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भेड़ाघाट

Tuesday, June 21, 2011

दस्युओं के डर से नहीं मिल रही दुल्हनें

विनोद उपाध्याय
ंएक हजार करोड़ से ज्यादा का बजट, 232 काबिल आईपीएस अफसर सहित 80 हजार पुलिस की फौज पर मु_ी भर डकैत भारी पड़ रहे हैं। यह हाल है मध्यप्रदेश की पुलिस का। चंबल और बुंदेलखंड क्षेत्र के नामी डकैतों को मार गिराने के बाद भले ही मध्यप्रदेश का पुलिस महकमा इस बात पर इतरा रहा हो उसने प्रदेश को दस्यु मुक्त कर दिया है लेकिन हकीकत यह है कि उत्तर प्रदेश से लगे तराई वाले इलाकों में अब भी डकैतों का आतंक है। मध्यप्रदेश के सतना और रीवा जिले के करीब दो दर्जन गांवों में स्थिति यह है कि इन गांवों में कोई भी अपनी बेटी ब्याहने को तैयार नहीं हो रहा है क्योंकि कई ऐसे मामले सामने आए हैं कि जब किसी युवक की शादी हुई और उसे दहेज में मोटी रकम मिली तो उसे डकैत उठा ले गए। बाद में फिरौती देने पर उन्हें डकैतों के चंगूल से मुक्ति मिल सकी। जिसके कारण इन गांवों के आधा सैकड़ा से अधिक युवा शादी के इंतजार में जवानी की दहलीज भी पार गए हैं।
गौर तलब है कि उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश का सीमावर्ती इलाका कई दशकों से डकैतों का आतंक झेल रहा हैं। अपने को दस्यु सम्राट घोषित करने वाले अंर्तप्रान्तीय ददुआ के साथ-साथ मुन्नी लाल उर्फ खड़क सिंह, गौरी यादव, ठोकिया उर्फ शंकर पटेल ये कुछ ऐसे कुख्यात नाम हैं जिनके नाम से पूरे क्षेत्र के लोग थर्राते थे। इनकी राजनीति में भी अच्छी खासी पैठ थी। जिसके चलते यहां के लोग उसी को अपना नेता बनाते थे जिसके नाम का फरमान ये लोग कर देते थे। लेकिन हवाओं ने अपना रुख बदला और शासन ने इनके प्रति कड़ा रुख अपना लिया। जिसके चलते इस क्षेत्र में सक्रिय बड़े गैंगों के सफाए के लिए पुलिस फोर्स को मजबूत बनाते हुए यहां स्पेशल टास्क फोर्स की तैनाती की गई। जिसके तहत वर्ष 2007 से इलाके में सक्रिय डकैतों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया गया और एसटीएफ को अपनी बनाई रणनीति के कारण जल्द ही बड़ी सफलता मिली और 22 जुलाई 2007 को अन्तर्रप्रान्तीय डकैत ददुआ का सफाया किया गया। उसके ठिकाने लगते ही जैसे डकैतों के दुर्दिन आ गए और ददुआ के मारे जाने के बाद गैंग की कमान सम्भालने वाले उसके दाहिने हाथ राधे व अन्य सदस्यों पर भी पुलिस का दबाव इतना बढ़ा कि राधे ने आत्मसमर्पण करने में ही अपनी भलाई समझी और मझगवां थाने में अपने कुछ साथियों सहित सरेण्डर कर दिया। ददुआ अभियान के बाद एसटीएफ ने पुलिस बल के साथ ठोकिया अभियान चलाया और उसे भी मार गिराया गया। जबकि मुन्नी लाल उर्फ खड़क सिंह और गौरी यादव को गिरफ्तार कर जेल के सीखचों के पीछे बन्द करने में पुलिस बल ने सफलता पाई। इसी के साथ 60 हजार के ईनामी राजा खान उर्फ ओमप्रकाश व राजू कोल को भी पुलिस ने मार गिराया। बड़े बदमाशों और उनके गैंगों के सफाए के बाद लोगों को लगने लगा था कि अब उन्हें डकैतों के आतंक का सामना नहीं करना पड़ेगा। लेकिन उनकी यह उम्मीद ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी और एसटीएफ व पुलिस की गतिविधियां धीमी होने के बाद एक बार फिर क्षेत्र में छुटभैया बदमाशों ने बड़े गैंगों के बचे सदस्यों को एकत्र कर अपना-अपना गैंग बना लिया। जिसमें बिछियन नर संहार में 11 लोगों को जि़न्दा जला देने के साथ ही दस्यु सुन्दर उर्फ रागिया ने खतरनाक डकैत के रूप में अपनी पहचान बनाई। जिसके बाद से उसके ऊपर डेढ़ लाख का ईनाम घोषित कर दिया गया।
पुलिस के आला अधिकारी भी यह बात मानते हैं कि चित्रकुट, चितैहरा, हिरौंदी, गोरान टोला, मझगंवा, देवलाहा, महतैन, कल्हौरा, बरौधा, नकैल, खोही, पातर कछार, उचहेरा, कोठर, अमरपाटन आदि क्षेत्रों में डकैतों का आतंक है। लेकिन पुलिस के पास एक भी ऐसा काबिल अफसर नहीं है, जो इस क्षेत्र को डकैत समस्या से निजात दिला सके। इस क्षेत्र में डकैत खुलेआम अपहरण करने के बाद फिरौती वसूल रहे हैं। डकैतो का बढ़ता दुस्साहस और उन्हें मिलता सामाजिक सपोर्र्ट पुलिस के लिए अनसुलझी पहेली बनता जा रहा है। पुलिस का रिकार्ड गवाह है कि कुछ अपवादों को छोड़कर जितने भी अपहरण हुए, उनमें फिरौती देकर ही छूटा जा सका है। यानि हर दफा पुलिस पर अनपढ़ डकैत भारी पड़ते हैं।
अगर पूरे संभाग की बात करें, तो केवल अपहरण से हर साल डकैत 20 करोड़ रुपए से ज्यादा की वसूली करते हैैं। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं कि डकैत समस्या और पुलिस की नाकामी का मुख्य कारण वहां के किसानों क दयनीय हालात और विकास की कमी हैै। इसके अलावा इस क्षेत्र में ऐसा कोई राजनेता नहीं है, जो डकैतों की मदद न लेता हो या डकैतों को संरक्षण न देता हो। पुलिस खुलकर कार्रवाई नहीं कर पाती और परिणाम में व्यापारियों या अन्य पैसे वाले के अपहरण होते जा रहे हैं।
इस क्षेत्र में करीब आधा दर्जन बड़े डकैतों के गिरोह सक्रिय है। जिनमें सुंदर पटेल,बलखडिय़ा, खरदूषण,प्रमोद काछी,ददौली जोशी और बेटालाल कोल शामिल हैं। इन डकैतों ने बकायदा अपने-अपने क्षेत्र भी बांट रखे हैं। आठ सदस्यों वाले सुंदर पटेल इस क्षेत्र का सबसे दबंग डकैत है। उसका गिरोह ऐसा है किसी भी क्षेत्र में जाकर वारदात करता है। सतना जिले के बिछियन नरसंहार कर फरार डकैत सुंदर पटेल गिरोह को राज्य सरकार द्वारा सूचीबद्ध किया गया है। उसके गिरोह में सात नियमित सदस्य हैं और वारदात के समय चार-पांच सदस्यों को साथ ले लेता है। सुंदर मप्र के मझगंवा, नया गांव और सभापुर थाना क्षेत्र सहित उत्तरप्रदेश के मानिकपुर, भेलपुराव, कर्वी और फतेहगढ़ थानों की सीमा में छिपते-छिपाते घुमता रहता हैं। जबकि सात सदस्यों वाले प्रमोद काछी का गिरोह चितैहरा,हिरौंदी,गोरान टोला,मझगंवा,देवलाहा में वारदात करता है। बिछियन कांड से सुर्खियों में आए खरदूषण के गिरोह में छह सदस्य है और वह महतैन और कल्हौरा के क्षेत्र में वारदात करता है। बलखडिय़ा यूपी के तराई क्षेत्र,मानिकपुर,मझगंवा और बिछियां आदि क्षेत्रों में सक्रिय रहता है। उसके गिरोह में ग्यारह सदस्य हैं। बेटालाल कोल के गिरोह में सात सदस्य हैं और यह इस क्षेत्र के छोटे गांवों में अधिक वारदात करता है। इसके अलावा दर्जनों ऐसे डकैत भी सक्रिय होकर काम करते हैं। इस प्रकार के डकैत लोगों का अपहरण करके लाते हैं और बड़े डकैतों को अपना अपह्त कुछ धनराशि के बदले सौंप देते हैं। बड़े डकैत दूसरे राज्यों व जिलों में अपने स्थानीय संपर्को के जरिए अपहरण कराते हैं और बदले में लाखों रुपए वसूलते हैं। मप्र से इस समय सबसे ज्यादा अपहरण की वारदातें हो रही हैं।
इस क्षेत्र के गांवों में इन डकैतों का इतना आतंक है कि लोग अपनी जमीन-जायदाद बेंचकर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इसकी मुख्य वजह है शादी की समस्या। इस क्षेत्र में सुंदर पटेल के सताए एक गांव के निवासी ने बताया कि अकेले हमारे गांव में ही आधा दर्जन लड़के शादी नहीं होने के क्वारे हैं और उनका उम्र 40 के पार कर गई है। वे बताते हैं कि यह समस्या केवल एक हमारे गांव की ही नहीं है बल्कि इस क्षेत्र के हर गांव में यही स्थिति है।
यहां के लोग बताते हैं कि क्षेत्र में डकैतों के पनपने के कई कारण हैं। उनमें सबसे महत्वपूर्ण है क्षेत्र का पिछड़ापन और रोजगार का अभाव। इसके अलावा सामाजिक कट्टरता भी अपराधी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैै। एक पुलिस अधिकारी के अनुसार अब तक अधिकांश डकैत हुए हैं वह पटेल,गौंड़,गड़रिया, यादव, कुशवाह, ठाकुर, गुर्जर समाज से हैं। यह समाज आपस में एक-दूसरे को दुश्मन की तरह देखते हैं। ऐसे में एक समाज का व्यक्ति ताकतवर होता है, तो वह दूसरे समाज के लोगों पर अत्याचार करने लगता हैै। ऐसे हालात में जिस पर अत्याचार होता हैै, वह आक्रोशित होकर डकैत बन जाता है।
डकैत क्षेत्र में काम कर चुके पुलिस अधिकारी एएसपी विद्यार्थी बताते हैं कोई भी डकैत अपने समाज को तंग नहीं करता, लेकिन दूसरों को प्रताडि़त करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। यही कारण है कि जातिगत कट्टरता के कारण अपराधी खत्म नहीं हो पा रहे हैैं। इनमें शिक्षा और जागृति का अभाव है, इसलिए अपने अधिकारों को नहीं समझते और हर बात का बदला लेने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं।
दूसरा कारण है जातिगत सपोर्र्ट। जिस जाति का डकैत होगा, उसे उसी जाति के लोग खुलकर सपोर्र्ट करते हैं। रुपयों का लेन-देन से लेकर अपहृत से फिरौती वसूलने और झुंड बनाकर पुलिस पर दबाव बनाने जैसे सभी काम करते हैं। यहां तक की चुनाव में भी डकैत के सगे संबंधी ही खड़े होते हैं और बंदूक की दम पर जीतते हैं। तीसरा कारण है बेरोजगारी। बेरोजगारों को डकैतों की जिंदगी बहुत भाती है। उन्हें लगता है कि डकैत बनकर खूब पैसा कमाया जा सकता है और अय्याशी की जा सकती है। डकैतों की शोहरत देखकर युवा अपराध की दुनिया में कदम रखते हैं। उनका सोचना है कि भूखा रहने से अच्छा डकैत बनना है। चौथा कारण है समाज में रॉबिनहुड बनने की होड़। जिस जाति का डकैत होता है, वह अपने आप को उस जाति का मसीहा समझने लगता है। वह चाहता है कि उसकी कहानियां लिखी जाएं। इसलिए वह अपराध पर अपराध करता जाता है। पांचवां कारण भौगोलिक संरचना है। इस क्षेत्र में अच्छी सड़कों का अभाव है। छोटे नदी-नालों पर पुल नहीं है। इस कारण पुलिस को सर्च करने में परेशानी आती है। एक बार जो छोटे-मोटे अपराध में फरार हो जाता है, उसे डकैतों के गिरोह में शामिल होने में परेशानी नहीं आती। डकैतों के गिरोह में शामिल होते ही छोटा अपराधी, हिस्ट्रीशीटर में तब्दील हो जाता है। ऐसे में पुलिस एनकाउंटर को अपना नसीब समझकर ताबड़तोड़ अपराध करने लगता है। बीहड़ होने के कारण पुलिस की निगाह से आसानी से बच जाता है, वहीं गांव के लोगों का सपोर्ट भी मिलता है। क्षेत्र का विकास नहीं होने और बीहड़ के कारण वातावरण प्रतिकूल होने से पुलिस लाचार रही है। छठवां और सबसे महत्वपूर्ण कारण है सिस्टम के प्रति आक्रोश। गरीबी और भुखमरी के कारण कई लोगों ने हाथों में बंदूक थाम ली।
एएसपी विद्यार्थी बताते हैं कि डकैतों को उस समय घेरा जाना चाहिए, जब वह वारदात के बाद रुपयों को एडजस्ट करने में लग जाते हैं। पुलिस इसे कूलिंग टाइम कहती है। कूलिंग टाइम में डकैतों का सफाया हो सकता है। जिस समय डकैत वारदात से कमाए रुपयों को ठिकाने लगाने में लग जाते हैं, उस समय वह वारदातों को अंजाम नहीं देते। यह कूलिंग टाइम कहलाता है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक यह समय डकैतों के सफाए के लिए सबसे उपयुक्त होता है। ऐसा कोई डकैत नहीं है, जो अपने रुपयों को जमीन खरीद-फरोख्त और अन्य धंधों में न लगाता हो। डकैत फिरोती, धमकियों और अन्य तरीकों से मिले रुपयों को व्यवसाय में लगाते हैं। इसके लिए यह लोग अपने रिश्तेदारों और मददगारों का इस्तेमाल करते हैैं। ऐसे समय में डकैतों का ध्यान वारदात की तरफ से हट जाता है और इनके आबादी वाले क्षेत्रों में मिलने की संभावना ज्यादा रहती हैै। कई जगह डकैत लापरवाह भी हो जाते हैं और इनकी मुखबिरी भी आसान हो जाती है। पुलिस मुखबिरों का जाल बिछाकर बीहड़ों से बाहर निकले इन डकैतों को पकड़ या मार सकती है। कई पुलिस अधिकारियों ने इसी ट्रिक को अपनाकर सफलता भी प्राप्त की।

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