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भेड़ाघाट

Saturday, July 2, 2016

बॉक्साइट, तेंदूपत्ता और अफीम से पोषित हो रहा लाल आतंक

केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट से उड़े सरकार के होश
अफीम माफिया और नक्सलियों ने तैयार किया अपना नेटवर्क
मध्य प्रदेश के छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ सीमावर्ती इलाकों में नक्सली गतिविधियां फिर तेज हो गई हैं। केंद्र सरकार के खुफिया विभागों ने राज्य को रिपोर्ट भेजी है कि बॉक्साइट, तेंदूपत्ता और अफीम की वैकल्पिक अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है, जिसका सीधा लाभ नक्सली समूह अपनी गतिविधियां बढ़ाने और संगठन को मजबूत करने में कर रहे हैं। तेंदू पत्ता संग्रहण के दौरान ठेकेदारों से लेवी वसूलने के साथ ही नक्सलियों की नजर बॉक्साइट खदानों से अवैध वसूली पर भी है। खुफिया जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश के बालाघाट, मंडला, सतना, रीवा, कटनी, सीधी और अनूपपुर जैसे जिलों में पिछले कुछ वर्षों में नक्सली गतिविधियां बढ़ी हैं। काले कारोबार को बढ़ाने के लिए अफीम की खेती का सहारा भी नक्सली ले रहे हैं। यह सारी गतिविधियां मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिलों में भी तेजी पकड़ रही है।
विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। पिछले कुछ वर्षों तक शांत रहने के बाद एक बार फिर मप्र में लाल आतंक पैर पसारने लगा है। मप्र के बालाघाट जिले में पिछले एक साल से नक्सली अपने आप को मजबूत करने में लगे हुए थे लेकिन प्रदेश सरकार को इसकी भनक तक नहीं लगी। केंद्र के पास पहुंची खुफिया रिपोर्ट के बाद जब इसकी खबर मप्र पहुंची तो पुलिस के हाथ-पैर फुल गए। रिपोर्ट में बताया गया है कि जिस खनिज संपदा पर मप्र, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा नाज करते हैं वही आज इनके लिए अभिशाप बन गई है। खुफिया विभाग से मिली रिपोर्ट के अनुसार इन राज्यों की खनिज संपदा, वन उत्पाद और अफीम के वाले कारोबार से लाल आतंक यानी नक्सलवाद बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, म326892-woman-naxalप्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में एक नए किस्म का नक्सलवाद जन्म ले चुका है जो काली कमाई के कारोबार में जुट गया है। नक्सलियों का यह समूह मप्र के बॉक्साइट की खान वाले क्षेत्रों बालाघाट, मंडला, अनूपपुर, सतना, रीवा, कटनी और सीधी, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर और कोण्डागांव, झारखंड के लोहरदग्गा, गुमला और सुंदरगढ़ और ओडिशा के कालाहांडी में पिछले कुछ वर्षों में पनपा है। साथ ही मप्र और छत्तीसगढ़ के तेंदूपत्ता उत्पादन वाले क्षेत्रों में सक्रिय हैं। मप्र में बालाघाट, सीधी, सिंगरौली, मंडला, डिंडौरी, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया नक्सल प्रभावित जिले माने जाते हैं। कुछ साल पहले केंद्र और राज्य सरकार ने मान लिया कि प्रदेश में नक्सलवाद का प्रभाव नहीं है लेकिन खात्मे की कगार पर पहुंच चुके नक्सलवाद को तेंदूपत्ता के काले कारोबार से कमाई का ऐसा चस्का लगा कि वह मप्र के जंगलों से निकलकर छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड तक के जंगलों में तेंदूपत्ता पर लेवी वसूलने के साथ बॉक्साइट के काले कारोबार में लग गया है। नक्सली बॉक्साइट की खदानों में खनन कार्य करने वाली कंपनियों से न केवल लेवी वसूलते हैं बल्कि उनके काले कारोबार को संरक्षण प्रदान करते हैं। मप्र से सालाना 200 करोड़ की कमाई: पुलिस, वन और खनिज विभाग के साथ ही स्थानीय लोगों से बातचीत में यह तथ्य सामने आया कि मप्र के बालाघाट, मंडला, अनूपपुर, सतना, रीवा, कटनी और सीधी में स्थित बॉक्साइट की खदानों से नक्सलियों को हर साल करीब 200 करोड़ की लेवी और काली कमाई हो रही है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि डकैत प्रभावित रीवा, सतना, कटनी और सीधी में डकैतों का आतंक कम होते ही नक्सली अपनी गतिविधियां बढ़ाने लगे हैं। आलम यह है तेंदूपत्ता की तुड़वाई के सीजन नक्सली तो इन क्षेत्रों में डेरा डाल देते हैं। नक्सली गतिविधियों की जानकारी रखने वालों का कहना है कि बॉक्साइट और तेंदूपत्ता से होने वाली कमाई से नक्सली आधुनिक हथियारों को खरीद कर अपने नेटवर्क को मजबूत कर रहे हैं। आज मप्र में नक्सली बालाघाट, सीधी, सिंगरौली, मंडला, डिंडौरी, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया जिलों के अतिरिक्त जबलपुर, कटनी, सिवनी, छिंदवाड़ा और बैतूल में भी कई तरह के संगठन काम कर रहे हैं। मालवा-निमाड़ के आदिवासी जिले धार-बड़वानी में नक्सली से हटकर दूसरे तरह की गतिविधियां सामने आ चुकी हैं। गोपनीय तरीके से बड़ी योजना पर काम शुरू बालाघाट में वर्चस्व गंवा चुके नक्सली संगठन पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) ने दोबारा अपना दबदबा बनाने के लिए गोपनीय तरीके से एक बड़ी योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। पुलिस सूत्रों ने बताया कि नक्सलियों ने इस जिले को अपनी दमदार मौजूदगी वाले महाराष्ट्र के गढ़चिरौली डिविजन में शामिल कर अपने पुराने तीनों दलम मलाज खंड, परसवाड़ा और टांडा की गतिविधियां तेज कर दी है। नक्सलियों की योजना छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा से लगे बालाघाट जिले को अपना डिविजनल मुख्यालय बनाकर इसे पश्चिम बंगाल के लालगढ़ के अभेद्य दुर्ग की तरह बनाने की तैयारी है। बालाघाट में पिछले कुछ साल में नक्सलियों के केवल एक दलम मलाजखंड की सक्रियता देखी गई है। इसमें नक्सलियों की संख्या आमतौर पर 14 या 15 ही रही है। जबकि यहां पूर्व में सक्रिय रहे परसवाड़ा और टांडा दलम की यहां मौजूदगी न के बराबर ही बची थी। लेकिन पिछले कुछ माह से यहां नक्सलियों के चार-पांच ग्रुपों के मौजूद होने की खबरें पुलिस को मिल रही हैं। इन ग्रुपों ने लांजी और पझर थाना क्षेत्र के अलावा भरवेली, हट्टा, बैहर, किरनापुर और बालाघाट के ग्रामीण थाना क्षेत्रों में भी मूवमेंट बढ़ा दी है। बालाघाट के एसपी गौरव कुमार तिवारी कहते हैं कि नक्सलियों की गतिविधियों को पूरी तरह समाप्त करने की दिशा में पुलिस एक्शन प्लान भी चला रही हैं। जंगलों में सर्चिग हो रही है। बॉक्साइट खान पर नक्सलियों की कुंडली बॉक्साइट शुरू से ही नक्सलियों के आकर्षण का केंद्र रहा है। नक्सली अविभाजित मप्र के दौर से ही बॉक्साइट को अपनी कमाई का जरिया बनाते आ रहे हैं। देश का सबसे अच्छा बॉक्साइट भंडार छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में मौजूद है। केशकाल ब्लॉक के कुएमारी क्षेत्र को नक्सल प्रभावित क्षेत्र में शामिल किया गया है। यहां दिन के समय भी माओवादियों का आतंक रहता है। यहां 1996 में नक्सलियों ने उत्पात मचाते हुए अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई थी। 1980 से 1996 तक काम भी चला है, लेकिन 1996 के बाद से यह इलाका माओवादियों के कब्जे में है। नक्सलियों का प्रतिबंधित संगठन उत्तर बस्तर डिविजन और केशकाल एरिया कमेटी इस क्षेत्र में सक्रिय है। दोनों माओवादी संगठनों ने यहां लंबे समय से अपना अधिकार जमाए हुए है और इस क्षेत्र से जाना नहीं चाहते। ग्रामीणों को रोजगार दिलाने के उद्देश्य से कुदालवाही प्लांट को दोबारा शुरू करवाया जा रहा है। इसके लिए पुलिस जवान लगातार यहां सर्चिंग कर रहे हैं, लेकिन माओवादी इससे नाखुश होते हुए 8 जून को जिले का सबसे बड़ा आईईडी बम प्लांट किया था। जवानों की सक्रियता ने बम को ढूंढ़ निकाला गया था। इस इलाके में माओवादी गतिविधि व बम का मिलना इस बात की ओर इशारा करता है कि माओवादी यहां किसी भी तरह के घुसपैठ पसंद नहीं कर रहे। कोंडागांव एसपी संतोष सिंह के मुताबिक प्रदेश गठन से कई साल पहले 1980 के (पूर्व मध्य प्रदेश) खनिज विभाग ने केशकाल ब्लॉक के कुएमारी के कुदालवाही के दो स्थानों को प्राकृतिक बॉक्साइट भंडार क्षेत्र घोषित किया। 1980 में मध्य प्रदेश खनिज विभाग ने इसे इकबाल फारूकी को 74 प्रतिशत और 26 प्रतिशत खुद के मालिकाना हक पर लीज पर दे दिया। इस बॉक्साइट प्लांट के ऑफिस में तोड़-फोड़, गाडिय़ों में आगजनी के बाद प्लांट को बंद करवा दिया गया। माओवादियों के कब्जे वाले कुदालवाहीं, कुएमारी समेत घोड़ाझर, उपरचंदेली, बावलीपारा, नंदगट्टा आदि को मुक्त करवाने के लिए एसपी संतोष सिंह विशेष कार्य योजना चला रहे हैं। क्षेत्र में पुलिस का दबाव बढ़ते ही नक्सलियों ने मप्र का रूख करना शुरू कर दिया और बालाघाट को अपना सेंटर बनाने में जुट गए हैं। 50 लाख का इनामी नक्सली फैला रहा है दहशत मध्यप्रदेश के नक्सल प्रभावित जिले बालाघाट में नक्सलियों के एक समूह ने तेंदूपत्ता मजदूरी बढ़ाए जाने की मांग करते हुए बांस ढुलाई में लगे एक ट्रक को आग के हवाले कर दिया। बालाघाट के पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी ने बताया कि लॉजी से लगभग 45 किमी दूर छत्तीसगढ़ की सीमा के करीब धीरी मुरुम इलाके में 30 से 35 नक्सलियों के समूह ने इस वारदात को अंजाम दिया है। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि खैरागढ़ किसान मजदूर संगठन का डिविजनल कमांडेंट अशोक उर्फ पहाड़ सिंह भी इस वारदात में शामिल था। उस पर 50 लाख का इनाम है। नक्सलियों ने बांस ढुलाई के काम में लगे एक ट्रक के कर्मचारियों को वाहन छोड़कर अपने उपयोग का सामान लेकर भागने को कहा। इन्हीं कर्मचारियों ने लॉजी थाने पहुंचकर नक्सलियों के संबंध में जानकारी दी और कुछ परचे भी सौंपे। तिवारी ने बताया कि इन नक्सलियों का खैरागढ़ किसान मजदूर संगठन से नाता है। इन्होंने ट्रक के स्टाफ को जो परचे दिए हैं, उनमें तेंदूपत्ता तुड़ाई की मजदूरी बढ़ाने की मांग की गई है। बांस ढुलाई में लगे ट्रक को आग के हवाले करने के बाद नक्सली छत्तीसगढ़ की ओर भाग गए। बालाघाट जिले में पिछले एक पखवाड़े में नक्सलियों की गतिविधियों में अचानक तेजी आई है। इससे पहले नक्सलियों ने एक सरपंच के पति को मनरेगा की मजदूरी का जल्दी भुगतान करने की हिदायत दी थी। जंगलों में उतरी तीन राज्यों की पुलिस: बालाघाट जिले के जंगलों में पनाह लिए नक्सलियों का सफाया करने अब पुलिस जंगलों में उतर गई है। इधर, तीन राज्यों का ज्वाइंट ऑपरेशन भी शुरू कर दिया गया है। मप्र के अलावा छग और महाराष्ट्र राज्य की पुलिस जंगलों में सर्चिंग कर रही है। वहीं सीमावर्ती क्षेत्रों को सील कर थाना-चौकियों में तैनात अमले को अलर्ट कर दिया गया है। पांच ट्रकों को जलाने की नक्सली वारदात के बाद जहां पुलिस और ज्यादा अलर्ट हो गई है। वहीं नक्सलियों के चिह्नित स्थानों पर दबिश भी दे रही है। हालांकि, पुलिस को अभी सफलता नहीं मिल पाई है। एसपी तिवारी ने बताया कि 14 जून को वारदात करने वाले नक्सलियों की शिनाख्त हो गई है। मौके पर मौजूद ग्रामीणों को नक्सलियों के फोटो दिखाकर उनकी शिनाख्त कराई गई है। इसके आधार पर नामजद नक्सलियों के खिलाफ प्रकरण भी दर्ज किया गया है। नक्सलियों के हर दल में महिला सदस्य: जिले में पनाह लिए नक्सली अलग-अलग दलों में बंटे हुए हंै। वे वारदात को भी दलवार ही अंजाम दे रहे हैं। 14 जून को भी हुई वारदात इसका उदाहरण बनी हुई है। एसपी तिवारी के अनुसार 14 जून को भी नक्सली दो अलग-अलग दलों में बंटे हुए थे। इसमें एक दल में 15-20 नक्सली मौजूद थे। जबकि दूसरे दल में करीब 17 नक्सली थे। दोनों ही दलों में महिला नक्सली भी शामिल हैं। उधर, जिले में लगातार बढ़ रही नक्सली वारदात के बाद अब तीन राज्यों की पुलिस ज्वाइंट ऑपरेशन चला रही है। इसमें एमपी की सीमा में प्रदेश की पुलिस सर्चिंग कर रही है। वहीं छत्तीसगढ़ राज्य में वहां की पुलिस नक्सलियों की घेराबंदी कर रही है। इधर, महाराष्ट्र राज्य की भी पुलिस प्रदेश की सीमा से लगे क्षेत्र के जंगलों की खाक छान रही है। एसपी तिवारी के अनुसार तीनों ही राज्यों की पुलिस आपसी सामांजस्य स्थापित कर सर्चिंग कर रही है। ताकि किसी भी प्रकार से ऑपरेशन में गलतफहमी पैदा न हो। एसपी ने संभावना जताई है कि शीघ्र ही पुलिस को बड़ी सफलता मिल सकती है। तेंदूपते से हर साल करोड़ों की कमाई: मप्र में तेंदूपते की तुड़ाई शुरू होते ही नक्सली वन क्षेत्र में सक्रिय हो जाते हैं और समितियों और ठेकेदारों से करोड़ों रुपए की लेवी बटोर ले जाते हैं। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार 94,668 वर्ग किलोमीटर में फैले प्रदेश के वन क्षेत्र में हर साल अच्छी गुणवता वाले करीब 35 लाख बोरा तेंदूपत्ता उत्पादित होता है। लेकिन पिछले कुछ साल से सरकारी खाते में मात्र 16 लाख बोरा ही पहुंच पा रहा है। 19 लाख बोरा तेंदूपता यानी 237.50 करोड़ रुपए का हरा सोना कहां जा रहा है किसी को नहीं मालुम। अगर अंतराष्ट्रीय मानक से देखें तो 760 करोड़ रुपए होता है। आलम यह है कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद न तो प्रदेश के राजस्व में वृद्धि हो पा रही है और न ही तेंदूपत्ता मजदूरों की माली हालत सुधर पा रही है। जबकि सरकार हर साल करोड़ों रुपए का बोनस भी बांट रही है। दरअसल, सफेदपोश, माफिया, ठेकेदारों के गठबंधन की अवैध कमाई में से नक्सली हर साल लेवी वसूलने जंगलों में उतरते हैं। नक्सलवाद के लिए संजीवनी बना अफीम मध्यप्रदेश का मालवांचल हमेशा से सिमी का गढ़ रहा है। भले ही पुलिस दावे करे कि मालवांचल सहित पूरे प्रदेश में सिमी के गढ़ को नेस्तानाबूत कर दिया गया है, लेकिन राख में आग अभी भी सुलग रही है। खूफिया सूत्रों की माने तो पुलिस के तेज होते पहरे के बीच सिमी कार्यकर्ताओं ने नक्सलियों से हाथ मिला लिया है और उन्हें आर्थिक सहायता पहुंचा रहे हैं। इसमें सिमी का साथ दे रहे हैं प्रदेश में अफीम की अवैध खेती करने वाला माफिया। मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि भारत में अफीम की खेती नक्सलवाद के लिए आर्थिक आधार का प्रमुख स्रोत हो गया है कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में अफीम की खेती के कारोबार के जरिए नक्सली अपने लिए धन जुटा रहे हैं। भारत में वैसे तो अफीम की खेती तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में की जाती है। लेकिन अभी भी सबसे अधिक अफीम का उत्पादन मध्यप्रदेश के दो जिलों नीमच और मंदसौर में होता है। हालांकि अफीम की खेती करने वालों पर पुलिस की नजर रहती है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि अपनी लचर प्रणाली और सांठ-गांठ के कारण वह अवैध खेती पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। जिसके कारण यहां हो रही अफीम की अवैध खेती की कमाई नक्सलियों को पहुंचाई जा रही है। गैरकानूनी तरीके से अफीम की खेती मध्यप्रदेश और राजस्थान के अलावा कहीं और अफीम की खेती करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। किंतु अब उत्तर प्रदेश में भी इसकी खेती होने लगी है। हाल ही में इस श्रेणी में बिहार और झारखंड का नाम भी शामिल हो गया है। दरअसल, बिहार और झारखंड के कुछ जिलों में गैरकानूनी तरीके से अफीम की खेती की जा रही है। अफीम की खेती के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु ठंड का मौसम होता है। इसके अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी का शुष्क होना जरूरी माना जाता है। इसी कारण पहले इसकी खेती सिर्फ मध्य प्रदेश और राजस्थान में ही होती थी। हालांकि कुछ सालों से अफीम की खेती उत्तर प्रदेश के गंगा से सटे हुए इलाकों में होने लगी है, पर मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुकाबले यहां फसल की गुणवत्ता एवं उत्पादकता अच्छी नहीं होती है। अफीम की खेती पठारों और पहाड़ों पर भी हो सकती है। अगर पठारों और पहाड़ों पर उपलब्ध मिट्टी की उर्वरा-शक्ति अच्छी होगी तो अफीम का उत्पादन भी वहां अच्छा होगा। इस तथ्य को बिहार और झारखंड में कार्यरत नक्सलियों ने बहुत बढिय़ा से पकड़ा है। वर्तमान में बिहार के औरंगाबाद, नवादा, गया और जमुई में और झारखंड के चतरा तथा पलामू जिले में अफीम की खेती चोरी-छुपे तरीके से की जा रही है। इन जिलों को रेड जोन की संज्ञा दी गई है। ऐसा नहीं है कि सरकार इस सच्चाई से वाकिफ नहीं है। पुलिस और प्रशासन के ठीक नाक के नीचे निडरता से नक्सली किसानों के माध्यम से इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं। प्रतिवर्ष इस रेड जोन से 70 करोड़ राजस्व की उगाही नक्सली कर रहे हैं। मप्र के अफीम से उड़ता पंजाब चाहे आतंकवाद हो या नक्सलवाद, उनके भरण-पोषण का एक बड़ा आधार अफीम का अवैध धंधा है। अब नशीले पदार्थों की तस्करी आम आपराधिक या तस्कर गिरोहों के हाथ में नहीं रही। नक्सलियों और आतंकवादी संगठनों ने इस पर कब्जा कर लिया है। इनके तार अफगानिस्तान और दूसरे अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया से जुड़े हैं। इनके माध्यम से हेरोइन, मॉर्फिन आदि मुंबई के रास्ते अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचता है। लेकिन मप्र के अफीम का दुष्प्रभाव अगर सबसे अधिक किसी पर पड़ा है तो वह है- पंजाब। मप्र से पंजाब में लगातार स्मैक, हेरोइन, चरस व अफीम पहुंच रहा है और वहां की युवा पीढ़ी को नशे से खोखला कर रहा है। पंजाब सरकार कई माह पहले ही ग्वालियर स्थित नारकोटिक्स कमिश्नर को पत्र लिखकर अफीम की पैदावार कम करने का आग्रह कर चुकी है। पंजाब में स्मैक, हेरोइन, चरस व अफीम के नशे ने हजारों परिवारों को बर्बाद कर दिया है। ऐसे में पंजाब सरकार अफीम की पैदावार घटाने पर दबाव बना रही है तो दवा कंपनियां इसकी पैदावार बढ़ाने पर। पंजाब के पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोरा कहते हैं कि अफीम और नशे की समस्या तो है। हमने इसके लिए रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड्स पर चौकसी बढ़ाने को कहा है। वहीं डायरेक्टर स्टेट नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो आईजी ईश्वर सिंह कहते हैं कि विभाग ने मप्र के नारकोटिक विभाग को पत्र लिखा है। वहां की सरकार क्या कदम उठा रही है, हमें नहीं मालूम। गत वर्ष नारकोटिक्स कमिश्नर मुख्यालय ग्वालियर ने मध्यप्रदेश के मंदसौर व रतलाम सहित राजस्थान के कोटा व उत्तर प्रदेश के लखनऊ को कुल 3000 क्विंटल अफीम का उत्पादन लक्ष्य रखा था। किसानों से ये अफीम 900 से 3500 रुपए के बीच खरीदी गई। इसे दवा कंपनियों में सप्लाई कर दिया गया, लेकिन समस्या यहीं से शुरू हो गई। कई किसानों ने तस्करों से साठगांठ कर 10 हजार रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से अफीम बेच दी। यहां से ये अफीम ड्रग लॉर्ड या ड्रग माफिया के पास पहुंच गई। वहां इसे स्मैक व हेरोइन में प्रोसेस कर 25 लाख से एक करोड़ रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से सप्लाई किया जाता है। एजेंट इसे कॉलेज, स्कूलों व युवाओं के क्लब आदि में पुडिय़ा बनाकर सप्लाई करते हैं। इस धंधे में एक रुपए का माल एक लाख का फायदा देता है, इसलिए मृत्युदंड तक के प्रावधान के बाद भी इसका कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है। 12,500 करोड़ का अवैध धंधा… मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश के कुछ जिलों में ही अफीम की खेती होती है। वह भी केंद्र सरकार की अनुमति से। लेकिन पंजाब जैसे जो भी राज्य नशीले पदार्थों की तस्करी की समस्या से जूझ रहे हैं, वह चाहते हैं कि अफीम की खेती को कम किया जाए। वहीं दवा कंपनियां इनके उत्पादन को बढ़ाने की मांग कर रही हैं। वैध के साथ-साथ अवैध धंधा भी फल-फूल रहा है। एक आंकड़े के अनुसार यह करीब 12.50 हजार करोड़ रुपए तक का है। कई तस्करों के नक्सली गिरोहों से जुडऩे का अंदेशा पुलिस लगा रही है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि पिछले कुछ वर्षों में सौ से ज्यादा तस्कर फरार हो चुके हैं। उनका कोई निशान नहीं मिल रहा है। इससे खुफिया एजेंसियों को शक है कि यह लोग नक्सली ग्रुप्स में शामिल होकर अवैध गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। इतनी जानकारी होने के बाद भी नारकोटिक्स विभाग कुछ नहीं कर पा रहा है। नारकोटिक्स कमिश्नर मुख्यालय ग्वालियर में पदस्थ एक अफसर के अनुसार इस धंधे पर लगाम लगाना आसान नहीं हैं। वह कहते हैं कि मप्र में अफीम, स्मैक, हेरोइन व अन्य नशीले पदार्थों का अवैध कारोबार करीब 12,500 करोड़ का है। इस कारोबार को माफिया नक्सलियों से सांठ-गांठ कर रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है की जंगलों के रास्ते माल को एक-जगह से दूसरी जगह आसानी से पहुंचाया जा सकता है। उक्त अधिकारी कहते हैं कि गत एक वर्ष में विभाग ने 100 करोड़ रुपए से अधिक की स्मैक, हेरोइन व अन्य नशीले पदार्थ जब्त किए हैं लेकिन मार्केट में सप्लाई होने वाले माल का एक प्रतिशत भी नहीं हैं। दुनिया के अलग-अलग देशों में अफीम से तैयार की जाने वाली स्मैक, हेरोइन, ब्राउन शुगर जैसे ड्रग्स बेचने या उनका इस्तेमाल करने पर सजा-ए-मौत तक का प्रावधान है। इसमें सबसे ज्यादा कठोर कानून अरब देशों में है, जहां सीधे ही तस्करों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। इसके अलावा नॉर्थ कोरिया, फिलीपींस, मलेशिया जैसे देशों में भी यही कानून है। चीन, वियतनाम, थाईलैंड सरीखे देशों में तस्करों व ड्रग एडिक्ट को रीहेबिलिटेशन सेंटर या जेल में लंबे समय के लिए डाल दिया जाता है। भारत में ड्रग्स के केस में एनडीपीएस एक्ट 1985 के तहत अलग-अलग सजा के प्रावधान हैं। इसमें धारा 15 के तहत एक साल, धारा 24 के तहत 10 की सजा व एक लाख से दो लाख रुपए तक का जुर्माना और धारा 31ए के तहत मृत्युदंड तक का प्रावधान है। कहां गायब हो गए 109 अफीम तस्कर: नीमच और मंदसौर हमेशा से अफीम व डोडा-चूरा की तस्करी का अड्डा रहे हैं। इन दोनों जिलों में देश के विभिन्न राज्यों के तस्कर आते रहते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से 109 तस्कर फरार हैं। आशंका जताई जा रही है कि कहीं ये तस्कर नक्सलियों के ग्रुप में तो शामिल नहीं हो गए हैं। इनमें से नीमच जिले के थानों के रिकॉर्ड में करीब 79 तस्कर फरार है। इसमें राजस्थान के 36, हरियाणा के 5, पंजाब के 4 और यूपी-महाराष्ट्र का एक-एक तस्कर फरार है। वहीं मंदसौर के थानों में 30 तस्कर फरार हैं। नीमच एसपी मनोज सिंह ने कुख्यात तस्कर कमल राणा के नेटवर्क के रिकार्ड को खंगालने के साथ ही अब जिले के थानों क्षेत्रों से फरार तस्करों की जन्मकुंडली भी निकालना शुरू कर दी है। 2003 से लेकर मई 2016 तक रिकार्ड निकाला गया है। पुलिस रिकार्ड के अनुसार जिले के नीमच कैंट थाने में 19, नीमच सिटी में 7, बघाना में 7, जीरन में 8, जावद में 18, रतनगढ़ में 6, सिंगोली में 3, मनासा में 8 और कुकड़ेश्वर थाने में 3 तस्कर फरार है। जिले के सभी थानों से 79 तस्कर फरार है और इसमें कुख्यात तस्कर कमल राणा भी शामिल है। तस्करों पर एनडीपीएस एक्ट की धाराओं में मुकदमे दर्ज है। कोई 2003 से फरार चल रहा है तो कोई 2005 से और कोई 2016 में फरार हुआ है। एसपी मनोजसिंह ने बताया नीमच जिले के थानों से करीब 79 तस्कर फरार है और उन्हें पकडऩे के लिए योजना बनाई जा रही है। हमारा प्रयास है तस्करों को गिरफ्तार किया जाए। तीन हजार टन प्रतिवर्ष है खेती अफीम की खेती के लिए सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स द्वारा किसानों को लाइसेंस दिए जाते हैं। वैधानिक रूप से सिर्फ तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश में ही अफीम की खेती के लिए 40 हजार से अधिक किसानों को लाइसेंस दिए गए हैं। वर्तमान में मध्यप्रदेश के मंदसौर व नीमच, राजस्थान के कोटा, झालावाड़, चित्तौडग़ढ़, भीलवाड़ा व प्रतापगढ़ और उत्तर प्रदेश के लखनऊ व बाराबंकी में साढ़े पांच हजार हेक्टेयर में अफीम की खेती का रकवा तय किया गया है। वर्ष 2015-16 में मध्यप्रदेश व राजस्थान में 58 किलो और उत्तर प्रदेश में 52 किलो प्रति हेक्टेयर की उपज हुई थी। देश में प्रतिवर्ष तीन हजार टन अफीम की खेती की जाती है। जेल के अंदर से गैंग चला रहा तस्कर अफीम की तस्करी में लगे तस्करों का नेटवर्क कितना मजबूत है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुख्यात तस्कर बंशी गुर्जर पिछले कई महीनों से नीमच जेल से ही अपनी गैंग चला रहा था, वह भी जेल के फोन से। बंशी ने जेल के फोन से अपने साथियों को 93 कॉल किए। जेल में एक कैदी 8 कॉल कर सकता है। बंशी ने जेल प्रशासन की मिलीभगत से दूसरे कैदियों के कोटे के कॉल भी कर लिए। यह खुलासा हुआ है जेल प्रशासन के लैंडलाइन फोन नंबर के रिकॉर्ड की जांच में। पुलिस की पूछताछ में तस्कर बंशी गुर्जर ने भी यह बात स्वीकारी है। दरअसल, जावद पुलिस ने 22 मार्च को नयागांव में कोटड़ी रोड स्थित रेलवे अंडर ब्रिज के अंदर बैठकर नयागांव टोल बैरियर को लूट की योजना बना रहे अपराधियों को पकड़ा था। पूछताछ में आरोपियों ने बंशी गुर्जर को मास्टर माइंड बताया था। इस मामले में पूछताछ के लिए रतलाम जेल में बंद तस्कर गुर्जर को जावद पुलिस दो दिन के पीआर पर लेकर नीमच आई थी। पूछताछ में बंशी ने बताया वह जेल के फोन से कॉल कर अपने साथियों के संपर्क में रहता था। बंशी और राणा का कनेक्शन : पुलिस का कहना है कमल राणा के गुर्गों ने जेल में बंशी गुर्जर से मिलने के लिए कई बार संपर्क किया। बंशी ने पूछताछ में यह बात स्वीकार की है। पुलिस पता लगा रही है कि आखिर बंशी और राणा का कनेक्शन क्यों बना है। पुलिस का मानना है तस्कर गुर्जर जब जेल में था उस समय इसका भाई समरथ इससे मिलने आता था। इसकी क्या बात होती होती थी पुलिस के पास रिकॉर्ड नहीं है लेकिन पुलिस को आशंका है कि उसका भाई भी योजना में शामिल हो सकता है। पुलिस पूछताछ में बंशी गुर्जर ने कुछ पुलिस अधिकारियों, जवानों और पत्रकारों के नाम भी लिए हैं। हालांकि, पुलिस ने इस संबंध में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया है। फेक एनकाउंटर के बाद हुआ था गिरफ्तार: गौरतलब है कि 8 फरवरी 2009 को पुलिस ने कुख्यात तस्कर बंशी गुर्जर को एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया था। जबकि 20 दिसंबर 2012 को वह जिंदा पकड़ा गया था। पूर्व में मादक पदार्थ की तस्करी में फरार आरोपी घनश्याम धाकड़ निवासी मोतीपुरा (राजस्थान) भी जिंदा पकड़ा गया था। उसे भी सितंबर 2011 में एक सड़क हादसे में पुलिस ने मृत घोषित कर दिया था। घनश्याम ने ही बंशी गुर्जर के जिंदा होने का राज खोला था। दरअसल, यह पूरा मामला भ्रष्ट पुलिस प्रशासन और अफीम माफिया की मिलीभगत की पोल खोलता है। दरअसल, पुलिस मुख्यालय की कार्मिक शाखा के आईजी वेदप्रकाश शर्मा जब नीमच एसपी थे उस वक्त उन्होंने कुख्यात तस्कर बंशीलाल गुर्जर का 8 फरवरी 2009 को एनकाउंटर किया था जबकि आश्चर्यजनक बात तो यह है कि जिस बंशीलाल को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराना बताया था वह आज रतलाम जेल (1 अप्रैल 2016 को नीमच के कनावटी जेल से शिफ्ट किया गया) में बंद है। वर्तमान में इस फर्जी एनकाउंटर मामले की जांच सीबीआई कर रही है। वर्ष 2009 से अब तक बंशी गुर्जर के नाम पर किस व्यक्ति को मार गिराया गया यह प्रश्न नीमच पुलिस समेत सभी पुलिस अफसरों के लिए पहेली बना हुआ है। इतना ही नहीं इस प्रकरण की न्यायिक जांच हुई सीआईडी ने भी जांच की लेकिन नतीजा सिफर रहा। दरअसल, यह पूरा मामला पुलिस और तस्करों के गठजोड़ की कहानी बताता है। कुख्यात अपराधी बंशी गुर्जर, घनश्याम धाकड़ और शराब कारोबारी पप्पू गुर्जर, चित्तौडगढ़, नीमच में तस्करी के साथ अन्य अपराधों में लिप्त थे। बताया जाता है कि पुलिस से पीछा छुड़ाने के लिए बंशी गुर्जर ने 8 फरवरी 2009 का पहले अपने आपको पुलिस एनकाउंटर में मरवाया। एनकाउंटर में मृत घोषित होने के बाद बंशी गुर्जर को अपने ऊपर लदे एक दर्जन अपराधों से मुक्ति मिल गई। अब वह नए ढंग से जिंदगी जीने लगा। इस दौरान खनन ठेके लेने के साथ मध्यप्रदेश-राजस्थान में तस्करी के जरिए करोड़ों रुपए कमाए। बंशी की खुशनुमा जिंदगी देख उसका सहयोगी छोटी सादड़ी (चित्तौडगढ़़) निवासी घनश्याम धाकड़ भी अपने अपराधों से मुक्ति चाहता था। यह बात उसने बंशी को बताई, योजना बनी और फिर एक हत्या हुई। मृतक की जेब में घनश्याम से संबंधित दस्तावेज मिले। जिसे देखकर पुलिस ने घनश्याम को भी मृत घोषित कर दिया। यह घटना 10 मार्च 2011 को हुई थी। कुछ माह बाद पुलिस को एक मुखबिर से पता चला था कि घनश्याम जिंदा है तो खोजबीन शुरू हुई और 25 सितंबर 2012 को जावद से घनश्याम को गिरफ्तार कर लिया गया। तब पूछताछ के दौरान पता चला था कि बंशी जिंदा है और उसने ही एक युवक की हत्या कर उसे हादसे में मृत दर्शाया। घनश्याम से मिली इंफर्मेशन के बाद तत्कालीन आईजी उपेंद्र जैन ने एक टीम गठित कर जाल बिछाया और उसे गिरफ्तार कर लिया। बंशी गुर्जर की गिरफ्तारी के बाद रिमांड पर आते ही मामले की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं। सीबीआई ने अब तक नहीं सौंपी जांच रिपोर्ट न्यायिक जांच-तत्कालीन नीमच कलेक्टर संजय गोयल ने मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए थे। यह जिम्मा तत्कालीन एडीएम सुबोध रेगे को सौंपा गया, लेकिन वे घटनास्थल पर एक बार भी नहीं पहुंचे और जांच रिपोर्ट सौंप दी गई। इसमें दावा किया गया कि बंशी गुर्जर का ही एनकाउंटर हुआ है। हालांकि, पुलिस ने बंशी गुर्जर को जिंदा पकडऩे के बाद इस मामले को दबाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। इसी बीच सामाजिक कार्यकर्ता मुलचंद खिची ने मप्र हाईकोर्ट में याचिका लगा दी। तब कोर्ट ने 2013 में इस मामले की सीबीआई जांच करवाने के आदेश दिए। सीबीआई को छह महीने में जांच करने को कहा गया था, लेकिन अब तक उसने अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है। ऐसे में इस पूरी जांच प्रक्रिया पर ही सवाल उठने लगे हैं। नक्सलियों की सरकार को चेतावनी नक्सलियों ने लांजी के माताघाट और धीरी मुरूम के बीच जंगल में बांस से भरे पांच ट्रकों को आग लगाने के बाद पर्चे भी फेंके थे। इन पर्चों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इशारे पर एसपी गौरव तिवारी द्वारा माओवादी समर्थक के नाम पर बेगुनाह आदिवासियों को झूठे प्रकरण में गिरफ्तार करने का आरोप लगाया गया है। पर्चे में कहा गया है कि माओवादी आंदोलन जल-जंगल-जमीन पर स्थानीय जनता के संपूर्ण अधिकार की बात करता है। गरीबी और आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, क्षेत्रीय असमानता का उन्मूलन कर समाज में समानता स्थापित करना चाहता है। पुलिस, सरकारी, वन विभाग के अधिकारी, ठेकेदारों के अन्याय, अत्याचार से पीडि़त जनता इस उत्पीडऩ के खिलाफ संगठित हो चली है। इस आंदोलन को बालाघाट जिले के सैकड़ों गांवों से मिल रहे जन समर्थन से पुलिस न सिर्फ खौफ खा रही है बल्कि बुरी तरह बौखला गई है। इसी बौखलाहट में एसपी ने पर्चा जारी किया है। इस नक्सली पर्चे में पुलिस द्वारा जारी पर्चे का हवाला देते हुए कहा गया है कि एसपी ने लिखा है कि अगर नक्सली आत्मसमर्पण करते हैं तो एनकांउटर तो दूर कोई झूठा अपराध भी पंजीबद्ध नहीं किया जाएगा और न ही मारपीट की जाएगी। इस वाक्यांश का सीधा मतलब है यह निकलता है कि दबे स्वर में ही सहीं पुलिस यह स्वीकार कर रही है कि वह झूठा एनकाउंटर करती है। झूठा अपराध पंजीबद्ध कर निर्दोषों को सालो साल जेल में सड़ाती है। बेकसूर लोगों को बेरहमी से पिटती है। नक्सली पर्चे में कहा गया है कि 16 मई 2016 को जागला गांव के 3 बेकसूर ग्रामीण घनश्याम मरकाम, सावनीबाई मरकाम व मंशाराम धुर्वे की गिरफ्तारी और थाने में की गई मारपीट, उन पर पंजीबद्ध किए गये झूठे केस न केवल पुलिस के इस पर्चे में किए गए झूठे दावे और आश्वासनों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करते हैं, बल्कि पुलिस की कथनी और करनी में क्या अंतर है इसका जीता जागता सबूत पेश करता है। इन आदिवासियों का कसूर इतना ही है कि वे जागला पहाड़ी को खोदे जाने के विरोध में थे। वे अपने गांव को विस्थापित होने से बचा रहे थे। नक्सलियों ने कहा है कि तिवारी जी ने पर्चे में माओवादियों को विकास विरोधी बताया और इसके लिए उन्होंने बांस ट्रक जलाने का उदाहरण पेश करते हुए लिखा कि बाजार में बांस नहीं बिकने से मजदूरों को तनख्वाह का भुगतान नहीं हो पा रहा है। तिवारी, आप और आपके आला अधिकारी बौद्धिक रूप से दुर्बल मालूम पड़ते हैं। क्या आप इतना भी नहीं जानते कि पासिंग हो चुकी बांस की ही ढ़ुलाई होती है और एक बार पासिंग हो जाने पर वह जले या सड़े या बाजार में न भी बिके, उससे मजदूर के भुगतान पर कोई असर नहीं होता। यहां के मजदूरों को उनके मेहनताने से मतलब है, आपके वन विभाग के बांस की बिक्री या खरीदी से नहीं। हम तो इस उसूल के पक्षधर हैं कि मजदूर को पसीना सूखने से पहले ही उसका मेहनताना मिले जो कि उसका हक है। नक्सली पर्चे में कहा गया है कि क्या माओवादी आंदोलन से यह श्रेय कोई छीन सकता है कि उसने आदिवासियों और दलितों के उत्थान और विकास की बात को आज देश के सरकारों के एजेंडे में ला खड़ा किया है। 14 जून को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लांजी के कारंजा में डिजिटल पंचायत के शुभारंभ कार्यक्रम में शामिल होने आये थे। जब सीएम का कार्यक्रम चल रहा था उसी दौरान लांजी के माताघाट और धीरी मुरूम के जंगल में 25 से 30 सशस्त्र नक्सलियों ने एक के बाद एक बांस से भरे पांच ट्रकों को आग के हवाले कर दिया। इनमें से 3 ट्रक झनकार किरनापुरे के और 2 ट्रक सरकारी थे। इतना ही नहीं नक्सलियों ने वन कर्मी गुलाब सिंह उइके के साथ बुरी तरह मारपीट भी की जिससे उसके कान का पर्दा फट गया। उइके से चालान आदि भी छीन ले गए थे।

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