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भेड़ाघाट

Friday, June 4, 2010

गोल्फ कोर्स:कौन है योजना का मास्टर माइंड?



भूमाफियाओं, बिल्डरों और अधिकारियों की सांठगांठ के लिए बदनाम हो चुके इंदौर में कोई भी योजना और परियोजना ऐसी नहीं है जिसके ऊपर दाग न लगा हो। शायद यही कारण है कि यहां जब भी कोई योजना आकार लेती है उसमें भ्रष्टाचार की बू आने लगती है। ताजा मामला ग्रीन बेल्ट की जमीन पर गोल्फ कोर्स के निर्माण का है,जिसने इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी के वर्तमान अध्यक्ष और संभागायुक्त को वहां के नेताओं और किसानों की आंख की किरकिरी बना दिया है। हालांकि ग्रीन बेल्ट की जमीन पर गोल्फ कोर्स के निर्माण की योजना का मास्टर माइंड कौन है यह तो स्थानीय नेता भलीभांति जानते हैं लेकिन उनके विरोध से तो एक बात स्पष्ट है कि आईडीए की यह महत्वाकांक्षी योजना कभी साकार नहीं हो सकेगी। अब सवाल यह उठता है कि आईडीए को इस तरह की विवादास्पद योजना बनाने की कैसे सूझी?
जब राज्य सरकार ने भोपाल विकास प्राधिकरण को छोड़कर प्रदेश के सभी विकास प्राधिकरणों को भंग कर दिया तब इनका कार्यभार संभागायुक्तों पर आ गया। इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी का कार्यभार संभागायुक्त के हाथों में जाने के बाद बोर्ड की पहली बैठक में इंदौर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए गोल्फ कोर्स की इस योजना को तैयार किया गया। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पानी से लबालब चार गांवों की हजारों एकड़ जमीन को भू-माफिया के हाथ में सौंपने के लिए यह योजना बनाई गई है। इंदौर के मास्टर प्लान में ये जमीन ग्रीन बेल्ट की बताई गई है जिसे ये कहकर 'संभालनेÓ की कोशिश की जा रही है कि यदि 'देखरेखÓ नहीं की गई तो वहां अतिक्रमण हो जाएगा।
आईडीए बोर्ड ने फैसला लिया है कि कैलोद करताल, पीपल्याराव, आशापुरा और बिलावली गांव की 914 हेक्टेयर (2258 एकड़) ग्रीन बेल्ट की जमीन पर मास्टर प्लान में स्वीकार्य 13 गतिविधियों के गोल्फ कोर्स, हॉर्स राइडिंग स्कूल, वाटर एंड एम्यूजमेंट पार्क, क्लब रिसॉर्ट्स, साइंस सेंटर, कन्वेंशन सेंटर, द्ब्रलोरीकल्चर, नर्सरी, रेस्टोरेंट, नैचरोपैथी सेंटर, आर्ट गैलरी, स्विमिंग पूल और चिडिय़ाघर का संचालन किया जाए। इसके लिए राज्य शासन के डायरेक्टोरेट आफ इंस्टिट्यूशनल फाइनेंस से प्रस्ताव तैयार करवाया जाएगा। उसके बाद शासन द्वारा तयशुदा कंसल्टेंट्स में से किसी एक से संपूर्ण प्रस्ताव तैयार करवाकर निजी निवेश के लिए टेंडर जारी किए जाएंगे। इस तरह 914 एकड़ ग्रीन बेल्ट की जमीन को निजी भागीदारी से बचाया जाएगा। यहीं सैद्धांतिक स्वीकृति दी गई है कि योजना को आकर्षक बनाने के लिए ये प्रस्ताव भी रखा जाएगा कि ग्रीन बेल्ट की कुल जमीन के 5 फीसदी हिस्से पर निर्माण की अनुमति है, लिहाजा इस पर घर या फार्म हाउस भी बनाने की अनुमति दी जाए। बड़ा सवाल है कि 518 करोड़ रु. का निवेश करके ऐसी कौन सी योजना है जिसमें 914 हेक्टेयर जमीन के मात्र 5 फीसदी हिस्से पर निर्माण करके 1 फीसदी की दर का मासिक फायदा लिया जा सकता है। मास्टर प्लान में स्वीकार्य 13 में से एक भी गतिविधि ऐसी नहीं है कि उससे मासिक 5. 20 करोड़ रु. की आमदनी हो सके, सिवाय वहां घर बनाने के। असल खेल भी इसी प्रस्ताव में है। ये योजना और कुछ नहीं, बल्कि तालाब के आसपास की अति उपजाऊ और पानी से लबरेज जमीन को किसानों के हाथों से छीनकर चंद रईसों के हाथ में सौंपने की साजिश है। इंदौर में जमीन के कारोबारियों के मुताबिक जमीनों के सबसे ज्यादा भाव खंडवा रोड और इससे लगे इलाकों में ही हैं। इसका कारण साफ है। यहां लिंबोदी, बड़ा बिलावली और छोटा बिलावली जैसे तालाब हैं जो पूरे इलाके में भूमिगत जलस्तर बनाए रखते हैं। लेकिन इसी इलाके में सबसे घना ग्रीन बेल्ट भी है जो जमीन के कारोबारियों की आंख की किरकिरी बना हुआ है। अब इसी ग्रीन बेल्ट को सरकारी प्रक्रिया से हड़पने का प्रस्ताव तैयार करवाया गया है।
मास्टर प्लान के मुताबिक ग्रीन बेल्ट के लिए 4446 एकड़ जमीन आरक्षित है। इंदौर विकास प्राधिकरण ने इसमें से लगभग 1854 एकड़ जमीन पर रीजनल पार्क प्रोजेक्ट की योजना बनाई है। जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह बात कई बार कह चुके हैं कि किसानों की जमीन तभी अधिग्रहित की जाएगी जब बहुत ही आवश्यक हो अन्यथा किसानों की जमीन नहीं खरीदी जाएगी। इस पूरे प्रोजेक्ट में केवल 324 एकड़ सरकारी जमीन का हिस्सा रहेगा। इसमें से भी 50 एकड़ जमीन पर फिलहाल अतिक्रमण कर लिया गया है। 1500 एकड़ निजी मालिकाना हक की है और 90 एकड़ पर फिलहाल बसाहट है। यानी इन लोगों को उजाड़कर ही यह प्रोजेक्ट लाया जा सकता है। यदि आईडीए किसानों से मनमाने दाम पर जमीन छीन लेता है तो उनके साथ नाइंसाफी है। वहीं कुछ भूमाफियाओं के दबाव में मार्केट दर से मुआवजा देता है तो सरकारी खजाने पर डाका है। रीजनल पार्क का एक बड़ा हिस्सा बायपास के दूसरी ओर भी लगता है मगर आईडीए की जो योजना है वह सिर्फ बायपास के एक ही ओर है। सूत्रों के मुताबिक गोल्फ कोर्स योजना का जो खाका तैयार किया गया है उसमें बायपास के दूसरी ओर की जमीन को इस परियोजना से दूर ही कर दिया गया है। आईडीए की यह बहुप्रशिक्षित योजना परवान चढ़ती इससे पहले ही इसका चहुं ओर विरोध शुरू हो गया। प्रदेश युवक कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी सहित इंदौर के लगभग सभी विधायकों ने इस योजना का विरोध शुरू कर दिया। वहीं इस क्षेत्र के विधायक जीतू जिराती भी विधानसभा में इसका विरोध दर्ज करा चुके हैं। श्री जीराती ने बताया कि हमारा विरोध योजना को लेकर नहीं है बल्कि योजना के स्थान को लेकर है।
उन्होंने कहा कि जिस क्षेत्र पर यह योजना बनाने की बात की जा रही है वह इंदौर की सबसे अधिक उपजाऊ भूमि है। इस भूमि को संरक्षित करने और ग्रीन बेल्ट को बरकरार रखने के नाम पर आईडीए यहां गोल्फ कोर्स बनाना चाह रहा था। लेकिन इससे यहां के हजारों परिवार बेदखल होते और उन्हें इतनी उपजाऊ भूमि और कहीं नहीं मिल सकती थी। अगर आईडीए गोल्फ कोर्स बनाना चाहता है तो इंदौर के पास ऐसी बहुत सी जमीन है जो पथरीली है और वहां खेती भी नहीं होती है। आईडीए उस जमीन का विकास कर गोल्फ कोर्स बना सकता है। जहां तक ग्रीन बेल्ट का सवाल है तो इस जमीन पर खेती होने के कारण वैसे भी हरियाली छाई रहती है। उन्होंने बताया कि आईडीए को मास्टर प्लान के तहत जिन जमीन को ग्रीन बेल्ट के तहत दर्शाया गया हैै। उनमें से उन जमीनों को हरियाली के लिए अधिग्रहित करना चाहिए जिस पर धड़ल्ले से अवैध निर्माण हो रहे हैं।
वहीं जब इस संबंध में शहर भाजपा अध्यक्ष एवं विधायक सुदर्शन गुप्ता ने बताया कि एक ओर जहां मुख्यमंत्री खेती को बढ़ावा देने और किसानों को व्यवसाय में लाभ पहुंचाने की बात कह रहे हैं, वहां यह योजना किसानों के पेट पर लात मारने जैसी है। इस मुद्दे को विधानसभा में मैंने और जीतू जिराती ने रखा है। जिसे मुख्यमंत्री ने स्वीकार भी किया है। उन्होंने कहा कि इंदौर में 10-12 गोल्फ खिलाड़ी हैं उनके लिए हजारों किसानों के पेट पर लात मारना कहां तक उचित है। अगर आईडीए को गोल्फ कोर्स बनाना है तो सरकारी जमीन पर बनाए किसानों की जमीन पर ही क्यों? कांग्रेस प्रवक्ता और इंदौर के रहवासी केके मिश्रा ने बताया कि ये सारा खेल भूमाफियाओं का है इन्होंने ही इसे अंजाम दिया था और इन्हीं भूमाफियाओं ने इस योजना को कुछ दिनों के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक खास अधिकारी वर्ग का खेल है जो इंदौर में पदस्थ रहे हैं।
अंतत: 16 मई को शहर में हरियाली जैसे संवेदनशील मुद्दे और इससे जुड़ी योजना पर जमकर बहस हुई। संभागायुक्त बसंत प्रताप सिंह रीजनल पार्क योजना लेकर एसजीएसआईटीएस पहुंचे थे। उन्हें अपनी बात कहने का मंच वरिष्ठ नागरिक मंच ने उपलब्ध करवाया था। इस अवसर पर भू-माफियाओं के साथ मिलीभगत के कथित आरोपों पर संभागायुक्त काफी आहत नजर आए और बहुत सारा समय उन्होंने इस पर सफाई देने में लगाया। किसानों के विरोध के बाद उन्होंने माना यह प्रोजेक्ट संभव नहीं है। लगभग 25 साल के लंबे प्रशासनिक कैरियर का हवाला देकर बात शुरू की जो थोड़ी देर बाद शिकायती लहजे में तब्दील हो गई। उन्होंने दलील दी कि योजना उन्होंने एसी कमरे में बैठकर नहीं बनाई है, न ही मैं भू-माफियाओं के लिए काम कर रहा हूं। उन्होंने कहा उन्हीं किसानों की वही जमीन लेंगे जो किसान दे देंगे। किसान खुद ही इसमें भागीदार बन जाए तो सबसे बेहतर होगा कि किसान यदि खेती करता है तो हमें ग्रीन बेल्ट बचाने के लिए जमीन लेने की जरूरत ही नहीं है। योजना के स्वरूप को देखे तो पूरे प्रोजेक्ट में न सिर्फ ग्रामीणों को नुकसान होगा, बल्कि कस्तूरबाग्राम ट्रस्ट जैसी संस्थाओं को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। गांधीवादी विचारों को पूरे देश में फैलाने का काम कर रहे इस ट्रस्ट की 100 एकड़ से ज्यादा जमीन भी प्रोजेक्ट में शामिल कर ली गई है। इसके कारण यहां रहकर गांधीवादी विचारों के साथ जीवनयापन कर रही सैकड़ों महिलाओं पर भी असर पड़ेगा।
हालांकि आईडीए की इस योजना को स्थानीय नेताओं के विरोध के बाद ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, लेकिन आग अभी भी सुलग रही है। लोगों को यह भय सता रहा है कि भविष्य में भी अगर यह योजना लागू होती है तो फिर क्या होगा?

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