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भेड़ाघाट

Monday, May 26, 2014

...स्मृति को सुषमा की काट बनाने की तैयारी!

भोपाल। किसी ने सच ही कहा है कि राजनीति में न तो किसी का कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही दुश्मन। समय के साथ इनके रिश्ते बदलते रहते हैं। इनदिनों कुछ ऐसा ही सुषमा स्वराज के साथ हो रहा है। अभी तक भाजपा की दमदार आवाज रही सुषमा स्वराज पर पार्टी ने सेंसर लगाना शुरू कर दिया है और अमेठी में कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी को जोरदार चुनौती देने वालीं स्मृति ईरानी का कद उनके बराबर करने की तैयारी शुरू कर दी है। बताया जाता है कि स्मृति को अमेठी में दमदारी से चुनाव लडऩे के लिए मोदी ने फोन कर उनकी तारीफ की। उन्होंने हारने की वजह भी जाननी चाही। साथ ही मोदी ने स्मृति को बड़ी जिम्मेदारी निभाने को तैयार रहने को कहा। बताया जाता है कि गुजरात से राज्यसभा सांसद स्मृति को राहुल के खिलाफ लडऩे को मोदी ने ही कहा था। ठीक उसी तरह जैसे 1999 के आम चुनाव में बेल्लारी से सोनिया के खिलाफ सुषमा को आडवाणी ने चुनाव लड़वा उनकी राष्ट्रीय छवि बनवा पार्टी में कद बढ़ा दिया था। वैसे ही मोदी ने स्मृति को अमेठी भेजा था। स्मृति को मोदी अब भाजपा में सुषमा की काट के रूप में तैयार कर रहे है। सूत्रों की मानें तो मोदी केबिनेट में स्मृति को लिया जा सकता है। किसी कारण उन्हें जगह नहीं मिली तो संगठन में अहम जिम्मेदारी जरूर मिलेगी।
भाषण में धार की समानता
सुषमा भाजपा की एकमात्र महिला नेता है जिसकी छवि राष्ट्रीय नेता की है। उनका पार्टी में दबदबा बना हुआ है। वे मोदी विरोधी मानी जाती हैं। सुषमा का कद कम करने के तहत ही स्मृति को भाजपा का महिला चेहरा बनाने की तैयारी की जा रही है। सुषमा के समान स्मृति भी अच्छी वक्ता के रूप में पहचानी जाती है। सुषमा स्वराज की भाजपा के लिए महत्वपूर्ण समझे जाने वाले लोकसभा चुनाव में नहीं के बराबर रही है, जबकि वे भाजपा की स्टार प्रचारकों में से एक हैं। दूसरी ओर योजनाबद्ध तरीके से उनके समानांतर खड़ा किया गया स्मृति ईरानी को। यह किसी से छिपा नहीं है कि सुषमा स्वराज को आडवाणी गुट का माना जाता है, इसीलिए वे कई बार नरेन्द्र मोदी का भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से विरोध करती रही हैं। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सुषमा ने रेड्डी बंधुओं को टिकट देने के नरेन्द्र मोदी के फैसले का ट्विटर पर विरोध किया था। फिलहाल सुषमा का कद पार्टी में काफी बड़ा है। पांच साल तक संसद में उन्होंने भाजपा की ओर से नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी सफलतापूर्वक निभाई है। उन्होंने विदिशा से लगातार तीसरी बार रिकार्ड मतों से जीत हासिल की है।
मोदी की खास सिपहसालार बनी इरानी
स्मृति अब मोदी की खास सिपहसालार बन गई हैं और उन्हें अमेठी से राहुल के खिलाफ लड़ाने में भी मोदी की अहम भूमिका रही है। यही नहीं आज पार्टी में भी उनकी भूमिका लगातार बढ़ रही है। पार्टी के अहम और महत्वपूर्ण मामलों में उनका दखल पार्टी के कद्दावर नेताओं जैसा हो गया है। कमोबेश स्मृति सुषमा की राह पर चल पड़ी हैं। कुछ साल पहले भाजपा में जो भूमिका सुषमा स्वराज की थी, वह अब स्मृति ले रही हैं और बड़ी तेजी से सुषमा के आगे बढऩे से पार्टी में खाली जगह को भर रही है। भाजपा में उनकी हैसियत और काबलियत का नमूना तब देखने को मिला था जब गोवा में मनोहर पाॢरकर के मुख्यमंत्री बनाने के अभियान को उन्होंने बड़े शानदार तरीके से संभाला था।
इतिहास दोहराने के लिए दिया टिकट
अमेठी से राहुल के खिलाफ स्मृति का चुनाव जीतना आसान नहीं था क्योंकि अमेठी गांधी परिवार की परम्परागत सीट है और वहां के लोग भी गांधी परिवार के भक्त हैं। उनका मानना है कि यदि गांधी परिवार का सदस्य यहां से सांसद बनेगा तो क्षेत्र का फायदा होगा। ऐसे में स्मृति का वहां से चुनाव जीतना आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने जिस तरह राहुल गांधी का जोरदार मुकाबला किया। राहुल गांधी को अमेठी में चुनौती देने वाली स्मृति को कुल तीन लाख सात सौ अड़तालिस वोट मिले, जबकि राहुल गांधी को चार लाख आठ हजार छह सौ इक्यावन वोट मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले 2009 और 2004 में राहुल गांधी ने एक तरफा जीत दर्ज की थी। पिछले आम चुनाव में उनका जीत का फर्क तीन लाख वोटों से भी अधिक था। इस बार के चुनाव में राहुल को स्मृति से कड़ी चुनौती मिली। स्मृति के कारण ही कांग्रेस पर जीत के लिए इतना दबाव था कि मतदान के दिन राहुल गांधी को खुद अमेठी आना पड़ा वहीं उनकी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका ने भी क्षेत्र का दौरा किया। इस हार से समृति के राजनीतिक कद पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वह वर्तमान में राज्यसभा की सांसद हैं और इस बात की भी पूरी संभावना है कि सरकार के साथ संगठन में भी उनका कद अब लगातार बढ़ेगा। इस लोकसभा चुनाव से स्मृति को अच्छा प्लेटफार्म मिल गया है, जो उनके कैरियर को आगे बढ़ाने में सहायक होगा।
कभी मोदी की धुर विरोधी थीं
पूर्व मिस इंडिया और 'सास भी कभी बहू थीÓ नामक धारावाहिक से सुॢखयों में आने वाली स्मृति ईरानी कभी नरेंद्र मोदी की धुर विरोधी रही हैं। ईरानी जब 'सास भी कभी बहू थीÓ में काम कर रही थीं तो उस दौरान उन्होंने धमकी दी थी कि यदि नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते तो वह आमरण अनशन शुरू करेंगी और इसकी शुरूआत वाजपेयी के जन्मदिन से करेंगी।
अडवानी ने किया था हस्तक्षेप
उनके इस मोदी विरोधी बयान से भाजपा में इतना बवाल मच गया था कि लालकृष्ण अडवानी को हस्ताक्षेप करना पड़ा था। मामले का संज्ञान लेते हुए अडवानी ने स्मृति को बुलाया और उनसे पूछा कि मोदी विरोधी बयान के पीछे उनकी क्या मंशा है? हालांकि उस समय स्मृति सक्रिय राजनीति में नहीं थीं। उन दिनों वह जिस धारावाहिक में मुख्य भूमिका में थीं वह उस दौरान घर-घर अपनी पैठ बना चुका था। लिहाजा कई जानकारों का यह भी मानना था कि स्मृति ने मोदी विरोधी बयान अपने धारावाहिक की टीआरपी बढ़ाने के लिए दिया था। तर्क कुछ भी हो लेकिन यह तय है कि गुजरात दंगों के बाद भाजपा का धर्मनिरपेक्ष धड़ा मोदी के खिलाफ हो गया था और स्मृति भी उनमें से एक थीं। लेकिन अब समय बदल गया है। जिस तरह देश की राजनीति में मोदी के नाम ने बड़ी-बड़ी पार्टियों और बड़े-बड़े दिग्गजों का सुपड़ा साफ किया है उससे अब हर राजनेता मोदी का मुरिद हो गया है।

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