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भेड़ाघाट

Saturday, July 2, 2016

धन कुबेरों की काली कमाई का पैतृक गांवों में निवेश

जांच एजेंसियों के राडार पर 2200 अधिकारी
मप्र के 51 आईएएस को मिली क्लीन चिट
भोपाल। मप्र के 109 आईएएस अफसरों सहित देशभर के 2200 अधिकारी एक बार फिर पीएमओ और डीओपीटी के निशाने पर हैं। भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का वादा कर सत्ता पर काबिज हुए नरेंद्र मोदी ने अब ब्यूरोक्रेसी को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की ओर कदम बढ़ा दिए है। इसके तहत धन कुबेर नौकरशाहों के पैतृक गांवों पर भी नजर रखने को कहा गया है जहां करोड़ों रूपए के निवेश के संकेत मिले हैं। पीएमओ के एक अधिकारी के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से सभी राज्यों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों में काम कर रहे अफसरों के कामकाज की समीक्षा कर रिपोर्ट देने को कहा है। पीएमओ ने सीबीआई से ऐसे अफसरों को रडार पर लेने को कहा है जिनके कामकाज का प्रदर्शन संतोषप्रद न होने के साथ संदिग्ध भी नजर आ रहा है। उल्लेखनीय है कि विजय माल्या के विदेश भाग जाने के लिए केन्द्र सरकार के ढुलमुल रवैये और अधिकारियों की मिलीभगत के आरोंपों से सकते में आई केन्द्र सरकार ने सभी शीर्ष अधिकारियों के कामकाज पर पैनी नजर रखने के निर्देश सीबीआई को दिए है। कैबिनेट सचिव प्रदीप कुमार सिन्हा ने सभी मंत्रालयों से अधिकारियों के रोटेशन करने की सलाह भी दी है। साथ ही राज्यों के भ्रष्ट अधिकारियों की समीक्षा करने को कहा है। गौरतलब है कि पिछले एक वर्ष में सीबीआई ने सीनियर ब्यूरोक्रेट्स, सरकारी कंपनियों के अधिकारियों, रक्षाकर्मियों और बैक अधिकारियों सहित इस तरह के 101 अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर चुकी है। यही नहीं सीबीआई ने पिछले वर्ष 1044 चार्जशीट भी दाखिल की है, जो पिछले पांच वर्ष में सबसे अधिक है। अरबों के आसामी हैं मप्र के नौकरशाह भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति के मामलों में सीबीआई व आयकर विभाग की चपेट में आए मप्र के आला अफसरों की लंबी फेहरिश्त है। कई अफसरों के खिलाफ तो केन्द्र एवं राज्य सरकार की जांच एजेंसियों के अलावा प्रवर्तन निदेशालय में भी छानबीन चल रही है। वहीं आयकर विभाग अरबों रुपए की काली कमाई पर टैक्स वसूली की कार्रवाई कर रहा है। प्रदेश के अनेक अफसर ऐसे भी हैं जिन पर केन्द्र और राज्य की जांच एजेंसियों की नजर बनी हुई है, ये वे अफसर हैं जिन्होंने आय से अधिक संपत्ति जोड़ ली है। साथ ही वे लगातार ऐसी पोस्टिंग पर रहे हैं जिसे आम बोलचाल की भाषा में मलाईदार पोस्टिंग कहा जाता है। मप्र कैडर के ऐसे 160 आईएएस केंद्र सरकार के निशाने पर थे, लेकिन करीब आधा सैकड़ा अफसरों को क्लीन चिट दे दी गई है। अभी भी 109 आईएएस पीएमओ और डीओपीटी के निशाने पर है। डीओपीटी विभिन्न स्रोतों से इनकी आय और नामी-बेनामी संपत्ति की जानकारी जुटा रहा है। अगर आयकर विभाग के सूत्रों की माने तो पिछले एक दशक में प्रदेश के नौकरशाहों ने ही करीब 27,000 करोड़ रुपए की काली कमाई को निवेश किया है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में पिछले एक दशक में आईएएस अफसरों सहित कई अन्य सरकारी मुलाजिमों के ठिकानों पर आयकर विभाग के छापों में अब तक करीब 945 करोड़ की बेनामी संपत्ति का पता चला है, जबकि कई हजार करोड़ की संपति आज भी जांच एजेंसियों के राडार से बाहर है । प्रशासनिक पारदर्शिता और नियम कायदों से कामकाज का ढोल पीटने वाली सरकार की नाक के नीचे नौकरशाह किस तरह सरकारी योजनाओं को पलीता लगा रहे हैं, ये छापे इसका खुलासा कर रहे हैं। आयकर विभाग, लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू को मिली शिकायतों के अनुसार प्रदेश में पिछले एक दशक में जितने संस्थान तेजी से खुले या बढ़े हैं, उनमें नौकरशाहों की अवैध कमाई लगी हुई है। जांच के दायरे में मप्र के नौकरशाह आयकर विभाग के शिकंजे में अब तक प्रदेश के अनेक आला अफसर आ चुके हैं। विभाग का अनुमान है कि इनके पास अरबों रुपए की संपत्ति पाई गई जो कि आय से कई गुना अधिक है। भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी कर्मचारी और अधिकारी काली कमाई छिपाने में माहिर हैं। भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) भी इस कमाई को उजागर करने में खास कामयाब नहीं हो पाई। यही कारण है कि रंगे हाथ रिश्वत लेने व पद के दुरुपयोग के कई मामले दर्ज करने वाली सीबीआई अधिक सम्पत्ति के मामले तलाशने में कमजोर रही। एक वर्ष में ऐसे दो दर्जन मामले ही सामने आ सके हैं। इसके विपरीत जगजाहिर है कि भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र में किस कदर छाया हुआ है। आय से अधिक स पत्ति का मामला दर्ज करने से पहले एसीबी स बंधित अधिकारी की सम्पत्ति की जानकारी जुटाती है। यह भी जुटाया जाता है कि सम्पत्ति कब और किसके नाम से खरीदी गई। इसके बाद उसके वेतन से तुलना की जाती है। एसीबी में वर्ष 2014 में दर्ज 460 मामलों में से इनकी संख्या 26 ही रही। इसके विपरीत रंगे हाथ रिश्वत लेने के मामलों की संख्या बहुत अधिक है। 12 माह में 40 सरकारी विभागों के 262 लोगों को रंगे हाथ पकड़ा गया। इनमें 56 राजपत्रित अधिकारी तो 206 अराजपत्रित अधिकारी शामिल हैं। इसी तरह पद के दुरूपयोग के 26 विभागों के 172 कर्मचारियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। मप्र में भ्रष्टाचार के आरोपी अफसरों के ठिकानों पर आयकर और लोकायुक्त के छापे के बाद काली कमाई का सबसे ज्यादा निवेश रियल एस्टेट में मिला है। जांच एजेंसियों के अफसरों के मुताबिक इन अफसरों ने मकान, प्लॉट, खेती की जमीन और कॉलोनियों में सबसे ज्यादा निवेश किया है। खास बात यह है कि छापे से बचने के लिए अधिकांश ने शहरों से दूर गांवों में करोड़ों का निवेश किया है। उन्होंने निवेश या तो अपने पैतृक गांव में किया है या फिर लंबे समय से जिस जिले में पदस्थ हैं उन स्थानों में। चौंकाने वाला खुलासा यह है कि कई अफसरों ने बेनामी संपत्ति खरीदी और बाद में उसे दान में ले लिया। ऐसा करके अफसरों ने न सिर्फ राजस्व का नुकसान किया, बल्कि अपनी काली कमाई को भी आसानी से छुपाने का प्रयास किया। जांच एजेंसियों से मिली जानकारी के मुताबिक भ्रष्टाचार के आरोपी अफसरों ने घरों में नकद पैसे रखने की बजाए अलग-अलग सेक्टर में निवेश किया है। इसमें कई अफसरों ने शेयर बाजार, गाडिय़ों की एजेंसी और होटल में भी पैसा लगाए हैं। लोकायुक्त ने प्रदेश में जिन छोटे-बड़े अफसरों के यहां छापामार कार्रवाई की है उनके यहां मिले दस्तावेजों से भी यह खुलासा हुआ है। बताया जा रहा है कि छोटे अधिकारियों और खासतौर पर तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्मियों के पास से करोड़ों की संपत्ति मिल रही है। कई अधिकारियों ने जमीन के साथ कॉलेज और होटल व्यवसाय में भी निवेश किया है। योजनाओं का किया बंटाढार प्रदेश में आम आदमी की सहूलियत को देखते है प्रदेश सरकार ने आधा सैकड़ा से अधिक नई योजनाएं संचालित कर रखी हैं, वहीं केन्द्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या 72 हैं जिनमें से 90 फीसदी तो अफसरों की कमाई का जरिया बनी हुई हैं। इसी कारण अफसरों के पास अकूत दौलत आ रही है। दरअसल, अफसरों की कमाई के दो जरिए हैं- एक तबादला और दूसरा कमीशनखोरी। यहां यह तथ्य नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि दोनों तरह के काम विभागीय मंत्री की सहमति या नेताओं के दखल के बिना नहीं हो सकते। हाल ही के आयकर छापों से साबित हो गया है कि अरबों रुपए की केन्द्रीय मदद का लाभ जनता को पहुंचने के बजाय भ्रष्ट अफसरों की तिजोरियों में जा रहा है। तमाम अफसरों व कारोबारियों के ठिकानों पर आयकर, लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू ने कार्रवाई कर अकूत संपत्ति का पता लगाया है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर प्रधानमंत्री तक की टिप्पणियों पर गौर करें तो पाते हैं कि भ्रष्टाचार की असली जड़ नेता, अफसर और किस्म-किस्म के माफिया का गठजोड़ है। यहां के नौकरशाह कई स्तरों पर भ्रष्टाचार में डूबे हैं। जो ईमानदार माने जाते हैं, उनके बाल-बच्चे विदेश में पढ़ते हैं। किन घरानों की बदौलत? जो केंद्र सरकार की नीतियां बनाते हैं, वे रिटायर्ड होने से पहले ही मुक्ति पाकर बड़े घराने ज्वाइन करते हैं। जनता की उंगलियों पर नाम, सरकार को पता नहीं प्रदेश में कितने और कौन-कौन भ्रष्ट अफसर हैं, जनता नाम गिना देगी, पर प्रदेश सरकार को इसकी जानकारी नहीं है। तभी तो प्रदेश सरकार ने अभी तक केंद्र सरकार को भ्रष्ट अफसरों की सूची नहीं भेजी है। भ्रष्टाचार करके भी लम्बे अरसे तक लाभ के पदों पर काबिज रहने वाले नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पीएमओ ने डीओपीटी के माध्यम से सभी राज्यों से भ्रष्ट अफसरों की सूची मांगी थी। कई राज्यों ने तो सूची भेज दी है लेकिन मप्र सरकार आनाकानी कर रही है। जब डीओपीटी का इस संदर्भ में पहला पत्र आया था तब राज्य सरकार ने कहा था कि यहां कोई भी ऐसा भ्रष्ट अफसर नहीं है जिसके खिलाफ कार्रवाई करने की अनुशंसा की जाए। उसके बाद दो और पत्र आए लेकिन राज्य सरकार ने जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। आलम यह है कि सब भ्रष्ट न सिर्फ ताकतवर पदों पर हैं, बल्कि खुली लूट में शरीक भी हैं। मप्र में एक भी कमजोर अफसर नहीं मध्यप्रदेश सरकार को नहीं लगता कि उनके राज्य में अखिल भारतीय सेवा (आईएएस, आईपीएस, आईएफएस) का एक भी अफसर सुस्त है। प्रदेश के 166 अफसरों के कामकाज की समीक्षा करने के बाद मप्र ने केंद्र को लिखा है कि सभी अधिकारी सेवा जारी रखने के लिए सक्षम पाए गए। अन्य राज्यों की तुलना में मप्र ने सबसे ज्यादा अफसरों की समीक्षा की थी। इसके आधार पर केंद्र सरकार अक्षम पाए गए अधिकारियों को जनहित में समय से पहले रिटायर होने के लिए कह सकती है। केंद्र ने पिछले साल अपने 13 अधिकारियों को इसी आधार पर हटाया भी था। हालांकि, मध्यप्रदेश समेत 14 राज्य सरकारों ने अपने अधिकारियों पर काफी नरमी बरती है। मध्य प्रदेश ने कुल 1089 अधिकारियों में से सबसे अधिक 166 अधिकारियों की समीक्षा की। हालांकि उसे इनमें से एक भी अधिकारी अक्षम नहीं मिला। आलम ये है कि 1089 अधिकारियों में से सिर्फ दो की सेवा समाप्त करने की अनुशंसा की गई है। ये दोनों अफसर एजीएमयूटी कैडर के हैं जिनकी समीक्षा केंद्रीय गृह मंत्रालय करता है। यानी 14 राज्य सरकारें अपने एक भी अफसर को हटाने की इच्छुक नहीं हैं। गुडग़ांव में प्रॉपर्टी खरीदने में ले रहे हैं दिलचस्पी जांच एजेंसियों से मिली जानकारी के अनुसार मप्र के अधिकांश आईएएस, आईपीएस अधिकारी गुडग़ांव में प्रॉपर्टी खरीदने मे दिलचस्पी दिखा रहे हैं। जहां अफसरों ने पत्नी, पुत्र, पिता या अन्य परिजनों के नाम से संपत्ति खरीदी है। साथ ही प्रदेश की राजधानी भोपाल, इंदौर, होशंगाबाद, ग्वालियर, जबलपुर में खेती की जमीन तो सतना, कटनी, दमोह,छतरपुर और मुरैना में बिल्डर व खनन माफिया के पास करोड़ों रुपए का निवेश किया है। वहीं प्रदेश के बाहर मुंबई, दिल्ली, गुडग़ांव, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा,पंजाब, शिमला, असम, आगरा के साथ ही विदेशों में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, सिंगापुर, दुबई, मलेशिया, बैंकॉक, कनाडा, लंदन में भी संपत्ति जुटाई है। वहीं डीओपीटी की वेबसाइट पर अफसरों ने अपनी संपत्ति की जानकारी छुपाई है। कई अफसरों ने अपनी संपत्ति का सिर्फ खरीद मूल्य बताया है, जबकि कुछ ने 4 प्रॉपर्टी में से केवल एक या दो का मूल्य घोषित किया है। कुछ ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने कलेक्टर रेट के आधार पर अपनी संपत्ति की प्रजेंट वैल्यू (अनुमानित कीमत) बताई है। कुछ अफसर ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी एग्रीकल्चर और रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी तो बताई है, लेकिन उसकी प्रजेंट वैल्यू बताने से यह कहकर इनकार कर दिया है कि उन्होंने कीमत का असेसमेंट नहीं कराया है। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग की वेबसाइट पर 25 अप्रैल तक उपलब्ध आईपीआर रिटर्न के आंकड़ों के अनुसार, मप्र कैडर के अफसरों ने लोकपाल एवं लोकायुक्त एक्ट-2013 के तहत अपनी अचल संपत्ति घोषित की है। मात्र 10 फीसदी ही पाक-साफ पीएमओ के एक अधिकारी की माने तो मौजूदा तकरीबन 4,200 आईएएस अफसरों में से 10 फीसदी यानी 420 ही ऐसे निकलेंगे जो जायदाद के मामले में पाक साफ हों। फर्क इतना है कि कुछ संभल कर जायदाद बनाते हैं तो कुछ किसी की परवाह नहीं करते। अधिकारियों ने बचने का नया तरीका यह निकाल लिया है कि जायदाद नजदीकी रिश्तेदारों के नाम से बनाई जाए। हालांकि यह भी जोखिम वाला काम है पर जानकारी देने से तो बेहतर है। बताया जाता है की डीओपीटी ने राज्य सरकारों सेएक बार फिर से भ्रष्ट अफसरों की सूची मांगी है। लोकायुक्त से मिली जानकारी के अनुसार, वर्तमान समय में मप्र में विभिन्न विभागों में कई अफसर सहित 104 लोग ऐसे हैं जिन्हें न्यायालय से भ्रष्टाचार सहित अन्य मामलों में सजा हो चुकी है, लेकिन वे जमानत लेकर नौकरी कर रहे हैं। लोकायुक्त ने इस संदर्भ में मुख्यमंत्री को एक पत्र भी भेजा है और अपने पत्र के साथ 400 ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची भी सौंपी है, जिनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति लंबित है या चालान दाखिल हो जाने के बाद भी उन्हें निलंबित नहीं किया गया है। जिसमें सबसे अधिक राजस्व विभाग के 27 अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा पंचायत व ग्रामीण विकास और गृह विभाग के 13-13, स्कूल शिक्षा- 10, पीएचई- 9, कृषि-7, नगरीय विकास एवं पर्यावरण- 5, वन- 5, महिला एवं बाल विकास-4, ग्रामोद्योग-3, ऊर्जा- 2, श्रम- 2, आदिम, अजा-2, सहकारिता-2, खनिज- 1, सामाजिक न्याय-1, खाद्य विभाग- 1 और पीडब्ल्यूडी का 1 अधिकारी शामिल है। हवाला में भी अफसरों का पैसा आयकर विभाग द्वारा बीते दिनों प्रदेश सहित अन्य राज्यों में कई ठिकानों पर की गई छापे की कार्रवाई में एक हजार करोड़ के हवाला कारोबार का खुलासा हुआ है। खास बात यह है कि इसका संचालन मप्र से किया जा रहा था और इसमें कई आईएएस और आईपीएस अफसरों का भी पैसा लगा है। इस गोरखधंधे के कर्ता-धर्ता काली बोगस कंपनियों व फर्जी खातों में घुमाकर नंबर एक में बदला जा रहा था। बैंकों की सांठगांठ भी मिली है, कालेधन के बदले ये कारोबारी देश के किसी भी शहर में चैक जारी कर देते थे। आयकर ने सभी राज्यों को अलर्ट जारी कर छानबीन शुरू कर दी है। आयकर इन्वेस्टीगेशन विंग को खुफिया सूत्रों से लगातार सूचनाएं मिल रही थीं कि जबलपुर और कटनी के कुछ व्यापारी बिना किसी उद्योग-धंधों के अपनी कंपनियों के जरिए अरबों रुपए लेनदेन कर रहे हैं। अफसरों ने जब जांच-पड़ताल की तो पता चला ये लोग नकद रुपए के बदले किसी भी शहर में मौजूद कंपनी के नाम पर चैक जारी कर देते हैं। एक लाख पर 150 से 200 रुपए कमीशन लेकर रोज ही करोड़ों का लेनदेन चल रहा था। कई वर्षों से यह सिलसिला जारी था। कटनी-जबलपुर के लोग इनके पास आते थे अधिकांश साइकल व कपड़ा व्यापारी ब्लैक मनी का भुगतान करते थे। किसी व्यापारी को यदि काली कमाई के 10 लाख रुपए कर्नाटक भेजना है तो वह तयशुदा कमीशन देकर संबंधित व्यापारी के नाम पर चैक ले लेता था। हवाला कारोबारी अपनी दो-तीन बोगस कंपनियों में यह राशि घुमाकर चौथी कंपनी के नाम से दूसरे स्टेट के संबंधित व्यापारी के नाम चैक दे देता था। ये बैंक खाते इनके नौकरों, माली और ड्राइवरों के नाम पर चल रहे थे। इस काम में बैंक अफसरों की सांठगांठ भी सामने आई है। विभाग को आश्चर्य इस बात का है ज्यादातर मामलों में एक्सेस, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई एवं आईडीबीआई बैंकों की भूमिका सामने आई है। अब बैंक अफसरों से पूछताछ की तैयारी की गई है। 5 साल में 101 अधिकारी सीबीआई जांच के दायरे में पिछले पांच साल में 101 आईएएस अधिकारी भ्रष्टाचार के अलग अलग मामलों में कथित संलिप्तता के चलते सीबीआई की जांच के दायरे में आए हैं जिनमें से 66 के खिलाफ सरकार से मुकदमे की अनुमति मिली है। 2010 से सीबीआई ने 100 आईएएस अधिकारी, 10 सीएसएस ग्रुप ए अधिकारी और 9 सीबीआई ग्रुप ए अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे के लिए अनुमति देने का अनुरोध किया था। केंद्र सरकार ने 66 आईएएस अधिकारी, 8 सीएसएस ग्रुप ए अधिकारियों और छह सीबीआई ग्रुप ए अधिकारियों के मामले में मुकदमे की अनुमति दी। नाकाबिल अफसर मोदी के टेस्ट में पास मप्र कैडर के 43 अफसरों की राज्य सरकारों ने जिन करीब 1,100 ब्यूरोक्रेट्स के वर्क परफॉर्मेंस की सिफारिश की है, उनमें से केवल दो के लिए प्री-मच्योर रिटायरमेंट (समय से पूर्व सेवानिवृत्ति) की सिफारिश की गई है। नियमों के हिसाब से केंद्र सरकार संबंधित राज्य के साथ विचार-विमर्श करके नॉन परफॉर्मेंस के लिए किसी ऑफिसर को लोकहित में सेवा से रिटायर होने के लिए कह सकती है। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग ने कहा है, इस नियम का मकसद अवांछित व्यक्ति को बाहर निकालना है ताकि स्टेट सर्विसेज में एफीशिएंसी और इनीशिएटिव्स के हाई स्टैंडर्ड को बनाए रखा जा सके। ऐसा जरूरी नहीं है कि कोई अच्छा ऑफिसर हर समय सक्षम बना रहे। हालिया स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक 15 साल की सर्विस पूरी कर चुके 549 ऑफिसर्स के परफॉर्मेंस की समीक्षा की गई। इनमें से सर्वाधिक महाराष्ट्र काडर के 76, झारखंड काडर के 64, एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम-केंद्रशासित प्रदेश) काडर के 62, उत्तर प्रदेश काडर के 58, पंजाब के 44 , मध्य प्रदेश काडर के 43, उड़ीसा काडर के 37, राजस्थान के 36, गुजरात और छत्तीसगढ़ के 33, मेघालय काडर के 24, बिहार और हरियाणा काडर के 19-19 अधिकारियों के प्रदर्शन की समीक्षा की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि एजीएमयूटी काडर के एक अधिकारी को समय से पहले सेवानिवृत्त करने की सिफारिश की गई है। वहीं हरियाणा काडर के एक अधिकारी के संबंध में अंतिम फैसले का इंतजार है। अन्य सभी सेवा में बने रहने के लिए उपयुक्त पाए गए हैं। यूपी और बिहार को ज्यादा आईएएस अफसर मिलेंगे केंद्र सरकार आईएएस अफसरों के बंटवारे के लिए नियमों में बदलाव करने जा रही है। जिन राज्यों में आईएएस अफसरों की कमी ज्यादा है, उन्हें अब ज्यादा अफसर मिलेंगे। जहां पहले से अफसर ठीकठाक संख्या में हैं, उनके कोटे में कमी की जा सकती है। नए आईएएस अफसरों के कैडर आवंटन के मौजूदा नियमों को बदलने की तैयारी कर ली गई है। कार्मिक मंत्रलय के सूत्रों के अनुसार 22 अप्रैल को दिल्ली में बुलाई गई राज्यों के प्रमुख कार्मिक सचिवों की बैठक में इस प्रस्ताव को रखा जाएगा। राज्यों के विचार जानने के बाद केंद्र 2015 के बैच से अमल शुरू कर देगा। अफसरों के पिछले साल के बैच को इस साल के अंत तक कैडर आवंटित होंगे। कार्मिक मंत्रलय के अनुसार अभी 150 नए आईएएस अफसरों की भर्ती हो रही है। राज्यों के तय कोटे के मुताबिक इनका आवंटन किया जाता है। अफसरों के आवंटन का जो फामरूला है, उसमें राज्य की जरूरत यानि जिलों की संख्या को ध्यान में रखा जाता है तथा आंशिक रूप से खाली पदों को आधार बनाया जाता है। लेकिन भविष्य में सिर्फ रिक्त पदों को आधार बनाया जाएगा। अफसरों की कमी से जूझ रहे राज्यों ने केंद्र को आईएएस देने में आनाकानी शुरू कर दी है। आईएएस अफसर राज्य कैडर के होते हैं। राज्यों के कोटे में केंद्र का कोटा तय होता है। तीन राज्यों में अफसरों की सबसे ज्यादा कमी कार्मिक मंत्रलय के अनुसार यूपी में 115 तथा बिहार में 112 आईएएस अफसरों की कमी बनी हुई है। हालांकि पश्चिम बंगाल में करीब 150 पद खाली हैं। इन तीन राज्यों में सबसे ज्यादा कमी बनी हुई है। इसलिए अगले बैच से इन राज्यों को सर्वाधिक अफसर आवंटित होने की उम्मीद है। इसके अलावा छोटे राज्य झारखंड में भी करीब 95 रिक्तियां हैं। इसलिए झारखंड को भी नई योजना का लाभ मिल सकता है।

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