बिहार की जनता ने ऐतिहासिक और अविश्वसनीय जनादेश दिया. चुनाव के परिणामों से बिहार की जनता में खुशी की लहर दौड़ गई. पूरे देश में बिहार इस नतीजे की वजह से चर्चा का विषय बना रहा. चारों तरफ़ नीतीश कुमार और बिहार की जनता की जय-जयकार हुई. नीतीश कुमार को बिहार की जनता ने मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री का दावेदार बना दिया. बिहार की जनता को जो करना था, उसने वह तो कर दिया, लेकिन सवाल यह है कि इस जनादेश का नीतीश कुमार ने किस तरह उपयोग किया. मुख्यमंत्री ने इस जनादेश से क्या सीख ली. बिहार को बेहतर बनाने के लिए नीतीश कुमार ने क्या नए प्रयोग किए.
हत्या, लूट, अपहरण, धोखाधड़ी, बाहुबल और धनबल का राजनीति से क्या रिश्ता है, अगर यह समझना हो तो बिहार की विधानसभा को देखिए. बिहार विधानसभा के उनसठ फीसदी विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. बिहार की जनता की ओर से मिले ऐतिहासिक जनादेश का पहला तोहफ़ा मुख्यमंत्री ने दिया. ऐसा मंत्रिमंडल बनाया, जिसमें आधे कैबिनेट मंत्री दाग़दार हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने क्या विकल्प है?
किसी भी मुख्यमंत्री की पहली चुनौती मंत्रिमंडल चुनने की होती है. यह चुनौती इसलिए है, क्योंकि मंत्रिमंडल की संरचना से इस बात के संकेत मिलते हैं कि सरकार आने वाले पांच सालों में क्या करने वाली है. जनता से जुड़े नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक किस्म के लोग अगर मंत्रिमंडल में स्थान पाते हैं तो यह समझा जा सकता है कि सरकार अच्छी योजनाएं बनाएगी, ईमानदारी से योजनाओं को लागू करेगी. अगर मंत्रिमंडल में ऐसे लोग हों, जो दाग़ी हैं, बाहुबली हैं या फिर जिनकी पृष्ठभूमि अपराध की है तो यह समझा जा सकता है कि सरकार जनता के लिए नहीं, बल्कि कुछ निजी स्वार्थों के लिए काम करेगी. हर मुख्यमंत्री पर ऐसे लोगों को मंत्री बनाने का दबाव रहता है, क्योंकि कोई मुख्यमंत्री स्वयं यह तो नहीं चाहता कि उसके मंत्रिमंडल में दाग़ी किस्म के लोग हों. नीतीश कुमार ईमानदार छवि वाले नेता हैं, देश की जनता उन्हें अब भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रही है. बिहार की जनता उनसे आस लगाए हुए है, लेकिन बिहार का वर्तमान मंत्रिमंडल नीतीश कुमार की छवि और जनादेश के ठीक विपरीत है. अगर नीतीश कुमार की कैबिनेट में लगभग आधे लोग दाग़ी हों, उन पर आपराधिक मामले चल रहे हों, तो इसे क्या कहा जाए.
नीतीश कुमार की सरकार के लिए यह ज़रूरी है कि एक फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर सभी विधायकों और मंत्रियों के मामलों को तीन महीने के अंदर निपटाया जाए. जिन विधायकों का जुर्म सिद्ध हो जाए, उन्हें जेल भेज दिया जाए, उनकी सदस्यता निरस्त कर दी जाए और जो बरी हो जाएं, उनका राजनीति में स्वागत किया जाए. यही नीतीश कुमार की नैतिक जि़म्मेदारी है.
बिहार में कुल 30 कैबिनेट मंत्री हैं. इनमें से 14 मंत्री ऐसे हैं, जिन पर आपराधिक मुकदमे हैं. मज़े की बात यह है कि लोक स्वास्थ्य एवं अभियंत्रण मंत्री चंद्र मोहन राय और सहकारिता मंत्री रामधार सिंह, ये दोनों ऐसे मंत्री हैं, जिनके पास पैनकार्ड भी नहीं है. अब पता नहीं, ये कैसे अपना टैक्स भरते हैं या फिर टैक्स भरते ही नहीं हैं. ये तथ्य हमारे नहीं हैं, ये खुद इन मंत्रियों द्वारा जमा किए गए शपथपत्र में हैं, जिन्हें चुनाव आयोग में जमा कराया गया है. जब इन मंत्रियों ने खुद चुनाव आयोग में यह उद्घोषणा की है तो इस पर शक़ करने की कोई वजह नहीं है. जिन 14 मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, उनमें किसी पर हत्या का मामला चल रहा है तो किसी पर चोरी व लूट करने का. कई मंत्रियों पर धोखाधड़ी और दंगा भड़काने का भी मामला है. गौतम सिंह विज्ञान एवं तकनीक मंत्री हैं, उनके खिलाफ़ दो मामले हैं. उन पर हत्या का प्रयास एवं चोरी के अलावा 11 आरोप हैं. फुलवारी शरीफ से जदयू के विधायक श्याम रजक खाद्य एवं जन आपूर्ति मंत्री हैं. उनके खिलाफ़ भी दो मामले हैं. उन पर भी हत्या का प्रयास और दंगा भड़काने के अलावा चार आरोप हैं. सारण से भारतीय जनता पार्टी के विधायक जनार्दन सिंह सिग्रीवाल राज्य के श्रम संसाधन मंत्री हैं. उन पर पांच मामले लंबित हैं. बिहार के शहरी विकास एवं नियोजन मंत्री प्रेम कुमार पर भी एक आपराधिक मामला दर्ज है. प्रेम कुमार गया से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते हैं.
नीतीश कुमार से लोगों की आशाएं इसलिए बंधी, क्योंकि उनके पहले जहां सरकार का अस्तित्व नहीं था, वहां उन्होंने सरकार को स्थापित किया. दिनदहाड़े अपराध करने वाले ब़ेखौफ़ और बेलगाम अपराधियों का खात्मा किया. अपराधियों के खिलाफ़ जब अदालत में हर दिन की सुनवाई और सज़ा होने लगी तो लोगों का विश्वास जागा.
गन्ना और सिंचाई मंत्री अवधेश प्रसाद कुशवाहा पर तो चोरी का आरोप है. वह पिपरा के विधायक हैं. इसी तरह परिवहन मंत्री बृषिण पटेल, पंचायतीराज मंत्री हरि प्रसाद साह, उद्योग एवं आपदा प्रबंधन मंत्री रेणु कुमारी पर एक-एक आरोप है, जो चुनाव से संबंधित है. इसी तरह कला एवं संस्कृति मंत्री प्रो. सुखदा पांडे और सूचना तकनीक मंत्री शाहिद अली खान पर भी अदालत में एक-एक मामला दर्ज है. सीतामढ़ी के विधायक सुनील कुमार उर्फ़ पिंटू राज्य के पर्यटन मंत्री हैं. उनके खिलाफ़ 3 मामले दर्ज हैं. भारतीय जनता पार्टी के विधायक नंद किशोर यादव सड़क निर्माण मंत्री हैं. उनके खिलाफ़ 4 आपराधिक मामले हैं. भागलपुर के विधायक अश्विनी कुमार चौबे राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हैं. उनके खिलाफ़ भी 3 आपराधिक मामले हैं. सहकारिता मंत्री रामाधार सिंह के खिलाफ़ 5 आपराधिक मामले हैं. यह सूची यहीं खत्म नहीं होती है. ऊपर दी गई जानकारियां 30 में से 25 कैबिनेट मंत्रियों के हलफ़नामे पर आधारित हैं. कई और मंत्रियों पर आपराधिक मामले होंगे. समझने वाली बात यह है कि ये आरोप हैं. बिहार के उक्त कैबिनेट मंत्री दोषी हैं या नहीं, यह फैसला अदालत करेगी. जनता और अदालत के फैसले में एक बड़ा फकऱ् होता है. अदालत सबूत पर फैसला करती है, जनता चेहरा देखती है. बिहार की जनता ने लालू यादव का चेहरा देखा, नीतीश कुमार का चेहरा देखा, और फैसला कर दिया. अगर बिहार के लोग सबूत देखते तो 80 फीसदी सड़कें दिखाई देतीं, जो नहीं बनी हैं. रात के अंधेरे में वे बिजली ढूंढते, जो सर्फ़ि दिन भर में चंद घंटे रहती है. सबूत ढूंढते तो पीने के लिए साफ़ पानी का ठिकाना पूछते. बिहार की जनता ने नीतीश कुमार का चेहरा देखा, एक आशा देखी. अब नीतीश कुमार के लिए बिहार की जनता की आशाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने का व़क्त है.
बिहार की जनता ने भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के समर्थन में वोट तो दिया, लेकिन दोनों ही पार्टियों ने दागिय़ों, बाहुबलियों और अपराधियों को टिकट देकर जनता के अपार समर्थन का मज़ाक उड़ा दिया. जनता दल यूनाइटेड के 114 विधायक हैं. उनमें से 58 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं और 43 विधायक ऐसे हैं, जिन पर गंभीर आरोप हैं. भारतीय जनता पार्टी के 90 विधायक हैं, जिनमें से 58 विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं और उनमें से 29 ऐसे हैं, जिन पर गंभीर आरोप हैं. लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल में भी आपराधिक छवि वाले विधायक हैं. इस दल का आंकड़ा देने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि बिहार की राजनीति में अपराधियों को स्थापित करने में राजद सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. बिहार की जनता ने 15 साल के गुंडाराज से निपटने के लिए ही नीतीश कुमार को चुना था. नीतीश कुमार की पिछली सरकार ने अपराध पर क़ाबू भी पाया. जो खूंखार अपराधी थे, उन्हें फास्ट ट्रैक कोर्ट के ज़रिए सज़ा दिलाई गई. सैप दस्ता बनाकर अपराधियों की धरपकड़ की, उनका एनकाउंटर भी किया. व्यापारियों और दुकानदारों को रंगदारों से छुटकारा मिल गया. बिहार की जनता को दिनदहाड़े लूट-मार से निजात मिल गई. जनता ने नीतीश कुमार को उसका ईनाम भी दे दिया.
अब जब यह सामने आता है कि विधानसभा में 241 में से 141 विधायकों के खिलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज हैं तो ऐसे जनाधार का क्या मतलब रह जाता है. दोनों ही पार्टियों ने आपराधिक छवि वाले नेताओं को टिकट देने में कोताही नहीं की. यही वजह है कि 2005 में कऱीब 50 फीसदी विधायकों पर आपराधिक मुकदमे चल रहे थे तो इस बार ऐसे विधायकों की संख्या में 9 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है. कुछ लोग यह कह सकते हैं कि इन आपराधिक छवि वाले नेताओं को बिहार की जनता ने ही चुना है. यह बात तर्कसंगत भी है. लेकिन क्या राजनीतिक दलों ने अपने प्रचार के दौरान बिहार की जनता को यह बताया था कि उनके उम्मीदवारों पर लूट, हत्या, अपहरण एवं चोरी के आरोप लगे हैं. जनता को राजनीतिक परिपक्वता से लैस करना राजनीतिक दलों का काम है. बिहार चुनाव में हिस्सा लेने वाले सभी दलों ने अपराधियों को टिकट देकर जनता के सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा. नीतीश कुमार से यह शिकायत है कि मुख्यमंत्री रहते हुए वह जनता की भावनाओं और आकांक्षाओं को समझ नहीं पाए. बिहार की जनता नीतीश कुमार का चेहरा देखकर वोट दे रही थी, पार्टी या उम्मीदवारों को नहीं. भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड ने अपराधियों को टिकट देकर राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ावा दिया है. अपराध पूरी तरह से खत्म करने की पहली शर्त ही यही है कि अपराध और अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण न मिले. अगर आपराधिक चरित्र वाले लोगों का विधानसभा पर ही क़ब्ज़ा हो जाए तो अपराध खत्म कैसे होगा. इसी सवाल का जवाब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देना है.
नीतीश कुमार से लोगों की आशाएं इसलिए बंधी, क्योंकि उनके पहले जहां सरकार का अस्तित्व नहीं था, वहां उन्होंने सरकार को स्थापित किया. दिनदहाड़े अपराध करने वाले ब़ेखौफ़ और बेलगाम अपराधियों का खात्मा किया. अपराधियों के खिलाफ़ जब अदालत में हर दिन की सुनवाई और सज़ा होने लगी तो लोगों का विश्वास जागा. लोगों को लगा कि राज्य में क़ानून का राज है. इस बार चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अभियान छेड़ा है. नए-नए प्रयोग हो रहे हैं. विधायक निधि को खत्म करके भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की अच्छी कोशिश हुई है. मंत्रियों और अधिकारियों द्वारा अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करने से भी बिहार को फायदा होगा. मंत्रियों और अधिकारियों को फरवरी तक अपनी संपत्ति सार्वजनिक करनी है. मंत्रियों की जानकारी अब इंटरनेट पर मौजूद है. नीतीश कुमार की एक नई पहल यह है कि अधिकारियों के खिलाफ़ मामला आने पर अब उनकी संपत्ति ज़ब्त कर ली जाएगी. यह भ्रष्टाचार से निपटने का लोकप्रिय और कारगर तरीक़ा है. अब अधिकारी ग़लत काम करने से बचेंगे. समझने वाली बात यह है कि भ्रष्टाचार, अपराध, कालाबाज़ारी और अराजकता, सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं. इनमें से कोई एक भी सरकारी तंत्र में अपनी पैठ बनाता है तो दूसरी बीमारियां खुद-बख़ुद आ जाती हैं. किसी एक को निशाने पर लेने से काम नहीं बनने वाला है. अगर पूरे सरकारी तंत्र को सुधारना है तो भ्रष्टाचार, अपराध, कालाबाज़ारी, भूमा़फियाओं और दलालों से एक साथ लडऩा होगा.
बिहार में पहले अपराधियों का बोलबाला हुआ तो एक के बाद एक, दूसरी बीमारियों ने सरकार को अपने जाल में फंसा लिया. नतीजा, सरकारी तंत्र ही ध्वस्त हो गया. आज वही खतरा फिर से दिखने लगा है. बिहार विधानसभा और बिहार की कैबिनेट में आपराधिक छवि वाले लोग बहुमत में आ गए हैं. नीतीश कुमार अगर बिहार का चौतरफा विकास चाहते हैं तो उन्हें ऐसे लोगों को बिहार की राजनीति से बाहर करना होगा. समस्या यह है कि जब भी राजनीतिक दलों से अपराधियों को दूर रखने के लिए कहा जाता है तो उस पर तर्क-वितर्क शुरू हो जाते हैं. भारत में किसी को अपराधी तब तक नहीं माना जाता, जब तक उसे अदालत में सज़ा न मिल जाए. यह क़ानून का नजरिया है. लेकिन लोकतंत्र में नैतिकता के मापदंड अलग होते हैं. भारत की राजनीति में आज नैतिकता की कोई जगह नहीं बची है. इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं को मंत्री की कुर्सी खाली करनी पड़ी है. ए राजा भी आरोपी हैं, दोषी नहीं हैं, लेकिन उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा.
पिछली सरकार का काम तो अब इतिहास बन चुका है. बिहार की जनता को नीतीश कुमार के अगले कदम का इंतजार है. अब सवाल यह है कि अगला कदम क्या हो सकता है. आपराधिक छवि वाले नेता जनतादल यूनाइटेड, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय जनता दल और लोक जनशक्ति पार्टी में भी हैं. नीतीश कुमार की सरकार के लिए यह ज़रूरी है कि एक फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर सभी विधायकों और मंत्रियों के मामलों को तीन महीने के अंदर निपटाया जाए. जिन विधायकों का जुर्म सिद्ध हो जाए, उन्हें जेल भेज दिया जाए, उनकी सदस्यता निरस्त कर दी जाए और जो बरी हो जाएं, उनका राजनीति में स्वागत किया जाए. यही नीतीश कुमार की नैतिक जि़म्मेदारी है.
बिहार न तो तमिलनाडु है, न हरियाणा-पंजाब है और न ही कोई ऐसा राज्य, जहां जनता चुनाव में एक के बाद दूसरी पार्टी को सरकार बनाने का मौका देती है. बिहार की जनता का एक चरित्र है. वह नेताओं को सिर पर चढ़ाकर रखती है या फिर ठोकर मार देती है. बिहार की जनता ने नीतीश कुमार को सिर पर बैठाया है. अब नीतीश कुमार की जि़म्मेदारी है कि वह बिहार की जनता की आशाओं और भावनाओं के अनुरूप काम करें और बिहार को अपराध व अपराधियों और भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों से मुक्त कराएं. नीतीश जी, बिहार की राजनीति में यू टर्न नहीं होता है.
Friday, March 25, 2011
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