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भेड़ाघाट

Saturday, July 2, 2016

600 करोड़ स्वाहा फिर भी नहीं मिल रही दो गज जमीन

मप्र में फुस्स हुई शांतिधाम योजना
भोपाल। मरने के बाद मृत शरीर का अंतिम संस्कार सम्मानजनक रूप से करना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अंतिम संस्कार की समुचित व्यवस्था न होने से ग्रामीणों के लिए अंतिम क्रिया करने में तकलीफ उठानी पड़ती है। इसको देखते हुए मनरेगा की उपयोजना 'शांतिधामÓ में ग्रामीण क्षेत्रों में श्मशान घाट बनाने को शामिल किया गया है। प्रदेश में शांतिधाम योजना के साथ किस तरह का खिलवाड़ हुआ है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि करीब 600 करोड़ रूपए स्वाहा करने के बाद भी अधिकांश जगह लोगों को अंतिम संस्कार के लिए भटकना पड़ रहा है। सरकारी दावों के अनुसार, राज्य के 52 हजार गांवों में शांतिधाम उप-योजना में ग्रामीण अंचलों में श्मशान घाट और कब्रिस्तान की भूमि का विकास किया जा रहा है। शांतिधाम के निर्माण में भी भारी भ्रष्टाचार किया गया। शांतिधाम कागजों में ही बना दिए गए और इनका मूल्यांकन कराकर राशि हड़प ली गई। इस मामले की सूक्ष्मता से जांच कराई जाए तो अरबों रूपए का भ्रष्टाचार उजागर होगा। आलम यह है कि मनरेगा के अंतर्गत कार्य तो हितग्राहियों से कराया गया है लेकिन आज तक मजदूरी व सामग्री का भुगतान भी नहीं किया गया है। उल्लेखनीय है कि मई 2011 में ग्रामीण क्षेत्रों में शांति धाम योजना के तीन हजार विकास कार्यो को मंजूरी दी गई इन कार्यों के लिए 428 करोड़ 57 लाख रूपए की राशि स्वीकृत की गई। आज स्थिति यह है कि शांतिधाम विकास के नाम पर राशि तो स्वाहा हो गई है लेकिन अधिकांश गांवों में शांतिधाम या तो बदहाल पड़े हैं या गायब हैं। आलम यह है इस योजना के तहत कितने शांतिधाम बने इसकी पड़ताल किए बिना ही फिर से राज्य सरकार प्रदेश में 11 हजार से अधिक नए श्मशान घाटों के निर्माण को मंजूरी दे दी। इन श्मशान घाटों के निर्माण के लिए 146 करोड़ 42 लाख रुपए का फंड भी जारी कर दिया गया। फिर भी आज स्थिति यह है कि प्रदेश के गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी शांतिधाम योजना के तहत श्मशान घाट और कब्रिस्तान का विकास नहीं हो सका। यह होना है योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में श्मशान भूमि, कब्रिस्तान आबादी से दूर एवं मूलभूत सुविधाओं से विहीन असुरक्षित और प्रदूषित होते हैं। वर्षाऋ तु में श्मशान भूमि पर शेड के अभाव में सूखी लकड़ी के भण्डारण की समुचित व्यवस्था नहीं होती है जिसके कारण दाह संस्कार करने में बाधा आती है। इसी तरह कब्रिस्तानों में कीचड़ होने से शव दफनाने में कठिनाई होती है। इसे मद्देनजर रखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम के तहत प्रत्येक गांव में शांतिधाम बनाने की योजना बनाई है। शांतिधाम योजना के तहत सबसे पहले उन गांवों को लिया गया है जहां श्मशान भूमि और कब्रिस्तान नहीं हैं। यह भी देखा गया है कि जिन गांवों में जिस समुदाय के लोगों की संख्या अधिक है। वहां अंतिम संस्कार के स्थल निर्माण की प्राथमिकता तय की जाएगी। शांतिधाम योजना के प्रथम चरण में ऐसे ग्रामों का चयन किया गया है जिनकी जनसंख्या पांच हजार से अधिक हो। द्वितीय चरण में पांच हजार से कम किन्तु तीन हजार से अधिक जनसंख्या वाले गांवों को और तृतीय चरण में ऐसे गांवों का चयन किया गया है जिनकी संख्या तीन हजार से कम है। शांतिधाम उपयोजना का उद्देश्य श्मशान भूमि और कब्रिस्तान में मूलभूत सुविधाओं जैसे-पानी, छाया, सूखी लकड़ी, प्लेटफार्म, स्वच्छ व पवित्र वातावरण आदि की व्यवस्था करना है। शांतिधाम उपयोजना अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि समतलीकरण के कार्य, श्मशान भूमि और कब्रिस्तान के चारों ओर छायादार वृक्ष जैसे - नीम, बरगद, पीपल, गुलमोहर, गूलर, पाकड़ आदि तथा फूल वाले जैसे- बोगनबेलिया, कन्हेर आदि तथा शांतिधाम स्थल के चारों कोने पर बांस का वृक्षारोपण आदि के कार्य शामिल हैं। इसके अलावा शांतिधाम के प्रस्तावित स्थल के अंदर या समीप पानी की व्यवस्था न होने पर कुआं अथवा स्थल के समीप नदी और नाला होने पर स्टापडेम या चैकडेम का निर्माण करना शामिल है। उसे आबादी स्थल से जोडऩे के लिए सिंगल लेन जीएसबी स्तर की सड़क का निर्माण भी किया जाना है। सुरक्षा के लिए शांति धाम स्थल के आस-पास ड्राई बोल्डर्स की दीवार या हेज आदि से उसका घेरा बनाया जाना है। श्मशान भूमि पर शवदाह के लिए दो कच्चे चबूतरे और कब्रिस्तानों में नमाज अदा करने के लिए कच्चे चबूतरे का निर्माण किया जाना है। शांतिधाम में पार्टीशनयुक्त छत वाले स्नानागार भी बनाए जाना है। प्रत्येक शांतिधाम में अंतिम संस्कार वाले व्यक्ति के यादगार को चिरस्थाई बनाने के लिये स्मृति वन भी बनाना है। यही नहीं नियमत: शांतिधाम स्थल के निर्माण और विकास कार्य की गुणवत्ता पर भी पूरी निगरानी रखी जानी है। निर्माण कार्य में उपयोग होने वाली सामग्री का प्रयोगशाला से संबंधित विभाग द्वारा परीक्षण कराया जाएगा। गुणवत्ता सुनिश्चित हो इसके लिए ग्रामीण रोजगार गारंटी, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के संबंधित अधिकारी जिम्मेदार होंगे। शांतिधाम योजना को त्वरित गति से क्रियान्वित करने और कार्ययोजना बनाने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम बनाया जाएगा। इसके लिए जिला स्तर पर एक समिति का गठन कलेक्टर की अध्यक्षता में होगा। जिसमें सदस्य सचिव मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत होंगे। पंचायतों के पदाधिकारी, जिला ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिकारी और समिति के अध्यक्ष द्वारा विभिन्न समुदायों के तीन प्रतिनिधि इसके सदस्य होंगे। यह समिति वित्तीय वर्ष में बनने वाले शांतिधाम की संख्या का निर्धारण करेगी और प्रस्तावित निर्माण कार्यों के संबंध में निर्णय लेगी। लेकिन विसंगति यह देखिए की तमाम तरह के नियम होने के बाद भी अफसरों की लापरवाही के कारण योजना अपने टारगेट को भी पूरा नहीं कर पाई। आधे-अधूरे काम में खर्च हो गई मनरेगा की राशि एक तरफ सरपंच, सचिव मनरेगा की राशि न मिलने का रोना रो रहे हैं, वहीं पिछले कुछ माह पूर्व उन्हें विकास कार्य के लिए मिली राशि से पंचायत में आधा-अधूरा कार्य करवाकर खातों से राशि आहरण कर उन्हें आपस में ही बांटकर बंटाधार कर गए। ऐसा ही मामला पटेरा विकासखंड की ग्राम पंचायत रुसल्ली का सामना आया है। जहां पर सरपंच, सचिव द्वारा आपस में मिलकर मनरेगा योजना के तहत कार्य की मात्र बानगी दिखाकर खातों से राशि निकाल हजम कर गए। ग्राम पंचायत रुसल्ली के रामनाथ कुर्मी, गोविन्द प्रसाद रजक, खुमान अहिरवार, झल्ले अहिरवार, गोपाल रजक, हे पटैल, बालचंद्र पटैल, पवन अहिरवार, सलकू रजक, हल्कीबहू, सियारानी, लटकारी अहिरवार आदि लोगों के द्वारा मुख्य कार्यपालन अधिकारी को दिए आवेदन में ग्राम पंचायत सरपंच व सचिव पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने बताया कि ग्राम रुसल्ली के शांतिधाम के लिए मनरेगा योजना के तहत लगभग 4.98 लाख रुपए की राशि में कुआं निर्माण, टीन शेड, बाउंड्रीबॉल व मुरमीकरण का कार्य किया जाना था लेकिन पंचायत सचिव ने बाउंड्रीवॉल का कुछ कार्य कराकर तीन लाख पचास हजार पांच सौ बानवे रुपए की राशि आहरण कर गोलमाल कर दी। जबकि स्वीकृत राशि से आधी-अधूरी बाउंड्रीवॉल के अलावा अन्य कार्य का श्रीगणेश भी नहीं हुआ। खाते से निकाली गई राशि का सरपंच, सचिव द्वारा किस कार्य पर व्यय किया गया, वो बताने को तैयार नहीं है। वहीं बालाघाट के वारासिवनी के ग्राम पंचायत गटापायली के पूर्व सरपंच, सचिव और उपयंत्री द्वारा आर्थिक अनियमितता का मामला उजागर हुआ है। ग्राम पंचायत गटापायली के दो दर्जन ग्रामीणों ने पूर्व सरपंच, सचिव और उपयंत्री द्वारा निर्माण कार्य के नाम पर आर्थिक अनियमितता किए जाने की शिकायत की थी। जिसमें शांतिधाम योजना का फंड कागजों पर ही खर्च करने का आरोप है। शिकायतकर्ता तुलाराम जमरे, हरिचंद कावरे, देवराज बिसेन, धनराज सैय्याम सहित अन्य ने बताया कि शांतिधाम उपवन योजना के नाम पर राशि का गोलमाल किया गया है। यहां समतलीकरण व वृक्षारोपण के लिए 4 लाख 99 हजार रुपए स्वीकृत किए गए थे। लेकिन शांतिधाम में न तो समतलीकरण किया गया और न ही वहां पर वृक्षारोपण किया गया। इस तरह से पूर्व सरपंच, सचिव ने उपयंत्री के साथ मिलकर राशि की बंदरबाट कर ली है। जांच अधिकारी मेघराज गौतम के अनुसार दो दर्जन से अधिक ग्रामीणों के बयान दर्ज किए गए हैं। अग्रिम कार्रवाई के लिए प्रकरण तैयार कर एसडीएम को सौंपा जाएगा। जिला अशोकनगर में इस उपयोजना के अंतर्गत जिला पंचायत के अंतर्गत 2014 में चारों ब्लाकों की जनपदों के अंतर्गत 335 ग्राम पंचायतों में 361 शांतिधाम बनाने की स्वीकृती दी गई थी। इसके अंतर्गत चारों ग्राम पंचायतों में 216 कार्य प्रारम्भ किए गए। इन पर 1458.18 लाख रूपए खर्च किए गए हंै। अभी तक जिले में 44 कार्य ही पूर्ण किए जा सके है। शेष कार्य योजना प्रारम्भ से अभी तक प्रगतिशील बने हुए है। न तो इस महत्वपूर्ण योजना पर जनप्रतिनिधियों का ध्यान है और न ही जिला प्रशासन के आला अधिकारी इस और ध्यान दे रहे है। जबकि हर जन सुनवाई में कभी न कभी ऐसे आवेदन देखे जा सकते है कि कब्रिस्तान की जमीन पर कब्जा कर लिया या शमशान की जमीन को दबंगों ने जोत लिया। अब गांव मे मुर्दा जलाने के लिए जगह नहीं है। जिला पंचायत में मनरेगा योजना के अनुसार मुंगावली जनपद क्षेत्र के अंतर्गत 4 ही कार्य पूर्ण हो सके है। शेष कार्य प्रगति पर बताए जा रहे है। 12 निर्माण कार्य प्रारम्भ ही नहीं हो सके है। चंदेरी जनपद के अंतर्गत 57 निर्माण कार्य स्वीकृत किए गए है जो प्रगतिशील बताए जा रहे है। इसी प्रकार अशोकनगर में 115 ग्रामों में शांतिधाम का निर्माण किया जाना था जिस पर 52 निर्माण कार्य चालू बताए गए है। ईसागढ़ जनपद द्वारा स्वीकृत शांतिधाम भी प्रगतिशील बताए जा रहे है। खरगोन जिले की ग्राम पंचायत माकडख़ेड़ा के सचिव पर ग्रामवासियों ने मुक्तिधाम के निर्माण में घटिया काम का आरोप लगाया है। सचिव की अनियमितता की शिकायत उच्च अधिकारियों से कर कार्रवाई की मांग की है। मनरेगा के तहत पंचायत द्वारा बनाए जा रहे मुक्तिधाम के निर्माण की मांग ग्रामीणों द्वारा लंबे समय से की जा रही थी, लेकिन वर्तमान में किए जा रहे घटिया कार्य से ग्रामीणों में आक्रोश है। इसका कारण पंचायत सचिव द्वारा निर्माण में की जा रही लापरवाही व अनियमितता है। निर्माण में गुणवत्ताविहीन सामग्री इस्तेमाल होने के कारण नर्मदा के पहले बहाव में ही वह क्षतिग्रस्त हो गया है। जिले में बन रहे या बन गए कई शांतिधाम भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े हैं। फौजी के शव को नहीं मिली दो गज जमीन रीवा जिले के गोविन्दगढ़ थाना अंतर्गत रीवा जनपद के ग्राम पंचायत रौरा में ग्राम अमिलकी निवासी रिटायर्ड फौजी रामभिलाष आदिवासी (65) की मौत के बाद उसके शव को दो गज जमीन नसीब नहीं हुई। परिजन उनका अंतिम संस्कार करने बनाए गए नवनिर्मित मुक्ति धाम पहुंचे थे जहां ताला लगा हुआ था। जिससे परिजन आक्रोशित हो गए थे। सरपंच की समझाइस के बाद मामला शांत हो पाया। बताया जा रहा है कि एक घंटे पहले ही मुक्ति धाम का लोकार्पण सांसद जनार्दन मिश्रा ने किया था। बताया जा रहा है कि लोकार्पित शांतिधाम का निर्माण कार्य अधूरा है टिन शेड लगाया गया हैं। जबकि फर्श का कार्य अभी होना है। जिसके चलते लोकार्पण के बाद गेट में ताला लगा दिया गया था। निर्माण कार्य पूर्ण होने तक अंतिम संस्कार के लिए रोका गया था। शांतिधाम लोकार्पण के बाद अंतिम संस्कार के लिए मौके पर पहुंचे लोगो को जानकारी थी कि लोकार्पण के दिन यदि किसी का अंतिम संस्कार होगा तो उस परिवार के सदस्य को एक लाख रुपये मिलेंगे। जिसके चलते लोग अडिग रहे। हालांकि बाद में समझाइस के बाद मामला सुलझ गया और अंतत: घर के सदस्य शव इलाहाबाद लेकर अंतिम संस्कार के लिए चले गये। सरपंच रौरा प्रीति तिवारी कहती हैं कि अमिलकी गॉव से शव अंतिम संस्कार के लिये लाया गया था। चौकीदार से गेट भी खुलवाया गया था कि वे अपना शव रख ले, उन्हें जब पता चला कि इनाम की कोई योजना नही हैं वे शव इलाहाबाद ले जाने की बात कह कर, शव लेकर चले गये। आष्टा विकासखंड के अधिकांश ग्रामों में मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए बनाए गए श्मशानों की निस्तार भूमि पर अतिक्रमणकारियों के कब्जे जमे हैं। जिस कारण ग्रामीणों को मृतकों के अंतिम संस्कार में परेशानी उठानी पड़ रही है। विकासखंड के ग्राम नौगांव में लोग बीच सड़क पर चिता का अंतिम संस्कार करते हैं, रास्ते पर चिता जलने के दौरान ग्रामीण चिता को लांघकर निकलते हैं। ग्राम नौगांव में लगभग 5 एकड़ श्मशान भूमि पर दबंगों द्वारा अतिक्रमण कर निर्माण कर लिए गए हैं। इसी के चलते मजबूरन ग्रामीणों को श्मशान भूमि के नजदीक के मार्ग के बीचों बीच मृतकों का अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है। ग्राम नौगांव में शासन द्वारा श्मशान घाट हेतु लगभग 5 एकड़ भूमि आरक्षित की गई थी जिसमें श्मशानघाट का निर्माण होना था। किन्तु ग्राम के कुछ दबंग लोगों द्वारा उक्त समस्त श्मशान भूमि पर अतिक्रमण कर कच्चे पक्के निर्माण कर लिये गये। जिसके कारण ग्रामीणों को मजबूरीवश ग्राम के मुख्य मार्ग पर पत्थर जमाकर मृतकों का अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है। मार्ग पर होने वाले अंतिम संस्कार के कारण मार्ग से गुजरने वाले राहगीरों को भी परेशानी का समाना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों द्वारा अंतिम संस्कार में आ रही परेशानीयों एवं श्मशान भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने की मांग को लेकर वर्ष 2013 व 14 में सिहोर पहुंचकर दो बार आवेदन भी दिया जा चुका है। इसके अतिरिक्त ग्रामीणों द्वारा तहसील कार्यालय आष्टा में भी उक्त आशय को लेकर अनुविभागीय अधिकारी को आवेदन दिया था। विदिशा में भी लिंक रोड स्थित श्मशान की जमीन पर दबंगों ने कब्जा कर लिया है। श्मशान के सीमांकन के दौरान यह बात सामने आई। नपा द्वारा श्मशान के सीमांकन के बाद तार फेंसिंग करवाने का निर्णय लिया है। श्मशान की भूमि पर लंबे समय से अतिक्रमण की शिकायतें आ रही हैं। प्रशासन की अनदेखी के कारण यह श्मशान कचरा घर के रूप में तब्दील होता जा रहा है। श्मशान पर से अतिक्रमण हटाने तथा सफाई के लिए नागरिकों द्वारा नपा से निवेदन किया गया था। नपा में सांसद प्रतिनिधि रमेश यादव तथा स्थानीय पार्षद संतोष रघुवंशी, शहर पटवारी नीरज विश्वकर्मा को लेकर मौके पर पहुंचे। उन्होंने जब श्मशान की भूमि का सीमांकन किया तो हैरत में पड़ गए। श्मशान की करीब साढ़े 3 बीघा जमीन के काफी बड़े हिस्से पर दंबगों ने अतिक्रमण कर रखा है। सांसद प्रतिनिधि यादव ने बताया की सीमांकन की प्रक्रिया में बाधा बन रहे अतिक्रमण को शीघ्र ही हटाया जाएगा। श्मशान के चारों ओर तार फेंसिंग एवं सफाई करवाकर वहां पर पौधरोपण किया जाएगा। दतिया जिले में भी कागजों पर शांतिधाम बनाने का मामला सामने आया है। जिले के गांवों में मनरेगा के तहत पार्क व श्मशान घाट बनाए गए हैं जिनमें कईस्थानों पर निर्माण कार्य सिर्फ कागज पर ही हुए हैं। राजगढ की ग्राम पंचायत अभयपुर ने तो शांतिधाम के नाम पर कुआं, रास्ता, मंजूर करवा कर लाखों रूपए की राशि पर हाथ साफ करके मानवता का शर्मसार कर दिया। अभयपुर में सदियों से शवदाह नैवज नदी तट पर किया जाता है। इस प्राकृतिक श्मशान में शांतिधाम योजना के तहत ग्राम पंचायत ने शेड, वहां तक पहुुंचने के लिए रास्ता और कुंआ भी बना दिया। लेकिन दिलचस्प यह है कि यहां एक पेड़ के सिवा और कुछ नहीं दिखता है। यानी पूर्व सरपंच और कागजों के सिवा किसी भी ग्रामीण को न शेड, न रास्ता और न कुंआ दिखता है। यही नहीं जांचकर्ताओं ने पता नहीं कौन से चश्मे से भौतिक सत्यापन करके कागजों का पेट भर दिया। शिवपुरी जिले के पोहरी क्षेत्र की ग्राम पंचायतों में पिछले तीन वर्षों में लगभग पांच लाख की लागत से शांतिधाम निर्माण कार्य किए गए परंतु शांतिधाम आज भी अपनी दुर्दशा पर आंसु बहा रहे हैं, जितनी राशि का व्यय किया जाना कागजों में दर्शाया गया उतनी से आधी राशि भी यदि ईमानदारी से खर्च की जाती तो आज मुक्तिधामों की दशा इतनी बदतर नहीं होती। शांतिधाम निर्माण के नाम पर दाह संस्कार हेतु चबूतरा, टीनशेड, चारों ओर की बाउण्ड्रीबाल एवं स्थल का समतलीकरण निर्माण किया जाता है, जिसमें कई पंचायतों में महज खानापूर्ति की गई है। इस पूरे फर्जीवाडे में केवल सरपंच सचिव ही जिम्मेदार नहीं है बल्कि इंजीनियर, एसडीओ, मनरेगा अधिकारी भी बराबर के हिस्सेदार हैं। वहीं पन्ना जिले में जनपद पंचायत पन्ना के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत जनकपुर में स्थित शंातिधाम इसका एक उदाहरण मात्र है। इस पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांधी ग्राम में पंचायत द्वारा 3 लाख 71 हजार रूपए की लागत से वर्ष 2011 में शांतिधाम का निर्माण कराया गया था। लेकिन शांतिधाम की हालत देखकर तो यही प्रतीत होता है कि रिकार्ड में खर्च की गई राशि 25 फीसदी भी यहां व्यय नहीं किया गया। निर्माण के नाम पर शांतिधाम में लोहे का एक गेट लगवाया गया है तथा थोड़ी सी पत्थर की खखरी बनी है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां पर लगवाये गए लोहे के गेट का एक पल्ला भी नदारत है। इस रिक्त हुए स्थल को कटीली झाडिय़ों से बंद कर दिया गया है। गेट के भीतर का नजारा और भी हैरत में डाल देने वाला है। क्योंकि वहां बड़ी-बड़ी झाडिय़ों व जंगली घास उगी हुई है। कोई चाहकर भी इस स्थल में प्रवेश नहीं कर सकता। जाहिर है कि जिस मंशा व उद्देश्य से सार्वजनिक उपयोग व महत्व के इस स्थल का निर्माण कराया गया। उस उद्देश्य की पूर्ति वहां नहीं हो पा रही है। वजह साफ है कि निर्माण एजेन्सी व जिम्मेदार लोगों ने शांतिधाम के बजट का सदुपयोग करने के बजाय मिल बांटकर उसे साफ कर दिया। स्थानीय निवासी उदय प्रकाश मिश्रा ने बताया कि शांतिधाम का निर्माण यहां पर हुए दो साल हो गए लेकिन आज तक किसी भी व्यक्ति का दाह संस्कार यहां नहीं हो सका। दूर-दराज की बात छोडि़ए राजधानी भोपाल में ही कई कब्रिस्तानों पर रसूखदारों का कब्जा है। नगर निगम के रिकार्ड में शहर में 181 कब्रिस्तान दर्ज हैं, लेकिन इनमें से 159 अतिक्रमण की आंधी में कभी के नेस्तनाबूद हो चुके हैं और बाकी बचे 22 कब्रिस्तानों की हालत भी ठीक नहीं है। यही हाल रहा तो हो सकता है आने वाले दिनों लाशें दफनाने के लिए हमें आसपास के जंगलों की ओर रुख करना पड़े। अतिक्रमण के खिलाफ समय-समय पर कार्रवाई होती रहती है, लेकिन आज भी श्मशानों और कब्रिस्तानों के सैकड़ों अतिक्रमण चुनौती बने हुए हैं। जैसे कि आरटीओ कार्यालय के सामने कब्रिस्तान पर झुग्गी-बस्ती आबाद हो गई है तो जोगीपुरा, भोईपुरा में कब्रिस्तान की भूमि शेष ही नहीं बची। छावनी कब्रिस्तान की आधी भूमि पर कई पक्के मकान बन गए हैं। बस स्टैंड के पास, बाग उमराव दूल्हा, इब्राहिमगंज में भी अब कब्रिस्तान का नामोनिशान इक्का-दुक्का कब्रों से दिखाई देता है। कई कब्रिस्तानों पर शासकीय कार्यालय भी खुल गए हैं। पुलिस लाइन, लांबाखेड़ा, फतेहगढ़ का घाट पच्चीसा, शाहपुरा आदि कब्रिस्तान शासकीय कार्यालयों के नीचे दफन हो चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक कब्रिस्तान के उपयोग के लिए दान में दी गई पांच हजार एकड़ से ज्यादा वक्फिया जमीन पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। पूरे राज्य में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें अधिकांश मामले राज्य के बड़े शहरों में हुए हैं़ सबसे ज्यादा अतिक्रमण ग्वालियर जिले में 150, भोपाल जिले में 88, इंदौर जिले में 43 होना पाया गया है। ये मामले वे हैं जो वक्फ के सामने आए और वक्फ ने इन अतिक्रमण को हटाने के लिए कानूनी कार्यवाही की है। इसके अलावा ऐसे भी कई मामले हैं जिन पर वक्फ बोर्ड कार्यवाही नहीं कर पाया है। वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष गुफरान-ए-आजम स्वयं इस बात को लेकर सहमत हैं कि राज्य के कई शहरों में कब्रिस्तान की जमीन पर लोगों ने अतिक्रमण किया है। अव्यवस्थाओं से घिरे कब्रिस्तान-श्मशान आलम यह है कि भोपाल सहित पूरे प्रदेश में कब्रिस्तान और श्मशान अव्यवस्थाओं से घिरे हैं। इनकी सुध न तो नगर निगम ले रहा है और न ही वक्फ बोर्ड। जमीअत उलेमा हिंद पिछले कई सालों को कब्रिस्तानों को सुरक्षित करने व अन्य व्यवस्थाएं करने की मांग को लेकर धरना, प्रदर्शन कर रहा है। इसके बाद भी हालात नहीं सुधर रहे हैं। आलम ये है कि कहीं कब्रिस्तान गंदगी से घिरे हैं तो कहीं गेट के सामने ही दुकानें लग रही हैं। सुरक्षा की कमी है। ऐसे में कब्रिस्तानों को व्यवस्थित किए जाने की जरूरत है। लोगों ने अपनी जमीन-जायदाद वक्फ करते वक्त यही तसव्वुर किया होगा कि आने वाली नस्लों को इससे फायदा पहुंचेगा, बेघरों को घर मिलेगा, जरूरतमंदों को मदद मिलेगी, लेकिन उनकी रूहों को यह देखकर कितनी तकलीफ पहुंचती होगी कि उनकी वक्फ की गई जमीन-जायदाद चंद सिक्कों के लिए जरूरतमंदों और हकदारों से छीनकर दौलतमंदों को बेची जा रही है। मस्जिदों, मजारों और वक्फ की अन्य संपत्तियों पर कब्जे कर लिए गए हैं या करा दिए गए हैं। हालत यह है कि कब्रिस्तान तक को भी नहीं बख्शा गया। कब्रिस्तान से कब्रों को खोदकर मुर्दों की हड्डियां निकालकर, उन्हें खुर्दबुर्द किया जा रहा है, ताकि कब्रिस्तान का नामो-निशान तक मिट जाए। मुस्लिम समुदाय के लोगों को मरने के बाद दो गज जमीन तक मयस्सर नहीं हो पा रही है। मुर्दों को दफनाने के लिए उनके परिवार वालों को प्रशासन और पुलिस की मदद लेनी पड़ रही है। राजधानी समेत प्रदेश भर में कमोबेश यही हालत है।

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