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भेड़ाघाट

Saturday, August 20, 2016

अब मेरे पैरों के निशां कैसे हैं!

इस बार गर्मियों में मैं जब अपने गांव (मझरिया, जिला बक्सर, बिहार)गया था तो गंगा मईया की टूटती सांसे, काई के अंदर से रिसता पानी, मुर्दों को नोचते कुत्ते और इन सब के बीच नाले से भी गंदे पानी में लोटे से नहाकर गंगा स्नान की पुण्यता पाने का उपक्रम करते लोगों को देखकर मन रो उठा। फिर सवाल उठा क्या यही वह गंगा मईया हैं, ढाई दशक पहले जिनकी निर्मल जल राशि में पांव डालने से पहले हम आचमन किया करते थे? जी, बिलकुल नहीं। आज गंगा दुनिया के दस सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल है। आज देश की पतित पावन इस मां स्वरूपा इस नदी की मलिनता देख देवता भी स्वर्ग में आंहे भर रहे होंगे। शायद गंगा मईया की भी यही स्थिति होगी और उनके मन में भी सवाल उठ रहा होगा कि.. ऐ सबा तू तो उधर से गुजरती होगी तू ही बता अब मेरे पैरों के निशां कैसे हैं लेकिन देर से ही सही अब गंगा मईया के सपूतों को उनकी यह दुर्दशा असहनीय हो गई है और उन्हें फिर से पावन करने का अभियान शुरू हो गया है। इसी कड़ी में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए आईआईटी कानपुर ने गंगा नदी के किनारे बसे शहर के पांच गांवों को गोद लिया है। यही नहीं आईआईटी कानपुर ने गंगा नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाए जाने के लिए गंगोत्री से गंगासागर तक बसे शहरों के सभी 13 शिक्षण संस्थानों को पांच पांच गांव गोद लेने की बात कही है। कानपुर के जिन पांच गांवों को आईआईटी ने गोद लिया है उनमें रमेल नगर, ख्योरा कटरी, प्रतापपुर, हरी हिंदपुर और कटरी लोधवा खेड़ा गांव शामिल है। यह सभी गांव कानपुर में गंगा नदी के किनारे बसे है। इन गांवों को आदर्श गांव बनाए जाने की योजना है। इसके तहत इन गांवों के पानी की जांच की जाएगी और वहां लोगों को साफ पानी पीने के लिए मिले इसके लिए प्रयास किए जाएंगे। यहां की नालियों में गंदगी युक्त पानी नहीं बहेगा बल्कि बारिश का पानी बहेगा। ऐसे शौचालय बनाए जाएंगे जिससे गंदगी बाहर न निकले। गांव का गंदा पानी गंगा नदी में न जायें इसके लिए प्रयास किए जाएंगे। निश्चित रूप से आईआईटी कानपुर का यह कदम अन्य संस्थानों, संगठनों और लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा। गंगा सिर्फ एक नदी का नाम ही नहीं, बल्कि यह जीवनदायिनी है। गंगा की लहरों ने न जाने कितनी सभ्यताओं व संस्कृतियों को बनते-बिगड़ते देखा। वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक के उत्थान-पतन की गवाह है गंगा। राजनीति, अर्थनीति, सामाजिक व्यवस्था से लेकर धर्म, आध्यात्म, पर्यटन, पर्यावरण तक सब इससे प्रभावित होते रहे हैं। एक ही गंगा के न जाने कितने रूप हैं। हर कोई उसे अपने-अपने नजरिए से विश्लेषित करता है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। अगर इन सबकी बात न भी करें तो गंगा हर भारतीय के रग-रग में रची-बसी है। इसलिए गंगा के अस्तित्व को बचाने के लिए केवल सरकार, कुछ संस्थानों या संगठनों को ही नहीं अपितु पूरे देश को सार्थक कदम उठाना पड़ेगा। क्योंकि गंगा नदी का न सिर्फ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है बल्कि देश की 40 फीसदी आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। 2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अत: गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है। दरअसल, विकास की अंध दौड़ में गंगा ही नहीं अन्य नदियां भी प्रदूषण की चपेट में हैं। इससे इनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। हरिद्वार से गंगा सागर तक की कहानी गंगा नदी में औद्योगिकी कचरे से जुड़ी है। गंगा नदी में 144 बड़े नाले गिरते हैं और पांच से 10 हजार छोटे नालों से गंदगी नदी में आती है। इसके साथ ही 1600 ग्राम पंचायत और 6000 गांव से निकलने वाली गंदगी भी स्थिति को गंभीर बनाते हैं। हालांकि केंद्र सरकार नेे गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए 'नमामि गंगेÓ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन शुरू कर रखा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए पर 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करनेकी प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दे दी और इसे 100 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना का रूप दिया। लेकिन उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी तक 2,071 किमी लंबी यात्रा करते हुए सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करने वाली गंगा नदी को बचाए रखने के लिए सामुहिक प्रयास की जरूरत है। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियां तो पाई ही जाती हैं मीठे पानी वाले दुर्लभ डालफिन भी पाए जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएं भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित जरूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है। क्योंकि हमने कभी गंगा के दूषित होते रूप को गंभीरता से नहीं लिया। जबकि हमारे जीवन में गंगा का क्या महत्व है हम भलीभांति जानते हैं। फारसी भाषा में कहे गए इस शेर में भारत के लिए गंगा के महत्व को रेखांकित किया गया है... ऐ आबे-रूदे-गंगा तू आबरू-ए-हिंद अस्त। तू जिन्दगी-ए-मास्त तू रूहे-मुल्के हिंद अस्त।। यानी ऐ गंगा का पानी! तू हिन्दुस्तान की इज्जत है। तू हमारी जिन्दगी तो है ही, भारत की आत्मा भी है। लोगों को मोक्ष दिलाने वाली गंगा का पानी प्रदूषण के कारण काला पड़ रहा है। गंगा में प्रदूषण का एक प्रमुख कारण इसके तट पर निवास करने वाले लोगों द्वारा नहाने, कपड़े धोने, सार्वजनिक शौच की तरह उपयोग करने की वजह है। अनगिनत टैनरीज, रसायन संयंत्र, कपड़ा मिलों, डिस्टिलरी, बूचडख़ानों और अस्पतालों का अपशिष्ट गंगा के प्रदूषण के स्तर को और बढ़ा रहा है। औद्योगिक अपशिष्टों का गंगा के प्रदूषण में बढ़ता योगदान प्रमुख चिन्ता का कारण है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगाजल को बेहद प्रदूषित किया है। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा का जल है। यह घोर चिन्तनीय है कि गंगाजल न पीने के योग्य रहा, न स्नान के योग्य और न ही सिंचाई के योग्य रहा है। गंगा की पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गंगा के जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी मात्रा में मिलने लगे हैं। गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने कई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं के तहत करोड़ों रुपए प्रदान किए गए हैं। लेकिन इतने खर्चे के बावजूद भी गंगा के पानी में प्रदूषण की मात्रा कम नहीं हुई। पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार जब तक गंदे नालों का पानी, औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक कचरा, सीवेज, घरेलू कूड़ा-करकट आदि गंगा में गिरते रहेंगे तब तक गंगा का साफ रहना मुश्किल है। ऐसे में आईआईटी कानपुर ने गंगा किनारे के गांवों को गोद लेकर इस नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने की योजना में जो कदम बढ़ाया है वह आगे मील का पत्थर साबित होगा। पतित पाविनी गंगा नदी के अस्तित्व को बचाने एवं प्रदूषण को समाप्त करने हेतु आम आदमी की जागरुकता एवं प्रयास अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। सरकार चाहे जो योजना बना ले जब तक आम जन-मानस की सहभागिता नहीं होगी तब तक इन योजनाओं की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहेगा। इसलिए हम सभी को गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान में सहभागी बनना पड़ेगा। क्योंकि शायर नजीर बनारसी साहब अपने एक शेर में कहते हंै... सोएंगेे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भर के, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू कर करके।

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