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भेड़ाघाट

Thursday, July 9, 2015

सफेदपोशों के संरक्षण में 10,000 करोड़ का डीमेट फर्जीवाड़ा

मंत्री, सांसद, विधायक, जज और अफसरों के बच्चों के लिए नियमों को किया दरकिनार
उपरीत की गिरफ्तारी से उजागर हुआ पीएमटी से बड़ा फर्जीवाड़ा
vinod upadhyay
भोपाल। प्रदेश में विकास के नाम पर सत्ता में आई भाजपा के अब तक के कार्यकाल में जहां भरपूर विकास हुआ है, वहीं ऐतिहासिक भ्रष्टाचार भी हुआ है। खासकर पिछले 11 साल में मप्र में शिक्षा के नाम पर जो फर्जीवाड़ा हुआ है उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। मप्र जिस तरह एजुके शन हब बनते जा रहा है, उसी तरह यहां युवाओं के साथ ठगी का धंधा भी बढ़ता जा रहा है। इसी का परिणाम है कि अभी देश के सबसे बड़े महाघोटाले व्यापमं की जांच चल ही रही है, वहीं अब निजी डेंटल और मेडिकल कॉलेजों में बीते 9-10 सालों में हुए डेंटल ऐंड मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट (डीमेट) घोटाले की परतें भी खुलने लगी हैं। डीमेट के कोषाध्यक्ष योगेश उपरीत ने गिरफ्तारी के बाद यह खलासा करके सनसनी फैला दी है कि किस तरह प्रदेश के निजी डेंटल और मेडिकल कॉलेजों ने मंत्री, सांसद, विधायक, जज और अफसरों के बच्चों के लिए नियमों को ताक पर रखकर डीमेट फर्जीवाड़ा किया है। जानकारों के अनुसार, लगभग 10,000 करोड़ का यह डीमेट फर्जीवाड़ा कॉलेज संचालकों और सफेदपोशों की आपसी साठगांठ से हुआ है।10 हजार करोड़ रुपए से अधिक के इस डीमेट घोटाले में भाजपा के साथ-साथ कांग्रेसी भी फंस रहे हैं। निजी कॉलेजों ने 20 लाख रुपए से लेकर 1 करोड़ और उससे भी अधिक राशि लेकर हजारों एडमिशन दे डाले। इस मामले में गिरफ्तार किए गए डीमेट के कोषाध्यक्ष रहे योगेश उपरित ने कई चौंकाने वाली जानकारियां भी दी हैं।
सरकारी संरक्षण में निजी मेडिकल सीटों की नीलामी
व्यापमं की ही तरह डेंटल ऐंड मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट (डीमेट) घोटाला सरकारी संरक्षण में किया गया। व्यापमं घोटाले में जहां सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में सरकारी कोटे की सीटें बेची जाती थीं, वहीं डीमेट घोटाले में निजी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों की बाकी बची सीटें नीलाम की जाती थीं। इस तरह व्यापमं के साथ मिलकर डीमेट घोटाला मध्य प्रदेश की सारी मेडिकल सीटों को एक ऐसे काले कारोबार में बदल देता था, जहां होनहार बच्चों की किस्मत के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाते थे और सफदपोशों के बच्चे मोटी रकम देकर डॉक्टर बन जाते थे। इस घोटाले का आकार 10,000 करोड़ रु. तक पहुंच चुका है। जिन लोगों पर गलत तरीके से डीमेट के जरिए दाखिला लेने का शक है, उनमें मध्य प्रदेश भाजपा और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बाल-बच्चे भी शामिल हैं।
कैसे खुला घोटाला
घोटाले की परतें उघाडऩे से पहले यह जान लें कि डीमेट असल में है क्या? जिस तरह मेडिकल में दाखिले के लिए व्यापमं प्री मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) का आयोजन कराता है, उसी तरह निजी मेडिकल डेंटल और कॉलेजों की मैनेजमेंट कोटे की सीटों के लिए एसोसिएशन फॉर प्राइवेट मेडिकल ऐंड डेंटल कॉलेजेज (एपीएमडीसी) डीमेट आयोजित करती है। मध्य प्रदेश में निजी मेडिकल कॉलेजों में सीटों पर दाखिले की प्रक्रिया पर नजर डालें तो इन कॉलेजों में 15 फीसदी सीट एनआरआइ कोटे की, 43 फीसदी डीमेट और 42 फीसदी सीटें राज्य कोटे यानी पीएमटी से भरी जाती हैं। गड़बड़ी का पहला मामला डीमेट-2006 में सामने आया, तब अदालत ने यह परीक्षा रद्द कर दी थी। बाद में लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद परीक्षा बहाल हो गई और लोग इस विवाद को भूल गए। लेकिन चार महीने पहले जब व्यापमं घोटाले की जांच के सिलसिले में ग्वालियर एसआइटी ने अतुल शर्मा नाम के दलाल को गिरफ्तार किया तो उसने फर्जी तरीके से कराए गए कई दाखिलों का जिक्र किया। इनमें से 2010 एमएस कोर्स में एक दाखिला ऋचा जौहरी का था। ऋचा जबलपुर के मशहूर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. एम.एस. जौहरी की बेटी हैं। मामले के खुलासे के बाद बाप-बेटी को गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में ऋचा फरार हो गई। शर्मा ने बताया कि व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपी नितिन मोहिंद्रा को इस दाखिले के बारे में ज्यादा जानकारी है। जब पहले से जेल में बंद मोहिंद्रा से पूछताछ हुई तो उसने कहा कि यह नाम तो योगेश कुमार उपरीत ने उसके पास भेजा था। यह शख्स 2003-04 में व्यापमं निदेशक था। दस साल तक इस पद पर रहते हुए उसने व्यापमं के अपने घोटाले के अनुभव को डीमेट में उड़ेल दिया। 3 जून को जब ग्वालियर एसआइटी ने उपरीत को गिरफ्तार किया तो फर्जी दाखिले कराते-कराते बूढ़े हो चुके 72 वर्षीय उपरीत ने कहा, मुझसे क्या पूछ रहे हैं। डीमेट के सारे दाखिले ही पहले से तय होते थे। दम है तो रसूखदारों के गिरेबां पर हाथ डालो। उपरीत ने ही उन नेताओं के नाम उगलने शुरू किए जो बाद में कांग्रेस और भाजपा नेताओं ने अपनी-अपनी राजनैतिक सहूलियत के हिसाब से जाहिर किए। एसआईटी की जांच में उजागर हुआ है कि मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए डीमेट में बैठाते हैं जिसमें परीक्षार्थियों को कहा जाता था कि उन्हें जिन सवालों के जवाब आते हंै वे उनके ही गोले काले करें वर्ना खाली छोड़ दें। खाली पड़े गोलों को उपरीत के इशारे पर काले कर परीक्षार्थियों को पास कराया जाता था।
परीक्षा के नियम-कायदे उपरीत ने ही बनाए हैं
डीमेट के इस खेल में योगेश उपरीत की हैसियत का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि शासन के आदेश से डीमेट का गठन होने के साथ उसकी परीक्षा के नियम-कायदे उपरीत ने ही दक्षिण भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों में होने वाली एडमिशन प्रक्रिया की कॉपी कर बनाए हैं। 50 फीसदी सीटें डीमेट से राज्य शासन के नियमानुसार 50 प्रतिशत सीटें पीएमटी के जरिए व 50 फीसदी डीमेट से भरी जाती हैं। यही गणित प्री-पीजी का है। इससे पहले निजी मेडिकल कॉलेजों में मेरिट के हिसाब से एडमिशन दिया जाता था। कॉलेज संचालकों की मनमानी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य शासन को एडमिशन से पहले टेस्ट लेने की व्यवस्था करने के निर्देश दिए ताकि मेडिकल क्षेत्र में योग्य छात्र ही आ सकें। शासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए डीमेट परीक्षा की व्यवस्था की। लेकिन अपने रसूख के जरिए योगेश उपरीत ने डीमेट पर अनाधिकृत रूप से कब्जा कर लिया।
ये थी फर्जीवाड़े की बुनियाद
मेडिकल कॉलेज खोलने की बुनियाद स्व.हरीश वर्मा ने रखी। यह बात 1988-89 की है, उस दौरान योगेश उपरीत रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में छात्र कल्याण कोष में अधिष्ठाता के पद पर थे। हरीश वर्मा की टीम में वे प्रमुख किरदार अदा कर रहे थे। हरदा जिले से जबलपुर पहुंचे योगेश उपरीत ने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के अधिकारियों से ऐसे रिश्ते बना रखे थे कि नब्बे के दशक में योगेश उपरीत रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय का सबसे ताकतवर शख्स बन चुके थे। बीए, बीकॉम,बीएससी तो दूर एमबीबीएस और इंजीनियरिंग के छात्रों को भी पास या फेल कराने का काम उनके एक इशारे पर हो जाता था। योगेश उपरीत सिस्टम में रहकर सिस्टम को चलाने का गुर सीख गए थे। तीस साल पहले जब निजी मेडिकल कॉलेज जैसी व्यवस्था नहीं थी। तब बिना मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया की परमीशन के जबलपुर के केसरवानी कॉलेज के दो कमरों में उपरीत ने एक मेडिकल कॉलेज खुलवाकर अपनी हिस्सेदारी ली और उसे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की बजाए रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से संबद्ध करवा दिया। इसके साथ ही फर्जी दाखिले का नया खेल उन्होंने शुरू कर दिया। इस फर्जी मेडिकल कॉलेज में दक्षिण भारत और गुजरात से छात्रों को डॉक्टर बनाने का लालच देकर दाखिले दिलवाए जाते थे। फीस भी कम नहीं थी, उस दौर में एमबीबीएस में प्रवेश की फीस एक से डेढ़ लाख रुपए तक ली गई। इस मेडिकल कॉलेज में लगभग 100 से 150 एडमिशन भी हो गए। फिर उन्हें फर्जी डिग्रियां थमाकर करोड़ों बटोरे जाने लगे। आखिरकार कॉलेज के खिलाफ हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर हुई और हाईकोर्ट के आदेश से योगेश उपरीत की ये दुकान बनाम कॉलेज बंद हो गया। कॉलेज में हिस्सेदारी कागजों पर ना होने से उपरीत कानूनी कार्रवाई से बच गया। इस बीच उपरीत के कदम उच्च शिक्षा क्षेत्र के बड़े पदों की ओर बढ़ते चले गए। बतौर लेक्चरर सेवा खत्म होने के बाद उपरीत का नाता रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से टूटा ही था कि उसे चित्रकूट के महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय का कुल सचिव बना दिया गया। योगेश अपने सियासी रसूख के बूते भोपाल पहुंच गए। चित्रकूट यूनिवर्सिटी के बाद उपरीत की सीधी एंट्री व्यापमं में परीक्षा नियंत्रक के रूप में हुई। फिर उन्होंने व्यापमं में अपने पुराने अनुभवों के बाद डीमेट में जाकर भ्रष्टाचार का नया अध्याय ही लिख दिया।
करोड़ों में बिगती थी सीटें
व्यापमं के पूर्व डायरेक्टर और डीमेट के कोऑर्डिनेटर व कोषाध्यक्ष योगेश उपरीत ने प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों की अरबों की काली कमाई का राज एसआईटी के सामने खोल दिया है। निजी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए डीमेट परीक्षा तो केवल औपचरिकता के लिए होती थी। जिन छात्रों का चयन होना होता था, उनकी लिस्ट कॉलेज प्रबंधन पहले ही डीमेट को थमा देता था और उन्हीं छात्रों की उत्तर पुस्तिका के गोले काले किए जाते थे। डीमेट में 100 फीसदी छात्रों का सिलेक्शन गोले काले कर किया जाता था। एमबीबीएस की सीट 30 लाख व प्री-पीजी की एक सीट ब्रांच के हिसाब से 90 लाख से डेढ़ करोड़ रुपए में बिकती थी। योगेश उपरीत द्वारा किए गए इस खुलासे की जानकारी एसआईटी, हेडक्वार्टर भेजकर कार्रवाई के लिए दिशा- निर्देश मांगे गए हैं। इस खुलासे के बाद प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेज भी जांच के दायरे में आ जाएंगे। उपरीत के बयान के मुताबिक, हर साल करीब 1,500 सीटें निजी मेडिकल कॉलेजों में डीमेट के जरिए भरी गईं। व्यापमं मामले के पहले व्हिसल ब्लोअर आनंद राय बताते है, इस मामले में 10,000 करोड़ रूपए का लेन-देन आसानी से हुआ होगा। यह फर्जीवाड़ा 2006 से चल रहा है। निजी कॉलेजों में तो अधिकांश सीटें पैसा लेकर भरी गई हैं। मैं इसकी शिकायत पिछले तीन साल से कर रहा हूं। यहां तक कि हाइकोर्ट और एडमिशन और फीस रेगुलेटरी कमेटी ने भी निजी कॉलेजों के खिलाफ बोला लेकिन न तो राज्य सरकार और न ही एसटीएफ ने इस मसले पर कोई कारवाई की। मामले की जांच से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, यह घपला भी व्यापमं घोटाले की तरह ही है। इसमें भी उन लोगों की उत्तर पुस्तिका डीमेट अधिकारियों के जरिए भरी गई जिन्होंने इसमें पैसा दिया। यह सब निजी कॉलेजों के साथ मिलकर किया गया। इन परीक्षाओं में भी दलालों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी।
अभय चौपड़ा के मुताबिक निजी मेडिकल कॉलेजों को पहले राउंड की काउंसलिंग की रिपोर्ट 18 सितंबर 2013 और दूसरे राउंड की काउंसलिंग की रिपोर्ट 24 सितंबर 2013 को डीएमई को करना थी, लेकिन उसने निजी मैनेजमेट कोटे के छात्रों को प्रवेश देने के लिए तथ्य छुपाए और कट ऑफ डेट 30 सितंबर 2013 को खाली सीटें गैर कानूनी तरीके से फीस के नुकसान नहीं होने देने के आधार पर भर दी गई। निजी कॉलेजों द्वारा शासन के कोटे की 197 सीटें भरने के लिए 29 और 30 सितंबर 2013 को पहले राउंड की काउंसलिंग की गई और फिर धोखे से ये सारी सीटें भरी बता दी गईं। हाईकोर्ट ने भी इस पूरी प्रक्रिया को प्रथम दृष्ट्या गलत माना है। उनका यह भी आरोप है कि डीमेट के नाम पर 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला किया गया और एक-एक सीट 20 लाख से लेकर 1 करोड़ और उससे अधिक कीमत में बेची गई। उल्लेखनीय है कि डीमेट के कोषाध्यक्ष योगेश उपरित ने कई चौंकाने वाली जानकारी एसटीएफ को दी है, जिसमें यह भी बताया गया कि व्यापमं की तरह ही डीमेट में भी नामी-गिरामी लोगों ने अपने बच्चों के एडमिशन करवाए।
10 करोड़ मंत्री बनते ही मिलते रहे
व्यापमं और डीमेट घोटाले के मामले में गिरफ्तार कोषाध्यक्ष योगेश उपरीत ने ग्वालियर एसआईटी की पूछताछ में एक चौंकाने वाली जानकारी यह भी दी है कि मध्यप्रदेश की सरकार में चिकित्सा, शिक्षा विभाग मिलते ही संबंधित मंत्री को हम 10 करोड़ रुपए पहुंचा देते थे। ये रुपए डीमेट से जुड़े फैसलों को बगैर किसी आपत्ति के मंजूर करने के एवज में दिए जाते थे। यह भी उल्लेखनीय है कि डीमेट वर्ष 2006 से शुरू हुई और तब से लेकर अब तक भाजपा की प्रदेश सरकार में 5 मंत्री बदल गए हैं। इनमें पूर्व मंत्री कमल पटेल, अजय विश्नोई, महेन्द्र हार्डिया और अनूप मिश्रा के अलावा वर्तमान के चिकित्सा-शिक्षा मंत्री नरोत्तम मिश्रा शामिल हैं, क्या अब इनसे भी एसआईटी 10-10 करोड़ रुपए के लगाए गए आरोप के संबंध में पूछताछ करेगी?
ऐसे किया जाता था घोटाला
ऐसी बात नहीं है कि निजी कॉलेजों का लालच सिर्फ डीमेट कोटे तक ही सीमित रहा हो, ये कॉलेज स्टेट कोटे को भी हजम करने में जुटे रहे। कई कॉलेजों ने इसका तरीका यह निकाला कि पीएमटी परीक्षा में पैसे देकर कुछ सीनियर छात्रों को बैठा दिया जाता था। पीएमटी पास करने के बाद ये छात्र इन निजी कॉलेजों की स्टेट कोटे की सीट पर दाखिला ले लेते और कुछ दिन बाद कॉलेज से नाम कटा लेते। इस तरह उनकी सीट महंगे दाम पर बेचने के लिए कॉलेज फिर स्वतंत्र हो जाते। प्रदेश के छह निजी मेडिकल कॉलेजों की 50 सीटों पर इस तरह के मामले सामने आए। एक अनुमान के मुताबिक, निजी कॉलेजों ने एमबीबीएस के लिए 20 से 40 लाख रूपए और एमएस-एमडी के लिए एक करोड़ रूपए तक वसूले। वर्ष 2010 से 2013 तक निजी मेडिकल कॉलेजों में 1,450 सीटों में से 721 सीटों पर स्टेट कोटे के एडमिशन कैंसिल किए और इन सीटों को मनमाने दामों पर बेचा। डीमेट और स्टेट कोटे के बाद बचे प्रवासी भारतीय यानी एनआरआई कोटे की सीटों में प्रवेश प्रवासी भारतीयों के बेटे-बेटियों या उनके करीबी रिश्तेदारों को दिए जाने थे। लेकिन इसमें देश के छात्रों को मोटी रकम लेकर बिना पीएमटी और डीमेट दिए एडमिशन दिया गया। निजी कॉलेज व्यापमं और डीमेट परीक्षा से आने वालों से जहां 15 लाख से 30 लाख रूपए लेते थे वही एनआरआइ सीट पर उन्होंने 1-1 करोड़ रूपए लेकर प्रवेश दिया। इसमें पीएमटी और डीमेट देने की जरूरत ही नहीं थी।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2009 में जब भोपाल के एमपी नगर थाने में व्यापमं ने बुंदेलखंड सागर मेडिकल कॉलेज से प्राप्त प्रतिवेदन के आधार पर 9 छात्रों के खिलाफ एफआईआर क्रमांक 728/9 दर्ज कराई गई तो किसी को भनक तक नहीं थी कि यह देश के सबसे बड़े शिक्षा घोटाले का पर्दाफाश कर देगा। उस वक्त दयाल सिंह, जाहर सिंह, दिलीप सिंह, कुमारी इंद्रा वारिया, भारत सिंह, कमलेश झावर, रौनक जायसवाल, अश्विन जॉयसेस, पंकज धुर्वे और प्रदीप खरे नामक नौ छात्रों के खिलाफ व्यापमं की मेडिकल परीक्षा में मुन्नाभाई की तर्ज पर स्कोरर के माध्यम से पास होने का आरोप लगाते हुए यह एफआईआर दर्ज की गई थी। दरअसल इन नौ छात्रों को उस प्रवेश समिति के सदस्यों ने पकड़ा था जिसने चेहरों का मिलान करने के बाद यह पाया कि जिन छात्रों ने परीक्षा दी थी उनके और प्रवेश लेने वाले छात्रों के चेहरे अलग-अलग थे। इन नौ छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया और वे जमानत पर छूट भी गए। लेकिन इतने बड़े कांड को उस वक्त मध्यप्रदेश सीआईडी, इंटेलीजेंस से लेकर तमाम एजेंसियों ने नजर अंदाज क्यों किया। उस एफआईआर को कागज समझकर वहीं के वहीं दफन कर दिया। नतीजा यह रहा कि वर्ष 2011 में जब यह मामला ज्वालामुखी की तरह फट पड़ा तब जाकर इसमें बड़े-बड़े नाम उजागर हुए और गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हुआ। इस बीच 2009 से 2011 तक मुन्नाभाइयों की खेप पर खेप निकाली जाती रही। लेकिन तब भी सरकार की नींद नहीं खुली। वर्ष 2009-10, 2010-11, 2011-12, 2012-13, 2013-14 में निजी कॉलेजों ने व्यापमं घोटाले के परत दर परत खुलने के बावजूद डीमेट के नाम पर जमकर मनमानी की। स्टेट कोटे की सीटों को भी निजी कॉलेजों ने नहीं छोड़ा इस मामले में जब चिकित्सा शिक्षा विभाग ने फीस रेग्यूलेटरी कमेटी को लिखा तो उन्होंने आज तक इन वर्षों में जो सीटें निजी कॉलेजों ने बेची थी उनका हिसाब नहीं दिया। मात्र 2013 की सीटों के बारे में फीस रेग्यूलेटरी कमेटी ने अपना निर्णय दिया। एफआरसी ने इस अनियमितता को सच पाते हुए चिरायू मेडिकल कॉलेज पर 225 लाख, अरविंदों मेडिकल कॉलेज पर 40 लाख, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज पर 550 लाख, पीपुल्स मेडिकल कॉलेज पर 215 लाख, एलएन मेडिकल कॉलेज पर 245 लाख और आरडीगार्डी पर 35 लाख की पैनल्टी लगाई है। निजी कॉलेज वाले पैनल्टी न देने के बहाने पर अपीलीय प्राधिकरण के पास चले गए। गड़बड़ी पाई गई तभी तो पैनल्टी लगाई गई थी। यदि एफआरसी इन चारों-पांचों वर्षों का निर्णय एक ही साथ दे देती तो इन कॉलेजों के ऊपर करोड़ों की पैनल्टी निकलती और सरकारी सीट को खाने वाले कॉलेजों के संचालकों को जेल की हवा खानी पड़ती। परंतु मामला कानूनी पेंचीदगियों में उलझकर रह गया है। सरकारी कोटे की सीटें बेंच दी गई और सरकार हाथ पर हाथ धरकर बैठी हुई है।
फर्जीवाड़े पर भाजपा-कांग्रेस में रार
उपरित ने खुलासा किया है कि डीमेट घोटाले में भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने अपने रसूख और कालेधन के दम पर अपने बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को निजी डेंटल और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश दिया है। यही कारण है कि अभी तक व्यापमं घोटाले को लेकर हल्ला मचाती रही कांग्रेस भी मामले का तूल नहीं दे रही है। व्यापमं से लेकर डीमेट घोटाले को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नागदा के अभय चौपड़ा का कहना है कि अब डीमेट का जो फर्जीवाड़ा सामने आ रहा है उस संबंध में कांग्रेस व्यापमं की तरह आक्रामक क्यों नहीं है? हालांकि इस मामले में विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे ने मोर्चा खोलते हुए आरोप लगाया है कि प्रदेश के पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने बेटी आकांक्षा और अवंतिका का, अजय विश्नोई ने बेटे अभिजीत का, कमल पटेल ने भतीजी प्रियंका और इंदौर की विधायक मालिनी गौड़ ने कर्मवीर गौड़ का दाखिला कराया। कटारे ने कुछ और नामों का खुलासा करते हुए बताया कि स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्र, शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता, पूर्व मंत्री प्रकाश सोनकर, हरनाम सिंह राठौड़, नेहरू युवा केंद्र के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और फीस कमेटी के अखिलेश पांडे ने भी अपने रसूख का इस्तेमाल कर अपने करीबियों को लाभ पहुंचाया। इस पर पलटवार करते हुए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री और सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्र कांग्रेस के उन नेताओं के नाम बताते हैं जिन्होंने अपने बच्चों या रिश्तेदारों के दाखिले डीमेट के जरिए कराए। मिश्र ने बताया, कटारेजी निष्क्रिय न साबित हों इसलिए इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाते हैं। आरिफ अकील, पीसी शर्मा, गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी, अरुण यादव, हजारी लाल रघुवंशी और तुलसी सिलावट ऐसे कांग्रेस नेता हैं, जिनके बच्चों ने भी निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लिया है। इसी तरह मंत्री गोपाल भार्गव ने दलील दी, मंत्री और नेताओं के बच्चे कहीं न कहीं तो पढ़ेंगे ही। दबाव बनाने के लिए मनगढ़ंत आरोप लगाना गलत है। जबकि कमल पटेल ने दो टूक कहा, गोल्ड मेडलिस्ट बच्चों के दाखिले पर भी सवाल उठेंगे तो क्या कहा जाए? यानी दोनों पार्टियों के नेताओं ने डीमेट के जरिए डॉक्टरी पेशे में जिगर के टुकड़ों का भविष्य संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बिना डीमेट या पीएमटी दिए भी प्रवेश
मध्यप्रदेश के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में दो ही तरीके से प्रवेश हो सकता है। या तो बच्चा पीएमटी से पास हुआ हो जो राज्य कोटे में भर्ती होता है या डीमेट से पास हुआ हो। एनआरआई कोटे के बाद बची सीटों में से आधी डीमेट और आधी पीएमटी से भरी जाती हैं। लेकिन ऐसे भी कई उदाहरण हैं जिनमेें उन बच्चों को प्रवेश दे दिया गया जिन्होंने न तो डीमेट किया और न ही पीएमटी की परीक्षा दी। उदाहरणस्वरूप इन्डेक्स कॉलेज में गुजरात से परीक्षा पास छात्र को एडमीशन दे दिया गया। जिनके पीएमटी में 50 प्रतिशत नंबर भी नहीं थे। अगर कायदे से देखा जाए तो इतने कम अंकों में प्रवेश की पात्रता भी नहीं थी। ऐसे न जाने कितने उदाहरण हंै। जैसे भोपाल के लोकायुक्त में डीएसपी के पद पर पदस्थ अधिकारी के बेटे अजय रघुवंशी, इंदौर की विधायक और वर्तमान में मेयर मालनी गौड़ के सुपुत्र कर्मवीर गौड़ और कांग्रेस के पूर्व मंत्री के खास लक्ष्मण ढोली के सुपुत्र तन्मय ढोली को परीक्षाओं में 50 प्रतिशत भी नहीं मिले, लेकिन वे अरविंदों मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर बन गए। जो कि एमसीआई के नियमों का सरासर उल्लंघन है। मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग, एमसीआई और निजी कॉलेज संचालकों की मिलीभगत का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि हाईकोर्ट जबलपुर बेंच ने इन तीन छात्रों के प्रवेश को तो नामजद गलत ठहराया था। चिकित्सा शिक्षा विभाग को कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। लेकिन वे डॉक्टरी की डिग्री लेकर आज लोगों का इलाज कर रहे हैं। ये तो एक बानगी मात्र है। ऐसे किस्सों से डीमेट का इतिहास भरा पड़ा हुआ है। वर्तमान एसआईटी के चेयरमैन चंद्रेश भूषण ने भी इस मामले में जांच पड़ताल की थी उन्होंने कई अनियमितताओं की तरफ इशारा किया था, लेकिन उनकी जांच भी दबा दी गई। इसके बाद जब सुप्रीम कोर्ट में 23 सितंबर 2011 को न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और दीपक वर्मा की बेंच ने डीमेट तथा पीएमटी में 50-50 प्रतिशत सीटें भरने का निर्णय दिया था। उस समय यह साफ कहा था कि डीमेट की परीक्षा में पारदर्शिता होनी चाहिए पर यह परीक्षा पारदर्शिता के लिए बनी ही नहीं थी। उधर, कांग्रेस इस फर्जीवाड़े को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की बात कह रही है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव ने एक सूची जारी कर आरोप लगाया है कि रसूखदारों ने अपने नाते-रिश्तेदारों को गलत तरीके से डॉक्टर बनवाया है। कांग्रेस द्वारा जारी सूची में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पत्नी साधनासिंह की जबलपुर निवासी सगी छोटी बहन-रेखासिंह की बेटी प्रियंका सिंह ने वर्ष 2012 में एमबीबीएस में चयन-चिरायु मेडीकल कॉलेज। जस्टिस एससी सिन्हों के नाती अजय रघुवंशी का अरबिंदो मेडीकल कॉलेज। जस्टिस अभय गोहिल की पुत्री रागिनी गोहिल का एमबीबीएस में प्रवेश। जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेटी का एमबीबीएस-अरबिंदो मेडीकल कॉलेज में प्रवेश। जस्टिस पीसी गुप्ता की बेटी का अरबिंदो मेडीकल कॉलेज में प्रवेश। जस्टिस केसी गर्ग की बेटी-प्रियंका गर्ग का अरबिंदो मेडीकल कॉलेज में प्रवेश। जस्टिस श्रवण रघुवंशी की बेटी-पायल रघुवंशी-अरबिंदो मेडीकल कॉलेज। आईएएस रेणु पंत की बेटी-अवनि पंत-इंडेक्स मेडीकल कॉलेज। आईएएस सुहेल अख्तर के पुत्र रिजवान अख्तर-अरबिंदो मेडीकल कॉलेज। आईपीएस महेन्द्रसिंह सिकरवार की बेटी मयूणा-अरबिंदो मेडीकल कॉलेज। आईपीएस मनोजसिंह की बेटी-अनन्यासिंह-अरबिंदो मेडीकल कॉलेज। आईपीएस धर्मेंद्र चौधरी की बेटी-मधु-अरबिंदो मेडीकल कॉलेज। आईपीएस राजेश हिंगणकर की बेटी-अरबिंदो मेडीकल कॉलेज। अभा विद्यार्थी परिषद के पूर्व महासचिव और वर्तमान में नेहरू युवा केंद्र के उपाध्यक्ष बीडी शर्मा की भतीजी-बबीता शर्मा-अरबिंदो मेडीकल कॉलेज में नियमों को ताक पर रखकर कराया गया है। न्यायिक हिरासत में जेल जाने से पहले डीमेट के कोआर्डिनेटर एवं कोषाध्यक्ष योगेश उपरीत ने एसटीएफ व एसआईटी को बताया था कि डीमेट का रिकार्ड तीन महीने तक ही सुरक्षित रखा जाता है और उसके बाद नष्ट कर दिया जाता है। इस परीक्षा में 100 प्रतिशत छात्रों की उत्तर पुस्तिका पर गोले काले किए जाते हैं। क्योंकि निजी मेडिकल कॉलेजों के संचालक परीक्षा से पहले डीमेट को उन छात्रों की सूची थमा देते हैं जिनके सिलेक्शन होने होते हैं। इसी सूची के आधार पर डीमेट की रेवड़ी बांटी जाती है। भोपाल के एक नामी डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि जिन छात्रों को लाखों रुपए लेकर डीमेट के द्वारा भर्ती करवाया गया वे सब पूरी की पूरी उत्तर पुस्तिका खाली छोड़कर आए थे। यह फर्जीवाड़ा 2006 में डीमेट के गठन के बाद से ही चल रहा है। जब रिकार्ड नहीं है तो सबूत कहां से मिलेंगे। पिछले 9 साल में डीमेट के द्वारा कितने छात्रों का हक मारा गया है और कितने अयोग्य लोगों को डिग्रियां थमा दी गई हैं इसकी जानकारी उपरीत जैसे मोहरों को ही हो सकती है। जिन्हें आगे रखकर बिसात बिछाने वाले सफेदपोश अभी भी दुबके हुए हैं। उपरीत बहुत कुछ जानते हैं लेकिन वे निजी मेडिकल कॉलेज की इस करतूत का खुलासा करेंगे इसमें सदेह ही है। फिलहाल एसआईटी ने जबलपुर के न्यूरोलॉजिस्ट एम एस जौहरी की बेटी डॉ. ऋचा जौहरी को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया है। डॉ. एमएस जौहरी पहले से ही गिरफ्तार हैं। उपरीत ने स्वीकार किया था कि जौहरी ने अपनी बेटी के प्रीपीजी में एडमीशन के लिए 25 लाख रुपए की रिश्वत दी थी। जौहरी के बंगले में पुरानी फाइलों में इस रिश्वतखोरी का हिसाब किताब मिल गया। अभी गिरफ्तारियों का सिलसिला जारी है यदि उपरीत ने पूरा सच बता दिया तो न जाने कितने चेहरे बेनकाब हो जाएंगे। देखा जाए तो मध्यप्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज इस जांच के दायरे में आ सकते हैं। डीमेट के सारे पदाधिकारी इस घोटाले में शामिल बताए जा रहे हैं। पिछले 9 वर्षों के दौरान गलत तरीके से प्रवेश देने वाले 5 हजार 500 छात्र जांच के दायरे में आ सकते हैं। लेकिन जो रिकार्ड नष्ट हुआ है उसे कैसे रिकवर किया जाएगा। यह एक अहम सवाल है।
क्या कर रही थी फीस रेगुलेशन कमेटी
सुप्रीम कोर्ट में मृदुल धर वर्सेज भारत सरकार (रिट पिटिशन क्र. 306 - वर्ष 2004) के प्रकरण में 12 जनवरी 2005 को न्यायमूर्ति वाय.के. सभरवाल, डी.एम. धर्माधिकारी, तरुण चटर्जी की बैंच ने स्पष्ट निर्णय दिया था कि एमबीबीएस तथा बीडीएस में राज्य, केंद्र में किसी भी संस्था, द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेज में 30 प्रतिशत सीटें अखिल भारतीय परीक्षा से भरी जाएंगी। जबकि पीजी कोर्सेस में 50 प्रतिशत सीटें इस तरह भरने का निर्देश था। इस निर्णय की धज्जियां तो उड़ाई ही गईं। इस निर्णय के तहत बनी एडमीशन और फीस रेगुलेशन कमेटी को भी अंधेरे मेें रखा गया। प्रश्न यह है कि उक्त कमेटी ने इन अनियमितताओं पर स्वत: कोई संज्ञान नहीं लिया। एमसीआई की तरह एडमीशन और फीस रेगुलेशन कमेटी, निजी विश्वविद्यालय आयोग के कुछ कर्ता-धर्ताओं ने भी इस घोटाले को हो जाने दिया-क्यों? पीपुल्स मेडिकल कॉलेज को जब यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया, तो उसने विश्वविद्यालय के स्टेच्यू ऑर्डिनेंस के प्रकाशन में ही महीनों लगा दिए और ऐन काउसिंलिंग से पहले इस कॉलेज को विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया गया। जाहिर है नितिन महिंद्रा और उपरीत जैसे घोटालेबाजों को कॉलेजों की इस अनियमितता के दौर में पनपने का मौका मिला। डीमेट में 100 प्रतिशत सीटें नीलाम हुईं और सरकार को आहट तक नहीं लगी। आहट कैसे लगती प्रदेश के ही कुछ मंत्री अपने कतिपय हितों के चलते इन अनियमितताओं के साथ खड़े हुए थे। पीपुल्स कॉलेज ने तो प्री-मेडिकल टेस्ट देकर चयनित हुए छात्रों को एडमीशन देने की बजाए एमसीआई द्वारा स्वीकृत 150 सीटें खुद ही भर ली थीं। लेकिन तब भी सरकार की नींद नहीं खुली। इसलिए उन 6 निजी मेडिकल कॉलेजों को डीमेट में मनमानी करने का मौका मिल गया। पीएमटी फर्जीवाड़े की तर्ज पर बीडीएस व एमबीबीएस की परीक्षाएं निजी चिकित्सकीय व शैक्षणिक संस्थान अपने स्तर पर कराती है और परीक्षा से लेकर परिणामों तक खुद तय कराती है। इसमें भी बड़े पैमाने पर गड़बडिय़ां होती हैं लेकिन आज तक ये सामने नहीं आई हंै।

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