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भेड़ाघाट

Tuesday, June 8, 2010

भोपाल की नसों में आज भी रिस रही है त्रासदी

इसी टैंक से रिसे गैस के कारण हुई थी भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी औद्यौगिक त्रासदी "भोपाल गैस कांड" का जहर चौथाई सदी बीतने के बावजूद आज भी शहर की नसों में घुला हुआ है। 2-3 दिसम्बर 1984 की रात हजारों जिंदगियाँ लील चुके यूनियन कार्बाइड संयंत्र के आसपास के इलाकों की मिट्टी और पानी में अब भी भारी मात्रा में जहर मौजूद है। विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र (सीएसई) के अध्ययन के अनुसार फैक्ट्री से तीन किलोमीटर दूर तक के इलाके के भू-जल में भारतीय मानकों से 40 गुना अधिक तक कीटनाशक पाए गए हैं।

फैक्टरी परिसर के इर्द-गिर्द यह निर्धारित मानकों से 561 गुना ज्यादा है। संस्थान की निदेशक सुनीता नारायण और संयुक्त निदेशक चंद्र भूषण ने मंगलवार को भोपाल में अध्ययन की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि यूनियन कार्बाइड के प्रदूषित कचरे का जल्द से जल्द निष्पादन करने के साथ ही पूरे फैक्टरी परिसर की सफाई भी जरूरी है। सीएसई की निदेशक के मुताबिक इस प्रदूषण का हमारे शरीर पर कितना और कैसा असर पड़ेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह साफ है कि इसका असर धीमे जहर की तरह हो रहा है। यूनियन कार्बाइड के बंद पड़े संयंत्र में मौजूद 340 टन खतरनाक रासायनिक कचरा अब तक नहीं हटाए जाने पर गहरा क्षोभ जताया ।

"जिन संस्थाओं को रासायनिक कचरा हटाने का काम दिया गया है, सरकार उन्हें काम जल्द निपटाने को कहे। कार्बाइड की अधिग्रहणकर्ता "डाउ" केमिकल पल्ला झाड़ने की तैयारी में है। दुर्घटना के लिए भारतीय अदालत में एक बार मुआवजा तय होने के बाद कम्पनी की जिम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती। आरटीआई कानून के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय से निकाले गए कागजात इशारा करते हैं कि डाउ केमिकल्स को जिम्मेदारी से मुक्त करने की तैयारी चल रही है।" -सुनीता नारायण, निदेशक, सीएसईसंस्थान ने अपनी जांच के लिए इस वर्ष अक्टूबर में संयंत्र परिसर के भीतर से मिट्टी का एक और पानी के आठ नमूने लिए। इतना ही नहीं संयंत्र की सबसे नजदीकी बस्ती और साढे तीन किलोमीटर दूर तक की कालोनी से पानी के 11 नमूने लिए गए। इन सभी नमूनों की जाँच में उच्च स्तर का प्रदूषण पाया गया है। सुनीता नारायण ने प्रयोगशाला अध्ययन और उसके निष्कर्षों के आधार पर बताया कि भोपाल में संयंत्र क्षेत्र भीषण विषाक्तता को जन्म दे रहा है और लगातार हो रहा सूक्ष्म संपर्क हमारे शरीर में जहर घोलने का काम कर रहा है। उन्होंने बताया कि संयंत्र की जमीन में मौजूद रसायन भूजल में घुल रहे हैं और यह जहर धीरे-धीरे यहां के निवासियों के शरीर को अपना शिकार बना रहा है। संयंत्र के आसपास की बस्तियों में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि वहाँ के निवासी अभी तक असाध्य रोगों और शारीरिक विकृतियों से जूझ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि इन नमूनों में पाए गए जहरीले पदार्थ के रसायन का चरित्र संयंत्र में जमा कचरे के रसायनों के चरित्र से मेल खाता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाया गया रसायन क्लोरिनेटिड बेंजीन मिश्रणों और कीटनाशक का स्त्रोत यूसीआईएल के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं हो सकता है। फैक्टरी में तीन प्रकार के कीटनाशकों का उत्पादन होता था - कारबारिल (सेविन), एल्डिकार्ब (टेमिक) और सेविडोल। संयंत्र में पारे और क्रोमियम जैसी भारी धातुएँ भी इस्तेमाल होती थीं। इन उत्पादों के ज़्यादातर तत्व स्थायी और जहरीली प्रकृति के हैं। सीएसई ने अपनी लैब में मिट्टी और पानी के नमूनों में इन्हीं रसायनों का अध्ययन किया। अध्ययन में विभिन्न रसायनों की उपस्थिति के लिए हाई परफॉर्मेस लिक्विड क्रोमेटोग्राफ, गैस क्रोमेटोग्राफ, क्रोमेटोग्राफ मास स्पेक्ट्रोमीटर, फ्लेम और एसएस-वेपर तकनीकों का उपयोग किया गया।

जाँच रिपोर्ट के अनुसार इन नमूनों में जो रसायन अधिकता में पाए गए हैं वे शरीर के लिए घातक हैं। चंद्रभूषण ने बताया कि फैक्टरी और आसपास के क्षेत्रों में भूजल और मिट्टी के सैंपलों में क्लोरीनेटिड बेंजीन के मिश्रण मिले हैं। क्लारीनेटिड बेंजीन मिश्रण की अधिकता जिगर और रक्त कोशिकाओं को प्रभावित तथा नष्ट तक कर सकती है। इसके अलावा ऑर्गेनाक्लोरीन कीटनाशक कैंसर और हड्डियों की विकृतियों के जनक हो सकते हैं। वहीं कारबारिल और एल्डिकार्ब नामक उत्पाद भी उतने ही घातक थे। इससे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है जिसमें मस्तिष्क तथा तंत्रिका प्रणाली को नुकसान, गुणसूत्रों की गड़बड़ी भी हो सकती है। इन रसायनों से होने वाले प्रभावों का विस्तृत अध्ययन होना चाहिए।

"25 वर्षो में इतना पानी बरस चुका है कि यूनियन कार्बाइड संयंत्र में पड़े रासायनिक कचरे का सारा जहरीलापन समाप्त हो चुका है। अब वह साधारण कचरा भर है। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान और केन्द्रीय रसायन पेट्रोकेमिकल विभाग की रिपोर्ट से भी यह साबित हो चुका है। कचरे के अब भी जहरीले होने का स्वयंसेवी संगठनों का दावा है। पूरी तरह व्यवसायिक हो चुके इन संगठनों की अब कोई जरूरत नहीं रह गई है। पीडितों के बीच पूरा मुआवजा बँट चुका है। उनके इलाज के पर्याप्त इंतजाम हो गए हैं। इसलिए अब किसी आंदोलन की जरूरत भी नहीं है।" -बाबूलाल गौर, गैस राहत एवं पुनर्वास मंत्री
रिपोर्ट के मुताबिक रसायन प्रभाव डाइक्लोरोबेंजिन व आइसोमर रक्त कोशिकाओं, फेफड़ों, गुर्दे, स्नायु तथा प्रजनन तंत्र प्रभावित 1,2,3 ट्राईक्लोरोबेंजिन रोग प्रतिरोधक क्षमता, स्नायु, प्रजनन तथा श्वसन तंत्र पर असर हेक्साक्लोरोबेंजिन लीवर रोग, अल्सर, स्नायु परिवर्तन, हड्डियों में खराबी, बाल झड़ना, कैंसर का खतरा हैक्साक्लोरोसाइक्लोहेक्सेन केंसर की आशंका, लीवर, गुर्दो, स्नायु तथा रोग प्रतिरोधक प्रणाली में खराबी कारबेरिल (सेविन) मस्तिष्क तथा स्नायु प्रणालियां क्षतिग्रस्त, बच्चों का असामान्य विकास एल्डीकार्ब (टेमिक) क्रोमोजोम असमानताएं, रोग प्रतिरोधक प्रणाली पर प्रभाव पारा स्नायुतंत्र के लिए विशकारी, स्मरण शक्ति एकाग्रता पर प्रभाव, गर्भ में पल रहे बच्चों पर प्रभाव एवं गर्भपात की आशंका संखिया उदर रोग, खून की कमी, स्नायु रोग, त्वचा पर जख्म लीवर व गुर्दे में खराबी, केंसर की आशंका सीसा गर्भपात, शुक्राणुओं की कमी, बच्चों का असामान्य मानसिक विकास, स्नायु प्रणाली प्रभावित, हीमोग्लोबिन और अनीमिया के बायोसिंथेसिस में अवरोध क्रोमियम अल्सर, दमा और श्वसन रोग, नाक की झिल्ली में छिद्र, श्वास नली और गले में जलन के मामले सामने आये हैं ।

गैस त्रासदी के तत्काल बाद इसकी जिम्मेदारी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को दी गई थी, लेकिन वर्ष 1994 में उसने रिसर्च का काम बंद कर दिया। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने कहा फैक्टरी का कचरा धीरे-धीरे शहर के पानी को प्रदूषित कर रहा है, इसलिए इसे जल्द साफ किया जाना चाहिए। सरकार ने इसके लिए एक कमेटी बनाई है पर भोपाल की जनता को यह काम जल्द शुरू कराने के लिए दबाव बनाना होगा। फैक्टरी की सफाई का मतलब केवल वहां रखे 340 टन रासायनिक कचरे का निष्पादन नहीं है बल्कि पूरी जमीन की मिट्टी और पानी का शुद्धिकरण होना चाहिए। सफाई की जिम्मेदारी डाउ केमिकल्स की होना चाहिए।

सीएसई के पदाधिकारियों ने प्रश्न किया कि जिस फैक्टरी की मिट्टी और पानी इतना प्रदूषित है, आखिर उसे आम लोगों के लिए क्यों खोला जाना चाहिए? सुश्री नारायण ने एक सवाल के जवाब में कहा कि हम यह नहीं कह सकते कि पूरे भोपाल का पानी प्रदूषित है। हम तो सिर्फ जहाँ से नमूने लिए गए हैं उन स्थानों का पानी बुरी तरह प्रदूषित होने की बात कह रहे हैं जो जांच में सामने आए हैं। श्री भूषण ने कहा जहां का भूजल प्रदूषित पाया गया, उस पानी का उपयोग कतई नहीं करना चाहिए। संयंत्र को आम लोगों को खोलने के लिए चल रही कोशिशों और कचरे को खतरनाक न मानने के सवाल पर सुनीता नारायण ने कहा कि यह घोर विषाक्त है । इसलिए यह दावा करना कि कचरा छूने से कुछ नहीं होगा, संयंत्र खतरनाक नहीं है यह भ्रामक प्रचार है। वे संयंत्र को खोलने के पक्ष में नहीं हैं।

1 comment:

  1. आईये जानें ....मानव धर्म क्या है।

    आचार्य जी

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