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भेड़ाघाट

Thursday, July 9, 2015

शाह की पाठशाला में तय होगा शिव के मंत्रियों का भविष्य

हाईकमान के पास पहुंचा मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड vinod upadhyay
भोपाल। महासंपर्क यात्रा की समीक्षा के बहाने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मप्र सरकार के मंत्रियों पर नकेल कसने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने पहले ही शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट के सभी 23 मंत्रियों की रिपोर्ट कार्ड मंगा ली है। इसी रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह प्रदेश संगठन के माध्यम से राज्य सरकार के कामकाज की समीक्षा करेंगे हैं। संभवत: शाह के दौरे के बाद ही प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार और निगम मंडलों में नियुक्ति की संभावना बन सकती है। शाह द्वारा सरकार के कामकाज की समीक्षा करने की खबर आने के बाद से सत्ता और संगठन में हड़कंप मचा हुआ है। उधर, राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय द्वारा अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना इस बात का संकेत हैं की शिवराज मंत्रिमंडल का जल्द ही विस्तार होने वाला है। हालांकि अभी विजयवर्गीय का इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया है। दरअसल, 2006 से अभी तक संघ, संगठन और सत्ता ने मंत्रियों की परफार्मेंस से संबंधित जो भी सर्वे कराए हैं उसमें सरकार के लगभग सभी मंत्री किसी न किसी रिपोर्ट में फेल हुए हैं। फिर भी पार्टी मप्र में सत्ता की हैट्रिक लगा चुकी है। इसे भाजपा को केंद्रीय नेतृत्व कांग्रेस की विफलता का प्रतिफल मान रहा है। इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष की निशानदेही पर इस बार मप्र सरकार के मंत्री, उनके काम करने की शैली, परिजनों के कामकाज और उनके व्यावसायिक हितों का का पूरा लेखा-जोखा तैयार कराया गया है। इसमें इंटेलीजेंस और संगठन के पूर्णकालिक पदाधिकारियों की मदद ली गई है। सदस्यता अभियान के दौरान ही हाईकमान द्वारा मप्र सरकार के कामकाज के विस्तृत रिपोर्ट तैयार करा ली गई थी। रिपोर्ट में ऐसे मंत्रियों पर खासा फोकस किया गया है, जो अलग-अलग मामलों में विवादों में रहे हैं। शाह की यह पूरी कवायद तीन साल बाद प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव एवं लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अभी से की जा रही है। पार्टी हाईकमान विवादित मंत्री और नेताओं पर शिकंजा कसने जा रहा है।
छवि पर सबसे अधिक फोकस
भाजपा शसित राज्य मप्र, छत्तीसगढ़ और गुजरात में पार्टी की छवि पर खासा ध्यान दिया जा रहा है। इन तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार लंबे समय से है। संगठन सूत्र बताते हैं कि मप्र से जुड़ी कई शिकायतें पार्टी हाईकमान तक पहुंची हैं। जिसमें भ्रष्टाचार एवं उनके आचरण से जुड़ी शिकायतें शामिल हैं। इनमें से कुछ शिकायतों का पार्टी हाईकमान की ओर से परीक्षण भी कराया जा चुका है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के 13 जुलाई को मप्र के संगठन और सत्ता के कामकाज की समीक्षा के बाद ही प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की संभावना बनेगी। मौजूदा मंत्रियों में से कुछ के पर हाईकमान की मर्जी से ही कतरे जाएंगे।
संगठन को मजबूत करने शाह के पांच सूत्र
विपक्ष की एकजुट और आक्रामकता का जवाब देने के लिए शाह ने पाुच सूत्र तैयार किया है। 13 जुलाई की बैठक में शाह इन पांच सूत्रों को पदाधिकारियों को अपनाने का आव्हान करेंगे। ये हैं नरेंद्र मोदी का चेहरा, सहयोगी संगठनों के नेटवर्क, आर्थिक संसाधन, अत्याधुनिक प्रचार तंत्र और विकास के सपने। पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि प्रदेश और देश में भाजपा को अजेय बनाए रखने के लिए पार्टी पदाधिकारी इन पांच सूत्रों के आधार पर काम करेंगे। इसके तहत फिलहाल देश में अगर पार्टी कोई भी चुनाव लड़ती है तो वह नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट मांगेगी। दूसरा, भाजपा की सबसे मजबूत तैयारी मतदान केंद्रों पर दिखेगी। गांव-गांव में फैले भाजपा के सहयोगी संगठनों के नेटवर्क को और मजबूत बनाना है। तीसरा केंद्र और राज्य की योजनाओं के प्रचार और प्रसार के खर्चों पर कंजूसी नहीं की जाएगी। चौथा लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी के लिए घर-घर मोदी और चाय पर चर्चा के ने जिस तरह क्रांतिकारी असर दिखाया था ऐसे कार्यक्रम लगातार चलते रहने चाहिए। और पांचवां हैं विकास के सपने। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के पास मुख्य मुद्दा विकास ही है। भाजपा के खाते में 13 महीने में देश की हर मोर्चे पर हुई तरक्की की गाथा है। भाजपा के पास देश के विकास का विजन है। जिसके आधार पर पार्टी पदाधिकारी सालभर काम करेंगे।
18 मंत्रियों परफार्मेंस रिपोर्ट तलब की शाह ने
बताया जाता है कि शाह के पास जो रिपोर्ट पहुंची है उसके अध्ययन के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवराज सरकार के 18 मंत्रियों से नाराज हैं। नाराजगी की वजह है इन मंत्रियों द्वारा संगठन के दिशा निर्देशों के अनुसार काम नहीं करना। राजधानी में 10 मई को आयोजित महिला मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक और सुशासन संकल्प सम्मेलन में शामिल होने आए अमित शाह ने शाम को सीएम हाउस में प्रदेश सरकार के मंत्रियों की जमकर क्लास ली। शाह ने मंत्रियों से सख्त लहजे में कहा कि आप लोगों की परफार्मेंस रिपोर्ट से संगठन संतुष्ट नहीं है। आप लोग न तो अपने क्षेत्र का दौरा करते हैं और न ही प्रभार वाले जिलों का। उन्होंने कहा कि कई मंत्रियों का फीडबैक और परफार्मेंस ठीक नहीं है, उनके नाम मैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बता चुका हूं। शाह ने मंत्रियों को प्रभार के जिलों में लगातार जाने, संगठन के साथ बेहतर तालमेल और सक्रियता दिखाने की नसीहत भी दी थी। उन्होंने कहा था कि केंद्रीय संगठन के पास जो रिपोर्ट है, उसके अनुसार अभी तक प्रदेश में भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और संगठन के पदाधिकारियों के दम पर अच्छा परफार्मेंस करती आ रही है। इसलिए उचित होगा कि आप लोग निरंतर सक्रिय रहें और जनता के बीच अधिक से अधिक समय गुजारें। उन्होंने मंत्रियों से कहा था कि आप लोगों की पल-पल की रिपोर्ट मेरे पास है। लेकिन शाह की उस हिदायत के बाद भी मंत्री सुधरे नहीं है। इसलिए शाह एक बार फिर से मंत्रियों से रूबरू होंगे। शायद इस बैठक में मंत्रियों को सामुहिक रूप से उनकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट भी दिखाई जाएगी। उल्लेखनीय है कि मप्र के मंत्रियों की परफार्मेंस रिपोर्ट से प्रदेश संगठन भी संतुष्ट नहीं दिखा है। दरअसल, प्रदेश में तीसरी बार सरकार बनने के 10 माह बाद जब एक सर्वे संघ द्वारा किया गया था तो उस समय 13 मंत्रियों की परफार्मेंस खराब बताई गई थी। उसके बाद जब प्रदेश संगठन ने सर्वे किया था तो 15 मंत्री कसौटी पर खरे नहीं उतरे और अब तीसरी बार के सर्वे में 18 मंत्रियों की परफार्मेंस खराब बताई जा रही है।
काम नहीं करने वाले मंत्रियों कीे होगी छुट्टी!
मप्र विधानसभा के मानसून सत्र के बाद कैबिनेट विस्तार हो सकता है। सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट में नए चेहरों को शामिल किया जा सकता है। साथ ही जो मंत्री सही काम नहीं कर रहे हैं, उनकी कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। बताया जाता है की अभी कुछ माह पहले संघ ने मंत्रियों की जो परफॉर्मेंस रिपोर्ट तैयार की थी उसी के आधार पर मंत्रिमंडल को नया स्वरूप दिया जाएगा। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि 13 जुलाई को होने जा रही बैठक के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उन मंत्रियों को सख्त संदेश देना चाहते हैं जो ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। वहीं, जो मंत्री अच्छा काम कर रहे हैं, उनकी तरक्की हो सकती है। इसके लिए शाह शिवराज सिंह चौहान को फ्री हैंड दे सकते हैं। संघ का आरोप है कि मप्र में भले ही भाजपा सभी चुनाव जीतती आ रही है, लेकिन मंत्री ऐसे हैं जो अपने विभाग की कार्यप्रणाली को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। यही नहीं प्रदेश के 23 में से 13 मंत्री तो ऐसे हैं जो संघ और 15 संगठन के पैमाने पर खरे नहीं उतर सकें हैं। इनमें से कुछ मंत्री अधिकारियों के भरोसे विभाग चला रहे हैं तो कुछ को विभागीय अधिकारी तव्वजों नहीं दे रहे हैं। वहीं कई मंत्री और उनका विभाग ऐसा है कि वे सरकार और संगठन की गाइड लाइन के अनुसार काम ही नहीं कर पा रहे हैं। उल्लेखनीय है की संघ और भाजपा संगठन ने केंद्र और भाजपा शासित राज्यों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे अपनी-अपनी सरकार और मंत्रियों की परफॉर्मेंस की लगातार मॉनिटरिंग करें। साथ संघ और संगठन ने अपने स्तर पर भी मंत्रियों और उनके विभाग की मॉनिटरिंग करवाई है। जिसमें विजन डाक्यूमेंट 2018 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किस स्तर पर प्रयास किया गया, आम जनता में मंत्री की छवि, कार्यकर्ताओं से उनका संपर्क, विभागीय योजनाओं की जानकारी और विभाग में मंत्री की पकड़, मंत्रियों के ओएसडी, निज सहायकों की छवि और मंत्री की उन पर निर्भरता, अब तक की कैबिनेट की बैठकों में मंत्रियों द्वारा अपने विभाग के कितने प्रजेंटेशन दिए गए, मंत्रियों के निर्णय और फाइलों का निराकरण सहित मंत्रालय में बैठकर काम-काज करना, मंत्री के काम-काज से पार्टी की छवि पर कैसा असर, मंत्री बनने के बाद कितने दौरे किए, कितने लोगों से मिले, मैदानी योजनाओं की हकीकत जानने और उसमें सुधार के लिए कितने प्रयास किए आदि को आधार बनाया गया है। इसके साथ ही इंटेलीजेंस से भी रिपोर्ट तैयार करवाई गई है। इन रिपोर्टो के अनुसार प्रदेश के 15 मंत्री अपने अब तक के कार्यकाल में असफल साबित हुए हैं।
बेस्ट परफॅार्मर ही बने रहेंगे मंत्री
संघ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र हो या फिर राज्य बेस्ट परफॉर्मेेस करने वाले मंत्रियों को ही सरकार में रखा जाए। इसको देखते हुए अमित शाह मप्र सरकार के मंत्रियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट जांचेंगे। इससे पहले अधिकारियों द्वारा मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड खगाला जाने लगा है। ऐसे मंत्रियों को छांट कर अलग किया जा रहा है जिनकी परफॉर्मेंस परफैक्ट रही है। ऐसे मंत्री जो विधानसभा के अंदर भी और बाहर भी सरकार की हमेशा अलग-अलग ढंग न केवल सबल प्रदान करते हैं, बल्कि अपने विभाग में मजबूत पकड़ रखते हुए सकारात्मक परिणाम भी देते हैं। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में सत्ता की हैट्रिक और केंद्र में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद संघ और भाजपा संगठन हाथ आए मौके को गंवाना नहीं चाहता है और वह चाहता है कि कम से कम प्रदेश में और 10 साल तथा केंद्र में 15 साल भाजपा की सरकार बनी रहे। इसके लिए वह किसी भी मंत्री की कोताही बर्दास्त करने के मूड में नहीं है। जहां तक प्रदेश की बात है तो अभी मंत्रिमंडल में 11 और मंत्री बनाने की गुंजाइश है। साथ ही भाजपा के पास 165 विधायकों की लंबी फौज है। ऐसे में किसी के दबाव में आने का सवाल ही नहीं उठता। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक-एक विधायक और उसकी क्षमता को जानते हैं और उन्हें पता है कि कौन बेहतर प्रर्दशन कर सरकार की छवि बना सकता है। जल्द ही होने वाले मंत्रिमंडल के फेरबदल में मंत्रियों के विभाग का फैसला उनकी रेटिंग के अनुसार किया जाएगा। इस आधार पर कुछ मंत्रियों को बड़े विभागों की जिम्मेदारी दी जाएगी तो कुछ के विभाग बदले जा सकते हैं, वहीं खराब परफॉरमेंस वालों को मंत्रिमंडल से बाहर कर उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया जाएगा।
यह हो सकते हैं मंत्रिमंडल में नए चेहरे
भाजपा के कुछ पदाधिकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तीसरी पारी में कैबिनेट में होने वाले फेरबदल में तीन नए चेहरे शामिल हो सकते हैं। फिलहाल कैबिनेट में 11 पद खाली पड़े हैं, लेकिन सरकार की मंशा सभी पदों को भरने की नहीं है। इसके साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा की गई समीक्षा के आधार पर मंत्रियों के विभागों में बड़ी संख्या में फेरबदल हो सकता है। जिन मंत्रियों को शाह ने परफॉरमेंस के नजरिए से कमजोर बताया है उनके विभागों में बदलाव किया जा सकता है। पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री को हाईकमान ने फेरबदल के लिए फ्रीहैंड दिया है। इसके लिए जो गाइड लाइन बनाई गई थी उसके मुताबिक संक्षिप्त विस्तार में तीन नए मंत्रियों को शपथ दिलाए जाने पर सहमति बनी है। उनके चयन में भी ये तय किया गया है कि एक ब्राहमण, एक ठाकुर और एक अनुसूचित जनजाति वर्ग से चुना जाएगा। दिग्गजों के बीच चर्चा में जो नाम आए हैं उनमें जशवंत सिंह हाड़ा, लोकेंद्र तोमर, यशपाल सिशोदिया और हर्ष सिंह के नाम में से एक को लेने पर अंतिम फैसला होगा। अनुसूचित जनजाति से रंजना बघेल या निर्मला भूरिया, ओमप्रकाश धुर्वे के नाम पर भी विचार किया गया। ब्राहमण वर्ग से अर्चना चिटनीस, केदार शुक्ल, शंकरलाल तिवारी और संजय पाठक के नामों पर चर्चा की गई। इसके अलावा अनुसूचित जाकित वर्ग से राज्य मंत्री लालसिंह आर्य को स्वतंत्र प्रभार देकर प्रमोट किया जा सकता है।
वहीं भाजपा के पदाधिकारियों का एक वर्ग का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार में बुजुर्ग मंत्रियों को सबसे पहले बाहर किया जा सकता है। संभावना यह लगाई जा रही है कि नए विस्तार में युवा चेहरों को मौका दिया जाएगा। खासकर गृह मंत्री बाबूलाल गौर तथा लोक निर्माण मंत्री सरताज सिंह सहित पुअर परफार्मेंस लाने वाले मंत्रियों की कैबिनेट से छूट्टी हो सकती है। पदाधिकारियों का कहना है कि विस्तार में मुरैना से विधायक एवं पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह, महाराजपुर से विधायक मानवेंद्र सिंह, कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए विधायक संजय पाठक, सीधी से केदारनाथ शुक्ला, आदिवासी विधायक पूर्व मंत्री मीना सिंह, ओमप्रकाश धुर्वे, चौधरी चंद्रभान सिंह, अर्चना चिटनीस सहित निर्मला भूरिया के नाम हैं। इंदौर से कैलाश विजयवर्गीय के चहेते दूसरी बार विधायक चुने गए रमेश मेंदोला को राज्यमंत्री बनाया जा सकता है। वैसे इंदौर से सुदर्शन गुप्ता सहित महेंद्र हार्डिया की वापसी की भी संभावना बन रही है।
'लालबत्तीÓ को लेकर फिर सियासी 'उबालÓ
मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर लालबत्ती को लेकर राजनीतिक उबाल चरम पर पहुंच गया है। पिछले दिनों प्रदेश भाजपा कार्यालय में मप्र भाजपा कार्यसमिति की बैठक के बाद एक बार यह फिर चर्चा शुरू हो गई है कि मप्र में मंत्रिमंडल विस्तार के साथ निगम-मंडलों में लंबे समय से पेंडिंग राजनीतिक नियुक्तियों का दौर शुरू होने वाला है। हालांकि, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस चर्चा की पुष्टि कर चुके हैं। ऐसे में प्रदेश में लालबत्ती को लेकर सियासी जोर-आजमाइश शुरू हो गई है। प्रदेश में लंबे समय से निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर इंतजार किया जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा उन नेताओं को समय गंवाना पड़ रहा है, जो प्रदेश संगठन में रहकर लालबत्ती के लिए दौड़-धूप कर रहे हैं। अब चूंकि प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी का विस्तार भी हो चुका है। एक के बाद एक चुनाव भी निपट गए, ऐसे में इन नेताओं का इंतजार अब खल रहा है। बताया जाता है कि पार्टी के कई पदाधिकारियों के नाम लालबत्ती को लेकर चर्चा में भी हैं। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद से निगम-मंडल मंत्रियों के हवाले हैं। विधानसभा चुनाव के पहले सभी राजनीतिक नियुक्तियों को निरस्त किए जाने के बाद से प्रदेश में अधिकांश निगम-मंडल बिना अध्यक्ष विहीन हैं। किसी में प्रशासक तैनात हैं, तो कुछ विभागीय मंत्रियों के हवाले हैं। सूत्रों की मानें तो प्रदेश भाजपा ने निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर नई नीति बनाई है। इसके चलते कोई भी पदाधिकारी एक साथ दो पदों पर नहीं नियुक्त किया जाएगा। साथ ही ऐसे पदाधिकारियों को रिपीट भी नहीं किया जाएगा। वहीं केवल उन्हीं पदाधिकारियों को लालबत्ती देने की बात कही जा रही है, जो आगे चुनाव का टिकट नहीं मागेंगे। ऐसे में पार्टी कई नेताओं की नाराजी दूर करने की तैयारी में हैं।
और इधर, शिवराज का 'मास्टर स्टोकÓ
अंतत: कैलाश विजयवर्गीय नई दिल्ली पहुंच ही गए और अब वे प्रदेश की बजाय राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होंगे। इस बदलाव को जहां विजयवर्गीय समर्थक एक बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं, वहीं इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का 'मास्टर स्टोकÓ के तौर पर देखा जा रहा है। 4 जुलाई को प्रदेश भाजपा कार्यालय में आयोजित अभिनंदन समारोह में उन्होंने मंत्री पद से अपना त्यागपत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सौंप दिया। इस अवसर पर दोनों नेताओं ने एक दूसरे की तारीफ में जमकर कसिदे भी गढ़े। जबकि प्रदेश की राजनीति में दोनों अलग-अलग धुर्व माने जाते हैं। पर्दे के पीछे का राजनीतिक सच यह भी है कि प्रदेश की राजनीति से कैलाश विजयवर्गीय को बाहर रखने के इच्छुक मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी थे। ताई और भाई का झगड़ा भी पुराना चलता रहा है, लिहाजा लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ताकतवर हो चुकी सुमित्रा महाजन यानि ताई ने भी इस मामले में पर्दे के पीछे सक्रिय भूमिका निभाई। दिल्ली दरबार ने भी इस निर्णय से पहले मुख्यमंत्री से सलाह मशवरा करते हुए उन्हें पूरी तवज्जो भी दी। दिल्ली स्थित राजनीतिक सूत्रों का यह भी कहना है कि इंदौर और भोपाल से कैलाश विजयवर्गीय का बोरिया-बिस्तर बंधवाने में शिवराज की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। पिछले कई दिनों से मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनके काबिना मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बीच जमकर टसल चल रही है। हालांकि पूर्व में भी इस तरह के गोरिल्ला युद्ध दोनों के बीच हो चुके हैं और फिर समझौते भी होते रहे, मगर पिछले दिनों जो दरार पड़ी वह बाद में सुधरने की बजाय बढ़ती ही गई और यही कारण है कि अभी तमाम तबादलों से लेकर अन्य निर्णयों में कैलाश विजयवर्गीय को कम ही तवज्जो मिली। यहां तक कि इंदौर में ही नगर निगम से लेकर प्राधिकरण में जो तबादले किए गए उनमें भी उनकी भूमिका शून्य कर दी गई, जबकि वे विभागीय मंत्री हैं। यहां तक कि सिंहस्थ के महाआयोजन से भी मुख्यमंत्री ने विजयवर्गीय को दूर ही रखा है। इधर हरियाणा चुनाव के बाद से ही यह कयास लगाए जाते रहे कि विजयवर्गीय को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अब मध्यप्रदेश की बजाय दिल्ली की राजनीति में सक्रिय करना चाहते हैं और उन्हें महासचिव का पद दिया जाएगा। हालांकि इस निर्णय में भी विलंब होता रहा और अंतत: इसकी अधिकृत घोषणा हो ही गई। विजयवर्गीय के समर्थकों ने तो तुरंत ही आतिशबाजी करते हुए मिठाईयां भी बांट दीं और इसे विजयवर्गीय के लिए बड़ी उपलब्धि भी बताया जा रहा है, लेकिन अंदर खानों की खबर यह है कि प्रदेश की राजनीति में चूंकि बार-बार मुख्यमंत्री की कुर्सी को डांवाडोल करने के प्रयास किए जाते रहे, क्योंकि विजयवर्गीय को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जाता रहा है और अब समर्थकों का भी कहना है कि राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद अब भविष्य में विजयवर्गीय के मुख्यमंत्री बनने की संभावना बढ़ जाएगी, क्योंकि नई दिल्ली में रहते हुए वे उच्च स्तरीय संबंध बना लेंगे और शिवराजसिंह चौहान भी पहले महासचिव ही हुआ करते थे। इधर पार्टी आलाकमान से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस फैसले से पहले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से पर्याप्त सलाह-मशविरा किया। यह एक संयोग है कि जिस दिन शाम को विजयवर्गीय की महासचिव बनाए जाने की घोषणा होती है और उसके पहले मुख्यमंत्री नई दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री मोदी से भी चर्चा करते हैं। यानि दिल्ली दरबार ने मुख्यमंत्री को भरोसे में लेकर ही विजयवर्गीय को महासचिव बनाने का निर्णय लिया। अब शिवराज भी निश्चिंतता से काम कर सकेंगे, क्योंकि उनके पीछे ताई का भी वरदहस्त है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में विजयवर्गीय अपने महासचिव पद का कितना लाभ भविष्य के लिए ले पाते हैं?
निगम-प्राधिकरण में भी असर घटेगा
अभी तक कैलाश विजयवर्गीय का खेमा इंदौर के साथ-साथ प्रदेश की राजनीति में भी शक्तिशाली माना जाता रहा है, क्योंकि पिछले 12 सालों से विजयवर्गीय विभिन्न विभागों के काबिना मंत्री रहे हैं। इंदौर की बात की जाए तो वहां भी उनका एकछत्र राज रहा है और नगर निगम से लेकर प्राधिकरण में तो तूती बोलती ही रही, लेकिन अब नगर निगम के साथ-साथ प्राधिकरण में भी उनका और उनके समर्थकों का असर घट जाए, क्योंकि अभी तो मंत्री होने के नाते अफसर और कर्मचारी अधिक तवज्जो देते रहे हैं। अफसरों के साथ विजयवर्गीय और उनके समर्थकों की पटरी कम ही बैठती आई है। यहां तक कि कलेक्टर से लेकर निगम आयुक्त और प्राधिकरण सीईओ के मामले में तो यह अक्सर होता रहा है और पुलिस विभाग के भी आला अफसरों से उनके कम पंगे नहीं हुए। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी इंदौर में अफसरों की नियुक्ति को लेकर विजयवर्गीय की पसंद को हाशिए पर ही रखा और जिनसे उनका पंगा रहा उन्हीं अफसरों को ज्यादातर इंदौर में पदस्थ किया जाता रहा। कैलाश विजयवर्गीय में सामथ्र्य तो जबरदस्त है। हालांकि विवादों से भी उनका पुराना नाता रहा है। यही कारण है कि वे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में भी आगे रहते हुए भी पीछे हो गए। अलबत्ता इंदौर के महापौर के अलावा वे पिछले 12 सालों से काबिना मंत्री रहे हैं और तमाम विभागों का मंत्री पद उन्होंने संभाला। यह बात अलग है कि सत्ता में रहते हुए वे अपने सामथ्र्य के मुताबिक परिणाम नहीं दे पाए। यहां तक कि पिछले डेढ़ सालों से वे नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री रहे, लेकिन इंदौर शहर का ही बिगड़ा ढर्रा नहीं सुधार पाए और नगर निगम के साथ-साथ प्राधिकरण भी चौपट होता रहा। अब देखना यह है कि सत्ता की बजाय वे संगठन में कितने सफल साबित होते हैं? वैसे उनमें नेतृत्व करने का गुण अधिक है और कार्यकर्ताओं की सबसे लम्बी-चौड़ी फौज भी उन्हीं के पास है। लिहाजा संभव है कि सत्ता की बजाय वे संगठन में अधिक सफल साबित हों।
दिल्ली में होंगे विरोधी लामबंद
विजयवर्गीय के महासचिव की जिम्मेदारी मिलने से राज्य की राजनीति पर असर पडऩे की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। इतना तो साफ है कि दिल्ली में शिवराज विरोधियों को लामबंद होने का मौका जरूर मिल गया है। राज्य की राजनीति में पिछले कुछ अरसे से विजयवर्गीय का कद लगातार कम होता जा रहा था, लिहाजा वे पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने की हर संभव कोशिश कर रहे थे, इतना ही नहीं गाहे-बगाहे वे अपने को राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नजदीक दिखने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे थे। शाह से बढ़ी नजदीकी का ही नतीजा था कि उन्हें हरियाणा चुनाव में पार्टी ने जिम्मेदारी सौंपी तो उसमें वे अपनी क्षमता दिखाने में कामयाब भी रहे। प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पर मुख्यमंत्री शिवराज और विजयवर्गीय की निष्ठाएं किसी से छुपी नहीं है। शिवराज की गिनती जहां भाजपा के वरिष्ठ नेता के करीबियों में रही है, तो विजयवर्गीय का हमेशा से शिवराज से 'छत्तीसÓ का आंकड़ा रहा है। राज्य की बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के बीच विजयवर्गीय का राष्ट्रीय महासचिव बनना शिवराज के लिए पार्टी के भीतर किसी नई चुनौती से कम नहीं माना जा रहा है। राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि दिल्ली में शिवराज विरोधी राज्य से नाता रखने वाले नेताओं केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा का गुट अब विजयवर्गीय के वहां पहुंचने से और मजबूत हो जाएगा। उमा और झा को राज्य की राजनीति से बाहर करने में शिवराज की अहम भूमिका रही है, अब सभी मिलकर शिवराज की मुसीबत बढ़ा सकते हैं। विजयवर्गीय के राष्ट्रीय राजनीति में जाने से हर कोई खुश है, अलग-अलग गुटों से नाता रखने वाले नेता इसे अपनी-अपनी जीत मान रहे हैं, मगर इस बदलाव का किस पर कितना असर होता है, यह तो आगे आने वाले समय और राजनीतिक चालों पर निर्भर करेगा।

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