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भेड़ाघाट

Tuesday, June 8, 2010

यह सिर्फ भोपाल की कहानी नहीं





यह सिर्फ भोपाल की नहीं पूरे देश की कहानी है। गांव, शहर और जंगल की हवाओं में जहर फैल रहा है। नदियां सूख रही हैं या गंदा नाला बनती जा रही हैं। पर्यावरण का विनाश हो रहा है। लेकिन इसके बावजूद राजधानियों से लेकर छोटे-बड़े शहरों तक विकास का अजगर अपने पैर फैलाता जा रहा है। भोपाल पहली ऐसी त्रासदी नहीं है। पूरी दुनिया के इतिहास में ऐसी घटनाओं की एक लंबी श्रृंखला है। पचास साल पहले लंदन में भी ऐसे ही जहरीली हवा फैली थी।

उस घटना को पच्चीस साल बीत चुके हैं, जब एक अंधेरी रात को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कंपनी से निकलने वाली जहरीली गैस ने हजारों जिंदगियों को एक साथ निगल लिया था। आज पच्चीस साल बाद भी उस दुर्घटना से हमने क्या सबक सीखा है? एक यूनियन कार्बाइड का कारनामा हमारे सामने है, लेकिन ऐसे जाने कितने जहरीले संयंत्र आज भी हमारे चारों ओर फैले हुए हैं। उस पूरे यथार्थ को हम किस नजर से देखते हैं? इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों में दर्ज उस दुर्घटना से हमने अपने वर्तमान और भविष्य के लिए क्या सबक सीखा है?

ये सब कुछ ऐसे जरूरी सवाल हैं, जिनका जवाब ढूंढ़े बगैर समाज और सभ्यता विकास की कोई दिशा तय नहीं कर सकती। उस दुर्घटना के बारे में अब तक हुए सभी अध्ययन इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यूनियन कार्बाइड का जहर अभी तक खत्म नहीं हुआ है, बल्कि वह लगातार बहुत तेजी के साथ फैल रहा है। शहर के विभिन्न इलाकों में मिट्टी और पानी उस जहर से प्रदूषित हैं और लोग अपने अस्तित्व के लिए उसी मिट्टी और पानी पर निर्भर हैं। आज दुर्घटना के पच्चीस साल बाद भी हम भोपालवासियों को यूनियन कार्बाइड के जहर से मुक्त साफ पानी और मिट्टी मुहैया नहीं करा पाए हैं। कुछ खास इलाकों और वर्गो तक साफ पानी पहुंच रहा है, लेकिन व्यापक समाज तक उसकी पहुंच नहीं है। सबसे पहले तो ऐसी दुर्घटनाओं को होने से रोकने के लिए सरकार और कंपनी के पास कोई समुचित प्रबंधन नहीं था। और एक बार जब वह दुर्घटना हो गई तो उसके बाद भी उसकी रोकथाम, उसके नतीजों के खतरनाक असर को कम करने के बारे में न सोचा गया और न ही ईमानदारी से काम किया गया। यह विश्लेषण और भी कई सवाल खड़े करता है।

दरअसल आज विकास के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है, वह हमारी हवा और मिट्टी में जहर घोलने का काम ही कर रहा है। फैक्ट्रियां कच्चे उत्पाद और ऊर्जा का इस्तेमाल करती हैं और जहरीला अपशिष्ट बाहर फेंकती हैं। न हमारी सरकार के पास और न ही कंपनियों के पास इतना धन और संसाधन है कि वे इस जहरीले उत्सर्जन का इस तरह से प्रबंधन करें कि वह जिंदगियों के लिए खतरनाक न हो। यूनियन कार्बाइड ने एक दिन में हजारों लाशों का ढेर लगा दिया था, लेकिन आज हवा और पानी में धीरे-धीरे फैल रहे जहर से लोग असंख्य बीमारियों के शिकार हो रहे हैं और धीमी गति से मर रहे हैं।

भोपाल गैस त्रासदी के पच्चीस साल बाद आज उस घटना से यही पाठ सीखने की जरूरत है। और यह सीख साल में एक बार नहीं, बल्कि हर दिन सीखनी है। हर दिन नया कदम उठाना है। हमें ऐसा विकास नहीं चाहिए, जिसे हम संभाल न सकें। इस देश और राज्य की सरकार को चाहिए कि वे इस यथार्थ को नकारें नहीं। उससे मुंह नहीं चुराएं और जितनी जल्दी संभव हो, भोपाल की मिट्टी और पानी को कीटनाशक मुक्त करने का प्रयास करें। इसके लिए केंद्र सरकार पर भी दबाव डालें।
जापान के मीना-माटा में मरकरी का जहर फैला था। लेकिन वे दुनिया के अमीर देश थे। उन्होंने खूब सारा पैसा लगाया और पूरी तरह नहीं तो भी काफी हद तक उन दुर्घटनाओं के प्रभाव को दूर करने में सफल रहे। लेकिन सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि उन देशों ने अपना विकास तो किया, लेकिन बाकी दुनिया को तबाह कर दिया। पूरी दुनिया का धन और संसाधन लूटकर वे अपने यहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रहे हैं, लेकिन उनके विकास की हवा में जो जहर बहकर आ रहा है, वह तीसरी दुनिया के देशों को तबाह कर रहा है।

विकास का यही समीकरण हमारे अपने देश और समाज में भी लागू होता है। आज जो विकास हो रहा है, उसमें समाज का हर व्यक्ति हिस्सेदार नहीं है। वह सिर्फ थोड़े से लोगों के हितों और सुरक्षा के बारे में सोचता है। पूरी दुनिया के सामने आज जो सबसे बड़ी समस्या मुंह बाए खड़ी है, वह है जलवायु परिवर्तन। शायद हमें इस बात का एहसास नहीं है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हम बहुत भयावह दुनिया बना रहे हैं। हम जंगल काट रहे हैं, इमारतें खड़ी कर रहे हैं, सड़कों को हमने गाड़ियों से पाट दिया है और इस सबको नाम दिया है - विकास। यह विकास विनाश की सीढ़ी है। अगर कल हमारे पास पीने के लिए साफ पानी और सांस लेने के लिए हवा ही नहीं होगी तो ऐसे विकास का हम क्या करेंगे? यह विकास जिनके लिए हो रहा है, उन्हीं की जिंदगियों को बचा सकने में सक्षम नहीं है। विकास उर्फ विनाश के एक नहीं, बल्कि असंख्य नतीजे हमारे सामने हैं। धरती पर जल संकट तेजी से बढ़ रहा है। अव्वल तो लोगों तक पर्याप्त मात्रा में पानी पहुंचता ही नहीं है और जो पहुंचता भी है, उसकी निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं होती।

उस पानी को किस तरह रिसाइकिल कर उसका पुन: इस्तेमाल किया जा सके, यह हमारे लिए कोई परेशान करनेवाला सवाल नहीं है। क्या इतनी वजहें पर्याप्त नहीं हैं कि हमें इस विकास के बारे में फिर से सोचना चाहिए? हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ये तो सोचना होगा कि इस विकास की मंजिल क्या है? आखिरकार यह हमें कहां लेकर जा रहा है? जिस विकास का नतीजा यूनियन कार्बाइड और ऐसी ढेरों धीमी गति से घट रही दुर्घटनाओं के रूप में हमारे सामने आ रहा हो, उस विकास की हमें कोई जरूरत नहीं है।

सरकार को यूनियन कार्बाइड के खिलाफ भी सख्त कदम उठाना चाहिए। 1978 में हुए समझौते काफी नहीं हैं। आज भी वहां जहर मौजूद है और सरकार को चाहिए कि वह कंपनी के खिलाफ कड़े कदम उठाए। तमाम औद्योगिकीकरण के बावजूद भोपाल में आज भी थोड़ी हरियाली बाकी है। अत: इससे पहले कि भोपाल दिल्ली हो जाए और फिर दिल्ली को थोड़ा बेहतर बनाने की कवायद हो, हमें भोपाल को दिल्ली बनने से रोकना चाहिए। सार्वजनिक यातायात की बढ़िया व्यवस्था करनी चाहिए ताकि लोग निजी गाड़ियों का इस्तेमाल न करें। पूरे शहर में साइकिल चलाने वालों के लिए अलग से ट्रैक बनाने चाहिए और साइकिल को प्रोत्साहित करना चाहिए। हम ऐसे आधुनिक शहरों का निर्माण करें, जो विनाश नहीं, सचमुच विकास की ओर अग्रसर हों, जहां समानता हो, समाज का हर व्यक्ति विकास में भागीदार हो, सभी को मनुष्य समझा जाए और सभी को समानता का दर्जा मिले। जो समाज अपने सभी मनुष्यों को साथ लेकर नहीं चलता, वह कभी आधुनिकता और उन्नति के पायदानों पर आगे नहीं बढ़ सकता।

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