमुश्किल तीस-चालीस दिन होता है। इतने कम दिन के काम बाद इनको दूजे काम की तलाश करनी होती है। इन सबके बीच एक अच्छी बात यह है कि तेंदूपत्ता संग्रहण कीयोजना में सम्मिलित किसी भी संग्राहक की सामान्य मृत्यु होने पर उनके नामांकित व्यक्ति को 3500 रूपए की राशि दने का प्रावधान है। इसके अलावा दुर्घटना के कारण आंशिक विकलंगता के प्रकरण में 12500 रूपए और दुर्घटना में पूर्ण विकलंगता या मृत्यु होने पर 25000 रूपए देने का प्रावधान है। लेकिन इन योजनाओं का लाभ इन मजदूरों को मिल पाता है या नहीं यह भी खोज का विषय है। क्योकि अधिकांश मजदूरों को इन योजनाओं की जानकारी ही नहीं है। बोनस की रकम मजदूर तक नहीं पहुंचती प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2012 में संग्राहकों को 98.25 करोड़ तथा वर्ष 2013 में 244 करोड़ से अधिक का बोनस दिया गया। लेकिन विसंगति यह की प्रदेश में इस काम में लगे करीब 18 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों के लगभग 35 लाख मजदूरों में से अधिकांश को इसकी जानकारी ही नहीं है। दरअसल,जो मजदूर तेंदूपत्ता संग्रहण करते हंै,वे अशिक्षित हैं और उनको 'बोनसÓ की समझ नहीं है। पत्ता खरीदी के समय कई का नाम नहीं भरा जाता,उनके बदले परिचितों,रिश्तेदारों के नाम से खरीदी बताई जाती है। बोनस हक़दार तक पहुंचा, इसकी जांच ईमानदारी से होती रहनी चाहिए! पता लगाना होगा जिन समितियों के माध्यम बोनस दिया गया उनके सदस्य सही में कितने हैं। डेढ़ माह तक बंद रहेगी मनरेगा केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण बाशिंदों को रोजगार मुहैया कराने वाली मनरेगा आगामी एक मई से पन्द्रह जून तक पूरे डेढ़ महीने तक बंद कर दी जाएगी। जिससे इस योजना के तहत कराये जाने वाले विकास कार्यों पर ग्रहण लग जाएगा। लघु वनोपज संघ ने राज्य शासन को प्रस्ताव भेजकर मनेरगा के तहत होने वाले कार्य स्थगित रखने का आग्रह किया है। ऐसा इसलिए किया गया जिससे कि तेंदूपत्ता संग्रहण में किसी भी तरह का व्यवधान न हो। लघु वनोपज संघ ने राज्य के सभी कलेक्टरों को मनरेगा के कार्यों को बंद रखने की हिदायत दी है। उल्लेखनीय है कि मनरेगा योजना के कार्यों में निरंतरता बनी रहने से पिछले साल ग्रामीण क्षेत्रों से तेदूपत्ता संग्रहण के लिए मजदूर ढूंढ़े नहीं मिल रहे थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि बीते वर्ष तेंदूपत्ता का संग्रहण अपेक्षा से कम हुआ। जिसके चलते लघु वनोपज संघ इस बार गंभीर स्थिति में है। संघ ने तेंदूपत्ता संग्रहण को बढ़ाने के उद्देशय से पहले की तुलना में मजदूरी को भी बढ़ा दिया गया है।

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