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भेड़ाघाट

Tuesday, January 11, 2011

लैंगिक भेदभाव मिटाने बिटिया क्लब

देश में घटता लिंगानुपात एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रहा है. तमाम कोशिशों के बावजूद देश के कई ऐसे हिस्से हैं, जहां कन्या भ्रूण हत्या बड़े पैमाने पर जारी है. पहले जन्म के बाद कन्या की हत्या की जाती थी, पर सोनोग्राफी आने के बाद भ्रूण का पता लगा कर कन्या भ्रूण की हत्या कर दी जा रही है.

मध्यप्रदेश के मुरैना एवं भिण्ड जिले के लिंगानुपात में बहुत ही ज्यादा अंतर है. कुछ इसी तरह पंजाब, चंडीगढ़ एवं पश्चिमी उत्तरप्रदेश का हाल है. यह सारा खेल पितृसत्तात्मक समाज में सम्मान के नाम पर पर और वंश चलाने के नाम पर किया जा रहा है.

कन्या भ्रूण हत्या, महिला हिंसा एवं लैंगिक भेदभाव को रोकने के सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयासों के बीच एक नए प्रयास के रूप में मध्यप्रदेश में 'बिटिया' नाम से एक समिति का गठन किया गया है. बिटिया क्लब उन लोगों की संस्था हैं, जिन्हें अपनी बेटियों पर गर्व है. वे दूसरे के लिए प्रेरणास्रोत हैं कि बेटी और बेटा में कोई अंतर नहीं है, बेटी भी वंश चला सकती है और बेटी भी मां-बाप को बुढ़ापे में संरक्षण दे सकती हैं. 'बिटिया' क्लब के अध्यक्ष देश के जाने-माने कवि राजेश जोशी हैं, जो साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं.

राजेश जोशी कहते हैं, ''बिटिया क्लब का गठन उस मिथ को तोड़ने का प्रयास है, जिसमें यह माना जाता है कि वंश चलाने के लिए या फिर मुखाग्नि देने के लिए बेटा का होना जरूरी है. नि:संदेह समाज में धारणाएं बदली हैं, पर अभी भी बेटे के मोह में बेटियों की बेदखली की जा रही है.

कन्या भ्रूण हत्या से समाज की संरचना में खतरनाक बदलाव आ गया है, जिसका परिणाम हमें कई सामाजिक विसंगतियों एवं लैंगिक अपराध के रूप में देखने को मिलेगा. इसलिए हमें लैंगिक पूर्वग्रहों से समाज को बाहर लाने के अथक प्रयास करने होंगे और बिटिया क्लब लोगों के लिए मिसाल बनेगा कि बेटी किसी से कम नहीं और उस पर उनके माता-पिता को गर्व है. मेरी बेटी पूर्वा एम टेक के बाद अब आईआईटी, पवई में पढ़ा रही है, जो उदाहरण है कि बेटा ही नहीं, बेटी भी वंश चला सकती है एवं नाम रोशन कर सकती है."


बिटिया क्लब में वे लोगा शामिल हो सकते हैं, जिनकी एक ही संतान हो और वह बालिका हो. यदि पहली संतान बालिका है और बाद में उसकी दूसरी संतान हो जाए, तो वह क्लब से बाहर हो जायेंगे. एक तो जनसंख्या नियंत्रण का विचार इसमें शामिल है और दूसरा अपनी बेटी पर गर्व करने का भाव शामिल है. इसके साथ ही वे लोग जो इस विचार से सहमति रखते हैं, पर किसी न किसी कारण से एक से ज्यादा संतान या फिर बालक के माता-पिता है, वे इस क्लब के दोस्त हो सकते हैं.

बिटिया क्लब की परिकल्पना के पीछे प्रशासनिक अधिकारी डॉ. मनोहर अगनानी की संकल्पना है. उन्होंने बालिकाओं को बचाने एवं लैंगिक समानता के लिए कई प्रयास किए हैं. मुरैना कलेक्टर रहते हुए उन्होंने सोनोग्राफी सेंटर्स पर कार्रवाई भी की थी. उन्होंने बिटिया क्लब के विचार को लैंगिक समानता को लेकर कार्य कर रहे लोगों से साझा किया था और इस अवधारणा को जमीं पर उतारने के लिए एक बैठक की गई थी. उसमें भोपाल के कई बुद्घिजीवी शरीक हुए और बिटिया क्लब का गठन हो गया. बिटिया क्लब में भोपाल कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव, राजेश जोशी, डॉ. मनोहर अगनानी सहित कई व्यवसायी, अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं अन्य वर्ग के लोग शामिल हुए हैं, जिनकी इकलौती संतान बिटिया है.

सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री प्रीति तिवारी कहती हैं, ''यह विचार बहुत ही महत्वपूर्ण है. जब मैंने अपने पति राकेश तिवारी के साथ एक संतान के लिए फैसला लिया था और बेटी के बाद बेटे की चाह नहीं की, तो परिवार एवं रिश्तेदारों ने लगातार दबाव बनाने की कोशिश की कि एक बेटा तो होना चाहिए. पर हमने उनके सामने तर्क दिए और आज अपने फैसले पर कायम हैं. मुरैना एवं भिण्ड में महिलाओं के बीच इस तरह के विचार रखना चुनौतीपूर्ण होता है, पर अब हमारे सामने बेटियों पर गर्व करने वालों का एक नेटवर्क होगा, जो समाज के लिए उदाहरण बनेगा."

सामाजिक कार्यकर्ता शिवनारायण गौर कहते हैं, ''इकलौती बेटी के लिए सरकार को कई योजनाएं निकालनी चाहिए, जिससे कि मां-बाप प्रेरित हो सके और पहली संतान बेटी होने के बावजूद दूसरी की चाह न करें. ग्रामीण परिवेश में हमारे परिवार के बीच अभी भी इस बात का जिक्र किया जाता है कि एक बेटा तो होना ही चाहिए."


बिटिया क्लब मध्यप्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठाने काम करेगा, लैंगिक भेदभाव के खिलाफ सामाजिक चेतना का निर्माण करेगा, बेटियों का एक नेटवर्क तैयार करेगा, उन बेटियों को सहयोग करेगा, जिनके सपने को पूरा करने में सामाजिक एवं आर्थिक अक्षमता बाधा बन रही हो, सफल बेटियों को ब्रांड एंबेसडर के रूप में सामने किया जाएगा और इन सबको साथ लाने के लिए सांस्कृतिक आयोजन किया जाएगा.

नि:संदेह बिटिया क्लब की अवधारणा एवं लक्ष्य एक महत्वपूर्ण एजेंडे को साथ लेकर बढ़ रहा है, पर देखना यह है कि इसका उस समाज पर कितना प्रभाव पड़ता है, जो कन्या भ्रूण हत्या एवं लैंगिक भेदभाव में शामिल है.

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