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भेड़ाघाट

Friday, May 15, 2015

2000 करोड़ के घोटाले का मास्टर माइंड कौन...?

10 मामलों में अब तक 250 से अधिक आरोपी गिरफ्तार
-150 से अधिक छात्र और उनके परिजन अभी भी पकड़ से दूर
राज्यपाल से आरोपी बेटे की मौत के बाद फिर गर्माया मामला
भोपाल। परीक्षा और नौकरी के नाम पर व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं )और उसमें सक्रिय दलालों ने पिछले 10 साल में सवा करोड़ बेरोजगारों को करीब 2000 करोड़ का चूना लगाया है। इस फर्जीवाड़े में अभी तक 250 सं अधिक लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, लेकिन इस महाघोटाले का असली मास्टर माइंड कौन है इसका पता आज तक नहीं चल सका है? इससे अब जांच एजेंसी एसटीएफ और एसआईटी भी सवालों के घेरे में है। ऐसे में राज्यपाल रामनरेश यादव के पुत्र की संदिग्ध मौत ने एक बार फिर से मामले को गर्मा दिया है। उल्लेखनीय है कि व्यापमं घोटाले का खुलासा 7 जून 2013 को उस समय हुआ जब पीएमटी की फर्जी तरीके से परीक्षा दे रहे करीब एक दर्जन मुन्नाभाईयों को इंदौर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इसके बाद तो एक के बाद इस घोटाले के उलझे तार सुलझते चले गए। सबसे पहले पकड़ में आया डॉ जगदीश सागर। जगदीश सागर की गिरफ्तारी और उससे हुई पूछताछ के बाद पता चला कि, मामला उतना छोटा नहीं जितना समझा जा रहा था। लिहाजा मामले की जांच एसटीएफ को सौंप दी गई। यहां से शुरू हुआ व्यापमं फर्जीवाड़े की परत दर परत खुलने का सिलसिला। व्यापमं के पूर्व कंट्रोलर पंकज त्रिवेदी, सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा की गिरफ्तारी के बाद तो खुलासा हुआ कि, पूरा व्यापमं ही फर्जी परीक्षाओं का अड्डा बन चुका था। इस एक साल में एसटीएफ ने कई अधिकारियों, नेताओं, छात्रों और उनके परिजनों को गिरफ्तार किया है। इसके बाद एसटीएफ ने बाकी परीक्षाओं में हुई धांधलियों की भी पड़ताल की। व्यापमं द्वारा कराई गई-पीएमटी 2012-13, प्रीपीजी, आरक्षक भर्ती परीक्षा, एसआई भर्ती परीक्षा, संविदा शिक्षक वर्ग 2 और 3, दुग्ध संघ परीक्षा, वन रक्षक भर्ती परीक्षा, बीडीएस परीक्षा, संस्कृत बोर्ड परीक्षा और राज्य ओपन टायपिंग परीक्षा में फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। एसटीएफ ने फर्जीवाड़े में शामिल दो सैकड़ा से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन एसटीएफ अब तक भी उन बड़े नामों पर शिकंजा नहीं कस सकी है। जिनकी छत्रछाया में ही छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का ये पूरा खेल चल रहा था। बैकफुट पर शिवराज सरकार मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल भर्ती मामले को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार बैकफुट पर नजऱ आने लगी है। दिन-ब-दिन यह मामला बड़ा होता जा रहा है। व्यापमं मामले की वजह से विधानसभा के बजट सत्र को समय से एक महीने पहले ही सरकार को खत्म करना पड़ा। इस मामले की आंच राजभवन तक पहुंचने से यह बात तो साबित हो गई है कि इस घोटाले को ऊंचे स्तर पर निर्देशित किया गया है। जब प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था, तब उन्होंने कहा था कि मेरे ऊपर भी लोग हैं और उनकी तरफ से अनुशंसायें आईं थीं। अब इस मामले में प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है। उनपर आरोप है कि उन्होंने तीन उम्मीदवारों को फर्जी तरीके से वन रक्षक भर्ती परीक्षा में अपने पद का दुरुपयोग कर पास करवाया। हालांकि उन्होंने अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को अदालत में इस आधार पर चुनौती दी है कि वह संवैधानिक पद पर हैं और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है, लेकिन इससे पहले राज्यपाल के ओएसडी और उनके बेटे शैलेश यादव का नाम इस घोटाले में आ चुका है। इस घोटाले के प्रमुख आरोपी पंकज त्रिवेदी डेढ़ साल में करीब छह बार राजभवन गया था। इस बात का खुलासा राजभवन की विजिटर्स लॉगबुक से हुआ है। इस लॉगबुक को एसटीएफ एफआईआर दर्ज करने से पहले ही जब्त कर चुकी है। यह राज्यपाल और उनके बेटे के खिलाफ सबसे अहम सबूत साबित हो सकता है। न्यायालय में प्रस्तुत आरोप पत्र में मुख्य आरोपी पंकज त्रिवेदी ने बयान दिया था कि परीक्षा के पूर्व से समय-समय पर प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव आते रहे तथा पीएमटी 2012 में उन लोगों को चयनित कराने के लिए दबाव बनाया, जिनके अत्यधिक दबाव के कारण मैंने कंप्यूटर शाखा के प्रभारी नितिन महिंद्रा एवं चंद्रकांत मिश्रा से चर्चा करके अभ्यार्थियों को पास कराने के लिए योजना तैयार की। अन्य परीक्षाओं के संबंध में मुझे वरिष्ठ लोगों से, जिनमें अधिकारी नेता शामिल हैं, अलग अलग समय में लिस्ट दी थी। इसी तरह के घोटाले की वजह से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला अपने बेटे के साथ सजा काट रहे हैं। शिवराज सिंह चौैहान पिछले साल विधानसभा में यह स्वीकार कर चुके हैं कि 1000 से ज्यादा अपात्र लोग इस घोटाले की वजह से प्रदेश में नौकरियां पा चुके हैं। कुल मिलाकर व्यापमं द्वारा आयोजित 13 परीक्षायें जांच के दायरे में आ चुकी हैं। 14 महीने की एसआईटी जांच के बाद लगभग 1500 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। यह मुद्दा केवल राजनीतिक नहीं रह गया है। यदि किसी मुख्यमंत्री को देश के ईमानदार नेताओं में से एक माना जाता है तो उसके 10 साल के शासन काल में लंबे समय तक इस तरह की धांधली हो तो यहां बात नैतिकता की आ जाती है। भले ही अभी सबूूत मुख्यमंत्री के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनके कार्यकाल में इतने बड़े स्तर पर घोटाले को अंजाम दिया गया, तो इसे सीधे-सीधे उनके कर्तव्य निर्वहन में उनकी विफलता माना जाएगा। यह शिवराज के राज में सबसे बड़ा दाग है। इससे न जाने कितने युवाओं का भविष्य खराब हो गया। इसकी सीधी-सीधी जिम्मेदारी प्रदेश के मुख्यमंत्री की है, क्योंकि इतना बड़ा घोटाला यदि किसी मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हो तो वह जवाबदेही से नहीं बच सकता है। इसी वजह से प्रदेश में विपक्ष आक्रामक है और प्रदेश की आम जनता के मन में राज्यपाल जैसे बड़े लोगों के इस मामले में फंसने से सवाल खड़े हो रहे हैं। इसलिए सरकार के लिए बेहतर होगा कि वह इस मामले से सभी लोगों के नाम सार्वजनिक करें और उन दस्तावेजों का खुलासा करें, जिस आधार पर मुख्यमंत्री ने प्रदेश में 1000 लोगों के फर्जी तरीके से भर्ती होने की बात स्वीकार की थी। यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो आमजन का प्रदेश सरकार से विश्वास उठ जाएगा। हालांकि कांग्रेस पार्टी काफी पहले से इस मामले की जांच कई बार सीबीआई से कराने की मांग कर चुकी है। राज्यपाल का नाम मामले में आने के बाद कांग्रेस पार्टी एक बार फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने मामले की जांच कर रही एसआईटी को एक केंद्रीय मंत्री, राज्य सरकार के एक केंद्रीय मंत्री और राज्य के कुछ आला अधिकारियों के खिलाफ दस्तावेज सौंपे हैं और एसआईटी से मांग की है कि वह इन दस्तावेजों की जांच कर उन लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई करे। दस्तावेज प्रस्तुत करते समय कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया और वकील केटीएस तुलसी मौजूद थे। इस दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि व्यापमं घोटाले में शिवराज सिंह और उनका परिवार शामिल है। कांग्रेस ने जांच में मुख्यमंत्री और उनके परिवार को बचाने एवं एसटीएफ के सीएम के इशारे पर काम करने का भी आरोप लगाया है और कहा कि आरोपियों से सीज किए गए कंप्यूटर से प्राप्त दस्तावेजों से छेड़छाड़ की गई है। हालांकि कांग्रेस एक बार फिर इस मुद्दे के बल पर प्रदेश में अपनी खोई जमीन वापस पाना चाहती है। व्यापमं घोटाला संघर्ष समिति के सदस्य मनीष काले ने बताया कि समिति ने 2 मार्च को दिल्ली के जंतर मंतर में प्रदर्शन किया था। वे लोगों से लगातार मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर उनसे अपने बच्चों के भविष्य के साथ हुए खिलवाड़ के लिए जिम्मेदार कौन, जैसे सवाल पूछ रहे हैं। लोग चाहते हैं कि इस घोटाले की जवाबदेही तय हो। वेटिंग लिस्ट के छात्रों को सभी आयामों में रिक्तस्थानों पर प्रवेश दिया जाए। सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पारदर्शी और निष्पक्ष व्यवस्था निर्मित की जाए। फिलहाल इस मामले की जांच हाई कोर्ट की देखरेख में हो रही है। इसलिए अपेक्षा की जानी चाहिए कि इस मामले में सारा सच सामने आएगा। बावजूद इसके, इस कांड ने राज्य की भाजपा सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा किया है। इससे उसकी छवि प्रभावित हुई है। इसे लेकर विधानसभा में जो हंगामा हुआ है, उसके बाद शिवराज की दिल्ली यात्रा को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि व्यापमं मामले के संबंध में ही आलाकमान ने उन्हें दिल्ली बुलाया था, लेकिन सवाल यहां यह उठता है कि आखिरकार सरकार व्यापमं के मुद्दे पर इस तरह का रवैया क्यों अपना रही है। यदि प्रदेश सरकार को मालूूूम है कि एक हजार नियुक्तियां गलत तरीके से हुई हैं तो उन्हें अब तक उन्हें रद्द क्यों नहीं किया गया? उन रिक्तियों में भर्ती के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? ये सारे सवाल सरकार के लिए लगातार परेशानी का सबब बने हुए हैं। सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह इन सवालों के जवाब दे। अन्यथा शिवराज के राज को इतिहास में जंगलराज के नाम से जाना जाएगा। जिस घोटाले को देश का अब तक का सबसे बड़ा शिक्षा घोटाला बताकर प्रचारित किया जा रहा हो, उसके बारे में उठ रही हर शंका का जवाब सरकार को प्रदेश की जनता को देना चाहिए था। सरकार के पास प्रदेश के 6 करोड़ लोगों के बीच अपनी बात रखने का विधानसभा से बड़ा कोई स्टेज नहीं हो सकता है। सरकार का व्यापमं मामले में विधानसभा सत्र को समय से पहले खत्म कर देने से यही जाहिर होता है कि सरकार बैकफुट पर है और अपने बचाव की राह तलाश रही है। करीब 2000 करोड़ रुपये के बताए जा रहे इस घोटाले की जांच को दो साल होने को आया, कई मछलियां जांच के इस जाल में फंस चुकी हैं, लेकिन अब भी कहना मुश्किल है कि भ्रष्टाचार के इस नेटवर्क का ओर-छोर कहां तक है। 2004 से चल रहे इस गोरखधंधे के तहत फर्जी नियुक्तियां करवाने के लिए कई सरकारी नियमों को ढीला किया गया, कई नियम बदले गए तो कइयों को हटा ही दिया गया। इस पूरे मुद्दे को जोर-शोर से उठाने वाले भोपाल के एडवोकेट आनंद कहते हैं, 'प्रदेश में अकेले संविदा शिक्षकों की ही 80 हजार भर्तियां हुई हैं। यहां 53 विभाग हैं, सबकी भर्ती परीक्षाएं व्यापम ही कराता है। अब तक उसने 81 परीक्षाएं आयोजित की हैं। इनमें एक करोड़ चार लाख विद्यार्थियों ने भाग लिया और कुल चार लाख भर्ती हुईं।Ó आनंद आरोप लगाते हैं कि इनमें से 80 फीसदी भर्तियां फर्जी हैं, 'अब तो खुद मुख्यमंत्री विधानसभा में मान चुके हैं कि एक हजार भर्तियां फर्जी हैं। भले ही वे आंकड़ा कम बता रहे हैं, लेकिन यह तो मान रहे हैं कि फर्जी भर्तियां हुई हैं। सच्चाई से पर्दा उठाने के लिए इतना ही काफी है।Ó आर्थिक पहलू के अलावा इस घोटाले के इससे भी अहम कई पहलू और भी हैं: इसके चलते कई योग्य युवा मौकों से वंचित रह गए। यह घोटाला कई सालों से चल रहा था। इस दौरान पैसे और सिफारिश के जरिये चुने गए उम्मीदवारों ने अपनी जिम्मेदारियों का किस तरह निर्वाह किया होगा, इस व्यवस्था को कैसे घुन की तरह खोखला किया होगा, यह भी गंभीर सवाल हैं। डॉक्टरी जैसे पेशे में तो यह लाखों लोगों की जानों से खेलने वाला खतरनाक खेल भी बन जाता है। इन सड़ी मछलियों की वजह से प्रतियोगी परीक्षाओं में अपने बूते सफल रहीं वास्तविक प्रतिभाओं पर भी शक का दाग लग गया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सदस्य डॉक्टर सीसी चौबल कहते भी हैं कि एमपी के पीएमटी घोटाले की वजह से उन डॉक्टरों को भी संदेह की नजर से देखा जाने लगा है जिन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत से एमबीबीएस की डिग्री ली होगी। इसके अलावा व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण कवायद तो बेकार हुई ही, वह समय भी व्यर्थ हुआ जिसकी भरपाई किसी भी तरह से नहीं हो सकती। कांग्रेस का आरोप है कि दोषियों को सख्त कार्रवाई से बचाने की कोशिश हो रही है। उसके मुताबिक प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1998 के बजाय एसटीएफ ने आईपीसी की धारा 420 और 409 के तहत केस दर्ज कर दिए हैं। पार्टी का कहना है कि यदि एंटी करप्शन एक्ट की धारा 13 (आई) (डी) के तहत मामला दर्ज होता तो यह स्पेशल कोर्ट में चला जाता और इसमें आरोपियों को जमानत भी नहीं मिलती। पार्टी का यह भी आरोप है कि व्यापम के पास वर्ष 2008 तक का कोई रिकार्ड ही मौजूद नहीं है जबकि लोक सेवा आयोग में 10 वर्ष तक उत्तर पुस्तिकाएं और 20 वर्ष तक रिजल्ट सुरक्षित रखने का नियम है। सवाल उठ रहा है कि व्यापमं पर भी यही नियम लागू होता है, तो इसका पालन क्यों नहीं किया गया। कांग्रेस का यह भी आरोप है कि पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी एफआईआर दर्ज करने के 189 दिनों बाद इसलिए की गई क्योंकि जांच की आंच में मुख्यमंत्री निवास भी आने लगा था। सूत्रों के मुताबिक गिरफ्तारी के बाद शर्मा का कहना था कि वे बड़े लोगों के लिए कुर्बानी दे रहे हैं। 16 माह से नहीं हुई प्रदेश में सिपाही भर्ती व्यापमं घोटाला उजागर होने के बाद प्रदेश में पिछले 16 महीने से सिपाही की भर्ती नहीं हुई है। सिपाही बनने के लिए कोचिंग में पैसा व ग्राउंड में पसीना बह रहे युवाओं की उम्मीद अब टूटने लगी है, क्योंकि कई युवा ओवरएज होने की कगार पर खड़े हैं। अगर इस साल भी सिपाही भर्ती नहीं हुई तो प्रदेश में 1 लाख के लगभग युवा सिपाही की दावेदारी की दौड़ से बाहर हो जाएंगे। प्रदेश में 5 हजार से अधिक पद रिक्त होने के बाद भर्ती नहीं होने से अंचल के कुछ युवा न्यायालय की शरण में जाने की तैयारी कर रहे हैं। व्यापमं घोटाले में जिला पुलिस बल, एसएएफ, परिवहन विभाग, जेल प्रहरी की भर्ती प्रक्रिया में काफी धांधली हुई है। प्रदेश में पिछले 10 साल में हुई सिपाही भर्ती पर सवालिया निशान लग गया है। सिपाही भर्ती कांड में कई बड़े नाम सामने आए हैं। कई जेल में हैं। व्यापमं घोटाले के बाद से राज्य सरकार पिछले 16 महीने में सिपाही भर्ती करा सकी है। 5000 के अधिक पद रिक्त तीसरी बार सरकार में आने के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान व गृहमंत्री बाबू लाल गौर कई बार घोषणा कर चुके हैं। प्रदेश में 5000 से अधिक सिपाहियों की भर्ती की जाएगी। प्रदेश में पुलिस बल आवश्यकता से काफी कम है। क्रम पदोन्नति के कारण पिछले सिपाही से प्रधान आरक्षक, प्रधान आरक्षक से एएसआई पद पर काफी संख्या जवान पदोन्नत हुए हैं, लेकिन उस अनुपात में सिपाही की भर्ती नहीं हो पाई है। जिससे प्रदेश के थानों में प्रधान आरक्षक व एएसआई अधिक सिपाही कम हैं। जिसके कारण थानों का कामकाज भी काफी हद तक प्रभावित हो रहा है। 16 महीने पहले हुई आरक्षक भर्ती में ग्वालियर-चंबल अंचल में यूपी व राजस्थान का रैकेट पकड़ में आया था। इस रैकेट से खुलासा हुआ था कि 100 अधिक सॉल्वर ग्वालियर-चंबल अंचल में सॉल्वर परीक्षा देने के लिए आए थे। 4 लाख युवा कर रहे हैं तैयारी सिपाही के लिए प्रदेश में 4 लाख से अधिक युवा सिपाही भर्ती की तैयारी कर रहे हैं। भर्ती होने की उम्मीद में यह लोग कोचिंगों में पैसा व ग्राउंड में पसीना बहा रहे हैं। इनमें से 1 लाख के लगभग युवा ओवरएज होने की कगार पर खड़े हैं। अगर इस साल भी भर्ती नहीं होती है तो यह युवा सिपाही की दौड़ से ही बाहर हो जाएंगे। एसएएफ ग्राउंड पर दौड़ का अभ्यास कर रहे शैलेंद्र सिंह ने बताया कि 16 महीने पहले सिपाही की भर्ती हुई थी। उसने भी आरक्षक बनने के लिए परीक्षा दी थी, लेकिन किसी कारण से उसका सिलेक्शन नहीं हो सका। उसके बाद से भर्ती नहीं होने से सिपाही व एसआई की तैयारी कर रहा है। उसके बाद से अब तक सिपाही की भर्ती नहीं हुई है। सिपाही बनने के लिए प्रतिभागी महीनों से तैयारी कर रहे हैं, लेकिन भर्ती नहीं होने के कारण निराश हैं। कुछ ओवरएज होने की कगार पर हैं। व्यापमं घोटाले के बाद सिपाही की भर्ती नहीं होने के कारण कुुछ प्रतिभागी कोर्ट की शरण में भी जाने का मन बना रहे हैं। 15 सिंतबर 2013 में हुई थी भर्ती- - सिपाही के लिए 15 सितंबर 2013 में व्यापमं के माध्यम से परीक्षा हुई थी। 8 जनवरी को रिजल्ट आया था। 1से 10 फरवरी को फिजिकल टेस्ट हुआ था। 7 फरवरी को रिजेल्ट फाइनल सूची चस्पा हुई थी। यह है प्रक्रिया- - पहले रिटर्न परीक्षा पास करनी पड़ती है। 800 मीटर की दौड़ 2:45 मिनट में क्लियर करनी पड़ती है। मेडिकल टेस्ट होता है।

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