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भेड़ाघाट

Saturday, March 6, 2010

बिक गई और बन गई पारो

जिस साल पारो और देवदास वाली फिल्म परदे पर धूम मचा रही थी, उसी साल सीमा की आंखों में दूर देश के सुंदर सपने भर दिए गए। इससे पहले कि सीमा इस सपने का सच जान पाती, उसे पारो बना दिया गया।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में देह व्यापार के आरोप में अपने कुछ अन्य साथियों के साथ पकड़ाने के बाद अगले दिन अदालत से बरी हुई सीमा से हमारी मुलाकात नादरा बस स्टैन्ड पर हुई,जहां वह एक युवक के साथ टे्रन छूट जाने के बाद बस पकडऩे आयी थी। मीडिया से जुड़े होने के कारण वह युवक मुझे जानता था। मुझे देखते ही युवक ने पास आकर नमस्कार किया और अपने आने का कारण भी बयां कर दिया।
मैंने उस युवक से कह कर सीमा से मुलाकात की और अपना परिचय देते हुए जब उससे देह व्यापार के इस घिनौने क्षेत्र में आने का कारण पूछा तो वह फफक पड़ी। वह बोली,मुझे एक ट्रक ड्राइवर लेकर आया था। 500 रुपये उसने मेरे सौतेले बाप को सौंपा और मेवात के इलाके में लाकर किसी के घर छोड़ कर चला गया। वो आदमी मुझसे धंधा करवाना चाहता था। उसने कहा-जा कमा कर ला। मैं यह काम नहीं करना चाहती थी, लेकिन भूख मिटाने के लिए शुरू किया धंधा अब नासूर बन गया है। उसने बताया मेवात के इलाके में ऐसी सैकड़ों पारो हैं। पारो यानी राज्य की सीमा पार से खरीद कर लाई गई वह लड़की, जिसका मनचाहा इस्तेमाल किया जा सकता है। बीवी बनाने से लेकर बच्चा पैदा करने की मशीन या फिर देह व्यापार कराने तक।
उसे लगा कि मैं उसकी व्यथा पर विश्वास नहीं कर रहा हूं,इस लिए अपने पर्स से कुछ फोटों निकाल कर मेरे हाथ पर रखते हुए कहा, आप खुद ही देख लिजिए।
सीमा के साथ आए युवक ने बताया कि दिल्ली से सटे आईटी सिटी गुडग़ांव के पास है मेवात का इलाका। 6,662 बूचडख़ाने वाले आधा हरियाणा और आधा राजस्थान के इस इलाके को गोकशी के लिए जाना जाता है, टकलू क्राइम यानी सोने की ईंट बेचने के धंधे के लिए जाना जाता है और पारो की खरीद फरोख्त के लिए मेव, जाट और अहीर बहुल इस इलाके में 'पारोÓ का खूब चलन है। बेचारगी के साथ दलील दी जाती है कि गरीबों को यहां का कोई धनाढय़ व्यक्ति अपनी लड़की नहीं देता। ऐसे में हमारे पास 'पारोÓ के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
वहां हर कदम पर पारो मिलेगी। कई गांवों में आधी संख्या पारो की है। ये अलग बात है कि लोग अपने घरों में कैद पारो के मुद्दे पर बात करने से बचना चाहते हैं। थोड़ी चालाकी के साथ बात करें या फिर घरवालों को लगे कि बात करने का कोई लाभ मिल सकता है तो लोग थोड़ा-थोड़ा खुलने लगते हैं। तरह-तरह के किस्से आपके सामने आने लगेंगे। मध्य प्रदेश,झारखंड, आंध्र प्रदेश, असम, बंगाल और देश के अलग-अलग हिस्सों से खरीद कर, बहला फुसला कर या जबरन उठा कर लाई गई हर पारो के पास अपनी-अपनी कहानी है लेकिन सबके हिस्से का दुख एक जैसा है, पहाड़ सा।
सीमा ने मुझसे आग्रह किया की कुछ मीडिया कर्मियों के साथ आप वहां का दौरा करें तो उन्हें न्याय मिल सकता है। युवक ने बताया कि मैंने तो पूरे क्षेत्र को देखा है। वहां सलमबा गांव में एक पारो मिली,रुक्सिना। असम की हैं, पिछले सात साल से यही हैं। अपने गांव घर का रास्ता भूल चुकी हैं। किस्मत ने उन्हें एक अधेड़ मर्द अकबर की दूसरी बीबी बना दिया हैं। जब वह हमें मिलीं तो उनकी गोद में एक बच्चा था। बच्चे को गोद में चिपटाए, बेहद डरी सहमी-सी। घरवालो से घिरी हुई, पूछने पर टुकुर-टुकुर मुंह ताकने लगती हैं। साथ में खड़ी एक मेवाती महिला बताती हैं- इसका मायका गरीब है। रोटी के लाले पड़ते हैं, वहां जाकर क्या करेगी? यहां दो वक्त की रोटी तो नसीब हो रही है ना। दो वक्त की रोटी के नाम पर रुक्सिना की जिंदगी कैद में बदल गई, भूख का भूगोल जीवन के सारे पाठों पर भारी पड़ गया। सपने, तस्करी और पारो नूंह कस्बे में चार महीने पहले एक और पारो झारखंड से आई है, नाम है सानिया, उम्र कोई 15 वर्ष, ना वह सामने आई, ना उसके घरवालों ने बात की। पड़ोसियों ने बताया कि गरीबी की वजह से 50 वर्षीय मजलिस के साथ मेवात में किसी ने अपनी बेटी नहीं ब्याही। अंतत: वह किसी स्थानीय एजेंट के साथ झारखंड गया और अपने लिए कम पैसे में एक पारो का इंतजाम कर लाया। मजलिस ने अपने अरमान पूरे किए और सानिया के अरमानों पर उम्र के इस फासले ने हमेशा के लिए पानी फेर दिया।
अनवरी खातून की उम्र है 22 साल, वह मूल रूप से झारखंड के हजारीबाग की रहनेवाली हैं, पिछले साल उन्हें मेवात जिले के घासेड़ा गांव में लाकर एक अधेड़ व्यक्ति के घर में बिठा दिया गया। उन्हें झारखंड से यह झांसा देकर लाया गया कि दूर के रिश्तेदार के यहां मिलने जा रहे है। यहां आते ही अधेड़ व्यक्ति की ब्याहता बना दी गई, जबरन।
डरते-डरते अनवरी बताती हैं, एक आदमी ने मेरे पति से मेरे बदले दस हजार रुपये लिए। ये सिर्फ अनवरी की नहीं उनके जैसी अनेक लड़कियों की कहानी है। युवक तो पूरी तन्मयता से वृतांत सुना रहा था लेकिन मेरी हड्ï्डियों मेें दर्द होने लगा था । अब सीमा की बारी थी। उसने बताया कि साहब अरावली पहाडिय़ों से घिरे पूरे मेवात क्षेत्र में ऐसी अनेक लड़कियां हैं, जो तस्करी करके लाई गई हैं। जहां उन्हें या तो किसी खूंटे में बांध दिया जाता है या फिर नीलाम किया जाता है। कहीं-कहीं घर वाले धंधा करवाते हैं या दर-दर भीख मांगने पर मजबूर कर देते हैं। ऊपर से देखने पर मामला सिर्फ शादी और लड़का पैदा करने जैसा दिखाई देता है लेकिन अंदर-अंदर मौज मस्ती और कई तरह धंधे के साथ-साथ तस्करी का बहुत मजबूत तंत्र है जिसमें यहां का एख बहुत बड़ा वर्ग लिप्त है। तस्करी यहां एक कारोबार की तरह है, कुछ ट्रक ड्राइवर भी इसमें लिप्त हैं। कुछ स्थानीय दलाल है जो सौदा कराते हैं, पुलिस तक शिकायतें पहुंचती हैं, सामाजिक संस्थाएं भी काम कर रही हैं, जरूरत है कि पुलिस उदासीन रवैया छोड़कर यहां अभियान चलाए।
सीमा बताती है कि जान मोहम्मद की पत्नी रेहाना अब मेवात में रच-बस चुकी हैं और इज्जतदार जिंदगी जी रही है। उन्होंने भी हैदराबाद से 'पारोÓ लाकर अपने बेटों को दी है। पहले सिर्फ रेहाना को 'पारोÓ कहते थे, तो उन्हें बुरा लगता था, अब चार बहुएं 'पारोÓ हैं इसलिए रेहाना अकेली नहीं है। वह कहती हैं, हमें बुरा लगता है, जब कोई हमें पारो कहता है, हमें अब तक बाहरी मानते हैं, हम माहौल बदलना चाहते थे, इसलिए बाहर की पढ़ी-लिखी लड़कियां लाते हैं, चाहे कोई कुछ कहे। रेहाना की एक बहू जीनत भी पारो है, जो बमुश्किल यहां अपना सामंजस्य बिठा पाई है। जीनत बताती है, ये पैसे वाले इज्जतदार लोग हैं, इसलिए मैं सुरक्षित जिंदगी जी रही हूं, लेकिन मुझे साल भर बहुत दिक्कत आई, हमारी संस्कृति में बहुत फर्क है, जीनत खुशकिस्मत है। लेकिन ऐसी किस्मत दूसरी पारो की कहां होती है?
वहां तो कई किस्से और घटनाएं ऐसी हैं, जिसे सुनकर आपका दिल दहल जाए। 'पारोÓ सिर्फ दैहिक शोषण के लिए नहीं, बच्चा पैदा करने की मशीन भी हैं। कई 'पारोÓ को एक भाई के लिए लड़का पैदा करने के बाद दूसरे भाई के लिए लड़का पैदा करने को कहा जाता है। उनका तर्क सुनिए, गरीबों को भी तो परिवार आगे बढ़ाना है। वह बताती है घासेड़ा गांव की कुछ पारो वड़कली चौक पर भीख मांगती हुई दिखाई देती हैं। उनसे बात करें तो सच पता चलेगा। उनमें से कुछ अपने बीमार पति के लिए भीख मांग रही होती हैं तो कुछ घर का खर्चा चलाने के लिए ।
झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता संजय मिश्रा बताते है- सिर्फ झारखंड से 45 हजार लड़कियों को दूसरे राज्यों में ले जाकर बेच दिया गया है। कभी उन्हें काम का लालच दिखाया जाता है तो कभी फिल्मों में एक्टर बनाने का लोभ, लेकिन यहां से जाते ही उन्हें वस्तु की तरह भोग के लिए बेच दिया जाता है। पिछड़ापन और तस्करी का कारोबार
भारत में 1991 की जनगणना में प्रति हजार पुरुषों के पीछे 945 महिलाएं थीं और यह अनुपात 2001 की जनगणना में घटकर लगभग 927 रह गया था. पंजाब और हरियाणा में तो महिलाओं की स्थिति और दयनीय है। सन्ï 2001 की जनगणना के मुताबिक हरियाणा में प्रति हजार पुरुषों पर सिर्फ 861 महिलाएं हैं। हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या अपने चरम पर है। जाहिर है, ऐसे में 'पारोÓ का बाजार भी सजेगा और बोलियां भी लगेंगी।
दरअसल हरियाणा में कन्या भ्रूण हत्या के चलते लड़कियों की संख्या पुरुषों के मुकाबले लगातार गिर रही है। लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही है। स्वयंसेवी संगठन पारो समस्या का सीधा संबंध इससे जोड़ते है स्थानीय पत्रकार कासिम खान कहते हैं, पारो को लाने का काम ट्रक ड्राइवरों ने शुरू किया। ये हर राज्य में जाते हैं। वहां से लड़कियां इधर-उधर करते हैं। धीरे-धीरे यहां का समाज इसका आदी हो गया। हालांकि मेवात का पिछड़ापन भी एक बड़ी वजह है।
मेवात के विकास के लिए यहां अलग से मेवात डेवलपमेंट एजेंसी अस्तित्व में है। यहां अल्पसंख्यको के लिए अलग से बजट का प्रावधान है। मगर विकास का कोई काम धरातल पर दिखाई नहीं देता। पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य का मेवात से कोई नाता नहीं है। सरकारी योजनाएं फाइलों में ही बनती-बिगड़ती रहती हैं और इन सबके बीच कोई लड़की अपने हिस्से का नर्क लिए मेवात में धकेल दी जाती है, एक और पारो बनने के लिए।

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