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भेड़ाघाट

Tuesday, January 11, 2011

कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में भाजपा की सेंध

कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक रहे हैं. अब भाजपा इसमें सेंध लगा रही है और उसे कामयाबी भी मिल रही है. सन् 2002 में हुए गोधरा दंगों के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार 15 नवंबर, 2010 को अहमदाबाद की उस चर्चित मुस्लिम बस्ती जुहापुरा में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में शिरकत करने गए, जिसे स्थानीय लोग 'मिनी पाकिस्तान' कह कर पुकारते हैं. पुरातात्विक महत्व के स्मारकों के संरक्षण के लिए गुजरात सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम के तहत मोदी के निर्देश पर जुहापुरा स्थित मुगलकालीन मकबरे 'सरखेज का रोजा' को खास तौर पर चुना गया था. 15 नवंबर की शाम यहां मुगलकालीन संस्कृति के परिवेश में सूफी संगीत और कव्वाली का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ. 'हिंदू हृदय सम्राट' नरेंद्र मोदी ने न केवल इस कार्यक्रम में शिरकत की, बल्कि स्थानीय मुसलमानों के साथ घंटों बैठ कर सूफी संगीत और कव्वाली का लुत्फ भी उठाया.

• छह दिसंबर का दिन भाजपा के लिए खास महत्व रखता है. विश्व हिंदू परिषद सहित दूसरे हिंदूवादी संगठन इस दिन को शौर्य दिवस के तौर पर मनाते हैं. भाजपा नेता इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. इसी दिन डॉ. अंबेडकर की पुण्यतिथि भी पड़ती है लेकिन इस बार भाजपा नेताओं ने रामलला को भुला कर देशभर में दलितों के मसीहा डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि मनाई, वह भी पूरे जोर-शोर से. राम मंदिर के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकालने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने इस दिन संसद भवन स्थित डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा के सामने नमन किया तो भाजपा के प्रमुख दलित नेता सत्य प्रकाश जटिया ने अंबेडकर की परिनिर्वाण भूमि को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि 'राजघाट' के बराबर दर्जा देने की मांग कर डाली. इस बार भाजपा सांसदों ने प्रधानमंत्री को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए चिट्ठी नहीं लिखी. इसकी बजाए पार्टी के दलित सांसदों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर डॉ. अंबेडकर के जन्मस्थान और महापरिनिर्वाण स्थल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की.

• दिल्ली के रामलीला मैदान में 12 दिसंबर, 2010 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठनों ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर यज्ञ और संतसम्मेलन आयोजित किया. इस कार्यक्रम को सफल बनाने और भीड़ इकठ्ठा करने में दिल्ली प्रदेश के भाजपा नेताओं को लगाया गया. भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए दिल्ली के भाजपा नेताओं की कई बैठकें भी लीं लेकिन इस कार्यक्रम में भाजपा का बड़ा क्या, कोई छोटा नेता भी मंच पर नहीं दिखा. जो एक-दो राष्ट्रीय पदाधिकारी आए भी तो, वे मंच के नीचे ही बैठे. पहले ऐसे कार्यक्रमों मे भाजपा नेताओं की भीड़ लग जाती थी.

ये घटनाएं बता रही हैं कि नितिन गडकरी के नेतृत्व वाली भाजपा बदल रही है. गडकरी को भाजपा अध्यक्ष बने एक साल पूरा हो रहा है और यह बदलाव अब उनकी नीतियों और कार्यक्रमों के जरिए साफ दिखने भी लगे हैं. भविष्य के राजनीतिक नफा-नुकसान को भांप कर भाजपा अपनी कट्टर हिंदूवादी पार्टी की छवि को उदार पार्टी के रूप में ढालने में जुट गई है. गडकरी की रणनीति 2014 तक पार्टी के वोट बैंक में 10 फीसदी इजाफे की है, ताकि अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया जा सके. पार्टी के मुद्दों और नीतियों में बदलाव इसी रणनीति का हिस्सा है. गडकरी की नजर मुसलमानों और दलितों पर है, जो कांग्रेस पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक हैं. इसलिए मंदिर-मसजिद की बजाए पार्टी विकास और सुशासन को चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है. गडकरी ने पार्टी के नए दर्शन को परिभाषित करते हुए दो नए नारे गढ़े हैं. पहला- 'विकास के लिए राजनीति' (पॉलिटिक्स फॉर डेवलपमेंट) और दूसरा- 'अंत्योदय' यानी समाज मेंहाशिए पर खड़े व्यक्ति का विकास. इसके लिए उन्होंने पार्टी में अंत्योदय सेल की अलग से स्थापना की है तो विकास की राजनीति के तहत उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं को अपने-अपने इलाके में विकास कार्यों के लिए सरकारी संस्थाओं के जरिए एक-एक प्रकल्प शुरू करने का निर्देश दिया है.

दरअसल, मंदिर-मस्जिद और अन्य पुराने मुद्दों को छोड़ कर विकास की राजनीति करना भाजपा की मजबूरी भी है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने जिस तरह से देश को तरक्की के रास्ते पर ले जाने के लिए अपनी पार्टी की नीति को विकास केंद्रित बना दिया है, उससे भाजपा को भी अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है. राजनीतिक विश्लेषक डॉ. सुब्रोकमल दत्ता कहते हैं, 'लोकतंत्र में विपक्ष की राजनीति सत्ता पक्ष के एजेंडे से तय होती है. सत्ता पक्ष जब विकास की राजनीति कर रहा है तो विपक्ष के लिए उसी तरह का राजनीतिक विकल्प चुनना ही उचित होता है.' तो क्या भाजपा के मंदिर मुद्दे से किनारा कर लेने से संघ और भाजपा में किसी तरह का मतभेद पैदा हो गया है?

गडकरी के करीबी सूत्रों की मानें तो भाजपा में इस बदलाव को संघ प्रमुख मोहन भागवत का समर्थन हासिल है. वैसे भी संघ की पहल पर भाजपा अध्यक्ष बने गडकरी हर काम में संघ की सलाह जरूर लेते हैं. वे वही काम करते हैं जिस पर उन्हें संघ की हरी झंडी मिलती है.

गडकरी ने अध्यक्ष बनते ही मुसलमानों से संवाद बनाने की कवायद शुरू कर दी थी. भाजपा की मुसलिम विरोधी छवि को बदलने के लिए गडकरी अपने सार्वजनिक भाषणों में भाजपा शासित राज्यों खासकर गुजरात का उदाहरण देते हुए यह बताने से नहीं चूकते कि किस तरह से वहां की सरकार की विकास योजनाओं के जरिए मुसलमानों ने तरक्की की है, कैसे उनकी आय बढ़ी और रोजगार के अवसरों में इजाफा हुआ.

मंदिर मुद्दे को दरकिनार कर और भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों और दलितों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत कर पार्टी खास तौर पर अल्पसंख्यकों को यह संदेश देना चाहती है कि भाजपा अब उनके लिए दुश्मन पार्टी नहीं रही. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के मुस्लिम नेता और भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व जिलाध्यक्ष मो. इदरीश खान इस बात की तस्दीक भी करते हैं. इदरीश कहते हैं, 'वैसे तो अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए कल्याण सिंह से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक कारगर योजनाएं बनाते रहे हैं, लेकिन भाजपा के मंदिर मुद्दे से पीछे हटने से मुसलमानों का झुकाव पार्टी की तरफ बढ़ा है.'

मुसलमानों को लुभानों के लिए मध्य प्रदेश और गुजरात की सरकारें मदरसों के आधुनिकीकरण जैसी कोशिश कर रहीहंै. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस काम के लिए दोनों सरकारों की तारीफ की. भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन कहते हैं, 'मुसलमानों के मन में हमारे प्रति जो गलतफहमियां फैलाई गई थीं, हम अपने काम से उन्हें दूर कर रहे हैं. इसी का नतीजा है कि बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार हमें ज्यादातर मुस्लिम बहुल सीटों पर विजय मिली. इतना ही नहीं, हमें यहां अप्रत्याशित रूप से 21 फीसदी से ज्यादा मुसलमानों ने समर्थन दिया, जबकि गुजरात में हाल ही में हुए पंचायत और पालिका चुनावों में करीब 100 मुस्लिम बहुल सीटों पर हमारे प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की.'

दलितों को पार्टी से जोडऩे के लिए भाजपा ने दलित महापुरुषों की जयंतियों और पुण्यतिथियों को जोर-शोर से मनाने और दलित उत्थान व स्वाभिमान से जुड़े मुद्दों को उठाने का कार्यक्रम तय किया है. इसीलिए भाजपा ने इस साल पहली बार वाल्मीकि जयंती और अंबेडकर की पुण्यतिथि पर देशभर में बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित किए. इसे आगे भी जारी रखने की योजना है. दरअसल भाजपा को समझ में आ गया है कि मौजूदा गठबंधन की राजनीति में 'राम' से ज्यादा 'अंबेडकर' की अहमियत है. यही वजह है कि छह दिसंबर को भाजपा ने रामलला को भुला कर अंबेडकर को याद किया. वैसे तो भाजपा शासित राज्यों में दलितों के लिए खास योजनाएं भी बनाई जा रही हैं, लेकिन ज्यादा जोर उन्हें शिक्षित करने पर है.

भाजपा नेताओं का मानना है कि शिक्षा के प्रसार से दलितों में चेतना आएगी और उन्हें वास्तविकता का पता चल पाएगा. लिहाजा, बसपा जैसे दल उन्हें गुमराह नहीं कर पाएंगे. भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष दुष्यंत कुमार गौतम कहते हैं, 'भाजपा शासित राज्यों में दलितों की शिक्षा के लिए अलग से फंड आवंटित किया जा रहा है. हमारी सरकारें दलित बच्चों को बड़े पैमाने पर छात्रवृत्ति देकर विदेश पढऩे जाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं.'

इसी तरह गडकरी स्वदेशी की पुरानी परिभाषा को भी बदलने में लगे हैं. भाजपा की स्वदेशी, विदेशी के बहिष्कार की नीति पर आधारित है लेकिन गडकरी देश की तरक्की के लिए स्वदेशी और विदेशी तकनीक का बेहतर मेल चाहते हैं. गडकरी अब भाजपा का भविष्य 'रामलला' में नहीं, बल्कि 'अंत्योदय और अंबेडकर' में देख रहे हैं. हालांकि इससे पार्टी का एक धड़ा उनसे नाराज भी है लेकिन गडकरी इसकी परवाह किए बगैर भाजपा के भविष्य की दिशा तय करने में जुटे हैं. भाजपा के लिए यह एक 'टर्निंग प्वाइंट' है.

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