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भेड़ाघाट

Saturday, March 6, 2010

मप्र से 'टाइगर स्टेट का 'ताज छिनने का खतरा

प्रदेश में बाघों की कम होती तादाद को लेकर सरकार के कड़े रुख के बीच राजधानी के वन विहार में एक और बाघिन की मौत ने वन्यजीव प्रेमियों की चिंताएं फिर बढ़ा दी हैं। यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि क्या मध्यप्रदेश 'टाइगर स्टेटÓ का अपना 'ताजÓ बरकरार रख पाएगा? हाल ही में पन्ना टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं होने के खुलासे के बाद तो प्रदेश में सर्वाधिक बाघों की मौजूदगी के दावे पर ही सवाल खड़ा हो गया है।
बाघों की मौत को लेकर मध्यप्रदेश सुर्खियों में है, लेकिन वन्यजीवों का इलाज करने वाले दक्ष डॉक्टरों का अकाल है। गिने-चुने डॉक्टर हैं और उन्हें भी वन्यजीवों की शारीरिक संरचनाओं का सामान्य ज्ञान नहीं है। भारी-भरकम वन विभाग की अनगिनत शाखाओं में एक अदद चिकित्सा शाखा तक नहीं है और वाइल्ड लाइफ हेल्थ एंड फोरेंसिक सेंटर मंजूरी के बावजूद कागजों पर है। टाइगर स्टेट कहलाते वक्त दुनिया भर के 10 फीसदी और भारत के 19 फीसदी बाघ मप्र में ही थे। यहां पांच टाइगर रिजर्व हैं, और बाघ कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। पन्ना से इनके गायब होने के खुलासे ने दुनिया भर के वन्यजीव प्रेमियों को चौंकाया।
चार राष्ट्रीय उद्यानों के संचालकों को यहां-वहां कर दिया गया, लेकिन वन्यजीवों के खतरे में पड़े संसार में उनकी बीमारियों की जांच, इलाज और शोध के कोई इंतजाम नहीं हैं। सूत्रों के मुताबिक सिर्फ पांच डॉक्टर हैं, जिन्होंने बीबीएससी के अलावा साल भर की ट्रेनिंग वन्यप्राणी संस्थान देहरादून में ली हुई है। वेटनरी कॉलेज जबलपुर ने डेढ़ साल पहले वन विभाग को वाइल्ड लाइफ हेल्थ एंड फोरेंसिक सेंटर की स्थापना का प्रस्ताव दिया था। वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की अध्यक्षता में जून 2008 में इसे मंजूरी भी दे दी गई, लेकिन साढ़े चार करोड़ रुपए के इस प्रस्ताव पर अब तक कोई कदम नहीं उठे।

इलाज लाइलाज-प्रदेश में वन्यजीवों के शोध की कोई व्यवस्था नहीं है। वन्यजीवों को बेहोश करने का काम जंगलों में फॉरेस्ट गार्डे से लिया जाता है और इलाज करने वाले ही पोस्टपार्टम भी करते हैं। जबकि पैथॉलॉजी, एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, मेडिसिन, सर्जरी, न्यूट्रीशन और माइक्रोबायलॉजी जैसी हर शाखा में पर्याप्त दक्ष चिकित्सा स्टाफ और तकनीकी साधनों से लैस प्रयोगशालाओं की जरूरत है। देश भर में ऐसा कोई केंद्र ही वन्यजीवों के लिए नहीं है। जानकारों का कहना है जंगलों के सिकुडऩे, मानवीय गतिविधियों के बढऩे और आबादी के दबाव के चलते वन्यजीवों में बीमारियां भी बढ़ रही हैं, लेकिन वन विभाग यह मानने को तैयार नहीं है कि उनके घटने का कारण शिकार के अलावा बीमारियां भी हो सकती हैं।

एक डॉक्टर ऐसा भी- शासकीय नियमों के मुताबिक वन्यजीवों के रोग उपचार के लिए बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान से डिप्लोमा जरूरी है, लेकिन इस कसौटी पर विभाग का एक भी डॉक्टर खरा नहीं उतरता। तत्कालीन पशुपालन मंत्री रमाकांत तिवारी विधानसभा में एक सवाल के जवाब में यह स्वीकार भी कर चुके हैं। पशुपालन विभाग के डॉ. अनिल शर्मा अकेले डॉक्टर हैं, जिनके पास यह पात्रता है। वे चार देशों में वन्यजीवों के स्वास्थ्य संबंधी पद्धतियों को देखकर आए हैं। वे पहले वन विभाग में रहे भी रहे हैं। विभाग में अब भी वन्यजीवों की स्वास्थ्य सेवा के लिए नि:शुल्क सेवाओं का प्रस्ताव लंबित है।
पांच साल में 15 मौत : पिछले पांच साल में वन विहार नेशनल पार्क में 15 बाघ, पांच तेंदुआ और तीन सिंह की मौत हो चुकी है। इसमें से सर्वाधिक जानवरों की मौत 12 फरवरी 05 से अब तक हुई है। जबकि वर्ष 2004 में सिर्फ दो जानवरों की मौत हुई है। जिसमें एक सफेद बाघ (रुस्तम) और एक तेंदुआ (मांडवी) की मौत हुई है।
कछुआ बाड़े के नजदीक स्थित डिस्प्ले जोन (बाड़ा) में बाघिन ईरा को डेढ़ माह पहले शिफ्ट किया गया था। इससे पहले इस बाड़े में बाघिन सारा को रखा गया था, जो 15 अप्रैल को सफेद बाघ के जोड़े ललिता और भगत के बदले नंदन कानन नेशनल पार्क, भुवनेश्वर भेजी गई है।
पिछली गणना 2007 के आंकड़ों के अनुसार देश में मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 300 बाघों की मौजूदगी बताई गई थी। इसमें पन्ना के 24 बाघ भी शामिल थे। 290 बाघों के साथ कर्नाटक दूसरे नंबर पर था। गौरतलब है केंद्र सरकार ने पन्ना रिजर्व में बाघों की संख्या जांचने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के पूर्व निदेशक पीके सेन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी भेजी थी।
कमेटी ने पन्ना रिजर्व का दौरा कर जानकारी दी थी कि वहां कान्हा और बांधवगढ़ से लाई गई दो बाघिनों के अलावा एक भी नर बाघ नहीं है। कमेटी के इस खुलासे के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बाघों की स्थिति की गहराई से छानबीन करने के लिए विशेषज्ञों की कमेटी बनाई जिसे तीन महीने में रिपोर्ट देना है। इस बीच मुख्यमंत्री ने कान्हा, पन्ना और बांधवगढ़ के क्षेत्र संचालकों को हटा दिया था। दूसरी ओर मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक डॉ. एचएस पाबला का मानना है कि पन्ना में जरूर बाघ कम हुए हैं लेकिन दूसरे इलाकों में इनकी संख्या स्थिर है। विभिन्न उद्यानों में शावकों की संख्या भी बढ़ रही है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में कुल 3402 से 5140 के बीच बाघ हैं। इनमें भारत में सर्वाधिक 1411 हैं। पिछले कुछ सालों में बाघों की संख्या में सबसे ज्यादा कमी भी भारत में दर्ज हुई है। तत्कालीन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री कमलनाथ के कार्यकाल के दौरान मप्र को 'टाइगर स्टेटÓ का दर्जा मिला था।
प्रदेश के वन विहार, बांधवगढ़, कान्हा किसली और पन्ना टाइगर रिजर्व में एक के बाद एक शेरों की मौत से सरकार अब टाइगर स्टेट का दर्जा बनाए रखना बड़ा मुश्किल मान रही है। कहा जाता है कि अब गुजरात में गिरी के जंगलों से प्रदेश में शेर लाना आसान काम नहीं होगा। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को वन विभाग के अधिकारियों ने विभागीय गतिविधियों की समीक्षा के दौरान वर्तमान स्थिति से अवगत कराया है।

मामला अदालत में : वन विभाग के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को बताया है कि गुजरात के गिर अभ्यारण्य से शेर लाने का मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है और जब तक उस पर फैसला नहीं होता, वहां से शेर लाना संभव नहीं।
मोदी ने बदला रुख : उधर, इस मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्रसिंह मोदी ने भी अपना रुख बदल लिया है। वे मप्र को गिर के अभ्यारण्य से टाइगर देने के इच्छुक नहीं हैं।

मौसम ठीक नहीं टाइगर के लिए: वन विभाग के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को बताया कि गिर अभ्यारण्य से लाए जाने वाले टाइगर के लिए मप्र का मौसम ठीक नहीं है। वन विभाग की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से विश्व स्तरीय जू बनाने और वन्यप्राणियों के संबंध में अन्य जानकारी प्राप्त की। मध्य प्रदेश में वन्यप्राणियों के संरक्षण तथा वन अपराधों पर अंकुश लगाने के नाम पर दो साल में करोड़ों रुपए खर्च कर विदेशी बंदूकें, पीडीए, लक्जरी वाहन तथा मोबाइल आदि खरीदे गए है,लेकिन वन अपराध कम होने होने की वजाए बढ़ रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी वन अपराध रोकने के लिए लगातार निर्देश दे रहे हैं लेकिन न तो वन अपराध और न ही वन्यप्राणियों का शिकार रुक पा रहा है। उधर केंद्र सरकार ने भी मध्य प्रदेश के जंगलों में शिकारियों और तस्कारों को पकडऩे के लिए दस करोड़ की राशि जारी कर दी है। इस राशि से मध्यप्रदेश में गठित टाइगर स्ट्राइक फोर्स को मजबूत बनाया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि केन्द्र के निर्देश पर वन विभाग ने बाघों की सुरक्षा के लिए फोर्स का गठन तो कर लिया था लेकिन राशि और संसाधन न होने के कारण इसकी गतिविधियां सुस्त रही। इस बीच मप्र में लगातार हो रही बाघों की मौत को देखते हुए केंद्र सरकार ने हाल ही में दस करोड़ की राशि दी है। वन अपराधों के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा वन मंत्री राजेन्द्र शुक्ल के गृह जिले भी पीछे नहीं हैं। मुख्यमंत्री का क्षेत्र अवैध कटाई में तीसरे नंबर पर है तो मंत्री का अवैध शिकार के मामले में। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि वनों तथा वन्यप्राणियों के संरक्षण के लिए आधुनिकीकरण के नाम पर की जा रही खरीदी का औचित्य क्या है?

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