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भेड़ाघाट

Friday, June 4, 2010

पश्चिम बंगाल बना दुल्हनों का बाजार

बंगाल के सीमावर्ती जिलों में ओ पार यानी बांग्लादेश से लाई जाने वाली लड़कियां कटी पतंग की तरह होती हैं, जिन्हें लूटने के लिए कई हाथ एक साथ उठते हैं। इनमें होते हैं दलाल, पुलिस, स्थानीय नेता और पंचायत प्रतिनिधि। अवैध रूप से सीमा पार से आने वाली इन लड़कियों की मानसिक हालत बलि के लिए ले जाई जा रही गाय की तरह होती है। एक समय था, जब स्थानीय स्तर पर इनका अवैध पुनर्वास आसान होता था। स्थानीय लोग इन घुसपैठिया परिवारों से शादी का रिश्ता नहीं कायम करना चाहते हैं और इन्हें बंगाल से बाहर घर बसाने का खतरा उठाना ही पड़ता है। सीमावर्ती जिलों के मूल बंगालियों में धीरे-धीरे उभरते आक्रोश ने इनकी परेशानी और बढ़ा दी है। पिछले माह बांग्लादेश के तालाथाना से लाई गई तपती मंडल के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। बशीरहाट के चारघाट बाछारपाड़ा की एक विधवा राधारानी ने अपने बांग्लादेशी रिश्तेदारों की मदद से उसे सीमा पार कराया। पड़ोसी तारापद विश्वास ने हरियाणा के दूल्हे मुकेश चोमार की व्यवस्था की। पहले तो दोनों की कोर्ट में शादी कराने की कोशिश की गई, पर तपती के पास भारतीय नागरिकता का कोई सबूत न होने से कामयाबी नहीं मिली।
मां-बाप की गरीबी कुछ लड़कियों-बच्चों की बदकिस्मती बन गई है। ख़ुशहाल जिंदगी का सपना दिखाकर उनके अरमान तरह-तरह से रौंदे जा रहे हैं। सरकार भी जानती है कि यह गोरखधंधा कौन कर रहा है, लेकिन उसने आज तक सिर्फ चिंता ही जताई, किया कुछ भी नहीं। आखिर वजह क्या है?
राधारानी के घर में दोनों की शादी का मंडप सज गया, पर घबराई तपती ने हरियाणा के दूल्हे से शादी करने से इंकार कर दिया और पुलिस से शिकायत कर दी। पुलिस को शक पहले से था और इसकी वजह भी थी, क्योंकि तारापद और राधारानी के घरों में साल में दर्जनों शादियां होती थीं। तारापद के पास एक क_ा भी जमीन नहीं है, पर उसका पक्का घर बन रहा था।
एक बात खास थी कि इन शादियों में दूल्हे भी बंगाल के नहीं, बल्कि मुख्यत: उत्तर प्रदेश और हरियाणा के होते थे, जबकि ज़्यादातर दुल्हनें बांग्लादेश से लाई जाती थीं। 24 मार्च को जब इस सच से परदा हटा तो दूल्हा-दुल्हन के साथ चार अन्य लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने जब कड़ाई से पूछताछ की तो दूल्हे ने शादी के बहाने देह व्यापार के इस गोरखधंधे का खुलासा किया। दूल्हा जेल में है और अवैध रूप से सीमा पार करने वाली तपती भी सलाखों के पीछे है। जब मामले की छानबीन की तो कई तरह के सच सामने आए। वारदात के बाद पुलिस ने तारापद एवं उसकी पत्नी को मुख्य अभियुक्त बनाया। शादी का मंडप राधारानी के घर में बना था, पर उसे अभियुक्त नहीं बनाया गया। तारापद की पत्नी ने कहती है कि भगीरथ सरदार, जयंत मंडल, बिमल बाइन एवं हर्षित विश्वास ने पहले पुलिस बुलाने की धमकी देकर उसके पति से पैसे ऐंठने की कोशिश की, पर बात न बनते देख पुलिस को बुला लिया।
चारघाट की महिला समिति की सदस्य शहनाज बेगम ने गांव के कई परिवारों का हवाला देते हुए बताया कि हरियाणा के दूल्हों से शादी करके लड़कियां किस तरह चैन की जिदगी गुजार रही हैं। पुलिस ने अपना हिस्सा न मिलने पर यह कार्रवाई की है। गांव के लोगों ने भी दबी ज़ुबान से तस्करी की बात स्वीकार की, क्योंकि राधारानी का घर एक तरह से मैरिज हॉल बन गया था। जब हमने शादी के बिचौलिए से संपर्क किया तो वह हरियाणा का नहीं, बल्कि गोरखपुर का रामाश्रय निकला। चोमार के बारे में उसने कोई जानकारी होने से ही इंकार कर दिया। इस तरह शक पूरी तरह यकीन में बदल गया है कि कहीं इन शादियों में अंतरराज्यीय गिरोह का तो हाथ नहीं है?
24 परगना के ही मछलंदपुर से पांच किलोमीटर दूर देगंगा थाना इलाके की कलसुर पंचायत की झूमा को भी उसका दूर का रिश्तेदार वशीर अली काम दिलाने के बहाने लेकर फरार हो गया। उसकी शादी पहले हो चुकी थी, इसलिए मां टूनू बीबी को संदेह हुआ और उसने अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी। पुलिस ने इस मामले में लड़के के पिता आकाश मंडल, उसकी पत्नी, ससुर अबुस मंडल और रिश्तेदार बाबू मंडल को गिरफ्तार कर लिया। लड़की ने किसी दबाव में कहा कि वह अपनी मर्जी से गई थी, लेकिन पुलिस ने नाबालिग बताते हुए उसके बयान को खारिज कर दिया। पुलिस के कड़े रुख की वजह से अब तक चारों की जमानत नहीं हो पाई है। झूमा की मां टूनू बताती है कि अगर काम दिलवाने का इरादा था तो मुझे बताया क्यों नहीं गया?
अब दलालों का गिरोह टूनू पर मामला वापस लेने के लिए दबाव बना रहा है। 24 परगना के कई इलाके के गांवों में दलालों का जाल फैला हुआ है। इस धंधे में दलाल कई स्तर पर काम करते हैं। महिला दलाल बतौर चूडि़हारिन और दूसरे सौंदर्य प्रसाधन बेचने के बहाने उन घरों की तलाश करती हैं, जिन घरों में जवान लड़कियां होती हैं। इनमें खासकर गरीब घरों की लड़कियों के अभिभावकों से वे योग्य दूल्हे खोजने का प्रस्ताव रखती हैं। शुरुआती हामी भरने के बाद उन अभिभावकों को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के अच्छे एवं ख़ुशहाल परिवारों के युवक दिखाए जाते हैं। लड़का दिखाने की रस्म के समय उसकी आय को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। गरीब अभिभावक भी बिना किसी खर्च के शादी की चिंता से मुक्त होने के लोभ में फंस जाते हैं और हामी भर देते हैं। उनसे दहेज नहीं मांगा जाता।
शादी होने के बाद दुल्हनों की कई श्रेणियां हो जाती हैं। एक श्रेणी वह होती है, जिसमें लोग उन्हें सिर्फ पत्नी के रूप में रखते हैं। बताने की जरूरत नहीं कि खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में कुछ परिवार पीढिय़ों से बहिष्कृत होते हैं। यानी दो पीढ़ी पहले भी परिवार के किसी सदस्य ने अगर किसी विजातीय से शादी की हो, तो उससे भात का रिश्ता नहीं होता। यहां के देगंगा प्रखंड के हसरतुल्ला ने बताया, जो अपनी बेटी मोती बीबी और दामाद के साथ मिलकर महिलाओं की तस्करी का धंधा करता था। शाहिदा नामक लड़की द्वारा अपनी रामकहानी बताने के बाद उसका पर्दाफाश हुआ था। हालांकि पिछले दो-तीन सालों से वह इस धंधे को छोड़ चुका है। ज़्यादातर फर्जी दूल्हों का मकसद होता है, दुल्हनों को कुछ समय बाद बेच देना। कुछ अपनी आमदनी का जरिया बनाने के लिए उन्हें देह व्यापार में लगा देते हैं। शादी के बाद ज़्यादातर दुल्हनों पर अत्याचार का सिलसिला शुरू हो जाता है। उन्हें पहले एक सेलनुमा कमरे में बंद रखा जाता है और हर समय निगरानी रखी जाती है। उन्हें पूरी तरह तोडऩे के लिए मारा-पीटा भी जाता है। जो दुल्हन टूट जाती है, उसके लिए सुख-सुविधाओं के दरवाजे खुलने लगते हैं।
सीमावर्ती इलाके में काम कर रही स्वयंसेवी संस्था सेंटर फॉर कम्युनिकेशन एंड डेवलपमेंट (सीसीडी) की सहयोगी संस्था नारी विकास मंच ने कुछ सालों पहले यानी 90 के दशक में ऐसी कई लड़कियों को मीडिया के सामने पेश किया था। इनमें दो बहनें मरजीना और लाल बीबी भी थीं। एक ही मंडप में इनकी शादी करके पिता माछार अली ख़ुश हुआ कि एक बड़ी चिंता दूर हो गई, पर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जि़ले में रसूलपुर गांव के दो दूल्हे शेरवानी में सजे दलाल थे। देह की मंडी के दलाल। सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर उतरते ही दूल्हों का नक़ाब हट गया और दलाल-दर-दलाल इनके बिकने का सिलसिला शुरू हो गया। 10 हज़ार से लेकर 50 हज़ार रुपये तक दोनों बहनें कई बार बिकीं। आखिऱ में एक दिन आज़ाद होकर वे अपने मायके आ गईं। उत्तर 24 परगना के उत्तर चौरासी गांव की मरज़ीना एवं लालबीबी की तरह पास के चिडिंगा गांव की शाहिदा भी थी। देगंगा के खेजूर डांगा इलाके की माबिया को फिरोज़ा बीबी नामक दलाल ने बेचा था। इसी तरह मुर्शिदाबाद की मेहरुसिन्ना और स्वरूपनगर की काजल सरदार को भी शादी का झांसा देकर बेच दिया गया।
नारी विकास मंच ने जिले की कुल 25 लड़कियों का पता लगाया है, जिनमें फातिमा (बेटी-अजित अली, उत्तर चौरासी), आयरा (बेटी-मोहर अली, उत्तर चौरासी), जहांनारा (बेटी-हानिफ अली, उत्तर चौरासी), सुप्रिया (बेटी-अब्दुल रऊफ, उत्तर चौरासी), पारुल (बेटी- मेछेर अली, माटीकोमरा), बेगम बीबी (बेटी-खैरुद्दीन मंडल, माटीकोमरा), आसुरा ख़ातून (बेटी-अब्दुर्रहमान, चिडिंगा), आरजीना ख़ातून (बेटी-फकीर अहमद, चिडिंगा), मुमताज (बेटी-शमशेर मिस्त्री, चिडिंगा), विजया (बेटी-छोरे मोमिन, दक्षिण चौरासी), फिरोज़ा (बेटी-जमात अली, उत्तर चौरासी), बिजली कर्मकार (उत्तर चौरासी), मोमना (बेटी- जमात अली खरदार, उत्तर चौरासी)। सीमा से सटे होने के कारण बंगाल के उत्तर 24 परगना में ऐसे मामले धड़ल्ले से हो रहे हैं। जबकि मुर्शिदाबाद बच्चों की तस्करी के लिए कुख्यात होता जा रहा है। अरब देशों में ऊंट दौड़ और मस्जिदों के सामने भीख मंगवाने के लिए इस जिले से भी अपंग बच्चों की तस्करी की जाती है। 1997 में सउदी अरब से सैकड़ों अपंग बच्चों को मुक्त कराकर भारत वापस भेजा गया था। उनमें से ज़्यादातर मुर्शिदाबाद जिले के थे। सीसीडी के शमसुर हक बताते हैं कि तस्करों का गिरोह पूरी तरह कब्जे में आ चुकी दुल्हनों को दोबारा मायके भेजकर यह प्रचारित करता है कि वे वहां कितनी सुखी हैं। इससे दलालों को अगला शिकार तलाशने में सुविधा होती है। कोलकाता की चेतला इलाके की रीता जायसवारा (14 साल) को उसकी परिचित माया बारुई ने बेहला में काम दिलवाने के बहाने से फुसलाया। हालांकि उसने उसे उत्तर प्रदेश भेज दिया, जहां उसे आर्केस्ट्रा कंपनी में नाचने पर मजबूर किया गया। रीता को कोलकाता पुलिस ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से मुक्त कराया।बर्धवान विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान विभाग की ओर से वुमेन स्टडीज रिसर्च सेंटर की छानबीन से पता चला कि शादी के नाम पर बंगाल से लड़कियों की खरीद में अंतरराष्ट्रीय तस्कर गिरोह शामिल है। संगठन की प्रमुख निदेशक इशिता मुखोपाध्याय कहती हैंं कि दहेज न लगने की सुविधा की वजह से अभिभावक अपनी कमसिन बेटियों को भी ब्याह देते हैं। 2001 की जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, बाल विवाह के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले बंगाल की दर 39.16 है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, महिलाओं की तस्करी के मामले में नई दिल्ली और पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर हैं।

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