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भेड़ाघाट

Friday, July 21, 2017

2,75,00,00,000 का हरा सोना लूट ले गए माफिया

नक्सली और डकैत भी हुए मालामाल
1200 करोड़ से अधिक की आय होगी सरकार को
भोपाल। प्रदेश में इस बार हरा सोना यानी तेंदूपत्ता की लक्ष्य से अधिक तोड़ाई हुई है। राज्य लघु वनोपज संघ के अनुसार इस बार प्रदेश में निर्धारित लक्ष्य से एक लाख मानक बोरा से भी अधिक तेंदूपत्ता का संग्रहण किया जा चुका है। इस वर्ष संग्रहण लक्ष्य 22 लाख बोरे का था, लेकिन 23 लाख 12 हजार 639 मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहित किया गया है। इससे सरकार को इस वर्ष लगभग 1200 से 1300 करोड़ रूपए विक्रय मूल्य मिलने की संभावना है। यह आंकड़ा और बढ़ सकता था, लेकिन माफिया, नक्सली और डकैत 2,75,00,00,000 रूपए का हरा सोना लूट ले गए। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में महुआ के फूल और तेंदूपत्ता के तैयार होते ही वन क्षेत्रों में माफिया, नक्सली और डकैत सक्रिय हो जाते हैं। इस बार उनकी उपस्थिति सिंगरौली, सीधी, उत्तर शहडोल, उमरिया, सतना, छतरपुर, पश्चिम मण्डला, उत्तर बालाघाट, दक्षिण शहडोल, पूर्व मण्डला, दक्षिण बालाघाट एवं डिण्डौरी में रही। ये वे क्षेत्र हैं जहां इस बार महुंआ और तेंदूपत्ता का रिकार्ड संग्रह हुआ है। हैरानी की बात है कि वन विभाग पूर्व में यह आकलन नहीं कर पाया था कि किस क्षेत्र में तेंदूपत्ता अधिक संग्रहित होगा, लेकिन नक्सलियों और डकैतों को इसका अनुमान पहले ही हो गया। यानी प्रदेश के वन क्षेत्रों में वन विभाग से अधिक नक्सलियों और डकैतों की पकड़ है। पुलिस विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, इस बार प्रदेश में डकैतों और नक्सलियों की सक्रियता कुछ कम रही, लेकिन वन विभाग के अधिकारियों, ठेकेदारों और समितियों से मिलकर माफिया ने सरकार को जमकर चपत लगाई है। जमकर हुई धन वर्षा प्रदेश के वनांचल में तेंदूपत्ता संग्रहण लोगों के लिए रोजगार का एक मुख्य साधन है। कुछ वर्षों से तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य में बहुत कमी आई है, लेकिन इस साल इसकी भरपाई होने की उम्मीद है। इसी तेंदूपत्ता के संग्रहण से मिलने वाली रकम से वन क्षेत्र के आस पास रहने वाले लोग कृषि हेतू आवश्यक बीज, खाद और कीटनाशक दवाई जैसे सामान खरीदते हैं। लोगों के लिए यह आय का एक बेहतर स्रोत है। इस वर्ष बंपर तेंदूपत्ता उत्पादन होने तथा अग्रिम निविदा में रिकार्ड विक्रय मूल्य प्राप्त होने से लगभग 33 लाख संग्राहक को संग्रहण पारिश्रमिक एवं लाभांश के रूप में काफी लाभ होने की उम्मीद है। शासन ने तेन्दूपत्ता संग्राहकों को पारिश्रमिक के रूप में 1250 रुपए प्रति मानक बोरा देने का ऐलान किया है। उधर, राज्य लघु वनोपज संघ को भी रिकार्ड आमदनी होने वाली है। राज्य लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष महेश कोरी ने बताया कि प्रदेश में निर्धारित लक्ष्य से एक लाख मानक से भी अधिक तेंदूपत्ता का संग्रहण किया जा चुका है। सर्वाधिक मात्रा में जिला वनोपज यूनियन सिंगरौली 253256, सीधी 154651, उत्तर शहडोल 137465, उमरिया 120064, सतना 91756, छतरपुर 90767, पश्चिम मण्डला 77447, उत्तर बालाघाट 71397, दक्षिण शहडोल 70601, पूर्व मण्डला 63647, देवास 59756, रायसेन 59482, दक्षिण बालाघाट 54652 एवं डिण्डौरी 53769 मानक बोरा तेन्दूपत्ता का संग्रहण किया गया है। वह कहते हैं की इस बार संग्राहकों को भी हर साल की अपेक्षा अधिक आमदनी होगी। वन विभाग के अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि इस बार प्रदेश के जंगलों में विभिन्न वनोपज खुब हुई है। अगर इसे माफिया से बचा लिया गया तो सरकार को भरपूर राजस्व मिलेगा। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी दावा करते हैं कि मप्र में माफिया राज पूरी व्यवस्था में घुन की तरह समाया हुआ है। आलम यह है कि प्रदेश में जल, जंगल और जमीन पूरी तरह माफिया के कब्जे में है। मप्र में सफेदपोशों, माफिया और अफसरशाही का एक ऐसा गठजोड़ बन गया है जो प्रदेश के वनों से हर साल अरबों रुपए अवैध तरीके से कमा रहे हैं। लेकिन सरकारी संरक्षण के कारण कोई इनका बाल भी बांका नहीं कर पा रहा है। स्थिति यह है कि प्रदेश के जंगलों में उत्पादित होने वाला हरा सोना यानी तेंदूपत्ते को भी सफेदपोशों, माफिया और अफसरशाही ने अपने कब्जे में ले लिया है। इस कारण सरकार ही नहीं बल्कि लघु वनोपज संघ को भी मालूम नहीं है कि हर साल करीब तीन अरब का तेंदूपता कहां गायब हो जाता है। अंतरराज्यीय माफिया की हनक वन विभाग के सूत्रों के अनुसार 94668 वर्ग किलोमीटर में फैले प्रदेश के वन क्षेत्र में हर साल अच्छी गुणवता वाले करीब 35 लाख बोरा तेंदूपत्ता उत्पादित होता है। लेकिन इस बार यह आंकड़ा 40 से 42 लाख बोरा से अधिक का है। लेकिन राज्य लघु वनोपज संघ ने लक्ष्य 22 लाख बोरे का रखा था। ऐसे में माफिया की नजर उस 18-20 लाख बोरे तेंदूपत्ते पर टिक गई जो सरकार की गणना में नहीं था। प्रदेश के माफिया ने इतनी बड़ी मात्रा में तेंदूपत्ते की तस्कारी के लिए अंतरराज्यीय माफिया का सहयोग लिया। आलम यह था कि एक तरफ सहकारी समितियां, ठेकेदार सरकार के लिए तेंदूपत्ता तोड़वा रहे थे वहीं उसके समांतर माफिया के मजदूर भी पत्ते की तोड़ाई में लगे हुए थे। यह पूरा कार्य इतने सुनियोजित तरीके से चल रहा था किसी को कानोंकान खबर तक नहीं लगी। जब भी उडऩदस्ता पत्ते तोड़ाई वाले क्षेत्र में जाता उसे माफिया के मजदूरों को भी सहकारी समितियों या ठेकेदारों का मजदूर बता दिया जाता था। सूत्र बताते हैं कि अंतरराज्यीय माफिया ने अपनी हनक से ऊपर से लेकर मैदानी स्तर तक सबको मैनेज कर लिया था। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश देश का सर्वाधिक तेंदूपत्ता उत्पादक राज्य है। राज्य शासन ने 1964 में एक अधिनियम लागू कर तेंदूपत्ते के व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित किया। वनवासियों को तेंदूपत्ते के संग्रहण एवं व्यापार से और अधिक लाभ दिलाने के उद्देश्य से वर्ष 1984 में मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित का गठन किया गया। वर्ष 1988 में राज्य शासन ने तेंदूपत्ता के व्यापार में सहकारी समितियों को सम्मिलित करने का निर्णय लिया। इस उद्देश्य से एक त्रि-स्तरीय सहकारी संरचना की परिकल्पना की गई। मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित को इस संरचना के शीर्ष पर स्थापित किया गया। प्राथमिक स्तर पर प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियां गठित की गई। द्वितीय स्तर पर जिला वनोपज सहकारी संघ गठित किए गए। वास्तविक संग्राहकों की प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों द्वारा तेंदूपत्ता का संग्रहण किया जाता है। इसके लिए संपूर्ण राज्य में इस बार 16 हजार से अधिक संग्रहण केन्द्र स्थापित किए गए थे। लेकिन प्रदेश के वन क्षेत्रों में इस बार करीब 18 हजार से अधिक फड़ों पर पत्ते की तोड़ाई हुई। यानी 2000 फड़ों पर माफिया ने तेंदूपत्ते का संग्रह करवाकर सरकार को करीब 3 अरब रूपए की चपत लगाई है। यूपी, छग, राजस्थान, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में बिक्री वन विभाग के सूत्रों के अनुसार, प्रदेश में उत्पादित तेंदूपत्ता की गुणवत्ता सबसे अच्छी होती है। इसलिए देशभर के बीड़ी उद्योगों में इसकी मांग होती है। इस कारण हर साल प्रदेश में तेंदूपत्ते की तस्करी होती है। इस बार माफिया ने यहां के तेंदूपत्तों को उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के व्यावसायियों को बेचकर बड़ा मुनाफा कमाया है। तेंदूपत्ता तोड़ाई के दौरान पुलिस की चौकसी से शिवपुरी, श्योपुर, बालाघाट, कटनी, सागर, सोहागपुर, रीवा, सतना, छतरपुर, टीकमगढ़ में प्रदेश से बाहर तेंदूपत्ता ले जाते वाहनों को पकड़ा गया है। जब मामले की पड़ताल की गई तो पता चला की अंतरराज्यीय माफिया तेंदूपत्ता की तस्करी में लगा हुआ है। वह यहां के विभिन्न क्षेत्रों से अवैध रूप से तेंदूपत्ते की तोड़ाई करवाकर उसे उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र और तमिलनाडु पहुंचा रहा है। प्रदेश में तेंदूपत्ते को अवैध रूप से ले जाने का पहला मामला शिवपुरी के करैरा में पकड़ाया। जानकारी के अनुसार करैरा एसडीओपी अनुराग सुजानिया को मुखबिरों से सूचना प्राप्त हुई थी कि 2 ट्रैक्टर तेंदूपत्ता के करैरा भितवार रोड से निकल रहे हैं। इस सूचना पर उन्होंने तत्काल ही करैरा टीआई संजीव तिवारी को कार्रवाई करने के निर्देश दिए। सूचना पर पुलिस की टीम मौके पर पहुंची और रोड पर चैकिंग को और दुरुस्त कर दिया। वाहनों की गहनता के साथ चैकिंग की गई। इसी दौरान सूचना मिली कि पुलिस के चैकिंग पॉइंट के कारण 2 ट्रैक्टर जेल के पास खड़े हुए है। पुलिस बताये स्थान पर पहुंची तो दोनों ट्रैक्टर तेंदूपत्ते से भरे मिले। पुलिस ने तेंदुपत्ता जब्त कर लिया है। इन तेंदुपत्तों की कीमत करीब 14 लाख से ज्यादा बताई गई। उसके बाद प्रदेशभर में पुलिस चौकस हुई और करीब 5 करोड़ रूपए से अधिक का अवैध तेंदूपत्ता पकड़ा। निजी गोदामों और घरों में भरा है तेंदूपत्ता प्रदेश में तेंदूपत्ते की तस्करी जोरों पर है। जानकारी के अनुसार इस बार यहां के जंगलों में वन विभाग की मिलीभगत से अवैध तरीके के पत्ते की तुड़ाई करवाकर उसे निजी गोदामों या घरों में भरकर रखा गया है। साथ ही माफिया समितियों से पत्ते अवैध तरीके से खरीद कर उसकी तस्करी कर रहा है। तेंदूपत्ता की चोरी प्रदेश के कई हिस्सों में तेजी से हो रही है और वन विभाग के अधिकारी निगरानी में असफल साबित हो रहे हैं। अभी हाल ही में रीवा के हनुमना के समीप ग्रामीणों ने तेंदूपत्ता से लदा एक ट्रक पकड़ा, जिसे पंचनामा बनाकर वन विभाग के अधिकारियों के हवाले कर दिया, लेकिन कुछ समय बाद ही वाहन को कर्मचारियों ने छोड़ दिया। जिसके चलते वह पत्ता लेकर चला गया। विभाग की इस कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। प्रदेश में अभी तक एक दर्जन से अधिक मामले तेंदूपत्ता तस्करी के सामने आ चुके हैं। पुलिस को मिली खुफिया जानकारी के अनुसार, सिंगरौली, सीधी, शहडोल, उमरिया, सतना, छतरपुर, मण्डला, बालाघाट, डिण्डौरी, रीवा, शिवपुरी आदि जिलों में माफिया ने लोगों को प्रलाभन देकर उनके गोदामों या फिर घरों में अरबों रूपए का हरा सोना छुपाया है। लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष महेश कोरी कहते हैं की संग्राहकों से अपील की गई है कि वे बिचौलियों के बहकावे में न आएं। निर्धारित खरीदी केन्द्र पर पहुंचकर ही वनोपज का उचित विक्रय मूल्य प्राप्त करें। वह कहते हैं की तेंदूपत्ते को सरकारी गोदामों में रखा जा रहा है। इसके लिए सतर्कता भी बरती जा रही है। 10 करोड़ वसूल ले गए नक्सली नोटबंदी के बाद नक्सलियों की आर्थिक हालत खस्ता है। नुकसान की भरपाई के लिए नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी ने इस बार मप्र, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में तेंदूपत्ता ठेकेदारों से करोड़ों रुपए की वसूली का टारगेट दिया था। कमेटी ने मप्र में सक्रिय नक्सलियों को 8 करोड़ रुपए वसूली का टारगेट दिया था लेकिन नक्सली 10 करोड़ से अधिक वसूल ले गए। हांलाकि खुफिया जानकारी मिलने के बाद मप्र पुलिस उन तेंदूपत्ता ठेकेदारों पर पैनी नजर रखे हुई थी जो बैंक से ज्यादा कैश की निकासी कर रहे थे। पुलिस की सतर्कता से मप्र और महाराष्ट्र के नक्सलियों को पहुंचाई जा रही वसूली की बड़ी रकम पिछले महीने जब्त हुई थी। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में एक तेंदूपत्ता ठेकेदार के दो मैनेजरों को करीब 75 लाख रुपए के साथ गिरफ्तार किया गया है। वहीं, बालाघाट जिले में दो कार्रवाई में करीब 3 लाख 40 हजार रुपए जब्त किए गए हैं। दो ग्रामीण व एक ठेकेदार गिरफ्तार भी किया गया है। उनसे मिली जानकारी से यह बात सामने आई की किस तरह नक्सली तेंदूपत्ता संग्राहकों से लेवी वसूलते हैं। बालाघाट एसपी अमित सांघी का कहना है कि तेंदूपत्ता ठेकेदारों से वसूली के लिए नक्सलियों का मूवमेंट बढऩे की खबर मिलते ही चौकसी बढ़ा दी गई। पुलिस की सतर्कता के चलते दो मददगार और एक तेंदूपत्ता ठेकेदार को गिरफ्तार भी किया गया है। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ पुलिस के साथ ज्वाइंट ऑपरेशन लगातार जारी है। ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश में तेंदूपत्ता का उत्पादन बालाघाट, छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, डिंडोरी, बैतूल, खंडवा, होशंगाबाद, खरगौन, झाबुआ व जबलपुर में मुख्य रूप से होता है। हर साल तेंदूपत्ते की तुड़ाई और संग्रह की तैयारी होता देख नक्सली और माफिया जंगलों में सक्रिय हो जाते हैं। जंगलों में तेंदूपता तोडऩे वाले आदिवासियों, समितियों, वन अधिकारियों के पास इनकी धमकी पहुंचने लगती है। देश में मप्र के अलावा छत्तीसगढ़, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और झारखंड में तेंदूपत्ते का अच्छा उत्पादन होता है। पिछले एक दशक से तेंदूपत्ता माफिया, नक्सली, डकैतों के लिए कमाई का सबसे बड़ा और आसान संसाधन बन गया है। इस कारण जैसे ही मार्च का महीना शुरू होता है इनकी सक्रियता वन क्षेत्र में बढ़ जाती है। तस्करों पर कार्यवाही करने से डरते हैं वनकर्मी वन माफिया की नजर वनोपज के साथ ही पूरे जंगल पर है। जहां माफिया तेंदूपत्ता, महुआ आदि की तस्करी में जुटा हुआ है वहीं हरे-भरे जंगलों को नष्ट करने का कार्य बड़ी तेजी चल रहा हैं। धड़ल्ले से बेखौफ होकर वृक्षों पर कुल्हाडिय़ां चलाई जा रही हैं। खुलेआम वनों से हरे वृक्षों की काटाई कर बड़े शहरों मे बेंचा जा रहा है। दशकों पहले जंगल तस्करों पर वन विभाग पर खासा नियंत्रण हुआ करता था लेकिन आज स्थिति यह बन चुकी है कि आज वन माफिया निडर होकर वनों को तेजी से नेस्तनाबूत करने मे जुटे हुये हैं। जंगलों कि यदि हकीकत देखी जाय तो घने जंगल मैदान मे तब्दील हो रहे हैं। लेकिन न जाने क्या कारण है कि वन विभाग इन चोरों पर कार्यवाही नहीं कर रहा है। सूत्रों की मानें तो डकैतों के भय के चलते वन विभाग वन तस्करों पर कार्यवाही करने से भय खा रहा है। सतना से मानिकपुर तक आने वाली पैंसेंजर ट्रेन(51765) मे सूखा तेंदूपत्ता लादकर बड़े शहरों में ले जाया जा रहा है। कई महीनों से तेंदूपत्ता तस्करी का खेल चल रहा है लेकिन जानते हुए भी वनकर्मी एसे लोगों पर कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। खुनखराबे पर उतरे डकैत प्रदेश में डकैत पिछले एक दशक से भी अधिक समय से लेवी वसूल रहे हैं। इस साल तेंदूपत्ता और महुंए की फसल अच्छी आने के साथ ही डकैत तेंदूपत्ता तुड़ाई का ठेका लेने वाले ठेकेदारों से रंगदारी वसूलने के लिए सक्रिय हो गए। डकैतों रीवा जिले के जवा एवं त्योंथर तहसील सेमरिया के जंगल, सतना जिले के मझगवां, नागौद, ऊंचेहरा, यूपी के चित्रकूट, मानिकपुर, बांदा, कर्वी एवं हड़हाई के जंगलों में सक्रिय रहेै। वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो पत्ता खरीदने वाले व्यापारी मप्र में लाखों रुपए लेवी के रूप में देते रहे हैं। यह लेवी उन्हें डकैतों, माओवादियों, माफिया और सुरक्षा बलों को देनी पड़ती थी। इससे उनके जान-माल के नुकसान की आशंका न के बराबर रहती है। पिछले एक दशक का इतिहास देखें तो डकैत बिना शोर शराबे और मारपीट के तेंदूपत्ता ठेकेदारों से लेवी वसूलते थे। लेकिन इस बार डकैत मारपीट और खुन खराबे पर उतर आए। चूल्ही और सरहट इकाई में तेंदूपत्ता तोडऩे गए मजदूरों को डकैतों ने यह कह कर भगा दिया कि बिना चौथ दिए पत्ता की तुड़ान नहीं होगी। वहीं रीवा, सतना, चित्रकूट के जंगलों में मारपीट की घटनाएं भी समाने आई हैं। दरअसल, इस क्षेत्र में डकैतों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। कहा तो यहां तक जाता है कि इस क्षेत्र में राजनेता डकैतों को और डकैत राजनेताओं को पालते हैं। इस समय इस क्षेत्र में ललित पटेल, बबुली कोल, गौरी यादव और गोप्पा यादव के गिरोह सक्रिय हैं। बबुली आदिवासी है और उसके सिर पर हुकूमत ने पांच लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा है। दो प्रदेशों के दुर्गम जंगलों से घिरी सीमाएं और राजनेताओं की कमजोर इच्छाशक्ति इन डकैतों के फलने-फूलने का कारण बनती है। वे तेंदूपत्ता, सड़क और सरकारी ठेकेदारों से चौथ वसूलते हैं। इसके बदले में वे उनकी दमन और शोषण की नीतियों का पोषण करते हैं। लेवी को लेकर गैंगवार तेंदूपत्ता से एक माह के अंदर डकैतों की इतनी कमाई हो जाती है की वे सालभर उससे अपना खर्चा चलाते हैं। यही कारण है की उत्तर प्रदेश के डकैतों का भी रूझान इनदिनों में मप्र की ओर बढ़ जाता है। दस्यु ददुआ, ठोकिया, रागिया और बलखडिय़ा ने मप्र के जंगलों में ठेकेदारों से खुब लेवी बटोरी। लेकिन अब तो लेवी के लिए गैंगवार होने लगा है। पिछले महिने दस्यु गोप्पा यादव और दस्यु ललित पटेल के बीच गैंगवार हुई थी। बताया जाता है की दोनों के बीच वसूली क्षेत्र को लेकर झगड़ा था और यह इतना बढ़ गया की गैंगवार हो गया। अब यह गैंगवार हत्या आगजनी में बदल गया है। बताया जाता है कि गैंगवार के बाद डकैत ललित ने गोप्पा यादव के मददगार थर पहाड़ निवासी मुन्ना यादव, टेढ़ी गांव निवासी रामप्रसाद और पालदेव गांव निवासी इन्द्रपाल यादव का अपहरण कर उन्हें जंगल ले और उन्हें जिंदा जला दिया। ललित पटेल का नाम 6 महीने पहले जनवरी में उस समय सुर्खियों में आया जब ललित ने अपना नया गिरोह तैयार कर मोहकमगढ़ के एक आदिवासी युवक का अपहरण कर लिया। तब पुलिस ने 10 हजार का इनाम घोषित किया। इसके बाद ललित ने लूट, डकैती, मारपीट और रंगदारी वसूलने की इतनी वारदातों को अंजाम दिया कि तीन महीने के भीतर ही उसका इनाम बढ़ाकर 30 हजार कर दिया गया। दरअसल ललित पटेल नयागांव थाना निवासी जोकर पटेल का मझला बेटा है। ललित के कई रिश्तेदार इनामी डकैत रहे हैं, ललित भी डकैतों की मदद करने लगा। कुछ दिन राहजनी और लूट भी की। इस दौरान उसने अपना गैंग बनाने का ठान लिया और दिसंबर 2016 के महीने में ललित ने नया गिरोह खड़ा कर लिया। लूट, डकैती, अपहरण जैसी घटनाओं को तो ललित करता ही रहता था। लेकिन एक साथ तीन युवकों का अपहरण करके उन्हें जिंदा जला देने की खौफनाक वारदात को उसने पहली बार अंजाम दिया है। इस घटना के बाद से लोग भारी दहशत में हैं। 500 जवान जुटे सर्चिंग में मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में आंतक का पर्याय बने डकैत ललित और उसके गिरोह का खात्मा करने पुलिस सक्रिय हो गई है। एके-47 से लेकर इंसास जैसे हथियारों से लैस होकर 500 पुलिस के जवान जंगल में उतर गए है। सुरक्षा व्यवस्था के मददेनजर एसपी ने पुलिस मुख्यालय से एसएएफ की एक कंपनी की मांग की थी। जहां से 100 आरक्षकों का बल पहुंच चुका है। पहले से तय चौकियों पर एसएएफ के जवान डेरा जमाए हुए है। जो हर एक स्थिति से गुजरनेे को तैयार है। इसमें कई प्रकार की फोर्स शामिल है। जिसमें पेट्रोलिंग पार्टी, मोबाइल टीम, मोबाइल सर्बिलांस, थाना टीम, जिला पुलिस बल को मिलाया गया है। पुलिस को अनुमान है की दस्यु टीम एके-47 से लैस होगी। इसलिए दस्यु अभियान में लगी टीम के प्रभारियों को एके-47 जैसे अत्याधुनिक असलहा दिए गए है। वहीं टीम के अन्य 6 सदस्यों को इंसास हथियार दिया गया है। दस्यु उन्नमूलन टीम में एक थाना प्रभारी के साथ थाने के 2 आरक्षक और एसएएफ कंपनी के चार-चार जवान दिए गए है। जंगल में घुसने से एक दिन पहले ही सर्चिंग टीम को टास्क दिया जाएगा। जिससे पुलिस की गोपनीयता न भंग हो। आईजी रीवा रेंज आशुतोष राय ने बताया कि ललित गिरोह ने एक साथ तीन लोगों को जिंदा लगाकर पुलिस-प्रशासन को चुनौती दी है। जिसका खात्मा अब तय है। गिरोह के सफाए के लिए 500 जवानों को तैनात किया जा रहा है। त्यौहारों के बाद और पुलिस फोर्स बढ़ाई जाएगी। पड़ोंसी राज्य से भी समय-समय पर सहयोग लिया जाएगा। तेंदूपत्ते की कहानी आंकड़ों की जुबानी वर्ष संग्रहण दर (प्रति मा.बो.) संग्रहण मजदूरी(करोड़) 1989 43.61 150 65.42 1990 61.15 250 152.88 1991 46.16 250 115.40 1992 45.06 250 112.65 1993 41.31 300 123.93 1994 42.38 300 127.14 1995 39.56 300 118.68 1996 44.60 350 156.10 1997 40.14 350 140.49 1998 45.47 400 181.84 1999 49.37 400 194.20 2000 29.59 400 114.78 2001 21.28 400 83.09 2002 22.74 400 89.04 2003 22.25 400 87.56 2004 25.77 400 101.61 2005 16.83 400 66.37 2006 17.97 400 71.88 2007 24.21 450 108.94 2008 18.25 550 100.35 2009 20.49 550 112.67 2010 23.74 650 154.32 2011 17.06 650 110.89 2012 26.06 750 195.45 2013 26.06 950 256.32 2014 22.07 950 223.14 2015 20.34 950 203.00 2016 21.00 1250 345.17 —————-

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