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भेड़ाघाट

Monday, October 4, 2010

इस अपराधी से कांग्रेस कैसे बचे?

आलोक तोमर डेटलाइन इंडिया

राजनीति को साफ सुथरा करने की कोशिशों में जुटे और युवाओं को आगे लाने की वकालत करने वाले राहुल गांधी को अपनी ही पार्टी का एक प्रदेश अध्यक्ष की हरकते मंजूर है और इन हरकतों में हत्या के प्रयास से ले कर बहुत सारे आपराधिक मामले भी रहे हैं और ये सारे मामले कांग्रेस सरकारों ने ही दायर किए है।

मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुरेश पचौरी जो एक बार फिर राज्यसभा में आने की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए राहुल गांधी से ले कर सोनिया गांधी तक सबके चरणों में विराजमान रहे हैं, अपने आपराधिक अतीत को ले कर शर्मिंदा नहीं हुए। शर्मिंदा हो तो उनकी पार्टी हो।

अपनी एक महिला साथी की आत्महत्या से ले कर एक कांग्रेसी डॉक्टर के नन्हे बेटे पर तेजाब फेंकने के मामले में भी उनके शिष्याें का नाम आया था और जिस बच्चे पर तेजाब फेका गया था उसे स्वर्गीय राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री कोष से मदद दे कर अमेरिका तक भिजवाया था। शायद राहुल गांधी को यह सब याद नहीं है। वरना वे पार्टी के प्रदेश के सबसे फ्लॉप अध्यक्ष के साथ मुस्कुराते हुए तस्वीरें नहीं खिचवाते।

मध्यप्रदेश की राजनीति में कांग्रेस को सुखाने वाले प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी सोनिया दरबार में चक्कर लगा-लगाकर लगातार पांचवीं बार राज्यसभा में जाने की तैयारी कर चुके हैं। सोनिया दरबार के इस नेता में पता नहीं क्या जादू है कि जिसके कारण मैडम हमेशा पचौरी से खुश रहती हैं और उन्हें इनाम पर इनाम देती जा रही हैं। मैडम के इस रवैये से प्रदेश कांग्रेस का आम कार्यकर्ता हतप्रभ भी है और हताश भी और गुस्से में भी।

मप्र की राजनीति करने वाले या समझने वाले कांग्रेसी इन कार्यकर्ताओं की मनोस्थिति को समझ सकते हैं। कार्यकर्ताओं की पीड़ा जायज भी है। 2008 के विधानसभा चुनाव के पहले सुभाष यादव को हटाकर सुरेश पचौरी की ताजपोशी प्रदेश कांग्रेस में इसलिए हुई थी कि वे प्रदेश कांग्रेस में नई जान फूंक सकें, लेकिन पचौरी ने प्रदेश कांग्रेस के हरे-भरे वृक्ष को ही सुखा दिया।

पचौरी की कारगुजारियां कैसी रही होंगी कि उन्हीं की कांग्रेस की सरकारें परेशान थीं। इन्हीं कांग्रेस सरकारों ने पचौरी पर लगभग एक दर्जन गंभीर अपराध दर्ज किए। जिनकी धाराएं बताती हैं कि यदि पचौरी राजनीति में नहीं आते तो आज कहां होते।

अपराधों की सूची-

ः टीटी नगर थाना में अपराध क्रमांक 179/74 धारा 395, 436, 454, 380।
ः शाहजहांनाबाद थाना में अपराध क्रमांक 324/506।
ः तलैया थाना में अपराध क्रमांक 711/74 धारा 147/74 धारा 147, 148, 149, 336।
ः जहांगीराबाद थाना में अपराध क्रमांक 333/77 धारा 392।
ः टीटी नगर थाना में अपराध क्रमांक 381/77 धारा 147, 353, 336, 429।
ः तलैया थाना में अपराध क्रमांक 712/74 धारा 307, 147, 148, 149, 365, 36
ः टीटी नगर थाना में अपराध क्रमांक 387/77 धारा 385, 294, 341, 506।
ः टीटी नगर थाना में अपराध क्रमांक 376/77 धारा 353, 394, 342।
ः तलैया थाना में अपराध क्रमांक 307/77-78 धारा 365।
ः मंगलवारा थाना में अपराध क्रमांक 810/78 धारा 307, 147,148।
ः शाहजहांनाबाद थाना में अपराध क्रमांक 629/79 धारा 147,148, 149।
ः टीटी नगर पुलिस ने सन् 1982 में धारा 448, 353, 294 और 506 के तहत गिरफ्तार किया।
2008 के विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में जो बंदरबांट हुई, उससे स्पष्ट है कि पचौरी कहीं न कहीं किसी न किसी से समझौते करते नजर आए। मप्र में पचास जिले हैं, जिले की लगभग हर सीट पचौरी ने अपने समर्थक को टिकट दिला दी और जहां नहीं दिला पाए, वहां से दावेदारी कर रहे अन्य समर्थक नेता का विरोध कर टिकट कटवाया और ऐसे व्यक्ति का समर्थन किया, जिसकी हैसियत वार्ड का चुनाव जीतने की नहीं थी।

बात राजधानी से की जाए तो दक्षिण-पश्चम से दीपचंद्र यादव, हुजूर की टिकट तो दो दिन में दो लोगों को दी गई। उज्जैन में जयसिंह दरबार एक ऐसा नेता था, जो शहर में किसी भी सीट पर जीत सकता था, लेकिन उसे टिकट से वंचित रखा गया। यही वजह रही कि प्रदेश में कांग्रेस कई जगह तीसरे स्थान पर रही और दूसरे स्थान पर कांग्रेस के बागी रहे। इनमें मानवेंद्र सिंह निर्दलीय जीतकर भी आए। विधानसभा चुनाव में टिकटों का वितरण तो ऐसे हो रहा था, जैसे फिल्म सुपरहिट हो रही हो और टिकट ब्लैक में बेचे जा रहे हों। कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि टिकट वितरण में हुई गड़बड़ी की जांच बड़े स्तर पर होगी तो सही-गलत पर से परदा उठ जाएगा, लेकिन हाईकमान ने लोकसभा चुनाव को नजदीक देखते हुए पचौरी को अभयदान दे दिया। आम चुनाव हुए और केंद्र में सरकार कांग्रेस की बन गई तो सारे मुद्दे ठंडे बस्ते में चले गए। लोकसभा में कांग्रेस को जो सफलता मिली, पहले से ज्यादा संख्या में कांग्रेस के सांसद जीते, जिसका श्रेय पचौरी ले उड़े। प्रदेश में कमलनाथ, अरुण यादव, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांतिलाल भूरिया, नारायण आमलावे, सज्जन सिंह वर्मा, प्रेमचंद्र गुव्ू, मीनाक्षी नटराजन ऐसे नेता थे, जो अपनी दम पर जीते और अपने क्षेत्र से लगी सीटों को भी प्रभावित किया। देखा जाए तो दिग्विजय सिंह ने तो एक सरपंच को सांसद बनाकर अपने भाई को हरवा दिया था। अरुण यादव पहले भी अपने पिता की विरासत पर जीते थे और पुनरू जीते। गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी सिंधिया समर्थक थे, इसलिए उन्हें जिताने की जवाबदारी सिंधिया पर थी, सो वे भी जीते। सज्जन सिंह वर्मा कमलनाथ समर्थक हैं, जाहिर है उनकी जवाबदारी भी कमलनाथ के कंधों पर थी। प्रेमचंद्र गुव्ू को जिताने से ज्यादा जनता की रुचि सत्यनारायण जटिया को हराने में थी। ऐसा ही हाल मंदसौर में लक्ष्मीनारायण पांडे का था। पांडे जी को जनता यह सोचकर बार-बार जिता रही थी कि यह इनका आखिरी चुनाव है, जब वे नहीं माने तो जनता ने मीनाक्षी नटराजन को जिताकर पांडे जी का विदाई समारोह कर दिया। लोकसभा की जीती हुईं सीटों पर अवलोकन करें तो एकमात्र सीट होशंगाबाद है, जो जीतने का श्रेय पचौरी लेते हैं। इस सीट को भाजपा ने ही कांग्रेस को सौंपी थी रामपाल सिंह को प्रत्याशी बनाकर। उदयपुरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के बाद से ही रामपाल सिंह परिवार का आतंक जनता पर कहर बनकर टूटा। मंत्री बनने के बाद इन परिजनों ने हदें पार कर दीं। कई बार तो उदयपुरा क्षेत्र रामपाल सिंह के परिवारजनों के आतंक के चलते बंद रहा। जब हम लोग इस क्षेत्र में कवरेज करने के लिए पहुंचे तो स्थानीय लोगों का कहना था कि ऐसा करें कि रामपाल सिंह को टिकट मिल जाए, ताकि हम वोट के द्वारा उनके कृत्यों का जवाब दे सकें और हुआ भी वही जो जनता-जनार्दन के दिल में था। कांग्रेस ने एक विधायक को लोकसभा का चुनाव लड़ाया और वह जीता, परंतु कुछ ही दिनों बाद उसी विधायक की रिक्त हुई सीट पर भाजपा पुनरू जीत गई। इससे स्पष्ट है कि यह लोकसभा सीट कांग्रेस कैसे जीती। इस जीत पर पचौरी अपनी जीत समझते हैं तो यह उनकी बेवकूफी है। इन्हीं जीतों को पचौरी ने अपनी जीत बताकर सोनिया दरबार में अपनी रैंक बढ़ा ली, उसी का नतीजा है कि वे लगातार पांचवीं बार राज्यसभा में पहुंच रहे हैं। मप्र में पचौरी की राजनीति के चलते दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया और जमुनादेवी ने प्रदेश की राजनीति से किनारा कर लिया। भोपाल की गलियों के इस नेता के इर्द-गिर्द ऐसे नेताओं का समूह है, जिनका अपना कोई राजनैतिक वजूद नहीं है, जो जनता के बीच कभी गए ही नहीं और वार्ड का चुनाव भी लड़ा नहीं, लेकिन प्रदेश व देश की राजनीति को दिशा देने की रणनीति बनाते हैं। स्वयं पचौरी कभी चुनाव नहीं जीते, अगर हाईकमान समझता है कि पचौरी जनाधार वाले नेता हैं तो हाईकमान को अगला विधानसभा या लोकसभा चुनाव लड़ाकर अपना जनाधार सिध्द करने का मौका देना चाहिए। इस तरह बार-बार राज्यसभा में भेजना उन कर्मठ कांग्रेसियों के साथ कुठाराघात होगा, जिन्होंने इस विशाल वटवृक्ष (कांग्रेस) को लगाया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विविजय सिंह 'राजा' और महाराजा कहे जाने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शवयात्रा के दौरान और बाद में भी साथ-साथ रहे। नेताओं में दोनों की एकजुटता चर्चा का विषय बनी रही। श्री सिंह ने प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी से पूरे समय दूरी बनाए रखी थी। जमुनादेवी के घर से लेकर श्मशान में हुई शोकसभा तक 'राजा, महाराजा' साथ-साथ रहे। कमलनाथ के विशेष प्लेन से दोनों साथ ही इंदौर आए थे। दोनों नेताओं के समर्थक भी समझ नहीं पा रहे थे कि दोनों परस्पर विरोधी माने जाने वाले ध्रुव साथ में कैसे हैं। शवयात्रा उठने से पहले भी दोनों नेता एक पेड़ के नीचे खड़े होकर बातें कर रहे थे, जबकि जमुनादेवी के निवास में सुरेश पचौरी और अरुण यादव अर्थी उठने का इंतजार कर रहे थे। शोकसभा के बाद भी दोनों साथ ही रवाना हुए।

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