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भेड़ाघाट

Saturday, February 27, 2010

बाघों के बाद निशाने पर वन

वनों के संवर्धान और संरक्षण का उत्तरदायित्व राज्यों में वन विभाग के अमलों का होना है। वनों के रखरखाव के लिए तैनात भारी भरकम शासकीय कर्मियों की फौज होते हुए भी जिस पैमाने पर वनों का विकास होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। उल्टे, यह हो रहा है कि जंगलों की कटाई और वनोपजों की निरंतर हो रही चोरियों के कारण वनों के क्षेत्रफल घटते चले जा रहे हैं। रसूखदारों द्वारा वनसंपदाओं के अवैधा व्यापार पर न तो कठोरता से नियंत्रण हो पा रहा है और न ही शासकीय स्तर पर क्षतिपूर्ति वनरोपण की दिशा में गंभीरता परिलक्षित हो रही है। परिणाम स्वरूप वनों का सत्यानाश होता जा रहा है।
वन्य प्राणियों को निशाना बनाने के बाद वन माफिया अब जंगल की अवैध कटाई में लग गया है। वनों की सुरक्षा में तैनात वनकर्मी भी उसके टारगेट पर हैं। वनकर्मियों पर हमले की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। बीते अगस्त माह में आठ अलग-अलग स्थानों पर वनकर्मियों पर जानलेवा हमले किए गए हैं। इन घटनाओं ने पूरे वन अमले को हिलाकर रख दिया है। अपने फायदे के लिए माफिया अब भोले-भाले आदिवासियों का इस्तेमाल भी कर रहा है। वन कर्मियों के हत्थे चढने पर वे आदिवासियों की ओर से उनके खिलाफ ही अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करा देते हैं। छोटे वन कर्मियों को अपने ही अफसरों से अपेक्षित मदद न मिलने के कारण उनका मनोबल भी गिर रहा है। वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि पुलिस और जिला प्रशासन के समन्वित प्रयास और वन विभाग के अमले को आधुनिक हथियारों से लेस किए बिना माफिया पर काबू पाना कठिन है। वैसे तो जिला स्तर पर टास्क फोर्स बने हुए हैं, लेकिन महीनों उनकी बैठकें ही नहीं हो पाती हैं। इसके विपरीत वन माफिया के खिलाफ कड़ी कार्रवाई न होने से उनके हौसले बुलंद हैं।
हरेक रेंज में एक वाहन हो। रेंजर्स को रिवॉल्वर दी जाए। 1620 डिप्टी रेंजर्स को मोटर साइकल दी जाए। वन अपराध की सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए हरेक वन मंडल का कम्यूनिकेशन प्लान तैयार हो। वनोपज का अवैध परिवहन रोकने और निरीक्षण व्यवस्था दुरुस्त करने 100 अंतरराज्यीय बेरियर को मजबूत बनाया जाए। जिला प्रशासन में बेहतर समन्वय हो। मुखबिर व्यवस्था को मजबूत बनाने अलग से बजट का प्रावधान किया जाए। वाहनों के रखरखाव के लिए पर्याप्त बजट देय हो। 400 चिह्न्ति वन क्षेत्रों की 71 वन चौकियों का शीघ्र निर्माण किया जाए।100 अतिरिक्त वाहन उपलब्ध कराए जाएं। वनों के विनाश के कारण जहां एक तरफ पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ वनों से प्राप्त होने वाले राजस्व का भी घाटा होता जा रहा है। बाजारवाद और भौतिकवाद के इस दौर में वनसंपदाओं के अवैधा दोहन को वनकर्मियों के लाख प्रयत्नों के बावजूद भी रोकयात्रा आसान नहीं है। इसके पीछे वनों के रखरखाव के लिए तैनात वनकर्मियों के पास समुचित सुविधाएं और साधानों की कमी तो है ही, साथ ही उनमें समुचित प्रशिक्षण और तकनीकी ज्ञान का अभाव भी है। केन्द्र शासन ने वनों के बुरी तरह से हो रहे विनाश की ओर गंभीरतापूर्वक तवज्जों दी है और इस स्थिति से निपटने के लिए राज्यों के वनविद्यालयों के उन्नयन का निर्णय लिया है। इस कार्य के लिए राज्यों को अनुदान देने के लिए 206 करोड़ रु. का प्रावधान किया है। केंद्रीय वन मंत्रालय ने दस राज्यों के वन विद्यालयों के उन्नयन करने के लिए राज्यों को प्रोजेक्ट तैयार करने के निर्देश दिए हैं। योजना के तहत इन विद्यालयों में वनकर्मियों को नई तकनीक से प्रशिक्षण देने के साथ ही उन्हें आधुनिक उपकरण मुहैया कराये जायेंगे। जिन दस राज्यों से वन विद्यालयों को कहा गया है, वे हैं-मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, असम, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, सिक्किम, पश्चिम बंगाल और केरल। इन राज्यों के वन प्रशिक्षण केंन्द्रों को भारत शासन से अनुदान स्वीकृत किया जायेगा।
केंद्रीय वन मंत्रालय से प्राप्त निर्देशों के आधार पर राज्यों ने तत्काल कार्यवाही शुरू कर दी है क्योंकि निर्देशों में यह स्पष्ट रूप से बता दिया गया है कि जिन राज्यों से जल्द प्रोजेक्ट प्राप्त नहीं होंगे उन्हें इस योजना के तहत अनुदान नहीं मिल सकेगा, उनका नाम इस सूची से हटा दिया जायगा। अनेक राज्यों से जानकारियां मिल रही हैं कि वहां वन विद्यालयों के प्रभारियों की इस मुद्देश् पर बैठकें हो चुकी हैं और बैठकों में विभिन्न मुद्दों पर हुए विचार के आधार पर राज्य स्तर पर परियोजना को अंतिम स्वरूप दिया जाने लगा है।
वन विद्यालयों के उन्नयन के लिए केंन्द्र ने 206 करोड़ रुपये लागत की जो योजना तैयार की है, उसके लिए विदेशी सहायता प्राप्त की जा रही है। वन मंत्रालय के अनुसार इस काम के लिए जापान इंटरनेशनल कारपोरेशन एजेंसी से सहयोग लिया जा रहा है। जापान और भारत के बीच इसके लिए करारनामा हो चुका है। करार के मुताबिक जापान से मिलने वाली इस राशि की अदायगी भारत द्वारा चालीस वर्षों में की जायगी।
उम्मीद की जा रहा है कि वनों में तैनात वनकर्मियों के बेहतर प्रशिक्षण और उनके तकनीकी ज्ञान को बढ़ाने के उद्देश्य से लागू की जा इस योजना से वनकर्मियों की कार्यक्षमता बढ़ेगी और वे आधुनिक उपकरणों से साधान-संपन्न होकर वनों के संरक्षण के दायित्व निर्वहन में कामयाब होंगे।

सरकार की सामाजिक वानिकी योजना और वृक्षारोपण के लिए चल रही विभिन्न योजनाओं में सामाजिक सहयोग की अपेक्षा तो रहती है किंतु समाज के कतिपय लोगों में लोभ, लालच और धान कमाने की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण योजनाएं भी बेहतर परिणाम दे नहीं पा रही है। वन विद्यालयों में समुचित प्रशिक्षण मिलने से वन अमले में दक्षता, योग्यता, कर्मठता के साथ ही उनमें कर्तव्य परायणता की भावना का भी विकास हो सकेगा। प्रशिक्षित अमलों में वनों के विकास में जनभागीदारी के लिए समाज को प्रेरित और प्रोत्साहित करने की सामर्थ्य भी बढ़ सकेगी।

अक्सर यह होता है कि राज्यों और केंद्र में भिन्न-भिन्न राजनैतिक दलों की सत्ता होने के कारण केंद्र और राज्यों के बीच श्रेय लूटने की प्रतिस्पधराएं शुरू हो जाती हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि जनहित की अनेक योजनाएं विवादों में उलझकर ही रह जाती हैं। वन विद्यालयों के उन्नयन के लिए जिन दस राज्यों का चयन केन्द्र शासन ने किया है उनमें अधिकांश राज्यों में अलग-अलग राजनैतिक दलों की सरकारें हैं। ये सरकारें वन विकास के नाम पर अपना अपना श्रेय लूटने का दाव खेलेंगी और केन्द्र से मिलने वाली अनुदान राशियों के आवंटन पर भेदभाव और पक्षपात का आरोप लगाकर अपने प्रदेश की जनता के बीच केंद्र की इस अभिनव योजना के बारे में भ्रम फैलाने में कसर नहीं छोड़ेगी। केंद्र और राज्यों के बीच ऐसे अनेकों उदाहरण देखे जा सकते हैं जिनमें राज्यों ने केंद्रीय योजनाओं का धान तो खूब बटोरा है किंतु उसका दुरूपयोग भी किया और केंद्र पर भेदभाव बरतने का आरोप लगाकर आम जनता के बीच केंद्रीय राशि को राज्य की राशि बताकर श्रेय भी लूटा है। आशा है वनों के संरक्षण और संवर्धान की यह योजना राजनीति का शिकार होने से बची होगी।

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