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भेड़ाघाट

Tuesday, January 11, 2011

कांग्रेस का मुस्लिम नेताओं से किनारा!

मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस एवं भाजपा पारंपरिक रूप से प्रमुख दल हैं. अन्य दलों की स्थिति यहां अभी भी कमजोर है. ऐसे में प्रदेश के मुसलमान कांग्रेस का दामन पकड़कर ही राजनीति करना ज्यादा पसंद करते हैं. तमाम लुभावने नारों एवं विकास की बात करने के बावजूद अभी भी भाजपा से मुसलमानों की दूरी बरकरार है. ऐसे में मध्य प्रदेश में राजनीति करने वाले मुस्लिम समुदाय के नेताओं के लिए कांग्रेस के अलावा कोई मजबूत विकल्प नहीं दिखाई पड़ता, पर पिछले कुछ सालों से प्रदेश कांग्रेस के मुस्लिम समुदाय के कई वरिष्ठ नेता हाशिए पर पड़े हुए हैं. प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी की मार इन पर ही ज्यादा पड़ी है.

अभी हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष असलम शेर खान ने प्रदेश के नेताओं से गुटबाजी से ऊपर उठकर एकजुट होने की अपील की. पर इसके साथ ही उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी एवं संगठन के खिलाफ कटु टिप्पणी भी की. हालांकि ऐसा करना उनके लिए काफी महंगा साबित हुआ और प्रदेश अध्यक्ष ने उनकी अध्यक्षता में गठित प्रदेश कांग्रेस मीडिया समिति ही भंग कर दी और मामले को जांच के लिए प्रदेश अनुशासन समिति के पास भेज दिया गया.

प्रदेश कांग्रेस समिति का मानना है कि असलम शेर खान ने सार्वजनिक रूप से पचौरी की आलोचना और अन्य नेताओं के बारे में तीखी टिप्पणी की थी. इस कार्रवाई पर असलम शेर खान कहते हैं, 'कांग्रेस की निष्क्रियता पर बोलना विरोधपूर्ण काम नहीं है. मैं मानता हूं कि प्रदेश में भाजपा का मुकाबला जमीनी स्तर पर ही किया जा सकता है. इसके लिए भोपाल में एक लाख लोगों को बुलाकर रैली करके शक्ति प्रदर्शन किया जाना चहिए.'

मुस्लिम समुदाय के नेताओं की उपेक्षा पर वह कहते हैं, 'प्रदेश कांग्रेस से मुसलमानों को जोड़े रखने के लिए जरूरी है कि उनके समुदाय से आने वाले नेताओं को तरजीह दिया जाए. वे तभी आएंगे, जब उन्हें लगेगा कि उनके समुदाय के नेताओं को पर्याप्त महत्व मिल रहा है. मुसलमान पारंपरिक रूप से कांग्रेस को वोट देते आए हैं, उनका दूर जाना कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है.' वह बिहार का उदाहरण देते हुए उससे सीख लेने की बात करते हैं.

इस प्रकरण से पूर्व, प्रदेश कांग्रेस के एक और दिग्गज नेता पूर्व शिक्षा मंत्री अजीज कुरैशी ने कांग्रेस के संगठन चुनाव में धांधली का आरोप लगाया था. उन्होंने गांधीवादी तरीके से इसका विरोध करते हुए कहा कि पार्टी में असामाजिक तत्वों को बढ़ावा दिया जा रहा है. यही नहीं, उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि कई कांग्रेसी नेता भाजपा के हाथों बिक चुके हैं. पूर्व सांसद गुफ रान-ए-आजम भी कांग्रेस में हाशिए पर पड़े हुए हैं. हालांकि यह अलग बात है कि भाजपा शासित प्रदेश में वह वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष हैं. मुस्लिम समुदाय के एक और ताकतवर नेता पूर्व मंत्री आरिफ अकील भी दिग्विजय सिंह समर्थक होने के कारण हाशिए पर हैं. वह कई बार संगठन में अपनी उपेक्षा की बात उठा चुके हैं, लेकिन उनकी बात अनसुनी की जाती रही है.

मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष साजिद अली भी हाशिए पर हैं. पिछले दिनों मध्य प्रदेश से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में सदस्यों की नियुक्ति को लेकर भी असंतोष देखने को मिला. इसमें भी महज सात अल्पसंख्यकों को जगह दी गई. इसमें मध्य प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष इब्राहिम कुरैशी तक को जगह नहीं मिल पाई. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शासनकाल में मुस्लिम समुदाय के नेताओं की स्थिति बेहतर थी. वे कई बेहतर पदों पर पदस्थ थे, लेकिन अब स्थिति पहले जैसी नहीं रही है.

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