मध्यप्रदेश में गैर प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन का ख्वाब देख रहे अधिकारियों के मंसूबों पर इस बार भी पानी फिरता नजर आ रहा है। पहले विभागीय लेतलाली, फिर सामान्य प्रशासन विभाग की कार्यप्रणाली और अब राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के विरोध ने मामले को पेंचिदा बना दिया है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के मामले को लेकर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी प्रशासनिक न्यायाधिकरण में मुकदमा करने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नति हेतु कोई पृथक से कोटा नहीं हैं। इसे भारत सरकार द्वारा भी पूर्व में अन्य मुकदमों में स्वीकार किया गया है, जबकि प्रदेश में इसे कोटे के रूप में लिया जाने लगा है। उनका आरोप है कि राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी 22-23 वर्ष की सेवा के उपरांत भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नत नहीं हो पा रहे हैैं, जबकि 8 वर्ष की सेवा के उपरांत ही उन्हें पदोन्नति की पात्रता हो जाती है तथा पदोन्नति के सभी पद प्राथमिक रूप से राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के कोटे के अंतर्गत ही हैं। नियमानुसार गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में से भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नति की प्रक्रिया तब ही प्रारंभ हो सकती है, जब उस वर्ष विशेष परिस्थिति एवं विशेष प्रकरण मौजूद हों। विशेष परिस्थिति का निर्धारण राज्य शासन एवं संघ लोक सेवा आयोग के परामर्श के उपरांत केन्द्र सरकार को औपचारिक रूप से करना होता है। विशेष परिस्थिति के निर्धारण के समय लोकहित का होना भी आवश्यक है जबकि प्रदेश में यह प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है। विशेष परिस्थिति के निर्धारण के उपरांत ही उस वर्ष गैर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में से भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन द्वारा भर्ती के लिये रिक्तियों की संख्या का निर्धारण रेग्युलेशन-3 आई.ए.एस. (अपाईटमेंट बाई सिलेक्शन) रेेग्युलेशंस 1997 के अंतर्गत किया जा सकता है। यह विशेष परिस्थिति निर्धारण के पूर्व ही कर ली गई।
इस बार गैर राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के चयन द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्ति के लिए गैर पारदर्शी ढंग से नामांकन प्राप्त किये गये। लोक सेवाओं के अंतर्गत सभी पात्र व्यक्तियों से विज्ञापन अथवा राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए जाने चाहिए थे। इसके कारण चयन प्रक्रिया में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चयन समाप्त ही हो गया और विभाग के प्रमुख सचिव/सचिव तथा राजनैतिक प्रभाव के माध्यम से नामांकन किये जाने की परिस्थितियां निर्मित हुई। सभी पात्र गैर राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारियों को आवेदन करने का अवसर ही नहीं दिया गया। यह पिक एण्ड चूज के अंतर्गत है। नियमानुसार नामांकन प्राप्त करने के पूर्व विशेष परिस्थिति का निर्धारण किया जाना रूल-4 (2) ए तथा रूल 8 (2) ए के अंतर्गत अनिवार्य है, क्योंकि विशेष परिस्थिति के निर्धारण के उपरांत ही गैर राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारियों से भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन द्वारा नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ हो सकती है, किन्तु विशेष परिस्थिति के निर्धारण किये बिना ही नामांकन प्राप्त करने की प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई।
इस मामले को लेकर पूर्व में भी विवाद हुए हैं लेकिन राज्य सरकार ने कभी भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। जिससे विगत दो वर्षों की भांति इस बार भी अधिकारी अपनी योग्यता नहीं बल्कि जुगाड़ के बल पर इस सर्वोच्च प्रशासनिक पद को पाने की जुगत भिड़ाए हुए हैं। हालांकि इनमें से कुछ अधिकारी तो ऐसे हैं, जो वर्षों से आईएएस बनने की जुगत भिड़ा रहे हैं, लेकिन दांव नहीं लग पा रहा है। इस बार मप्र से गैर सिविल सेवा से आईएएस चयन के लिए यूपीएससी को भेजी गई सूची में कई ऐसे अधिकारियों के नाम भी शामिल हैं जो पूर्व में भी विवादों में फंसे थे। लेकिन राज्य सरकार के मुखिया और उनके अन्य मंत्री अपने चहेतों को आईएएस बनाने के लिए जिद पर अड़ सा गए है। सूत्र बताते हैं कि आईएएस चयन की इस पूरी प्रक्रिया में एक-एक अधिकारी से लाखों रुपए लिए गए हैं।
विभागीय सूत्रों की माने तो इस बार पांच पदों के लिए 20 अधिकारियों की अंतिम सूची बनाई गई है, लेकिन यह सूची चयन के लिए यूपीएससी को भेजी गई है कि नहीं इस बार भी असमंजस है। अगर यह सूची यूपीएससी को भेज भी दी गई होगी तो भी ऐसा नहीं लगता कि इस बार भी मध्यप्रदेश को पांच आईएएस अधिकारी मिल ही जाएंगे। क्योंकि बताया जाता है कि जो सूची तैयार की गई है उसमें कुछ नाम ऐसे भी है जो पंजाब हाईकोर्ट एवं सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय को दरकिनार कर शामिल किए गए हैं। क्योंकि प्रवीण कुमार विरुद्ध पंजाब राज्य के मामले में अभी हाल ही में पंजाब हाईकोर्ट एवं सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से यह स्पष्ट हो गया हैै कि 01.01.2010 की स्थिति में आयोजित होने वाले सिलेक्शन कमेटी के लिए विचार क्षेत्र में आने वाले अधिकारियों की आयु सीमा का निर्धारण 01.01.2009 की स्थिति में 54 वर्ष किया जाना हैै, जबकि पूर्व में 01.01.2010 की स्थिति में उम्र 54 वर्ष निर्धारित की गई है। गैर राज्य सिविल सेवा अधिकारियों के नामांकन 01.01.2010 की स्थिति में चयन समिति की बैठक हेतु सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पूर्व की स्थिति के अनुसार 01.01.2009 की स्थिति में 54 वर्ष उम्र का निर्धारण कर मंगाये गये थे। ऐसी स्थिति में प्राप्त सभी नामांकन पंजाब उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय के प्रवीण कुमार के मामले में दिये गये निर्णय के परिप्रेक्ष्य में विधि विरुद्ध हो जाने के कारण शून्यवत हो गए हैं।
उधर केन्द्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली का यह कथन भी आड़े आ सकता है जिसमें उन्होंने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि आईएएस चयन के लिए डिप्टी कलेक्टर और गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा देनी पड़ेगी। अगर इस बार सूची में शामिल अधिकारियों के भाग्य का छींका नहीं टूटता है तो मामला अटका ही रह जाएगा। यहां बता दें कि वर्ष 2007 में मप्र केडर में एक पद था, लेकिन डिप्टी कलेक्टरों के हस्तक्षेप के कारण चयन नहीें हो सका। वर्ष 2008 में दो पदों के लिए राज्य सरकार ने दस अधिकारियों के नाम यूपीएससी को भेजे थे। यूपीएससी ने 19 सितम्बर 2008 को साक्षात्कार रद्द कर दिया। बीते साल भी ऐसा ही हुआ है। इस मामले को लगातार तीन वर्षों से पाक्षिक अक्स पत्रिका द्वारा ही उठाया गया था। अब देखना यह है कि यूपीएससी इस मामले को किस तरह लेता है।
Tuesday, November 30, 2010
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