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भेड़ाघाट

Tuesday, September 21, 2010

शिवराज, नाफरमान नौकरशाही के हाथों खिलौना

एब बार पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी ने कहा था ”नेता चुप नहीं रह सकते और अफसर बोलते नहीं।ÓÓ लेकिन इस चुप्पी के बावजूद राज्य की दबदबे वाली नौकरशाही के बोझ तले दबे लोगों की चीखें और कराहें अब अनुसनी नहीं रह गयी है। प्रदेश में कहने के लिए एक टीचर के बेटे की सरकार भले हो पर नौकरशाही का जलवा इस कदर हावी है कि सत्तारूढ़ भाजपा के नेता और मंत्री तक उनसे पनाह मांगते नजर आतें हैं। आम धारणा यही बनती जा रही है कि राज्य में सरकार पावरफुल नौकरशाही चला रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नाफरमान नौकरशाही के हाथों का महज खिलौना बन कर रह गये हैं। भाजपा संगठन और कैबिनेट की अनौपचारिक बैठकों में नौकरशाही के अडिय़ल रवैये का रोना आम बात बन गयी है। बात इतनी ही होती तो कोई परेशानी नहीं होती लेकिन, दिक्कत यह है बेतहाशा भ्रष्टाचार ने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। पिछले सात साल में एक-एक करके इतने नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए हैं कि, अब उनकी गिनती भी मुश्किल नजर आने लगी है। इसकी ताजा कड़ी है, चंद महीने पहले मुख्य सचिव पद से रिटायर होने के बाद राज्य सरकार के उर्जा सलाहकार राज्य विद्युत मंडल के अध्यक्ष बनाये गये राकेश साहनी और पूर्व अपर मुख्य सचिव विनोद चौधरी के अलावा तीन अन्य आईएएस अफसरों पर लोकायुक्त में दर्ज हुआ प्रकरण । यह मामला प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ संचालक डॉ. एएन. मित्तल की पदोन्नति में कथित गड़बड़ी की शिकायत पर दर्ज किया गया था, लेकिन लोकायुक्त ने इस पर जांच अब शुरू कराई है। दरअसल प्रदेश में स्वास्थ्य एक ऐसा महकमा बन चुका है जहां होम करते ही हाथ जलते हैं। पिछले सात वर्षों में स्वास्थ्य महकमे को आधा दर्जन मंत्री संभाल चुके हैं। उनमें से दो मंत्रियों अजय विश्रोई और अनूप मिश्रा को तो कुर्सियां छोडऩी पड़ी व कोई एक दर्जन अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए हैं, इनमें कुछ आईएएस अफसर भी है। डॉ. एएन. मित्तल ठीक उस समय स्वास्थ्य संचालक के पद पर प्रमोट हुए जब उनसे जीनियर दो संचालकों डा. अशोक शर्मा और डॉ. योगीराज शर्मा को आयकर छापे के दौरान घरों से अकूत दौलत निकलने के बाद निलंबित किया गया। इसी मामले में स्वास्थ्य आयुक्त आईएएस राजेश राजौरा भी निलंबित किये गये क्योंकि छापों के दायरे में आने के बाद वे भी करोड़ों की बेनामी संपत्ति के आसामी पाए गए थे।
स्वास्थ्य संचालक डॉ.एएन मित्तल की पदोन्नति में कथित गड़बडिय़ों को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा की शिकायत पर लोकायुक्त ने राकेश साहनी, विनोद चौधरी के अलावा प्रमुख सचिव स्वास्थ्य देवराज बिरदी, तत्कालीन प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन सुदेश कुमार और तत्कालीन उप सचिव स्वास्थ्य जयश्री कियावत के खिलाफ जांच के निर्देश दिये है। राकेश साहनी वर्तमान में मप्र राज्य विद्युत मंडल के अध्यक्ष और प्रदेश सरकार के ऊर्जा सलाहकार हैं। चौधरी रिटायर हो चुके हैं। बिरदी आदिम जाति कल्याण विभाग में प्रमुख सचिव हैं। सुदेश कुमार जेल विभाग में प्रमुख सचिव हैं और जयश्री कियावत दतिया की कलेक्टर हैं। केके मिश्रा ने शिकायत में कहा था कि स्वास्थ्य विभाग में संचालक के चार पद स्वीकृत हैं। इनमें से एक पर डॉ. अशोक शर्मा और दूसरे पर डॉ. योगीराज शर्मा पदस्थ हैं। तीसरा पद हाईकोर्ट इंदौर खंडपीठ के एक आदेश के कारण रिक्त है। यह आदेश डॉ.अशोक वीरांग की याचिका पर दिया गया था। चौथा पद अजा वर्ग के लिए आरक्षित है। पांचवा पद संचालक गैस राहत के लिए सृजित है। यह कैडर पद न होकर प्रतिनियुक्ति से संबंधित है। लिहाजा इस पद पर डीपीसी नहीं हो सकती। शिकायत में कहा गया कि वरीयता सूची में डॉ. मित्तल सबसे अंतिम व्यक्ति थे। विचारण जोन के बाहर होने पर भी उन्हें शामिल किया गया। अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की ग्रेडिंग में छेड़छाड़ की गई। गोपनीय रिपोर्ट, बंद लिफाफा या अन्य कारण बताते हुए उनके नामों पर विचार ही नहीं किया गया। मूल्यांकन में भी डॉ. मित्तल को 20 अंक देकर उन्हें उत्कृष्ट श्रेणी में ले लिया गया। केके मिश्रा ने शिकायत में इस मामले में भारी लेनदेन और अनियमितता के आरोप भी लगाए थे। पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी के कारण सरकार को दो बार शर्मिंदगी महसूस करनी पड़ी। एक बार उनके बेटे द्वारा किए गए हवाई उड़ान के मामले में और दूसरी बार 750 करोड़ की बिजली ब्लैक में खरीदने के मामले में। मुख्यमंत्री के चहेते अफसरों में शुमार मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिव अनुराग जैन को भी अच्छा अफसर माना जाता है, लेकिन हाल ही में महावीर मेडीकल कालेज ट्रस्ट को लेकर सामने आए मामलों में वे खुद भी परेशानी में पड़े हैं और पूरी सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। विधायकों की निधि से पांच-पांच लाख रुपए ट्रस्ट के लिए मांगने की उनकी चि_ी पर भाजपा के विधायकों के कड़े तेवर दिखे। इसी तरह मुख्यमंत्री के एक अन्य सचिव एसके मिश्रा की खनिज माफिया से साठगांठ के मुद्दे भी सरकार को परेशान करते रहे हैं ।

लोकायुक्तसंगठन में पहुंचने वाली शिकायतों में से जांच के बाद 10 फीसदी मामलों में ही आपराधिक प्रकरण दर्ज हो पाते हैं। फिर यह मामला नौकरशाहों का हो तब तो प्रकरण दर्ज होना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है। मिसाल के लिये इसी साल फरवरी में अरविंद और टीनू जोशी के यहां पड़े इन्कम टैक्स छापे को लें। इस अफसर दम्पति के सरकारी निवास से करोड़ो रुपए मिले थे। लेकिन जांच प्रकरण के बावजूद अब तक इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हो सकी है। लोकायुक्त संगठन के शिकायतों में तीन तरह की कार्यवाही होती है। जांच के लिये प्रकरण दर्ज किए जाते हैं, शिकायत विशेष स्थापना पुलिस को प्राथमिक जांच के लिए सौंपी जाती है या छापा मारने के बाद एफआईआर दर्ज की जाती है। जांच प्रकरणों में से जिन मामलों को केस दर्ज करने योग्य समझते हैं,उनमें एफआईआर दर्ज की जाती है। लोकायुक्त जस्टिस पी.नावलेकर का कहना है कि डॉ.मित्तल की पदोन्नति के संबंध में मिली शिकायत की जांच की जा रही है। इस सिलसिले में सरकार को हाल में नोटिस भी भेजा गया था। रहा सवाल प्रकरण दर्ज करने का तो प्रकरण पंजीबद्ध करने के बाद ही जांच शुरू होती है।
लोकायुक्त पुलिस में दस साल में 19 आईएएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं लेकिन पांच वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने का कारण बताकर अदालत में उनके मामलों का खात्मा भेज दिया गया। दो अधिकारियों के मामले में विशेष न्यायालयों के निर्णय को लेकर लोकायुक्त पुलिस की ओर से हाईकोर्ट में अपील की गई है। इनमें से सर्वाधिक तीन-तीन मामले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी यूके सामल, सेवारत आईएएस अधिकारी राजेश राजौरा और आरके गुप्ता के खिलाफ हैं। रमेश थेटे के खिलाफ भी दो मामले दर्ज हो चुके हैं जिनमें से रिश्वत लेते पकड़े जाने के एक मामले में श्री थेटे को विशेष न्यायालय ने सजा दी थी। इसके बाद उन्हें सेवा से पृथक कर दिया गया। फिर उन्हें हाईकोर्ट ने बरी किया लेकिन लोकायुक्त पुलिस इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील में गई है। इसके अलावा दो प्रशासनिक अधिकारी अशोक देशवाल और लक्ष्मीकांत द्विवेदी के खिलाफ जब प्रकरण दर्ज हुआ था तब उन्हें आईएएस नहीं मिला था। अभी वे आईएएस अधिकारी हैं। उनके खिलाफ भी लोकायुक्त पुलिस में दो एफआईआर दर्ज हैं।

एक अन्य आईएएस संजय शुक्ला ने जो अब बिजली कंपनी में ऊंचा ओहदा संभाले हैं नगर निगम आयुक्त के कार्यकाल में दो करोड़ रुपए की खरीदी की थी जिसमें सामग्री की कीमत केवल 96 लाख रुपए पाया जाना प्रमाणित हुआ है। इस प्रकार उन पर बिना टेंडर, कोटेशन के एक करोड़ चार लाख रुपए का एक फर्म को लाभ पहुंचाया। हैरानी की बात यह है कि वे इस समय प्राइम पोस्ट पर हैं। रतलाम कलेक्टर और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष की हैसियत से विनोद सेमवाल ने विनोद पारिख नाम के व्यक्ति को शहरी क्षेत्र की जमीन दे दी। शिवपुरी भू-अर्जन अधिकारी के रूप में एलएस केन ने आईटीबीपी के लिए अधिग्रहित जमीन का मुआवजा किसानों को नहीं देकर मध्यस्थ को दे दिया था। यह मध्यस्थ आज भी फरार है। मप्र विद्युत मंडल में सदस्य (वित्त) रहते हुए अजीता वाजपेयी ने विद्युत मीटर खरीदी की थी जिसमें कई करोड़ों के घोटाले का आरोप है। वे इन दिनों केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं। कटनी में हाउसिंग बोर्ड के प्रोजेक्ट के लिए ज्यादा कीमत पर जमीन खरीदी का मामला तत्कालीन आयुक्त हाउसिंग बोर्ड राघवचंद्रा और कटनी कलेक्टर शहजाद खान के अब तक गले पड़ा हुआ है। इसमें विशेष न्यायालय ने खात्मा निरस्त कर दिया और हाईकोर्ट ने इसे मान्य कर लिया। अब इस मामले से जुड़ा एक पक्ष सुप्रीम कोर्ट चला गया है।

प्रदेश में ब्यूरोक्रेट की करतूतें न सिर्फ सरकार के लिए परेशानी का सबब बनीं, बल्कि इस सर्वोच्च सेवा की मान-सम्मान मर्यादा और गौरव की धज्जियां भी उड़ा दीं। यहां तक कि मप्र कैडर के कारण भारतीय प्रशासनिक सेवा की पूरे देश में हो थू-थू को देखते हुए कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर तक को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने तीन मार्च 2010 को प्रदेश के मुख्य सचिव अवनि वैश्य को पत्र लिखकर मप्र कैडर की करतूतों पर दु:ख जताया। वे इतने आहत थे कि उन्होंने प्रदेश के नौकरशाहों को फिर से न सिर्फ उनकी ड्यूटी याद दिलाई, बल्कि सेवा में आने के समय ली जाने वाली कसमें-वादे भी याद दिलाए। उन्होंने नौकरशाहों को आईना दिखाते हुए कहा कि उनकी कार्यशैली से आने वाली पीढिय़ां क्या सीखेंगी और सेवा की छवि क्या रह जाएगी। उन्होंने जोर दिया कि अब कैडर की छवि को सुधारा जाना चाहिए।

प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र में ऊपर से नीचे तक व्याप्त भ्रष्टाचार में नौकरशाह भी शामिल हैं। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना इतनी जिंदा मिसाल है जिसमें आईएएस अधिकारियों ने जमकर बंदरबांट मचाई। करीब दो दर्जन आईएस अफसर मनरेगा में गड़बडिय़ों के आरोपी हैं। सितंबर के दूसरे हफ्ते में भोपाल में 27 स्वयं सेवी संगठनों ने विकास के मूल्यांकन को लेकर जो जनसुनवाई आयोजित की थी उसमें कोई पांच सौ से ज्यादा ग्रामीणों का साफ कहना था कि मप्र में ‘मनरेगाÓ में भारी भ्रष्टाचार किया जा रहा है। बड़े अधिकारी खुद घोटाला कर रहे हैं। जरूरत मंदों को काम नहीं मिल रहा है जबकि फर्जी नामों से लाखों के भुगतान किए जा रहे हैं। काम के लिए मजदूरों को हड़ताल और प्रदर्शन करना पड़ रहे हैं। लेकिन प्रदेश की सरकार भ्रष्टाचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। जनसुनवाई कार्यक्रम में जिलों से आए लोगों ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ गरीबों को नहीं दिला पा रही है, न ही व्यापक पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार को रोका जा रहा है।


प्रदेश में हेकड़ीबाज नौकरशाहों की फेहरिस्त भी बेहद लंबी है। इनमें पहला नाम अपर मुख्य सचिव रंजना चौधरी का आता है, जो अब रिटायर हो चुकी है। कृषि उत्पादन आयुक्त रहते हुए मंत्रालय में अपने एक अवर सचिव को पेपर वेट फेंककर मारने वाली इस अधिकारी से मिलने से पहले विभाग के अफसर भी भगवान का नाम लेते थे। उनके पति विनोद चौधरी अपने दफ्तर एसी प्रेम को लेकर चर्चा में रहे। उनके जानेवाले मातहत तो ठंड के मारे कांप जाते थे। पूरी सर्विस के दौरान आम आदमी से मिलकर उसकी परेशानी सुनने का मौका उन्होंने शायद ही कभी निकाला हो। यही हाल अपर मुख्य सचिव आईएम चहल का था जो अभी-अभी रिटायर हुई हैं। जरा-जरा सी बात पर इनका भी माथा ठनक जाता था। मैडम जहां-जहां भी पदस्थ रहीं उनमें से अधिकांश विभागों के कर्मचारियों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ीं। आयुक्त अल्प बचत एवं लाटरीज रहते हुए मैडम ने करीब 100 अधिकारी-कर्मचारियों की छुट्टी कर दी थी जो आज भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं। अभी हाल में उज्जैन की कलेक्टर एम गीता तब विवादों में आ गई जब उन्होंने अपने एक मातहत से कहा की मैं तुम लोगों को पंखे पर लटकवा दूंूगी। उनसे पूरा जिला खौफ खाता है लेकिन कोई उनकी मुखालफत इसलिए नही कर पाता क्योंकि उन्हें मुख्यमंत्री का वरदहस्त मिला हुआ है। मंत्रालय में पदस्थ प्रमुख सचिव लवलीन कक्कड़, जीपी सिंघल, राधेश्याम जुलानिया, को भी दफ्तर में आने वाले किसी सामान्य या सामान्य से कुछ ऊपर वाले लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं है। यदि कभी मिल भी लिए तो मिलने वाले को एक सांस में अपनी सारी बातें कहनी पड़ती हैं।
सलीना सिंह, शिखा दुबे, अनुराग जैन, आशीष उपाध्याय, विवेक अग्रवाल, दीपाली रस्तोगी, आकाश त्रिपाठी, विवेक पोरवाल और निशांत बड़े -बड़े जैसे युवा अफसरों के पैर भी इन दिनों जमीं पर नहीं हैं। सलीना सिंह की तेज-तर्रार छवि ने उन्हें भी इसी श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। मैडम के गुस्से के अब तक कई लोग शिकार हो चुके हैं। आयुक्त राज्य शिक्षा केंद्र मनोज झालानी न दफ्तर में मिलते हैं और न फोन पर। साहब ज्यादातर समय बैठकों में ही व्यस्त रहते है। गीत-संगीत के शौक के कारण सुर्खियों में रहने वाले आईएएस अधिकारी एम. मोहन राव गीतों की शूटिंग और इनकी कम्पोजिंग के समय तो बड़े मृदु दिखाई देते हैं, लेकिन दफ्तर में पहुंचने के बाद वे अपना आचरण पूरी तरह बदल लेते हैं।

बीते सालों में प्रदेश की भाजपा सरकार को जितना विपक्षी पार्टियों ने परेशान नहीं कर पानी उससे ज्यादा नौकरशाही ने नाक में दम कर दिया। इनमें पिछले दो-तीन साल तो सरकार के लिए बेहद परेशानी भरे रहे, जब सड़क से लेकर विधानसभा तक विपक्ष ने अफसरों की कारगुजारियों को सरकार के खिलाफ हथियार बनाया और सरकार को बार-बार सफाई देनी पड़ी। दरअसल आयकर विभाग, लोकायुक्त और आर्थिक अपराध शाखा ने जहां-जहां भी छापे मारे, वहां-वहां अफसरान से करोड़ों रुपए बरामद हुए। इनमें से सिर्फ एक मामले (जोशी दंपति) में सरकार ने निलंबन की कार्रवाई की। इस पर भी यह आरोप चस्पा हो गया कि उक्त दंपति को सीबीआई जांच से बचाने की खातिर यह कदम उठाया गया।
लोकायुक्त द्वारा राज्य शासन को चि_ी लिखकर भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन की अनुमति न देने पर आपत्ति जताई गई थी । कटनी नगर निगम आयुक्त रहते भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे आईएएस लक्ष्मीकांत द्विवेदी को शिक्षा मंडल में सचिव जैसा महत्वपूर्ण दायित्व सौंपने से लोकायुक्त खफा थे। उनके सहित बड़े अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन की अनुमति सरकार नहीं दे रही थी।
इनमें एंटोनी डिसूजा, एमके सिंह, एमए खान (सेवानिवृत्त), राजेश गुप्ता, महेंद्र सिंह यादव,एसके दासगुप्ता, पीसी मंडलोई, पुनीत गुजराल, एमएल वर्मा, मुकेश वर्मा, एमके देसाई, एनएम पुरस्वानी (सेवानिवृत्त), विनय निगम, बीपी सिंह गहरवार जैसे बड़े अफसर शामिल थे ।

एक ओर लोकायुक्त ने सरकार से अधिकारियों के खिलाफ चालान पेश करने की अनुमति के लिए छटपटा रही थी। वहीं दूसरी ओर संगठन ने ऊपरी दबाव में साक्ष्य के अभाव बताकर 25 मामलों में खात्मा लगा दिया गया था। इनमें एमए खान एके श्रीवास्तव, होशियार सिंह , आरके गोयल, जगत स्वरूप, राकेश बंसल, एलएन मीणा, रामजी टांडेकर, आईसीपी केसरी, मोहन गुप्ता, बीआर नायडू, बीएल खरे, एके जैन, मोहम्मद सुलेमान और शहजाद खान शरीक हैं। इनमें से कुछ अब इस दुनिया में नहीं जबकि कुछ सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
दरअसल ऐसे कोई 35 अफसर अब तक सेवानिवृत्त हो चुके हैं जिनके खिलाफ प्रकरण दर्ज हुए थे । सरकार कह रही है कि अब इन अफसरो पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। सरकार की मंशा पवित्र होती तो इनकी पेंशन रोकी जा सकती थी, किंतु ऐसा भी नहीं किया गया। ईओडब्ल्यू ने बाणसागर परियोजना में भारी भ्रष्टाचार की शिकायतों पर अफसरों, ठेकेदारों सहित 39 लोगों के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध किया था। नियमानुसार जिस ठेकेदार के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हो, उसे ठेका नहीं दिया जा सकता, किंतु जल संसाधन विभाग में इस नियम का खुलेआम मखौल उड़ाया गया है और सरकार खामोश रही। एसके जैन के पास दो हजार करोड़ के ठेके थे। बाद में आयकर छापे के बाद मजबूर होकर इस ठेकेदार पर कार्रवाई करनी पड़ी ।
वैसे भी भ्रष्टाचार के मामले में जल संसाधन विभाग सबसे आगे है। इस विभाग में भ्रष्टाचार के 90 मामलों की जांच चल रही है। लोनिवि में ऐसी 70 शिकायतें मिली हैं। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की भी इतनी ही शिकायतें हैं। स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन आयुक्त राजेश राजौरा और स्वास्थ्य संचालक डॉ योगीराज शर्मा के यहां तो आयकर छापा पड़ ही चुका है। नगरीय प्रशासन, राजस्व, आदिम जाति कल्याण, वाणिज्यिक कर, पीएचई की भी कई शिकायतें हैं। परिवहन और आबकारी विभाग के मामले इसलिए सामने नहीं आते, क्योंकि इनके अफसर जांच एजेंसियों को मासिक बंदी देते हैं। सरकार के पास इस बात का कोई जवाब नही कि
लोकायुक्त संगठन के अलावा अन्य जांच एजेसियों में अफसरों के खिलाफ लंबित मामलों की लंबी फेहरिस्त है। यह जानकर किसी को भी आश्चर्य होगा कि मप्र के लगभग 25 आईएएस अधिकारियों की जांच मप्र आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो कर रहा है। वैसे इस संस्था से किसी आईएएस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाही की उम्मीद कम ही है। अभी तक यह संस्था राजनेताओं के हथियार के रुप में प्रयोग में लाई जाती रही है। क्योंकि इसकी जांच पर हमेशा ही उंगली उठती रही है। हालांकि मध्यप्रदेश लोकायुक्त संगठन ने 1 जनवरी 2004 के बाद अभी तक 17 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में कोर्ट में चालान पेश कर चुका है। यह अभी तक कि सबसे बड़ी संख्या है। वैसे मध्यप्रदेश लोकायुक्त वर्तमान में प्रदेश के लगभग 36 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच कर रहा है।
प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार व्याप्त है इसका उदाहरण है नौकरशाहों की यह सूची जिसमें इनके कारनामों की झलक दी गई है।
- अरविंद-टीनू जोशी : आयकर छापों में साढ़े तीन करोड़ नगद घर में मिले। तीन हजार करोड़ के निवेश सामने आए। मामला सामने आने पर सरकार ने नाक बचाने दोनों को निलंबित किया।
- अनुराग जैन : महावीर मेडिकल कालेज के लिए विधायक निधि से पैसा मांगा। जैन के साथ-साथ सरकार की भी बड़ी फजीहत हुई, लेकिन मुख्यमंत्री के संरक्षण के कारण फिलहाल सुरक्षित।
- एसके मिश्रा : खनिज माफिया से मिलीभगत व सरकार को करोड़ों की खनिज राजस्व हानि कराने के आरोप। लोकायुक्त में भी मामला दर्ज है। भूमि घोटाले में चालान पेश करने की सरकार अनुमति नहीं दे रही है। मुख्यमंत्री का वरदहस्त होने से फिलहाल ये भी सुरक्षित।
- राकेश साहनी : अपने बेटे को सरकारी विमान देने के बाद सरकार को कटघरे में खड़ा कराया। मुख्य सचिव के साथ बिजली बोर्ड का अध्यक्ष रहते हुए 750 करोड़ की बिजली महंगे दामों पर खरीदी। सरकार आज तक इस मामले में जवाब दे रही है।
- एसके जैन : विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी को लाभ पहुंचाने के लिए आचार संहिता का उल्लंघन कराया। भारत निर्वाचन आयोग ने गंभीर आपत्ति की और तत्कालीन मुख्य सचिव को आयोग के सामने पेश होकर सफाई देनी पड़ी।
- अंजू सिंह बघेल : कटनी में कलेक्टर रहते हुए भू-माफिया के साथ मिलकर निजी और सरकारी जमीन की अदला-बदली में घालमेल कर सरकार की भारी किरकिरी कराई। सरकार ने तत्काल निलंबित किया।
- राजेश राजौरा : स्वास्थ्य आयुक्त रहते हुए विभाग के खरीदी मामलों में भ्रष्टाचार किया। आयकर छापे में करोड़ों की बेनामी संपत्ति उजागर हुई। सरकार ने इन्हें भी निलंबित किया था। बहाल होकर लूप लाइन में पड़े हुए हैं।
- ज्ञानेश्वर पाटिल : भोपाल जिला पंचायत के सीईओ रहते हुए एक पंचायत सचिव के साथ कथित तौर पर आपत्तिजनक अवस्था में मिले। सरकार ने संस्पेंड किया। बहाल हो गए, लेकिन अच्छी पोस्टिंग और कलेक्टरी से वंचित हो गए। काडर बदलकर महाराष्ट्र जाना चाहते हैं।
- सुहैल अली : भिण्ड में कलेक्टर रहते हुए मनरेगा में भारी भ्रष्टाचार किया। विभिन्न जांचों में दोषी करार। सरकार ने कलेक्टरी छीनी। अब बड़ी कार्रवाई की तैयारी।
- नवनीत कोठारी : बालाघाट कलेक्टर के रूप में मनरेगा में गड़बडिय़ों के आरोप। अपने बंगले की साज-सज्जा पर मनरेगा का पैसा उड़ाया।
- सुखवीर सिंह : कलेक्टर सीधी में रहते हुए मनरेगा में भारी गड़बडिय़ों की। कागजों पर काम कराया और भुगतान किया। विभिन्न जांचों में एकतरफा दोषी साबित।
- चंद्रशेखर बोरकर : सीधी में जिला पंचायत सीईओ रहते हुए कलेक्टर के साथ मनरेगा में गड़बडिय़ों में दोषी।
- निकुंज श्रीवास्तव : छिंदवाड़ा में कलेक्टर रहते हुए इन पर मनरेगा में भ्रष्टाचार करने के फिलहाल भोपाल के कलेक्टर ।
- केपी सिंह : टीकमगढ़ में कलेक्टरी के दौरान मनरेगा की राशि अनाप-शनाप खर्च कर डाली। जांच में दोषी और फिर निलंबित।
अफसरों से पनाह मांगते मंत्री
मध्यप्रदेश में नौकरशाही की ‘मरजी के सामने अच्छे-अच्छे नतमस्तक हैं। कोई एक दर्जन यानी एक तिहाई मंत्री ऐसे होंगे जिनकी अपने विभागों में हैसियत नाम मात्र की है। दिग्विजय सिंह के जमाने में मंत्रियों पर नकेल कसने के लिए अफसरों का जिस तरह इस्तेमाल होता था, कुछ-कुछ उसी शैली में शिवराज सिंह अपनी हुकूमत चला रहे हैं। मिसाल के लिए सबसे चर्चित उर्जा और खनिज विभाग को ही लें। खनिज महकमे के मंत्री भले ही राजेंद्र शुक्ल हों लेकिन अपने सारे कामों के लिए उन्हें विभाग के प्रमुख सचिव एसके मिश्रा पर निर्भर रहना पड़ता है। एसके मिश्रा राज्य के चर्चित प्रमोटी आईएएस हैं वे मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव भी हैं और खनिज विभाग के सर्वेसर्वा अफसर भी। राजेंद्र शुक्ल के साथ विडम्बना यहीं खत्म नहीं होती। वे उर्जा राज्यमंत्री के ओहदे पर हैं लेकिन उनके सलाहकार पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला हुआ है। गरज यह कि, सलाहकार की हैसियत मंत्री से एक स्टेप उपर है।

राज्य के आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह से उनकी सचिव सलीना सिंह के विवाद के अफसाने तो लंबे समय तक गंूजते रहे हैं। मजा इस का है कि, श्री शाह अपनी सचिव का कुछ भी नहीं विगाड़ पाये। भोपाल के कोलार गेस्ट हाऊस में शिवराज सिंह ने अपने मंत्रियों की शिकायतें सुनने जो बैठकें बुलाई थी, उसमें लगभग सभी मंत्रियों ने एक स्वर से यही कहा था कि अफसर उनकी सुनते नहीं है। यह बात जब अखबारों में छपी तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह राहुल ने टिप्पणी की ”यह कैसी सरकार और उसके मंत्री हैं, जिनको अपने मुखिया से इस बात की शिकायत करनी पड़ती है, कि अफसर उनकी बात नहीं सुनते और मुख्यमंत्री को कहना पड़ता है कि वे अफसरों द्वारा रोकी फाइलों का निपटारा करा देंगे। यह मामला अपनी जगह है पर कई मामलों में तो अफसरों से काम कराने में सीएम को भी पसीने आ जाता हैं। मिसाल के लिए हर महीने डायरी लिखने के सीएम शिवराज सिंह के निर्देशों को लें। यह निर्देश स्वयं मुख्य सचिव ने जारी किया। छ: महीने बाद समीक्षा करने पर पता लगा कि, 46 विभागों में डायरी नहीं लिखी जा रही थी। कोई 54 अफसरों ने डायरी नहीं लिखी थी। यह जानकारी एक सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे के प्रयासों से सामने आयी। कमोवेश यही स्थिति सम्पत्ति का ब्यौरा देने के मामले मेंं रही। राज्य के आईएएस – आईपीएस अफसरों से सम्पत्ति का ब्यौरा निकलवाने के लिए कांग्रेस नेता चौधरी राकेश सिंह को मुख्य सूचना आयुक्त पीपी तिवारी का दरवाजा खटखटाना पड़ा इस मामले में आयुक्त पीपी तिवारी की भूमिका सराहनीय रही। उन्होंने सबसे पहले अपनी स्वयं की सम्पत्ति सार्वजनिक की फिर अपना फैसला दिया इसके बावजूद मुख्यमंत्री के निर्देश पर भी सम्पत्ति का विवरण देने में महीनों लग गए। जो विवरण दिया गया उस पर तो कुछ कहना ही व्यर्थ है।

” भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, अफसर कोई भी हो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। किसी को भी संरक्षण नहीं दिया जाएगा। लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के प्रकरणों में न्यायलयीन फैसलों का इंतजार नहीं होगा, जुर्म की गंभीरता को देखते हुए समय पर कार्रवाई होगी। ÓÓ
अवनि वैश्य मुख्य सचिव, मप्र शासन

5 अरब की बेनामी संपत्ति उजागर
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तीन आईएएस अफसरों समेत विभिन्न जगह आयकर विभाग द्वारा की जा रही छापेमार कार्रवाई में अब तक करीब 500 करोड़ की बेनामी संपत्ति का पता चला है। इसमें 7.7 करोड़ की नकदी और ज्वैलरी भी शामिल है।
आयकर विभाग के मुताबिक 7.2 करोड़ रुपए की संपत्ति मध्यप्रदेश के आईएएस अफसरों व अन्य के यहां से जब्त की गई। इस दौरान ऐसे दस्तावेज हाथ लगे हैं जिनमें मप्र और छत्तीसगढ़ के अफसरों के यहां करोड़ों रुपए की बेनामी संपत्ति होने की पुष्टि होती है। आयकर विभाग द्वारा दावा किया जा रहा है कि मप्र व छत्तीसगढ़ के तीनों आईएएस अफसरों के पास अकूत अवैध संपत्ति है। प्रदेश में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के अपेक्षाकृत कम हैं। मप्र के लोकायुक्त ने पिछले दिनों सूचना के अधिकार के तहत ऐसे आईएएस अधिकारियों की सुची उपलब्ध कराई थी जिनके खिलाफ भ्रष्आचार की जांच की जा रही है। इस सूची में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यसचिव राकेश साहनी सहित तीन दर्जन आईएएस अफसरों के नाम शामिल थे। इनमें कुछ अफसरों को लोकायुक्त क्लीन चिट दे दी है।
मार्च 2009 में लोकायुक्त द्वारा जारी सूची
के अनुसार

प्रदेश के दागी आईएएस
अफसरों के नाम व आरोप
- मनीष श्रीवास्तव
त्रैमासिक अर्धवार्षिक परीक्षा के मुद्रण कार्य में घेटाला
- अरूण पांडे
खनिज लीज में ठेकेदारों को अवैध लाभ पंहुचाना
- प्रभात पाराशर
- वाहनों के क्रय में 5 लाख से अधिक का भ्रष्टाचार
- गोपाल रेड्डी
- कालोनाईजरों को अनुचित लाभ पहुंचाना, शासन को आर्थिक हानि पहुंचाना
- अनिता दास
- ऊन तथा सिल्क साडिय़ों के क्रय में भ्रष्टाचार
- दिलीप मेहरा
- कार्यपालन यंत्री से अधीक्षण यंत्री की पदोन्नति में अनियमितताएं
- मोहम्मद सुलेमान
- कालोनाईजरों को अवैध लाभ पंहुचाना
- टी राधाकृष्णन
- दवा खरीदी में अनियमितताएं
- एसएस उप्पल
- पांच लाख रूपए लेकर भूमाफियाओं को अनुज्ञा दी
- अस्ण भट्ट
- भारी रिश्वत लेकर निजी भूमि में अदला बदली
- निकुंज श्रीवास्तव
- पद का दुरूपयोग एवं भ्रष्टाचार, दो शिकायतें
- एमके सिंह
- तीन करोड़ रूपए का मुद्रण कार्य आठ करोड़ रूपए में कराया
- एमए खान
- भ्रष्टाचार एवं वित्तिय अनियमितताएं, तीन शिकायतें
- संजय दुबे
- शिक्षाकर्मियों के चयन में अनियमितताएं
- रामकिंकर गुप्ता
- इंदौर योजना क्रमांक 54 में निजी कंपनी को सौ करोड़ रूपए का अवैध लाभ पंहुचाया
- एमके वाष्र्णेय
- सम्पत्तिकर का अनाधिकृत निराकरण करने से निगम को अर्थिक हानि
- आरके गुप्ता
- निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं
- एन्टोनी डिसा
- निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं
- केदारलाल शर्मा
- सेन्ट्रीफयूगल पम्प क्रय में अनियमितताएं
- शशि कर्णावत
- पद का दुरूपयोग, दो शिकायतें
- केके खरे
- पद का दुरूपयोग कर भ्रष्टाचार
- विवेक अग्रवाल
- 21 लाख रूपए की राशि का मनमाना उपयोग
- एसके मिश्रा
- खनिज विभाग में एमएल, पीएल आवंटन में भ्रष्टाचार
- राकेश साहनी
- पुत्र को 5 लाख रूपए कम में विमान प्रशिक्षण दिलाया
- महेन्द्र सिंह भिलाला
- 75 लाख रूपए की खरीदी में अनियमितताएं
- अल्का उपाध्याय
- भारी धन राशि लेकर छह माह तक दवा सप्लाई के आदेश जारी नहीं किए
- सोमनाथ झारिया
- 4 वर्षों से भ्रष्टाचार एवं पद का दुरूपयोग करना
- डा. पवन कुमार शर्मा
- बगैर रोड़ बनाए ठेकेदार को पांच लाख का भुगतान करना
ईओडब्लू जांच के दायरे मे 25 आईएएस
अफसरों के नाम व आरोप
- पी नरहरि
- सड़क निर्माण व स्टाप डेम में गड़बड़ी
- तरूण गुप्ता
- फर्जी यात्रा देयक
- आरके गुप्ता
- इंदौर में मैंकेनिक नगर में गलत तरीके से लीज
- डीके तिवारी
- ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी
- एवी सिंह
- ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी
- एसएस अली
- फर्जी फर्मों के द्वारा सर्वे सामग्री एवं कम्प्यूटर खरीदी
- एमके अग्रवाल
- फर्जी फर्मों के द्वारा सर्वे सामग्री एवं कम्प्यूटर खरीदी
- राजेश मिश्रा
- फर्जी दस्तावजों के आधार पर आचार सत्कार शाखा में गड़बड़ी
- शिखा दुबे
- अनुसूचित जाति, जनजाति के विधार्थियों की गणवेश खरीदी में अनियमितता
- जीपी सिंघल
- सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप
- टी धर्माराव
- सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप
- योगेन्द्र कुमार
- शराब की दूकान बंद कराने की धमकी देकर लाईसेंसधारियों से अवैध वसूली
- आरएन बैरवा सेनि
- अनुसूचित जाति के छात्रों के भोजन बजट में गड़बड़ी
- मनीष रस्तोगी
- सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता
- विवेक पोरवाल
- सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता
- हरिरंजन राव
- रायल्टी का भुगतान नहीं करने से शासन को लाखों की चपत लगाई
- अंजू सिंह बघेल
- नरेगा में भुगतान की गडगड़़ी
- एसएस शुक्ला
- बाल श्रमिक प्रशिक्षण में आठ करोड़ रूपए का दुरूपयोग
- सीबी सिंह
- बिल्डर्स को लाभ पहुंचाने के लिए अवैध निर्माण व बिक्रय
- प्रमोद अग्रवाल
- औधोगिक केन्द्र विकास निगम में अनियमितताएं
- आशीष श्रीवास्तव
- एमपीएसआईडीसी की राशि का एक मुश्त उपयोग कर बैंक लोन पटाने का मामला
- संजय गोयल
- नरेगा में कुंआ निर्माण में अनियमितता
- निकुंज श्रीवास्तव
- रेडक्रास सोसाइटी में आर्थिक गड़बड़ी
- एसएन शर्मा
- ट्रांसफर के बाद बंगले पर फाइलें बुलाकर आम्र्स लायसेंस स्वीकृत किए
- मनीष श्रीवास्तव
- चार शिकायतें, शिवपुरी, टीमकगढ़ में अर्धवार्षिक परीक्षा में गलत भुगतान, राजीव गांधी शिक्षा मिशन में निर्माण में अनियमितता, दवा व बिस्तर खरीदी में गड़बड़ी, उत्तर पुस्तिका छपाई और गणवेश खरीदी और खदानों का गलत तरीके से आवंटन
नोट : नरेगा में भ्रष्टाचार के आरोप भिण्ड के तत्कालीन कलेक्टर सुहेल अली पर भी लगे, लेकिन कांग्रेस विधायक डा. गोविन्द सिंह का आरोप है कि – राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव राकेश साहनी के साथ सुहेल अली के जीजा-साले के संबंध होने के कारण उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई।
एक वर्ष में चार आईएएस अफसरों
भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित हुए
- केपी राही
आरोप – नरेगा में जमकर माल कूटा
- अंजू सिंह बघेल
आरोप – कटनी भूमि घोटाला
- अरविन्द जोशी
आरोप – आयकर छापे में घर से तीन करोड़ नगद बरामद
- टीनू जोशी
आरोप – आयकर छापे में घर से करोड़ों रूपए बरामद व लॉकर में मिले सोने चांदी के बर्तन
चरित्रहीनता के आरोप में भी निलंबन
मप्र के इतिहास में पहली बार किसी आईएएस अधिकारी को चरित्रहीनता के आरोप में निलंबति किया गया। भोपाल जिला पंचायत के सीईओ पाटिल को एक युवक के साथ उनके अफ्तर में ही संदिग्ध हालत में पकड़ा गया। इस दृश्य को स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने टीवी पर देखा और पाटिल को निलंबित कर दिया गया। मुख्यसचिव राकेश साहनी ने पाटिल को बचाया और बहाल कराया।

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