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भेड़ाघाट

Saturday, October 23, 2010

जिंदगी भर का जख्म देते रिश्ते

देश का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश हो या फिर केरल, गोवा, उत्तर-पूर्वी सीमांत राज्य हों या अन्य राज्य अथवा देश की राजधानी दिल्ली, मासूम अबोध बच्चियों से लेकर, युवती या प्रौढ़ा कोई भी सुरक्षित नजर नहीं आ रही हैं। बलात्कार की बढ़ती वारदातों के पीछे कोई और नहीं है, बल्कि वह लोग हैं जिन्हें प्यार से अपना कहा जाता है और जो मौका मिलते ही खून के रिश्तों तक को कलंकित करने से नहीं चूकते। जब पिता बेटी से मुंह काला करने में हिचक महसूस नहीं करता तो सौतेले पिता की बात ही क्या? दामन को दागदार करने में पिता, बच्चों के प्यारे अंकल, मामाजी, ससुर, दोस्त, प्रेमी, शिक्षक और सबसे ज्यादा पड़ोसी पाए जा रहे हैं। ऐसे में बच्चियां और महिलाएं कैसे सुरक्षित रह सकती हैं? फिर जब चारदीवारी और अपने प्रियजनों के घर में ही मौजूद आपका रक्षक भक्षक बन जाए और ईंट-पत्थरों से बना घर पिंजरा, ऑफिस के सहकर्मी जिनके साथ अपना सुख-दुख बांटने की उम्मीद बांधे, से सदैव अप्रिय आचरण की आशंका रहे या उनसे हरपल सतर्क रहना पड़े तो इससे बड़ी राष्ट्रीय समस्या और चिंता क्या हो सकती है। देश में बीते सालों में हुए बलात्कारों में अधिकांश में पड़ोसी ही संलिप्त पाए गए हैं। आंकड़े गवाह हैं कि 98.28 फीसदी बलात्कार की शिकार महिलाएं आरोपियों से पूर्व परिचित थीं। इनमें अधिकांश पड़ोसी, दोस्त, रिश्तेदार, मकान मालिक, किराएदार या शिक्षक थे, जबकि सिर्फ दस ही अजनबी थे। इनमें तीन फीसदी सहकर्मी थे।
मध्य प्रदेश में तो स्थिति और भी बदतर है। अभी हाल ही में दमोह नगर की बी.काम की एक छात्रा ने युवकों द्वारा आये दिन की जा रही छेडखानी से तंग आकर मालगाडी के सामने कूद कर जान दे दी। घटना के संबंध में मृतका के भाई पारस जैन एवं चाचा नवल चौरसिया ने बताया कि 20 वर्षीय कजली युवकों की छेडखानी से परेशान हो गई थी। इस बावत पुलिस में भी शिकायत की गई थी लेकिन पुलिस द्वारा आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने पर युवती ने ट्रेन के सामने कूद कर अपनी जान दे दी। उधर इसी जिले के तेजगढ़ थानांतर्गत ग्राम मगदूपुरा में बारहवीं की छात्रा के साथ पड़ोस के सौरभ पटेल दुराचार करने के बाद दूसरे दिन किशोरी के घर में जाकर उस पर कैरोसीन डालकर जिंदा जला दिया। गंभीर रूप से जली छात्रा ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। बताया जाता है कि घटना वाले दिन शाम पांच बजे छात्रा अपने घर के पास बाड़ी में थी। तभी पड़ोसी सौरभ पटेल वहां पहुंचा और उसने किशोरी के साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद सौरभ ने जान की धमकी देकर उससे इस बारे में किसी नहीं बताने के लिए कहा था। लेकिन पीडि़त छात्रा ने अपने परिजनों के इस बारे में बता दिया। पीडि़ता के पिता नोनेलाल ने


बताया कि उसी दिन वे बेटी के साथ तेजगढ़ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचे। लेकिन प्रधान आरक्षक ने बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए पैसे मांगे। इस पर वे वापस आ गए। अगले दिन सुबह वे फिर से थाना जाने की तैयारी में थे। घर के अन्य लोग बाहर थे और घर में बेटी अकेली थी। तभी सौरभ,उसके पिता परसुराम,चाचा टीकाराम,सीताराम और नन्नू घर में घुसे और बेटी पर कैरोसीन डालकर आग लगा दी। उसके चिल्लाने पर आरोपी भाग निकले। नोनेलाल ने बताया कि बेटी के आवाज सुनकर अंदर गए तो आरोपी भाग रहे थे।
सलामतपुर थाना क्षेत्र के जमुनिया में एक खेत पर बने टपरे में अकेली सो रही चौदह वर्षीय एक दलित किशोरी से चाकू की नोक पर बलात्कार किए जाने का मामला प्रकाश में आया है।
गत दिनों मुंबई के एक निजी अस्पताल में आईसीयू में भर्ती एक महिला के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में एक डॉक्टर और दिल्ली में अपनी लेक्चरर बहू के साथ बलात्कार करने का प्रयास करने के आरोप में एक प्रिंसिपल ससुर को गिरफ्तार किया गया। हिमाचल प्रदेश में प्रेरणा नामक स्वयंसेवी संस्था द्वारा मूक-बधिर बच्चों के पुनर्वास के लिए बने केंद्र में प्रिंसिपल और कुछ अध्यापकों द्वारा भी बच्चों से बलात्कार की खबरें हैं। एक समय वह था, जब कभी-कभार ही इस तरह की खबरें सुनने को मिलती थीं, लेकिन अब यह आए दिन की बात हो गई है। पहले चाचा, ताऊ, मामा आदि इन अपराधों के दोषी पाए जाते थे, लेकिन आज तो पुत्री को जन्म देने वाले कुछ पिता और उसकी रक्षा की कसम खाने वाले कुछ भाई भी इन रिश्तों को कलंकित करने का काम कर रहे हैं। शिक्षक जिन पर देश और समाज निर्माण का दायित्व है, उनके बारे में यह सब सुनकर घृणा होती है। अब तो ऐसा लगता है कि आज हम एक ऐसे समाज के अंग बन चुके हैं, जहां नैतिकता और संवेदनाओं के लिए कोई जगह ही नहीं है। आखिर समाज को हो क्या गया है? आज समाज नाम की वस्तु असल में रह ही नहीं गई है। यह एक गंभीर समस्या है। इसी तरह देश व समाज की सुरक्षा का दायित्व निभा रहे सेना व पुलिस, न्याय व्यवस्था के अलंबरदार, लोकतंत्र के सजग प्रहरी और डॉक्टर जैसे सम्मानित पेशे से जुड़े लोग भी यदि यदि इस तरह का आचरण करें तो यही कहावत चरितार्थ होती है कि जब बाड़ ही फसल को खाने लगे उस हालत में आखिर न्याय की आशा किससे की जा सकती है? हालात इसकी गवाही देते हैं कि ऐसे लोग मौका मिलते ही टूट पड़ते हैं और अपने शरीर की भूख शांत करने में पीछे नहीं रहते हैं। दरअसल, ऐसी घटनाएं समाज के लिए कलंक हैं। हालांकि ऐसी घटनाएं नई बात नही है। कहा जाता है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता यानी जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं। इस विशिष्ट संस्कृति, परंपरा, मान्यता वाले देश में आज पल-पल सर्वत्र नारी शोषित-उत्पीडि़त हो रही है। यहां तक कि नवरात्र में जिस अबोध-मासूम बच्ची को गोद में उठाए, कंधे पर बिठाकर पूजा हेतु ले जाते हैं, उसी आयु वर्ग की बच्चियों को आए-दिन लोग अपनी शैतानी हवस का शिकार बना रहे हैं। ऐसी खबरें रोज-ब-रोज अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। आखिर हमारा समाज इन घटनाओं पर मौन क्यों है। भौतिक विकास के बाद हम पाषाण युग में तो वापस नहीं जा सकते, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि आज भौतिकता ने नैतिकता को निगल लिया है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि न आज मानवता रही, न वह संस्कार रहे, न चरित्र और न ही आदर्श जिसके लिए समूची दुनिया में हमारा देश जाना जाता है। मुंबई के जेजे अस्पताल और ग्रांट मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2004 में कराए गए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि वहां कार्यरत 249 नर्सो में से 12.39 फीसदी ने यह स्वीकार किया कि अस्पताल में काम के दौरान वे अक्सर शारीरिक शोषण की शिकार हुई। पूर्व केंद्रीय मंत्री व वन्य जीव प्रेमी मेनका गांधी भले यह दावा करें कि देश से गिद्ध खत्म हो रहे हैं जबकि हकीकत में देश में मानव रूपी गिद्धों की बहुतायत है जो मौका मिलते ही स्त्री मांस नोचने को भूखे-भेडिय़ों की तरह टूट पड़ते हैं। बलात्कार मानवीयता और नैतिकता की दृष्टि से एक जघन्य और अक्षम्य अपराध है। ऐसे में बच्चियों के साथ बलात्कार निस्संदेह हैवानियत और नीचता की पराकाष्ठा है। इन घटनाओं में तेजी से हो रही वृद्धि चिंताजनक है। कोई भी समाज न तो बलात्कार की अनुमति देता है और न बलात्कारी को माफ कर सकता है। जाहिर है अति विकसित समाज का नियंत्रण राज्य के पास होने से बलात्कार एक असामाजिक जघन्य अपराध न होकर तकनीकी अपराध माना जाता है। बलात्कार वह चाहे बच्ची के साथ किया गया हो या कि वयस्क या अवयस्क के साथ, यह भूल-अज्ञानतानवश या धोखे में किया जाने वाला अपराध नहीं है। यह तो निश्चित है कि बलात्कार स्थान, समय, सुरक्षा आदि का ध्यान रखते हुए योजनाबद्ध साजिश के तहत पूरे संज्ञान में किया जाने वाला अपराध है। जहां तक बलात्कारी का सवाल है वह कोई भी क्यों न हों, उसके लिए सौंदर्य और आयु की कोई कसौटी नहीं है। उसकी कसौटी तो यही है कि वह आसानी से हमला कर अपनी भड़ास निकाल सके। अपनी ताकत का वहां प्रदर्शन करे जहां उसका कोई प्रतिवाद न कर सके। यदि ताकत का प्रदर्शन वह बाहर करेगा, तो निश्चित ही उसे विरोध का सामना करना पड़ेगा। इसीलिए बच्चियां और घर की बेटी-बहू तो बलात्कारी को सबसे आसानी से और बिना प्रतिरोध के शिकार के रूप में मिल जाती हैं। तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार के बाद हत्या करने, पिता द्वारा बेटी से बलात्कार और ससुर द्वारा बहू से बलात्कार की कोशिशें और हिमाचल की घटना इसका प्रमाण है कि आज आदमी की मानसिकता किस हद तक विकृत और दिवालिया हो चुकी है। इसमें दो राय नहीं कि हमारे यहां बलात्कार की कोई कड़ी सजा नहीं है। इस मामले में छात्र, शिक्षक, बुद्धिजीवी और आमजन सभी की एक राय है कि देश में लचीली कानून व्यवस्था होने के कारण ऐसे अपराधों में वृद्धि हो रही है। पुलिस द्वारा पकड़े जाने के बाद कड़ी सजा नहीं होने के कारण कुछ दिनों बाद ही अपराधी छूट जाता है। जब तक कोई ऐसी सजा का प्रावधान नहीं होगा जिससे अपराधियों में भय बना रहे, तब तक ये अपराध इसी तरह होते रहेंगे और बलात्कारी बेखौफ खुलेआम घूमते रहेंगे। इससे बलत्कृत लड़की व उसके परिजन समाज में बदनामी से बचने की खातिर बार-बार घर-बार शहर छोड़ दर-दर भटकते रहेंगे।

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