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भेड़ाघाट

Saturday, March 6, 2010

अनुदान के लिए चल रहे मदरसे

मध्यप्रदेश में 8 हजार के करीब मदरसे संचालित हैं

भले ही मदरसों को कुछ सियासी लोग संदेह की नजर से देखें और मदरसों को लेकर सवाल खड़े किए जायें, लेकिन मदरसों की तादाद लगातार बढ़ रही है। वजह भी साफ है मदरसों को संचालित करने वाले लोगों को अनुदान के रूप में मिलने वाली राशि ने भोपाल में ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश में मदरसों की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा कर दिया है।
दीनी तालीम के साथ आधुनिक शिक्षा देने की मंशा से 1998 में गठित किये गये मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड में मदरसों के रजिस्ट्रेशन की तादाद लगातार बढ़ रही है। यहां दर्ज मदरसों की संख्या गठन के बाद से दस गुना बढ़ गई है। वर्तमान में प्रदेश में 8 हजार के करीब मदरसे संचालित किये जा रहे हैं। जिनमें मदरसों में पंजीकृत मदरसों की संख्या तकरीबन 5 हजार है। इसमें से मान्यता प्राप्त मदरसे कुल 3962 है। दबी जुबान में मदरसा बोर्ड भी यह स्वीकारता है कि मदरसों की बढ़ती तादाद की वजह अनुदान है।
भले ही मदरसों पर सियासी पार्टियां तोहमत लगाकर कठघरे में खड़ा करें, लेकिन मदरसों की तादाद लगातार बढ़ रही है। यही वजह है कि मदरसों में पढऩे वाले बच्चों को आधुनिक शिक्षा से जोडऩे के लिए सरकार भी अब गंभीर हो गई है। मदरसों को आर्थिक सहायता देने के लिए केन्द्र ने कई नई योजनाएं शुरू की और उससे मदरसों को जोडऩे का प्रयास किया है। एसपीक्यूईएम नामक इस योजना से जुडऩे के साथ मदरसों में आधुनिक शिक्षा की गुणवत्ता के साथ मदरसों के बच्चे शिक्षा की मुख्य धारा से जुड़ जाएंगे। इस योजना के तहत विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, भाषा, कम्प्यूटर अनुप्रयोग तथा विज्ञान विषयों के शिक्षण हेतु शिक्षकों के लिए पूर्णकालिक स्नातक शिक्षक को छह हजार रुपए और स्नातकोत्तर या बीएड शिक्षक को 12 हजार रुपए प्रतिमाह की दर से वेतन दिया जाएगा। शिक्षकों की नियुक्ति का राज्य सरकार/मदरसा बोर्ड को अधिकार रहेगा।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत सहायता के लिए आवेदन करने के लिए वे मदरसे पात्र होंगे, जो कम से कम तीन वर्ष से अस्तित्व में है तथा केन्द्र अथवा राज्य सरकार के नियमों अथवा मदरसा बोर्ड अथवा वक्फ बोर्ड अथवा राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयीन शिक्षा के अंतर्गत पंजीकृत हैं।
पुस्तकालय को सुदृढ़ बनाने और प्राथमिक, मिडिल, माध्यमिक तथा वरिष्ठ माध्यमिक स्तरों पर अध्यापन सामग्री के लिए प्रत्येक मदरसे को 50 हजार रुपए की सहायता के साथ पांच हजार का वार्षिक अनुदान दिया जाएगा। वहीं विज्ञान व गणित किटों के लिए 15 सौ और विज्ञान एवं कम्प्यूटर प्रयोगशालाओं के लिए प्रत्येक को एक लाख की सहायता के साथ रखरखाव के लिए पांच हजार का वार्षिक अनुदान भी दिया जाएगा।
लेेेकिन मप्र मदरसा बोर्ड के एक फरमान ने मदरसा (स्टडी सेंटर) संचालकों को परेशानी में डाल दिया है। करीब 9 साल से संचालित स्टडी सेंटरों के संचालकों पर नवीनीकरण शुल्क थोप दिया गया है। स्टडी सेंटर की स्थापना से अब तक का बकाया शुल्क भी एकमुश्त मांगा जा रहा है।
मदरसा बोर्ड से संबद्ध परीक्षार्थियों के आवेदन मदरसा बोर्ड में जमा कराने के मकसद से वर्ष 2000 में स्टडी सेंटरों की स्थापना की गई थी। राजधानी में इस तरह के 50 और प्रदेशभर में 200 से ज्यादा सेंटर संचालित हैं। बोर्ड हर वर्ष मान्यता का नवीनीकरण करता है। इसका शुल्क नहीं लिया जा रहा था। सूत्रों के मुताबिक बोर्ड ने 12 फरवरी 09 को स्टडी सेंटर संचालकों को भेजे पत्र में मान्यता नवीनीकरण के बदले 500 रुपए शुल्क जमा करने के निर्देश जारी किए। इसके बाद 30 अप्रैल को पुन: इस आदेश को दोहराया गया। इसी क्रम में 23 जून को जारी किए गए पत्र में मदरसा बोर्ड ने इसमें संशोधन करते हुए नवीनीकरण शुल्क दोगुना कर दिया है। साथ ही स्टडी सेंटरों को स्थापना से अब तक का शुल्क जमा कराने की हिदायत भी दी गई है।
मप्र मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मोहम्मद गनी अंसारी इस संबंध में कहते है कि स्टडी सेंटर संचालक विद्यार्थियों से कमाई कर रहे हैं फायदे में चल रहे इन मदरसों से नवीनीकरण शुल्क मांगा जाना कहां गलत है? इस आदेश के विरूद्घ मदरसा संचालक भी लामबंद हो गए है। आधुनिक मदरसा कल्याण संघ के सचिव मोहम्मद शोएब कुरैशी का कहना है कि किसी नए नियम को वर्तमान तारीख से लागू किया जाता है, न कि पिछले कार्यकाल से। इस फरमान के खिलाफ मदरसा संचालक अदालत जाएंगे।
मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत मदरसों के बच्चों को आधुनिक शिक्षा से जोडऩे के लिए मदरसों के बच्चों को सर्व शिक्षा अभियान के तहत उपलब्ध कराई जाने वाली पाठ्य पुस्तकें समय पर उपलब्ध नहीं करा पाए हैं। नए शिक्षा सत्र को शुरू हुए एक माह होने को आया लेकिन हालत यह है कि अभी तक किताबें मदरसों में नहीं पहुंची हैं। जिसकी वजह से सरकार की मदरसों को मुख्य धारा से जोडऩे की योजना बेेमानी साबित हो रही है।
बताया जाता है कि राजधानी के तकरीबन एक हजार से 12 सौ पंजीकृत मदरसों में से केवल 400 मदरसों को ही किताबें वितरित की जाती हैं, लेकिन इन मदरसों में भी किताबें समय पर नहीं पहुंची हैं। वहीं वर्षों से संचालित किए जा रहे तकरीबन 800 मदरसे तो सर्वशिक्षा अभियान से ही अछूते हैं। न तो इनमें तालीम पा रहे बच्चों को शासन की शिक्षा के क्षेत्र में चलाई जा रही योजनाओं का कोई लाभ मिल रहा है और न ही इन बच्चों को मध्यान्ह भोजन ही नसीब हो रहा है और न ही साईकिल। जिसके कारण मदरसों में शिक्षा के आधुनिकीकरण का काम पिछडऩे से इंकार नहीं किया जा सकता है।
अशोकागार्डन स्थित मदरसा सुल्तानिया के संचालक सरवर सुल्तान बताते है कि मदरसे में तकरीबन 80 बच्चे तालीम हासिल करते हैं, लेकिन इसके बावजूद यहां तुलवाओं को अभी तक किताबें उपलब्ध नहीं कराई गई है, जिससे बच्चों को परेशानी हो रही है। मदरसा तालिबीन संजय नगर की संचालिका शीबा सुल्तान प्रशानिक अधिकारियों को कटघरे में खड़ा करते हुए कहती है कि अभी तक पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध नहीं कराई गई हैं, जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है और बच्चों की पढ़ाई पिछड़ रही है। लेकिन मप्र मदरसा बोर्ड के सचिव मो. हनीफ कहते हैं कि मदरसा बोर्ड के माध्यम से अब सर्व शिक्षा अभियान के तहत पाठ्य पुस्तक वितरण नहीं की जाती। जिला परियोजना समन्वयक हरभजन सिंह तोमर की माने तो मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त जिले के 441 मदरसों में से मात्र 120 मदरसे ही शेष रह गए हैं जो अब तक किताबें लेने ही नहीं आए। बहरहाल आपसी खींचतान और विरोधाभासी बयानों के बीच नुकसान बच्चों को उठाना पड़ रहा है। वहंी मदरसों को सर्वशिक्षा अभियान से जोड़ कर बच्र्चो केा शिक्षित करने की शासन की महात्वाकांक्षी योजना पर भी पलीता लगता दिखाई पड़ रहा है। जामिया इस्लामिया अरबिया मस्जिद तरजुमे वाली मदरसे के संचालक मौलाना मोहम्मद अहमद इन सबके लिए शासन की योजनाओं का क्रियांवयन करने वाले अधिकारी और कर्मचारियों को दोषी मानते हुए कहते है कि मदरसों के लिए आई विशेष योजना के तहत दी जा रही सुविधाएं बड़े मदरसों के लिहाज से पहले से नाकाफी तो है ही लेकिन छोटे मदरसों को मिलने वाली सुविधाएं भी उन्हें नही मिल पा रही है। यहां तैनात अधिकारी और कर्मचारी मदरसों को मिलने वाले लाभ से वंचित करने में लगे हैं।

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