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भेड़ाघाट

Friday, April 11, 2014

रेत के खेल में रोजाना 2 की मौत

नदियों किनारे पिछले एक साल में 715 लोगों की हुई हत्या
भोपाल। रेत माफिया की अफसर को जिंदा जलाने की कोशिश, रेत माफिया ने की पुलिस और वन अमले पर फायरिंग, रेत माफिया ने की पुलिस अफसर को कुचलने की कोशिश,रेत माफिया ने एसएएफ जवानों पर किया फावड़ों से हमला, बेरिकेड्स तोड़े, रेत माफिया ने एक्सीडेंट कर एक को मारा,वन अमले पर 8 किमी तक लगातार गोलियां दागते रहे रेत माफिया,रेत माफिया ने किया तहसीलदार पर हमला, रेत माफिया की आपसी भिड़ंत में 5 की मौत,रेत माफिया ने एसएएफ हवलदार को गोली मारी ये वे कुछ हेड लाइन्स हैं जो मप्र में रेत माफिया की दबंगई,रसूख और उनकी क्रूरता को दर्शाती हैं। आलम यह है कि वर्ष 2013-14 के दौरान प्रदेश में रेत माफिया की आपसी रंजिश,पुलिस मुठभेड़,ग्रामीणों से झगड़ा आदि में करीब 715 लोग अपनी जान गवां चुके हैं। इस साल 10 जनवरी को सिंगरौली में वन विभाग के डिप्टी रेंजर को जिंदा जलाने की कोशिश के साथ की मुरैना में 31 मार्च को एसएएफ हवलदार को गोली मारने तक रेत माफिया अभी तक आधा सैकड़ा वारदात को अंजाम दे चुके हैं।
हवलदार की पीठ में फंसी गोली
31 मार्च को मुरैना जिले के देवरी घडिय़ाल केन्द्र के सामने चेकपोस्ट पर सुबह साढ़े पांच बजे रेत माफिया के लोगों ने एसएएफ हवलदार विश्वनाथ पिता रामनारायण (48) को गोली मार दी। गोली विश्वनाथ की पीठ में फंस गई। जिसे निकालने के लिए उनका ग्वालियर में इलाज चल रहा है। पुलिस के मुताबिक 31 मार्च की सुबह हाईवे पर एसएएफ जवानों को रेत लेकर 8 ट्रैक्टर आते दिखे। माफिया के लोग पांच-छह बाइक पर ट्रैक्टरों को घेर कर जा रहे थे। जवानों ने ट्रैक्टरों को रोकने का प्रयास किया। चेकपोस्ट के पास आते ही ट्रैक्टरों की पायलेटिंग कर रहे माफिया के लोगों ने कट्टों व पिस्टलों से एसएएफ जवानों पर फायर करना शुरू कर दिया। इसी दौरान एक गोली विश्वनाथ की पीठ में लग गई। डॉक्टरों ने विश्वनाथ की गोली निकालने का प्रयास किया, लेकिन गोली रीढ़ की हड्डी के पास होने से वे सफल नहीं हुए। बाद में हवलदार को ग्वालियर रैफर कर दिया गया। मुरैना एएसपी रघुवंश सिंह भदौरिया के अनुसार एसएएफ हवलदार को गोली मारने वालों की शिनाख्त की जा रही है। साथ ही उन्हें पकडऩे का प्रयास किया जा रहा है। आरोपियों के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया है।
सबसे अधिक वारदात ग्वालियर-चंबल संभाग में
वैसे तो प्रदेश में सभी छोटी-बड़ी नदियों में अवैध रेत और पत्थर का उत्खनन हो रहा है,लेकिन ग्वालियर-चंबल संभाग में माफिया सबसे अधिक वारदात को अंजाम देते हैं। ग्वालियर-चंबल संभाग में तो रेत माफिया इस कदर हावी हो गया है कि उसके अभियान में कोई बाधा डालता है, तो उस पर वे सीधा हमला करते हैं। इस इलाके में डिप्टी कलेक्टर से लेकर नायब तहसीलदार पर हमला हो चुका है। पुलिस थानों पर हमला करके जप्त ट्रक और ट्रालिया छुड़ाना तो यहां आम बात हो गई है। इस क्षेत्र में एक वर्ष के अंदर करीब 327 लोग रेत की लड़ाई के शिकार बन चुके हैं।
प्रदेश में ग्वालियर-चंबल डिवीजन के अलावा मालवा, महाकौशल और विंध्य खनन माफिया का गढ़ बन गया है। विंध्य क्षेत्र में रीवा-सतना का ऐसा ही क्षेत्र है, जहां खनिज माफिया के खौफ से अधिकारी कर्मचारी परेशान हैं। एक साल के अंदर इस क्षेत्र में करीब 135 लोगों की हत्या हो चुकी है। प्रदेश में माफिया तंत्र के रसूख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बड़वानी जिले के गठन के 17 साल के अंदर अभी तक 17 कलेक्टर हटाए जा चुके हैं। यानी यहां कलेक्टरों का औसत कार्यकाल एक वर्ष से ही कम रहा। सिंगरौली की सोन घडिय़ाल अभ्यारण्य हो या फिर धार में नर्मदा नदी सब जगह रेत का अवैध खनन हो रहा है। अगर इसमें कोई रूकावट डालता है तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ती है। इस क्षेत्र में एक साल के अंदर करीब 70 लोग माफिया के शिकार बन चुके हैं।
संकट में नर्मदा की सहायक नदियां
मप्र की जीवनरेखा नर्मदा और उसकी लगभग एक दर्जन सहायक नदियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। नरसिंहपुर जिले की प्रमुख नदियों शक्कर, शेढ़, सीतारेवा, दूधी, ऊमर, बारूरेवा, पांडाझिर, माछा, हिरन आदि नदियों में से कई नदियों को रेत माफिया लगभग मौत के घाट उतार चुका है। बारूरेवा, माछा, पांडाझिर, सीतारेवा, ऊमर नदी तो ऐंसी नदियां हैं कि जहां माफिया ने रेत का अंधाधुंध खनन नदी के अंदर से किया, जिससे नदी की सतह पर पानी थामने वाली कपायुक्त त्रिस्तरीय तलहटी (लेयर) पूरी तरह उजड़ गई है। नर्मदा का हाल यह है कि उसका सीना लगातार छलनी किया जा रहा है। इससे नर्मदा के दोनों तटों पर रेत की बजाय अब कीचड़ है, नदी के अंदर से पोकलेंड मशीन के जरिए रेत निकालकर वही कार्य किया जा रहा है। शक्कर और शेढ़ नदी के हाल बुरे हैं। कभी इन नदियों के किनारे खरबूज-तरबूज की खेती लहलहाती थी, आज वहां उजड़ा चमन है। शक्कर अस्तित्व से जूझ रही है, वहीं शेढ़ को भी संकट का सामना करना पड़ रहा है।
ओंकारेश्वर से लेकर मोरटक्का तक नर्मदा नदी में कोई भी खदान रेत निकालने के लिए विभाग ने मंजूरी नहीं दी है। लेकिन ओंकारेश्वर और आसपास के क्षेत्र में नर्मदा की तलहटी से बालू रेत का अवैध खनन निर्बाध रूप से जारी है। राजस्व, वन और खनिज विभाग द्वारा रेत माफियापर कार्रवाई नहीं होने से यह व्यापार फल-फूल रहा है। कार्रवाई के नाम पर तीनों विभाग एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं। माइनिंग विभाग के अधिकारी महेंद्र पटेल का कहना है कि विभाग के पास जिले में मात्र दो अधिकारी हैं। दो अधिकारी कहां-कहां कार्रवाई करेंगे। खेड़ीघाट में मां रेवा समिति के मुकेश शुक्ला ने बताया कि नर्मदा नदी के अंदर से रेत निकालने के कारण जलीय जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। मशीनों द्वारा रेत निकाले जाने से प्रदूषण भी फैल रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि नर्मदा किनारे के ग्राम पंचायतों को रेत माफिया द्वारा मोटी रकम दी जाती है। क्षेत्र में ओंकारेश्वर, कोठी वन के अंतर्गत बैनपुरा, बिलौरा बुजुर्ग, मोरटक्का, खेड़ीघाट, कटार क्षेत्र में नर्मदा नदी से रेत का अवैध खनन किया जाता है। इसी तरह खरगोन जिले के कोठावा, नावघाटखेड़ी, मेहताखेड़ी, कटघड़ा, सेमला, टोकसर, पितनगर तथा मर्दाना क्षेत्र में नर्मदा नदी से रेत का खनन जारी है। इंदौर, सनावद, बड़वाह में एक ट्रक रेत की कीमत 15 से 20 हजार रुपए तक होती है। वहीं एक ट्रैक्टर रेत 4 हजार रुपए से भी अधिक में बिकता है।
115 करोड़ में 18 जिलों को कर दिया नीलाम
अवैध और वैध तरीके से रेत का खनन करने वाले खनिज माफिया करोड़ों में खेलता है, परन्तु राज्य सरकार को सालाना रेत के खनन से मात्र 115 करोड़ की राशि मिलती है, जबकि रेत के ठेके अब तीन साल नहीं, बल्कि दस साल के लिए आवंटित किए जाते हैं, लेकिन सरकार की मर्जी जिस पर हो जाए, उस खनन माफिया के प्रदेश में बल्ले-बल्ले हो जाती है। यह हम नहीं, बल्कि सरकार के आंकड़ेे बताते हैं। एक ही जिले में सैकड़ों हेक्टेयर रेत का उत्खनन करने की जिम्मेदारी निगम ने दस साल तक देकर माफिया के हौसले बढ़ा दिए हैं। प्रदेश के 18 जिलों में रेत खनन की 354 खदानें खनिज विकास निगम द्वारा संचालित की जाती है और रेत का मूल्य निगम द्वारा 280 रूपए प्रति घनमीटर तय कर रखा है, जबकि 106 रूपए रायल्टी का और 20 रूपए वेट के रूप में वसूले जाते हैं। इस तरह प्रति घनमीटर रेत की वसूली 406 रूपए होती है। वैसे निगम को रेत का बाजार में विक्रय करने से कर के रूप 62 करोड़ और रेत के व्यवसाय से 53 करोड़ कुल 115 करोड़ की आय होती है, जबकि दस सालों पर रेत का ठेका देने पर यह राशि एक हजार 150 करोड़ तक ही पहुंच पाती है, लेकिन खनिज माफिया इस दौरान वैध और अवैध तरीके से हजारों करोड़ की रेत निकाल लेते हैं। यदि हम एक ही जिले में आवंटित रेत की खदानों पर नजर दौड़ाए तो सरकार को पलीता लगाने में निगम के अफसर ही नहीं, बल्कि सरकार के आला अफसर भी पीछे नहीं है। यानी एक जिले से रेत खनन से सरकार को आय 5 से 50 करोड़ तक हो रही है। खासकर रेत के खनन से मिलने वाली रायल्टी की स्थिति देखे तो उज्जैन में वर्ष 2012-13 में 2 करोड़ 33 लाख, देवास में 5 करोड़ 71 लाख, मंदसौर में 3 करोड़ 94 लाख, नीमच में 40 करोड़, रतलाम में 3 करोड़ 10 लाख तथा शाजापुर में एक करोड़ 33 लाख रूपए ही मिल पा रही हैं।
कलेक्टर भी नहीं बढ़ा पाते राशि
प्रदेश के 33 जिलों में रेत की खदानें नीलामी के माध्यम से आवंटित की जाती है और इससे मात्र एक साल में 76 करोड़ की आय सरकार को होती है, जबकि रेत से जुड़ा खनिज माफिया 76 करोड़ की एवज में 7 हजार करोड़ की रेत वैध और अवैध तरीके से निकाल सरकार को हर साल हजारों करोड़ की चपत लगा रहा है।
मुफ्त के भाव दे दी रेत खदानें
खनिज विकास निगम ने 18 जिलों की खदानों की दस वर्ष के लिए नीलाम किया है। अकेले भिंड जिले की रेत खदानों के आंकड़ेे यह बताने को काफी हैं कि किस कदर प्रदेश में सरकार की निगरानी में खनन चल रहा है। भिंड जिले में डुबका में 13.510 हेक्टेयर, मटियावली में 47.570 हेक्टेयर, अजिता में 9.00 हेक्टेयर, हिलगवां में 23.580 हेक्टेयर, बहादुरपुरा में 10.000 हेक्टेयर, पढौरा में 10 हेक्टेयर, मेहदा में 10 हेक्टेयर, निवसाई में 57.860 हेक्टेयर, निवसाई में 47.540 हेक्टेयर, कौंध मडैयन में 43.390 हेक्टेयर, लारौल में 3.220 हेक्टेयर, रेंवजा में 14.248 हेक्टेयर, दहेमा में 61.480 हेक्टेयर, इंदुर्खी में 10.957 हेक्टेयर, मानगढ़ में 9.460 हेक्टेयर, बिरौना में 21.102 हेक्टेयर, अजनार क्रमांक-1 में 8 हेक्टेयर, अजनार क्रमांक-2 में 8.686 हेक्टेयर, अजनार क्रमांक-3 में 28.146 हेक्टेयर, बडेत्तर में 28.650 हेक्टेयर, चन्दावली में 5.975 हेक्टेयर, गिरवासा नवीन में 10 हेक्टेयर, गिरवासा पुरानी में 1.672 हेक्टेयर, लगदुआ में 2 हेक्टेयर, लिलवारी में 4 हेक्टेयर तथा धौर में 51.320 हेक्टेयर में रेत की खदानें पूर्व में ही दस वर्षो के लिए आवंटित की गई है। इसी तरह प्रदेश के अन्य 17 जिलों में भी 10 साल के लिए रेत की खदानों का आवंटन कर माफिया राज को बढ़ावा दिया गया है।

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