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भेड़ाघाट

Monday, May 26, 2014

न राहत राशि मिली...न मृत्यु प्रमाण पत्र

प्रदेश के लापता 1032 लोगों में से सरकार ने 542 को ही माना मृत
करीब एक साल बाद भी सरकार ने नहीं ली उत्तराखंड में मरे लोगों के परिजनों की सुध
भोपाल। 2 मई को उत्तराखंड में केदारनाथ धाम के कपाट खुलते ही एक बार फिर से उन लोगों के घाव हरे हो गए जिनके परिजन 16 जून 2013 को वहां आई प्राकृतिक आपदा में कालकवलित हो गए। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि आपदा के दौरान बच गए श्रद्धालुओं को वहां से निकाल कर लाने वाली प्रदेश सरकार ने उसके बाद किसी की सुध नहीं ली। आलम यह है कि प्रदेश के लापता 1032 यात्रियों में से सरकार ने केवल 542 को ही मृत माना है। सरकार लगभग एक साल बाद भी 490 लोगों का पता नहीं लगा सकी। उस पर हालात यह है कि इनमें से अधिकांश के परिजनों को न तो राहत राशि(एक मृतक पर सात लाख रूपए ) पहुंची है और न ही किसी को मृत्यु प्रमाण पत्र। सरकार के पास वास्तविक आंकड़े नहीं उत्तराखंड के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल केदारनाथ एवं बद्रीनाथ में आई प्राकृतिक आपदा में प्रदेश के लापता लोगों की संख्या को लेकर राज्य सरकार के पास वास्तविक आंकड़े नहीं हैं। एक अनुमान के अनुसार,आपदा में प्रदेश के दो हजार से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी,लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई। उसके बाद प्रदेश के लापता यात्रियों की संख्या जुटाने के लिए राज्य शासन ने जिला कलेक्टरों के माध्यम से सर्वे कराया। इसके लिए शासन ने 15 जुलाई 2013 की समय सीमा निर्धारित की थी। इस संबंध में उप राहत आयुक्त पुष्पा कुलैश ने बताया कि जिला कलेक्टरों द्वारा भेजी गई लापता लोगों की सूची के आधार पर उत्तराखंड सरकार को 542 यात्रियों के नाम भेजे गए हैं, जो उत्तराखंड में तीर्थयात्रा के दौरान प्राकृतिक आपदा के बाद से लापता हैं। इसके उलट उत्तराखंड सरकार ने लापता यात्रियों के संबंध में जो जानकारी उजागर की, उसके मुताबिक उत्तरप्रदेश के बाद मप्र से सर्वाधित यात्री लापता हुए हैं। उत्तराखंड सरकार के अनुसार मप्र के 1032 यात्री उस आपदा में लापता हुए , जिसमें 551 पुरूष यात्री, 431 महिला यात्री एवं 50 बच्चे भी लापताओं की सूची में है। हालांकि उत्तराखंड शासन द्वारा बताई गई मप्र के यात्रियों की संख्या को लेकर मप्र के अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं। हालांकि उत्तराखंड त्रासदी के महीने भर बाद तात्कालीन स्वास्थ्य संचालक एवं अपर आयुक्त राहत (उत्तराखंड त्रासदी) डॉ. संजय गोयल ने इसकी पुष्टि की थी कि प्रदेश के 1032 लोग लापाता हंै। वहीं राज्य सरकार ने जब हाईकोर्ट में एक याचिका की सुनवाई के दौरान जो जानकारी दी है, उसमें लापता लोगों की संख्या 542 बताई, जिनमें भोपाल के 25 लोग शामिल हैं। डॉ. गोयल ने बताया कि उत्तराखंड में तीर्थयात्रा पर गए लोगों में जो 15 जुलाई 2013 तक घर नहीं पहुंचे उनकी सूची, पहचान संबंधी दस्तावेजों के साथ उत्तराखंड सरकार को भेज दिया गया। यह सूची जिला कलेक्टरों को भी भेजी गई। इनमें से 542 व्यक्तियों के लापता होने की पुष्टि विभिन्न जिलों के कलेक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में की है। यानी एक बात तो स्पष्ट है कि जिस व्यक्ति के लापता होने का प्रमाण सरकार को मिला उसे की मृत माना गया। ऐसे बनाई लापता लोगों की सूची डॉ. संजय गोयल ने बताया कि लापता लोगों के परिजनों ने त्रासदी के बाद राज्य सरकार द्वारा हरिद्वार में लगाए राहत शिविर और जिला स्तर पर जो जानकारी दी, उसके आधार पर सूची तैयार की गई। इसमें 14 जुलाई तक 1032 लोगों के नाम दर्ज हुए हैं। इन सभी लोगों की गुमशुदगी हरिद्वार में पुलिस को दर्ज कराई गई। फिर सवाल उठता है कि सरकार ने किस आधार पर केवल 542 लोगों को ही उत्तराखंड आपदा में मृत माना। इस मामले में अधिकारियों का कहना है कि प्रशासन ने लापता लोगों की सूची तैयार करने के लिए उनके निकट रिश्तेदारों से शपथ पत्र व लापता का आवेदन मंगवाया था। जितने लोगों का आवेदन आया उनको ही मृत माना गया। यानी सरकार द्वारा शेष लोग लौट कर आए की नहीं और यदि नहीं आए तो वह कहां है यह जानने की कोशिश नहीं की गई। सरकार का मानना है कि जितने लोग बच गए वह अपने घर पहंच गए। नहीं पहुंचने वालों को मृत मानकर उनके परिवार को आर्थिक मदद दी जा रही है। उल्लेखनीय है कि त्राषदी में मरने वालों के परिजन को केंद्र सरकार 3 लाख, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश सरकार दो-दो लाख रूपए दे रही है। एक मृतक पर सात लाख रूपए की सहायता परिजन को मिल रही है। यानी उत्तराखंड आपदा में मृत लोगों के परिजनों को कुल 37,94,00000 रूपए बांटे जाएंगे। कईयों को अभी भी राहत राशि का इंतजार सरकार का दावा है कि राज्य शासन ने 15 जुलाई तक प्रदेश के लापता यात्रियों के परिजनों को घोषणानुसार राहत प्रदान करने के लिए 2-2 लाख रुपए की राशि जारी कर दी गई है। इस राशि का कलेक्टरों द्वारा वितरण किया गया। उत्तराखंड सरकार की ओर से 2 लाख रुपए और केंद्र सरकार की ओर से तीन लाख की राहत राशि भी लापता यात्रियों के परिजनों को दी जानी है। लेकिन अभी भी मृतकों के परिजन इस राशि के लिए भटक रहे हैं। मध्यप्रदेश के शाजापुर में उत्तराखंड त्रासदी के शिकार परिवारवालों को अभी तक राहत राशि नहीं मिली है। त्रासदी में शाजापुर के 26 लोगों की मौत हो गई थी। अरेरा कॉलोनी भोपाल के पराग श्रीवास्तव कहते हैं कि अब तक न तो मप्र सरकार से और न ही उत्तराखंड सरकार से उन्हें कोई मुआवजा मिला है। इधर, राहत आयुक्त पुष्पा कुलेश का कहना है कि मप्र और उत्तराखंड सरकार द्वारा घोषित मुआवजा राशि के चेक जिन प्रभावित परिवारों को नहीं मिले हैं, उन्हें चुनाव आचार संहिता खत्म होने के बाद दे दिए जाएंगे। अभी कई लोगों का ई अकाउंट खुलना बाकी है, जिसके जरिए राशि उनके बैंक खाते में जमा की जाएगी। दस माह बाद भी नहीं मिला मृत्यु प्रमाण पत्र राहत राशि तो छोडि़ए आज तक आपदा में मृत लोगों के परिजन को मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया है। सच्चाई ये है कि उत्तराखंड सरकार ने मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया लेकिन अब तक नहीं बांटा गया। बताया जाता है कि प्रमाण पत्र के साथ प्रदेश की शिवराज सरकार एक शोक संदेश भी देने वाली है, जिसकी वजह से वितरण अटक गया। उसको साथ देने पर आचार संहिता का उल्लंघन हो जाता। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश सरकार ने मृतकों के परिजन को सांत्वना देने के लिए शोक संदेश जारी किया है। बकायदा उसके लिए फोल्डर भी बनाया है, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का शोक संदेश भी रहेगा। जब ये फोल्डर तैयार हो गया, तब आम चुनाव के तारीख की घोषणा हो गई। आचार संहिता लागू होने से मामला लटका दिया गया। चुनाव के दौरान प्रमाण पत्र देना पड़ते तो फोल्डर व शोक संदेश ऐसे ही रखे रह जाते, अगर सारी सामग्री दी जाती तो आचार संहिता का उल्लंघन हो जाता। इसको देखते हुए अफसरों ने तय किया कि चुनाव खत्म होने के बाद उन्हें दिया जाएगा, ताकि कोई बवाल न हो। अब प्रदेश के सभी कलेक्टरों को सामग्री पहुंचा दी गई है। ये है शिवराज का संदेश जून 2013 में उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा में आप अपने परिजन को खोने के दुख से गुजरे हैं। मैं इस दुख में आपके साथ हूं। परिवार को पहुंची क्षति की पूर्ति नहीं की जा सकती है। राज्य सरकार की ओर से आपको संबल बनाए रखने के लिए दो लाख की सहायता राशि स्वीकृत कर पहले ही उपलब्ध कराई जा चुकी है। भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार से समुचित अनुग्रह राशि दिलाने का निरंतर प्रयास किया है। उत्तराखंड सरकार की ओर से आपदा में मृतक के परिजन को भेजे गए रूपए 1.50 लाख व भारत सरकार से प्राप्त रूपए दो लाख आपके जिले के कलेक्टर को भेजकर आपके खाते में जमा करा दिए हैं। इस पत्र के साथ उक्त राशि जमा कराने का विवरण व उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी किया मृत्यु प्रमाण पत्र आपकी ओर भेजा जा रहा है। राहत राशि में अंतर क्यों...? प्रदेश सरकार के अफसरों का कहना है कि लापता यात्रियों के परिजनों को घोषणानुसार राहत प्रदान करने के लिए 2-2 लाख रुपए की राशि जारी कर दी गई है। इस राशि का कलेक्टरों द्वारा वितरण किया गया। उत्तराखंड सरकार की ओर से 2 लाख रुपए और केंद्र सरकार की ओर से तीन लाख की राहत राशि भी लापता यात्रियों के परिजनों को दी जानी है। वहीं मुख्यमंत्री के शोक संदेश में कहा गया है कि उत्तराखंड सरकार की ओर से आपदा में मृतक के परिजन को भेजे गए रूपए 1.50 लाख व भारत सरकार से प्राप्त रूपए दो लाख आपके जिले के कलेक्टर को भेजकर आपके खाते में जमा करा दिए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार द्वारा कितनी राशि दी जा रही है। अभी तक नहीं आई डीएनए सैंपल रिपोर्ट मृतकों की पहचान के लिए उत्तराखंड सरकार ने 1000 शवों की डीएनए सैंपलिंग करवाई है। वहां अपने रिश्तेदारों को खोज रहे लोगों से भी डीएनए सैंपल लिए गए। उद्देश्य था मृतकों की सटीक पहचान करना। ये सारे डीएनए सैंपल हैदराबाद भेजे गए। इसके बाद इन शवों को जला दिया। लेकिन 11 माह बाद भी कोई रिपोर्ट नहीं आई है। आज भी अपनों के जिंदा होने की उम्मीद उत्तराखंड में पिछले साल 16 जून को बरपे प्रकृति के कहर का शिकार हुए लोगों के परिजनों की आंखें उस समय फिर छलछला उठीं, जब उन्होंने टीवी चैनलों पर केदारनाथ मंदिर के पट खुलने के दृश्य देखे। भोपाल से केदारनाथ धाम की यात्रा पर गए करीब डेढ़ सौ से अधिक लोग तो रास्ते खुलने के बाद वापस लौट आए थे, लेकिन इनमें 25 लोग ऐसे थे, जो आज तक नहीं लौटे। तुलसी नगर नर्मदा भवन भोपाल के पास रहने वाले अधिवक्ता उमाकांत मौर्य ने बताया कि उनके पिता रामअवध मौर्य, माता श्यामा मौर्य व जबलपुर निवासी उनके दो अन्य रिश्तेदार उत्तराखंड गए थे। उमाकांत ने बताया कि हादसे के बाद से वह अब तक तीन बार ऋषिकेश व हरिद्वार होकर आ चुके है। अब पुन: मंदिर के पट खुले हैं, तो एक बार फिर मैं अपने परिजनों का पता लगाने वहां जाऊंगा। शायद उनकी कोई निशानी ही मिल जाए। मौर्य ने बताया कि उन्हें और उनकी बहन शारदा मौर्य को अब भी अपनों के सुरक्षित लौटने की उम्मीद है। इसकी वजह इनमें से अब तक किसी का भी शव नहीं मिलना अपनों की उम्मीद जगा रहा है। अरेरा कॉलोनी भोपाल के पराग श्रीवास्तव ने 16 वर्षीय पुत्र सत्यम को उत्तराखंड में हुए हादसे में खोया है। सत्यम अपने एक रिश्तेदार सतीश वर्मा के साथ केदारनाथ गया था। वे वहां खोजबीन कर चुके हैं, लेकिन पता नहीं चला। उन्होंने कहा कि परिजनों का दिल नहीं मान रहा है कि सत्यम अब हमारे बीच नहीं है। अभी मैं पुन: उसे खोजने केदारनाथ जाऊंगा। ऐसा ही कहना है, चौबदारपुरा निवासी कमल राय और आलोक राय श्रीवास्तव का जिनके छह परिजन उत्तराखंड गए थे और अब तक नहीं लौटे हैं। राजधानी भोपाल से उत्तराखंड गए आनंद श्रीवास्तव, ऊषा किरण, विमल राय, मीनू राय, अरुणा खरे, रौनक खरे निवासी चौबदारपुरा और राम अवध मौर्य, श्यामा मौर्य, रामजग मौर्य, सीता मौर्य, सूरजा मौर्य निवासी नर्मदा भवन शिवाजी नगर तथा भीष्म सोनवानी, लक्ष्मी सोनवानी, आशीष सोनवानी, रमेश आजमानी, सरला आजमानी दुर्गेश विहार एवं अनिल कुमार ठाकुर, सोनवनी ठाकुर निवासी अरेरा कॉलोनी व करोड़ीलाल असाटी, रागिनी असाटी, चंद्रशेखर असाटी, शारदा असाटी, इंदू गुप्ता, रीतेश असाटी, पार्वती असाटी निवासी मिनाल रेसीडेंसी, सतीश वर्मा निवासी बाग मुगालिया व सत्यम श्रीवास्तव निवासी अरेरा कॉलोनी,आरके सिंह, सुमन सिंह, दीक्षा सिंह, वेदांत सिंह, नीरजा बिसारिया शिवाजी नगर आदि का आज तक कोई सुराग नहीं मिल सका। हालांकि इनके परिजनों को आज भी इनके लौटने का है इंतजार। एक साल बाद केदारनाथ का नजारा कपाट खुलने के पहले दिन केदारनाथ धाम पहुंचे श्रद्धालुओं को आपदा की वजह से बहुत सी कमियां खली। आपदा के बाद से प्रशासन और सरकार सुविधाजनक केदारनाथ यात्रा के दावे कर रहे हैं। प्रशासन ने दावा किया था कि श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी। लेकिन पहले ही दिन श्रद्धालुओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यहां न रुकने के इंतजाम हैं न खाने के। और अभी भी बफबारी हो रही है। रामबाड़ा पुल के ठीक नीचे जमा हैं अधजले शव और मलबा यहां से रामबाड़ा तक का पांच किमी का सफर शुरू होता है। मंदाकिनी नदी के किनारे-किनारे एक पगडंडी पर। बताया जाता है कि इस इलाके में सड़क बनाने के लिए पीडब्ल्यूडी ने 2200 करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं। आसपास घर, दुकानें सब नष्ट हैं। मलबा भी नहीं हटाया गया है। कभी चहल-पहल भरे इस इलाके में आज एक डरावनी खामोशी है। और रामबाड़ा पहुंचने पर सामने आता है एक खौफनाक मंजर। रामबाड़ा पुल के ठीक नीचे जमा हैं अधजले शव और मलबा। ये हाल तो मुख्य रास्ते का है। रास्ता छोड़कर ऊपर के जंगलों में झांका तो कंटीली झाडिय़ों में फंसे-कपड़े, मानव अंग गवाही दे रहे थे कि सरकार और प्रशासन ने कहीं-कुछ हाथ नहीं लगाया है। पिछले साल सेना के यहां से जाते ही मानो सब हालात पर छोड़ दिया गया। पांच फीट बर्फ होने के बावजूद भिनभिना रही हैं मक्खियां रामबाड़ा से केदारनाथ तक मार्ग दुरुस्त करने में प्रशासन ने सात किमी का सफर 12 किमी का बना दिया है। इस रास्ते में शव तो नहीं मिले लेकिन केदारनाथ पहुंचते ही दिलदहला देने वाला दृश्य है। मलबा जस का तस पड़ा है। पांच फीट बर्फ होने के बावजूद मक्खियां भिनभिना रही हैं। चारों ओर भयंकर दुर्गंध। एक चिंता और है, इतनी लाशों के सड़ते रहने से कोई बीमारी न फैलने लगे। यदि ऐसा हुआ तो यहां स्वास्थ्य सेवाओं के कोई इंतजाम नहीं हैं।

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