इस साल अक्टूबर माह में भारत की राजधानी दिल्ली में होनेे वाले कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में सरकार भले ही पिछड़ रही है लेकिन यहां आने वाले सैलानियों की दैहिक भूख शांत करने के लिए जोरदार तैयारियां चल रही है या यूं कहें कि ट्रायल भी शुरू हो गया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक अनुमान के तहत जिस दिल्ली में देह व्यापार का सालाना टर्न ओवर 650 करोड़ का है वहां करीब एक महीने चलने वाले इस कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान 500 सौ करोड़ की देह बिकेगी। यानी जीबी रोड से लेकर आलीशान होटलों में जमकर देह व्यापार होगा। इसके लिए विदेशी देहजीवीयाएं भी यहां आ धमकी हैं।
दिल्ली के जीबी रोड के चकलाघरों को जहां आधुनिकता के रंग में संवारा-सजाया जा रहा है वहीं बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रांतों से देहजीवीयाओं को भी लाया जा रहा है जहां उन्हें अंग्रेजी बोलना,पश्चिमी रहन-सहन के साथ-साथ काम कला और मुद्राओं की जानकारी दी जा रही है। इसके लिए वकायदा विदेशी सेक्स विशेषज्ञों का सहारा भी लिया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि यहां आने वाले विदेशी सैलानियों की अधिकतर मांग भारतीय बालाओं की होती है लेकिन उन्हें काम कलाओं की जानकारी नहीं होने के कारण कई बार प्रवासी ग्राहक नाकार देता है। इसी प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप से आने वाले लोगों के लिए गोरी चमड़ी वाली विदेशी बालाओं को बुलाया गया है।
जानकारों की माने तो उपमहाद्वीप में गोरी चमड़ी वाली विदेशी बालाओं का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। जीबी रोड हो या फिर शहर के आलीशान होटल सभी ने इंग्लैंड,अमेरिका,जापान,चीन,इटली,फ्रांस आदि देशों से सेक्स वर्कर्स को बुलाया है। इनमें खासकर सोवियत संघ से अलग हुए राष्ट्रों की गरीब लेकिन खूबसूरत और मस्त अदाओं वाली लड़कियां, जो पूरी तरह से देखने में आकर्षित लगती हैं, इस धंधे में भाग ले रही है। सोवियत संघ से अलग हुए कॉमनवेल्थ ऑफ इंडीपेंडन्ट स्टेट (सीआईएस) के राष्ट्र यूक्रेन, ज्यॉर्जिया, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, चेचेन्या और किग्रिस्तान से बड़ी संख्या में लड़कियां देह बेचने के लिए भारत आती हैं। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में मौजूदा समय में इन राष्ट्रों से 5500 लड़कियां मौजूद हैं। यहां पर लड़कियां अपने खूबसूरत चेहरे के दम पर अच्छा-खासा पैसा कमा रही हैं। इन लड़कियों का मकसद एकदम साफ है। भारत में अपना शरीर बेचने के बाद लड़कियां अपने वतन वापस जाकर घर बनाती है, कुछ परिवार को पैसा भेजती रहती है। इन लड़कियों को भारत लाने के लिए व्यवस्थित नेटवर्क बना हुआ है। उपरोक्त राष्ट्रों की अनेक आंटियां काफी समय से दिल्ली में स्थायी रुप से निवास कर चुकी हैं। इन आंटियों का भारत में वेश्या दलालों के साथ गठबंधन है। विदेश से आती गोरी युवतियों का संपूर्ण संचालन ये आंटियां ही करती हैं साथ ही देशी दलाल और ग्राहक ढूढ़कर कमीशन भी बनाती है।
जीबी रोड की लवजीत के मुताबिक भारत सहित उपमहाद्वीप में विदेशी लड़कियों का डिमांड बड़ी संख्या में है। पैसा खर्च कर देह की भूख मिटाना बहुत समय से चलता आ रहा है लेकिन अब पैसा देकर सुख भोगने का तरीका थोड़ा एडवांस हो गया है। हिंदुस्तानी पुरुषों को अब सांवली या फिर खूबसूरत वेश्या या कॉलगर्ल में रस नहीं रह गया है। अब भारतीय पुरुष गोरी बालाओं के दीवाने हो गए हैं। इसके लिए वे अच्छा-खासा पैसा खर्च करने के लिए तैयार भी हो जाते हैं। नाम भले ही खत्म हो जाए लेकिन देहव्यापार करके कई तरह के शौख पूरा करना इन गोरी लड़कियों का पेशा बन गया है। लड़कियां प्लेजर ट्रीप्स, बिजनेस मीट्स, कॉर्पोरेट इवेंट्स, फंक्शन और डिन डेट्स के लिए भी उपलब्ध होती हैं। कई लड़कियां तो नाइट क्लबों में वेटर्स या बेले डांसर का रुप धारण कर धंधे के लिए तैयार हो जाती हैं। रशियन लड़कियों का मिनिमम चार्ज दो हजार से 8 हजार रुपया है। अधिकतम चार्ज की कोई सीमा नहीं है। लड़कियों के पीछे काफी पैसा खर्च करके ग्राहकों से मोटी रकम वसूल की जाती है। उसने बताया कि अमीर और अधिकारी वर्ग के लोगों में गोरी त्वचा वाली विदेशी लड़कियों का क्रेज चल रहा है। यहां पर पहले तो नेपाली लड़कियों की ज्यादा डिमांड थी। भारतीय युवतियों की अपेक्षा नेपाली लड़कियों की कीमत 40 फीसदी ज्यादा थी लेकिन अब जमाना रशियन लड़कियों का है।
देहव्यापार के धंधे में शामिल एक भारतीय लड़की का कहना है कि रशियन लड़की अपने शरीर को पूरी तरह से ग्राहक के हवाले कर देती हैं लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाते। जीबी रोड के कोठा नंबर 54 में रहने वाली आसमां की माने तो विदेशी लड़कियों को दलालों द्वारा मसाज और एस्कोर्ट सर्विस के नाम पर ग्राहकों को बुलाया जाता है। यहां पर ऐसा निर्देश दिया जाता है जो आम आदमी भी समझ लेता है। वाइल्डेस्ट फेन्टसी, ट्रेइड हेंडलिंग और फुल सेटिस्फेक्शन गेरेंटेड जैसे शब्द का प्रयोग इस्तेमाल होता है। ग्राहक क्रेडिट कार्ड से भी पेमेंट कर सकते हैं। सोवियत संघ के पतन के पीछे सीआईएस राष्ट्रों की लड़कियां दुबई में स्थाई हो जाती थी और परिणाम में दुबई वैश्यावृत्ति का एक अंतराष्ट्रीय केन्द्र बन गया था। लेकिन दुबई पुलिस की सख्ती के बाद गोरी लड़कियों ने अब दिल्ली को निशाने पर लिया है। दिल्ली और मुंबई विदेशी शाला बन रही है। यहां से ही देश भर में लड़कियां सप्लाई की जाती हैं।
यह बात अलग है कि पुरुषों की जन्नत में औरतों को सपने देखने की भी इजाजत नहीं है लेकिन लालबत्तियों की शोभा बनी औरतें भी कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों पर जुट गई हैं। शहरी चकाचौंध से दूर बैठी ये देह बेच कर कुछ ज्यादा कमा लेने की चाहत में खुश भले ही हो रही हों पर हकीकत में इनको वही सौ में पन्द्रह रुपये पा कर तसल्ली करना होगा। उपेक्षित स्त्री को नजदीक से देखते विनीत उत्पल तन समर्पित, मन समर्पित, बावजूद इसके दिहाड़ी नाममात्र। यह किसी फिल्म का डायलॉग नहीं बल्कि कड़वी हकीकत है बदनाम बस्तियों की महिलाओं की। अगर मजदूरी सौ रूपए है तो उसे मिलता है मात्र पंद्रह रूपए। बाकी बंटता है कोठी की मालकिन, दलालों, भडुवों, राशन वालों, पुलिसकर्मियों, डॉक्टरों और साहूकारों के बीच।
कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान सेक्स परोसने की तैयारी किस प्रकार चल रही है यह जानने के लिए हमने जब 18 वर्षिय सना से पूछा तो वह उबल पड़ी। उसने अपनी चलताऊ भाषा में हमें जो बताया उसका आशय कुछ ऐसा है-दिल्ली के उच्च वर्ग, पार्टी सर्किल और सोशलाइटों के बीच 'गुड सेक्स फॉर गुड मनीÓ एक नया चलताऊ वाक्य बन गया है। यही वजह है कि दिल्ली पर भारत की सेक्स राजधानी होने का एक लेबल चस्पां हो गया है। आंकड़ों की बात करें तो मुंबई में दिल्ली से ज्यादा सेक्स वर्कर हैं। लेकिन जब प्रभावशाली और रसूखदार लोगों को सेक्स मुहैया करवाने की बात आती है तो दिल्ली ही नया हॉट स्पॉट है। ये प्रभावशाली और रसूखदार लोग हैं राजनेता, अफसरशाह, व्यापारी, फिक्सर, सत्ता के दलाल और बिचौलिए। यहां इसने पांच सितारा चमक अख्तियार कर ली है। पांच सितारा कॉल गर्ल्स पारंपरिक चुसी हुई शोषित और पीडि़त वेश्या के स्टीरियोटाइप से बिल्कुल अलग हैं। न तो ये भड़कीले कपड़े पहनती हैं और न बहुत रंगी-पुती होती हैं और न ही उन्हें बिजली के धुंधले खंभों के नीचे ग्राहक तलाश करने होते हैं। पांच सितारा होटलों की सभ्यता और फार्महाउसों की रंगरेलियों में वे ठीक तरह से घुलमिल जाती हैं। वे कार चलाती हैं, उनके पास महंगे सेलफोन होते हैं। जैसा कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि हाल ही के एक छापे के दौरान पकड़ी गई लड़कियों को देखकर उन्हें धक्का लगा। वे सब इंगलिश बोलने वाली और अच्छे घरों से थीं। कुछ तो नौकरी करने वाली थीं, जो जल्दी से कुछ अतिरिक्त पैसा बनाने निकली थीं। 34 साल की सीमा भी एक ऐसी ही कनवर्ट है। उसे इस धंधे में काफी फायदा हुआ है।
ग्लोबलाइजेशन के दौर में विज्ञापन हो या फिर पोर्न फिल्में, बार गर्ल हो या फिर रैम्प पर मदमस्त चाल चलतीं मॉडल्स, कॉलगर्ल हों या फिर बहुतेरे शहर के कोठों पर रहने वालीं यौनकर्मी, परिभाषाएं समान ही नजर आती हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि कोई अपनी मर्जी से देह बेचता है तो कोई मजबूरन धंधे को अपनाने के लिए विवश होती है। आंकड़ें बताते हैं कि रेड लाइट एरिया में आने के लिए हर साल दस लाख लड़कियां मजबूर होती हैं, जिनमें से 25 हजार तो महज सार्क देशों से आती हैं।
इसके अलावा दिल्ली का एक इलाका ऐसा भी है, जो इन विदेशी मेहमानों के नाम से ही सहमा हुआ है और डर की वजह है आप्रकृतिक यौन संबंधी और एचआईवी एड्स। दिल्ली के रेड लाइट एरिया जीबी रोड में रहने वाली सैकड़ों महिलाएं नहीं चाहतीं कि कोई विदेशी उनकी चौखट पर आए। जीबी रोड की असिमा बानो के मुताबिक भारत आने से पहले विदेशियों की एचआईवी जांच करवाई जाए। जो इस जांच में पास हों, केवल उसे ही भारत का वीजा देना चाहिए। विदेशियों से यह डर किसी एक का नहीं है। यही कारण है कि जीबी रोड की महिलाओं के लिए काम करने वाले संगठन पतिता उद्धार संघ ने इस बाबत विदेश मंत्री व स्वास्थ्य मंत्री से मदद की गुहार लगाई है। संगठन के अध्यक्ष खैरातीलाल भोला के मुताबिक उन्होंने जीबी रोड में रहने वाली महिलाओं की ओर से 18 अप्रैल को विदेश मंत्री एसएम कृष्णा को एक पत्र लिखा है। जिसमें मांग की गई है कि बिना एचआईवी जांच के किसी विदेशी को भारत का वीजा न दिया जाए। इस मामले में संस्था स्वास्थ्य मंत्रालय की भी मदद ले रही है। भोला के मुताबिक 1984 में हुए एशियाई खेलों के दौरान बड़ी संख्या में विदेशी भारत आए थे। यही वह अवसर था, जब विदेशी नागरिकों से कई दिल्लीवालों में एचआईवी का संक्रमण फैलना शुरू हुआ। एशियाई खेलों में मिला यह दर्द जीबी रोड के अधिकांश कोठों की महिलाएं अभी तक नहीं भूली हैं। यहां रहने वाली नीरूजी का कहना है एशियाई खेलों के समय ज्यादातर महिलाओं को सुरक्षित यौन संबंधों की जानकारी भी नहीं थी, जिससे कई युवतियां इस बीमारी से ग्रस्त हुई और बाद में उनकी मृत्यु हो गई। अब जब एक बार फिर बड़े पैमाने पर विदेशी भारत आने को हैं तो जीबी रोड में रहने वाली महिलाओंं में डर लॉजिमी है। इसकी एक वजह यह भी है कि उन्हें डर सता रहा है कि खेलों का जश्न कहीं उनके लिए मातम न बन जाए।
Tuesday, July 27, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment