आज़ादी के बाद भारत में हिंसा की कम से कम तीन ऐसी बड़ी घटनाएँ हुई हैं जिन्होंने उसे अंदर तक झिंझोड़ दिया. सिख विरोधी दंगे, बाबरी मस्जिद ध्वंस और गुजरात का नरसंहार.
इसमें से दो का संबंध धर्म या आस्था से था. जाहिर है उनका असर समाज और उसकी सोच पर ज्यादा पड़ा.
बाबरी मस्जिद तोड़े जाने ने समाज में ऐसी दरार पैदा की जिसे भरना मस्जिद को दोबारा तामीर करने से ज्यादा मुश्किल हो गया. यह दरार ऊपर नहीं दिखती लेकिन अंदरूनी घाव की तरह है.
तक़रीबन हज़ार साल की साझा विरासत के हवाले से समाज ने उसे लीप-पोतकर ठीक कर दिया. लेकिन जरा सा खुरचने पर टीस उभर आती है.
अयोध्या एक छोटा सा कस्बा है. स्थायी आबादी क़रीब तीस हज़ार. धर्मनगरी होने के नाते साल में कुछेक दिन लाखों लोग इकट्ठा होते हैं.
बाबरी मस्जिद तोड़े जाने ने समाज में ऐसी दरार पैदा की जिसे भरना मस्जिद को दोबारा तामीर करने से ज्यादा मुश्किल हो गया. यह दरार ऊपर नहीं दिखती लेकिन अंदरूनी घाव की तरह है. तक़रीबन हज़ार साल की साझा विरासत के हवाले से समाज ने उसे लीप-पोतकर ठीक कर दिया. लेकिन जरा सा खुरचने पर टीस उभर आती है.
किंवदंती के मुताबिक़ सीता को मुँह दिखाई में मिला कनक भवन और पवनपुत्र की हनुमान गढ़ी उसके भव्यतम आकर्षण केंद्र. पूरब में सदानीरा सरयूजी.
किसी धर्मनगरी की तरह अयोध्या में भी मंदिर रहते हैं. उनके बीच में लोग और उदारता.
कहते हैं कि वहाँ हर घर मंदिर है और मंदिर घर. बांट कर देखना संभव नहीं.
लेकिन इस सघन बस्ती में खुलापन बहुत है. इतनी गुंजाइश की सबको थोड़ी सी जगह मिल जाए. आस्था के दूसरे रंगों को भी. दिगंबर जैन मंदिर, गुरुद्वारा, प्राचीन बौद्ध विहार और पचास से ज्यादा मस्जिदें.
हर मायने में अयोध्या देश का गुटका संस्करण है, जहाँ संक्षेप में सब कुछ उपलब्ध है.
दिसंबर, 1992 में अयोध्या पर हुआ हमला दरअसल इसी उदारता और खुलेपन पर हमला था.
कोशिश उसे नष्ट करने की थी ताकि वहाँ और देश के दीगर हिस्सों में लोगों के साथ डर रहने लगे.
लेकिन वे अल्पज्ञानी थे. नहीं जानते थे कि अयोध्या अ-योध्या है, अवध अ-वध्य है.
हज़ार साल का साझा चार घंटे में नहीं टूटता. अयोध्या थोड़ा-सा हिलडुलकर फिर अपनी जगह आ गई.
दरार
इस दौरान दो चीजें टूटीं. बाबरी मस्जिद और उसके साथ अयोध्या की छवि.
इस घटना में राजनीति थी. पर राजनीति इससे प्रभावित होने वाली सबसे छोटी चीज रही होगी. उसका सतही असर सियासत में आए फेरबदल में दिखाई दिया और धुल भी गया. नफ़रत और ख़ून से सींची ज़मीन पर फसलें नहीं उगतीं. सियासत की ऐसी ज़मीन टिकाऊ नहीं होती.
उसकी शक्ल आधा उठी दीवार और उस पर तने त्रिपाल की रह गई. जैसे इसके अलावा अयोध्या में कुछ हो ही नहीं.
इस हमले के बावजूद अयोध्या ने अपनी उदारता नहीं छोड़ी. डर-सहमकर चले गए लोगों को वापस बुला लिया. उन्हें रोज़गार दिया. जगह बना दी.
लेकिन एक काम अयोध्या भी नहीं कर पाई. घरों और दिलों से डर निकालने का.
डर लोगों के साथ रहता है, ख़ासकर मुस्लिम परिवारों के. वह जाते-जाते ही जाएगा.
प्रसिद्ध दार्शनिक रामचंद्र गांधी के शब्दों में बाबरी मस्जिद पर हमला मस्जिद पर नहीं बल्कि भारतीय सोच पर था.
किसी इमारत पर आक्रमण हिंसा का क्रूरतम उदाहरण है, क्योंकि इमारत निहत्थी होती है. अपना बचाव नहीं कर सकती.
यह एक निहत्थे-निरपराध व्यक्ति को घेरकर मारने से ज्यादा ख़तरनाक़ है.
मस्जिद का ध्वंस दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले देश की सामूहिक सोच को नकारना था. बुद्ध और गांधी को विरासत को खारिज करना था.
इस घटना में राजनीति थी. पर राजनीति इससे प्रभावित होने वाली सबसे छोटी चीज रही होगी. उसका सतही असर सियासत में आए फेरबदल में दिखाई दिया और धुल भी गया.
नफ़रत और ख़ून से सींची ज़मीन पर फसलें नहीं उगतीं. सियासत की ऐसी ज़मीन टिकाऊ नहीं होती
Thursday, September 23, 2010
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